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रविवार, जनवरी 20, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान 10 :" पानियों सा" जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण ! Paniyon Sa

वार्षिक संगीतमाला का ये सफ़र अब जा पहुँचा है साल 2018 की दस शीर्ष पायदानों की ओर। दसवीं पायदान पर गाना वो जिसे इस साल का Love  Anthem  भी कहा जा सकता है। ये गाना है सत्यमेव जयते का पानियों सा। डॉक्टर और इंजीनियरों को तो आपने संगीतकार बनते देखा ही है अब रोचक ने अपने गीतों से ये साबित कर दिया है कि वकील भी रूमानियत भरी धुनें बना सकते हैं। :) 

रोचक कोहली एक ऐसे संगीतकार हैं जो लंबे चौड़े आर्केस्ट्रा आधारित संगीत संयोजन के बजाय मधुर धुनों पर ज्यादा विश्वास करते हैं। देखते देखते, तेरा यार हूँ मैं, लै डूबा, नैन ना जोड़ी और पानियों सा जैसे गीत रचने के बाद उन्हें पिछले साल का मेलोडी का बादशाह कहना अनुचित नहीं होगा। उनकी इन मधुर धुनों को मनोज मुन्तशिर और कुमार जैसे गीतकार और आतिफ असलम, अरिजीत व सुनिधि जैसे कलाकारों को साथ मिला जो उनकी रचनाओं को एक अलग मुकाम पर ले जाने में सफल हुए।


सत्यमेव जयते के रिलीज़ होने के कुछ दिनों पहले जब मैंने ये गीत सुना तो इसकी मधुरता और बोलों ने मुझे कुछ ही क्षणों में अपनी गिरफ्त में ले लिया। इस साल की संगीतमाला में सबसे पहले शामिल होने वाले कुछ गीतों में पानियों सा भी था। साल के अगर सबसे रोमंटिक गीतों में अगर पानियों सा का नाम आ रहा है तो उसके लिए गीतकार कुमार यानि कुमार राकेश भी बधाई के पात्र हैं, भले ही उसके लिए उन्हें हिंदी व्याकरण के नियमों से छेड़छाड़ करनी पड़ी हो। वैसे कुमार के लिए भाषा का तोड़ना मरोड़ना कोई नई बात नहीं है। इस बारे में उनकी एक सीधी सी फिलासफी है जिसे उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था जब बात चल रही थी उनके हिट गीत चिट्टियाँ कलाइयाँ वे..रिक्वेस्टाँ पाइयाँ वे के बारे में
"मुझे request को plural बनाना था। Requests हो सकता है ये भी मुझे पता नहीं था। तो मैंने उसे रिक्वेस्टाँ कर दिया। भूषण जी ने मुझसे कहा ऐसा कोई शब्द नहीं होता। मैंने उनसे कहा कोई मापदंड थोड़े ही है लफ़्जों का। एक डिक्शनरी बनी होगी उसके पहले खाली होगी। उसके बाद परमीशनाँ भी आ गया। मेरे को पब्लिक ने आज़ादी दे दी। भाई तू कर ले। मैं तो कहता हूँ कि आप किसी चीज (गलत शब्द) को कैसे कनेक्ट करते हो ये महत्त्वपूर्ण है।"
रोचक कोहली व  कुमार 
2017 में  उनका एक गीत आया था रंगदारी। रंगदारी का मतलब वो नहीं जानते थे पर गाते गाते ये शब्द  एक धुन में फिट हो गया। बाद में उन्हें पता चला कि इसका मतलब तो टैक्स देना होता है तो उन्होंने कहा कि अब शब्द तो यही रखेंगे बोलों को थोड़ा घुमा लेते हैं और गीत बना ज़िन्दगी तेरे रंगों से रंगदारी ना हो पायी लम्हा लम्हा कोशिश की पर यारी ना हो पायी।

अब देखिए पानियों सा में उन्होंने में कितनी प्यारी पंक्तियाँ लिखीं कि संग तेरे पानियों सा पानियों सा बहता रहूँ..तू सुनती रहे में कहानियाँ सी कहता रहूँ। ....  दो दिलों के बीच का प्यार पानी की तरह तरल रहे, जीवन पर्यन्त बहता रहे और आपस में संवाद बरक़रार रहे  तो इससे ज्यादा खुशनुमा और क्या हो सकता है? अब भले ही हिंदी के जानकार कहें कि भाई द्रव्यसूचक संज्ञा जैसे पानी, तेल, घी, दूध  तो एकवचन में ही इस्तेमाल होती हैं , तुमने ये "पानियों सा" कहाँ से ईजाद  कर लिया? मेरे ख़्याल से कुमार फिर वही जवाब होगा मेरे को पब्लिक ने आज़ादी दे दी। भाई तू कर ले। वैसे भी बोलों को गीत के मीटर में लाने के लिए गीतकार ऐसा करते ही रहे हैं।सही बताऊँ तो कुमार ने गलत लिखते हुए भी गीत की भावनाओं से क्या पूरे देश का कनेक्शन बना दिया। 

कुमार पंजाब के जालंधर से हैं। आजकल फिल्मों में  हिंदी मिश्रित पंजाबी गीतों का जो चलन है उसने उन्हें खूब काम और यश दिलाया है। माँ का लाडला, बेबी डॉल, इश्क़ तेरा तड़पाए और चिट्टियाँ कलाइयाँ जैसे गीतों ने उनकी लोकप्रियता युवाओं में तो खासी बढ़ा दी। मुझे ये खिचड़ी उतनी पसंद नहीं आती थी तो मैं उन्हें एक कामचलाऊ गीतकार ही मानता था जो दिल से कम और बाजार की माँग के अनुरूप ज्यादा लिखता है। फिर उन्होंने जब जो माँगी थी दुआ और मै तो नहीं हूँ इंसानों में  जैसे दिल छूते गीत लिखे तो मुझे समझ आया कि बंदे में दम है। 

जो तेरे संग लागी प्रीत मोहे 
रूह बार बार तेरा नाम ले 
कि रब से है माँगी ये ही दुआ 
तू हाथों की लकीरें थाम ले

चुप हैं बातें, दिल कैसे बयां में करूँ 
तू ही कह दे, वो जो बात मैं कह न सकूँ
कि संग तेरे पानियों सा पानियों सा
पानियों सा बहता रहूँ 
तू सुनती रहे मैं कहानियाँ सी कहता रहूँ 
कि संग तेरे बादलों सा बादलों सा 
बादलों सा उड़ता रहूँ 
तेरे एक इशारे पे तेरी और मुड़ता रहूँ 

आधी ज़मीं आधा आसमां था 
आधी मंजिलें आधा रास्ता था 
इक तेरे आने से मुकम्मल हुआ सब ये 
बिन तेरे जहां भी बेवज़ह था 
तेरा दिल बन के में साथ तेरे धड़कूँ 
खुद को तुझसे अब दूर न जाने दूँ 
कि संग तेरे ...मुड़ता रहूँ


