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गुरुवार, मार्च 30, 2017

एक शाम मेरे नाम ने पूरे किए अपने ग्यारह साल ! ( 2006-2017)

पिछले हफ्ते एक शाम मेरे नाम ने अपने ग्यारह वर्ष पूरे किए। जो लोग इस ब्लॉग से हाल में ही जुड़े हैं वो मेरे इस लंबे सफ़र की कहानी यहाँ पढ़ सकते हैं। आज कुछ खास आपसे नया कहने को नहीं हैं। चंद बातें जो नयी हुई हैं वो ये कि पिछले साल से एक शाम मेरे नाम अपने डोमेन यानि http://www.ek-shaam-mere-naam.in/  पर आ गया है और कुछ महीने पहले ही यू ट्यूब पर इस ब्लॉग का आडियो चैनल  भी शुरु हो गया है जिसमें मैं अपने पसंदीदा नज़्में, गीत और कविता आपको  अपनी आवाज़ में सुनाता रहूँगा।


आज हक़ीकत ये है कि  मेरे अधिकांश शुरुआती साथी ब्लॉग की दुनिया से दूर चले गए हैं या नियमित नहीं रहे। पर जहाँ तक मेरा सवाल है, ब्लॉग मेरा पहला घर था और रहेगा। यही वज़ह है कि सोशल मीडिया पर मेरी गतिविधियों का केंद्र भी मेरे दोनों ब्लॉग एक शाम मेरे नाम व मुसाफ़िर हूँ यारों रहे हैं।

सोशल मीडिया आज हर ब्लॉगर की जरूरत बन गया है क्यूँकि वहाँ रहकर नई पोस्ट तक पहुँचना पढ़ने लिखने वालो के लिए ज्यादा सुविधाजनक है। एक शाम मेरे नाम का फेसबुक पन्ना आप यहाँ से फॉलो कर सकते हैं अगर आप ट्विटर  पर ज्यादा सक्रिय हैं तो मेरी ट्विटर  प्रोफाइल ये रही। बाकी ई मेल सब्सक्रिप्शन का विकल्प तो है ही😊

बाकी मैं यही चाहूँगा कि इस ब्लाग की बेहतरी के लिए आपके मन में कुछ हो तो जरूर बताएँ। सालों साल इस ब्लॉग का अनुसरण करने वाले पाठकों को मेरा तहे दिल से शुक्रिया व प्यार। ग्यारह वर्षों के इस सफ़र में कितने राही आए साथ रहे और फिर जुदा भी हो गए और ये क्रम चलता रहा है। आगे भी चलता रहेगा गर मैं ना थकूँ.. उम्मीद है कि आप मुझे थकने भी ना देंगे..और हमारा ये साथ आगे भी बना रहेगा।

 

बुधवार, मार्च 30, 2016

दस साल लगातार : एक शाम मेरे नाम ने पूरा किया हिंदी ब्लागिंग का एक दशक (2006-2016) !

पिछले हफ्ते यानि 26 मार्च को एक शाम मेरे नाम का दसवाँ जन्मदिन था यानि मुझे हिंदी ब्लॉगिंग में कदम रखे एक दशक गुजर गया। दस सालों के इस सफ़र को एक पोस्ट में समेट पाना निहायत ही मुश्किल काम है और मैं इसकी कोशिश भी  नहीं करूँगा। फिर भी कुछ बातें जो जरूरी हैं इस सफ़र की कड़ियाँ पिरोने के लिए, उनका जिक्र आज इस पोस्ट के माध्यम से करना चाहता हूँ।


वर्ष 2006 में जब अंग्रेजी से हिंदी ब्लॉगिंग में कदम रखा था तो मुश्किल से सौ के करीब ब्लॉग रहे होंगे जो क्रियाशील थे। ब्लॉगिंग तब हिंदी में लिखने वालों के लिए एक नई चीज़ थी। हिंदी में लिखने पढ़ने की चाह रखने वालों के लिए ये एक नया ज़रिया था आभासी मेल जोल बढ़ाने का। एक दूसरे की पोस्ट को पढ़ने के लिए एग्रग्रेटर बनाने का प्रचलन नारद से तभी शुरु हुआ। बाद में इसकी जगह ब्लॉगवाणी ने ले ली। इन शुरुआती सालों में हिंदी ब्लॉग में वैसे लोग ज्यादा आए जिनका सीधे सीधे हिंदी लेखन से कोई सरोकार नहीं था। लोग कम थे। ज्यादातर आभासी रूप में एक दूसरे से परिचित थे और एक दूसरे के ब्लॉगों पर आना जाना था। कविताएँ लिखने वालों की तादाद इनमें सबसे ज्यादा थी। 

पर बहुत से लोग ये समझ नहीं पाए कि ब्लॉगरों ये आवाजाही हमेशा नहीं रहेगी और उन्हें अपनी विषयवस्तु को ऐसा रखना होगा जिसे हिंदी में रुचि रखने वाला गूगल जैसे सर्च इंजन से खोज कर भी पहुँच सके। हुआ भी वही  जब सैकड़ों से हिंदी ब्लॉगों की संख्या हजार तक पहुँची तो ये संभव ही नहीं रहा कि ब्लॉगर सारे अन्य ब्लॉगरों को पढ़ सकें। ज्यादा संख्या हुई तो ढेर सारे गुट भी बन गए। एक दूसरे पर  छींटाकशी कुछ ब्लागों का शगल बन गया। पर वहीं कुछ ब्लॉग्स इन सब से दूर लेखन के इस वैकल्पिक  मार्ग को हिंदी ब्लॉग लेखन के परिदृश्य को विस्तृत करते रहे। कविता व कहानियों के इतर भी इतिहास, टेक्नॉलजी, व्यंग्य, समाज, भाषा, संगीत, सिनेमा, किताबों,  यात्रा पर अच्छे ब्लॉग्स बनें जो आज तक क्रियाशील हैं और जिनके पाठक वर्ग में कोईकमी नहीं आई है।

फिर एक दौर वो आया जिसमें बड़ी संख्या में पत्रकारों और मीडिया से जुड़े लोगों ने ब्लॉग की शक्ति को पहचाना और बड़े पैमाने पर लिखना शुरु किया। वक़्त के साथ हिंदी ब्लॉगिंग में वही लोग ठहर पाए जिन्होंने अपने ब्लॉग को एक विशिष्ट पहचान दी और अपनी विषय वस्तु मैं नवीनता लाते रहे। साहित्य में पैठ रखने वाले बहुत से लोगों ने ब्लागिंग को किताब लिखने के लिए एक सीढ़ी का इस्तेमाल किया और इसमें सफल भी रहे। एक बार साहित्यिक फलक तक पहुँचने के बाद ब्लागिंग के प्रति उनकी प्रतिबद्धता में कमी आई। वैसे भी फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के आने के बाद लोगों को अपनी बातों को एक बड़े वर्ग तक पहुँचाने का हल्का फुल्का ही सही पर व्यापक माध्यम मिल गया  था। जिन लोगों ने अपने ब्लॉग को बतकही का माध्यम बना रखा था वो फेसबुक पर ही अड्डा जमाने लगे।

ये तो हुई हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास की बात। अपनी बात करूँ तो मुझे शुरु से इस बात का इल्म था कि अगर मुझे अपने ब्लॉगिंग की लय बनाई रखनी है तो उसके लिए अपने कांटेंट को सुधारने के लिए लगातार मेहनत करनी होगी। दूसरे ये कि मेरे ब्लॉग विषय आधारित ब्लॉग होंगे। इसी वज़ह से 2008 में मैंने अपने यात्रा लेखों को एक शाम मेरे नाम पर लिखना बंद कर मुसाफ़िर हूँ यारों नाम से यात्रा आधारित ब्लॉग की शुरुआत की। मुझे इस बात का फक्र है कि मुसाफ़िर हूँ यारों ने भारत भर के हिंदी व अंग्रेजी यात्रा ब्लॉगों के बीच अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। 

वहीं एक शाम मेरे नाम पर लगातार मैं गीतों, ग़ज़लों  व किताबों के बारे में लिखता रहा और जब जब अपनी आवाज़ में कुछ पढ़ने का मन किया तो पॉडकास्ट भी  किया। मेरी अक्सर ये कोशिश रही है कि जिन गीतों व ग़ज़लों को मैं आप तक पहुँचाऊँ तो उनके भावों के साथ बनने या लिखने के क्रम में हुई रोचक घटनाओं को भी आपके साथ साझा करूँ। संगीत में नए व पुराने का फर्क मैंने नहीं रखा। हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्णिम काल के दिग्गज गीतकार , संगीतकार व गायकों के मधुर गीत भी आपसे बाँटे तो वहीं पिछले ग्यारह सालों से नए फिल्म संगीत में लीक से हटकर जो हो रहा है उसे अपनी वार्षिक संगीतमालाओं में जगह दी। 

सोशल मीडिया के इस दौर से मैं भी अछूता नहीं रहा और मैंने भी फेसबुक का इस्तेमाल अपने लेखों को साझा करने के लिए लगातार किया। बाद में फेसबुक पर अपने दोनों ब्लॉगों एक शाम मेरे नाममुसाफ़िर हूँ यारों के दो पृष्ठ भी बनाए ताकि जो लोग वहाँ मेरी मित्र मंडली में नहीं हैं वो भी ब्लॉग से जुड़ सकें। अब ब्लाग्स की नई प्रविष्टियों से आप गूगल प्लस व ट्विटर पर भी मुखातिब हो सकते हैं।

