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मंगलवार, जनवरी 18, 2022

वार्षिक संगीतमाला 2021 Top 15 : जीतेगा जीतेगा, इंडिया जीतेगा Jeetega Jeetega from 83

वार्षिक संगीतमाला की शुरुआत तो हुई राताँ लंबियाँ से। चलिए आपको आज गीतमाला की दूसरी पेशकश में प्रेम के मैदान से ले चलें खेल के मैदान में।तीन दशक से भी ज्यादा हो गए जब पहली बार भारत ने विश्व कप क्रिकेट का वो अनूठा मुकाबला इंग्लैंड के ऐतिहासिक लार्ड्स के मैदान में जीता था और उस अप्रत्याशित जीत की यादें ताज़ा करने के लिए 83 बनाई गयी। फिल्म ऐसे समय आई जब ओमिक्रान का भय लोगों के दिलों में पाँव पसार चुका था। युवा भी इस अनदेखी विजय से उस तरह से नहीं जुड़ नहीं पाए जैसा अन्य खेल आधारित फिल्मों के साथ होता रहा है। शायद यही वज़ह रही कि फिल्म के साथ साथ उसका संगीत उतना लोकप्रिय नहीं हुआ जितना हो सकता था।
 
मैं तो फिल्म देखने के पहले ही प्रीतम द्वारा संगीतबद्ध और कौसर मुनीर के लिखे गीतों से सजे इस एलबम को सुन चुका था। पर फिल्म में बहुत सारे गीत इस्तेमाल हुए ही नहीं या हुए भी तो एक आध पंक्ति तक सीमित रह गए। इसी फिल्म का ऐसा ही गीत रहा जीतेगा जीतेगा, इंडिया जीतेगा। जीतेगा...मन में संघर्ष कर जीतने की भावना जगाता ऐसा गीत है जो अरिजीत की आवाज़ पाकर जीवंत हो उठता है।


निर्देशक कबीर खान ने फिल्म में इसका पूरा उपयोग नहीं किया तो उसकी एक वज़ह थी। सच बात तो ये है कि भारत की टीम तब वहाँ जीतने के लिए गयी ही नहीं थी। वहाँ जाने के पहले हमारा रिकार्ड विश्व कप में इतना बुरा था कि उससे पहले तक हमारी एकमात्र जीत पूर्वी अफ्रीका जैसी दूसरे दर्जे की टीम के खिलाफ़ दर्ज़ थी। टीम के मन में तो ये था कि कुछ मैच जीत लें तो बहुत है। बाहर की ट्रिप्स तब लगती नहीं थी। ऐसा पेड हॉलीडे और इंग्लैंड की गोरी मेमों से मिलने का मौका मिलना कहाँ था। पूरे दौरे में दिन में टीम के कप्तान कपिल हुआ करते थे और रात में संदीप पाटिल जो अपने युवा साथियों के मनोरंजन का बीड़ा उठाते थे। टीम की ऐसी मनःस्थिति के बीच जीतेगा इंडिया जैसा गीत निर्देशक कबीर खाँ फिल्म में डालते भी तो कहाँ? ☺

भगवान की दया से उस वक़्त ना आज का सोशल मीडिया ना दिन भर जीत का हुंकार भरते टीवी चैनल। हम जैसे क्रिकेट प्रेमियों की तब उम्मीद इतनी ही थी कि भारत बस पहले से बेहतर करे। 

लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि कौसर मुनीर का लिखा इस गीत के खेल के मैदान में देश का Winning Anthem बनने के सारे गुण मौज़ूद हैं। सहज शब्दों में भी उनकी लेखनी दिल में वो भाव भरती है जिसके लिए ये गीत लिखा गया।

आगे आगे सबसे आगे, अपना सीना तान के
आ गये मैदान में, हम साफा बांध के
आगे आगे सबसे आगे, अपना सीना तान के
आ गये मैदान में, हम झंडे गाड़ने
हो अब आ गये है, जो छा गये है़
जो दम ये ज़माना देखेगा
देखो जूनून क्या होता है, ज़िद्द क्या होती है
हमसे ज़माना सीखेगा
जीतेगा जीतेगा, इंडिया जीतेगा
है दुआ हर दिल की, है यक़ीन लाखों का
जीतेगा जीतेगा, इंडिया जीतेगा
वादा निभायें आ

सर उठा के यूँ चलेंगे आ
फिर झुका ना पाये जो ये जहाँ
डर मिटा के यूँ लड़ेंगे आ
फिर हरा ना पाये जो ये जहाँ
हो अब आ ...इंडिया जीतेगा

प्रीतम का ताल वाद्यों की मदद से ताल ठोंकता संगीत और अरिजीत की उत्साही आवाज़ उसे और असरदार बनाती है। जब जब देश की टीम किसी भी खेल में विपक्षी टीम के साथ दो हाथ करेगी ये गीत दर्शकों और खिलाडियों में जोश भरने में पीछे नहीं रहेगा। तो आइए आज सुनते हैं फिल्म 83 का ये नग्मा



अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत नीचे से ऊपर के क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी। और हाँ अगर आप सब का साथ रहा तो अंत में गीतमाला की आख़िरी लिस्ट निकलने के पहले 2019 की तरह एक प्रतियोगिता भी कराई जाएगी जिसमें अव्वल आने वालों को एक छोटा सा पुरस्कार मिलेगा। ☺☺

शनिवार, जनवरी 26, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 4 : आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी Aaj Se Teri

अगर संगीतमाला के पिछले नग्मे ने आपको ग़मगीन कर दिया हो तो  चौथी पायदान का ये गाना आपके चेहरे पर मुस्कुराहटें बिखेरने में सफल होगा ऐसा मेरा यक़ीन है। ये गीत है फिल्म पैड मैन से जिसका संगीत दिया है लोकप्रिय युवा संगीतकार अमित त्रिवेदी ने।