इस गीत को गाया है आतिफ असलम और तुलसी कुमार ने। ज़ाहिर है टी सीरिज़ वाले तुलसी कुमार को प्रमोट करने का मौका नहीं छोड़ते भले ही उनसे लाख गुना बेहतर गायिकाएँ फिल्म उद्योग में मौज़ूद हैं। आतिफ जैसा एक अच्छा गायक गीत को कहाँ ले जाता है वो आप तुलसी के सोलो वर्सन को यहाँ सुन कर महसूस कर सकते हैं। 



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

सोमवार, जनवरी 07, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 19 : ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला O Meri Laila

लैला मजनूँ का नाम लेने से मुझे तो सबसे पहले सत्तर के दशक की फिल्म याद आ जाती है जिसके गाने कई सालों तक  भी रेडियो और दूरदर्शन के चित्रहार में धूम मचाते रहे। संगीतकार मदनमोहन ने लता और रफ़ी की आवाज़ में हुस्न हाज़िर है मोहब्बत की सजा पाने को, तेरे दर पे आया हूँ.., इस रेशमी पाजेब की झनकार के सदके, होके मायूस तेरे दर से सवाली ना गया, बर्बाद ए मोहब्बत की दुआ साथ लिए जा जैसे गीतों का गुलदस्ता दिया जो हमेशा हमेशा के लिए हमारे दिलों मे नक़्श हो गया। 

मुझे  लगता है कि इम्तियाज अली ने जब अपने छोटे भाई साजिद अली के साथ 2018 में इसी नाम से  फिल्म बनाने का निश्चय किया तो उनके मन में ये विचार जरूर कौंधा होगा कि लैला मजनूँ का संगीत उसकी सांगीतिक विरासत के अनुरूप होना चाहिए। अपने दो सिपाहसलारों यानी संगीतकारों नीलाद्रि कुमार और जोय बरुआ की मदद से वो इस कार्य में कितने सफल हुए वो आप इस संगीतमाला के साथ साथ ख़ुद महसूस कर सकेंगे।


इम्तियाज अली की लैला मजनूँ कोई ऐतिहासिक प्रेम गाथा नहीं बल्कि एक सहज सी प्रेम कथा है जो कश्मीर की वादियों में फलती फूलती है। संगीतमाला में इस फिल्म का जो पहला गीत शामिल हो रहा है, एक बेहद ख़ुशमिज़ाज गीत है जो प्रेम में डूबे दो अजनबियों के उल्लासित मन की खुशी  बयाँ करता है। ये दूसरी दफा है कि असम का कोई संगीतकार इस साल की संगीतमाला में अपनी जगह बना रहा है। इससे पहले मैंने आपकी मुलाकात मुल्क की कव्वाली  पिया समाए में युवा व उभरते हुए संगीतकार अनुराग सैकिया से कराई थी। अनुराग सैकिया और जोय बरुआ दोनों ही पश्चिमी शास्त्रीय और पॉप संगीत से प्रभावित रहे हैं और उनकी ज्यादातर रचनाएँ इसी कोटि की रही हैं। ये उनकी बहुमुखी प्रतिभा का ही कमाल है कि अनुराग ने जहाँ मुल्क में कव्वाली संगीतबद्ध की वहीं जोय ने लैला मजनूँ के लिए कश्मीरी लोक संगीत और पश्चिमी वाद्यों को मिलाते हुए कई धुनें तैयार कीं।

इरशाद कामिल और जोय बरुआ
वैसे अनुराग की तरह जोय हिंदी फिल्म संगीत के लिए कोई नया नाम नहीं हैं। बतौर गायक पिछले डेढ़ दशक से लगभग दर्जन भर गीतों में अपनी आवाज़ दे चुके हैं पर उनका ज्यादातर बेहतरीन काम अंग्रेजी या असमी संगीत के लिए हुआ है। लैला मजनूँ के कुछ गीतों को संगीत देने का सुनहरा मौका उन्होंने दोनों हाथों से बेहद कुशलतापूर्वक लपका है।

मुखड़े और हर अंतरे का अंत जोय ने द्रुत गति के कोरस से किया है। रुबाब की धुन से शुरु होता ये गीत जैसे जैसे कोरस तक पहुँचकर अपनी लय पकड़ता है वैसे वैसे गीत की उर्जा सुनने वालों को वशीभूत करने में कामयाब होती है। रूबाब का स्वर मुझे बेहद पसंद है और वो गीत में हमेशा रहता है कभी अकेला तो कभी अन्य वाद्यों के साथ।  इस गीत के साथ ही इस साल पहली बार इरशाद कामिल का कोई गीत संगीतमाला में आया है और इस गुणी गीतकार के बोलों का फर्क आप पढ़ कर ही समझ सकते हैं। वो चाहे भूली अठन्नी का नोस्टालजिया हो या फिर बंद आँखें करूँ दिन को रातें करूँ ..तेरी जुल्फों को सहला के बातें करूँ की मुलायमियत, इरशाद गीत में कई बार मन गुदगुदा जाते हैं। 


पत्ता अनारों का, पत्ता चनारों का, जैसे हवाओं में
ऐसे भटकता हूँ दिन रात दिखता हूँ, मैं तेरी राहों में
मेरे गुनाहों में मेरे सवाबों में शामिल तू
भूली अठन्नी सी बचपन के कुर्ते में, से मिल तू
रखूँ छुपा के मैं सब से वो लैला
माँगूँ ज़माने से, रब से वो लैला
कब से मैं तेरा हूँ कब से तू मेरी लैला
तेरी तलब थी हाँ तेरी तलब है
तू ही तो सब थी हाँ तू ही तो सब है
कब से मैं तेरा हूँ कब से तू मेरी लैला
ओ मेरी लैला, लैला ख़्वाब तू है पहला
कब से मैं तेरा हूँ कब से तू मेरी लैला

माँगी थी दुआएँ जो उनका ही असर है हम साथ हैं
ना यहाँ दिखावा है ना यहाँ दुनयावी जज़्बात हैं
यहाँ पे भी तू हूरों से ज्यादा हसीं
यानी दोनों जहानों में तुमसा नहीं
जीत ली हैं आखिर में हम दोनों ने ये बाजियाँ..
रखूँ छुपा के मैं .... लैला
तेरी तलब थी ..... लैला.
ओ मेरी लैला...

जायका जवानी में ख़्वाबों में यार की मेहमानी में
मर्जियाँ तुम्हारी हो खुश रहूँ मैं तेरी मनमानी में
बंद आँखें करूँ दिन को रातें करूँ
तेरी जुल्फों को सहला के बातें करूँ
इश्क में उन बातों से हो मीठी सी नाराज़ियाँ
रखूँ छुपा के मैं .... लैला
तेरी तलब थी ..... लैला.
ओ मेरी लैला...