एक साथ दो ब्लॉगों पर लिखना और उसके बीच आठ घंटों की नौकरी करना कभी आसान नहीं रहा। पर ये मै कर सका तो इसलिए कि संगीत और यात्रा पर लिखते हुए मुझे अन्दर से खुशी मिलती है जो शब्दों से बयाँ नहीं की जा सकती। यही खुशी मुझमें उर्जा भरती है हर  रोज़ ब्लॉगिंग के लिए कुछ घंटे निकालने  के लिए। 

इस दस साल के सफ़र में तमाम पाठकों से मुखातिब रहा। कुछ से साथ छूटा तो कुछ नए साथ आकर जुड़ गए और ये कारवाँ मुझसे कभी अलग नहीं हुआ। यही वज़ह है कि बिना किसी विराम के दस साल का ये सफ़र निर्बाध, लगातार चलता रहा।

ब्लॉगिंग ने  ही संगीत व यात्रा से जुड़ी नामी हस्तियों से भी बातचीत करने का अवसर दिया। मैं इस विधा का शुक्रगुजार हूँ क्यूँकि इसकी वजह से ही मैंने कई बार अख़बार के पन्नों पर सुर्खियाँ बटोरीं,  रेडियो जापान पर बोलने का अवसर मिला, ABP News पर इंटरव्यू देने का मौका मिला पर इससे भी कहीं ज्यादा खुशी इस बात की है ब्लॉगिंग ने मुझे कुछ ऐसे मित्र दिए जो मेरी ज़िंदगी का अहम हिस्सा हैं और रहेंगे।  मुझे यकीं है कि आप सब का प्यार आगे भी एक शाम मेरे नाम मुसाफ़िर हूँ यारों को मिलता रहेगा और मेरी भी कोशिश रहेगी कि मैं आप सबकी की उम्मीद पर आगे भी खरा उतरूँ।

रविवार, मार्च 30, 2014

एक शाम मेरे नाम ने पूरे किए अपने आठ साल (2006-2014) !

एक शाम मेरे नाम ने पिछले हफ्ते अपने अस्तित्व का आठवाँ साल पूरा किया। आठ साल की इस यात्रा में ब्लॉगिंग ने मुझे बहुत कुछ दिया है। आज मेरे मित्रों और जानने वालों की फेरहिस्त में संगीत और साहित्य से स्नेह रखने वाले सैकड़ों जन हैं जिनमें से कईयों की प्रतिभा का मैं क़ायल हूँ। भला बताइए पेशे से एक इंजीनियर के लिए ब्लॉगिंग के बिना क्या ये संभव होता ? इसलिए मैं इस माध्यम का और इससे जुड़े मित्रों व पाठकों का तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ। सच मानिए मेरी इन आठ सालों की मेहनत का प्रतिफल बस आपके प्रेम की पूँजी है।

साल दर साल इस ब्लॉग से जुड़ने वाले लोगों का काफ़िला बढ़ता रहा है। सात लाख के करीब पेज लोड, हजार से ऊपर ई मेल सब्सक्राइबर्स, आठ सौ के करीब नेटवर्क ब्लॉग फौलोवर्स और तीन सौ के करीब गूगल फौलोवर्स और पिछले साल नवाज़ा गया इंडीब्लॉगर एवार्ड.. ये सभी इस इस बात का द्योतक है कि संगीत और साहित्य के प्रति अपनी रुचियों को आप तक पहुँचाने का जो तरीका मैंने चुना है वो आप सब को भा रहा है।

आजकल सब लोग सवाल करते हैं कि क्या सोशल मीडिया के आने के बाद ब्लॉगिंग का औचित्य समाप्त नहीं हो गया? सच बताऊँ तो मुझे ये प्रश्न बेतुका लगता है। ब्लॉग और सोशल मीडिया पर लेखन की प्रकृति और उद्देश्य दोनों भिन्न हैं। अगर क्रिकेट के खेल से इसकी तुलना करूँ तो मैं यही कहूँगा कि जहाँ ब्लॉग पर लिखना टेस्ट क्रिकेट है तो वही फेसबुक पर वन डे और ट्विटर पर T 20। ज़ाहिर सी बात है भीड़ T 20  ज्यादा जुटती है।   पर इनमें कितने क्रिकेट देखने वाले होते हैं और कितने तमाशाबीन उसका फैसला आप ख़ुद कर सकते हैं।पर जिसने ये खेल खेला हुआ है या जिसे क्रिकेट से सच्चा प्यार है वो ये भली भांति जानता है कि टेस्ट क्रिकेट ही इस खेल की असली धरोहर है।

मैं ख़ुद भी सोशल मीडिया पर सक्रिय रहा हूँ पर उसका उद्देश्य एक ओर तो पाठकों तक इस ब्लॉग की पहुँच का विस्तार करना है तो दूसरी तरफ़ वैसी महान विभूतियों से सीधा संपर्क साधना रहा है जिनके बारे में मैं इस ब्लॉग पर लिखता रहा हूँ। मुझे इस बात की खुशी है कि मुझे अपने इन दोनों उद्देश्यों में अच्छी सफलता मिली है।

वार्षिक संगीतमालाओं के महीने को छोड़ दें तो इस ब्लॉग पर प्रति हफ्ते मैं एक पोस्ट लिखने की कोशिश करता हूँ क्यूँकि यही कोशिश मुझे अपने यात्रा ब्लॉग मुसाफ़िर हूँ यारों के लिए भी करनी पड़ती है। अब कुछ रिसालों के लिए भी नियमित रूप से लिखना शुरु किया है। ज़ाहिर है ये सारी बातें आपका वक़्त माँगती हैं जो दिन भर की नौकरी के बाद नाममात्र ही बच पाता है। दरअसल एक ब्लॉगर के लिए सीमित समय ही उसके लेखन की विविधता और गुणवत्ता को बनाए रखने में सबसे बड़ी बाधा है। नित इसी संघर्ष के बीच आप तक अपनी पसंद को पहुँचाता रहा हूँ और आपका प्रेम इस ब्लॉग के लिए यूँ ही बना रहा तो भविष्य में भी पहुँचाता रहूँगा। एक बार फिर एक शाम मेरे नाम के पाठकों को मेरा ढेर सारा प्यार !

मंगलवार, मार्च 26, 2013

एक शाम मेरे नाम ने पूरे किए अपने सात साल !

वक़्त का पहिया बिना रुके घूमता ही रहता है। आपके इस चिट्ठे ने भी आज समय के साथ चलते हुए अपनी ज़िंदगी के सात साल पूरे कर लिए हैं। सात सालों के इस सफ़र में करीब पौने छः लाख पेजलोड्स, हजार से ज्यादा ई मेल सब्सक्राइबर और उतने ही फेसबुक पृष्ठ प्रशंसक,  मुझे इस बात के प्रति आश्वस्त करते हैं कि इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आपकी गुज़री शामों में सुकून के कुछ पल मुहैया करा सका हूँ। पिछले साल मैंने इस अवसर पर पाठकों की उन चुनिंदा टिप्पणियों को शामिल किया था जिसे मेरी लिखी प्रविष्टियों को नए आयाम मिल गए थे।

इस साल सालगिरह के अवसर पर पेश है उन  दस प्रविष्टियों का झरोखा जिन्हें पिछले साल एक शाम मेरे नाम के पाठकों ने  ब्लॉगर द्वारा दी गई गणना के हिसाब से सबसे ज्यादा पढ़ा...

#10.  फिर कहीं कोई फूल खिला, चाहत ना कहो उसको : क्या आप निराशावादी हैं?



फिर कहीं...
फिर कहीं  कोई फूल खिला, चाहत ना कहो उसको
फिर कहीं  कोई फूल खिला, चाहत ना कहो उसको
फिर कहीं कोई दीप जला, मंदिर ना कहो उसको
फिर कहीं ..

