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बुधवार, अक्टूबर 23, 2019

एक सुरीली शाम स्निति के नाम ! Musical evening with Sniti Mishra

नौ साल पहले ओडिशा के छोटे से शहर बलांगिर से आई स्निति को मैंने Sa Re Ga Ma Singing Superstars में सुना था तो सूफी के रंगों में रँगी उस अलग सी आवाज़ को सुनकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका था। उसी वक्त एक शाम मेरे नाम पर उनके बारे में यहाँ लिखा भी था।


क्या पता था कि नौ साल बाद ऊपरवाला मुझे मौका देगा अपने शहर राँची में उसी प्रतिभाशाली गायिका की मेजबानी करने का। मौका था एक तकनीकी सेमिनार के साथ होने वाले संगीत के कार्यक्रम का, जिसमें मैंने उन्हें इस साल आमंत्रित किया था।

ऐसे सजी थी राँची में स्निति की महफिल
दो दिन हमारे साथ स्निति रहीं और उन दो दिनों में प्रैक्टिस से लेकर शो तक स्निति ने नए पुराने गीतों और ग़ज़लों का जो गुलदस्ता हमें सुनाया उसकी मिठास अब तक कानों में गूँज रही है। स्निति की आवाज़ को मंच पर श्रोताओं से रूबरू कराने के पहले मैंने कहा कि अगर आप पूछें कि उनकी आवाज़ में मुझे क्या विशिष्ट लगता है तो मैं यही कहूँगा कि उनकी आवाज़ में सूफ़ी संगीत सा ठहराव है, ग़ज़लों सी नजाकत है, पुराने हिंदी फिल्मी गानों सी मिठास है और आज के फ्यूजन सा नयापन है।

रिहर्सल में स्निति के साथ बैठना संगीत की वैतरणी में डुबकी लगाने जैसा था।

उनकी आवाज़ की इसी विशिष्टता को श्रोताओं तक पहुंचाने के लिए हमने ऐसे गीतों को चुना जिसमें उनके हुनर का हर रंग छलके।  अभी मुझ में कहीं.., मोरा सैयाँ मोसे बोले ना.., सजदा.., मितवा.. इन आंखों की मस्ती के.., जो तुम याद आए बहुत याद आए.., ज़रा सी आहट होती है.., निगाहें मिलाने को जी चाहता है..., घूमर.., लागा चुनरी में दाग..., यारा सिली सिली..., फूलगेंदवा ना मार..., आज जाने की ज़िद ना करो के माध्यम से उन्होंने संगीत के हर मूड को अपनी गायिकी से छुआ और ऐसा छुआ कि सारे संगीतप्रेमी झूम उठे।

कार्यक्रम शुरु होने के ठीक पहले मैं स्निति के साथ मंच पर
स्निति की कोशिश रहती है कि वो हर गीत में कुछ improvisation करें ताकि सुनने वाले के लिए वो अनुभव विशिष्ट हो जाए और यही हुआ भी। अधिकांश लोगों का ये मानना था कि इन कार्यक्रमों में गाने तो पहले भी सुनते थे पर विशुद्ध संगीत क्या होता है उसका स्वाद इस बार ही चखा।

प्रैक्टिस और शो के बीच के समय में उनसे सारेगामापा के पहले और बाद की उनकी सांगीतिक यात्रा पर ढेर सारी बातें हुईं। तो चलिए जानते हैं स्निति के इस सफ़र के बारे में.. 
राँची के कार्यक्रम में अपनी गायिकी में मगन स्निति
स्निति के माता पिता शास्त्रीय संगीत के प्रेमी रहे हैं। घर में शास्त्रीय संगीत खूब सुना जाता और बच्चों को सुनाया जाता। नब्बे के उस दशक में अनु कपूर की मेरी आवाज़ सुनो और सोनू निगम के सारेगामा जैसे कार्यक्रम के तैयार गायकों को देख पिता भी आश्वस्त हो चले थे कि बिना अच्छे प्रशिक्षण के वहाँ स्थान बना पाना मुश्किल है। स्निति का बालमन  किशोर सुनिधि चौहान और सोनू निगम की गायिकी से बहुत प्रभावित हो चुका था पर उनके पिताजी चाहते थे कि उनकी शिक्षा किसी काबिल शिक्षक से शुरु की जाए ताकि शास्त्रीय संगीत की जो आरंभिक नींव पड़े वो पुख्ता हो। अब बलांगिर में ऐसे शिक्षक कहाँ मिलते? वो तो स्निति का सौभाग्य था कि भुवनेश्वर से तभी स्थानांतरित हो कर शास्त्रीय संगीत के शिक्षक रघुनाथ साहू बलांगिर पधारे और स्निति ने उनसे सीखना शुरु किया। तब बारह साल की स्निति सातवीं कक्षा की छात्रा थीं।


