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शनिवार, फ़रवरी 08, 2020

वार्षिक संगीतमाला 2019 सरताज गीत : तेरी मिट्टी Teri mitti

वक़्त आ गया है एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला 2019  का सरताज बिगुल बजाने का। धुन, शब्द और गायिकी तीनों ही लिहाज़ से बाकी सारे गीतों से कहीं बेहतर रहा फिल्म केसरी का वो नग्मा जिसने इस गीतमाला की पहली सीढ़ी पर अपने आसन जमाए हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के आख़िर में हुए अफगान सेना और अंग्रेजों की सिख पलटन के बीच हुए सारागढ़ी के युद्ध पर आधारित फिल्म केसरी का गीत 'तेरी मिट्टी' हर उस सिपाही को समर्पित है जिसने अपनी मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दी है। 

आज इस सरताज गीत के तीन नायकों अर्को, मनोज मुंतशिर, बी प्राक और उनके पीछे के उन लोगों की बात करेंगे जिनकी वज़ह से ये गीत आपके सामने इस रूप में आ सका।


सबसे पहले शुरुआत करते हैं गीतकार मनोज मुंतशिर से जिनके एक दर्जन से भी ज्यादा गीत पिछले कुछ सालों से संगीतमाला का हिस्सा बनते आए हैं। मेरी उनसे बस एक ही शिकायत रहती थी कि अपनी प्रतिभा को रूमानियत भरे गीतों तक ही सीमित ना रखें। अब देखिए, जैसे ही उन्हें मौका मिला उन्होंने एक सैनिक का दिल इतनी तबियत से पढ़ लिया कि उन भावनाओं को महसूस कर ही संगीतप्रेमियों की आँखें नम हो गयीं। मनोज ने सैनिक के शौर्य की बात करते हुए चंद पक्तियों उसके गाँव,  खेत खलिहान और घर परिवार का पूरा नक्शा ही उकेर दिया।

शुक्रवार, जनवरी 24, 2020

वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 15 : मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve

वार्षिक संगीतमाला का अगला गीत है फिल्म मरुधर एक्सप्रेस से। जानता हूँ इस फिल्म का नाम भी आपने शायद ही सुना होगा। यूँ तो इसका संगीत काफी पहले रिलीज़ हुआ था पर ये फिल्म पिछले साल जुलाई में रिलीज़ हुई और एक एक्सप्रेस ट्रेन की तरह सिनेमाघरों में बिना ज्यादा देर रुके फिल्मी पर्दे से उतर गयी। 


इस फिल्म का संगीत दिया था एक समय प्रीतम के जोड़ीदार रह चुके जीत गांगुली ने। फिल्म का तो पता नहीं पर एलबम में इस गीत के दो अलग वर्जन थे। एक में उर्जा से भरपूर सोनू निगम की आवाज़ थी तो दूसरी ओर इस गीत के अपेक्षाकृत शांत रूप को असीस कौर ने निभाया था। जीत का संगीत संयोजन वहाँ भी बेहतरीन है पर असीस उसे और बेहतर गा सकती थीं ऐसा मुझे लगा। सोनू निगम को भले ही आज के दौर में गाने के ज़्यादा  मौके नहीं मिलते पर इस छोटे बजट की फिल्म के लिए भी अपना दम खम लगा कर ये गीत निभाया है।

संगीतमाला में अगर ये गीत शामिल हो सका है उसकी एक बड़ी वज़ह जीत गाँगुली की धुन और संगीत संयोजन है जिसकी वज़ह से ये गीत तुरंत मन में स्थान बना लेता है। जीत ने एक सिग्नेचर ट्यून का इस्तेमाल किया है जो मुखड़े के पहले और अंतरे में बार बार बजती है और कानों को बड़ी भली लगती है। 

गीत का मूड रूमानी है और मनोज मुंतशिर की कलम तो ऐसे गीतों पर बड़ी सहजता से चलती है। मनोज सहज भाषा में अपने गीतों में कविता का पुट देने में माहिर रहे हैं। हाँ ये जरूर है कि इस गीत का लिबास तैयार करते हुए उन्होंने उर्दू शब्दों के गोटे जरूर जड़ दिए हैं जिससे गीत की खूबसूरती बढ़ जरूर गई है। मिसाल के तौर पर जब वो प्रेमिका को कहते हैं कि उसे एक पल भी नहीं भूले हैं तो उसका विश्वास पुख्ता हो उसके लिए वो आकाशगंगा के ग्रहों की गवाही लेना नहीं भूलते और गीत में लिखते हैं शाहिद (गवाह) हैं सय्यारे (सारे ग्रह)...इक पल मैं ना भूला तुझे।

शहरे दिल की रौनक तू ही, तेरे बिन सब खाली मिर्ज़ा...
तू ही बता दे कैसे काटूँ, रात फ़िराक़ा वाली मिर्ज़ा...
मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे
शाहिद हैं. सय्यारे...इक पल मैं ना भूला तुझे
मिर्ज़ा तेरा कलमा पढ़ना, मिर्ज़ा तेरी जानिब बढ़ना
तेरे लिए ख़ुदा से लड़ना, मिर्ज़ा मेरा जीना-मरना
सिर्फ़ तेरे इशारे पे है..ओ... सिर्फ़ तेरे इशारे पे है...

चाँद वाली रातों में, तेरी शोख़ यादों में
डूब-डूब जाता है यह दिल
मोंम सा पिघलता है, बुझता ना जलता है
देख तू कभी आ के ग़ाफ़िल
मिर्ज़ा वे. सुन जा रे.
वो जो कहना है कब से मुझे....

ओ ख़ुदाया सीने में ज़ख़्म इतने सारे हैं
जितने तेरे अंबर पे तारे...
जो तेरे समंदर हैं, मेरे आँसुओं से ही
हो गये हैं खारे-खारे
मिर्ज़ा वे. .....