यानि जीवन में घट रही तमाम धनात्मक घटनाओं को उतना ही आँकें जिनके लायक वो हैं। नहीं तो अपने सपनों के टूटने की ठेस को शायद आप बर्दाश्त ना कर पाएँ।

ये गीत है फिल्म अनुभव का  जिसे लिखा था कपिल कुमार ने और धुन बनाई थी कनु रॉय ने। कपिल कुमार फिल्म उद्योग में एक अनजाना सा नाम हैं। कनु रॉय के साथ उन्होंने दो फिल्मों में काम किया है अनुभव और आविष्कार। पर इन कुछ गीतों में ही वो अपनी छाप छोड़ गए। यही हाल संगीतकार कनु रॉय का भी रहा। गिनी चुनी दस से भी कम फिल्मों में काम किया और जो किया भी वो सारे निर्देशक बासु भट्टाचार्य के बैनर तले। बाहर उनको काम ही नहीं मिल पाया। पर इन थोड़ी बहुत फिल्मों से भी अपनी जो पहचान उन्होंने बनाई वो आज भी संगीतप्रेमियों के दिल में क़ायम है।
पर तेज़ हवाओं से मेरा ये प्रेम अकेले का थोड़े ही है। आपमें से भी कई लोगों को बहती पवन वैसे ही आनंदित करती होगी जैसा मुझे। इस मनचली हवा के प्रेमियों की बात आती है तो मन लगभग दो दशक पूर्व की स्मृतियों में खो जाता है।  बात 1994 की है तब हमारे यहाँ दिल्ली से प्रकाशित टाइम्स आफ इंडिया आया करता था। उसके संपादकीय पृष्ठ पर लेख छपा था सुरेश चोपड़ा (Suresh Chopda) का। शीर्षक था  The Wind and I। उस लेख में लिखी चोपड़ा साहब की आरंभिक पंक्तियाँ मुझे इतनी प्यारी और दिल को छूती लगी थीं कि मैंने उसे अपनी डॉयरी के पन्नों में हू बहू उतार लिया था। चोपड़ा साहब ने लिखा था

"There is something so alive and moving in a strong wind, that one of my concept of perfect bliss is to find myself standing alone on a high cliff by the sea with a strong wind hurtling past me with full ferocity. Nothing depresses me more than a windless day, with everything still and the leaves of the trees hanging still and lifeless. Yes give me the wind any day the stronger, wilder and more ferocious the better."
चित्र साभार

#8.  विभाजन की विरह गाथा कहता जावेद का ख़त हुस्ना के नाम  : पीयूष मिश्रा

पीयूष जी ने कभी हुस्ना को नहीं देखा। ना वो लाहौर के गली कूचों से वाकिफ़ हैं। पर उनका पाकिस्तान उनके दिमाग में बसता है और उसी को उन्होंने शब्दों का ये जामा पहनाया है। गीत की शुरुआत में  पीयूष द्वारा 'पहुँचे' शब्द का इस्तेमाल तुरंत उस ज़माने की याद दिला देता है जब चिट्ठियाँ इसी तरह आरंभ की जाती थीं। पुरानी यादों को पीयूष, दर्द में डूबी अपनी गहरी आवाज़ में जिस तरह हमारे साझे रिवाज़ों, त्योहारों, नग्मों के माध्यम से व्यक्त करते हैं मन अंदर से भींगता चला जाता है। जावेद की पीड़ा सिर्फ उसकी नहीं रह जाती हम सबकी हो जाती है।

#7.  जब भी ये दिल उदास होता है : जब गीत का मुखड़ा बना एक ग़ज़ल का मतला !

जब भी ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस-पास होता है

होठ चुपचाप बोलते हों जब
साँस कुछ तेज़-तेज़ चलती हो
आँखें जब दे रही हों आवाज़ें
ठंडी आहों में साँस जलती हो, 
ठंडी आहों में साँस जलती हो
जब भी ये दिल ...
कुछ गीतों का कैनवास फिल्मों की परिधियों से कहीं दूर फैला होता है। वे कहीं भी सुने जाएँ, कभी भी गुने जाएँ वे अपने इर्द गिर्द ख़ुद वही माहौल बना देते हैं। इसीलिए परिस्थितिजन्य गीतों की तुलना में ये गीत कभी बूढ़े नहीं होते। गुलज़ार का फिल्म सीमा के लिए लिखा ये नग्मा एक ऐसा ही गीत है। ना जाने कितने करोड़ एकाकी हृदयों को इस गीत की भावनाएँ उन उदास लमहों में सुकून पहुँचा चुकी होंगी। कम से कम अगर अपनी बात करूँ तो सिर्फ और सिर्फ इस गीत का मुखड़ा लगातार गुनगुनाते हुए कितने दिन कितनी शामें यूँ ही बीती हैं उसका हिसाब नहीं।

#6.  ख़ुद अपने लिए बैठ के सोचेंगे किसी दिन : अमज़द इस्लाम अमज़द

 
ख़ुद अपने लिए बैठ के सोचेंगे किसी दिन
यूँ है के तुझे भूल के देखेंगे किसी दिन

भटके हुए फिरते हैं कई लफ्ज़ जो दिल मैं
दुनिया ने दिया वक्त तो लिखेंगे किसी दिन

आपस की किसी बात का मिलता ही नहीं वक़्त
हर बार ये कहते हैं कि बैठेंगे किसी दिन

ऐ जान तेरी याद के बेनाम परिंदे
शाखों पे मेरे दर्द की उतरेंगे किसी दिन

मैं नहीं समझता कि कोई क्यूँ कविता लिखता है ये समझ पाना किसी के लिए मुमकिन है। मुझे ये भी नहीं पता कि ये आधे अधूरे वाक्यांश दिमाग में कैसे आते हैं ? क्यूँ हम शब्दों का इस तरह हेरफेर करते हैं कि वो ख़ुद बख़ुद मीटर में आ जाते हैं? पर इतना जानता हूँ कि जब लिखने का मूड मुझे पूरी तरह नियंत्रित कर लेता है और जब वो बातें मन से निकल कर क़ाग़ज के पन्नों पर तैरने लगती हैं तो मन एक अजीब से संतोष से भर उठता है। मन में जितनी ज्यादा उद्विग्नता होती है विचार उतनी ही तेजी से प्रस्फुटित होते हैं।

#5. ज़िदगी के मेले में, ख़्वाहिशों के रेले में.. तुम से क्या कहें जानाँ, इस क़दर झमेले में

 ज़िदगी के मेले में, ख़्वाहिशों के रेले में
तुम से क्या कहें जानाँ ,इस क़दर झमेले में

वक़्त की रवानी1 है, बखत की गिरानी2  है
सख़्त बेज़मीनी है, सख़्त लामकानी3 है
हिज्र4 के समंदर में, तख्त और तख्ते की
एक ही कहानी है...तुम को जो सुनानी है

1. तेजी, प्रवाह,  2. भाग्य का अस्ताचल, 3. बिना मकान के, 4. विरह
 अमज़द आज भी कविता को अपनी आत्मा से मिलने का ज़रिया मानते हैं। उनके हिसाब से कविता उनके अंदर एक ऐसे हिमखंड की तरह बसी हुई है जिसकी वो कुछ ऊपरी परतें खुरच पाएँ हैं। अमज़द साहब अपनी इस साधना में अंदर तक पहुँचने के तरीके के लिए माइकल ऐंजलो से जुड़ा एक संस्मरण सुनाते हैं। माइकल से पूछा गया कि पत्थर की बेडौल आकृतियों से वो शिल्प कैसे गढ़ लेते हैं? माइकल का जवाब था पत्थरों में आकृति तो छिपी हुई ही रहती है। मैंने तो सिर्फ उसके गैर जरूरी अंशों को हटा देता हूँ

 #4. मुझे जाँ न कहो मेरी जाँ : क्या था गीता दत्त की उदासी का सबब ?

इससे पहले कि मैं इस गीत की बात करूँ, उन परिस्थितियों का जिक्र करना जरूरी है जिनसे गुजरते हुए गीता दत्त ने इन गीतों को अपनी आवाज़ दी थी। महान कलाकार अक़्सर अपनी निजी ज़िंदगी में उतने संवेदनशील और सुलझे हुए नहीं होते जितने कि वो पर्दे की दुनिया में दिखते हैं।  गीता रॉय और गुरुदत्त भी ऐसे ही पेचीदे व्यक्तित्व के मालिक थे। एक जानी मानी गायिका से इस नए नवेले निर्देशक के प्रेम और फिर 1953 में विवाह की कथा तो आप सबको मालूम होगी। गुरुदत्त ने अपनी फिल्मों में जिस खूबसूरती से गीता दत्त की आवाज़ का इस्तेमाल किया उससे भी हम सभी वाकिफ़ हैं।


पर वो भी यही गुरुदत्त थे जिन्होंने शादी के बाद गीता पर अपनी बैनर की फिल्मों को छोड़ कर अन्य किसी फिल्म में गाने पर पाबंदी लगा दी। वो भी सिर्फ इस आरोप से बचने के लिए कि वो अपनी कमाई पर जीते हैं। 

#3. पीली छतरी वाली लड़की : हिंदी, ब्राह्मणवाद और उदयप्रकाश ...

 उदयप्रकाश जी ने अपनी इस किताब में भाषायी शिक्षा से जुड़े कुछ बेहद महत्त्वपूर्ण मसले उठाए है। किस तरह के छात्र इन विषयों में दाखिला लेते हैं? कैसे आध्यापकों से इनका पाला पड़ता है? अपनी पुस्तक में लेखक इस बारे में टिप्पणी करते हुए कहते हैं...
हिंदी, उर्दू और संस्कृत ये तीन विभाग विश्वविद्यालय में ऐसे थे, जिनके होने के कारणों के बारे में किसी को ठीक ठीक पता नहीं था। यहाँ पढ़ने वाले छात्र.......उज्जड़, पिछड़े, मिसफिट, समय की सूचनाओं से कटे, दयनीय लड़के थे और वैसे ही कैरिकेचर लगते उनके आध्यापक। कोई पान खाता हुआ लगातार थूकता रहता, कोई बेशर्मी से अपनी जांघ के जोड़े खुजलाता हुआ, कोई चुटिया धारी धोती छाप रघुपतिया किसी लड़की को चिंपैजी की तरह घूरता। कैंपस के लड़के मजाक में उस विभाग को कटपीस सेंटर कहते थे।

 #2. कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर न हो :हुसैन बंधु

पर  कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर न हो मैंने सबसे पहले जगजीत जी की आवाज़ में ही सुनी थी। पर जब हुसैन बंधुओं की जुगलबंदी में इसे सुना तो उसका एक अलग ही लुत्फ़ आया। डा. बशीर बद्र की ये ग़ज़ल वाकई कमाल की ग़जल है। क्या मतला लिखा है उन्होंने

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, कि मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो

सहर : सुबह

कितना प्यारा ख़्याल है ना  किसी को चुपके से  हमेशा हमेशा के लिए अपनी आँखों में बसाने का। पर बद्र साहब का अगला शेर भी उतना ही असरदार है

वो बड़ा रहीमो-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो

सिफ़त :  विशेषता, गुण,    अता करे :  प्रदान करे

अब भगवन ने ना भूलने का ही वर दे दिया तब तो उनसे ज़ुदा होने का तो मौका ही नहीं आएगा।

#1.  मेहदी हसन के दो नायाब फिल्मी गीत : मुझे तुम नज़र से.. और इक सितम

 इस साल मेहदी हसन से जुड़े इस लेख को सबसे ज्यादा हिट्स मिले।
मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो
मुझे तुम कभी भी भुला ना सकोगे
ना जाने मुझे क्यूँ यक़ीं हो चला है
मेरे प्यार को तुम मिटा ना सकोगे
मुझे तुम नज़र से....