ये इस गीतमाला में आतिफ असलम का तीसरा गाना है और इस बार वो अपनी गायिकी के अलग अलग रंगों में दिखे हैं। इस गीत में उनका साथ दिया है ज्योतिका टांगरी ने। वैसे ये गीत आतिफ का ही कहलाएगा पर ज्योतिका ने अपना हिस्सा भी अच्छा ही निभाया है। तो आइए सुनते हैं लैला मजनूँ का ये नग्मा...



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

शुक्रवार, जनवरी 04, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 22 : दिल मेरी ना सुने, दिल की मैं ना सुनूँ Dil Meri Na Sune

संगीतमाला की पिछली सीढी पर अगर आपको बंदेया ने थोड़ा उदास कर दिया था तो आज के इस बेहद मधुर गीत को सुन आपका भी दिल कुछ पलों को झूमने के लिए मजबूर हो जाएगा। इस गीत में गीतकार और गायक की वही जोड़ी है जो दो पॉयदानें पीछे थीं। जी हाँ एक बार फिर आ रहे हैं गीतकार मनोज मुन्तशिर,आतिफ असलम के साथ जीनियस फिल्म के इस गीत में। 


कुछ ही साल पहले की बात है  जब इस गीत के संगीतकार ना केवल अपने गीतों से बल्कि अपनी आवाज़ से भी आपके कानों में हर रोज़ दस्तक देते रहते थे। उन दिनों शादी बारात समारोह में आने वाला हर डीजे इनके ही गीत बजाया करता था। बतौर संगीतकार इनके चाहनेवाले तो हमेशा रहे पर इनकी गायिकी को झेल पाना श्रोताओं के एक तबके के लिए काफी मुश्किल होता था। फिर ये हुआ कि इन्होंने गाना छोड़ दिया और अचानक ही बतौर हीरो दिखने लगे। वो दौर भी धीमा पड़ा और पिछले दो सालों में संगीत और फिल्म जगत के परिदृश्य से वे एकदम से गायब ही हो गए। आप समझ तो रहे होंगे ना कि मैं किस की बात कर रहा हूँ ? जी बिल्कुल सही समझे आप। मेरा इशारा हिमेश रेशमिया की ही तरफ है।


आप जानना चाहेंगे कि इस ब्रेक के दौरान उन्होंने क्या किया ? इस साल वे कुछ सिंगल्स करते दिखे। देश विदेश में कनसर्ट किए और एक बात और हुई कि उन्होंने इसी साल दूसरी शादी भी की। अगले साल उनकी कई फिल्में आने की उम्मीद है। इस साल उन्होंने सिर्फ Genius के लिए काम किया जिसके द्वारा निर्माता अनिल शर्मा अपने बेटे उत्कर्ष शर्मा का कैरियर शुरु करने जा रहे थे। ऐसे में फिल्म का संगीत शुरुआती उत्सुकता बढ़ाने के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण था और सच पूछिए तो हिमेश  ने आपना काम बखूबी ही किया। तेरा फितूर और दिल मेरी ना सुने काफी सुने गए। तेरा फितूर का प्रील्यूड तो मुझे इस साल के रचे गए संगीत टुकड़ों में अपना विशेष  स्थान रखता है पर उसके आगे गीत की धुन में कुछ खास नवीनता नहीं दिखी।

कुछ गीत मुखड़ों तक आते आते ही आपको अपने मोहपाश में बाँध लेते हैं। दिल मेरी ना सुने, दिल की मैं ना सुनूँ एक ऐसा ही नग्मा है जिसकी धुन इतनी मधुर है कि मुखड़े तक पहुँचते ही मन झूमने लगता है। हीमेश ने इस गीत के प्रील्यूड और इंटरल्यूड में बाँसुरी का इस्तेमाल किया है। इस बाँसुरी की मोहक धुन को बजाया है वादक तेजस विनचूरकर ने। 
आतिफ असलम व  हिमेश रेशमिया
एक ज़माना था जब टीवी शो सुरक्षेत्र में हिमेश और आतिफ अपने अपने देश के गायकों की फौज की कमान सँभालते हुए एक दूसरे पर वार करना नहीं भूलते थे पर इस गीत के लिए हिमेश और आतिफ ने पहली बार साथ काम किया। हीमेश की इस प्यारी धुन को  आतिफ की आवाज़ का बेहतरीन साथ मिला और नतीजन ये गीत करोड़ों बार यू ट्यूब पर बजा। तो चलिए अब साथ चलते हैं मनोज मुन्तशिर के शब्दों के इन शब्दों के साथ दो जवाँ दिलों की आहटें टटोलने।


मैंने छानी इश्क़ की गली, बस तेरी आहटें मिली
मैंने चाहा चाहूँ ना तुझे, पर मेरी एक ना चली
इश्क़ में निगाहों को मिलती हैं बारिशें
फिर भी क्यूँ कर रहा दिल तेरी ख़्वाहिशें

दिल मेरी ना सुने, दिल की मैं ना सुनूँ
दिल मेरी ना सुने, दिल का मैं क्या करूँ

लाया कहाँ मुझको ये मोह तेरा
रातें ना अब मेरी, ना मेरा सवेरा
जान लेगा मेरी, ये इश्क़ मेरा
इश्क़ में निगाहों को ....तेरी ख़्वाहिशें
दिल मेरी.....दिल का मैं क्या करूँ

दिल तो है दिल का क्या ग़ुस्ताख है ये
डरता नहीं पागल बेबाक़ है ये
है रक़ीब ख़ुद का ही इत्तेफ़ाक है ये
इश्क़ में निगाहों को ....तेरी ख़्वाहिशें
दिल मेरी.....दिल का मैं क्या करूँ


वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

बुधवार, जनवरी 02, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 24 : वो हवा हो गए देखते देखते Dekhte Dekhte

संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर विराजमान है संगीतकार रोचक कोहली, गीतकार मनोज मुन्तशिर और गायक आतिफ असलम की तिकड़ी "बत्ती गुल मीटर चालू" के इस गीत के साथ, जिसका मुखड़ा नुसरत फतेह अली खाँ की कव्वाली से प्रेरित है। लगता है मेरे रश्के क़मर के पिछले साल हिट हो जाने के बाद नुसरत साहब की कव्वालियों को फिर से बनाने की माँग, निर्माताओं ने बढ़ा दी है। यही वजह कि इस साल फिल्म Raid  में सानू इक पल चैन ना आवे , फन्ने खान में ये जो हल्का हल्का सुरूर है और सिम्बा में तेरे बिन नहीं लगदा दिल ढौलना की गूँज है।

