जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वक़्त आ गया है एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला 2019 का सरताज बिगुल बजाने का। धुन, शब्द और गायिकी तीनों ही लिहाज़ से बाकी सारे गीतों से कहीं बेहतर रहा फिल्म केसरी का वो नग्मा जिसने इस गीतमाला की पहली सीढ़ी पर अपने आसन जमाए हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के आख़िर में हुए अफगान सेना और अंग्रेजों की सिख पलटन के बीच हुए सारागढ़ी के युद्ध पर आधारित फिल्म केसरी का गीत 'तेरी मिट्टी' हर उस सिपाही को समर्पित है जिसने अपनी मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दी है।
आज इस सरताज गीत के तीन नायकों अर्को, मनोज मुंतशिर, बी प्राक और उनके पीछे के उन लोगों की बात करेंगे जिनकी वज़ह से ये गीत आपके सामने इस रूप में आ सका।
सबसे पहले शुरुआत करते हैं गीतकार मनोज मुंतशिर से जिनके एक दर्जन से भी ज्यादा गीत पिछले कुछ सालों से संगीतमाला का हिस्सा बनते आए हैं। मेरी उनसे बस एक ही शिकायत रहती थी कि अपनी प्रतिभा को रूमानियत भरे गीतों तक ही सीमित ना रखें। अब देखिए, जैसे ही उन्हें मौका मिला उन्होंने एक सैनिक का दिल इतनी तबियत से पढ़ लिया कि उन भावनाओं को महसूस कर ही संगीतप्रेमियों की आँखें नम हो गयीं। मनोज ने सैनिक के शौर्य की बात करते हुए चंद पक्तियों उसके गाँव, खेत खलिहान और घर परिवार का पूरा नक्शा ही उकेर दिया।
रामसे ब्रदर्स के जाने के बाद हॉरर फिल्मों की सालाना खुराक देने का काम पिछले एक दशक से विक्रम भट्ट बखूबी सँभाल रहे हैं। अब उनकी फिल्में कितनी डरावनी होती हैं ये तो मैं नहीं जानता पर उनकी फिल्मों का संगीत बाजार के शोर गुल से अलग एक सुकून देने वाला अवश्य होता है।
इस साल अक्टूबर में फिल्म आई Ghost। घोस्ट का जो गीत आज इस संगीतमाला में दाखिल हो रहा है उसे सँवारा है एक महिला संगीतकार ने जो कि एक गायिका भी हैं पर उन्होंने खुद ये गाना नही् गाया बल्कि गवाया है एक ऐसे संगीतकार से जिनके नाम की तूती इस साल के फिल्म संगीत में गूँज रही है। पिछले साल की संगीतमाला में मैंने आपको दो महिला संगीतकारों से मिलवाया था। पहली तो रचिता अरोड़ा जिन्होने "मुक्केबाज" के संगीत से सबका दिल जीत लिया था और दूसरी जसलीन रायल जिनकी "हिचकी" को आजतक हम भूले नहीं हैं।
ये नयी संगीतकार हैं देहरादून से ताल्लुक रखने वाली सोनल प्रधान। शास्त्रीय संगीत में प्रभाकर की डिग्री हासिल करने के बाद सोनल का इरादा तो मुंबई जाकर गायिकी में नाम रोशन करना था पर पहाड़ों की आबो हवा को छोड़ मुंबई नगरी के प्रदूषण ने उनके गले को ऐसा गिरफ्त में लिया कि डॉक्टर ने उन्हें एक साल के लिए गाना बिल्कुल बंद करने की ताकीद दे डाली। संगीत की दुनिया में अपनी पहचान बनाने का सपना लिए आई किसी भी लड़की के लिए ये मानसिक आघात से कम नहीं था। हताशा निराशा के दौर से गुजर रही सोनल को उनकी माँ ने ढाढस बँधाया और कहा कि अगर तुम कुछ दिनों के लिए गा नहीं सकती तो क्या हुआ, संगीत से जुड़ा दूसरा काम तो कर सकती हो। फिर तो सोनल ने अगले एक डेढ़ साल में कई गीत लिखे, उनकी धुनें बनाई और जब एक अच्छा खासा संग्रह यानी सांग बैंक बन गया तो उन्होंने फिल्म उद्योग में काम माँगना शुरु किया। उन्हें पहला मौका विक्रम भट्ट ने अपनी वेब सिरीज़ में दिया।