मेरी याद होगी, जिधर जाओगे तुम,
कभी नग़मा बन के, कभी बन के आँसू
तड़पता मुझे हर तरफ़ पाओगे तुम
शमा जो जलायी मेरी वफ़ा ने
बुझाना भी चाहो, बुझा ना सकोगे
मुझे तुम नज़र से....
आशा है उनके इस गीत की तरह ही आप इस चिट्ठे के प्रति आप सब का प्रेम यूँ ही बरक़रार रहेगा।

सोमवार, मार्च 26, 2012

'एक शाम मेरे नाम' ने पूरे किए 6 साल : आज की शाम आपके नाम !

आज मेरे ब्लॉग एक शाम मेरे नाम का छठा जन्मदिन है। गुजरे छः सालों में अपने चिट्ठे के माध्यम से मैंने वैसे लोगों का सानिध्य व प्रेम पाया है जो बगैर ब्लागिंग किए बिना मुश्किल था। सच कहूँ तो आज भी ये सिलसिला ज़ारी है। 

ये आपका प्रेम ही है कि विगत छः सालों में इस ब्लॉग के पृष्ठ पलटने की संख्या (Page loads) साढ़े चार लाख और इसे ई मेल से पढ़ने वालों की संख्या 900 के करीब पहुँच गई है वो भी तब जबकि मेरे लेखन की आवृति पिछले सालों से कम हुई है।


मैं इसके लिए अपने मित्रों और इस चिट्ठे को अलग अलग ज़रिए ( e-mail, Networked Blogs, Facebook Page, Google Friend Connect) से अनुसरण करने वाले तमाम जाने अनजाने चेहरों को हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूँ और आशा करता हूँ कि उनका साथ भविष्य में भी बना रहेगा।

अब वर्षगाँठ मनानी है तो कुछ अलग होना चाहिए ना हमेशा के ढर्रे से तो आइए देखें कि गुजरे साल इस चिट्ठे पर संगीत और साहित्य का ये सफ़र कैसा रहा आपकी नज़रों में..

नए पुराने गीतों की बात करते हुए जब मैं आपसे उस गीत से जुड़ी यादें पढ़ता हूँ तो बेहद आनंद आता है। चर्चा हो रही थी हिंदी गीतों में आपसी नोंक झोंक की। गीत था ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाइएगा। साथी चिट्ठाकार कंचन सिंह चौहान का कहना था
"ये गीत कॉलेज में खूब गाया गया है। गीत एक लड़की और ऊँहु बीच में कोई भी या सब के सब....!! वैसे प्रेमिका की उलाहना और प्रेमी के कूल रिएक्शन पर इसी फिल्म का एक गीत "तुमको होती मोहब्बत जो हमसे, तुम ये दीवानापन छोड़ देते" की वार्ता व्यक्तिगत रूप से मुझे और अधिक पसंद है।"
वहीं गुलज़ार के लिखे नग्मे पूछे जो कोई मेरी निशानी रंग हया लिखना पर फेसबुक मित्र शैली शर्मा का कहना था
"वादी के मौसम भी एक दिन तो बदलेंगे" ये गीत कई बार सुना था पर इस पक्ति पर आज पहली बार आपका लेख पढ़कर गौर किया....... और याद आ गया कि आज भी हर हिन्दुस्तानी के दिल में कही न कही ये सपना है कि कश्मीर फिर से धरती का स्वर्ग बन जाए...."
पिछले साल जगजीत सिंह की गायी ग़ज़लों के आरंभिक दौर पर विस्तार से चर्चा की थी। हिंदी ब्लॉग जगत के मेरे पसंदीदा शायरों में से एक दानिश भाई का कहना था.. 
"पुरानी यादों का फिर से ताज़ा हो जाना....मानो लफ्ज़ लफ्ज़ में धडकनों का महसूस होने लगना, बड़ा एहसान फरमाया आपने जनाब !! "
वहीं हिमांशु ने कहा."बाद मुद्दत यहाँ आना, और अपने प्रिय गायक जगजीत को सुनना, उनके बारे में पढ़ना अद्भुत अनुभव है ! आपकी लिखावट की कारीगरी देखते बनती है, जब आप गम्भीर गायकों/गायकी को अपनी रोचक लेखनी के सुन्दर संतुलन से सहज बना कर प्रस्तुत कर रहे होते हैं .."
जगजीत जी की पुरानी ग़ज़लों पर अपनी लेखमाला मैंने पूरी भी नहीं की थी कि वे हमारा साथ छोड़ कर चले गए। मेरी कोशिश रहेगी अपनी यादों से जुड़े उनके बाकी एलबमों को भी आपके सामने इस साल प्रस्तुत करूँ।
शम्मी कपूर ने भी पिछले साल हमारा साथ छोड़ा दिया। श्रद्धंजलि स्वरूप मैंने मोहम्मद रफ़ी के साथ उनके फिल्मी सफ़र के चंद रोचक लमहे आपके साथ बाँटे। साथी चिट्ठाकार रंजना जी ने लिखा
"काफी समय तक शम्मी जी के लटके झटके से मुझे भी खासी अरुचि रही...पर बाद में जब उनके व्यक्तित्व के विषय में जाना कि वे कितने नेकदिल इंसान हैं, तो उन्हें गंभीरता से लेने लगी..बड़ी तफ़सील में जानकारी दी आपने युगल जोड़ी की...बड़ा ही अच्छा लगा...सच है, जैसे मुकेश जी ने राज कपूर जी की शोहरत चमकाई ,वैसे ही मुहम्मद रफ़ी जी ने शम्मी जी की. गंभीर और शर्मीले स्वभाव के रफ़ी साहब ने शम्मी जी का चुहलपन कैसे ओढा होगा,सचमुच काबिले तारीफ़ है..."
हिंदी ग़ज़ल के लोकप्रिय स्तंभ अदम गोंडवी लंबी बीमारी के बाद चल बसे। उनकी कविता मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको की प्रस्तुति पर साथी चिट्ठाकार डा. सोनरूपा विशाल का कहना था..
"सामाजिक सरोकारों के कवि ,आम जन की आवाज ,विडंवनाओं के धुर विरोधी अदम जी जैसे कवि विरले ही होते हैं जो सम्मान के लिए नहीं समाज के लिए लिखते हैं ! दुखद अवसान !"
फिल्म और साहित्यिक विभूतियों के आलावा कुछ साथी चिट्ठाकार भी हमारा साथ छोड़ गए। डा. अमर कुमार को उनकी ईमानदार टिप्पणियों के लिए पूरे ब्लॉग जगत में जाना जाता था। इब्नें इंशा से जुड़ी एक नज़्म पर दिए उनके विचार इस चिट्ठे पर उनके अंतिम हस्ताक्षर थे..
आज दिल में वीरानी, अब्र बन के घिर आयी
आज दिल को क्या कहिये, बावफ़ा न हरज़ाई

