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गुरुवार, अगस्त 10, 2017

चल चल सखि पिया के पास.. Chal Chal Sakhi

शंकर टकर मेरे पसंदीदा संगीतज्ञ हैं। अमेरिका से भारत आ कर बसने वाले इस क्लारिनेट वादक ने जिस तरह हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को आत्मसात किया है उसकी विस्तृत चर्चा मैंने उनके एलबम श्रुति बॉक्स के रिलीज़ होते समय की थी। इंटरनेट पर अपने पहले एलबम की सफलता के बाद शंकर तीन साल अपने दूसरे एलबम के लिए काम करते रहे। 2015 में आख़िरकार उनका दूसरा एलबम निकला जिसे उन्होंने Filament के नाम से रिलीज़ किया।

Filament को The Shruti Box की तरह श्रोताओं का प्यार तो नहीं मिला पर इसकी कुछ रचनाएँ जैसे चल चल सखि.... और दिल है नमाज़ी.... काफी सराही गयीं। इस एलबम की मेरा पसंदीदा गीत भी चल चल सखि ही है। शंकर टकर की विशेषता है कि वो अपनी संगीतबद्ध रचनाओं में मँजे हुए कलाकारों के साथ नए उभरते गायकों को भी मौका देते हैं और इस शास्त्रीय बंदिश को निभाने के लिए उन्होंने पंडित जसराज की शिष्या रही अंकिता जोशी को चुना। अंकिता जसराज जी की शिष्या कैसे बनी ये जानना कम दिलचस्प नहीं है।


महाराष्ट्र के नांदेड़ से ताल्लुक रखने वाली अंकिता के परिवार में भक्ति संगीत गाने वालों का अच्छा खासा जमावड़ा था। संगीत की आरंभिक शिक्षा उन्होंने अपने मामा लक्ष्मीकांत रामदेव से ली। इसी दौरान उन्होंने पंडित जी को सुना और उनकी गायिकी से वे इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने ये निश्चय कर लिया कि अब उनकी ही शरण में जाकर अपनी सांगीतिक प्रतिभा को निखारना है। 

आपको जानकर ताज्जुब होगा कि दस साल से भी छोटी उम्र में पंडित जसराज के कार्यक्रम को देखते हुए वे लोगों से बचते बचाते स्टेज तक पहुँची और उनसे सीधे जाकर कहा कि मुझे आपसे संगीत सीखना है। पंडित जी ने अंकिता से पूछा कि क्या तुम्हें गाना आता है? अंकिता ने तुरंत जवाब दिया कि उनका गायन सुन सुन कर ही उन्होंने संगीत सीखा है। पंडित जसराज जी ने फिर अंकिता को गवाया और उनकी प्रतिभा और सीखने के इस जज़्बे को देखते हुए अपना शिष्य बना ही लिया। आज अंकिता की गणना देश के उभरते हुए शास्त्रीय गायक के रूप में हो रही है। हालांकि अपनी इस संगीत यात्रा में उन्होंने शास्त्रीय संगीत के आलावा भक्ति संगीत, ग़ज़ल और फ्यूजन से भी परहेज़ नहीं किया है।

शंकर टकर की खासियत है कि शास्त्रीय संगीत के साथ उनका किया गया फ्यूजन उसकी आत्मा के साथ कोई खिलवाड़ नहीं करता। इसलिए उनके रचे एलबम्स को सुनना एक अलग अनुभव ही है। इन गीतों में क्लारिनेट से सँजोए उनके टुकड़ों को सुनना एक अतिरिक्त आनंद दे जाता है। छः मिनट के इस गीत में जब अंकिता अपनी लय में होती हैं तो संगीत मद्धम मद्धम बजता हुआ उनकी सधी हुई गायिकी को पूर्णता प्रदान करता है। तबले के साथ अंकिता की सरगम मन मोहती है।

निराली कार्तिक और पंडित लघुलाल की लिखी इस बंदिश को छोड़ता हुआ गीत ढाई मिनट के बाद एक अलग ही रंग में रँगता है जब अंकिता और शंकर अपने आलाप और वादन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। संगत में तबले पर अमित मिश्रा  का कमाल भी सुनते ही बनता है ।

राधा कृष्ण के प्रेम को उभारती इस बंदिश में राधा के मन में अपने पिया को देखने की विकलता भी है और साथ बिताए पलों की मधुर यादें भी। तो आइए सुनते हैं शास्त्रीय संगीत के साथ क्लारिनेट के इस निराले फ्यूजन को . .


चल चल सखि पिया के पास
मोरे मन में जल रही दरस की आस

जाओ चुनरी छोड़ो, मोरे नाजुक सी कलियाँ
काहे मटकी फोड़ो, जाओ जी बृज के बसियाँ

चल चल सखि पिया के पास.....दरस की आस

उन बिन मोहे कल नहीं आए
नटवर नटखट निपट निठुर तुम
नाच रयो री रास रचो री

बस मेरे अंग अंग रंग मेरे रंग रंग
नटवर नट खल निपट निठुर तुम
नाच रयो री रास रचो री




सोमवार, सितंबर 26, 2011

जा जा रे अपने मंदिरवा जा....शंकर टकर और निराली कार्तिक की बेहतरीन जुगलबंदी !