मैं पुराने गीतों के फिर बने वर्जन को मूल गीतों की अपेक्षा कम अहमियत देता हूँ क्यूँकि फिल्म संगीत में चली ये प्रवृति कलाकारों की रचनात्मकता को कम करती है। ये सही है कि एक जमे  जमाए गीत को फिर से recreate कर लोकप्रियता हासिल करना आसान नहीं क्यूँकि सुनने वाला उसकी तुलना तुरंत पुराने गीत से करने लगता है पर ये भी उतना ही सही है कि ऐसे गीत पुराने गीतों के लोकप्रिय मुखड़ों का इस्तेमाल कर लोगों के ज़ेहन में जल्दी बैठ जाते हैं। बहरहाल इसके बावजूद भी अगर ये गीत इस गीतमाला में है तो उसकी वजह इसके सहज पर शायराना बोल हैं। वैसे तो रोचक और आतिफ ने इस गीत में अपनी अपनी भूमिकाएँ निभायी हैं पर इसी कारण से मैं इस गीत का असली नायक मनोज मुन्तशिर को मानता हूँ।




मनोज मुन्तशिर एक शाम मेरे नाम की संगीतमालाओं के लिए कोई नए नाम नहीं हैं। पिछले चार पाँच सालों में उनके दर्जन भर गीत मेरी संगीतमाला में शामिल रहे हैं। मनोज की खासियत है कि वो रूमानियत को सहज शब्दों की शायराना चाशनी में इस तरह घोलते हैं कि बात सुनने वाले तक तुरंत पहुँच जाती है। यही वजह है कि उनकी लोकप्रियता युवाओं में इतनी ज्यादा है। तेरे संग यारा, फिर कभी, ले चला, तेरी गलियाँ जैसे उनके दर्जनों गीतों की लोकप्रियता उनके शब्दों की मुलायमियत में छिपी है। मैंने ये भी देखा है कि जब जब इस ढर्रे से निकल कर भी उन्होंने लिखा है, कमाल ही किया है। मैं तुझसे प्यार नहीं करती, बड़े नटखट है तोरे कँगना, माया ठगनी, है जरूरी जैसे गीतों को मैं इसी श्रेणी का मानता हूँ। आशा है आने वाले सालों में मनोज को कुछ ऐसी पटकथाएँ भी मिलेंगी जहाँ उनके शब्दों को विविधता लिए गहरे और पेचीदा मनोभावों में डूबने का मौका मिले।

मनोज मुन्तशिर और रोचक कोहली
तो लौटें इस गीत पर। आपको याद होगा कि पिछले साल भी नुसरत साहब की कव्वाली मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र को भी मनोज ने अपने शब्दों मे ढालकर खासी लोकप्रियता अर्जित की थी। अगर आप यहाँ भी नुसरत साहब की मूल कव्वाली सुनने के बाद ये गीत सुनेंगे तो हुक लाइन को छोड़ देने से लगेगा कि आप एक नया ही गीत सुन रहे हैं। 

मनोज मुन्तशिर का  कहना है कि कई बार सीधे सहज शब्दों की ताकत का सही इस्तेमाल नहीं हो पाता और मैंने इस में यही करने की कोशिश की है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुझे इस गीत की इन पंक्तियाँ में लगता है कि आते जाते थे जो साँस बन के कभी.. वो हवा हो गए देखते देखते। वाह भाई साँसों को हवा हो जाने के मुहावरे से इस खूबसूरती से जोड़ने के लिए वो दिल से दाद के काबिल हैं। 

रज्ज के रुलाया, रज्ज के हंसाया
मैंने दिल खो के इश्क़ कमाया
माँगा जो उसने एक सितारा
हमने ज़मीं पे चाँद बुलाया

जो आँखों से.. हाय
वो जो आँखों से इक पल ना ओझल हुए
लापता हो गए देखते देखते
सोचता हूँ..सोचता हूँ कि वो कितने मासूम थे
क्या से क्या हो गए देखते देखते

वो जो कहते थे बिछड़ेंगे ना हम कभी
अलविदा हो गए देखते देखते
सोचता हूँ..

एक मैं एक वो, और शामें कई
चाँद रोशन थे तब आसमां में कई
यारियों का वो दरिया उतर भी गया
और हाथों में बस रेत ही रह गयी

कोई पूछे के.. हाय
कोई पूछे के हमसे खता क्या हुई
क्यूँ खफ़ा हो गए देखते देखते

आते जाते थे जो साँस बन के कभी
वो हवा हो गए देखते देखते
वो हवा हो गए.. हाय..ओह हो हो..

वो हवा हो गए देखते देखते
अलविदा हो गए देखते देखते
लापता हो गए देखते देखते
क्या से क्या हो गए देखते देखते

जीने मरने की हम थे वजह और हम ही
बेवजह हो गए देखते देखते..
सोचता हूँ..

रोचक कोहली की गिटार पर महारत जग जाहिर है। पिछले साल आप उनका कमाल लखनऊ सेंट्रल के गीत मीर ए कारवाँ में सुन ही चुके हैं। इस गीत का प्रील्यूड भी उन्होंने गिटार पर ही रचा है। ताल वाद्यों की बीट्स पूरे गीतों के साथ चलती है तो आइए सुनते हैं ये गीत आतिफ असलम की आवाज़ में। इस नग्मे को फिल्माया गया है शाहिद और श्रद्धा कपूर की जोड़ी पर।




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

शनिवार, मार्च 31, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 रनर्स अप वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे Jaane De

हमारे यहाँ की फिल्मी कथाओं में प्रेम का कोई अक़्स ना हो ऐसा शायद ही कभी होता है। यही वज़ह है कि अधिकांश फिल्में एक ना एक रूमानी गीत के साथ जरूर रिलीज़ होती हैं। फिर भी गीतकार नए नए शब्दों के साथ उन्हीं भावनाओं को तरह तरह से हमारे सम्मुख परोसते रहते हैं। पर एक गीतकार के लिए  बड़ी चुनौती तब आती है जब उसे सामान्य परिस्थिति के बजाए उलझते रिश्तों में से प्रेम की गिरहें खोलनी पड़ती हैं।  ऐसी ही एक चुनौती को बखूबी निभाया है राज शेखर ने वार्षिक संगीतमाला 2017 के रनर्स अप गीत के लिए जो कि है फिल्म करीब करीब सिंगल से।



राज शेखर एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं के लिए कोई नई शख़्सियत नहीं हैं । बिहार के मधेपुरा से ताल्लुक रखने वाले इस गीतकार ने अपनी शुरुआती फिल्म तनु वेड्स मनु में वडाली बंधुओं के गाए गीत रंगरेज़ से क्रस्ना के साथ मिलकर  वार्षिक संगीतमाला के सरताज़ गीत का खिताब जीता था। हालांकि तनु वेड्स मनु की सफलता राज शेखर के कैरियर में कोई खास उछाल नहीं ला पाई। तनु वेड्स मनु रिटर्न के साथ वो लौटे जरूर पर अभी भी वो फिल्म जगत में अपनी जड़े जमाने की ज़द्दोजहद में लगे हुए हैं। आजकल अपनी कविताओं को वो अपने बैंड मजनूँ का टीला के माध्यम से अलग अलग शहरों में जाकर प्रस्तुत भी कर रहे हैं। 