"अपने ललित लेख और व्यंग्य संकलन "उर्दू की आख़िरी किताब" में इंशा ने इसे स्वीकार भी किया है.. पर वज़ह को लेकर नामालूम की अदा ओढ़ ली ।यह लाइनें बहुत उदास कर जाती हैं। इस दुर्लभ रचना से आज की प्रस्तुति विशिष्ट बन गयी है ।"
पिछले साल भी पुस्तकों पर चर्चा चली। सागर ने मुन्नवर राणा की किताब घर अकेला हो गया के बारे में कहा
"मुनव्वर राणा की एक सी डी मेरे पास है पठानकोट में मुशायरे की, इतवार को सुनता हूँ.. घर को वो अनोखे अंदाज़ से याद करते हैं और माँ तो फेमस है ही. यहाँ लिखे सारे शेर उसमें उनके मुंह से सुनना राहत देता है, कई बार वो शेर पढ़ते पढ़ते रोने लगते हैं और उनका हाथ क्षितिज की ओर उठता है."
वहीं विभा को वरुण के बेटे को आंचलिक ऊपन्यास करार देने पर ऐतराज था..
"सुंदर समीक्षा. बाबा ने अपने मिथिला इलाके का जीवन चित्र खींचा है तो जाहिर है कि वहां की भाषा की गंध आएगी ही. मगर इसका यह मतलब नहीं कि उनके लेखन को आंचलिक लेखन के खाते में डाल दिया जाए. एक समय था, जब तथाकथित मुख्य धारा के हिंदी लेखकों ने अपनी राजनीति और अपने वर्चस्व के लिए फणीश्वर नाथ रेणु जैसे साहित्यकर को आंचलिकता के खाते में डाल दिया था. जो जिस प्रदेश की पृष्ठभूमि पर लिखेगा, उसकी लेखनी में वह भाषा बोली, संस्कृति आयेगी ही, यही सच्चे लेखक की ईमानदारी भी है. बाबा या रेणु आंचलिक नहीं पूरे देश के कथाकार हैं."
हमेशा की तरह इस चिट्ठे पर नए साल की शुरुआत हुई वार्षिक संगीतमाला के साथ और इस बार मैंने सीधे गीतकारों से बातें कर उन गीतों की तह तक पहुँचने का प्रयास किया। राजशेखर, सीमा सैनी और पंक्षी जालौनवी से बात कर लगा ही नहीं कि मैं किसी से पहली बार बात कर रहा हूँ। पंक्षी जालोनवी से जुड़ी पोस्ट पर बेहद पुख्ता टिप्पणी रही अपूर्व श्रीवास्तव की जब उन्होंने कहा..
"शुक्रिया...जालौनवी साहब के बारे मे जानना अच्छा लगा..अपनी म्यूजिक इंडस्ट्री की बिडम्बना मुझे लगती है कि गीतकार को कोई पहचान कोई हाइलाइट जल्द नही मिलती..जब तक कि वो खुद गुलजार या प्रसून जैसा सेलिब्रिटी ना हो जाये..सो कुछ अच्छे बोल भी सिंगर को कम्पोजर, ऐक्टर को ज्यादा फ़ायदा पहुचाते हैं बनिस्बत कि उन्हे लिखने वाले के.गीतकारों के लिये इंडियन-आइडल जैसे स्टेजेज भी नही होते ग्लैमर का इस्तकबाल करने के लिये...नये और अच्छे गीतकारों के बारे मे लोगों को और भी ज्यादा पता चलना चाहिये.."
विशाल के संगीतबद्ध गीत बेकराँ से जुड़ी पोस्ट पर डा. अनुराग आर्य का कहना था
"विशाल इन लफ्जों की रूह को समझते है , इनकी उदासियो को भी , ओर गुलज़ार को भी ....दरअसल शायर से मुतासिर हुए बगैर अच्छा कम्पोज़ करना मुश्किल काम है .सच कहूँ तो आर डी के बाद अगर किसी ने गुलज़ार को "पूरा "समझा है तो वो विशाल ही है ....बेकराँ मुझे बेहद अज़ीज़ है....विशाल की आवाज को बहुत सूट करता है , विशाल जानते है रहमान की तरह उन्हें कहाँ ओर कब गाना है।"
गीतकार स्वानंद किरकिरे जो मेरे फेसबुक मित्र भी हैं  ने ये साली ज़िंदगी के अपने लिखे गीत को संगीतमाला में पाकर टिप्पणी की उफ्फ ये गाना जिंदा है ?

इस चिट्ठे की पुरानी पाठिका मृदुला तांबे ने कुन फ़ाया कुन की इन पंक्तियों जब कहीं पे कुछ भी नहीं था वही था को इस श्लोक से जोड़कर देखा
"नासदासीन नो सदासीत तदानीं नासीद रजो नो वयोमापरो यत|
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद गहनं गभीरम ||

सृष्टि से पहले सत नहीं था। असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था।  छिपा था क्या, कहाँ किसने ढका था उस पल तो अगम अतल जल भी कहां था |"
संगीतमाला के सरताज गीत रंगरेज़ पर अंकित सफ़र का कहना था 
राज शेखर जी को बन्दे का सलाम! क्या खूब लिखा है, हर शब्द अपना एक अलग आकाश ढूंढ रहा है, सब मिलके अनंत हो जा रहे हैं.
वहीं इस चिट्ठे के शुरुवाती दौर से साथ रही सुपर्णा का रंगरेज़ और वार्षिक संगीतमाला के बारे में कहना था
"I was waiting for the 'Sartaj Geet' :) am thrilled its this one! When this album/song released i listened to it and talked about it so much that i almost can't say anything about it anymore except how much i love it. sheer brilliance! the lyrics and singing are super ..loved the countdown , lots of stuff i hadn't heard before. congratulations on the steady run and trust it will last a long time to come despite how busy you are :). I get breathless even thinking of how you must manage it ."
पूरे साल में विभिन्न प्रविष्टियों में व्यक्त आपके उद्गारों में से कुछ को ही यहाँ समेट पाया हूँ। एक शाम मेरे नाम के संगीतमय सफ़र में आप यूँ ही मेरे साथ बने रहेंगे ऐसी आशा करता हूँ।

रविवार, मार्च 18, 2012

'एक शाम मेरे नाम' पर अब तक पेश ग़ज़लों और नज़्मों की लिंकित सूची

उर्दू शायरी से मेरा लगाव कॉलेज के जमाने से रहा है और उसकी एक बड़ी वज़ह वो फ़नकार थे जिनकी ग़ज़लें सुन सुन के हम उर्दू शायरी की बारीकियों को समझ सके। कॉलेज के बाद ये सिलसिला तब तक छूटा रहा जब तलक इंटरनेट के उर्दू शायरी मंचों से रूबरू नहीं हुए थे। मंचों पर एक दूसरे की पसंद को पढ़ना और अशआरों के बारे में चर्चा करना बहुत सुखद और ज्ञानवर्धक अनुभव रहा। फिर जब से ये चिट्ठा अस्तित्व में आया तो इसके माध्यम से अपनी पसंद की गज़लों और नज़्मों और शायरों के बारे में लिख कर आप तक पहुँचाता रहा हूँ।

अगले हफ्ते मेरा हिंदी चिट्ठा 'एक शाम मेरे नाम' अंतरजाल पर अपना छठा साल पूरा कर रहा है तो मुझे लगा कि इस चिट्ठे पर पेश की गई ग़ज़लों और नज्मो की फेरहिस्त को वर्णमाला के क्रम के अनुसार सूचीबद्ध किया जाए ताकि पाठकों को अपनी पसंद को ढूंढने में और मुझे भी ये याद रखने में कि कोई चीज दोबारा तो नहीं जा रही, सहूलियत हो । तक आप इस ब्लॉग के ऊपर बने ग़ज़लें और नज़्में के टैब पर क्लिक कर सीधे पहुँच सकते हैं। इन गज़लों और नज्मों की लिंक पर क्लिक करने पर आप उस पोस्ट तक पहुँचेगे जहाँ इनके बारे में लिखा गया है। जिस पोस्ट के साथ आडियो है वहाँ शायर के नाम के साथ साथ गायक गायिका का नाम भी लिखा गया है। साथ ही इस पृष्ठ पर उन सभी लेखों की कड़ियाँ भी होंगीं जो शेर -ओ- शायरी से जुड़े हैं। आशा करता हूँ कि मेरा ये प्रयास आपके लिए उपयोगी होगा।

