आज एक शाम मेरे नाम में महफिल सजी है राग बागेश्री की। काफी थाट से उत्पन्न ये राग यूँ तो रात्रि के अंतिम प्रहर में गाया जाता है पर राजस्थान के शास्त्रीय संगीत गायक मोहम्मद अमन की वजह से इस राग से जुड़ी कुछ बंदिशों को पिछले हफ्ते से क्या सुबह क्या शाम बस समझिए लगातार ही सुन रहा हूँ।
अगर आप टीवी पर सा रे गा मा पा 2012 देख रहे हों तो मोहम्मद अमन की बेमिसाल गायिकी से आप अब तक परिचित हो चुके होंगे। पिछले हफ्ते विचित्र वीणा के जादूगर पंडित विश्व मोहन भट्ट के सम्मुख अमन ने बागेश्री की दो बंदिशों को जिस सुरीले अंदाज़ में तानों पर अपनी महारत दिखाते हुए प्रस्तुत किया कि मन बाग बाग हो गया और आँखों में इस बेजोड़ शास्त्रीय गायक की दिल लुभाने वाली गायिकी सुनकर खुशी के आँसू निकल आए।
शास्त्रीय संगीत के बारे में आम जनता यही समझती रही है कि ये बेहद उबाऊ होता है। वहीं अगर संगीत के सच्चे रसिया से पूछें तो वे बिल्कुल उलट ये कहेंगे कि संगीत सुनने का असली सुख यही है। पर शास्त्रीय संगीत की समझ रखने वालों और आम संगीत प्रेमी जनता के बीच शास्त्रीय संगीत की सोच से जुड़ी दूरी को पाटने में सा रे गा मा पा जैसे रियालटी शो ने एक अद्भुत काम किया है।
वैसे तो घंटों चलने वाले शास्त्रीय संगीत की महफिलों में डूबने के लिए सब्र और संगीत की समझ दोनों होनी चाहिए। संगीत की समझ तो रुचि होने से धीरे धीरे आ ही जाती है। पर उसके लिए वक़्त चाहिए जो आजकल के युवाओं के पास होता ही कहाँ है? संगीत के इन कार्यक्रमों में समय सीमा की वज़ह से प्रतिभागी तीन से पाँच मिनट में रागों की कठिन से कठिन लयकारी को इस क़रीने से निभाते हैं कि क्या आम क्या खास सभी मंत्रमुग्ध से हो जाते हैं। आज युवाओं में शास्त्रीय संगीत और ग़ज़लों के प्रति उदासीनता इस विधा से जुड़े लोगों के लिए चिंता का विषय है। इन हालातों में ग़ज़लों की तरह शास्त्रीय संगीत को सा रे गा मा पा का मंच मिलना एक बेहद सार्थक कदम है जिसकी जितनी भी सराहना की जाए कम है।
वैसे तो घंटों चलने वाले शास्त्रीय संगीत की महफिलों में डूबने के लिए सब्र और संगीत की समझ दोनों होनी चाहिए। संगीत की समझ तो रुचि होने से धीरे धीरे आ ही जाती है। पर उसके लिए वक़्त चाहिए जो आजकल के युवाओं के पास होता ही कहाँ है? संगीत के इन कार्यक्रमों में समय सीमा की वज़ह से प्रतिभागी तीन से पाँच मिनट में रागों की कठिन से कठिन लयकारी को इस क़रीने से निभाते हैं कि क्या आम क्या खास सभी मंत्रमुग्ध से हो जाते हैं। आज युवाओं में शास्त्रीय संगीत और ग़ज़लों के प्रति उदासीनता इस विधा से जुड़े लोगों के लिए चिंता का विषय है। इन हालातों में ग़ज़लों की तरह शास्त्रीय संगीत को सा रे गा मा पा का मंच मिलना एक बेहद सार्थक कदम है जिसकी जितनी भी सराहना की जाए कम है।
मोहम्मद अमन ने भी अपनी हर प्रस्तुति में जो तानें ली है उन्हें सुनकर दाँतो तले अँगुली दबानी पड़ती है। मोहम्मद अमन का संगीतमय परिवार पटियाला घराने से ताल्लुक रखता है। उनके दादा आमिर मोहम्मद खाँ और पिता जफ़र मोहम्मद दोनों तबला वादक हैं और AIR जयपुर से जुड़े रह चुके हैं। इस कार्यक्रम के दौरान विश्व मोहन भट्ट ने अमन के बारे में कहा कि
"अभी भले ही वो बीस वर्ष के हैं पर दस साल की आयु में जब उन्होंने अमन को पहली बार सुना तो तब भी उनकी तैयार तानें उनकी आज की गायिकी से बीस नहीं तो उन्नीस ही रही होंगी।निश्चय ही इनकी प्रतिभा से भारतीय शास्त्रीय संगीत और समृद्ध होगा।"
तो आइए सुनते हैं मोहम्मद अमन द्वारा राग बागेश्री में गाई दो बंदिशें पहले अपने गरज पकड़ लीनी बैयाँ मोरी और फिर ए री ऐ मैं कैसे घर जाऊँ..
मोहम्मद अमन को अगर आपने अब तक नहीं सुना तो अवश्य सुनें और उनके पक्ष में वोट करें। जितनी देर तक वो इस कार्यक्रम में बने रहेंगे, संगीत की इस विधा को चुनने की इच्छा रखने वालों के लिए वे एक प्रेरणास्रोत साबित होंगे।