(ग़ाफ़िल - अनिभिज्ञ, फ़िराक़ - वियोग, जानिब - तरफ, सय्यारे - ग्रह)

सोनू ने काफी द्रुत ताल में इस गीत को निभाया है। अगर आप सोनू निगम की गायिकी के अंदाज़ के मुरीद हैं तो इस गीत को आप जरूर पसंद करेंगे।

 

वार्षिक संगीतमाला 2019 
01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया 
03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
04. तेरा साथ हो   Tera Saath Ho
05. मर्द  मराठा Mard Maratha
06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए  Bharat 
07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है  Aaj Jage Rahna
08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र  Zikra
09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए  Dil Royi Jaye
10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ  Shaabaashiyaan
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी  से.. 
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

बुधवार, जनवरी 08, 2020

वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 20 : तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua

साल के शानदार गीतों का ये सफ़र अब जा पहुँचा है शुरुआती बीस गीतों की ओर और यहाँ गीत एक बार फिर फिल्म कबीर सिंह का। कबीर सिंह के मुख्य चरित्र को लेकर हुए वाद विवाद के बाद भी ये फिल्म इस साल की सफल फिल्मों में एक रही। युवाओं ने इसे खासा पसंद किया और इसमें इसके संगीत की भी एक बड़ी भूमिका रही। संगीतमाला का पिछला गीत भी इसी फिल्म से था। इस गीत की धुन और गायिकी दोनों का दारोमदार विशाल मिश्रा ने सँभाला। पर बेख्याली और तुझे कितना चाहने लगे हम को पीछे छोड़ता ये गीत संगीतमाला में दाखिल हुआ है तो वो मनोज मुंतशिर के प्यारे बोलों की बदौलत।


जहाँ तक इस गीत के बनने की बात है तो संगीतकार विशाल मिश्रा ने इस गीत की धुन चंद मिनटों में बनाई। रातों रात गाना स्वीकृत हुआ और विशाल ने मनोज को काम पर लगा दिया। ये एक ऐसा गीत है जिसके बोलों को सुनकर आप उन दिनों की यादों में डूब सकते हैं जब पहले प्यार ने आपको अपनी गिरफ्त में लिया था। 

घर की बालकोनी हो या ट्यूशन की वो क्लास, कॉलेज का कैंटीन हो या फिर दोस्त की शादी का उत्सव...कॉलेज के हॉस्टल में पहले प्यार की कहानियाँ कुछ ऐसी ही जगहों से शुरु होती थीं। जिस लड़के में इस मर्ज के लक्षण दिखते उसे सँभालना ही मुश्किल हो जाता था। रात दिन सोते जागते ऐसे लोगों पर बस एक ही ख्याल तारी रहता था। मनोज ने भी शायद ऐसे ही वाकयों से प्रेरणा ली होगी ये कहने में कि "तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ"? 


एक रोचक तथ्य ये भी है कि पहले इस पंक्ति की जगह मनोज ने लिखा था "जो ना होना था कैसे हुआ"। वो तो गीत को सुनते वक्त टी सीरीज़ के मालिक भूषण कुमार ने सलाह दी कि इसे थोड़ा डिफाइन करो कि क्या होना था, क्या नहीं हुआ ताकि वो पंक्ति अपने आप में पूर्ण लगे और इस तरह गीत की पंच लाइन तू इतना जरूरी कैसे हुआ अस्तित्व में आई। मनोज ने गीत के तीन अंतरे लिखे और उसमें एक विशाल ने पसंद किया।

अंतरे में जो बहती कविता है वो मुझे इस गीत की जान लगती है। बतौर संगीतकार मैंने देखा है कि विशाल की शब्दों की समझ बेहतरीन है। करीब करीब सिंगल में राजशेखर के गहरे बोलों वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे पर संगीत रचने वाले भी वही थे। 

यहाँ मनोज का खूबसूरत बयाँ बारिश की बोली को समझने से ले के अस्त व्यस्त जीवन की आवारगी के बाद आते ठहराव को गीत के बोलों में  इस तरह उभारता है कि  उन दिनों के कई मंज़र स्मृतियों के आईने में उभर उठते हैं ।

हँसता रहता हूँ तुझसे मिलकर क्यूँ आजकल
बदले-बदले हैं मेरे तेवर क्यूँ आजकल
आँखें मेरी हर जगह ढूंढें तुझे बेवजह
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह
कैसे हुआ? कैसे हुआ?
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ?
कैसे हुआ? कैसे हुआ?
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ?

मैं बारिश की बोली समझता नहीं था
हवाओं से मैं यूँ उलझता नहीं था
है सीने में दिल भी, कहाँ थी मुझे ये खबर

कहीं पे हो रातें, कहीं पे सवेरे
आवारगी ही रही साथ मेरे
"ठहर जा, ठहर जा, " ये कहती है तेरी नज़र
क्या हाल हो गया है ये मेरा?
आँखें मेरी हर जगह ढूंढें तुझे बेवजह
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह?
कैसे हुआ? कैसे हुआ?

तो आइए सुनें शाहिद कपूर और कियारा आडवाणी पर फिल्माए गए इस गीत को



वार्षिक संगीतमाला में अब तक
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी  से.. 
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

रविवार, जनवरी 06, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 20 : मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा Lae Dooba

वार्षिक संगीतमाला में अब दौर आ गया है प्रथम बीस गीतों का और आज इस पड़ाव पर फिल्म अय्यारी का एक ऐसा गीत है जो आपकी ये शाम रूमानी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इस गीत को गाया है सुनिधि चौहान ने। जब श्रेया और सुनिधि अपने कैरियर के सबसे व्यस्ततम मोड़ पर थीं तो अक्सर ऐसा होता था कि श्रेया की झोली में रोमांटिक और गंभीर गीत ज्यादा आते थे और सुनिधि तेज बीट्स वाले डांस और आइटम नंबर्स में छाई रहती थीं। ऐसी छवि की वजह से उनके कैरियर में उन्हें कई अच्छी रचनाओं से हाथ धोना पड़ा। 


सुनिधि एक ऐसी गायिका हैं जो हर मूड के गीत को बखूबी निभाने की काबिलियत रखती हैं। सुनिधि ग्यारह साल की उम्र से ही हिंदी फिल्म संगीत का हिस्सा हैं। सालों बाद उन्होंने अपने होने वाले बच्चे के लिए ब्रेक लिया पर माँ बनने के बाद से फिर से काम शुरु भी कर दिया। अब बच्चे का भाग्य कहिए कि साल 2018 सुनिधि चौहान के लिए एक बेहद सफल वर्ष साबित हुआ है। उन्हें काफी अच्छे गाने मिले और उसे उन्होंने पूरी लगन से निभाया भी। यही वजह है कि इस साल उनके तीन एकल गीत इस गीतमाला का हिस्सा हैं, वो भी तब जबकि इस इंडस्ट्री में जितने एकल गीत बनते हैं उनका लगभग एक चौथाई हिस्सा ही महिला गायिकाओं के हिस्से में आता है। 
सुनिधि चौहान
सुनिधि ने अय्यारी के इस मधुर गीत को अपनी अदाएगी से और मधुर बना दिया है। जिस तरह वो गीत में बार बार लै डूबा दोहराती हैं तो दिल डूबता सा ही महसूस होता है। सुनिधि अपनी गायिकी से  ऍसा प्रभाव ला सकीं क्यूँकि रोचक कोहली और मनोज मुन्तशिर की जोड़ी ने धुन और बोलोँ काउन्हें  ऍसा गुलदान दिया जिसे उन्होंने अपनी फूल सी आवाज़ से खूबसूरत बना दिया। 