करीब करीब सिंगल में राज शेखर के लिखे गीत को संगीतबद्ध किया विशाल मिश्रा ने। वैसे तो विशाल ने कानून की पढ़ाई की है और विधिवत संगीत सीखा भी नहीं पर शुरुआत से वो संगीत के बड़े अच्छे श्रोता रहे हैं  सुन सुन के ही उन्होंने संगीत की अपनी समझ विकसित की है। आज वे सत्रह तरह के वाद्य यंत्रों को बजा पाने की काबिलियत रखते हैं।  विकास ने भी इस गीत की धुन को इस रूप में लाने के लिए काफी मेहनत की। चूँकि वो एक गायक भी हैं तो अपनी भावनाओं को भी गीत की अदाएगी में पिरोया। जब गीत का ढाँचा तैयार हो गया तो उन्हें लगा कि इस गीत के साथ आतिफ़ असलम की आवाज़ ही न्याय कर सकती है। इसी वज़ह से गीत की रिकार्डिंग दुबई में हुई। ये भी एक मसला रहा कि गीत में जाने दे या जाने दें में से कौन सा रूप चुना जाए? आतिफ़ को गीत के बहाव के साथ जाने दें ही ज्यादा अच्छा लग रहा था जिसे मैंने भी महसूस किया पर आख़िर में हुआ उल्टा।

विशाल मिश्रा, आतिफ़ असलम और राजशेखर

राज शेखर कहते हैं कि इस गीत को उन्होंने फिल्म की कहानी और कुछ अपने दिल की आवाज़ को मिलाकर लिखा। तो आइए देखें कि आख़िर राजशेखर ने इस गीत में ऍसी क्या बात कही है जो इतने दिलों को छू गयी।

ज़िदगी इतनी सीधी सपाट तो है नहीं कि हम जिससे चाहें रिश्ता बना लें और निभा लें। ज़िंदगी के किसी मोड़ पर हम कब, कहाँ और कैसे किसी ऐसे शख़्स से मिलेंगे जो अचानक ही हमारे मन मस्तिष्क पर छा जाएगा, ये भला कौन जानता है?  ये भी एक सत्य है कि हम सभी के पास अपने अतीत का एक बोझा है जिसे जब चाहे अपने से अलग नहीं कर सकते। कभी तो हम जीवन में आए इस हवा के नए झोंके को एक खुशनुमा ख़्वाब समझ कर ना चाहते हुए भी बिसार देने को मजबूर हो जाते हैं या फिर रिश्तों को अपनी परिस्थितियों के हिसाब से ढालते हैं ताकि वो टूटे ना, बस चलता रहे। ऐसा करते समय हम कितने उतार चढ़ाव, कितनी कशमकश से गुजरते हैं ये हमारा दिल ही जानता है। सोचते हैं कि ऐसा कर दें या फिर वैसा कर दें तो क्या होगा?  पर अंत में पलायनवादी या फिर यथार्थवादी सोच को तरज़ीह देते हुए मगर जाने दे वाला समझौता कर आगे बढ़ जाते हैं। इसीलिए राजशेखर गीत के मुखड़े में कहते हैं   

वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
ये जो है कम से कम ये रहे कि जाने दे
क्यूँ ना रोक कर खुद को एक मशवरा कर लें मगर जाने दे
आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे
वो जो था ख्वाब सा ....


हम आगे बढ़ जाते हैं पर यादें बेवज़ह रह रह कर परेशान करना नहीं छोड़तीं। दिल को वापस मुड़ने को प्रेरित करने लगती हैं। उन बातों को कहवा लेना चाहती हैं जिन्हें हम उसे चाह कर भी कह नहीं सके। पर दिमाग आड़े आ जाता है। वो फिर उस मानसिक वेदना से गुजरना नहीं चाहता और ये सफ़र बस जाने दे से ही चलता रहता है। अंतरों में राजशेखर ने ये बात कुछ यूँ कही है..

हम्म.. बीता जो बीते ना हाय क्यूँ, आए यूँ आँखों में
हमने तो बे-मन भी सोचा ना, क्यूँ आये तुम बातों में
पूछते जो हमसे तुम जाने क्या क्या हम कहते मगर जाने दे
आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे
वो जो था ख्वाब सा ....
आसान नहीं है मगर, जाना नहीं अब उधर
हम्म.. आसान नहीं है मगर जाना नहीं अब उधर
मालूम है जहाँ दर्द है वहीं फिर भी क्यूँ जाएँ
वही कशमकश वही उलझने वही टीस क्यूँ लाएँ
बेहतर तो ये होता हम मिले ही ना होते मगर जाने दे
आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे
वो जो था ख्वाब सा .......


आतिफ़ की आवाज़ गीत के उतार चढ़ावों के साथ पूरा न्याय करती दिखती है। विशाल ताल वाद्यों के साथ गिटार का इंटरल्यूड्स में काफी इस्तेमाल करते हैं। वैसे आपको जान कर अचरज होगा कि राज शेखर ने इस गीत के लिए इससे भी पीड़ादायक शब्द रचना की थी। वो वर्सन तो ख़ैर अस्वीकार हो गया और  फिलहाल राज शेखर की डायरी के पन्ने में गुम है। उन्होंने वादा किया है कि अगर उन्हें वो हिस्सा मिलेगा उसे शेयर करेंगे। तो चलिए अब सुनते हैं ये नग्मा

वार्षिक संगीतमाला 2017

गुरुवार, मार्च 08, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 8 : दिल दीयाँ गल्लाँ, आख़िर क्या कहना चाहा है इरशाद कामिल ने इन पंजाबी बोलों में? Dil Diyan Gallan

इस संगीतमाला में बजने वाले पिछले कई गीत आपने नहीं सुने होंगे पर आज जिस गीत की बात आपसे करने जा रहा हूँ वो दिसंबर से ही लोकप्रियता की सारी सीढ़ियाँ धड़ल्ले से तय करता आ रहा है। ये गीत है फिल्म टाइगर जिंदा है का दिल दीयाँ गल्लाँ। अब एक हल्की फुल्की पंजाबी में लिखा गीत अगर इस तरह से लोगों के ज़ेहन में चढ़ जाए फिर उसकी  धुन और गायिकी तो कमाल की होनी ही है। 

कुछ तो है आतिफ असलम की आवाज़ में जो श्रोताओं को अपनी ओर बार बार खींचता है। आज से ग्यारह साल पहले तेरे बिन मैं यूँ कैसे जिया से पहली बार इस संगीतमाला में दाखिला लेने वाला आतिफ की आवाज़ साल दर साल किसी ना किसी गीत के माध्यम से लोगों के दिल में चढ़ती ही रही है। तेरा होने लगा हूँ (2009), मैं रंग शर्बतों का (2013)  दहलीज़ में मेरे दिल की (2015) और तेरे संग यारा (2015) जैसे उनके गाए गीत तो याद ही होंगे आपको।