स्निति की पढ़ाई और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा चलती रही। इसी बीच उन्होंने सारेगामापा के ऑडिशन में भाग लेना भी शुरु कर दिया। स्निति के गुरु उन्हें शास्त्रीय संगीत के इतर गीत सुनने तक के लिए मना करते जबकि सारेगामापा के मेंटर्स को हर प्रकृति के गीत गाने वाले  हरफनमौला गायकों की तलाश रहती। स्निति अपने गुरु के बताए मार्ग पर चलती रहीं। नतीजा ये हुआ कि वो सारेगामापा की आखिरी बाधा पार करने के पहले ही दो बार छँट गयीं।


स्निति थोड़ी निराश तो हुईं पर उन्होंने उससे उबरने के लिए अपनी MBA की पढ़ाई पर ध्यान देना शुरु किया जिसमें 2010 में उन्होंने दाखिला लिया था। उसी साल सारेगामापा ने अपने पैटर्न में बदलाव किया। सिंगिंग सुपरस्टार्स वाली शृंखला में नए पुराने गीतों के आलावा शास्त्रीय संगीत और ग़ज़लों के लिए अलग राउंड रखे गए थे। इसलिए मेंटर्स का ध्यान इस बार ऐसे गायकों पर था जो ऐसी विधाओं में भी पारंगत हों। अपनी माँ के उत्साहित करने पर उन्होंने फिर ऑडिशन में अपनी किस्मत आजमाई। स्निति की गायिकी इस बार के कार्यक्रम के बिल्कुल अनुकूल थी। सारेगामापाा में स्निति की आवाज़ का जादू सर चढ़कर बोला। वहाँ से लौट कर  उन्होंने अपना MBA पूरा किया और फिर  मुंबई में शिफ्ट हो गयीं।



सारेगामापा या इसके जैसे अन्य रियालिटी शो भले ही आपको कुछ समय की प्रसिद्धि दिला देते हों पर अपने पाँव ज़माने के लिए असली मेहनत उसके बाद शुरु होती है। जहाँ तक स्निति का सवाल है तो मुंबई जाने से पहले ही उनके मन में ये स्पष्टता थी कि उन्हें शास्त्रीय संगीत के इर्द गिर्द ही अपनी गायिकी को आगे बढ़ाना है


स्निति बताती हैं कि वो एक बेहद वरीय शास्त्रीय वादक से अपने मार्गदर्शन के लिए मिलीं। उन्होंने स्निति से कहा कि देखो मेरा दौर कुछ और था। अगर आज तुम्हें इस विधा में बढ़ना है तो शास्त्रीय संगीत के साथ साथ फ्यूजन का भी सहारा लेना पड़ेगा। दरअसल खालिस शास्त्रीय गायिकी में अपना मुकाम बनाने के लिए आज भी किसी घराने की विरासत बहुत काम करती है। जिसके ऊपर घरानों की छत्रछाया नहीं है उसके लिए अपने को शास्त्रीय गायिकी में स्थापित करना आसान नहीं। 

पिछले कुछ सालों में स्निति ने सूफी संगीत व सुगम शास्त्रीय संगीत के आलावा नए पुराने हिंदी फिल्मी गानों और चुनिंदा ग़ज़लों को भी अपने अलग अंदाज़ में आवाज़ें दी हैं। उन्होंने तमिल व कश्मीरी गीतों को भी बखूबी निभाया है और भविष्य में आप उनके गाए बांग्ला गीत को भी सुन पाएँगे।