अय्यारी सेना पर आधारित फिल्म थी। छोटा सा एलबम था तीन गीतों का। इसमें सबसे ज्यादा लोकप्रियता लै  डूबा ने हासिल की। गीत की धुन इतनी सुरीली है कि रोचक कोहली को संगीत संयोजन के नाम पर गिटार के कुछ तार ही झनझनाने पड़े हैं प्रील्यूड व इंटरल्यूड में। वैसे क्या आप जानते हैं कि गिटार से इतनी अच्छी धुनें निकालने वाले रोचक कोहली  वकालत की पढ़ाई कर चुके थे  और संगीत के क्षेत्र में अपना दखल देने के पहले उन्होंने आठ साल तक रेडियो स्टेशन में नौकरी भी की थी?  मुझे लगता है कि व्यक्ति जीवन की किसी भी मोड़ पर सफलता हासिल कर सकता है बशर्ते कि वो हर समय अपने अंदर छुपे हुनर को टटोलता और माँजता रहे।

मनोज मुन्तशिर और रोचक कोहली
आखिर ले डूबा में ऐसा क्या है जो श्रोताओं को अपनी ओर खींचता है? जो लोग प्रेम में पड़े हों उन्हें अच्छी तरह पता होगा कि इसका शुरुआती दौर दिल के लिए कितनी उथल पुथल ले कर पाता है।  मनोज मुन्तशिर ने बस ऐसे ही कुछ लमहे पकड़े हैं इस गीत में जो हर किसी को इस दौर की खट्टी मीठी  याद दिलाने के लिए काफी हैं। 

तो आइए थोड़ा डूब के देखते हैं इन रूमानी भावों में मनोज, रोचक और सुनिधि के साथ..

मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा, हाँ इश्क़ तेरा लै डूबा
ऐसा क्यूँ होता है, तेरे जाने के बाद 
लगता है हाथों में, रह गए तेरे हाथ 
तू शामिल है मेरे, हँसने में रोने में 
है क्या कोई कमी, मेरे पागल होने में
मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा.... 

हर दफ़ा... वही जादू होता है, तू जो मिले 
हो.. सब संवर, जाता है, यारा अन्दर मेरे 
इक लम्हे में कितनी, यादें बन जाती हैं 
मैं इतना हँसती हूँ, आँखें भर आती हैं 
मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा.... 

फुरसतें कहाँ आँखों को है मेरी आज कल 
हो.. देखने में तुझे, सारा दिन जाए निकल 
और फिर आहिस्ता से, जब छू के तू निकले 
तेरी आँच में दिल मेरा, धीमे धीमे पिघले
मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा.... 





वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

शुक्रवार, जनवरी 04, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 22 : दिल मेरी ना सुने, दिल की मैं ना सुनूँ Dil Meri Na Sune

संगीतमाला की पिछली सीढी पर अगर आपको बंदेया ने थोड़ा उदास कर दिया था तो आज के इस बेहद मधुर गीत को सुन आपका भी दिल कुछ पलों को झूमने के लिए मजबूर हो जाएगा। इस गीत में गीतकार और गायक की वही जोड़ी है जो दो पॉयदानें पीछे थीं। जी हाँ एक बार फिर आ रहे हैं गीतकार मनोज मुन्तशिर,आतिफ असलम के साथ जीनियस फिल्म के इस गीत में। 


कुछ ही साल पहले की बात है  जब इस गीत के संगीतकार ना केवल अपने गीतों से बल्कि अपनी आवाज़ से भी आपके कानों में हर रोज़ दस्तक देते रहते थे। उन दिनों शादी बारात समारोह में आने वाला हर डीजे इनके ही गीत बजाया करता था। बतौर संगीतकार इनके चाहनेवाले तो हमेशा रहे पर इनकी गायिकी को झेल पाना श्रोताओं के एक तबके के लिए काफी मुश्किल होता था। फिर ये हुआ कि इन्होंने गाना छोड़ दिया और अचानक ही बतौर हीरो दिखने लगे। वो दौर भी धीमा पड़ा और पिछले दो सालों में संगीत और फिल्म जगत के परिदृश्य से वे एकदम से गायब ही हो गए। आप समझ तो रहे होंगे ना कि मैं किस की बात कर रहा हूँ ? जी बिल्कुल सही समझे आप। मेरा इशारा हिमेश रेशमिया की ही तरफ है।


आप जानना चाहेंगे कि इस ब्रेक के दौरान उन्होंने क्या किया ? इस साल वे कुछ सिंगल्स करते दिखे। देश विदेश में कनसर्ट किए और एक बात और हुई कि उन्होंने इसी साल दूसरी शादी भी की। अगले साल उनकी कई फिल्में आने की उम्मीद है। इस साल उन्होंने सिर्फ Genius के लिए काम किया जिसके द्वारा निर्माता अनिल शर्मा अपने बेटे उत्कर्ष शर्मा का कैरियर शुरु करने जा रहे थे। ऐसे में फिल्म का संगीत शुरुआती उत्सुकता बढ़ाने के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण था और सच पूछिए तो हिमेश  ने आपना काम बखूबी ही किया। तेरा फितूर और दिल मेरी ना सुने काफी सुने गए। तेरा फितूर का प्रील्यूड तो मुझे इस साल के रचे गए संगीत टुकड़ों में अपना विशेष  स्थान रखता है पर उसके आगे गीत की धुन में कुछ खास नवीनता नहीं दिखी।

कुछ गीत मुखड़ों तक आते आते ही आपको अपने मोहपाश में बाँध लेते हैं। दिल मेरी ना सुने, दिल की मैं ना सुनूँ एक ऐसा ही नग्मा है जिसकी धुन इतनी मधुर है कि मुखड़े तक पहुँचते ही मन झूमने लगता है। हीमेश ने इस गीत के प्रील्यूड और इंटरल्यूड में बाँसुरी का इस्तेमाल किया है। इस बाँसुरी की मोहक धुन को बजाया है वादक तेजस विनचूरकर ने। 
आतिफ असलम व  हिमेश रेशमिया
एक ज़माना था जब टीवी शो सुरक्षेत्र में हिमेश और आतिफ अपने अपने देश के गायकों की फौज की कमान सँभालते हुए एक दूसरे पर वार करना नहीं भूलते थे पर इस गीत के लिए हिमेश और आतिफ ने पहली बार साथ काम किया। हीमेश की इस प्यारी धुन को  आतिफ की आवाज़ का बेहतरीन साथ मिला और नतीजन ये गीत करोड़ों बार यू ट्यूब पर बजा। तो चलिए अब साथ चलते हैं मनोज मुन्तशिर के शब्दों के इन शब्दों के साथ दो जवाँ दिलों की आहटें टटोलने।