अमित त्रिवेदी के लिए पिछला साल एक बेहद व्यस्त साल रहा। 2018 में उनकी एक दो नहीं बल्कि दस फिल्में रिलीज़ हुई पर उनका इकलौता गाना इस संगीतमाला में शामिल हो रहा है। हालांकि केदारनाथ ,अन्धाधुन, फन्ने खान और मनमर्जियाँ के गाने साल के बेहतरीन गीतों की सूची में आते आते रह गए। बहरहाल पैड मैन का ये नग्मा आज से तेरी तो हर संगीतप्रेमी की जुबां पर रहा। इस गीत की ना केवल धुन बेहद मधुर है बल्कि इसके शब्दों की मासूमियत भी दिल जीत लेती है। अरिजीत सिंह ने इसे निभाया भी बड़ी खूबसूरती से है। 

अमित त्रिवेदी व  क़ौसर मुनीर, 
पैड मैन के इस गीत को लिखा है कौसर मुनीर ने। महिला गीतकारों में आज की तारीख में उनका नाम सबसे ऊपर लिया जाता है। वो पिछले एक दशक से गीत लिख रही हैं। मुझे याद है कि 2008 में उनका लिखा पहला गीत फलक तक चल साथ मेरे   मेरी संगीतमाला का हिस्सा बना  था। तब से वो निरंतर फिल्म उद्योग में अपना सिक्का जमाती जा रही हैं। इशकज़ादे, यंगिस्तान,बजरंगी भाईजान सीक्रेट सुपरस्टार और मेरी प्यारी बिंदु में उनके लिखे गीत काफी सराहे गए हैं। 


फिल्म का विषय तो ख़ैर सैनिटरी नैपकिन से जुड़ा है पर जहाँ तक इस गीत का सवाल है ये फिल्म की शुरुआत में उस दृश्य में आ जाता है नायक नायिका का विवाह हो रहा है। नायक अपनी पत्नी को बेहद चाहता है और उसकी जरूरतों का खासा ख्याल रखता है। निर्देशक ने शादी के बाद नायक के इसी प्रेम को इस गीत के माध्यम से दिखाना चाहा है।


बात शादी की थी तो अमित त्रिवेदी ने प्रील्यूड मे शहनाई का इस्तेमाल कर लिया। शहनाई की इस मधुर धुन को बजाया है ओंकार धूमल ने।शहनाई और ढोलक बज ही रहा होता है कि उसकी जुगलबंदी में मेंडोलिन भी आ जाता है।  मेंडोलिन की रुनझुन ढोलक के साथ इंटरल्यूड में भी बरक़रार रहती है। गीत की पंक्तियों काँधे का जो तिल है.. सीने में जो दिल है के बाद जो वाद्य बार बार बजता है उसका स्वर भी प्यारा लगता है। मेंडोलिन के पीछे की जादूगरी है तापस रॉय की। पिछले साल के गीतों में तारों को झंकृत करने वाले तरह तरह के वाद्यों  के पीछे तापस की उँगलियाँ थिरकती रहीं।

क़ौसर मुनीर के शब्दों का चयन कमाल है। एक आम कम पढ़ा लिखा आदमी किस तरह अपने प्रेम को व्यक्त करेगा ये सोचते हुए बिजली के बिल और पिन कोड के नंबर जैसी पंक्तियाँ उन्होंने गीत में डाल दीं जिसे सुनते ही श्रोताओं के चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाएगी। गीत के दोनों अंतरे भी मुखड़े जैसा भोलापन साथ लिए चलते हैं। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मुझे उनका दूसरे अंतरे में  मूँगफलियाँ और अमिया की  याद दिलाना और सूरज को झटकने के साथ सावन को गटकने वाली बात मुग्ध कर गयी। अरिजीत सिंह ऐसे ही इतने लोगों के चहेते नहीं है। उनकी आवाज़ का ही ये असर है कि उन्हें सुनकर दिल प्रफुल्लित महसूस करने लगता है।

आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
आज से मेरा, घर तेरा हो गया
आज से मेरी, सारी खुशियाँ तेरी हो गयी
आज से तेरा, ग़म मेरा हो गया

ओ तेरे काँधे का जो तिल है
ओ तेरे सीने में जो दिल है
ओ तेरी बिजली का जो बिल है
आज से मेरा हो गया

ओ मेरे ख्वाबों का अम्बर
ओ मेरी खुशियों का समंदर
ओ मेरे पिन कोड का नंबर
आज से तेरा हो गया

तेरे माथे के कुमकुम को
मैं तिलक लगा के घूमूँगा
तेरी बाली की छुन छुन को
मैं दिल से लगा के झूमूँगा
मेरी छोटी सी भूलों
को तू नदिया में बहा देना
तेरे जूड़े के फूलों को
मैं अपनी शर्ट में पहनूँगा
बस मेरे लिए तू मालपूवे
कभी-कभी बना देना
आज से मेरी, सारी रतियाँ तेरी हो गयीं
आज से तेरा, दिन मेरा हो गया
ओ तेरे काँधे का...

तू माँगे सर्दी में अमिया
जो माँगे गर्मी में मूँगफलियाँ
तू बारिश में अगर कह दे
जा मेरे लिए तू धूप खिला
तो मैं सूरज को झटक दूँगा
तो मैं सावन को गटक लूँगा
तो सारे तारों संग चन्दा
मैं तेरी गोद में रख दूँगा
बस मेरे लिए तू खिल के कभी
मुस्कुरा देना 
आज से मेरी, सारी सदियाँ तेरी हो गयीं
आज से तेरा, कल मेरा हो गया
ओ तेरे काँधे.....मेरा हो गया



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

मंगलवार, मार्च 20, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 4 : माना कि हम यार नहीं, लो तय है कि प्यार नहीं Maana ki Hum Yaar Nahin

वार्षिक संगीतमाला का ये सिलसिला अब अपनी समाप्ति की ओर बढ़ रहा है और अब बची हैं आख़िरी की चार पायदानें। ये चारों गीत मेरे दिल के बेहद करीब हैं और अगर आप नए संगीत पर थोड़ी भी नज़र रखते हैं तो इनमें से कम से कम दो  गीतों को आपने जरूर सुना होगा। आज का गीत है फिल्म मेरी प्यारी बिन्दु से जिसे पिछले साल काफी सुना और सराहा गया।

चौथी पायदान के इस गीत को गाया है एक कुशल अभिनेत्री ने जिनकी फिल्मों में की गयी अदाकारी से आप भली भांति परिचित होंगे। पिछले कुछ सालों में करीना कपूर, श्रद्धा कपूर, आलिया भट्ट और प्रियंका चोपड़ा की आवाज़ें फिल्मी गीतों में आप सुन चुके हैं। इस सूची में नया नाम जुड़ा है परिणिति चोपड़ा का जो अपनी चचेरी बहन प्रियंका चोपड़ा की तरह ही संगीत की छात्रा रही हैं। संगीत में स्नातक, परिणिति पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहा करती थीं और एक बैंकर बनने के लिए विदेश में पढ़ाई भी कर चुकी थीं। पर संयोग कुछ ऐसा बना कि वो यशराज फिल्म के PRO में काम करते करते अभिनेत्री बन बैठीं।

यूँ तो चोपड़ा परिवार व्यापार से संबंध रखता है पर उनके पिता और घर के अन्य लोग भी गायिकी में दिलचस्पी रखते रहे।  इसीलिए जब फिल्म के निर्माता, निर्देशक और संगीतकार की तरफ़ से उन्हें फिल्म के सबसे अहम गीत को गाने का मौका मिला तो उनके मन में वर्षों से दबी इच्छा फलीभूत हो गयी। 


परिणिति अपने गायन को लेकर कितनी गंभीर थीं इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने इस गीत को अंतिम रूप से गाने के पहले घर में भी लगभग तीन महीने रियाज़ किया और फिर स्टूडियो में आयीं। भले ही वो अन्य पार्श्व गायिकाओं की तरह पारंगत नहीं है पर उनकी गहरी आवाज़ गीत की भावनाओं के साथ न्याय करती दिखती है ।

इस गीत को लिखा है कौसर मुनीर ने जो सीक्रेट सुपरस्टार में भी इस साल बतौर गीतकार की भूमिका निभा चुकी हैं। ये साल महिला गीतकारों के लिए बेहतरीन रहा है और इस गीतमाला के करीब एक चौथाई गीतों को युवा महिला गीतकारों अन्विता दत्त, प्रिया सरैया और कौसर मुनीर ने लिखा है। यहाँ तक कि प्रथम दस गीतों में तीन में वे अपना स्थान बनाने में सफल रही हैं। 

इस गीत की खासियत ये है कि इसे पहले लिखा गया और फिर इसकी धुन बनाई गयी। मेरी प्यारी बिन्दु का ये पहला रिकार्ड किया जाने वाला गाना था। कौसर ने जब गीत का मुखड़ा सुनाया तो वो एक बार में ही संगीतकार सचिन जिगर और फिल्म के निर्देशक अक्षय राय से स्वीकृत हो गया। ये गीत फिल्म के अंत में आता है जब नायक और नायिका एक दूसरे के प्रेम में पड़ने और बिछड़ने के कई सालों बाद एक बार फिर मिलते हैं। अब दोनों के रास्ते जुदा हैं पर दिल में  एक दूसरे के लिए जो स्नेह है वो ना तो गया है और ना ही जाने वाला है। कौसर को इन्हीं भावनाओं को लेकर एक गीत रचना था। 

जब भी मैं इस गीत के मुखड़े और अंतरों से गुजरता हूँ तो अंग्रेजी के एक प्रचलित शब्द Self Denial यानि आत्मपरित्याग की याद आ जाती हैं। आख़िर हम इस अवस्था में कब आते हैं? तभी ना जब हम अपनी भावनाओं को छुपाते हुए प्रकट रूप से वो करते हैं जो हमारे साथी की वर्तमान खुशियों और सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप बैठता है। अब ये दो प्रेमियों का Self Denial mode  ही है जो प्यार और यारी होते हुए भी कौसर से कहलाता है कि माना कि हम यार नहीं, लो तय है कि प्यार नहीं। पर ये तो सबको दिखाने की बात है अंदर से ना कोई बेज़ारी है और ना ही एक दूसरे से मिले बगैर क़रार आता है।



माना कि हम यार नहीं, लो तय है कि प्यार नहीं
फिर भी नज़रें ना तुम मिलाना, दिल का ऐतबार नहीं
माना कि हम यार नहीं..

रास्ते में जो मिलो तो, हाथ मिलाने रुक जाना
हो.. साथ में कोई हो तुम्हारे, दूर से ही तुम मुस्काना
लेकिन मुस्कान हो ऐसी कि जिसमे इकरार नहीं
नज़रों से ना करना तुम बयाँ, वो जिससे इनकार नहीं
माना कि हम यार नहीं..

फूल जो बंद है पन्नों में, तुम उसको धूल बना देना
बात छिड़े जो मेरी कहीं तुम उसको भूल बता देना
लेकिन वो भूल हो ऐसी, जिससे बेज़ार नहीं
तू जो सोये तो मेरी तरह, इक पल को भी क़़रार नहीं
माना कि हम यार नहीं..

इस गीत का सबसे मजबूत पहलू है सचिन जिगर की धुन जो जिसे सुनते ही मन करता है कि आँखें बंद कर के उसकी मधुरता का आनंद लेते रहो। गीत के आरंभ में बजती कर्णप्रिय धुन अंतरों में भी दोहराई जाती है। सचिन जिगर दरअसल फिल्म के इस माहौल के लिए इक ग़ज़ल संगीतबद्ध करना चाहते थे पर निर्माता के कहने पर उसे एक गाने की शक़्ल में तब्दील करना पड़ा और ये परिवर्तित रूप अंत में श्रोताओं को काफी पसंद आया। इस गीत के दूसरे रूप में परिणिति को सोनू निगम की आवाज़ का भी साथ मिला है।

वार्षिक संगीतमाला 2017

बुधवार, जनवरी 24, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान 17 : चोरी से, चोरी से छुप-छुप के तिनका तिनका, चुन के सपना एक बनाया Sapne Re

जब किसी उभरती गायिका पर फिल्म बनेगी तो ज़ाहिर है उसको निभाने के लिए अभिनेत्री के साथ उसकी आवाज़ की भी तलाश होगी। सीक्रेट सुपस्टार की स्क्रिप्ट जब अद्वैत चंदन और आमिर ने संगीतकार अमित त्रिवेदी को थमाई तो साथ ही उन्हें एक किशोर  गायिका को  खोजने का दायित्व भी दे दिया जो फिल्म में ज़ायरा वसीम की आवाज़ बन सके।

अमित अपने काम में लग गए। 28 लोगों को बुलाया गया। उनमें सात आठ आवाजें छांटी गयीं और अंततः मेघना की आवाज़ में अमित वो पा गए जो वो चाहते थे। अमित ने उनकी आवाज़ को सहजता से बहता हुआ पाया। एक बार जब आमिर और अद्वैत की स्वीकृति मिल गयी तब जाकर आगे का काम शुरु हुआ। वैसे मेघना हैं कौन ये तो आप जानना चाहेंगे ही।


मेघना ग्यारहवी की छात्रा हैं और मुंबई में पली बढ़ी हैं। उनके पिता उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले से ताल्लुक रखते हैं। पिता ख़ुद गायिकी से जुड़े हैं और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संगीत में परास्नातक हैं। गाजीपुर से मुंबई आकर उन्होंने भी अपने आप को यहाँ स्थापित करने की कोशिश की। कुछ खास मौके नहीं मिले तो संगीत सिखाने में जुट गए। मेघना की माँ एक तबला वादक हैं। इतने भरे पूरे संगीत के माहौल में मेघना नहीं गाती तो आश्चर्य था। हालांकि उनका सफ़र भी इतना आसान नहीं रहा। छठी कक्षा में इंडियन आइडल जूनियर में भाग लेने गयीं पर जल्द ही बाहर हो गयीं। फिर भी संगीत सीखना नहीं छोड़ा। एक मराठी फिल्म में गाने का मौका मिला और फिर उस फिल्म के संगीत निर्देशक ने सीक्रेट सुपरस्टार के लिए उनका नाम अमित त्रिवेदी को सुझाया।

ज़ायरा वसीम और मेघना मिश्रा 

अमित त्रिवेदी ने  मेघना से  इस फिल्म के लिए  पाँच एकल गीत गवाए । टीवी पर मैं कौन हूँ और नचदी फिरा का जोर शोर से प्रचार हुआ और नचदी फिरा के लिए फिल्मफेयर ने उन्हें इस साल की सर्वश्रेष्ठ गायिका भी घोषित कर दिया। पर उनके गाए गानों में मुझे मेरी प्यारी अम्मी जो हैं और सपने रे ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया। मेरी प्यारी अम्मी की जगह तो इसी फिल्म के एक और प्यारे गीत गुदगुदी ने ले ली पर सपने रे ने मेरे दिल में अंत तक अपनी जगह बनाई रखी।

सीक्रेट सुपरस्टार एक ऐसी फिल्म थी जिसके गानों में ही फिल्म की कहानी पलती बढ़ती रही। गीत के बोलों और संगीत पर इसका खासा असर रहा। ये गीत फिल्म में तब आता है जब नायिका अपनी दोस्तों के साथ सफर पर है। साथ में है उसका गिटार। दोस्त जब गाने की फर्माइश करते हैं तो शुरुआत होती है सपने रे की।

क़ौसर मुनीर को एक किशोरी के मन में धीरे धीरे आकार ले रहे सपने को शब्द देने थे । उनकी चुनौती ये भी थी कि वो गीत में  जिस भाषा का प्रयोग करें वो स्कूल की छात्रा की भाषा हो। इसलिए क़ौसर ने मुखड़े में पक्षियों की तरह तिनका तिनका बुन के नवजात सपने को घोंसले में जगह तो दी पर जब उसे छुपाने का वक़्त आया तो डॉयरी और गुथी हुई चोटी को उन्होंने मुनासिब समझा । 

अमित के संगीत में गिटार और ताल वाद्यों का प्रमुखता से उपयोग होता है। यहाँ भी ये वाद्य उपस्थित हैं पर साथ में बाँसुरी का हल्का फुल्का तड़का भी है।

कोई भी बच्चा चाहे किसी का हो हमें कितना प्यारा लगता है। फिर आप बताइए अगर मन में शिशु के रूप में एक सपने का जन्म हो तो उसे आप गलत नज़रों से बचा कर, खूब सहेज कर रखेंगे ना। वैसे भी हम सभी अगर अपने नन्हे सपनों से प्यार नहीं करेंगे तो वो बड़े कैसे होंगे? इस प्यारी सी भावना को ये गीत श्रोताओं के दिलों तक पहुँचाता है। चलिए आज आप भी मिल आइए इस मासूम सपने से..

चोरी से, चोरी से छुप-छुप के 
मैंने चोरी से, चोरी से छुप-छुप के 
तिनका तिनका, चुन के सपना एक बनाया 
डोरी से, डोरी से बुन बुन के मैंने डोरी से, 
टुकड़ा टुकड़ा सी के सपना एक बनाया.. 
सपने रे, सपने रे.. सपने मेरे सच 
हो जाना रे हो जाना रे हो जाना रे

आजा डायरी में छुपा दूँ 
आजा तुझको चोटी में बाँधूँ 
कहीं किसी को ना दिख जाए  
सपने रे, सपने रे, सपने मेरे
हाथ तेरा कस के पकड़ लूँ 
साथ साथ तेरे मैं चल दूँ 
डर तुझे ना किसी से लग जाए 
सपने रे, सपने रे, सपने मेरे 
रातों को, रातों को जग जग के मैंने  
तारा तारा, चुन के सपना एक बनाया 
सपने रे, सपने रे सपने मेरे सच हो जाना रे हो जाना रे....




वार्षिक संगीतमाला 2017

गुरुवार, जनवरी 11, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान 21 : गुदगुदी , गुदगुदी करने लगा है हर नज़ारा Gudgudi

वार्षिक संगीतमाला की 21 वीं सीढ़ी पर गाना है फिल्म सीक्रेट सुपरस्टार का। जग्गा जासूस की तरह ही सीक्रेट सुपरस्टार भी पिछले साल की एक म्यूजिकल थी। अमित त्रिवेदी पूरे एलबम के संगीत संयोजन में प्रीतम जैसा तो कमाल नहीं दिखा सके फिर भी उन्होंने एक अलग तरह के विषय पर बनाई फिल्म में कौसर मुनीर के शब्दों को अपनी धुनों से मधुर बनाने की अच्छी कोशिश जरूर की है।


गीतमाला में इस फिल्म का जो पहला गीत शामिल हुआ है वो है "गुदगुदी" जिसे गाया है सुनिधि चौहान ने। अमित त्रिवेदी को फिल्मों में ज्यादातर गाने ऐसे मिले हैं जो फिल्म की कहानी से पूरी तरह गुथे होते हैं। ये गीत भी इसी प्रकृति का है। कहानी एक किशोरी की है जो प्रतिभावान है, गायिका बनना चाहती है पर घर की बंदिशों ने उसकी बाहरी दुनिया तक पहुँचने की हसरत को नाउम्मीदी में बदल दिया है। ऐसे में जब उसकी माँ एक लैपटाप ले आती हैं तो इंटरनेट के माध्यम से उसे खुशियों का खजाना सा मिल जाता है क्यूँकि अब वो यू ट्यूब के माध्यम से अपने गाने रिकार्ड को दुनिया को सुना सकती है।

अगर हम मन से प्रसन्न हो ना तो छोटी से छोटी बात में खुशी ढूँढ लेते हैं। गीतकार कौसर मुनीर मन के इसी भाव को "गुदगुदी" के रूपक में बाँधा है। अक्सर आप किसी के प्यारे दोस्त के बारे में बात करें तो उसके प्रफुल्लित चेहरे को देख कर कहते हैं क्यूँ उसका जिक्र सुनकर दिल में गुदगुदी हुई ना?

यहाँ हमारी ये किशोर नायिका तो ख़ैर इतनी खुश है कि माँ का लाड़, छोटे भाई की तकरार और सहपाठी का प्यार सब मन में गुदगुदी ही जगा रहा है। तभी तो कौसर उनकी आवाज़ बनकर लिखती हैं..

अभी अभी आँखों ने सीखा मटकना
अभी अभी दाँतों ने सीखा चमकना
लगता है जैसे अभी अभी इस दिल ने
सीखा दिल से हँसना

अभी अभी बालों ने सीखा है खुलना
अभी अभी दागों ने सीखा है धुलना
लगता है जैसे अभी अभी इस दिल ने
सीखा दिल से हँसना

गुदगुदी , गुदगुदी करने लगी बिंदियाँ
गुदगुदी , गुदगुदी करने लगी चोटियाँ
गुदगुदी , गुदगुदी करने लगा है हर नज़ारा

गुदगुदी , गुदगुदी करने लगी तितलियाँ
गुदगुदी , गुदगुदी करने लगी चिड़ियाँ
गुदगुदी , गुदगुदी करने लगा है हर नज़ारा

अमित त्रिवेदी ने गीत के इंटरल्यूड्स में मैंडोलिन और सैक्सोफोन के मधुर टुकड़े डाले हैं। बीच बीच में कोरस भी गीत में नया जोश सा भरता है। गीत के मस्ती और शोखी के मूड को सुनिधि ने अपनी धारदार गायिकी से जीवंत कर दिया है।  हफ्ते भर पहले वो वास्तविक जीवन में माँ भी बनी है। उम्मीद है कि इस गीत के साथ ही नया साल उनकी ज़िंदगी को खुशियों से भर दे। तो आइए सुनते हैं उनकी आवाज़ में  इस प्यारे से गीत को..

वार्षिक संगीतमाला 2017

रविवार, फ़रवरी 07, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 8 : तू जो मिला.. लो हो गया मैं क़ाबिल Tu Jo Mila ...

अब जबकि सिर्फ आठ सीढ़ियाँ बाकी है शिखर तक पहुँचने के लिए आइए आपको मिलवाते हैं एक ऐसे गीत से जो फिल्म से अलग सुना जाए तो एक रोमांटिक नग्मा लग सकता है पर वास्तव में गीत ये दिखलाता है कि कैसे प्यारी सी बच्ची एक इंसान को ज़िन्दगी के सही मायने सिखला देती है । गीतकार व संगीतकारों का काम तब और कठिन हो जाता है जब उनके रचित गीत फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाते हैं। संगीतकार प्रीतम, गीतकार क़ौसर मुनीर व गायक केके की दाद देनी होगी कि उन्होंने ऐसा करते हुए भी बजरंगी भाईजान के इस गीत की मेलोडी को बनाए रखा है ताकि जिन्होंने इस फिल्म को नहीं देखा वो भी इसकी मधुरता से अछूते ना रह पाएँ।

  

संगीतकार प्रीतम ने बड़ी प्यारी धुन रची इस गीत के लिए। गिटार की टुनटुनाहट और  वॉयलिन के दिल को सहलाते सुरों से वो हमें गीत के मुखड़े तक लाते हैं। धीरे धीरे गीत के टेम्पो को उठाते हैं और फिर तू धड़कन मैं दिल के बाद स्ट्रिंग्स का वो टुकड़ा पेश करते हैं कि दिल खुशी से झूमने लगता है। अंतरे के बाद भी गिटार पर उनकी कलाकारी कमाल की है और चित्त को प्रसन्न कर देती है। आश्चर्य की बात है कि उन्होंने इस गीत को तीन बेहतरीन गायकों जावेद अली, पापोन व केके से अलग अलग गवाया। पापोन और जावेद ने अलग अलग अंदाज़ में इस गीत को निभाया है पर इस प्रकृति के गीतों में केके की दमदार आवाज़ बिल्कुल फिट बैठती है। 

