शम्मी कपूर को गुजरे तीन हफ्ते हो चुके हैं। शम्मी कपूर व मोहम्मद रफ़ी ने मिलकर हिंदी फिल्म संगीत का जो अद्भुत अध्याय रचा है उस पर लिखने की बहुत दिनों से इच्छा थी। पर पहले अन्ना के आंदोलन को लेकर ये इच्छा जाती रही और फिर कार्यालय की व्यस्तताओं ने कंप्यूटर के कुंजीपटल के सामने बैठने नहीं दिया। दरअसल मैं जब भी शम्मी कपूर के बारे में सोचता हूँ तो मुझे सत्तर और अस्सी के दशक का श्वेत श्याम और बाद का रंगीन दूरदर्शन याद आ जाता है। साठ के दशक में जब शम्मी कपूर या शमशेर राज कपूर रुपहले पर्दे पर अपनी फिल्मों की सफलताओं के झंडे गाड़ रहे थे तब तक तो मेरा इस दुनिया में पदार्पण ही नहीं हुआ था। शम्मी कपूर की फिल्मी दुनिया व उनके गीतों से मेरा पहला परिचय दूरदर्शन की मार्फत ही हुआ था।
वो दूरदर्शन ही था जो हम सब को गुरुवार और रविवार को बारहा शम्मी कपूर की फिल्में दिखाया करता था। सच कहूँ तो शुरु शुरु में हम तीनों भाई बहनों को शम्मी जी के नैन मटक्के और उनकी थरथराती अदाएँ बिल्कुल नागवार गुजरती थीं। पर जैसे जैसे वक़्त गुजरा हमें उनके तौर तरीके पसंद आने लगे। शायद इसकी वज़ह ये रही कि हमने उनकी फिल्मों को एक दूसरे नज़रिए से देखना शुरु किया। गीतों में उनकी तरफ़ से डाली गई उर्जा इनके समर्पण को देख सुन हो कर अपने मन को भी तरंगित होता पाया। उनकी फिल्मों के गीत हम बड़े चाव से सुनने लगे। आज जब वे इस दुनिया में नहीं हैं उनके द्वारा अभिनीत गीतों के साथ उन्हें ये श्रृद्धांजलि देना चाहता हूँ।
वो दूरदर्शन ही था जो हम सब को गुरुवार और रविवार को बारहा शम्मी कपूर की फिल्में दिखाया करता था। सच कहूँ तो शुरु शुरु में हम तीनों भाई बहनों को शम्मी जी के नैन मटक्के और उनकी थरथराती अदाएँ बिल्कुल नागवार गुजरती थीं। पर जैसे जैसे वक़्त गुजरा हमें उनके तौर तरीके पसंद आने लगे। शायद इसकी वज़ह ये रही कि हमने उनकी फिल्मों को एक दूसरे नज़रिए से देखना शुरु किया। गीतों में उनकी तरफ़ से डाली गई उर्जा इनके समर्पण को देख सुन हो कर अपने मन को भी तरंगित होता पाया। उनकी फिल्मों के गीत हम बड़े चाव से सुनने लगे। आज जब वे इस दुनिया में नहीं हैं उनके द्वारा अभिनीत गीतों के साथ उन्हें ये श्रृद्धांजलि देना चाहता हूँ।