मैंने छानी इश्क़ की गली, बस तेरी आहटें मिली
मैंने चाहा चाहूँ ना तुझे, पर मेरी एक ना चली
इश्क़ में निगाहों को मिलती हैं बारिशें
फिर भी क्यूँ कर रहा दिल तेरी ख़्वाहिशें

दिल मेरी ना सुने, दिल की मैं ना सुनूँ
दिल मेरी ना सुने, दिल का मैं क्या करूँ

लाया कहाँ मुझको ये मोह तेरा
रातें ना अब मेरी, ना मेरा सवेरा
जान लेगा मेरी, ये इश्क़ मेरा
इश्क़ में निगाहों को ....तेरी ख़्वाहिशें
दिल मेरी.....दिल का मैं क्या करूँ

दिल तो है दिल का क्या ग़ुस्ताख है ये
डरता नहीं पागल बेबाक़ है ये
है रक़ीब ख़ुद का ही इत्तेफ़ाक है ये
इश्क़ में निगाहों को ....तेरी ख़्वाहिशें
दिल मेरी.....दिल का मैं क्या करूँ


वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

बुधवार, जनवरी 02, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 24 : वो हवा हो गए देखते देखते Dekhte Dekhte

संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर विराजमान है संगीतकार रोचक कोहली, गीतकार मनोज मुन्तशिर और गायक आतिफ असलम की तिकड़ी "बत्ती गुल मीटर चालू" के इस गीत के साथ, जिसका मुखड़ा नुसरत फतेह अली खाँ की कव्वाली से प्रेरित है। लगता है मेरे रश्के क़मर के पिछले साल हिट हो जाने के बाद नुसरत साहब की कव्वालियों को फिर से बनाने की माँग, निर्माताओं ने बढ़ा दी है। यही वजह कि इस साल फिल्म Raid  में सानू इक पल चैन ना आवे , फन्ने खान में ये जो हल्का हल्का सुरूर है और सिम्बा में तेरे बिन नहीं लगदा दिल ढौलना की गूँज है।

मैं पुराने गीतों के फिर बने वर्जन को मूल गीतों की अपेक्षा कम अहमियत देता हूँ क्यूँकि फिल्म संगीत में चली ये प्रवृति कलाकारों की रचनात्मकता को कम करती है। ये सही है कि एक जमे  जमाए गीत को फिर से recreate कर लोकप्रियता हासिल करना आसान नहीं क्यूँकि सुनने वाला उसकी तुलना तुरंत पुराने गीत से करने लगता है पर ये भी उतना ही सही है कि ऐसे गीत पुराने गीतों के लोकप्रिय मुखड़ों का इस्तेमाल कर लोगों के ज़ेहन में जल्दी बैठ जाते हैं। बहरहाल इसके बावजूद भी अगर ये गीत इस गीतमाला में है तो उसकी वजह इसके सहज पर शायराना बोल हैं। वैसे तो रोचक और आतिफ ने इस गीत में अपनी अपनी भूमिकाएँ निभायी हैं पर इसी कारण से मैं इस गीत का असली नायक मनोज मुन्तशिर को मानता हूँ।




मनोज मुन्तशिर एक शाम मेरे नाम की संगीतमालाओं के लिए कोई नए नाम नहीं हैं। पिछले चार पाँच सालों में उनके दर्जन भर गीत मेरी संगीतमाला में शामिल रहे हैं। मनोज की खासियत है कि वो रूमानियत को सहज शब्दों की शायराना चाशनी में इस तरह घोलते हैं कि बात सुनने वाले तक तुरंत पहुँच जाती है। यही वजह है कि उनकी लोकप्रियता युवाओं में इतनी ज्यादा है। तेरे संग यारा, फिर कभी, ले चला, तेरी गलियाँ जैसे उनके दर्जनों गीतों की लोकप्रियता उनके शब्दों की मुलायमियत में छिपी है। मैंने ये भी देखा है कि जब जब इस ढर्रे से निकल कर भी उन्होंने लिखा है, कमाल ही किया है। मैं तुझसे प्यार नहीं करती, बड़े नटखट है तोरे कँगना, माया ठगनी, है जरूरी जैसे गीतों को मैं इसी श्रेणी का मानता हूँ। आशा है आने वाले सालों में मनोज को कुछ ऐसी पटकथाएँ भी मिलेंगी जहाँ उनके शब्दों को विविधता लिए गहरे और पेचीदा मनोभावों में डूबने का मौका मिले।

मनोज मुन्तशिर और रोचक कोहली
तो लौटें इस गीत पर। आपको याद होगा कि पिछले साल भी नुसरत साहब की कव्वाली मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र को भी मनोज ने अपने शब्दों मे ढालकर खासी लोकप्रियता अर्जित की थी। अगर आप यहाँ भी नुसरत साहब की मूल कव्वाली सुनने के बाद ये गीत सुनेंगे तो हुक लाइन को छोड़ देने से लगेगा कि आप एक नया ही गीत सुन रहे हैं। 

मनोज मुन्तशिर का  कहना है कि कई बार सीधे सहज शब्दों की ताकत का सही इस्तेमाल नहीं हो पाता और मैंने इस में यही करने की कोशिश की है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुझे इस गीत की इन पंक्तियाँ में लगता है कि आते जाते थे जो साँस बन के कभी.. वो हवा हो गए देखते देखते। वाह भाई साँसों को हवा हो जाने के मुहावरे से इस खूबसूरती से जोड़ने के लिए वो दिल से दाद के काबिल हैं। 

रज्ज के रुलाया, रज्ज के हंसाया
मैंने दिल खो के इश्क़ कमाया
माँगा जो उसने एक सितारा
हमने ज़मीं पे चाँद बुलाया

जो आँखों से.. हाय
वो जो आँखों से इक पल ना ओझल हुए
लापता हो गए देखते देखते
सोचता हूँ..सोचता हूँ कि वो कितने मासूम थे
क्या से क्या हो गए देखते देखते

वो जो कहते थे बिछड़ेंगे ना हम कभी
अलविदा हो गए देखते देखते
सोचता हूँ..

एक मैं एक वो, और शामें कई
चाँद रोशन थे तब आसमां में कई
यारियों का वो दरिया उतर भी गया
और हाथों में बस रेत ही रह गयी

कोई पूछे के.. हाय
कोई पूछे के हमसे खता क्या हुई
क्यूँ खफ़ा हो गए देखते देखते

आते जाते थे जो साँस बन के कभी
वो हवा हो गए देखते देखते
वो हवा हो गए.. हाय..ओह हो हो..

