तो दोस्तों वक़्त आ गया है वार्षिक संगीतमाला 2014 के सरताजी बिगुल को बजाने का। यूँ तो संगीतमाला के आरंभ के छः गीत मेरे बेहद प्रिय रहे हैं पर पिछली पॉयदानों से उलट वार्षिक संगीतमाला की सर्वोच्च पॉयदान पर आसीन ये गीत एकदम भिन्न प्रकृति का है। पिछले गीतों की तरह ये कोई रूमानी गीत नहीं है। इस गीत में एक रिश्ते को शिद्दत से याद करने का आग्रह है। उससे जुड़ी पुरानी यादों को बटोरने की ललक है। उसके दरकने और राह से भटकने का क्षोभ है। ये रिश्ता है पिता व पुत्री का जिसे अपनी आवाज़ से सँवारा है गायिका शिल्पा राव ने। नवोदित गीतकार गौरव सोलंकी के रचे शब्द इतने गहरे हैं कि संगीतकार जी वी प्रकाश कुमार पियानो आधारित नाममात्र के संगीत से भी वो असर पैदा करते हैं जो बहुतेरे संगीतकार आर्केस्ट्रा में भी नहीं ला पाते। ये गीत है पिछले साल दिसंबर के आखिर में प्रदर्शित हुई फिल्म Ugly का।
संगीतकार जी वी प्रकाश कुमार मुख्यतः तमिल फिल्मों के संगीतकार व गायक हैं। प्रकाश रिश्ते में ए आर रहमान के भांजे हैं। उनकी माँ ए आर रेहाना एक पार्श्व गायिका रह चुकी हैं। पिछले दस सालों से तमिल फिल्म उद्योग में सक्रिय प्रकाश तीस से ज्यादा फिल्मों में अपना संगीत दे चुके हैं। पर Ugly के माध्यम से उन्होंने पहली दफा हिंदी फिल्मों में कदम रखा है। इससे पहले उन्होंने अनुराग की फिल्म Gangs of Wasseypur.में पार्श्व संगीत भी दिया था। पर इस गीत के असली हीरो हैं इसके गीतकार गौरव सोलंकी। गीत की हर पंक्ति दाद की हक़दार है।
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G V Prakash Kumar, Shilpa Rao and Gaurav Solanki |
गौरव सोलंकी के लेखन से मैं बतौर हिंदी ब्लॉगिंग के ज़रिए परिचित हुआ था। आई आई टी रुड़की से इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग में स्नातक गौरव को हाईस्कूल के बाद से ही कविता और कहानी लिखने का चस्का लग गया था। इंजीनियरिंग कॉलेज में लेखन के साथ साथ वे कॉलेज की पत्रिका से भी जुड़े रहे। फिल्मों से जुड़ने का उनका ख़्वाब इससे भी पहले का था। इसीलिए वो आई आई टी मुंबई जाना चाहते थे ताकि जब चाहें वहाँ से फिल्म उद्योग में छलाँग लगा दें। उन्हें ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार के लिए भी चुना गया जिसे बाद में उन्होंने प्रकाशकों द्वारा लेखको का आर्थिक दोहन करने के विरोध में लौटा दिया। बहरहाल अब उन्होंने अपने आपको मुंबई वाला बना लिया है और जयदीप साहनी की तर्ज पर बतौर पटकथा लेखक व गीतकार अपने आपको फिल्म जगत में स्थापित करने में जुट गए हैं।
Ugly एक ऐसी बच्ची की कहानी है जो अपने पिता से बिछुड़ जाती है। गौरव इस गीत के माध्यम से इतनी संवेदनशीलता से बच्चे के मन में अपने पिता के लिए उभरने वाली यादों को टटोलते हैं कि उन्हें एकबारगी सुन कर ही आँखें भर आती हैं। टीन के कनस्तर से बूँदी चुराने की बात हो या पापा की ऊँगली थामे चलते हुए खिसकते फर्श को देखने का आभास, दोपहरी में नीम के पेड़ के नीचे जलती ज़मीन की याद हो, या खरगोशों और चीटियों के पीछे गुज़ारे वो दिन ,गौरव बचपन की इन सजीव कल्पनाओं का इस्तेमाल कर यादों के आँगन से कोमल से रिश्ते के पीछे के प्रेम को बड़ी खूबसूरती से उभार लाते हैं। भौतिक संपदा के लोभ में इंसानी रिश्तों को तिलांजलि देने वाले इस समाज पर गौरव बखूबी तंज़ कसते हुए कहते हैं गिनतियाँ सब लाख में हैं .. हाथ लेकिन राख में हैं।
