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बुधवार, फ़रवरी 18, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 6 : ज़हनसीब..ज़हनसीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब .. Zehnaseeb

वार्षिक संगीतमाला की गाड़ी धीरे धीरे चलती हुई शुरु की छः पायदानों तक पहुँच गई है। इन छः गीतों से मुझे बेहद प्यार है और इन सभी को पहली बार सुनते ही मैंने अपनी इस सालाना सूची में डाल दिया था। तो छठी सीढ़ी पर गाना वो जिसकी धुन तैयार की युवाओं में खासी लोकप्रिय संगीतकार जोड़ी विशाल शेखर ने। वार्षिक संगीतमालाओं में हर साल विशाल शेखर की उपस्थिति अनिवार्य रहती है। वैसे व्यक्तिगत तौर पर मुझे विशाल शेखर की इस जोड़ी में शेखर रवजियानी की संगीतबद्ध धुनें हमेशा से ज्यादा आकर्षित करती रही हैं। मेलोडी पर इनकी गहरी पकड़ हर साल ऐसे कुछ गाने दे ही जाती है जिन्हें बार बार गुनगुनाने को दिल चाहता है। अगर पिछले कुछ सालों की बात करूँ तो उनके संगीतबद्ध गीतों में फलक़ तक चल साथ मेरे...., कुछ कम रौशन है रोशनी, कुछ कम गीली हैं बारिशें...., तू ना जाने आस पास है ख़ुदा...., बिन तेरे..कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे.... और जो भेजी थी दुआ... जैसे कर्णप्रिय गीत सहज दिमाग में आ जाते हैं।



संगीतमाला की इस पायदान पर आसीन है फिल्म हँसी तो फँसी का ये नग्मा जिसे गाया है शेखर रवजियानी ने चिन्मयी श्रीपदा के साथ। आपको याद होगा कि पिछले साल शेखर ने फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस के गीत ''तितली'' के लिए चिन्मयी को ही चुना था। पहले ये गीत शेखर ने सिर्फ अपनी आवाज़ में रिकार्ड किया था। पर ' हँसी तो फँसी' में इस गाने के द्वारा चूँकि सिद्धार्थ मल्होत्रा और परिणिति चोपड़ा के साथ गुजरे मीठे पलों का फिल्मांकन करना था तो उसे युगल गीत बनाना पड़ा। सच तो ये है कि चिन्मयी ने अपनी आवाज़ से इस गीत को रेशम सी मुलायमियत बख्श दी है।  इस गीत के बारे में चेन्नई से ताल्लुक रखने वाली चिन्मयी कहती हैं कि 
"शेखर सर ने मुझे इस गीत की रिकार्डिंग के पहले बस इतना बताया था कि ये एक रोमांटिक गीत है। गीत के बोलों से वैसे भी मैं समझ ही गई थी। हाँ मैंने गाने के पहले ये जरूर जान लिया था कि ज़हनसीब और बेतहाशा जैसे शब्दों का मतलब क्या है।"
Chinmayi Sripada & Shekhar Ravjiani
वैसे इस फिल्म के निर्माता करण जौहर का भी ये पसंदीदा नग्मा है और इस गीत के प्रति उनकी उत्सुकता का आलम ये था कि वो गीत की रिकार्डिंग में भी साथ मौज़ूद थे। सच में विशाल शेखर ने क्या मधुर धुन बनाई है इस गीत की। गीत का शुरुआती टुकड़ा हो या इंटरल्यूड्स, मन बस  गिटार की प्रमुखता से सजी धुन के साथ बहता चला जाता है। अमिताभ के बोल जब चिन्मयी की कोकिल कंठी आवाज़ में निकलते हैं तो हृदय में प्रेम की मिसरी सी घुलने लगती है। अमिताभ की लिखी इन पंक्तियाँ पर गौर करें तेरे संग बीते हर लम्हें पर हमको नाज़ है..तेरे संग जो न बीते उस लम्हें पर ऐतराज है.... या फिर तेरी अँखियों के शहर में यारा सब इंतज़ाम है..ख़ुशियों का एक टुकड़ा मिले या मिले ग़म की खुरचनें.... कितना नर्म सा अहसास मन में जगा  जाती हैं ये शब्द रचना !