वो हवा हो गए देखते देखते
अलविदा हो गए देखते देखते
लापता हो गए देखते देखते
क्या से क्या हो गए देखते देखते

जीने मरने की हम थे वजह और हम ही
बेवजह हो गए देखते देखते..
सोचता हूँ..

रोचक कोहली की गिटार पर महारत जग जाहिर है। पिछले साल आप उनका कमाल लखनऊ सेंट्रल के गीत मीर ए कारवाँ में सुन ही चुके हैं। इस गीत का प्रील्यूड भी उन्होंने गिटार पर ही रचा है। ताल वाद्यों की बीट्स पूरे गीतों के साथ चलती है तो आइए सुनते हैं ये गीत आतिफ असलम की आवाज़ में। इस नग्मे को फिल्माया गया है शाहिद और श्रद्धा कपूर की जोड़ी पर।




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

शनिवार, जनवरी 27, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान #16 : मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र Mere Rashke Qamar

साल के पच्चीस बेहतरीन गीतों की फेरहिस्त में आज चर्चा उस गीत की जिसे जनता जनार्दन ने पिछले साल हाथों हाथ लिया था । गीत की धुन तो इतनी लोकप्रिय हुई कि नक्कालों ने इसका इस्तेमाल कर जो भी  पैरोडी बनाई  वो भी हिट हो गयी। जी हाँ, बात हो रही है रश्के क़मर की जिसे मूलरूप में कव्वाली के लिए नुसरत फतेह अली खाँ ने संगीतबद्ध किया और गाया था। इसे लिखा था फ़ना बुलंदशहरी ने जिनके पुरखे भले भारत से रहे हों पर उन्होंने अपना काव्य पाकिस्तान में रचा। 

बहुत से लोग इस गीत के मुखड़े का अलग मतलब लगा लेते हैं क्यूँकि "क़मर" और "रश्क" जैसे शब्द उनकी शब्दावली के बाहर के हैं। उनकी सुविधा के लिए बता दूँ कि शायर ने मुखड़े में कहना चाहा है कि तुम्हारी खूबसरती तो ऐसी हैं कि चाँद तक को तुम्हें देख कर जलन होती है। ऐसे में तुमसे नज़रें क्या मिलीं  दिल बाग बाग हो गया। तुम्हें देख के ऐसा लगा मानो आसमान में बिजली सी चमक गयी हो। अब तो जिगर जल सा उठा है पर इस अगन का मज़ा ही कुछ और है ।



मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया 
बर्क़ सी गिर गयी काम ही कर गयी आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया 
जाम में घोल कर हुस्न की मस्तियाँ चाँदनी मुस्कुराई मज़ा आ गया 

चाँद के साए में ऐ मेरे साकिया तू ने ऐसी पिलाई मज़ा आ गया 
नशा शीशे में अंगड़ाई लेने लगा बज़्म ए रिन्दाँ में सागर खनकने लगे 
मैकदे पे बरसने लगी मस्तियाँ जब घटा गिर के छाई मज़ा आ गया 
बेहिजाबाँ जो वो सामने आ गए 
और जवानी जवानी से टकरा गयी  
आँख उनकी लड़ी यूँ मेरी आँख से 
देख कर ये लड़ाई मज़ा आ गया मेरे 
मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

आँख में थी हया हर मुलाक़ात पर 
सुर्ख आरिज़ हुए वस्ल की बात पर  
उसने शर्मा के मेरे सवालात पे  
ऐसे गर्दन झुकाई मज़ा आ गया 
मेरे रश्के क़मर .....मज़ा आ गया  
बर्क़ सी गिर गयी ...मज़ा आ गया 

शेख साहिब का ईमान बिक ही गया 
देख कर हुस्न-ए-साक़ी पिघल ही गया 
आज से पहले ये कितने मगरुर थे 
लुट गयी पारसाई मज़ा आ गया 
ऐ फ़ना शुक्र है आज बाद-ए-फ़ना 
उसने रख ली मेरे प्यार की आबरू 
अपने हाथों से उसने मेरी क़ब्र पर 
चादर-ए-गुल चढ़ाई मज़ा आ गया 
मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

(शब्दार्थ :   रश्क- ईर्ष्या, बर्क़ - बिजली, क़मर - चाँद, रिंद - शराब पीने वाले,  बेहिज़ाब  - बिना किसी पर्दे के, आरिज़ - गाल, मगरुर - अहंकार, वस्ल - मिलन, फ़ना -मृत्यु )

नुसरत साहब ने इस कव्वाली में अपनी हरक़तें डालकर इसके शब्दों को एक अलग ही मुकाम पे पहुँचा दिया था। इसलिए अगर आप नुसरत प्रेमी हैं तो मैं चाहूँगा कि इस कव्वाली पर आधारित गीत को सुनने के पहले मूल रचना को अवश्य सुनें। फ़ना साहब की शायरी में जो शोखी और रसीलापन है वो जरूर आपके मन में आनंद जगा जाएगा..


फिल्म  बादशाहो के निर्माता भूषण कुमार ने नुसरत की ये गाई ग़ज़ल जब सुनी थी तभी से इसे गीत की शक्ल में किसी फिल्म में डालने का विचार उनके मन में पनपने लगा था। निर्देशक मिलन लूथरा ने जब उन्हें फिल्म में नायक नायिका के पहली बार आमने सामने होने की परिस्थिति बताई तो भूषण को लगा कि  नुसरत साहब की उस कव्वाली को इस्तेमाल करने की ये सही जगह होगी। मिलन ख़ुद नुसरत प्रेमी रहे हैं। मजे की बात ये है कि उनकी पिछली फिल्म कच्चे धागे का संगीत निर्देशन भी नुसरत साहब ने ही किया था और उस फिल्म में भी अजय देवगन मौज़ूद थे। यही वज़ह रही कि भूषण जी का विचार तुरंत स्वीकृत हुआ।

गीत के बोलों को आज के दौर के हिसाब से परिवर्तित करने का दायित्व गीतकार मनोज मुन्तशिर को सौंपा गया। संगीत की बागडोर सँभाली इस साल सब से तेजी से उभरते संगीतकार तनिष्क बागची ने। अगर आपने नुसरत साहब की कव्वाली सुनी होगी तो पाएँगे कि मूल धुन से तनिष्क बागची ने ज़रा भी छेड़ छाड़ नहीं की है। कव्वाली में हारमोनियम के साथ तालियों के स्वाभाविक मेल को उन्होंने यहाँ भी बरक़रार रखा है। जोड़ा है मेंडोलिन को  जो कि इंटरल्यूड्स में  बजता सुनाई देता है। कव्वाली और गीत के बोलों के मिलान आप समझ जाएँगे कि मुखड़े और बर्क़ सी गिर गई वाले अंतरे को छोड़ बाकी के बोल मनोज मुन्तशिर के हैं।