कलम के सिपाही
  1. अदम गोंडवी (1947-2011) : एक जनकवि की दुखद विदाई !
  2. अहमद फ़राज़ जिसकी कलम थी अमानत आम लोगों की  
  3. अहमद फ़राज़ :कैसे शुरु हुआ इस महान शायर की शायरी का सफ़र ?
  4. उबैद्दुलाह अलीम
  5. क़तील शिफ़ाई भाग:१, भाग: २, भाग: ३, भाग : 4, भाग : 5
  6. कुँवर मोहिंदर सिंह बेदी 'सहर'
  7. मज़ाज लखनवी भाग:१, भाग: २
  8. फैज़ अहमद फ़ैज भाग:१, भाग: २, भाग: ३
  9. परवीन शाकिर भाग:१, भाग: २
  10. मुन्नवर राना
  11. सुदर्शन फ़ाकिर
शायराना गुफ़्तगू
  1. आँखों की कहानी, शायरों की जुबानी भाग :1, भाग : 2
  2. चाँद और चाँदनी भाग :1, भाग: 2, भाग : 3 ,
 ग़ज़ल गायिकी के बादशाह स्व. जगजीत सिंह
  1.  क्या उनके जाने के बाद ग़जलों का दौर वापस आएगा ?
  2.  क्या रहा जगजीत की गाई ग़ज़लों में 'ज़िंदगी' का फलसफ़ा ?
  3.  कुछ यादें उनके एलबम Love is Blind से..
  4. जगजीत सिंह : वो याद आए जनाब बरसों में...
  5. Visions (विज़न्स) भाग I: एक कमी थी ताज महल में, हमने तेरी तस्वीर लगा दी!
  6. Visions (विज़न्स) भाग II :कौन आया रास्ते आईनेखाने हो गए?
  7. Forget Me Not (फॉरगेट मी नॉट) : जगजीत और जनाब कुँवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर' की शायरी
  8. जगजीत का आरंभिक दौर, The Unforgettables (दि अनफॉरगेटेबल्स) और अमीर मीनाई की वो यादगार ग़ज़ल ...
  9. जगजीत सिंह की दस यादगार नज़्में भाग 1
  10. जगजीत सिंह की दस यादगार नज़्में भाग 2
  11. अस्सी के दशक के आरंभिक एलबम्स..बातें Ecstasies , A Sound Affair, A Milestone और The Latest की  
  कुछ ग़ज़लें कुछ नज़्में
    1. अक़्स-ए-खुशबू हूँ बिखरने से ना रोके कोई ..... परवीन शाकिर
    2. अज़ब पागल सी लड़की है... आतिफ सईद
    3. अज़ब पागल सी लड़की थी... आतिफ सईद
    4. अजीब तर्ज-ए-मुलाकात अब के बार रही....... परवीन शाकिर
    5. अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ...क़तील शिफ़ाई, गायक जगजीत सिंह
    6. अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए ..गोपाल दास नीरज
    7. आए कुछ अब्र कुछ शराब आए फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़', गायिका : रूना लैला
    8. आए हैं समझाने लोग...कुँवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर', गायक जगजीत सिंह
    9. आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता.. मीना कुमारी
    10. आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है...सुदर्शन फ़ाकिर
    11. आदमी बुलबुला है पानी का...गुलज़ार
    12. आप आए जनाब बरसों में..रुस्तम सहगल 'वफ़ा',गायक जगजीत सिंह
    13. आपकी याद आती रही रात भर...फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
    14. आती जाती हर मोहब्बत है चलो यूँ ही सही..निदा फ़ाज़ली,  गायक :चंदन दास
    15. अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिये हैं...जां निसार अख्तर
    16. इतना मालूम है, ख्वाबों का भरम टूट गया...परवीन शाकिर
    17. इतनी मुद्दत बाद मिले हो....मोहसीन नक़वी, गायक : दिलराज कौर/गुलाम अली
    18. ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ? ... मज़ाज लखनवी गायक : जगजीत सिंह
    19. ऐ नौजवान बज़ा कि जवानी का दौर है कुँवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर'
    20. ऐ हुस्न ए लालाफ़ाम ज़रा आँख तो मिला गायक : गुलाम अली
    21. ऐसी न शब बरात, न बकरीद की खुशी.....नज़ीर अकबराबादी 
    22. कोई ये कैसे बताए, कि वो तनहा क्यों है..कैफ़ी आज़मी, गायक जगजीत सिंह
    23. कौन आया रास्ते आईनेखाने हो गए?.. बशीर बद्र, गायक जगजीत सिंह
    24. क्या बतायें कि जां गई कैसे ? ...गुलज़ार गायक जगजीत सिंह
    25. कहाँ थे रात को हमसे ज़रा निगाह मिले... दाग़ देहलवी , गायिका पीनाज़ मसानी
    26. किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी...सुदर्शन फ़ाकिर गायिका : चित्रा सिंह
    27. कुछ तो हवा भी सर्द थी कुछ था तेरा ख़याल भी.... परवीन शाकिर
    28. खेलने के वास्ते अब दिल किसी का चाहिए ...मुराद लखनवी, गायक :चंदन दास
    29. ख़ुमार-ए-गम है महकती फिज़ा में जीते हैं...गुलज़ार, गायक : जगजीत सिंह
    30. 'गर मुझे इसका यकीं हो , मेरे हमदम मेरे दोस्त' ...फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' गायिका: टीना सानी
    31. गरचे सौ बार ग़म- ए -हिज्र से जां गुज़री है..सैफुद्दीन सैफ़ गायिका : रूना लैला
    32. गुज़रे दिनों की याद बरसती घटा लगे.. .क़तील शिफ़ाई की आवाज़ में
    33. चन्द रोज और मेरी जान ! फकत चन्द ही रोज !...फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
    34. चराग़-ओ-आफ़ताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी...सुदर्शन फ़ाकिर, गायक : जगजीत सिंह
    35. चल मेरे साथ ही चल ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल....हसरत जयपुरी, गायक अहमद हुसैन और मोहम्मद हुसैन 
    36. चाँद के तमन्नाई..इब्ने इंशा 
    37. जब तेरे शहर से गुज़रता हूँ... सैफुद्दिन सैफ़
    38. जब मेरी हक़ीकत जा जा कर उनको जो सुनाई लोगों ने....इब्राहिम अश्क़, गायक : चंदन दास
    39. जरा सी बात पे हर रस्म तोड़ आया था.. जां निसार अख्तर, गायक : मुकेश
    40. झूम के जब रिंदों ने पिला दी,कैफ़ भोपाली  गायक : जगजीत सिंह
    41. टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली ..मीना कुमारी
    42. तमाम फिक्र जमाने की टाल देता है....इंदिरा वर्मा, गायिका : शोमा बनर्जी
    43. तेरे उतारे हुए दिन टँगे हैं लॉन में अब तक ..गुलज़ार स्वर नाना पाटेकर
    44. तेरे खुशबू मे बसे ख़त मैं जलाता कैसे...राजेंद्रनाथ रहबर, गायक : जगजीत सिंह
    45. तेरी आँखों से ही खुलते हें सवेरों के उफक...गुलज़ार
    46. तेरी ख़ुशबू का पता करती है,मुझ पे एहसान हवा करती है.... परवीन शाकिर
    47. तुम्हारे शहर का मौसम बडा सुहाना लगे...क़ैसर-उल-जाफ़री, गायक : अनूप जलोटा
    48. तुम ना मानो मगर हक़ीकत है..क़ाबिल अजमेरी, गायक : पंकज उधास
    49. दर्द रुसवा ना था ज़माने में.... इब्ने इंशा
    50. दश्ते- तनहाई में ऐ जाने- जहाँ लर्जां हैं...फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़', गायिका: इकबाल बानो
    51. देख लो ख्व़ाब मगर ख्व़ाब का चर्चा न करो..कफ़ील आज़र
    52. दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया.......मीर तकी 'मीर' , गायिका: लता मंगेशकर
    53. दिल की हालत को कोई क्या जाने, या तो हम जाने या ख़ुदा जाने... नूर देवासी, गायिका : रूना लैला
    54. दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों अहमद फ़राज़
    55. दुख फ़साना नहीं के तुझसे कहें..अहमद फ़राज़
    56. दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है...दुष्यन्त कुमार
    57. प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं... .क़तील शिफ़ाई
    58. परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ...क़तील शिफ़ाई, गायक - जगजीत सिंह
    59. पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाजी देखी मैंने...नज़्म गुलज़ार की आवाज़ में
    60. फूलों की तरह लब खोल कभी..गुलज़ार गायक जगजीत सिंह 
    61. बना गुलाब तो काँटे चुभा गया इक शख़्स.... उबैद्दुलाह अलीम,  गायिका :रूना लैला
    62. बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा... अहमद फ़राज़
    63. बस एक लमहे का झगड़ा था....नज़्म गुलज़ार की आवाज़ में
    64. बरसों के बाद देखा इक शख़्स दिलरुबा सा..अहमद फ़राज़
    65. बहार आई तो जैसे इक बार.......फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' गायिका: टीना सानी
    66. बहुत दिन हो, गए सच्ची, तेरी आवाज़ की बौछार में भीगा नहीं हूँ मैं नज़्म गुलज़ार की आवाज़ में
    67. बहुत दिनों की बात है शबाब पर बहार थी..., सलाम 'मछलीशेहरी', गायक : जगजीत सिंह
    68. बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी.. कफ़ील आज़र गायक : जगजीत सिंह
    69. बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना...परवीन शाकिर गायिका : ताहिरा सैयद
    70. बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गये .... परवीन शाकिर
    71. बोल कि लब आजाद हैं तेरे, बोल, जबां अब तक तेरी है...फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' गायिका: टीना सानी
    72. भले दिनों की बात है, भली सी एक शक्ल थी.....अहमद फ़राज
    73. मैं भूल जाऊँ तुम्हें अब यही मुनासिब है..जावेद अख्तर... गायक जगजीत सिंह
    74. मुकद्दर खुश्क पत्तों का, है शाखों से जुदा रहना...... मखमूर सईदी
    75. मुझे अपने ज़ब्त पे नाज था.....इकबाल अज़ीम, गायिका नैयरा नूर
    76. मुझसे पहली सी मोहब्बत मेरी महबूब ना माँग फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' गायिका: नूरजहाँ
    77. मेरे महबूब, मेरे दोस्त नहीं ये भी नहीं..शौकत
    78. मैं हूँ तेरा खयाल है और चाँद रात है... वाशी शाह
    79. मेरे महबूब, मेरे दोस्त नहीं ये भी नहीं..शौकत जयपुरी गायक मुकेश
    80. मोहब्बत अब रुह -ए-ख़मदार भी है..कुँवर मोहिंदर सिंह बेदी 'सहर'
    81. ये आलम शौक़ का देखा न जाये...अहमद फ़राज गायक गुलाम अली
    82. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते...फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
    83. ये ज़िन्दगी..तुम्हारी आवाज़ में ग़ले से निकल रही है..निदा फ़ाज़ली, गायक जगजीत सिंह
    84. ये दाग दाग उजाला, ये शबगज़ीदा सह..फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़', नसीरुद्दीन शाह की आवाज़ में
    85. ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा.....दुष्यन्त कुमार
    86. ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे...सुदर्शन फ़ाकिर
    87. यूँ उनकी बज्म-ए-खामोशियों ने काम किया....सईद राही, गायिका:पीनाज़ मसानी
    88. यूँ सजा चाँद कि छलका तेरे अंदाज का रंग... गायिका आशा भोंसले
    89. रात जो तूने दीप बुझाए.... सलीम गिलानी, गायिका आशा भोंसले
    90. रात भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने.. गुलज़ार की नज़्म 'अलाव'
    91. रात यूँ दिल में खोई हुई याद आई....फ़ैज अहमद फ़ैज गायिका : नैयरा नूर
    92. रुक गया आँख से बहता हुआ दरिया कैसे ..कृष्ण बिहारी नूर, गायक : अभिजीत सावंत  
    93. रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख..दुष्यन्त कुमार
    94. रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम... हसरत मोहानी, गायक : जगजीत सिंह और फरीदा खानम
    95. वो इश्क़ जो हमसे रूठ गया, अब उसका हाल बताएँ क्या...अथर नफ़ीस   गायिका: फरीदा खानम
    96. वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी..सुदर्शन फ़ाक़िर, गायक : जगजीत सिंह
    97. वो लोग बहुत खुशकिस्मत थे,जो इश्क को काम समझते थे ...फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
    98. शहर के दुकानदारों ...तुम ना जान पाओगे...जावेद अख्तर, गायक : नुसरत फतेह अली खाँ
    99. शायद मैं ज़िन्दगी की सहर ले के आ गया...सुदर्शन फ़ाकिर, गायक जगजीत सिंह
    100. शीशों का मसीहा कोई नहीं,क्या आस लगाए बैठे हो .....फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
    101. शहतूत की शाख़ पे बैठी मीना बुनती है रेशम के धागे...गुलज़ार
    102. सच्ची बात कही थी मैंन..सबीर दत्त, गायक जगजीत सिंह
    103. सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं...क़तील शिफ़ाई, गायक जगजीत सिंह
    104. सब्ज़ मद्धम रोशनी में सुर्ख़ आँचल की धनक .... परवीन शाकिर
    105. साथ चलते आ रहे हैं पास आ सकते नहीं..बशीर बद्र
    106. सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यूँ है?..शहरयार, गायक सुरेश वाडकर
    107. सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ .... परवीन शाकिर
    108. सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं !....अहमद फ़राज़
    109. सुनो अच्छा नहीं लगता कि कोई दूसरा देखे
    110. सुनो जानाँ चले आओ तुम्हें मौसम बुलाते हैं.... आतिफ सईद
    111. समझते थे मगर फिर भी ना रखी दूरियाँ हमने.. वाली असी, गायक जगजीत सिंह
    112. सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता..अमीर मीनाई, गायक जगजीत सिंह
    113. हम कि ठहरे अजनबी इतनी मदारातों के बाद....फ़ैज अहमद फ़ैज गायिका : नैयरा नूर
    114. हम देखेंगे, लाजिम है कि हम भी देखेंगे...फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़'
    115. हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चाँद...राही मासूम रज़ा गायक: जगजीत सिंह
    116. हमने हसरतों के दाग आँसुओं से धो लिए गायक: गुलाम अली
    117. हमसे वो दूर दूर रहते हैं दिल में लेकिन जरूर रहते हैं गायिका: मुन्नी बेगम
    118. हमारी साँसों में आज तक वो हिना की ख़ुशबू महक रही है गायिका नूरजहाँ/महदी हसन
    119. हाथ दिया उसने मेरे हाथ में .क़तील शिफ़ाई की आवाज़ में 
     पुनःश्च : कुछ पुरानी पोस्टों में लॉइफलॉगर के काम ना करने की वजह से आडियो लिंक नहीं दिख रहा। इसे बदलने का प्रयास कर रहा हूँ।