पिछले हफ्ते आपसे बातें हुई शंकर टकर और उनके एलबम 'दि श्रुति बॉक्स 'में शामिल क्लारिनेट पर बजाई उनकी अद्भुत धुनों पर। अगर आपनें ये धुनें नहीं सुनी तो यहाँ पर जरूर सुन लीजिएगा  इससे पहले कि आज मैं  इस एलबम में शामिल निराली कार्तिक की गाई एक बंदिश का जिक्र करूँ अपने वादे के मुताबिक ये बताना जरूरी होगा कि इस अमेरिकी कलाकार का नाम 'शंकर' कैसे पड़ा ?

दरअसल शंकर का परिवार अम्मा यानि माँ अमृतानंदमयी का भक्त है। अम्मा जब जब अमेरिका की यात्रा पर होती हैं शंकर के माता पिता उनसे अवश्य मिलते हैं। ऐसी ही एक मुलाकात में अम्मा ने टकर परिवार को उनके छोटे से बेटे के लिए शंकर का नाम सुझाया था। तो ये था शंकर टकर के 'शंकर' का रहस्य !


शंकर की तरह ही अहमदाबाद में जन्मी और मेवात घराने से ताल्लुक रखने वाली शास्त्रीय गायिका निराली कार्तिक की अध्यात्मिक गुरु भी अम्मा हैं। निराली की माता ख़ुद एक गायिका हैं जबकि उनके भाई तबला वादक हैं। निराली नौ साल की आयु से ही शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ले रही हैं। शायद अम्मा के सानिध्य ने इन दो कलाकारों को साथ काम करने की प्रेरणा दी और देखिए कितनी प्यारी बंदिश तैयार हुई जो कि मूलतः राग भीम पलासी पर आधारित है। बंदिश के बोल हैं

जा जा रे अपने मंदिरवा जा
सुन पावेगी सास ननदिया
जा जा रे अपने मंदिरवा जा...



एक ओर निराली का आलाप चलता है और साथ ही थिरकती हैं क्लारिनेट पर शंकर की उँगलियाँ। ट्रैक में 75 सेकेंड के बाद की जुगलबंदी सुनने वाले के आनंद को दूना कर देती है।

शंकर, अमेरिका में अम्मा के दौरे में हमेशा साथ रहते हैं और उनके भजनों के कार्यक्रमों में अपने वाद्य के साथ शिरकत भी करते हैं। इस एलबम में भी उन्होंने तमिल का एक भजन शामिल किया है जिसे गाया है अमेरिका में रहने वाली अय्यर बहनों विद्या और वंदना ने। राग दरबारी कानड़ा पर आधारित इस भजन में महालक्ष्मी की स्तुति की गई है।



अब तमिल तो मुझे आती नहीं पर इस ब्लॉग पर अंग्रेजी में दिए हुई व्याख्या के आधार पर संक्षेप में भजन  का अर्थ ये है कि जो तुमने  एक बार सोच लिया तो वो होकर ही रहना है। मनुष्य के जीवन में सुख और दुख दोनों का ही कारण तुम हो। अगर हमें अपने जीवन में सफलताएँ मिलें भी तो बिना तुम्हारे आशीष के क्या हम उन्हें अपने पास रख पाएँगे? अय्यर बहनों का ये भजन यू ट्यूब पर काफी लोकप्रियता हासिल कर रहा है।

वैसे शंकर टकर फिल्मों में भी काम कर रहे हैं। ए आर रहमान के साथ किया गया उनका काम सराहा भी गया है। अगर वो इसी तरह भारतीय संगीत में अपने हुनर को तराशते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब हम उनके कुछ और एलबमों को बाजार में उतरता देखेंगे। अगर शंकर टकर के बारे में कुछ और जानना चाहते हों तो उनकी वेब साइट ये रही।

सोमवार, सितंबर 19, 2011

शंकर टकर और क्लारिनेट : पश्चिमी वाद्य यंत्र पर बहती हिदुस्तानी सुर गंगा...

शंकर 'टकर' ये नाम सुन कर  कुछ अज़ीब नहीं लगता आपको ? जब आप इस अमेरिकी वादक को क्लारिनेट पर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के साथ संगत करते देखेंगे तो आपका ये विस्मय और भी बढ़ जाएगा। कुछ ही दिनों पहले मैंने शंकर को टीवी के एक संगीत चैनल पर अपनी कला का प्रदर्शन करते देखा और एक बार में ही क्लारिनेट पर उनकी कलाकारी देख कर मंत्रमुग्ध हो गया। तो चलिए आज आपसे बातें करते हैं इस अद्भुत युवा अमेरिकी वादक के बारे में, उनकी संगीतबद्ध कुछ मधुर धुनों के साथ..