स्निति की आवाज़ में एक ठुमरी
हिंदी फिल्मी गीतों को गाने से उन्हें परहेज़ नहीं बशर्ते कि उन्हें जो मौके मिलें वो उनकी प्रतिभा से न्याय कर सकें। स्निति ने अपने लिए एक उसूल बना रखा है कि वो डमी गीत नहीं गाएँगी। यही सोच उनकी आइटम नंबर्स के लिए भी है। उन्होंने अब तक जो भी प्रोजेक्ट लिए हैं उसमें इस बात का ध्यान रखा है कि वो उनकी आवाज़ के अनुरूप हों।

स्निति मानती हैं कि किसी भी गायक को  आगे बढ़ने के लिए  गीतों के कवर वर्सन के साथ साथ अपना  रचा हुए मूल संगीत भी बनाना जरूरी है जिसे आज दुनिया Independent Music  के नाम से जानती है।


जां निसार लोन के साथ स्निति का गाया एक कश्मीरी गीत

स्निति ऐसा सोचती हैं कि जिस तेजी से डिजिटल काटेंट आजकल बनाया और इंटरनेट पर उपभोग किया जा रहा है वो कुछ दिनों में इसे फिल्मों और टीवी के समकक्ष या उससे भी सशक्त माध्यम बना देगा। इसलिए अभी उनका ध्यान इसी माध्यम पर अपनी नई प्रस्तुतियाँ देने का है। आने वाले सालों के लिए उनकी योजना है कि ना केवल वो गाएँ बल्कि अपने गीतों को कंपोज भी करें। एक सपना उन्होंने और भी पाल रखा है और वो है एक प्रोडक्शन हाउस बनाने का जिसमें वे नए कलाकारों को ऐसा मंच प्रदान कर सकें जिस पर वो अपनी प्रतिभा दिखला सकें।

स्निति जितनी प्रतिभाशाली गायिका हैं उतने ही सहज और विनम्र व्यक्तित्व की स्वामिनी भी हैं। अपने कार्य के प्रति उनका समर्पण देखते ही बनता है। मुझे पूरा विश्वास है कि उन्होंने अपने लिए जो संगीत की राह तय की है उस पर उनकी ये सुरीली यात्रा चलती रहेगी।

सोमवार, नवंबर 29, 2010

स्निति मिश्रा की आवाज़, नुसरत साहब का गीत : तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ...

सा रे गा मा पा... हमेशा से ही मेरा संगीत का पसंदीदा कार्यक्रम रहा है। इसकी दो खास वज़हें हैं। पहली तो ये कि इसमें हर साल इसमें ऐसे प्रतिभागी आते ही रहते हैं जिनकी प्रतिभा से प्रभावित ना हो पाना किसी संगीतप्रेमी के लिए बड़ा ही मुश्किल है। दूसरे ये कि यही वो कार्यक्रम है जहाँ प्रतियोगी कुछ ऐसे गीत और बंदिशें चुनते हैं जिनको स्टेज पर निभाने के लिए हुनर के साथ बड़े ज़िगर की भी जरूरत होती है।

चार महिने पहले जब ये कार्यक्रम शुरु हुआ तो कमल खाँ और अभिलाषा जैसे मँजे हुए गायकों के अलावा तीन नई प्रतिभाओं ने मेरा दिल जीत लिया था। ये तीन कलाकार थे ग़ज़लों के राजकुमार रंजीत रजवाड़ा और शास्त्रीय संगीत में महारथी दो गायिकाएँ स्निति मिश्रा और सुगंधा मिश्रा। पिछले हफ्ते स्निति अंतिम पाँच में जगह बनाने के पहले ही बाहर हो गयीं।

उड़ीसा के बोलांगीर जिले से ताल्लुक रखने वाली और फिलहाल भुवनेश्वर में अपनी पढ़ाई कर रही स्निति की आवाज़ अपने तरह की एक अलग ही आवाज़ है।