पर विशाल शेखर के साथ गाया उनका ये पहला गीत है। विशाल कहते हैं कि सालों से उनके साथ काम करने के लिए कोशिश हो रही थी पर टाइगर जिंदा है के गीत के लिए संपर्क करते ही बात बन गयी। वहीं शेखर का कहना था कि उन्होंने गीत में नीचे के सुरों का इस्तेमाल करते हुए भी अपनी आवाज़ का जादू बरक़रार रखा है। 

इस गीत की लय में जो मधुरता है वो आपको शुरु से अंत तक बाँध कर रखती है। विशाल शेखर का संगीत संयोजन हिंदुस्तानी और पश्चिमी वाद्य यंत्रों का अद्भुत मिश्रण है जो कानों को सोहता है।

इस गीत के बोल लिखे हैं इरशाद कामिल ने। इस गीत के बारे में वे कहते हैं कि रोमांस में जो थोड़ी बहुत नाराज़गी चलती रहती है, जो थोड़ा बहुत मनमुटाव रहता है ये गाना उसी नाराज़गी को प्यार से दूर करने की बात कहता है। तो आइए देखें कि इन पंजाबी बोलों में आख़िर इरशाद साहब ने कहा क्या है.. 

कच्ची डोरियों, डोरियों, डोरियों से
मैनू  तू बाँध ले
पक्की यारियों, यारियों, यारियों में
होंदे ना फासले
ये नाराज़गी कागज़ी सारी तेरी
मेरे सोणया सुन ले मेरी
दिल दीयाँ गल्लाँ
कराँगे नाल नाल बह के
अँख नाल अँख नूँ मिला के
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय
कराँगे रोज़ रोज़ बह के
सच्चियाँ मोहब्बताँ निभा के

हमारी यारी इतनी मजबूत है कि अगर तू मुझे कमजोर डोरियों से भी बाँधे तो हमारे बीच का फासला कभी बढ़ेगा नहीं। ये जो तुमने चेहरे पर नाराज़गी ओढ़ रखी है ना, मैं जानता हूँ वो सारी बनावटी है। ओ मेरी प्रिये, सुनो तो, हम दोनों साथ साथ बैठेंगे और एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल अपने दिल का सारा हाल एक दूसरे से कह देंगे  दिल से दिल की बातों का सिलसिला रोज़ यूँ ही चलता रहे तभी तो हम अपनी सच्ची मोहब्बत को आजीवन निभा सकेंगे।

सताये मैनू क्यूँ
दिखाए मैनू क्यूँ
ऐवें झूठी मुट्ठी रूस के रूसाके
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के
तैनू लाखाँ तों छुपा के रखाँ
अक्खां ते सजा के तू ऐं मेरी वफ़ा
रख अपना बना के
मैं तेरे लइयाँ तेरे लइयाँ यारा
ना पाविं कदे दूरियाँ
मैं जीना हाँ तेरा..
मैं जीना हाँ तेरा
तू जीना है मेरा
दस्स लेना कि नखरा दिखा के
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के

तू मुझे बिना बात के सताती क्यूँ है? क्यूँ झूठी त्योरियाँ चढ़ा कर रखती है? मैं तो तुझे दुनिया की नज़रों से  छुपा कर अपने पास रखना चाहता हूँ। तुम मेरी आँखों का तारा हो, मेरा प्यार हो। मुझे अपना बना के रखो। मैं तो सिर्फ तुम्हारे लिए हूँ और तुमको अपने दूर जाता देख भी नहीं सकता। हम दोनों एक दूसरे की जिंदगी हैं। फिर इन बेकार के झगड़ों का क्या फायदा?

राताँ कालियाँ, कालियाँ, कालियाँ ने
मेरे दिन साँवले
मेरे हानियाँ, हानियाँ, हानियाँ जे
लग्गे तू ना गले
मेरा आसमाँ मौसमाँ दी ना सुने
कोई ख़्वाब ना पूरा बुने
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के
पता है मैनू  क्यूँ छुपा के देखे तू
मेरे नाम से नाम मिला के
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के

अगर तुम मुझसे अभी भी गले ना लगी तो मेरा दिन साँवला ही रह जाएगा और रातें काली। ये जो मेरे दिल का आसमान है ना, वो भी मौसमों के हिसाब से रंग बदलना छोड़ देगा। फिर उसमें मैं कैसे कोई ख़्वाब बुन पाऊँगा? मैं जानता हूँ कि सामने भले तुम मुझसे नाराज़गी ज़ाहिर करती हो पर मेरे पीछे मेरे नाम के साथ अपना नाम जोड़ मन ही मन खुश होती रहती हो।

इस गीत की शूटिंग आस्ट्रिया में हुई है और इसे फिल्माया गया है सलमान और कैटरीना पर। वैसे मुझे एक बात ये समझ नहीं आई गीत में नायक रूठी नायिका को प्यार से मना रहा है पर पर्दे पर तो कैटरीना रूठी नहीं दिखतीं। आपका इस बारे में क्या ख्याल है?

तो आइए सुनते हैं ये गीत आतिफ़ असलम की आवाज़ में। वैसे इस गीत का एक unplugged version भी है जिसे नेहा भसीन ने गाया है..

 

वार्षिक संगीतमाला 2017

मंगलवार, जनवरी 31, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 15 : आख़िर कैसे बना "तेरे संग यारा..." ? Tere Sang Yara

वार्षिक संगीतमाला की पन्द्रहवी पायदान पर गाना वो जो पिछले साल इतना लोकप्रिय हुआ कि अब तक इंटरनेट पर नौ करोड़ बार सुना जा चुका है। ज़ाहिर है आप ने भी इसे कई बार सुना होगा। पर क्या आप जानते हैं कि ये गाना अपने इस स्वरूप में कैसे आया यानि इस गीत के पीछे की कहानी क्या है? 