यूँ तो शंकर पिछले चौदह सालों से क्लारिनेट बजा रहे हैं पर भारतीय शास्त्रीय संगीत की तरफ उनका रुझान हाई स्कूल के बाद हुआ। बोस्टन में उन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई 'आर्केस्ट्रा में क्लारिनेट के प्रयोगों पर की। क्लारिनेट हवा की फूँक से बजने वाले वाद्यों में एक प्रमुख वाद्य है जिसका अविष्कार अठारहवीं शताब्दी में  जर्मनी में हुआ था। कॉलेज में पढ़ते वक़्त शंकर के मन में क्लारिनेट पर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से ताल मेल बिठाने की इच्छा इस तरह घर कर गई थी कि स्नातक की पढ़ाई खत्म करने के बाद उन्होंने सितार वादक पीटर रो से शास्त्रीय रागों और तालों की शिक्षा ली। पीटर की मदद से ना केवल शंकर को भारत में संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के लिए वज़ीफा मिला बल्कि साथ ही मशहूर बाँसुरी वादक हरि प्रसाद चौरसिया जैसा गुरु भी।

शंकर ने कुछ ही महिने पहले यू ट्यूब पर अपना एक नया एलबम जारी किया दि श्रुति बॉक्स (The Shruti Box)। उनके इस एलबम में ग्यारह ट्रैक्स हैं  जिनमें छः शुद्ध धुनें और बाकी पाँच विभिन्न गायकों द्वारा गाए गीत व भजन हैं। शंकर द्वारा हर ट्रैक में बजाए क्लारिनेट में कुछ ना कुछ ऐसा जरूर है जो कि आपका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। पूरा एलबम सुनने के बाद मैं पिछले कुछ दिनों में उनके बजाए कई ट्रैक बारहा सुनता रहा हूँ। और मन में एक ऐसा सुकून तारी हुआ है जिसे लफ़्जों से बयाँ करना मुश्किल है।

बारिश का मौसम हमारी तरफ़ बदस्तूर ज़ारी हैं तो क्यूँ ना शुरुआत करें आज की इस महफ़िल का एक ऍसी धुन के साथ जो कि प्रेरित है राग मेघ मल्हार और मुंबई की बरसात से। शंकर ने इसका नाम दिया है 'नाइट मानसून' (Night Monsoon)। क्लारिनेट पर बजती इस मधुर धुन का सम्मोहन और भी बढ़ जाता है अमित मिश्रा द्वारा की गई तबले की संगत से।





शंकर आजकल मुंबई में रहते हैं। अमेरिका से भारत में बसने  की वज़ह से ज़िदगी में आए बदलाव से अभ्यस्त होने की कोशिश कर रहे हैं। पर संगीतिक रूप से वो मानते हैं कि भारत आने से जिंदगी ने एक अलग ही मोड़ ले लिया है। आज संगीत रचना करते समय वेस्टर्न नोटेशन्स को भूल कर वो भारतीय तालों के बारे में सोचने लगे हैं। उनकी ये सोच उनकी धुनों में स्पष्ट दिखती हैं जब हिंदुस्तानी शास्त्रीयता पश्चिमी वाद्य यंत्र के साथ बिना किसी मुश्किल के घुलती मिलती नज़र आती है। मिसाल के तौर पर इसी धुन को लीजिए जिसे शंकर ने लेमनग्रास (Lemongrass) का नाम दिया है।



क्लारिनेट जैसे वाद्य यंत्र को भारतीय संगीत के अनुरूप ढालना शंकर के लिए सहज नहीं था । कई बार सही सुर उत्पन्न करने की तकनीकी बाधाओं ने शंकर को हताश कर दिया। पर वो क्लारिनेट के आलावा कोई दूसरा वाद्य अपनाना नहीं चाहते थे। इसकी दो वज़हें थीं। एक तो क्लारिनेट से उनका प्रेम और दूसरे उसपर किए गया उनका वर्षों का अभ्यास जो दूसरे साज को अपनाने से बेकार चला जाता।

शंकर के एलबम श्रुति बॉक्स की मेरी सबसे पसंदीदा धुन है 'सोनू'। इस धुन को जब भी सुनता हूँ तो ऐसा लगता है कि जैसे कोई पुराना हिंदी गीत सुन रहा हूँ। इस धुन का नाम 'सोनू' क्यूँ है वो आप इसका वीडिओ देखकर जरूर समझ जाएँगे।




इंटरनेट पर शंकर टकर की इन धुनों की लोकप्रियता का ये आलम है कि कुछ ही महिनों में इनकी ये रचनाएँ यू ट्यूब पर श्रोताओं द्वारा लाखों बार बज चुकी हैं। शंकर, कुछ फिल्मों में ए आर रहमान और दक्षिण के अग्रणी शास्त्रीय गायकों के साथ काम कर चुके हैं। उनके एलबम की पसंदीदा धुनों की बात तो मैंने कर ली पर एलबम में उनके वाद्य की संगत में गाई गयी कुछ बंदिशों की चर्चा करेंगे अगली पोस्ट में। साथ ही ये जानना भी आपके लिए दिलचस्प रहेगा कि भारतीय मूल का ना होते हुए भी उनका नाम शंकर क्यूँ पड़ा?

 

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