शम्मी कपूर के गीतों की लोकप्रियता में रफ़ी साहब का कितना बड़ा योगदान था ये किसी से छुपा नहीं है। रफ़ी साहब और शम्मी कपूर की इस बेमिसाल जोड़ी का सफ़र कैसे शुरु हुआ और फिर परवान चढ़ा इसी बात पर चर्चा करेंगे आज की इस पोस्ट में। साथ ही होंगे रफ़ी साहब के गाए और शम्मी कपूर पर फिल्माए मेरे दस पसंदीदा नग्मे। शम्मी कपूर ने सबसे पहले रफ़ी साहब को जबलपुर में एक संगीत के कार्यक्रम में देखा। शम्मी उस वक़्त कॉलेज में थे और वहाँ अपने एक रिश्तेदार से मिलने गए थे। पचास के दशक में शम्मी कपूर की आरंभिक फिल्मों रेल का डिब्बा, लैला मजनूँ, शमा परवाना, हम सब चोर हैं में शम्मी के गाए अधिकांश गीत रफ़ी साहब की ही आवाज़ में थे। पर ये फिल्में ज्यादा सफल नहीं हुईं और उनके संगीत ने भी कोई खास धूम नहीं मचाई। शम्मी कपूर अक्सर अपने गीतों की रिकार्डिंग देखने जाया करते थे। 1957 में नासिर हुसैन की फिल्म तुमसा नहीं देखा के गीतों की रिकार्डिंग चल रही थी। गीत था सर पे टोपी लाल.. ओ तेरा क्या कहना...। शम्मी कपूर ने अपने एक साक्षात्कार में इस गीत के बारे में कहा था
"मैं रफ़ी साहब के पास रिकार्डिंग रूम में गया और उनसे कहा कि ये गीत मैं गाने वाला हूँ। मेरे कुछ सुझाव हैं कि गीत के इन इन हिस्सों को आप यूँ गाइए तो मुझे उस पर अभिनय करने में सहूलियत होगी। रफ़ी साहब ने कहा ठीक है आपने जैसा कहा वैसी ही कोशिश कर के देखता हूँ। आप विश्वास नहीं करेंगे कि रफ़ी ने जिस तरह से मेरे सुझावों से भी बढ़कर उस गीत के लहजे को ढाला कि वो एक अलग ऊँचाई पर चला गया। यहीं से रफ़ी साहब के साथ मेरी एक जोड़ी की शुरुआत हो गई ।"
कहना होगा कि जिस सुकून जिस तबियत से रफ़ी साहब ने उषा जी की इस बेहतरीन कम्पोजीशन को अपनी आवाज़ दी है कि क्या कहने। मजरूह के बोल भी कम असरदार नहीं। मिसाल देखिए
हम और तुम और ये समां
क्या नशा नशा सा है
बोलिए ना बोलिए
सब कुछ सुना सुना सा है
रफ़ी साहब की शांत धीर गंभीर आवाज़ शम्मी कपूर के लिए शोख और चंचल हो उठी। उन्होंने अपनी गायिकी में शम्मी के हाव भावों को इस तरह उतारा की ये भिन्न करना मुश्किल हो गया कि इस गीत को शम्मी कपूर गा रहे हैं या रफ़ी साहब। साठ के दशक में ही रिलीज हुई फिल्म 'बदतमीज' का ये गाना याद आ रहा है जिसमें रफी साहब गाते हैं...