ये अलग बात है कि मनोज अक़्सर कहते रहे हैं कि पुराने गीतों को नया करने का ये चलन उन्हें पसंद नहीं है क्यूँकि इसमें गीतकार और संगीतकार को श्रेय नहीं मिल पाता। बात सही भी है अगर इस गीत को कोई याद करेगा  तो वो सबसे पहले नुसरत और फ़ना का ही नाम लेगा। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसे गाया है राहत फतेह अली खाँ साहब ने

ऐसे लहरा के तू रूबरू आ गयी
धड़कने बेतहाशा तड़पने लगीं
तीर ऐसा लगा दर्द ऐसा जगा
चोट दिल पे वो खायी मज़ा आ गया

मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र
जब नज़र से मिलायी मज़ा आ गया
जोश ही जोश में मेरी आगोश में
आके तू जो समायी मज़ा आ गया
मेरे रश्के क़मर .... मज़ा आ गया

रेत ही रेत थी मेरे दिल में भरी 
प्यास ही प्यास थी ज़िन्दगी ये मेरी
आज सेहराओं में इश्क़ के गाँव में
बारिशें घिर के आईँ मज़ा आ गया
मेरे रश्के क़मर  तूने पहली नज़र ...

रांझा हो गए हम फ़ना हो गए ऐसे तू मुस्कुरायी मज़ा आ गया
मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र जब नज़र से मिलायी मज़ा आ गया
बर्क़ सी गिर गयी काम ही कर गयी  आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया



चलते चलते ये भी बता दूँ कि आज इस गीत की लोकप्रियता का ये आलम है कि मुखड़े में हास्यास्पद तब्दीलियाँ करने के बावज़ूद मेरे रश्क़ ए क़मर तूने आलू मटर इतना अच्छा बनाया मजा आ गया जैसी पंक्तियाँ भी उतने ही चाव से सुनी जा रही हैं।

वार्षिक संगीतमाला 2017

सोमवार, जनवरी 22, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान #18 : कि चोरी चोरी चुपके से चुपके से रोना है ज़रूरी Hai Zaroori

मनोज मुन्तशिर और अमाल मलिक ये दो ऐसे कलाकार हैं जिनके लिखे और रचे गीत युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं। मनोज इस साल अपने हॉफ गर्लफ्रेंड के गीत मैं फिर भी तुम को चाहूँगा के लिए काफी उत्साहित दिखे और ये गीत लोकप्रिय भी हुआ। पर उस गीत से कहीं अच्छी मुझे उसके पीछे की नज़्म लगी जिसे मनोज ने 2001 में लिखा था। वहीं अमल मलिक इस साल बद्रीनाथ की दुल्हनिया में रचे अपने गीतों की सफलता पर बेहद खुश थे हालांकि कुल मिलाकर मुझे उस फिल्म का संगीत औसत ही लगा।  



पिछले साल के सारे गीतों को सुनते हुए मुझे इस जोड़ी की कृतियों में सबसे ज्यादा प्रभावित किया नूर के इस गाने ने। ये गाना इस साल ज्यादा बजा भी नहीं पर फिर भी एक बार सुनते ही इसके बोल और संगीत रचना दिल को अंदर तक छू गयी और यही वज़ह है कि साल के पच्चीस शानदार गीतों में ये नग्मा अपनी जगह बना सका है।

नूर एक ऐसे पत्रकार की कहानी थी जो अपने जीवन की परेशानियों से हताश है। अपने लिए समय की कमी, बढ़ते वजन की चिंता, मनचाहा साथी ना मिल पाने का ग़म और  बॉस की उसके काम से नाराजगी उसकी ज़िंदगी को बेढंगा किए जा रहा था। फिर परिस्थितियों ने ऐसी करवट ली कि नौकरी और निजी ज़िन्दगी में सब कुछ सही सा लगने लगा। पर उसने जिस शख़्स में अपनी भविष्य की खुशियाँ देखीं वही उसका विश्वास तोड़ कर चला गया। 

मनोज मुन्तशिर को नूर के मानसिक हालातों को गीत में शब्द देने थे और ये काम उन्होंने बखूबी किया। हम कितने भी ज़हीन क्यूँ ना हों किसी का असली चेहरा हमेशा नहीं पढ़ पाते। गलतियाँ हो ही जाती हैं और भावनात्मक ठेस से हम टूट जाते हैं। पर ज़िदगी का मजबूती से सामना करने के लिए टूटना भी जरूरी है। आँसुओं को हमेशा कमजोरी की निशानी नहीं समझना चाहिए। ये बहते हैं तो इनके साथ हमारी मुलायमियत भी बह जाती है। रह जाता है तो हमारा लक्ष्य को बेंधने का संकल्प  इसलिए मनोज लिखते हैं 

कभी कभी लगे यही जो मिलना था मिला वही 
बिखरना भी दुआओं का है ज़रूरी 
किसी के वास्ते कहाँ ज़मीन पे आया आसमान 
ये दूरियाँ रही बस दूरियाँ 
कि चोरी चोरी चुपके से चुपके से रोना है ज़रूरी 
कि पानी पानी अँखियों का अँखियों का होना है ज़रूरी.. 

अमाल मलिक का संगीत इस शब्द प्रधान इस गीत के पीछ धीरे धीरे बहता है। इंटरल्यूडस में गिटार और फिर वायलिन की धुन गीत की मायूसी में गुथी नज़र आती है। पियानों की हल्की धनक भी गीत के साथ चलती है। गीत का अंत सेक्सोफोन और पियानो की जुगलबंदी से होता है।

गीत की मनोभावनाओं को प्रकृति कक्कर अपनी आवाज़ से उभारने में कामयाब रही हैं। मेरी समझ से टुटिया दिल के बाद पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड के लिए गाया सबसे बेहतरीन गीत है। अंतरों में भी मनोज की कलम उतनी ही मजबूती से चलती है। पागल दिल की आसमानी बातों का जिक्र अपना सा लगता है इसीलिए भाता है। आशा  है इस गीत के साथ आप सब भी अपने दिल के तारों को जोड़ पाएँगे।


कभी कभी लगे यही 
जो होना था हुआ वही 
बदलना भी हवाओं का है ज़रूरी

कभी कभी लगे यही जो मिलना था मिला वही 
बिखरना भी दुआओं का है ज़रूरी 
किसी के वास्ते कहाँ ज़मीन पे आया आसमान 
ये दूरियाँ रही बस दूरियाँ 
कि चोरी चोरी चुपके से चुपके से रोना है ज़रूरी 
कि पानी पानी अंखियों का अंखियों का होना है ज़रूरी.. 
रह गयी आरज़ू एक अधूरी के 
कि कभी कभी ऐसा भी, ऐसा भी होना है ज़रूरी