    शनिवार, मार्च 26, 2011

    'एक शाम मेरे नाम' ने पूरे किए अपने पाँच साल..!

    आज मेरे इस ब्लॉग का पाँचवा जन्मदिन है। विगत पाँच सालों से ब्लॉगिंग को अपनी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बनाया है। इस बात का संतोष है कि अब तक जो कुछ लिखा या प्रस्तुत किया है उसमें मुझे खुद भी आनंद आता रहे। अगर पाँच सालों में बिना किसी विराम के ये निरंतरता इस चिट्ठे पर बनी रही है तो इसके पीछे इसी जज़्बे का हाथ है।


    इस मौके पर इस चिट्ठे के तमाम पाठकों, ई मेल सब्सक्राइबरों, फालोवर्स और नेटवर्क ब्लॉग से जुड़े जाने अनजाने लोगों का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने इस चिट्ठे पर अपनी आस्था बनाई हुई है। आपकी मदद से ही अब तक इन 480 पोस्ट और तीन लाख पेज लोड्स का  ये सफ़र पूरा हुआ है।



    और चिट्ठे के हिंदी और रोमन हिंदी संस्करणों की सब्सक्राइबर संख्या बारह सौ पार कर गई है।

    इन पाँच सालों में हिंदी ब्लॉग जगत के उतार चढ़ावों का भी साक्षी रहा हूँ। हिंदी चिट्ठों के संकलको की सहायता से छोटे परिवार को आगे बढ़ते देखा है। संकलक लोकप्रिय हुए। फिर आलोचना के शिकार बने। नए संकलकों ने उनकी जगह ली और एक दिन वे भी उसी हस्र का शिकार हुए जैसे कि उनके पूर्ववर्ती। एक चर्चा मंच था फिर कई हुए। होने ही थे क्यूँकि ब्लॉगिंग कोई ऐसी विधा नहीं है जो कुछ क्षत्रपों द्वारा नियंत्रित और संचालित होती रहे। दुर्भाग्यवश हिंदी में चिट्ठा लिखने वालों में ये प्रवृति इसके शुरुआती दिनों से ही हावी रही। आज भी हिंदी में चिट्ठे लिखने वालों का एक बड़ा वर्ग अपनी लेखनी का इस्तेमाल इसलिए करता है कि उसकी रियासत कुछ और फैले। जब कई रियासतें फैलेंगी तो उनमें पारस्परिक संघर्ष तो होगा ही।

    ख़ैर खुशी की बात ये है कि इस उठापटक के बावजूद भी सैकड़ों ऐसे चिट्ठे हैं जो चुपचाप ही सही पर रोचक और स्तरीय सामग्री नेट के हिंदी कोष में जमा करते जा रहे हैं। लोग इस बात को भी समझ चुके हैं कि जैसे जैसे ब्लॉगों की संख्या बढ़ती जाएगी संकलक अपनी उपयोगिता खोते जाएँगे। वैसे भी सोशल नेटवर्किंग के युग में संकलकों से कही ज्यादा आसानी से आप फेसबुक और ट्विटर के ज़रिए अपने पाठकों तक पहुँच सकते हैं। यही वज़ह है कि हिंदी ब्लॉगिंग से जुड़े तमाम लोग इन माध्यमों को तेजी से अपना रहे हैं।

    चलते चलते एक बार फिर पिछले साल कही अपनी बात को दोहराना चाहूँगा कि

    अपने अनुभवों से इतना कह सकता हूँ कि जैसे जैसे आप अपने विषय वस्तु यानि कान्टेंट में विस्तार करते जाते हैं, कुल पाठकों की संख्या में तो वृद्धि होती है पर उसमें एग्रगेटर से आनेवाले पाठकों का हिस्सा कम होता जाता है। इसलिए सनसनी या बिना मतलब के पचड़ों में पड़ने के बजाए अपने मन की बात कहें और पूरी मेहनत के साथ कहें।

    उम्मीद करता हूँ कि संगीत और साहित्य का ये सफ़र आपके स्नेह से इस साल भी खुशनुमा रहेगा...

    गुरुवार, जुलाई 15, 2010

    'एक शाम मेरे नाम' पर प्रस्तुत कविताओं से जुड़ी प्रविष्टियों की लिंकित सूची

    इस चिट्ठे पर प्रस्तुत लेखों को आप सुगमता से खोज सकें इसके लिए एक सिलसिला जारी है - विषय आधारित प्रविष्टियों की एक लिंकित सूची बनाने का। आज इस कड़ी में बारी है इस चिट्ठे पर प्रस्तुत कविताओं से जुड़ी प्रविष्टियों की।

    मेरी पसंद की कविताओं को समर्पित इस पृष्ठ की शुरुआत के लिए मुझे गोपाल दास 'नीरज' की इन पंक्तियों से बेहतर कोई पंक्ति नहीं लगती..

    कविता एक चिड़िया है
    जो अपना घोंसला तो
    पेड़ की ऊँची से ऊँची शाख पर बनाती है
    लेकिन जो अपना भोजन
    धरती के गन्दे से गन्दे कोने में खोजती है !