पर ये कहानी जानने के पहले ये तो जान लीजिए कि इस गीत को संगीतबद्ध किया अर्को प्रावो मुखर्जी ने और बोल लिखे एक बार फिर से मनोज मुन्तशिर ने। अर्को पहली बार 2014 में अल्लाह वारियाँ और दिलदारा जैसे गीतों की वज़ह से वार्षिक संगीतमाला का हिस्सा बने थे। तभी मैंने आपको बताया था कि अर्को शैक्षिक योग्यता के हिसाब से एक डॉक्टर हैं पर संगीत के प्रति उनका प्रेम उन्हें सिटी आफ जॉय यानि कोलकाता से मुंबई की मायानगरी में खींच लाया है। मैंने तब भी लिखा था कि अर्कों की धुनें कमाल की होती हैं पर ख़ुद अपने गीत लिखने का मोह उनकी कमज़ोर हिंदी की वज़ह से वो प्रभाव नहीं छोड़ पाता। पर इस गीत में मनोज मुन्तशिर के साथ ने उनकी उस कमी को दूर कर दिया है।



अर्को ने ये धुन और मुखड़ा भी पहले से बना रखा था और जी म्यूजिक के अनुराग बेदी ने उसे सुना था। जब फिल्म के सारे गीत लिखने की जिम्मेदारी मनोज मुन्तशिर को मिली तो उनसे अनुराग ने कहा कि मुझे  एक ऐसा गीत चाहिए जो फिल्म के लिए एक इंजन का काम करे यानि जो तुरंत ही हिट हो जाए और अर्को के पास ऐसी ही एक धुन है। 

अब एक छोटी सी दिक्कत ये थी कि अर्को ने उस गीत में विरह का बीज बोया हुआ था जबकि फिल्म में गीत द्वारा रुस्तम की प्रेम कहानी को आगे बढ़ाना था। तब गीत के शुरुआती बोल कुछ यूँ थे तेरे बिन यारा बेरंग बहारा है रात बेगानी ना नींद गवारा। मनोज ने इस मुखड़े में खुशी का रंग कुछ यूँ भरा तेरे संग यारा, खुशरंग बहारा..तू रात दीवानी, मैं ज़र्द सितारा। एक बार मुखड़ा बना तो अर्को के साथ मिलकर पूरा गीत बनाने में ज्यादा समय नहीं लगा।

अर्को  व मनोज मुन्तशिर

गीत तो बन गया पर मनोज इस बात के लिए सशंकित थे कि शायद फिल्म के निर्माता निर्देशक ज़र्द जैसे शब्द के लिए राजी ना हों क्यूँकि सामान्य सोच यही होती है कि गीत में कठिन शब्दों का प्रयोग ना हो। पर अर्को अड़ गए कि नहीं मुझे इस शब्द के बिना गीत ही नहीं बनाना है। गीत बनने के बाद जब निर्माता नीरज पांडे के सामने प्रस्तुत हुआ तो अर्को ने कहा कि आप लोगों को और कुछ बदलना है तो बदल लीजिए पर  ज़र्द सितारे से छेड़छाड़ मत कीजिए।  ऐसा कुछ हुआ नहीं और नीरज को मुखड़ा और गीत दोनों पसंद आ गए।

बहरहाल इससे ये तो पता चलता है कि फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी भाषा और नए शब्दों के प्रयोग के प्रति कितनी हिचकिचाहट है। वैसे मनोज मुन्तशिर ने जिस परिपेक्ष्य में इस शब्द का प्रयोग किया वो मुझे उतना नहीं जँचा। ज़र्द का शाब्दिक अर्थ होता है पीला और सामान्य बोलचाल में इस शब्द का प्रयोग नकारात्मक भावना में ही होता है। जैसे भय से चेहरा ज़र्द पड़ जाना यानि पीला पड़ जाना। पर अगर आप गीत में देखें तो मनोज प्रेमी युगल के लिए दीवानी रात व पीले तारे जैसे बिंब का प्रयोग कर रहे हैं। मनोज की सोच शायद पीले चमकते तारे की रही होगी जो मेरी समझ से ज़र्द के लिए उपयुक्त नहीं लगती। बेहतर तो भाषाविद ही बताएँगे।

इस गीत को गाया है आतिफ़ असलम ने। आतिफ की सशक्त आवाज़, पियानो के इर्द गिर्द अन्य वाद्यों का बेहतरीन संगीत संयोजन इस गीत की जान है। इंटरल्यूड्स की विविधताएँ भी शब्दों के साथ मन को रूमानी मूड में बहा ले जाती हैं। मेरी इस गीत की सबसे प्रिय पंक्ति गीत के अंत में आती है, जी हाँ ठीक समझे आप मैं बहता मुसाफ़िर. तू ठहरा किनारा




तेरे संग यारा, खुशरंग बहारा
तू रात दीवानी, मैं ज़र्द सितारा

ओ करम खुदाया है, तुझे मुझसे मिलाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है

ओ तेरे संग यारा.....ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा ख़ुश रंग बहारा
मैं तेरा हो जाऊँ जो तू कर दे इशारा

कहीं किसी भी गली में जाऊँ मैं, तेरी खुशबू से टकराऊँ मैं
हर रात जो आता है मुझे, वो ख्वाब तू..
तेरा मेरा मिलना दस्तूर है, तेरे होने से मुझमें नूर है
मैं हूँ सूना सा इक आसमान, महताब तू..
ओ करम खुदाया है, तुझे मैंने जो पाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है

ओ तेरे संग यारा ...मैं ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा ख़ुश रंग बहारा
तेरे बिन अब तो ना जीना गवारा

मैंने छोड़े हैं बाकी सारे रास्ते, बस आया हूँ तेरे पास रे
मेरी आँखों में तेरा नाम है, पहचान ले..
सब कुछ मेरे लिए तेरे बाद है, सौ बातों की इक बात है
मैं न जाऊँगा कभी तुझे छोड़ के, ये जान ले
ओ करम खुदाया है, तेरा प्यार जो पाया है
तुझपे मरके ही तो, मुझे जीना आया है

ओ तेरे संग यारा.....ज़र्द सितारा
ओ तेरे संग यारा, ख़ुश रंग बहारा
मैं बहता मुसाफ़िर. तू ठहरा किनारा





वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक

बुधवार, जनवरी 27, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 13 : दहलीज़ पे मेरे दिल की जो रखे हैं तूने क़दम Jeena Jeena

कभी कभी संगीत का कोई छोटा सा टुकड़ा संगीतकार के तरकश से चलता है और श्रोता के  दिल में ऍसे बस जाता है कि उस टुकड़े को कितनी बार सुनते हुए भी उसे दिल से निकालने की इच्छा नहीं होती। अगर मैं कहूँ कि वार्षिक संगीतमाला की तेरहवीं पायदान पर फिल्म बदलापुर के गीत के यहाँ होने की एक बड़ी वज़ह संगीतकार सचिन जिगर का मुखड़े के बाद  बाँसुरी से बजाया गया मधुर टुकड़ा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी । 

पूरे गीत में गिटार और बाँसुरी का प्रमुखता से इस्तेमाल हुआ है। बाँसुरी की जिस धुन का मैंने उल्लेख किया है वो आपको गीत के पहले मिनट के बाद बीस सेकेंड के लिए और फिर 2.26 पर सुनने को मिलती है। इसे बजाया है वादक शिरीष मल्होत्रा ने।

बदलापुर के इस गीत को गाने की जिम्मेदारी सौंपी गई आतिफ़ असलम को जो कुछ सालों तक बॉलीवुड में अपना डंका बजवाने के बाद इधर हिंदी फिल्मों में कम नज़र आ रहे थे।  जिगर का अपने इस चुनाव के बारे में कहना था