नासमझ थे हम जो ये भी ना समझे 
वक़्त आने पर सब बदलते हैं 
मंजिलें क्या हैं और रास्ते क्या हैं 
लोग पल भर में यहाँ रब बदलते हैं 
किसी के वास्ते कहाँ किनारे आये कश्तियाँ 
ये दूरियाँ रही बस दूरियाँ 
कि चोरी चोरी  है ज़रूरी 

मुस्कुराने के कितने बहाने थे 
फिर भी आँखों ने क्यूँ नमी चुन ली 
दिल की बातें तो सब आसमानी थी 
हम ही पागल थे इस दिल की जो सुन ली 
किसी के वास्ते कहाँ मिली है रात से सुबह 
कि दूरियाँ रही बस दूरियाँ 
कि चोरी चोरी .... है ज़रूरी

वार्षिक संगीतमाला 2017

मंगलवार, जनवरी 31, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 15 : आख़िर कैसे बना "तेरे संग यारा..." ? Tere Sang Yara

वार्षिक संगीतमाला की पन्द्रहवी पायदान पर गाना वो जो पिछले साल इतना लोकप्रिय हुआ कि अब तक इंटरनेट पर नौ करोड़ बार सुना जा चुका है। ज़ाहिर है आप ने भी इसे कई बार सुना होगा। पर क्या आप जानते हैं कि ये गाना अपने इस स्वरूप में कैसे आया यानि इस गीत के पीछे की कहानी क्या है? 

पर ये कहानी जानने के पहले ये तो जान लीजिए कि इस गीत को संगीतबद्ध किया अर्को प्रावो मुखर्जी ने और बोल लिखे एक बार फिर से मनोज मुन्तशिर ने। अर्को पहली बार 2014 में अल्लाह वारियाँ और दिलदारा जैसे गीतों की वज़ह से वार्षिक संगीतमाला का हिस्सा बने थे। तभी मैंने आपको बताया था कि अर्को शैक्षिक योग्यता के हिसाब से एक डॉक्टर हैं पर संगीत के प्रति उनका प्रेम उन्हें सिटी आफ जॉय यानि कोलकाता से मुंबई की मायानगरी में खींच लाया है। मैंने तब भी लिखा था कि अर्कों की धुनें कमाल की होती हैं पर ख़ुद अपने गीत लिखने का मोह उनकी कमज़ोर हिंदी की वज़ह से वो प्रभाव नहीं छोड़ पाता। पर इस गीत में मनोज मुन्तशिर के साथ ने उनकी उस कमी को दूर कर दिया है।



अर्को ने ये धुन और मुखड़ा भी पहले से बना रखा था और जी म्यूजिक के अनुराग बेदी ने उसे सुना था। जब फिल्म के सारे गीत लिखने की जिम्मेदारी मनोज मुन्तशिर को मिली तो उनसे अनुराग ने कहा कि मुझे  एक ऐसा गीत चाहिए जो फिल्म के लिए एक इंजन का काम करे यानि जो तुरंत ही हिट हो जाए और अर्को के पास ऐसी ही एक धुन है। 

अब एक छोटी सी दिक्कत ये थी कि अर्को ने उस गीत में विरह का बीज बोया हुआ था जबकि फिल्म में गीत द्वारा रुस्तम की प्रेम कहानी को आगे बढ़ाना था। तब गीत के शुरुआती बोल कुछ यूँ थे तेरे बिन यारा बेरंग बहारा है रात बेगानी ना नींद गवारा। मनोज ने इस मुखड़े में खुशी का रंग कुछ यूँ भरा तेरे संग यारा, खुशरंग बहारा..तू रात दीवानी, मैं ज़र्द सितारा। एक बार मुखड़ा बना तो अर्को के साथ मिलकर पूरा गीत बनाने में ज्यादा समय नहीं लगा।

अर्को  व मनोज मुन्तशिर

गीत तो बन गया पर मनोज इस बात के लिए सशंकित थे कि शायद फिल्म के निर्माता निर्देशक ज़र्द जैसे शब्द के लिए राजी ना हों क्यूँकि सामान्य सोच यही होती है कि गीत में कठिन शब्दों का प्रयोग ना हो। पर अर्को अड़ गए कि नहीं मुझे इस शब्द के बिना गीत ही नहीं बनाना है। गीत बनने के बाद जब निर्माता नीरज पांडे के सामने प्रस्तुत हुआ तो अर्को ने कहा कि आप लोगों को और कुछ बदलना है तो बदल लीजिए पर  ज़र्द सितारे से छेड़छाड़ मत कीजिए।  ऐसा कुछ हुआ नहीं और नीरज को मुखड़ा और गीत दोनों पसंद आ गए।

बहरहाल इससे ये तो पता चलता है कि फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी भाषा और नए शब्दों के प्रयोग के प्रति कितनी हिचकिचाहट है। वैसे मनोज मुन्तशिर ने जिस परिपेक्ष्य में इस शब्द का प्रयोग किया वो मुझे उतना नहीं जँचा। ज़र्द का शाब्दिक अर्थ होता है पीला और सामान्य बोलचाल में इस शब्द का प्रयोग नकारात्मक भावना में ही होता है। जैसे भय से चेहरा ज़र्द पड़ जाना यानि पीला पड़ जाना। पर अगर आप गीत में देखें तो मनोज प्रेमी युगल के लिए दीवानी रात व पीले तारे जैसे बिंब का प्रयोग कर रहे हैं। मनोज की सोच शायद पीले चमकते तारे की रही होगी जो मेरी समझ से ज़र्द के लिए उपयुक्त नहीं लगती। बेहतर तो भाषाविद ही बताएँगे।

इस गीत को गाया है आतिफ़ असलम ने। आतिफ की सशक्त आवाज़, पियानो के इर्द गिर्द अन्य वाद्यों का बेहतरीन संगीत संयोजन इस गीत की जान है। इंटरल्यूड्स की विविधताएँ भी शब्दों के साथ मन को रूमानी मूड में बहा ले जाती हैं। मेरी इस गीत की सबसे प्रिय पंक्ति गीत के अंत में आती है, जी हाँ ठीक समझे आप मैं बहता मुसाफ़िर. तू ठहरा किनारा




तेरे संग यारा, खुशरंग बहारा
तू रात दीवानी, मैं ज़र्द सितारा

ओ करम खुदाया है, तुझे मुझसे मिलाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है