बदतमीज कहो या कहो जानवर
मेरा दिल तेरे दिल पे फिदा हो गया
बचा लो कोई,सँभालो कोई,
ओ मेरी जाने जाँ मैं तबाह हो गया
होलल्ला होलल्ला होलल्ला होलल्ला
द्रुत गति से गाए इस गीत में रफ़ी साहब जब अपने दिल को बमुश्किल सँभालते हुए होल्ल्ला होलल्ला की लय पकड़ते हैं तो शम्मी कपूर की अदाओं की मस्ती गीत के बोलों में सहज ही समा जाती है। साधना के साथ गाए इस गीत में जो चंचलता थी वो तो आपने महसूस की होगी पर फिल्म राजकुमार में जहाँ एक बार फिर शम्मी कपूर और साधना की जोड़ी थी रफ़ी शम्मी कपूर के लिए एक अलग से संजीदा अंदाज़ में नज़र आए
शम्मी कपूर और रफ़ी की इस जोड़ी ने नैयर साहब के साथ सफलता का एक और सोपान हासिल किया है 1964 में आई फिल्म 'कश्मीर की कली' में। इस फिल्म का एक गीत था तारीफ़ करूँ क्या उसकी जिसने तुझे बनाया। शम्मी कपूर चाहते थे अपनी प्रेमिका के प्रति अपने जज़्बे को उभारने के लिए इस जुमले तारीफ़ करूँ क्या उसकी ....को तरह तरह से दोहराएँ। पर ओ पी नैयर अड़ गए कि उससे गाना लंबा और उबाऊ हो जाएगा। शम्मी दुखी होकर रफ़ी साहब के पास गए। रफ़ी ने उनकी परेशानी सुनी और कहा कि मैं नैयर को समझाता हूँ। नैयर ने उनसे भी वही कहा पर रफ़ी ने उन्हें ये कहकर मना लिया कि अगर वो ऐसा चाहता है तो एक बार कर के देखते हैं अगर तुम्हें पसंद नहीं आया तो हटा देना। जब गीत पूरा बना तो सब को अच्छा लगा और शम्मी कपूर को नैयर और रफ़ी साहब दोनों ने सराहा ।
ये घटना दिखाती है कि शम्मी कपूर और रफ़ी साहब की जोड़ी इतनी सफ़ल क्यूँ हुई। मैं आपको ये गीत तो नहीं पर इसी फिल्म के दो और गीत सुनाना चाहूँगा जो मेरे बहुत प्रिय हैं। एक तो ये रोमांटिक गीत..'दीवाना हुआ बादल .....बहार आई...ये देख के दिल झूमा ...ली प्यार ने अँगड़ाई 'जिसे एक बार गुनगुनाकर ही मन हल्का हो जाता है
और दूसरा एस. एच. बिहारी का लिखा ये शानदार नग्मा जिसमें मनोहारी सिंह के सेक्सोफोन ने एक ना छू सकने वाली बुलंदियों तक पहुँचाया है। क्या संगीत, क्या शब्द और क्या गायिकी ...बेमिसाल शब्द भी छोटा जान पड़ता है इस गीत के लिए... सच ऐसी मेलोडी बार बार जन्म नहीं लेती
है दुनिया उसी की ज़माना उसी का,
मोहब्बत में जो हो गया हो किसी का...
लुटा जो मुसाफ़िर दिल के सफ़र में
है जन्नत यह दुनिया उसकी नज़र में
उसी ने है लूटा मज़ा ज़िंदगी का
मोहब्बत में ...
लुटा जो मुसाफ़िर दिल के सफ़र में
है जन्नत यह दुनिया उसकी नज़र में
उसी ने है लूटा मज़ा ज़िंदगी का
मोहब्बत में ...
है सज़दे के काबिल हर वो दीवाना
के जो बन गया हो तसवीर-ए-जानाँ
करो एह्तराम उस की दीवानगी का
मोहब्बत में ...
बर्बाद होना जिसकी अदा हो
दर्द-ए-मोहब्बत जिसकी दवा हो
सताएगा क्या ग़म उसे ज़िंदगी का
मोहब्बत में ...
के जो बन गया हो तसवीर-ए-जानाँ
करो एह्तराम उस की दीवानगी का
मोहब्बत में ...
बर्बाद होना जिसकी अदा हो
दर्द-ए-मोहब्बत जिसकी दवा हो
सताएगा क्या ग़म उसे ज़िंदगी का
मोहब्बत में ...
शम्मी कपूर एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने अपनी फिल्मों के संगीत को जबरदस्त अहमियत दी। वे खुशकिस्मत रहे कि उनकी इस मुहिम में रफ़ी साहब जैसे गायक और शंकर जयकिशन व ओ पी नैयर जैसे संगीतकारों का साथ मिला। इस श्रृंखला की अगली कड़ी में उपस्थित हूँगा रफ़ी और शम्मी साहब के इस जोड़ी के पाँच अन्य चुनिंदा गीतों और उनसे जुड़ी बातों को लेकर...