वैसे हिंदी में 'ज़हनसीब' का मतलब होता है भाग्यशाली होना। यानि अमिताभ कहना चाहते हैं कि तुम्हारा  साथ पाकर मैं अपने आप को कितना भाग्यशाली महसूस करता हूँ। ये जो feeling lucky वाला अहसास है ना वो सिर्फ गूगल सर्च पर नहीं होता बल्कि हम सब की ज़ि्दगी में किसी खास शख़्स की वज़ह से आ ही जाता है। क्यूँ है ना ?

ज़हनसीब, ज़हनसीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब
मेरे क़रीब, मेरे हबीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब

तेरे संग बीते हर लम्हे पे हमको नाज़ है
तेरे संग जो ना बीते उसपे ऐतराज़ है

इस क़दर हम दोनों का मिलना एक राज़ है
हुआ अमीर दिल ग़रीब
तुझे
चाहूँबेतहाशा ज़हनसीब...

लेना-देना नहीं दुनिया से मेरा बस तुझसे काम है
तेरी अँखियों के शहर में यारा सब इंतज़ाम है
ख़ुशियों का एक टुकड़ा मिले या मिले ग़म की खुरचनें
यारा तेरे मेरे खर्चे में दोनों का ही एक दाम है


होना लिखा था यूँ ही जो हुआ
या होते-होते अभी अनजाने में हो गया
जो भी हुआ, हुआ अजीब
तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब




सच इस गीत को सुनते सुनते मेरा दिल तो गरीब हो चुका है और आपका ?

वार्षिक संगीतमाला 2014

शनिवार, जनवरी 25, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 14 बन के तितली दिल उड़ा उड़ा उड़ा हैं, कहीं दूर .. ( Ban ke Titli...)

गीतमाला की अगली सीढ़ी पर एक बड़ा ही सुरीला नग्मा खड़ा है आपके इंतज़ार में। एक ऐसा गीत जिसे मात्र एक दो बार सुनकर ही आप इसकी गिरफ़्त में आ जाएँ। कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ जब मैंने चेन्नई एक्सप्रेस के इस गीत को पहली बार सुना। विशाल शेखर द्वारा संगीतबद्ध रोमांटिक गीतों की मुलायमियत से हम सब वाकिफ़ हैं। अगर पिछले कुछ सालों के उनके रिकार्ड को देखा जाए तो हलके हलके रंग छलके.., जाने हैं वो कहाँ जिसे ढूँढती है नज़र.., फ़लक तक चल साथ मेरे.., कुछ कम रौशन है रोशनी..कुछ कम गीली है बारिशें.., बिन तेरे कई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे, बहारा बहारा हुआ दिल पहली बार रे... जैसे रूमानियत का रंग बिखेरते गीतों की लंबी झड़ी तुरंत ही दिमाग में आ जाती है। तितली.. विशाल शेखर की तरफ़ से इस तरह के गीतों को पसंद करने वाले श्रोताओं के लिए नया तोहफा है।


चेन्नई एक्सप्रेस के लिए विशाल शेखर ने गीतकार के रूप में अमिताभ भट्टाचार्य को चुना और क्या मुखड़ा लिखा अमिताभ ने बन के तितली दिल उड़ा उड़ा उड़ा है, कहीं दूर ...चल के खुशबू से जुड़ा जुड़ा जुड़ा है, कहीं दूर .. विशाल की मधुर धुन पर चिन्मयी श्रीप्रदा की आवाज़ में इन शब्दों को सुन मन मयूर सब कुछ भूल कर सचमुच उड़ने लगता है भावनाओं के क्षितिज में। अमिताभ ने ''ख़्वाबदारी'' और ''रागदारी'' जैसे अप्रचलित शब्दों का प्रयोग कर अंतरे में नया रंग भरने की कोशिश की है। 