सोनल प्रधान
आजकल संगीत की जितनी बड़ी कंपनियाँ हैं उनके पास अगर कोई अच्छा गाना लेकर आता है तो वो उसे अपने संग्रह के लिए आरक्षित कर लेती हैं। सोनल के रचे इस गीत का खाका ज़ी म्यूजिक के आला अधिकारी अनुराग बेदी को पसंद आ गया और वहाँ से होता हुआ तीन महीने बाद फिल्म घोस्ट (Ghost) के लिए चुन लिया गया।
इस गाने के दो वर्सन बने। एक को तो यासिर देसाई ने गाया जबकी दूसरे की आवाज़ बने संगीतकार अर्को प्रावो मुखर्जी। अर्को वैसे अपने संगीतबद्ध गीत गाते ही रहे हैं पर ये गीत जब उन्होंने सुना तो कहा कि अरे इस गीत को तौ मैं ख़ुद ही गाना चाहूँगा। फिल्म में अर्को के वर्सन का इस्तेमाल हुआ हैं और मुझे भी वो ज्यादा जँचा।
फिल्म मरजावाँ के गीत "तुम ही आना" की तरह आदित्य देव ने इस गीत में एक बार फिर संगीत की व्यवस्था सँभाली है। मुखड़े के पहले का पियानो हो या अंतरों के बीच संगीत का टुकड़ा दोनों ही सुनने में बेहद मधुर लगता है। जैसे ही अर्को रुह का रिश्ता ये जुड़ गया से मुखड़े का टुकड़ा शुरु करते हैं गीत से श्रोताओं के तार जुड़ने लगते हैं। सोनल की लेखन प्रतिभा भी प्रभावित करती है जब वो लिखती हैं.. बहता हूँ तुझमें मैं भी...ना छुपा खुद से ही...महकूँ खुशबू से जिसकी...बन वो कस्तूरी।
सोनल चाहती हैं कि इस कठिन प्रतिस्पर्धा के युग में भी संगीत उद्योग में बतौर गायिका अपनी जगह बनाएँ और उन्हें अपने संगीत निर्देशन में बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिले। एक शाम मेरे नाम की तरफ से उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएँ। उन्होंने इस गीत से जुड़ी बातचीत के लिए अपना समय निकाला उसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। तो आइए अब सुनते हैं घोस्ट फिल्म का ये गीत
अनकही है जो बातें, कहनी है तुमसे ही क्यूँ ये नज़रें मेरी, ठहरी हैं तुमपे ही रूह का रिश्ता ये जुड़ गया जहाँ तू मुड़ा मैं भी मुड़ गया रास्ता भी तू है मंज़िल भी तू ही हाँ तेरी ही ज़रूरत है मुझे यह कैसे समझाऊँ मैं तुझे माँगता हूँ तुझे यार तुझसे ही बेचैनियाँ अब बढ़ने लगी है सब्र रहा ना, बेसब्री है आँच थोड़ी साँसों को दे दे मुश्क़िल में ये जान मेरी है बहता हूँ तुझमें मैं भी ना छुपा खुद से ही महकूँ खुशबू से जिसकी बन वो कस्तूरी रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... जब से मिला हूँ तुझसे बस ना रहा है खुद पे बोलती आँखों ने जादू कर दिया बख़्श दे मुझे ख़ुदारा मैने जब उसे पुकारा हो गयी ख़ता तेरा नाम ले लिया साथ हो जो उम्र भर वो खुशी बन मेरी हर कमी मंज़ूर है बिन तेरे जीना नहीं रूह का रिश्ता ये जुड़ गया...