गौरव की भावनाओं को शिल्पा राव जब स्वर देती हैं तो मन बचपन की उन पुरानी यादों में खो जाता है। ये दूसरी बार है जब शिल्पा ने वार्षिक संगीतमाला के सरताज गीत का हिस्सा बनने में सफलता पाई है। इससे पहले वर्ष 2008 में फिल्म आमिर के लिए अमित त्रिवेदी के संगीतबद्ध गीत इक लौ इस तरह क्यूँ बुझी मेरे मौला में उन्होंने ये सफलता अर्जित की थी। तो आइए सुनें इस बेहद भावनात्मक नग्मे को
क्या वहाँ दिन है अभी भी
पापा तुम रहते जहाँ हो
ओस बन के मैं गिरूँगी
देखना, तुम आसमाँ हो
टीन के टूटे कनस्तर
से ज़रा बूंदी चुराकर
भागती है कोई लड़की
क्या तुम्हें अब भी चिढ़ाकर
फ़र्श अब भी थाम उँगली
साथ चलता है क्या पापा
भाग के देखो रे आँगन
नीम जलता है क्या पापा
आग की भी छाँव है क्या
चींटियों के गाँव हैं क्या
जिस कुएँ में हम गिरे हैं
उस कुएँ में नाव है क्या
क्या तुम्हें कहता है कोई कि चलो, अब खा भी लो
डिब्बियों में धूप भरकर कोई घर लाता है क्या
चिमनियों के इस धुएँ में मेरे दो खरगोश थे
वे कभी आवाज़ दें तो कोई सुन पाता है क्या
गिनतियाँ सब लाख में हैं
हाथ लेकिन राख में हैं
चाँद अब भी गोल है क्या
जश्न अब भी ढोल है क्या
पी रहे हैं शरबतें क्या
क्या वहाँ सब होश में हैं?
या कि माथे सी रहे हैं
दो मिनट अफ़सोस में हैं?
वार्षिक संगीतमाला 2013 का ये सफ़र आज यहीं पूरा हुआ। आशा है मेरी तरह आप सब के लिए ये आनंददायक अनुभव रहा होगा । इस सफ़र में साथ बने रहने के लिए शुक्रिया..
वार्षिक संगीतमाला 2014
- 01 क्या वहाँ दिन है अभी भी पापा तुम रहते जहाँ हो Papa
- 02 मनवा लागे, लागे रे साँवरे Manwa Lage
- 03 काफी नहीं है चाँद हमारे लिए अभी Kaafi Nahin hai Chaand
- 04 शीशे का समंदर, पानी की दीवारें. Sheeshe ka Samundar !
- 05 मैं तैनू समझावाँ की . Main Tenu Samjhawan Ki ..
- 06 ज़हनसीब..ज़हनसीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब .. Zehnaseeb
- 07. पटाखा गुड्डी ! (Patakha Guddi)
- 08. किन्ना सोणा यार हीर वेखदी नज़ारा .. Ranjha
- 09. ऐसे तेरा मैं, जैसे मेरा तू.. Jaise Mera Tu
- 10. अल्लाह वारियाँ..... Allah Waariyaan
- 11.चाँदनिया तो बरसे फिर क्यूँ मेरे हाथ अँधेरे लगदे ने. Chaandaniya
- 12. ये बावला सा सपना Ye Bawla sa Sapna
- 13. गुलों मे रंग भरे, बाद-ए-नौबहार चले Gulon Mein Rang Bhare.
- 14. मैं ढूँढने को ज़माने में जब वफ़ा निकला Main dhoondhne ko..
- 15. तेरी गलियाँ, गलियाँ तेरी गलियाँ Teri Galiyan
- 16. अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ..Arziyan
- 17. कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर .Banjara.
- 18. पलकें ना भिगोना, ना उदास होना...नानी माँ Nani Maan
- 19. चार कदम बस चार कदम, चल दो ना साथ मेरे Char Kadam
- 20. सोने दो .. ख़्वाब बोने दो Sone Do..
- 21. सूहा साहा Sooha Saaha
- 22. सुनो ना संगमरमर Suno Na Sangmarmar
- 23. दिलदारा Dildaara
- 24. पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी Pair Anadi
- 25. नैना नूँ पता है, नैना दी ख़ता है Naina
- दावत ए इश्क़ वो ग्यारह रूमानी गीत जो अंतिम पच्चीस में स्थान बनाने से ज़रा से चूके