"दरअसल इस गीत में गायक की प्रवीणता से ज्यादा उसकी गीत की भावनाओं के प्रति ईमानदारी की आवश्यकता थी और आतिफ़ असलम ने इस गीत को बिल्कुल अपने दिल से गाया है। गीत की शुरुआत और अंतरे के पहले जब वो गुनगुनाते हैं तो ऐसा लगता है कि कोई आपके  में बैठा इस गीत को गा रहा है।"

ये गीत ज्यादा लंबा नहीं है और इसमें बस एक अंतरा ही  है। पर इतने छोटे गीत को लिखने के लिए दो लोगों को श्रेय दिया गया है। एक तो निर्माता दीपक विजन को  व दूसरे गीतकार प्रिया सरैया को। दीपक विजन इसकी वज़ह ये बताते हैं कि सारे गीत खूब सारी बतकही, हँसी मजाक व सुझावों के आदान प्रदान के बाद  बने।  वाकई गीत प्रेम में  समर्पण की  भावना को सहज व्यक्त करता हुआ दिल को छू जाता है। पर मुझे लगता है कि इतनी अच्छी धुन को इससे ज्यादा बेहतर शब्दों और कम से कम एक और अंतरे का साथ मिलना चाहिए था। तो आइए सुनते हैं बदलापुर फिल्म का ये गीत

दहलीज़ पे मेरे दिल की
जो रखे हैं तूने क़दम
तेरे नाम पे मेरी ज़िन्दगी
लिख दी मेरे हमदम
हाँ सीखा मैंने जीना जीना कैसे जीना
हाँ सीखा मैंने जीना मेरे हमदम
ना सीखा कभी जीना जीना कैसे जीना
ना सीखा जीना तेरे बिना हमदम

सच्ची सी हैं ये तारीफें, दिल से जो मैंने करी हैं
जो तू मिला तो सजी हैं दुनिया मेरी हमदम
हो आसमां मिला ज़मीं को मेरी
आधे-आधे पूरे हैं हम
तेरे नाम पे मेरी ज़िन्दगी...

वार्षिक संगीतमाला 2015

शनिवार, जनवरी 18, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान संख्या 17 : मैं रंग शरबतों का, तू मीठे घाट का पानी (Main Rang Sharbaton ka..)

वार्षिक संगीतमाला 2013 के पिछले दो हफ्तों के सफ़र के बाद हम आ पहुँचे हैं संगीतमाला की 25 वीं पॉयदान से 17 वीं पॉयदान पर। गीतमाला की सत्रहवीं सीढ़ी पर है एक बड़ा प्यारा  नग्मा जिसे खूबसूरत बोलों से नवाज़ा है एक बार फिर इरशाद क़ामिल ने। फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो का ये गीत इस साल के बेहतरीन रूमानी नग्मों में से एक है।

इस गीत की जान इसका मुखड़ा है। शरबती रंग को मीठे पानी से घोलने की कल्पना दो प्यार भरे दिलों के मिलन का सटीक रूपक बन पड़ी है जो किसी संगीतप्रेमी श्रोता का ध्यान पहली बार में ही अपनी ओर खींचती है। अंतरों में भी प्यार का ये रंग फीका नहीं पड़ा है। इरशाद क़ामिल के लिए पिछला साल बतौर गीतकार उतना अच्छा नहीं रहा था पर इस साल उन्होंने अपनी कलम का  वो जलवा दिखाया है जो 'अजब प्रेम की गजब कहानी', 'रॉकस्टार', 'जब वी मेट', 'Once upon a time in Mumbai' और 'मौसम' जैसी कामयाब फिल्मों में दिखा था। 


वैसे क्या आपको पता है कि इरशाद क़ामिल को प्रेम गीतों को लिखने का चस्का कैसे लगा ? कॉलेज के ज़माने में उनके मित्र उनसे प्रेम पत्र लिखवाया करते थे। अब शेर ओ शायरी के बिना पत्रों से रूमानियत टपकती तो कैसे? इस वज़ह से कविता व शायरी पढ़ने लिखने में उनकी दिलचस्पी बढ़ गई। अपने दोस्तों में वो सुंदर लिखावट के लिए भी वे मशहूर थे तो मित्र उनसे किसी अज़ीम शायर की ग़ज़ल लिखवा कर अपने पत्रों में डलवा देते। ये सिलसिला इतना बढ़ गया कि एक ही शायरी को बार बार डालने में इरशाद को उकताहट होने लगी और इस हमेशा की परेशानी से बचने के लिए उन्होंने खुद से ही लिखना शुरु कर दिया।

फटा पोस्टर निकला हीरो के संगीतकार प्रीतम ने इस गीत के दो वर्सन रिकार्ड किये। एक को तो उन्होंने युगल गीत के रूप में पाकिस्तानी गायक आतिफ असलम और चिन्मयी श्रीपदा से गवाया जब कि दूसरे वर्सन में एकल गीत के तौर पर इसे अरिजित सिंह से गवाया। दोनों वर्सनों को सुनने के बाद मुझे आतिफ़ और चिन्मयी का युगल गीत ही ज्यादा पसंद आता है। आपका इस बारे में क्या ख़्याल है?



ख्वाब है तू, नींद हूँ मैं, दोनो मिलें, रात बने
रोज़ यही माँगूँ दुआ, तेरी मेरी बात बने

मैं रंग शरबतों का, तू मीठे घाट का पानी
मुझे खुद में घोल दे तो,मेरे यार बात बन जानी


ओ यारा तुझे प्यार की बतियाँ क्या समझावाँ
जाग के रतियाँ रोज़ बितावाँ, इससे आगे अब मैं क्या कहूँ
ओ यारा तुझे बोलती अँखियाँ सदके जावाँ
माँग ले पकियाँ आज दुआवाँ, इससे आगे अब मैं क्या कहूँ

मैंने तो धीरे से, नींदों के धागे से, बाँधा है ख्वाब को तेरे
मैं ना जहान चाहूँ, ना आसमान चाहूँ, आजा हिस्से में तू मेरे

तू ढंग चाहतों का, मैं जैसे कोई नादानी
मुझे खुद से जोड़ दे तो ,मेरे यार बात बन जानी
रंग शरबतों का…

तेरे ख़यालों से, तेरे ख़यालों तक, मेरा तो है आना जाना
मेरा तो जो भी है, तू ही था, तू ही है
बाकी जहान है बेगाना,

तुम एक मुसाफ़िर हो, मैं कोई राह अनजानी

मनचाहा मोड़ दे तो, मेरे यार बात बन जानी
मैं रंग शरबतों का, तू मीठे घाट का पानी

फिल्म में इस गीत को फिल्माया गया है शाहिद कपूर और इलीना पर..


 

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स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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