वार्षिक संगीतमाला की 19 वीं पायदान पर गाना वो जो मेरे आरंभिक आकलन के बाद सुनते सुनते कई सीढ़ियाँ नीचे की ओर लुढ़का है। पर अब भी अगर ये मेरी गीतमाला में शामिल है तो उसकी वज़ह है इसके मुखड़े का शानदार भाव और इसकी धुन की मधुरता। ये गीत है फिल्म 'बरेली की बर्फी' का जिसे रचा है अर्को ने।
अर्को प्रावो मुखर्जी के गीतों से मेरा प्यार और दुत्कार वाला रिश्ता रहा है। बतौर संगीतकार वो मुझे बेहद प्रभावित करते हैं। उनके शायराना हृदय के खूबसूरत भाव रह रह कर उनके गीतों में झलकते हैं। पर भाषा पर पकड़ न होने के कारण वो एक गीतकार की भूमिका में खरे नहीं उतरते और ये बात वो जितनी जल्द समझ लें उतना अच्छा।
अब बरेली की बर्फी के इस गीत को लीजिए। कितना रूमानी ख्याल था मुखड़े में कि मेरी प्रेयसी एक नज़्म की तरह मेरे होठों पर ठहर जाए और मैं उसकी आँखों में मैं एक ख़्वाब बनकर जाग जाऊँ। वाह भई वाह! अर्को इस मुखड़े के लिए तो आप शाबासी के हकदार हैं पर ये क्या आपने तो नज़्म का लिंग ही बदल दिया। अरे नज़्म की बातें करते हुए कम से कम गुलज़ार की इन पंक्तियों को याद कर लेते तो मुखड़े में ऐसी गलती नहीं करते
नज़्म उलझी हुई है सीने में मिसरे अटके हुए हैं होठों पर उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा बस तेरा नाम ही मुकम्मल है इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी
इसलिए आपको कहना चाहिए था तू नज़्म नज़्म सी मेरे होंठो पे ठहर जा मैं ख्वाब ख्वाब सा तेरी आँखों में जागूँ रे
लिंग की ये गलतियाँ इत्र सा (सी) और तेरे (तेरी) कुर्बत और मेरे (मेरी) साँसों में भी बरक़रार रहती हैं और गीत सुनने के आनंद को उसी तरह बाधित करती हैं जैसे चावल में कंकड़। मुझे समझ नहीं आता कि इतनी गलतियाँ निर्देशिका और उनकी पूरी टीम को नज़र कैसे नहीं आई? गायक के तो उसे पकड़ने का सवाल ही नहीं उठता क्यूंकि इस गीत की लिखने और संगीतबद्ध करने के साथ गाने की भी जिम्मेदारी अर्को ने सँभाली थी।
फिर भी गीत की गिटार प्रधान धुन ऐसी है जो तुरंत ज़हन में बस जाती है और आपको मुखड़े को गुनगुनाने पर विवश कर देती है। अर्को के रचे इंटरल्यूड्स कर्णप्रिय हैं। गीत का फिल्मांकन नायक नायिका के बीच एक ओर खिलती दोस्ती और दूसरी ओर पनपते प्यार के छोटे छोटे पलों को अच्छी तरह पकड़ता है इसलिए इसे देखना भी मन को रूमानियत से भर देता है। तो आइए सुने ये गीत इस उम्मीद के साथ कि अर्को ऐसी गलतियों से बाज आएँगे।
तू नज़्म नज़्म सा (सी) मेरे होंठो पे ठहर जा मैं ख्वाब ख्वाब सा तेरी आँखों में जागूँ रे तू इश्क़ इश्क़ सा मेरे रूह में आ के बस जा जिस ओर तेरी शहनाई उस ओर मैं भागूँ रे हाथ थाम ले पिया करते हैं वादा अब से तू आरजू तू ही है इरादा मेरा नाम ले पिया मैं तेरी रुबाई तेरे ही तो पीछे-पीछे बरसात आई, बरसात आई
तू इत्र इत्र सा (सी) मेरे (मेरी) साँसों में बिखर जा मैं फ़कीर तेरे (तेरी) कुर्बत का तुझसे तू माँगूँ रे तू इश्क इश्क सा मेरे रूह में आ के बस जा जिस ओर तेरी शहनाई उस ओर मैं भागूँ रे मेरे दिल के लिफाफे में तेरा ख़त है जाणिया तेरा ख़त है जाणिया .. नाचीज़ ने कैसे पा ली किस्मत ये जाणिया वे
वार्षिक संगीतमाला की पन्द्रहवी पायदान पर गाना वो जो पिछले साल इतना लोकप्रिय हुआ कि अब तक इंटरनेट पर नौ करोड़ बार सुना जा चुका है। ज़ाहिर है आप ने भी इसे कई बार सुना होगा। पर क्या आप जानते हैं कि ये गाना अपने इस स्वरूप में कैसे आया यानि इस गीत के पीछे की कहानी क्या है?
