वार्षिक संगीतमाला में अब दौर आ गया है प्रथम बीस गीतों का और आज इस पड़ाव पर फिल्म अय्यारी का एक ऐसा गीत है जो आपकी ये शाम रूमानी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इस गीत को गाया है सुनिधि चौहान ने। जब श्रेया और सुनिधि अपने कैरियर के सबसे व्यस्ततम मोड़ पर थीं तो अक्सर ऐसा होता था कि श्रेया की झोली में रोमांटिक और गंभीर गीत ज्यादा आते थे और सुनिधि तेज बीट्स वाले डांस और आइटम नंबर्स में छाई रहती थीं। ऐसी छवि की वजह से उनके कैरियर में उन्हें कई अच्छी रचनाओं से हाथ धोना पड़ा।

सुनिधि एक ऐसी गायिका हैं जो हर मूड के गीत को बखूबी निभाने की काबिलियत रखती हैं। सुनिधि ग्यारह साल की उम्र से ही हिंदी फिल्म संगीत का हिस्सा हैं। सालों बाद उन्होंने अपने होने वाले बच्चे के लिए ब्रेक लिया पर माँ बनने के बाद से फिर से काम शुरु भी कर दिया। अब बच्चे का भाग्य कहिए कि साल 2018 सुनिधि चौहान के लिए एक बेहद सफल वर्ष साबित हुआ है। उन्हें काफी अच्छे गाने मिले और उसे उन्होंने पूरी लगन से निभाया भी। यही वजह है कि इस साल उनके तीन एकल गीत इस गीतमाला का हिस्सा हैं, वो भी तब जबकि इस इंडस्ट्री में जितने एकल गीत बनते हैं उनका लगभग एक चौथाई हिस्सा ही महिला गायिकाओं के हिस्से में आता है।
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सुनिधि चौहान |
सुनिधि ने अय्यारी के इस मधुर गीत को अपनी अदाएगी से और मधुर बना दिया है। जिस तरह वो गीत में बार बार लै डूबा दोहराती हैं तो दिल डूबता सा ही महसूस होता है। सुनिधि अपनी गायिकी से ऍसा प्रभाव ला सकीं क्यूँकि रोचक कोहली और मनोज मुन्तशिर की जोड़ी ने धुन और बोलोँ काउन्हें ऍसा गुलदान दिया जिसे उन्होंने अपनी फूल सी आवाज़ से खूबसूरत बना दिया।
अय्यारी सेना पर आधारित फिल्म थी। छोटा सा एलबम था तीन गीतों का। इसमें सबसे ज्यादा लोकप्रियता लै डूबा ने हासिल की। गीत की धुन इतनी सुरीली है कि रोचक कोहली को संगीत संयोजन के नाम पर गिटार के कुछ तार ही झनझनाने पड़े हैं प्रील्यूड व इंटरल्यूड में। वैसे क्या आप जानते हैं कि गिटार से इतनी अच्छी धुनें निकालने वाले रोचक कोहली वकालत की पढ़ाई कर चुके थे और संगीत के क्षेत्र में अपना दखल देने के पहले उन्होंने आठ साल तक रेडियो स्टेशन में नौकरी भी की थी? मुझे लगता है कि व्यक्ति जीवन की किसी भी मोड़ पर सफलता हासिल कर सकता है बशर्ते कि वो हर समय अपने अंदर छुपे हुनर को टटोलता और माँजता रहे।
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मनोज मुन्तशिर और रोचक कोहली |
आखिर ले डूबा में ऐसा क्या है जो श्रोताओं को अपनी ओर खींचता है? जो लोग प्रेम में पड़े हों उन्हें अच्छी तरह पता होगा कि इसका शुरुआती दौर दिल के लिए कितनी उथल पुथल ले कर पाता है। मनोज मुन्तशिर ने बस ऐसे ही कुछ लमहे पकड़े हैं इस गीत में जो हर किसी को इस दौर की खट्टी मीठी याद दिलाने के लिए काफी हैं।
तो आइए थोड़ा डूब के देखते हैं इन रूमानी भावों में मनोज, रोचक और सुनिधि के साथ..
मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा, हाँ इश्क़ तेरा लै डूबा
ऐसा क्यूँ होता है, तेरे जाने के बाद
लगता है हाथों में, रह गए तेरे हाथ
तू शामिल है मेरे, हँसने में रोने में
है क्या कोई कमी, मेरे पागल होने में
मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा....
हर दफ़ा... वही जादू होता है, तू जो मिले
हो.. सब संवर, जाता है, यारा अन्दर मेरे
इक लम्हे में कितनी, यादें बन जाती हैं
मैं इतना हँसती हूँ, आँखें भर आती हैं
मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा....
फुरसतें कहाँ आँखों को है मेरी आज कल
हो.. देखने में तुझे, सारा दिन जाए निकल
और फिर आहिस्ता से, जब छू के तू निकले
तेरी आँच में दिल मेरा, धीमे धीमे पिघले
मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा....