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शुक्रवार, जनवरी 19, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान 20 :मीर-ए-कारवाँ Meer e Kaarwan

एक हफ्ते के विराम के बाद वार्षिक संगीतमाला का कारवाँ फिर चल पड़ा है साल के बचे हुए बीस शानदार गीतों के सफ़र पर  संगीतमाला की बीसवीं पायदान पर गीत वो जिसे लिखा नवोदित गीतकार अधीश वर्मा ने, धुन बनाई संगीतकार रोचक कोहली ने और जिसमें आवाज़े दीं नीति मोहन व अमित मिश्रा ने । जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ फिल्म लखनऊ सेंट्रल के गीत मीर ए कारवाँ की।

चंडीगढ़ से ताल्लुक रखने वाले रोचक कोहली का सितारा पहली बार आयुष्मान के साथ रचे उनके गीत पानी दा रंग के साथ चमका था। आरंभिक कुछ सालों में आयुष्मान के साथ अपना फिल्म संगीत की शुरुआत करने वाले रोचक कोहली इस साल नाम शबाना, करीब करीब सिंगल और लखनऊ सेंट्रल से बतौर संगीतकार अपनी व्यक्तिगत पैठ बनाते दिखे। चाहे विकी डोनर का पानी दा रंग हो या हवाईज़ादा कासपना है निजाम का ,रोचक की गिटार पर महारत देखते ही बनती है।


मीर ए कारवाँ में भी मुखड़े के पहले  गिटार के साथ तबले का अद्भुत मेल श्रोताओं का ध्यान एक बार ही में आकर्षित कर लेता है। गिटार और तबले की ये संगत ऐसी है जिसे बार बार सुनने का मन  होता है और रोचक इसीलिए उसका प्रयोग इंटरल्यूड्स में भी करते हैं। ये कहना लाजिमी होगा कि संगीत का ये टुकड़ा इस गीत की सिग्नेचर ट्यून बन कर उभरा है। रोचक कोहली ने अधीश की मदद से इस गीत को सूफियत का जामा पहनाने की कोशिश की है। पर गीत के कुछ हिस्से "मितवा" की याद दिला देते हैं जिससे बचा जा सकता था।

फिल्म के गीतकार अधीश वर्मा का फिल्मों के लिए लिखा गया दूसरा गीत है। इससे पहले वे रोचक के साथ बैंक चोर  का एक गीत लिख चुके थे। मीर ए कारवाँ एक ऐसा गीत है जो फिल्म की कहानी में ज़िंदगी की अलग अलग राहों से भटकते हुए किरदारों को संगीत के माध्यम से जोड़ता है। जेल की सलाखों में बंद इन किरदारों को एक नयी मंज़िल की तलाश है।

अधीश ने गीत में मीर-ए-कारवाँ का जुमला उछाला है। दरअसल सफ़र में साथ चलने वाले समूह के नेता को ही 'मीर-ए-कारवाँ' कहा जाता  है। पर अधीश ने इस गीत में कहना चाहा है कि जब हम जीवन की जटिल राहों में अकेले ही संघर्ष करते हैं तो हमारी उम्मीद की किरण, हमारे सफ़र का मसीहा यानि हमारा मीर ए कारवाँ बस एक ऊपर वाला होता है। अधीश इसी मीर ए कारवाँ से अपने किरदारों (जो जीवन की इस गहरी स्याह रात से होकर गुज़र रहे हैं ) के लिए नए उजाले की दुआ करते हैं। 

बहार क्यूँ तेरे दर ना आती.. वाले अंतरे में अधीश किरदारों की अपने आस पास की परिस्थितियों से उपजी हताशा को बखूबी रेखांकित करते हैं। नीति मोहन की आवाज़ मुझे हमेशा से प्यारी लगती रही है। इस गीत में उनका अमित मिश्रा  ने भी बखूबी साथ दिया  है तो आइए सुनें इन दोनों के स्वर में फिल्म लखनऊ सेंट्रल का ये गाना...


ओ बंदेया ओ बंदेया
ओ बंदेया ओ बंदेया
ओ बंदेया ओ बंदेया

तेरी मंज़िलें हुईं गुमशुदा
फिर भी रास्ता है तेरा मेहेरबां
ओ मीर-ए-कारवाँ 
तेरी राहों पे रवाँ
कि मेरे नसीबों में
हो कोई तो दुआ
ओ मीर-ए-कारवाँ
ले चल मुझे वहाँ
ये रात बने जहाँ सुबह
मीर-ए-कारवाँ, ओ मीर-ए-कारवाँ

ओ बस कर दिल अब बस कर भी
हो बस कर दिल अब बस कर भी
उस राह मुझे जाना ही नहीं
पल दो पल का साथ सफ़र फिर
होगी जुदा रहगुज़र
नदिया थाम के जो बहते रहे
मिलते हैं वो किनारे कहाँ

ओ मीर-ए-कारवाँ, तेरी राहों पे रवाँ...

बहार क्यूँ तेरे दर ना आती
है क्या भरम जो नज़र दिखाती
अब और कितनी ये रात बाक़ी
है रात बाक़ी, ये रात बाक़ी
निगल ना जायें तुझे ये साये
गले में घुटती हैं सर्द आहें
बता ओ बंदे क्यूँ मात खाये
क्यूँ मात खाये रे

लागे ना दिल अब लागे नहीं
लागे ना दिल अब लागे नहीं
मेरे पैरों तले निकली जो ज़मीं
इस बस्ती में था मेरा घर
उसे किस की लगी फिर नज़र
वो जो सपनों का था काफ़िला
ऐसा झुलसा की अब है धुआँ

ओ मीर-ए-कारवाँ, तेरी राहों पे रवाँ...
चल अकेला राही, चल चल अकेला राही
हाफ़िज़ तेरा इलाही, हाफ़िज़ तेरा इलाही



वार्षिक संगीतमाला 2017


शुक्रवार, जनवरी 05, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 24 यही उमर है कर ले गलती से मिस्टेक! Galti Se Mistake

वार्षिक संगीतमाला की चौबीसवीं सीढ़ी पर गाना वो जिसमें मेरी समझ से इस साल की सबसे बेहतरीन कोरियोग्राफी हुई है। गाने में प्रयुक्त संगीत ऐसा कि आप चाहे भी तो अपने को थिरकने से नहीं रोक सकते। संगीतकार प्रीतम की ये खासियत रही है कि वो पश्चिमी संगीत के साथ लोक संगीत का इस तरह मिश्रण करते हैं कि हर वक़्त एक नई आवाज़ बाहर निकल कर आती है।


इस बार प्रीतम ने असम के लोक नृत्य के साथ के संगीत को अपने इस गीत में समाहित किया है। प्रीतम के सहायक ध्रुवदास जिन्होंने इस गीत की प्रोग्रामिंग की है ने इसका खुलासा करते हुए अपने एक साक्षात्कार में बताया था कि
"असमी बिहू नृत्य गीतों का अंत द्रुत लय में होता है जिसकी बहुत सारी तहें होती हैं। शुरुआत में धीमी लय ज्यादा ऊँची और तेज होती चली जाती है। इस गीत में बिहु के रूप को बरक़रार रखा गया है।"
ध्रुवदास क्या कहना चाहते हैं वो आप गीत के शुरुआती पन्द्रह सेकेंड और फिर अंत के आधा मिनट (2.15 - 2.45 तक ) में सुन कर महसूस कर सकते हैं।  बिहु में असम के लोकवाद्य पेपा (जो भैंस के सींग से बनाया जाता है और तुरही जैसा दिखता है) के साथ ढोल की अद्भुत संगत होती है जिसका एक नमूना आप को यहाँ सुनने को मिलेगा।

  


जग्गा जासूस के इस गीत में पेपा का स्वर देर तक गूँजा है। वैसे जहाँ प्रीतम रहेंगे वहाँ थोड़े विवाद भी जरूर रहेंगे। गीत के रिलीज़ होने के बाद उँगली उठी कि गीत की धुन मेक्सिको के एक बैंड के इस गीत से मिलती जुलती है। मेंने जब दोनों गीतों को सुना तो पाया कि दोनों में इस्तेमाल हुई ताल वाद्यों की बीट्स मिलती जुलती हैं लेकिन संगीत निर्माता का कहना है कि ये बीट्स एक Common tribal music library से लिए गए हैं इसलिए ये आरोप बेबुनियाद हैं। 

ये गीत किशोर और युवा होते लड़कों का गीत है। गीत के बोल मजाहिया लहजे में युवावस्था में प्रवेश करते लड़कों को गलती से mistake करने को प्रोत्साहित करते हैं। गीत में एक पागलपन हैं जो गीत की कोरियोग्राफी में उभर कर सामने आता है। दरअसल लड़कों के हॉस्टल में जिसने भी कुछ समय बिताया हो वो इस पागलपन से ख़ुद को सहज ही जोड़ सकता है।😊😊

इस गीत की सफलता में संगीतकार, गीतकार और गायक के आलावा निर्देशक अनुराग बसु, अदाकार रणवीर कपूर और कोरियाग्राफर टीम का बराबर का हाथ है। मजे की बात ये है कि इस गीत में अनुराग सांता क्लॉज बनकर आते हैं। तो अगर मन और तन दोनों को को तरंगित करना चाहते हैं तो अरिजीत सिंह और अमित मिश्रा की आवाज़ और प्रीतम के संगीत के साथ झूमना ना भूलें..


वार्षिक संगीतमाला 2017

 

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