पर ये कहानी जानने के पहले ये तो जान लीजिए कि इस गीत को संगीतबद्ध किया अर्को प्रावो मुखर्जी ने और बोल लिखे एक बार फिर से मनोज मुन्तशिर ने। अर्को पहली बार 2014 में अल्लाह वारियाँ और दिलदारा जैसे गीतों की वज़ह से वार्षिक संगीतमाला का हिस्सा बने थे। तभी मैंने आपको बताया था कि अर्को शैक्षिक योग्यता के हिसाब से एक डॉक्टर हैं पर संगीत के प्रति उनका प्रेम उन्हें सिटी आफ जॉय यानि कोलकाता से मुंबई की मायानगरी में खींच लाया है। मैंने तब भी लिखा था कि अर्कों की धुनें कमाल की होती हैं पर ख़ुद अपने गीत लिखने का मोह उनकी कमज़ोर हिंदी की वज़ह से वो प्रभाव नहीं छोड़ पाता। पर इस गीत में मनोज मुन्तशिर के साथ ने उनकी उस कमी को दूर कर दिया है।
अर्को ने ये धुन और मुखड़ा भी पहले से बना रखा था और जी म्यूजिक के अनुराग
बेदी ने उसे सुना था। जब फिल्म के सारे गीत लिखने की जिम्मेदारी मनोज
मुन्तशिर को मिली तो उनसे अनुराग ने कहा कि मुझे एक ऐसा गीत चाहिए जो
फिल्म के लिए एक इंजन का काम करे यानि जो तुरंत ही हिट हो जाए और अर्को के
पास ऐसी ही एक धुन है।
अब एक छोटी सी दिक्कत ये थी कि अर्को ने उस गीत में
विरह का बीज बोया हुआ था जबकि फिल्म में गीत द्वारा रुस्तम की प्रेम कहानी
को आगे बढ़ाना था। तब गीत के शुरुआती बोल कुछ यूँ थे तेरे बिन यारा बेरंग
बहारा है रात बेगानी ना नींद गवारा। मनोज ने इस मुखड़े में खुशी का रंग कुछ
यूँ भरा तेरे संग यारा, खुशरंग बहारा..तू रात दीवानी, मैं ज़र्द सितारा। एक
बार मुखड़ा बना तो अर्को के साथ मिलकर पूरा गीत बनाने में ज्यादा समय नहीं
लगा।
अर्को व मनोज मुन्तशिर
गीत तो बन गया पर मनोज इस बात के लिए सशंकित थे कि शायद फिल्म
के निर्माता निर्देशक ज़र्द जैसे शब्द के लिए राजी ना हों क्यूँकि सामान्य
सोच यही होती है कि गीत में कठिन शब्दों का प्रयोग ना हो। पर अर्को अड़ गए
कि नहीं मुझे इस शब्द के बिना गीत ही नहीं बनाना है। गीत बनने के बाद जब निर्माता नीरज पांडे के सामने प्रस्तुत हुआ तो अर्को ने कहा कि आप लोगों को
और कुछ बदलना है तो बदल लीजिए पर ज़र्द सितारे से छेड़छाड़ मत कीजिए। ऐसा कुछ हुआ नहीं और नीरज को मुखड़ा और गीत दोनों पसंद आ गए।
बहरहाल
इससे ये तो पता चलता है कि फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी भाषा और
नए शब्दों के प्रयोग के प्रति कितनी हिचकिचाहट है। वैसे मनोज मुन्तशिर ने
जिस परिपेक्ष्य में इस शब्द का प्रयोग किया वो मुझे उतना नहीं जँचा। ज़र्द
का शाब्दिक अर्थ होता है पीला और सामान्य बोलचाल में इस शब्द का प्रयोग नकारात्मक भावना में ही होता है। जैसे भय से चेहरा ज़र्द पड़ जाना यानि पीला
पड़ जाना। पर अगर आप गीत में देखें तो मनोज प्रेमी युगल के लिए दीवानी रात व
पीले तारे जैसे बिंब का प्रयोग कर रहे हैं। मनोज की सोच शायद पीले चमकते
तारे की रही होगी जो मेरी समझ से ज़र्द के लिए उपयुक्त नहीं लगती। बेहतर तो
भाषाविद ही बताएँगे।
इस गीत को गाया है आतिफ़ असलम ने। आतिफ की