    इसलिए,
    हे संसार के महापुरुषों !
    कविता मत करो
    क्योंकि सृजन के लिए
    उसके साथ
    तुम्हें भी जमीन की
    गंदगियों में उतरना पड़ेगा।

    काव्य चर्चा



    मेरी प्रिय कविताएँ

    1. आँख का आँसू.....अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिओध (Aankh ka Aansoo by Ayodhya Singh Upadhyay 'Hariodh')'
    2. अमौसा का मेला .. कैलाश गौतम (Amousa Ka Mela... by Kailash Goutam)
    3. आराम करो...गोपाल प्रसाद व्यास (Aaraam Karo... by Gopal Prasad Vyas)
    4. इक जरा छींक ही दो तुम...गुलज़ार (Ek Jara Cheenk Hi Do Tum... by Gulzar)
    5. इंतजार, इंतजार, बोलो कब तक करूँ मैं इंतजार ?...प्रसून जोशी (Intezar..Intezar... by Prasoon Joshi)
    6. इस बार नहीं ..प्रसून जोशी (Is Baar Nahin by Prasoon Joshi)
    7. एक दीपक किरण-कण हूँ...डा. राम कुमार वर्मा (Ek Deepak Kiran Kan Hoon by Dr. Ram Kumar Verma)
    8. क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?...हरिवंशराय बच्चन (Kya Karoon Samvedna Le Kar Tumhari by 'Bachchan'
    9. कौन सा मौसम लगा है ..दर्द भी लगता सगा है....अज्ञात (Koun sa Mousam Laga Hai... by Unknown)***
    10. कविराजा कविता के मत अब कान मरोड़ो कवि भरत व्यास उनके ख़ुद के स्वर में (Kavita ke Ab Mat Kaan Marodo... by Bharat Vyas)
    11. खोलो प्रियतम खोलो द्वार... डा. राम कुमार वर्मा (Kholo Priytam Kholo Dwar... by Dr. Ram Kumar Verma)
    12. चार विचार...गोपालदास 'नीरज ' (Char Vichaar by Gopaldas 'Neeraj')
    13. छिप छिप अश्रु बहाने वाले...गोपालदास 'नीरज' (Chip Chip Ashru Bahane Wale.. by Gopaldas 'Neeraj')
    14. जले तो जलाओ गोरी..इब्ने इंशा (Jale To Jalao Gori by Ibne Insha)
    15. जो तुम आ जाते एक बार ! ...महादेवी वर्मा (Jo Tum Aaa Jate Ek Baar... by Mahadevi Verma )
    16. तुमुल कोलाहल कलह में मैं हृदय की बात रे मन.....जयशंकर प्रसाद, स्वर आशा भोंसले (Tumul Kolahal.. ....by Jayshankar Prasad)
    17. दीवट(दीप पात्र) पर दीप....बालकवि बैरागी (Deevat par Deep.... by Balkavi Bairagi)
    18. नर हो ना निराश करो मन को... मैथलीशरण गुप्त (Nar Ho Na Nirash Karo Man Ko by Maithilisharan Gupt
    19. फिर क्या होगा उसके बाद ? ....बालकृष्ण राव (Phir Kya Hoga Uske Baad... by Balkrishna Rao
    20. बीती विभावरी जाग री! ...जयशंकर प्रसाद (Beeti Vibhavri Jaag Ree.... by Jayshankar Prasad
    21. ब्रह्म से कुछ लिखा भाग्य में...रामधारी सिंह 'दिनकर'(Brahma Se Kuch Likha Bhagya Mein... by 'Dinkar')
    22. मधुशाला की चंद रुबाइयाँ ..हरिवंशराय बच्चन, स्वर - मन्ना डे भाग १ , भाग २ (Madhushala by 'Bachchan')
    23. मैं एक अघोषित पागल हूँ..रामदत्त जोशी (Main Ek Aghoshit Pagal Hoon by Ramdutt Joshi)
    24. मैं हूँ उनके साथ,खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़...हरिवंशराय बच्चन, स्वर - अमिताभ बच्चन (Main Hoon Unke Sath Khadi... by 'Bachchan')
    25. मोड़ पर देखा है वो बूढ़ा सा पेड़ कभी.. गुलज़ार (Humdum by Gulzar)
    26. ये गजरे तारों वाले?...डा. राम कुमार वर्मा (Ye Ghazre Taron Wale.... by Dr. Ram Kumar Verma)
    27. रेलयात्रा..प्रदीप चौबे (Railyatra by Pradeep Choubey)
    28. सिर फूटत हौ, गला कटत हौ, लहू बहत हौ, गान्‍ही जी...कैलाश गौतम (Ganhi Jee.... by Kailash Goutam)
    29. हिमालय मेरे नगपति ! मेरे विशाल !..... रामधारी सिंह दिनकर (Himalaya by 'Dinkar')

    कभी कभी जब कलम चलाता हूँ मैं


    1. कल्पना और यथार्थ
    2. शाम...

    बुधवार, अप्रैल 07, 2010

    'एक शाम मेरे नाम' ने पूरे किए अपने चार साल और दो लाख पेजलोड्स !

    लगभग दस दिन पहले यानि २६ मार्च को एक शाम मेरे नाम के हिंदी संस्करण ने अपने चार साल पूरे कर लिये। साथ ही पिछले हफ्ते ही इस चिट्ठे के दो लाख पेजलोड्स भी पूरे हो गए।



    अगर आप स्टैटकांउटर द्वारा दिए गए आंकड़ों पर ध्यान देंगे तो पाएँगे कि प्रथम दो सालों तक ब्लॉग पर हिट्स मिलने का सिलसिला बड़ी मंथर गति से हुआ था पर उत्तरोत्तर ये बढ़ता गया।


    पिछले साल औसतन महिनावार हिट्स (Average Monthly Hits) 6500 रहीं यानि पिछले साल प्रतिदिन औसतन दो सौ से ज्यादा हिट्स इस ब्लॉग को मिलती रहीं। इस आँकड़े को आप नीचे के चार्ट में देख सकते हैं।


    अब तक इस चिट्ठे पर चार सौ दस (410) पोस्ट लिखी गई हैं यानि प्रति पोस्ट 490 की औसत से पढ़ी गई हैं। पिछले साल ये आँकड़ा 350 पेजलोड्स प्रति पोस्ट था। इस ब्लॉग के हिंदी और रोमन हिंदी संस्करणों की सब्सक्राइबर संख्या में भी इज़ाफा हुआ है और ये संख्या पिछले साल के 450 से बढ़कर 825 तक जा पहुँची है।


    वहीं रोमन हिंदी ब्लॉग Ek Shaam Mere Naam पर हिट्स की संख्या लगभग पहले जैसी ही है।

    अपने अनुभवों से इतना कह सकता हूँ कि जैसे जैसे आप अपने विषय वस्तु यानि कान्टेंट में विस्तार करते जाते हैं, कुल पाठकों की संख्या में तो वृद्धि होती है पर उसमें एग्रगेटर से आनेवाले पाठकों का हिस्सा कम होता जाता है। इसलिए सनसनी या बिना मतलब के पचड़ों में पड़ने के बजाए अपने मन की बात कहें और पूरी मेहनत के साथ कहें। इस बात का भी अंदाजा लगाएँ कि पाठकों को हमारे लेखन का कौन सा अंदाज़ ज्यादा भाता है। इससे आपको अपने मजबूत पक्ष और कमियों का अंदाज़ा मिलेगा। सच पूछिए तो खुद एक परिपक्व ब्लॉग लेखक को इस बात की सबसे ज्यादा समझ होती है कि उसके द्वारा परोसी सामग्री कितनी बेहतर या बेकार है।

    पिछले एक साल में पाठकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए 'एक शाम मेरे नाम' के स्वरूप में मैंने काफी बदलाव किए थे। ऊपर मेनू बार की जगह को गज़ल, मनभावन गीत, वार्षिक संगीतमाला, कविता, पुस्तक चर्चा, ब्लागिंग और अपनी बात के अलग अलग खंडों में बाँटना उसी का एक हिस्सा था। ग़जलों और मनभावन गीत मेन टैब क्लिक करने से आप सीधे उन पृष्ठों पर पहुँचते हैं जहाँ इस ब्लॉग पर पेश गीतों और ग़ज़लों की लिंकित सूची दी हुई है। हाँ, लाइफलॉगर के बंद हो जाने से पुराने पृष्ठों में कई जगह आडिओ फाइल गायब हो गई हैं। पिछले कुछ दिनों में मैंने ऐसी कई पोस्टों को दुरुस्त किया है, पर इस कार्य को पूर्ण होने में अभी और समय लगेगा। वेसे पाठकों से गुजारिश है कि जब भी ऐसी कोई पोस्ट सामने आए, उसकी तरफ मेरा ध्यान दिलाएँ।

    हिंदी फिल्म संगीत से जुड़े अपने खास पसंदीदा कलाकार या शायर से जुड़े लेखों तक पहुँचने के लिए ग़जल और गीत के मुख्य मेनू बार में सब मेनू दिए गए हैं। मसलन अगर आप सिर्फ गुलज़ार से जुड़ी पोस्ट देखना चाहते हैं तो टैग क्लाउड में ढूँढने के बजाए सीधे मनभावन गीत -- गीतकार -- गुलज़ार पर क्लिक कर सकते हैं।

    कभी कभी 'मुसाफ़िर हूँ यारों' और 'एक शाम मेरे नाम' पर एक साथ निरंतरता बनाए रखना मुश्किल हो जाता है पर फिर आपका स्नेह व साथ मुझे बीच बीच में होती थकान से उबारता है। ब्लागिंग के इस नए साल में मेरा ये प्रयास होगा कि कुछ अच्छा आपके सामने लिख और परोस सकूँ। एक बार फिर इस चिट्ठे को इस मुकाम तक पहुँचाने के लिए आप सभी जाने अनजाने पाठकों का हार्दिक आभार!
     

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    स्पष्टीकरण

    इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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