ओ तेरे संग यारा.....ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा ख़ुश रंग बहारा
मैं तेरा हो जाऊँ जो तू कर दे इशारा

कहीं किसी भी गली में जाऊँ मैं, तेरी खुशबू से टकराऊँ मैं
हर रात जो आता है मुझे, वो ख्वाब तू..
तेरा मेरा मिलना दस्तूर है, तेरे होने से मुझमें नूर है
मैं हूँ सूना सा इक आसमान, महताब तू..
ओ करम खुदाया है, तुझे मैंने जो पाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है

ओ तेरे संग यारा ...मैं ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा ख़ुश रंग बहारा
तेरे बिन अब तो ना जीना गवारा

मैंने छोड़े हैं बाकी सारे रास्ते, बस आया हूँ तेरे पास रे
मेरी आँखों में तेरा नाम है, पहचान ले..
सब कुछ मेरे लिए तेरे बाद है, सौ बातों की इक बात है
मैं न जाऊँगा कभी तुझे छोड़ के, ये जान ले
ओ करम खुदाया है, तेरा प्यार जो पाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है

ओ तेरे संग यारा.....ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा, ख़ुश रंग बहारा
मैं बहता मुसाफ़िर. तू ठहरा किनारा





वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक

शनिवार, जनवरी 28, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 16 : तुझमें खोया रहूँ मैं, मुझ में खोयी रहे तू ..ख़ुद को ढूँढ लेंगे फिर कभी Phir Kabhie

MS Dhoni The untold story का संगीत पिछले साल के कुछ लोकप्रिय एलबमों में रहा। फिल्म के संगीतकार अमाल मलिक के लिए ये एक बड़ी उपलब्धि रही क्यूँकि ये उनका बतौर संगीतकार पहला एकल एलबम था। वैसे अगर अमाल मलिक से आप अब तक परिचित नहीं हैं तो ये बता दूँ कि वे संगीतकार सरदार मलिक के पोते, अनु मलिक के भतीजे, व डबू मलिक के पुत्र हैं। अब जिस घर में संगीत संयोजन से जुड़े इतने महारथी एक साथ हों तो उस घर के तो उस घर के चिराग संगीतं दक्ष तो होंगे ही। 

अमाल पियानो पर तो सिद्धस्थ हैं ही, साथ ही उन्होंने पश्चिमी शास्त्रीय संगीत की विधिवत पढ़ाई भी की है। 2014 में जय हो के गीत से अपनी बॉलीवुड की पारी शुरु करने वाले अमाल ने इस साल MS Dhoni The untold story के गीतों के आलावा  अज़हर में बोल दो ना ज़रातू ही ना जाने, सरबजीत में सलामत और सनम रे में ग़ज़ब का ये दिन जैसे मधुर गीत दिए जिस श्रोताओं ने खूब सराहा।


जहाँ तक धोनी के गीतों की बात है मुझे फिर कभी और बेसब्रियाँ सबसे ज्यादा अच्छे लगे जबकि इस फिल्म का गीत कौन तुझे आम जनता में सबसे ज्यादा सुना गया। बहरहाल अमाल को इस फिल्म के गीतों को बनाने के लिए धोनी की जीवन यात्रा को आत्मसात करना पड़ा। इस प्रक्रिया में उन्हें डेढ़ साल का वक़्त लगा। इस दौरान सत्ताइस धुनें निर्देशक नीरज पांडे के समक्ष रखी गयीं जिनमें छः को अंत में चुना गया। सूरज डूबा, मैं हूँ  हीरो और नैना जैसे चंद गीतों से जाने जाने वाले अरमान के लिए कहानी के साथ गीतों को रचना एक बड़ी चुनौती था जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक संपादित किया।

धोनी के गीतों को सुनते समय फिर कभी के बोल और संगीत और अरिजीत की गायिकी पहली बार सुनते ही मेरे दिमाग में चढ़ से गए थे और यही वज़ह है कि ये गीत वार्षिक संगीतमाला में अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा है।

गीत के बोल रचने में अमाल मलिक का  साथ दिया मनोज मुन्तशिर ने। गीत का पहला मजबूत पक्ष है इस गीत की गिटार पर आधारित कर्णप्रिय शुरुआती धुन जो पहले बीस सेकेंड्स में ही आपको एक अच्छे मूड में ले आती है और फिर तो मनोज के शब्द प्यार में डूबे हुए दिल के जज़्बातों की कहानी सहज शब्दों में व्यक्त कर देते हैं। प्रेम  में एक दूसरे के व्यक्तित्व के नए पहलुओं को परखते और सराहते कभी कभी हम ख़ुद को भूल से जाते हैं। इसी बात को मनोज गीत के मुखड़े में यूँ व्यक्त करते हैं

ये लम्हा जो ठहरा है, मेरा है या तेरा है
ये लम्हा मैं जी लूँ ज़रा

तुझमें खोया रहूँ मैं, मुझ में खोयी रहे तू
ख़ुद को ढूँढ लेंगे फिर कभी
तुझसे मिलता रहूँ मैं, मुझसे मिलती रहे तू
ख़ुद से हम मिलेंगे फिर कभी
हाँ फिर कभी

क्यूँ बेवजह गुनगुनाएँ, क्यूँ बेवजह मुस्कुराएँ
पलकें चमकने लगी है, अब ख़्वाब कैसे छुपायें
बहकी सी बातें कर लें, हँस हँस के आँखें भर लें
ये बेहोशियाँ फिर कहाँ..
तुझमें खोया रहूँ मैं...हाँ फिर कभी

दिल पे तरस आ रहा है, पागल कहीं हो ना जाएँ
वो भी मैं सुनने लगा हूँ, जो तुम कभी कह ना पाए
ये सुबह फिर आएगी, ये शामें फिर आएँगी
ये नजदीकियाँ फिर कहाँ...
तुझमें खोया रहूँ मैं...हाँ फिर कभी

वहीं मनोज का ये कहना पलकें चमकने लगी है, अब ख़्वाब कैसे छुपायें अंतरों की सबसे बेहतर पंक्तियों में लगता है। अंतरे में अमाल का संगीत संयोजन प्रीतम की याद दिलाता है और ये स्वाभाविक भी हैं क्यूँकि अमाल प्रीतम के तीन वर्षों तक सहायक रह चुके हैं। अरिजीत ने  यहाँ भले  कुछ नया कुछ नहीं किया हो पर  हमेशा की तरह उनकी गायिकी सधी हुई है । गीत का फिल्मांकन सुशांत सिंह राजपूत के साथ दिशा पटानी पर हुआ। दिशा अपने हाव भावों और खूबसूरती से गाने के प्रभाव को बढ़ाती नज़र आती हैं।



वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक

 

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