सशक्त आवाज़, पियानो के इर्द गिर्द अन्य वाद्यों का बेहतरीन संगीत संयोजन
इस गीत की जान है। इंटरल्यूड्स की विविधताएँ भी शब्दों के साथ मन को रूमानी
मूड में बहा ले जाती हैं। मेरी इस गीत की सबसे प्रिय पंक्ति गीत के अंत
में आती है, जी हाँ ठीक समझे आप मैं बहता मुसाफ़िर. तू ठहरा किनारा
तेरे संग यारा, खुशरंग बहारा तू रात दीवानी, मैं ज़र्द सितारा
ओ करम खुदाया है, तुझे मुझसे मिलाया है तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है ओ तेरे संग यारा.....ज़र्द सितारा ओ तेरे संग यारा ख़ुश रंग बहारा मैं तेरा हो जाऊँ जो तू कर दे इशारा
कहीं किसी भी गली में जाऊँ मैं, तेरी खुशबू से टकराऊँ मैं हर रात जो आता है मुझे, वो ख्वाब तू.. तेरा मेरा मिलना दस्तूर है, तेरे होने से मुझमें नूर है मैं हूँ सूना सा इक आसमान, महताब तू.. ओ करम खुदाया है, तुझे मैंने जो पाया है तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है
ओ तेरे संग यारा ...मैं ज़र्द सितारा ओ तेरे संग यारा ख़ुश रंग बहारा तेरे बिन अब तो ना जीना गवारा
मैंने छोड़े हैं बाकी सारे रास्ते, बस आया हूँ तेरे पास रे मेरी आँखों में तेरा नाम है, पहचान ले.. सब कुछ मेरे लिए तेरे बाद है, सौ बातों की इक बात है मैं न जाऊँगा कभी तुझे छोड़ के, ये जान ले ओ करम खुदाया है, तेरा प्यार जो पाया है तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है
ओ तेरे संग यारा.....ज़र्द सितारा ओ तेरे संग यारा, ख़ुश रंग बहारा मैं बहता मुसाफ़िर. तू ठहरा किनारा
फरवरी की शुरुआत हो गई और लीजिए वक़्त आ गया इस वार्षिक संगीतमाला की आरंभिक दस पायदानों का। दसवीं पायदान पर संगीतकार वो जिनसे आपका परिचय मैं सोनू निगम के गाए गीत दिलदारा में पहले भी करवा चुका हूँ। यानि अर्को प्रावो मुखर्जी जिनकी संगीत के प्रति अभिरुचि उन्हें डॉक्टरी करने के बाद भी मुंबई की मायानगरी में खींच लाई। क्या धुन बनाई हे अर्को ने इस गीत की ! ताल वाद्यों और गिटार का अनूठा संगम जो बाँसुरी की शह पाकर और मधुर हो उठता है। जब इस सुरीली धुन को शफक़त अमानत अली खाँ की आवाज़ का साथ मिलता है तो होठ खुद ही उनकी संगत के लिए मचल उठते हैं और मन झूम उठता है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ पिछले साल जनवरी में प्रदर्शित फिल्म यारियाँ के गीत अल्लाह वारियाँ की।
अर्को को ये गीत कैसे मिला उसकी भी अपनी कहानी है। जिस्म 2 के सफल संगीत की
बदौलत अर्को को निर्माता भूषण कुमार से मिलने का मौका मिला। उन्होंने उनसे
कुछ गीतों को बजाने को कहा। अर्को ने अपने प्रिय वाद्य गिटार पर अल्लाह
वारियाँ की धुन सुनाई और वो चुन ली गई। प्रीतम और मिथुन जैसे स्थापित
संगीतकारों के साथ अपनी धुन का चुन लिया जाना अर्को के लिए गौरव की बात थी।
गायक के नाम पर काफी चर्चा हुई। अंततः शफक़त अमानत अली को चुना गया। अर्को
कहते हैं कि कॉलेज के दिनों से ही वो शफक़त की आवाज़ के शैदाई थे।
जीवन में
कुछ रिश्ते हमें अपना परिवार देता है और कुछ हम ख़ुद बनाते हैं। पारिवारिक