इस गीत में चिन्मयी का साथ दिया है मलयाली संगीतकार व गायक गोपी सुंदर ने। इस साल भले ही चिन्मयी श्रीपदा ऐ सखी साजन, तू रंग शरबतों का और तितली जैसे गीतों में सुनी गई हैं पर गुरु के गीत तेरे बिना बेसुवादी रतियाँ के बाद उनकी हिंदी फिल्मों मे उपस्थिति नगण्य ही रही है। इसकी एक वज़ह ये भी है कि जिस कोटि के गीत उनकी आवाज़ में जँचते हैं वहाँ श्रेया घोषाल ने अपनी पहचान पहले से बना रखी है। चिन्मयी इस गीत को अपनी झोली में आने के बारे में कहती  हैं..
"मुझे मुंबई फिल्मों में और गाने गाने का मन तो करता है पर समझ नहीं आता कि उसके लिए मैं काम करूँ। अपने लिए काम ना मै चेन्नई में माँगती हूँ और ना ये तरीका मैंने मुंबई वालों के लिए अपनाया है। नवंबर में जब शेखर सर चेन्नई आए तो उन्होंने कहा कि मुझे तेरे बिना गाने वाली लड़की से मिलना है। मुझे बुलाया गया, गीत की परिस्थिति बताई गयी और गीत रिकार्ड भी हो गया। बाद में जब शाहरुख सर ने ट्वीट किया कि उन्हें मेरा गाया गीत बेहद पसंद आया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

बन के तितली दिल उड़ा उड़ा उड़ा है, कहीं दूर ...
चल के खुशबू से जुड़ा जुड़ा जुड़ा है, कहीं दूर
...
हादसे ये कैसे, अनसुने से जैसे
चूमे अँधेरों को, कोई नूर ...

सिर्फ कह जाऊँ या, आसमाँ पे लिख दूँ
तेरी तारीफों में, चश्मेबददूर ...

भूरी भूरी आँखें तेरी
कनखियों से तेज़ तीर कितने छोड़े
धानी धानी बातें तेरी
उडते-फिरते पंछियों के रुख भी मोड़े


अधूरी थी ज़रा सी, मैं पूरी हो रही हूँ
तेरी सादगी में हो के चूर ....
बन के तितली ...

रातें गिन के नींदें बुन के
चीज़ क्या है ख़्वाबदारी हम ने जानी
तेरे सुर का साज़ बन के
होती क्या है रागदारी हम ने जानी

जो दिल को भा रही हैं, वो तेरी शायरी है
या कोई शायरना है फितूर..
बन के तितली ...



 

चलते चलते इस गीत से जुड़ी एक बात और। हिंदी भाषी लोगों के मन में ये प्रश्न जरूर उठता होगा कि इस गीत की शुरुआत में और अंतरे में जो तमिल श्लोक सुनाई देता है उसका क्या अर्थ है। इस श्लोक के धार्मिक महत्तव पर बिना विस्तार में जाए बस आपको इतना बताना चाहूँगा कि भगवन को संबोधित करते इसमें कहा गया है कि भगवान एक बार जब तुम्हारे अद्वितीय रूप के दर्शन हो गए तो मुझे इस संसार में अब कुछ और देखने की इच्छा नहीं बची।

शनिवार, जनवरी 18, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान संख्या 17 : मैं रंग शरबतों का, तू मीठे घाट का पानी (Main Rang Sharbaton ka..)

वार्षिक संगीतमाला 2013 के पिछले दो हफ्तों के सफ़र के बाद हम आ पहुँचे हैं संगीतमाला की 25 वीं पॉयदान से 17 वीं पॉयदान पर। गीतमाला की सत्रहवीं सीढ़ी पर है एक बड़ा प्यारा  नग्मा जिसे खूबसूरत बोलों से नवाज़ा है एक बार फिर इरशाद क़ामिल ने। फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो का ये गीत इस साल के बेहतरीन रूमानी नग्मों में से एक है।