संगीत से जुड़े मलयाली परिवार से ताल्लुक रखने वाले और दिल्ली में पले बढ़े केके यानि कृष्ण कुमार कुन्नथ पिछले दो दशकों से फिल्म उद्योग में बतौर पार्श्व गायक जमे हुए हैं। साढ़े तीन हजार जिंगल गाने के बाद बॉलीवुड में अवसर पाने वाले केके को जब ये गीत गाने का प्रस्ताव मिला तो वे आस्ट्रेलिया में छुट्टियाँ मना रहे थे। छुट्टियों के बीच ही उन्होंने आस्ट्रेलिया में इस गीत की रिकार्डिंग की। प्रीतम को केके की आवाज़ पर इतना भरोसा था कि उन्होंने रिकार्डिंग का निर्देशन भी केके के जिम्मे छोड़ दिया। केके ने अपने को इस गीत में खुद ही निर्देशित किया यानि गाना गाया, सुना और फिर उसमें ख़ुद ही सुधार करते हुए अंतिम रिकार्डिंग प्रीतम के पास भेजी जिसे हम सबने फिल्म में सुना। 

कौसर मुनीर और केके
इस गीत के बोल लिखे क़ौसर मुनीर ने जिनसे आपका परिचय मैं वार्षिक संगीतमालाओं में फलक़ तक चल साथ मेरे, मैं परेशां परेशां और सुनो ना  संगमरमर जैसे गीतों से पहले भी करा चुका हूँ। तो क्या लिखा उन्होंने इस गीत में?

खाते पीते सोते जागते व अपनी जीविका के लिए काम करते करते हम अपनी सारी ज़िंदगी बिता देते हैं। मौके तो सबको मिलते हैं पर वक़्त रहते हम उन्हें लेने को तैयार नहीं होते । डरते हैं समाज से, अनजान के भय से, बिना जाने कि हम विपरीत परिस्थितियों में भी क्या करने की कूवत रखते हैं। अपने व्यक्तित्व को किन ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं।  

ऐसा ही तो हुआ इस फिल्म के नायक  के साथ। उन्हें एक परिस्थिति मिली और शुरुआती हिचकिचाहट के बाद जब वो उससे लड़ने को तैयार हुए तभी अपने अंदर छुपे असली इंसान को ढूँढ पाए। रोज़गार की तलाश में भटकते एक आम से इंसान को दूर देश से भटक कर आई बच्ची क्या मिली उसके जीने का मक़सद ही बदल गया।   क़ौसर मुनीर को यही व्यक्त करना था अपने गीत में और उन्होंने  इसे बखूबी किया भी। मिसाल के तौर पर देखिए फिल्म में बच्ची का मज़हब कुछ और है और हमारे नायक का कुछ और  पर उसे लगता है कि उसके घर तक पहुँचाना ही ऊपरवाले की सच्ची इबादत है सो क़ौसर उसकी मनोभावना को इन शब्दों में दर्शाती हैं आबोदाना मेरा, हाथ तेरे है ना ढूँढ़ते तेरा ख़ुदा मुझको रब मिला या फिर राह हूँ मैं तेरी, रूह है तू मेरी.. ढूँढते तेरे निशाँ मिल गयी खुदी।

तो आइए सुनते हैं ये प्यारा नग्मा...

  

आशियाना मेरा, साथ तेरे है ना
ढूँढते तेरी गली, मुझको घर मिला

आबोदाना मेरा, हाथ तेरे है ना
ढूँढ़ते तेरा ख़ुदा, मुझको रब मिला
तू जो मिला.. लो हो गया मैं क़ाबिल
तू जो मिला.. तो हो गया सब हासिल हाँ ..


मुश्क़िल सही.. आसां हुई मंज़िल
क्यूंकि तू धड़कन, मैं दिल..

रूठ जाना तेरा, मान जाना मेरा
ढूँढते तेरी हँसी , मिल गयी ख़ुशी
राह हूँ मैं तेरी, रूह है तू मेरी
ढूँढते तेरे निशाँ
मिल गयी खुदी
तू जो मिला लो हो गया मैं क़ाबिल ...मैं दिल..

वार्षिक संगीतमाला 2015

बुधवार, जनवरी 07, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 22 : सुनो ना संगमरमर की ये मीनारें... Suno Na Sangemarmar...

वार्षिक संगीतमाला अपने सफ़र के पहले हफ्ते को पूरा करते हुए आज पहुँच चुकी है अपनी बाइसवीं सीढ़ी पर।  इस गीत को अपनी मधुर धुन से सँवारा है बंगाली फिल्मों के लोकप्रिय संगीतकार और कभी प्रीतम के जोड़ीदार रह चुके जीत गाँगुली ने। 


कोलकाता के संगीत परिवार में जन्मे जीत ने शास्त्रीय संगीत जहाँ अपने पिता एवम् गुरु काली गांगुली से सीखा, वहीं बाद में पश्चिमी संगीत की पकड़ उन्हें गिटार वादक कार्लटन किट्टू के सानिध्य से मिली। बतौर संगीतकार जीत आजकल महेश भट्ट की फिल्मों में अक्सर नज़र आते हैं। पिछले साल की चर्चित फिल्म आशिक़ी 2 में कुछ गीतों का संगीत भी उन्होंने ही दिया था। यंगिस्तान के जिस गीत की बात मैं आज आपसे करने जा रहा हूँ उसकी धुन का इस्तेमाल जीत अपनी बंगाली फिल्म रंगबाज़ में वर्ष 2013 में कर चुके थे। वो गीत था कि कोरे तोके बोलबो..। चलिए पहले इसे ही सुन लेते हैं।