रहमान साहब ने भी कार्यक्रम में आ के ये स्वीकारा कि इस तरह की आवाज़ को वो वर्षों बाद सुन रहे हैं। स्निति फिलहाल भुवनेश्वर में अपने गुरु डा. रघुनाथ साहू से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। उनकी हिम्मत और प्रतिभा का परिचय इसी बात से मिल जाता है कि कोलकाता में हुए प्रारंभिक आडिशन में उन्होंने उस्ताद नुसरत फतेह अली खाँ का गाया गीत सुनाया। पहले ही आलाप ने जजों का मन मोह लिया और स्निति सारेगामापा की मुख्य प्रतियोगिता के लिए चुन ली गयीं। वो गीत था फिल्म बंडित क्वीन का और गीत के बोल थे

मोरे सैयाँ तो हैं परदेस, मैं क्या करूँ सावन को
सूना लागे सजन बिन देश , मैं ढूँढूँ साजन को

देखूँ राहें चढ़ के अटरिया
जाने कब आ जाए साँवरिया
जब से गए मोरी ली ना खबरिया
छूटा पनघट, फूटी गगरिया
सूना लागे सजन बिन देश , मैं ढूँढूँ सावन को
मोरे सैयाँ तो हैं परदेस, मैं क्या करूँ साजन को....

नुसरत साहब जैसे महान कलाकार की रचना को नारी स्वर में सुनना एक अलग ही आनंद दे गया। स्निति ने वैसे दो अंतरों में से एक ही गाया पर उनकी आवाज़ और गायिकी ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया.। तो आइए सुनें स्निति को



स्निति का नुसरत प्रेम इस प्रतियोगिता में आगे भी ज़ारी रहा और एक महिने पहले उन्होंने इसी फिल्म के लिए नुसरत साहब का गाया एक और गीत तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे... चुना। दरअसल बंडित क्वीन में नुसरत साहब ने जो गीत गाए हैं वे उनके अपने अंदाज़ से थोड़ा हट के थे और स्निति ने इन्हें अपना स्वर दे कर उनका एक ताज़ा रूप हमारे मानस पटल पर अंकित कर दिया। स्निति की खासियत ये है कि वो कोई भी गीत अपने मुक्तलिफ़ अंदाज़ में गाती हैं। देखिए तो कितने आत्मविश्वास के साथ स्निति ने निभाया इस गीत को...

सजना, सजना रे,
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे

काटूँ कैसे तेरे बिना बैरी रैना,
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे

पलकों ने बिरहा का गहना पहना
निंदिया काहे ऐसी अँखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे...सजना रे...

बूँदों की पायल बजी, सुनी किसी ने भी नहीं
खुद से कही जो कही, कही किसी से भी नहीं
भीगने को मन तरसेगा कब तक
चाँदनी में आँसू चमकेगा कब तक
सावन आया ना ही बरसे और ना ही जाए
सावन आया ना ही बरसे और ना ही जाए
हो निंदिया काहे ऐसी अँखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ..सजना रे.

जब बंडित क्वीन सिनेमा हॉल में जाकर देखी थी, पता नहीं क्यूँ फिल्म के संगीत पर ज्यादा ध्यान ही नहीं गया था। शायद फिल्म की गंभीरता की वज़ह से ही ऐसा हुआ हो। नुसरत साहब के गाए इन गीतों के बोल भी उतने ही प्यारे हैं जितनी की नुसरत साहब की गायिकी। इस गीत में एक अंतरा और भी है जो कुछ यूँ है

सरगम सुनी प्‍यार की, खिलने लगी धुन कई
खुश्‍बू से 'पर' माँगकर उड़ चली हूँ पी की गली
आँच घोले मेरी साँसों में पुरवा
डोल डोल जाए पल पल मनवा
रब जाने के ये सपने हैं या हैं साए
हो निंदिया काहे ऐसी अँखियों में आए
तेरे बिना जिया मोरा नाहीं लागे ..सजना रे.


स्निति सारेगामा का मंच छोड़ चुकी हैं पर अपनी जो आवाज़ हमें वो सुनाकर गई हैं वो श्रोताओं को बहुत दिनों तक याद रहेगी। आशा है अपनी गायिका में और परिपक्वता ला कर कुछ वर्षों में वो एक प्रतिष्ठित गायिका के रूप में अपने आप को स्थापित कर पाएँगी।
 

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