रिश्ते तो ज़िदगी भर की वारण्टी के साथ आते हैं पा यारी दोस्ती में ये
सुविधा नहीं होती। दरअसल यही असुविधा ही इसकी सबसे बड़ी सुविधा है। क्यूँकि
ये थोपा हुआ रिश्ता नही् बल्कि धीरे धीरे भावनाओं द्वारा सींचा गया वो
रिश्ता है जो एक पादप के समान पोषित पल्लवित होकर कभी फूलों सी महक देता है
तो कभी फल जैसी मिठास। पर जैसे एक पौधा बिना रख रखाव के मुरझा उठता है
वैसा ही मित्रता के साथ भी तो हो सकता है। अर्को अपने लिखे इस गीत में ऐसे
ही बिछड़े यारों को मिलाने की बात करते हैं उनके साथ बिताए खूबसूरत लमहों को
याद करते हुए। शफक़त ने अर्को के सहज शब्दों में अपनी आवाज़ और गायिकी के
लहजे से ऐसा प्राण फूँका है कि मन दोस्त के पास ना होने की पीड़ा को मन के
अन्तःस्थल तक महसूस कर पाता है।
तो आइए सुनें यारियाँ फिल्म का ये नग्मा
अर्को को गीत लिखने का तजुर्बा है पर मुझे लगता है कि जिस पृष्ठभूमि से वो आए हैं, ये देखते हुए उन्हें अपना ध्यान पूरी तरह संगीत रचना में ही लगाना चाहिए। अब इसी गीत को देखिए दूसरे अंतरे में वो दास्तान शब्द के दोहराव से नहीं बच पाए हैं। दोस्तों के साथ बाँटी हुई स्मृतियों को सँजोने के लिए उन्होंने होली के रंगों और पतंगों का तो सही इस्तेमाल किया है पर उड़ती पतंगों में की जगह गायक से उड़ते पतंगों कहलवा गए हैं। इतने बेहतरीन संगीत संयोजन के बाद ये बातें मन में खटकती हैं। आशा है अर्को भविष्य में इन बातों का ध्यान रख पाएँगे।
अपने रूठे, पराये रूठे, यार रूठे ना ख्वाब टूटे, वादे टूटे, दिल ये टूटे ना रूठे तो ख़ुदा भी रूठे...साथ छूटे ना ओ अल्लाह वारियाँ, ओ मैं तो हारियाँ ओ टूटी यारियाँ मिला दे ओये ! उड़ते पतंगों में, होली वाले रंगों में झूमेंगे फिर से दोनों यार वापस तो आजा यार सीने से लगा जा यार दिल तो हुए हैं ज़ार -ज़ार अपने रूठें... मिला दे ओये ! रह भी न पाएं यार, सह भी न पाएं यार बहती ही जाए दास्तान उम्र भर का इंतज़ार, इक पल भी न क़रार ऊँगली पे नचाये दास्तान अपने रूठें... मिला दे ओये !
वार्षिक संगीतमाला की तेइसवीं पायदान पर गीत वो जिसके संगीतकार शैक्षिक योग्यता के हिसाब से एक डॉक्टर हैं पर संगीत के प्रति उनका प्रेम उन्हें सिटी आफ जॉय यानि कोलकाता से मुंबई की मायानगरी में खींच लाया है। ये संगीतकार हैं अर्को प्रावो मुखर्जी (Arko Pravo Mukherjee) और इस गीत को गाया है आज के सबसे हुनरमंद गायक सोनू निगम ने फिल्म तमंचे के लिए।
सोनू निगम व अर्को मुख्रर्जी
कोलकाता में पले बढ़े अर्को ने संगीत की विधिवत शिक्षा भले ना ली हो पर बचपन से ही उनका झुकाव रवींद्र संगीत की ओर जरूर रहा। दूसरी ओर अपने शहर के संगीतप्रेमी युवाओं के चलन के हिसाब से वे भी उन दिनों एक रॉक बैंड का हिस्सा बने। यही वज़ह है कि उनकी दिलचस्पी संगीत देने के आलावा गायिकी और गीत लिखने की भी है। तमंचे के इस गीत को भी अर्को ने ही लिखा है। कहानी दिल्ली से जुड़ी है तो गीत पर भी हल्का सा ही सही यारा, दिलदारा, रब्बा और सोणया जैसे चिरपरिचित शब्दों के रूप में पंजाबियत का तड़का जरूर है।