गीतकार कौसर मुनीर ने कि कोरे तोके बोलबो को सुनो ना संगमरमर  में रूपांतरित कर दिया। अक्सर निर्माता निर्देशकों की गीतकारों से फर्माइश रहती है कि वो गीत में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग करें कि लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा जाए। इस कोशिश में कई बार गीतकार आयातित शब्द का प्रयोग करते हैं तो कई बार अंचलिक भाषा के शब्दों का। Te Amo , कतिया करूँ, अम्बरसरिया ऍसे ही कुछ गीतों के उदाहरण हैं। पर महिला गीतकार क़ौसर मुनीर ने अपने गीत में संगमरमर जैसा शब्द लिया जो काफी प्रचलित तो है पर गीतों में इस्तेमाल नहीं होता। वेसे इससे पहले भी क़ौसर ''इश्क़ज़ादे'' जैसे नए लफ्ज़ को गीतों में ला चुकी हैं। क़ौसर इस गीत के बारे में कहती हैं।
"एक गीतकार की हैसियत से मुझे फिल्म में जो छोटा सा हिस्सा मिलता है उसका मुझे इस्तेमाल इस तरह से करना होता है कि वो कानों को श्रवणीय लगे। संगमरमर पर बहस तो खूब हुई पर फिल्म में गीत इस तरह फिल्माया गया कि शब्द दृश्य से घुल मिल गए।"

क़ौसर गीत के मुखड़े में लिखती हैं सुनो ना संगमरमर की ये मीनारें, कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे.. आज से दिल पे मेरे राज तुम्हारा...ताज तुम्हारा... और तब कैमरा ताजमहल की मीनारों को फोकस कर रहा होता है। अब शाश्वत प्रेम के लिए ताजमहल से बढ़िया प्रतीक हो ही क्या सकता था? क़ौसर के लिखे आखिरी अंतरे की पंक्तियाँ भी दिल को लुभाती हैं जब वो लिखती हैं..ये देखो सपने मेरे, नींदों से होके तेरे..रातों से कहते हैं लो, हम तो सवेरे हैं वो...सच हो गए जो... :)

सुनो ना संगमरमर की ये मीनारें
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे
आज से दिल पे मेरे राज तुम्हारा
ताज तुम्हारा
सुनो ना संगमरमर...

बिन तेरे मद्धम-मद्धम,
भी चल रही थी धड़कन
जबसे मिले तुम हमें
आँचल से तेरे बंधे
दिल उड़ रहा है
सुनो ना आसमानों के ये सितारे
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे

ये देखो सपने मेरे, नींदों से हो के तेरे
रातों से कहते हैं लो, हम तो सवेरे हैं वो
सच हो गए जो
सुनो ना दो जहानों के ये नज़ारे
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे
आज से दिल पे...
सुनो ना संगमरमर.

इस गीत को गाया है उदीयमान गायक अरिजित सिंह ने। इस साल भले ही किसी एक संगीतकार, गीतकार या एलबम का दबदबा ना रहा हो पर जहाँ गायिकी का सवाल है ये साल अरिजित सिंह के नाम रहा है। पिछले साल की तमाम फिल्मों के गीत खँगालते हुए मैंने पाया कि सबसे ज्यादा अच्छे गीत  इसी गायक की झोली में गए हैं। तो आइए सुनें अरिजित की आवाज़ में इस गीत को..




वार्षिक संगीतमाला 2014

रविवार, फ़रवरी 10, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 10 : मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ...

वार्षिक संगीतमाला 2012 में बाकी रह गए हैं अंतिम दस पॉयदानों के गीत और आज प्रथम दस की पहली कड़ी के रूप में जो गीत है वो काफ़ी परेशानियाँ खड़ी कर रहा है। पर ये परेशानी हमारी या आपकी नहीं है बल्कि फिल्म इशकज़ादे के उन चरित्रों की है जो ज़िंदगी भर नफ़रत की आग के बीच पले बढ़े हैं। अब इसी बीच हालात कुछ इस तरह के हो जाएँ कि जिस शख़्स को आपको देखना भी पहले गवारा ना हो उसी की चाहत आपको उसके प्रति अपना व्यवहार बदलने पर मज़बूर कर दे तो दिल की इस अंदरुनी उठापटक से परेशानी तो होगी ना।

एक तरुणी के दिल में चल रही मीठी परेशानी को अपने शब्दों से सँवारा है गीतकार क़ौसर मुनीर ने। वर्षों से दबी नफ़रत को मोहब्बत में बदलने के अहसास को मुनीर ज़रा-ज़रा काँटों से लगने लगा दिल मेराचाहत के छीटें हैं, खारे भी मीठे हैं, आतिशें वो कहाँ, रंजिशें हैं धुआँ जैसे जुमलों से बड़ी खूबसूरती से आकार देती हैं। गीत की पंचलाइन मैं परेशाँ परेशाँ...के बारे में मुनीर कहती हैं कि उन्होंने इसी तरह का उद्घोष किसी सूफी रचना में सुना था और वो उनके मन में कहीं बैठा हुआ था। जब उन्हे इस गीत की परिस्थिति बताई गयी तो इसी के केंद्र में रखकर उन्होंने ये गीत बुन दिया।

संगीतकार अमित त्रिवेदी अपनी इस कम्पोजीशन को रॉक बैलॉड की श्रेणी में रखते हैं जिसके इंटरल्यूड्स में हारमोनियम की सुरीली तान है। वैसे भी अगर आप अमित त्रिवेदी के संगीत पर शुरु से पैनी नज़र रखते हों तो आप जानते होंगे कि हारमोनियम उनके संगीतबद्ध गीतों का अहम हिस्सा रहा है। अमित ने इस गीत के लिए एक नई आवाज़ का चुनाव किया। ये आवाज़ थी शाल्मली खोलगडे की।