कुल मिलाकर बतौर संगीतकार अर्को मुझे जितना प्रभावित करते हैं उसकी तुलना में उनके लिखे बोलों को मैं हमेशा कमज़ोर पाता हूँ। इस साल उनका संगीतबद्ध लोकप्रिय गीत मेहरबानी इसी वज़ह से मेरी पसंद के अंतिम पच्चीस में अपनी जगह नहीं बना पाया। तमंचे का ये गीत आज अगर मेरी इस संगीतमाला का हिस्सा बन रहा है तो उसकी एक बड़ी वज़ह है सोनू निगम की बेमिसाल गायिकी और अर्को की बेहद सुरीली धुन।
अर्को जब इस गीत को लेकर पहली बार सोनू निगम के पास गए तो उन्हें ये भय सता रहा था कि सोनू गीत को अपने स्तर का ना मान कर उनके अनुरोध को ठुकरा ना दें। पर जब अर्को ने एक रॉक गायक वाले अंदाज़ में सोनू को ये गीत सुनाया तो उन्हें ये पहली बार में ही पसंद आ गया। सोनू ने इस गीत के बारे में रेडियो मिर्ची पर बात करते हुए कहा था
"मेंने जब पहली बार ये गाना गाया था तो अर्को की स्टाइल में गाया था। बाद में फिल्म के नायक निखिल ने आकर मुझसे कहा कि आप बिल्कुल अर्को के लहज़े में गा रहे हैं। बेहतर है आप गीत को अपने अंदाज़ में ही गाएँ। सो मैंने कहा चलो ठीक है। पर पहले गाकर रास्ता तो अर्को ने दिखा ही दिया था और इस गीत के लिए वही मेरा रेफरेंस प्वाइंट (reference point) बन गया। अर्को अपने संगीत को आइटम, सैड या रोमांटिक के हिसाब से वर्गीकृत नहीं करते बल्कि एक सोच के हिसाब से संगीत देते हैं। अगर संगीतकार एक विचारक या सोचने वाला नहीं हो तो मुक्तलिफ़ चीज़ बन कर बाहर नहीं आ सकती।"
सोनू निगम जिस प्यार से पूरी तरह डूबकरओए दिलदारा ओए दिलदारा ...से गीत की शुरुआत करते हैं कि मन गीत से बँधता चला जाता है। गिटार, ट्रम्पेट और ताल वाद्यों से सजी अर्को की धुन की मिठास सोनू की बेहतरीन अदाएगी का साथ पाकर ऐसा प्रभाव रचती है कि गीत बार बार सुनने का मन होता है। बातें सारी बोल दी जाएँ और खुशिया तमाम दी जाएँ की जगह बातें सारी बोल दिया जाये... और खुशियाँ तमाम दिया जाए सुनना थोड़ा खटकता जरूरत है। आशा है अर्को अपनी शब्द रचना पर भविष्य में थोड़ा और ध्यान देंगे।
ओए दिलदारा ओए, ओए दिलदारा, मैं बंजारा ओए मैं बंजारा ओह तेरे वास्ते मैं सारा जग..छोड़ के दिखाऊँ क़िस्मत की कलाइयाँ..मरोड़ के दिखाऊँ ओह तेरे वास्ते मैं सारा जग छोड़ के दिखाऊँ क़िस्मत की कलाइयाँ मरोड़ के दिखाऊँ यारा सोनिया, दिलदारा सोनिया
ओह तेरी छोटी छोटी बातों पे, मैं गौर किये जाऊँ तेरी सारौ फरियादों पे, मैं मर मिटा जाऊँ यारा सोनिया.. दिलदारा सोनिया
ओह रब्बा तेरी-मेरी बातें सारी बोल दिया जाये ओह रब्बा दिल में है राज़ तो वो खोल दिया जाये यारा.. इश्क़-इ-शैदाई का मोल दिया जाए सारे जहां के गुनाहों को भी तौल दिया जाए तेरी ज़िन्दगी में खुशियाँ तमाम दिया जाए .... मैरी जींद मेरी जान तेरे नाम किया जाए ओए दिलदारा ओए....
तो चलिए सुनते हैं तमंचे फिल्म का ये गीत सोनू निगम की आवाज़ में..
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।