इशकज़ादे से अपना हिंदी फिल्म संगीत का सफ़र शुरु करने वाली शाल्मली ने पिछले साल अइया और कॉकटेल के गाने भी गाए हैं। अपनी माँ उमा खोलगडे और फिर शुभदा पराडकर से संगीत सीखने वाली शाल्मली हिंदी और अंग्रेजी गायन में समान रूप से प्रवीण हैं। 

 शाल्मली खोलगडे, अमित त्रिवेदी और क़ौसर मुनीर

पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में आगे की शिक्षा के लिए विदेश जाने का मन बना चुकी शाल्मली के लिए अमित द्वारा बुलाना उनके सांगीतिक सफ़र का अहम मोड़ साबित हुआ। शाल्मली बताती हैं कि जब पहली बार इस गीत के कच्चे बोलों को उन्होंने अमित त्रिवेदी जी के सामने गुनगुनाया तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी : कहाँ बैठी थी इतनी देर से तू छोरी? हिंदी फिल्म जगत के अपने पहले गीत को जिस तरह उसकी भावनाओं में डूबकर उन्होंने निभाया है वो काबिलेतारीफ़ है

 नए-नए नैना रे ढूँढे हैं दर-बदर क्यूँ तुझे
नए-नए मंज़र ये तकते हैं इस कदर क्यूँ मुझे
ज़रा-ज़रा फूलों पे झड़ने लगा दिल मेरा
ज़रा-ज़रा काँटों से लगने लगा दिल मेरा
मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ 

आतिशें वो कहाँ
मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ
रंजिशें हैं धुआँ..
मैं परेशाँ..
 

गश खाके गलियाँ, मुड़ने लगी हैं.. मुड़ने लगी हैं
राहों से तेरी जुड़ने लगी हैं जुड़ने लगी हैं
चौबारे सारे ये, मीलों के मारे से
पूछे हैं तेरा पता
ज़रा ज़रा चलने से थकने लगा मन मेरा
ज़रा ज़रा उड़ने को करने लगा मन मेरा

मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ
दिलकशीं का समा
मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ
ख़्वाहिशों का समा..
मैं परेशाँ..

बेबात खुद पे मरने लगी हूँ, मरने लगी हूँ
बेबाक आहें भरने लगी हूँ, भरने लगी हूँ
चाहत के छीटें हैं, खारे भी मीठे हैं
मैं क्या से क्या हो गयी
ज़रा-ज़रा फितरत बदलने लगा दिल मेरा
ज़रा-ज़रा किस्मत से लड़ने लगा दिल मेरा

मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ
कैसी मदहोशियाँ
मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ
मस्तियाँ मस्तियाँ..
मैं परेशाँ..

तो आइए सुनते हैं शाल्मली की आवाज़ में ये गीत

मंगलवार, जनवरी 06, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 :पायदान संख्या 22 - फ़लक तक चल साथ मेरे..

तो आज बारी है वार्षिक संगीतमाला की 22 वीं पायदान की। वैसे इस नग्मे और अगले आठ दस नग्मों में सब कमोबेश एक ही स्तर के हैं इसलिए इस गीत की रैंकिंग पर ज्यादा मत जाइएगा।




इस रोमांटिक नग्मे को इतना खूबसूरत बनाने में संगीतकार विशाल शेखर, गायक उदित नारायण और गीतकार क़ौसर मुनीर की बराबर की सहभागिता है। कौसर मुनीर पहली बार मेरी किसी गीतमाला का हिस्सा बनी हैं और मुझे उम्मीद है कि इनके लिखे कई और अच्छे नग्मे हमें आगे भी सुनने को मिलेंगे।

कौसर ने प्राकृतिक बिंबों का इस्तेमाल करते हुए इस गीत में प्यारी मुलायमियत भरी है जो दिल को छू जाती है। उदित भाई की आवाज इतनी स्पष्ट और सधी हुई है कि उसकी खनक देर तक गीत सुनने के बाद भी दिमाग में ताज़ी रहती है। महालक्ष्मी अय्यर ने उदित का बखूबी साथ दिया है।

पर टशन फिल्म के इस गीत में विशाल शेखर के संगीत को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। २४ वीं पायदान पर आपने देखा कि उन्होंने एक हिंगलिश गीत के लिए पाश्चात्य संगीत संयोजन का सहारा लिया जो कि गीत के मूड के साथ घुल मिल गया पर इस रूमानी नग्मे में भारतीय वाद्य यंत्रों का भी खूबसूरत इस्तेमाल किया है जो दिल को सुकून पहुँचाता है। गीत की काव्यात्मकता तो बेहतर है ही पर विशाल शेखर ने गीत में मस्ती का रंग भी संगीत के ज़रिए जोड़ दिया है

तो पहलें पढ़ें क़ौसर साहिबा का लिखा ये दिलकश गीत

फ़लक तक चल साथ मेरे, फ़लक तक चल साथ चल
ये बादल की चादर
ये तारों के आँचल
में छुप जाएँ हम, पल दो पल
फ़लक तक चल....

देखो कहाँ आ गए हम सनम साथ चलके
जहाँ दिन की बाहों में रातों के साये हैं ढलते
चल वो चौबारे ढूँढें जिन में चाहत की बूंदें
सच कर दे सपनों को सभी
आँखों को मीचे मीचे मैं तेरे पीछे पीछे
चल दूँ जो कह दे तू अभी
बहारों की छत हो, दुआओं के खत हो
पढ़ते रहें ये ग़ज़ल
फ़लक तक चल....

देखा नहीं मैंने पहले कभी ये नज़ारा
बदला हुआ सा लगे मुझको आलम ये सारा
सूरज को हुई है राहत रातों को करे शरारत
बैठा है खिड़की पर तेरी
हाँ..इस बात पर चाँद भी बिगड़ा, कतरा कतरा वो पिघला
भर आया आँखों में मेरी
तो सूरज बुझा दूँ , तुझे मैं सजा दूँ
सवेरा हो तुझ से ही कल
फ़लक तक चल साथ मेरे


और अब चलें उदित और महालक्ष्मी के साथ आसमान यानि फ़लक तक के सफ़र में



 

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इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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