इस गीत की जान इसका मुखड़ा है। शरबती रंग को मीठे पानी से घोलने की कल्पना दो प्यार भरे दिलों के मिलन का सटीक रूपक बन पड़ी है जो किसी संगीतप्रेमी श्रोता का ध्यान पहली बार में ही अपनी ओर खींचती है। अंतरों में भी प्यार का ये रंग फीका नहीं पड़ा है। इरशाद क़ामिल के लिए पिछला साल बतौर गीतकार उतना अच्छा नहीं रहा था पर इस साल उन्होंने अपनी कलम का  वो जलवा दिखाया है जो 'अजब प्रेम की गजब कहानी', 'रॉकस्टार', 'जब वी मेट', 'Once upon a time in Mumbai' और 'मौसम' जैसी कामयाब फिल्मों में दिखा था। 


वैसे क्या आपको पता है कि इरशाद क़ामिल को प्रेम गीतों को लिखने का चस्का कैसे लगा ? कॉलेज के ज़माने में उनके मित्र उनसे प्रेम पत्र लिखवाया करते थे। अब शेर ओ शायरी के बिना पत्रों से रूमानियत टपकती तो कैसे? इस वज़ह से कविता व शायरी पढ़ने लिखने में उनकी दिलचस्पी बढ़ गई। अपने दोस्तों में वो सुंदर लिखावट के लिए भी वे मशहूर थे तो मित्र उनसे किसी अज़ीम शायर की ग़ज़ल लिखवा कर अपने पत्रों में डलवा देते। ये सिलसिला इतना बढ़ गया कि एक ही शायरी को बार बार डालने में इरशाद को उकताहट होने लगी और इस हमेशा की परेशानी से बचने के लिए उन्होंने खुद से ही लिखना शुरु कर दिया।

फटा पोस्टर निकला हीरो के संगीतकार प्रीतम ने इस गीत के दो वर्सन रिकार्ड किये। एक को तो उन्होंने युगल गीत के रूप में पाकिस्तानी गायक आतिफ असलम और चिन्मयी श्रीपदा से गवाया जब कि दूसरे वर्सन में एकल गीत के तौर पर इसे अरिजित सिंह से गवाया। दोनों वर्सनों को सुनने के बाद मुझे आतिफ़ और चिन्मयी का युगल गीत ही ज्यादा पसंद आता है। आपका इस बारे में क्या ख़्याल है?



ख्वाब है तू, नींद हूँ मैं, दोनो मिलें, रात बने
रोज़ यही माँगूँ दुआ, तेरी मेरी बात बने

मैं रंग शरबतों का, तू मीठे घाट का पानी
मुझे खुद में घोल दे तो,मेरे यार बात बन जानी


ओ यारा तुझे प्यार की बतियाँ क्या समझावाँ
जाग के रतियाँ रोज़ बितावाँ, इससे आगे अब मैं क्या कहूँ
ओ यारा तुझे बोलती अँखियाँ सदके जावाँ
माँग ले पकियाँ आज दुआवाँ, इससे आगे अब मैं क्या कहूँ

मैंने तो धीरे से, नींदों के धागे से, बाँधा है ख्वाब को तेरे
मैं ना जहान चाहूँ, ना आसमान चाहूँ, आजा हिस्से में तू मेरे

तू ढंग चाहतों का, मैं जैसे कोई नादानी
मुझे खुद से जोड़ दे तो ,मेरे यार बात बन जानी
रंग शरबतों का…

तेरे ख़यालों से, तेरे ख़यालों तक, मेरा तो है आना जाना
मेरा तो जो भी है, तू ही था, तू ही है
बाकी जहान है बेगाना,

तुम एक मुसाफ़िर हो, मैं कोई राह अनजानी

मनचाहा मोड़ दे तो, मेरे यार बात बन जानी
मैं रंग शरबतों का, तू मीठे घाट का पानी

फिल्म में इस गीत को फिल्माया गया है शाहिद कपूर और इलीना पर..


शनिवार, जनवरी 11, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान संख्या 20 : ऐ सखी साजन.. जब ' कह मुकरनी' ने शक़्ल ली एक गीत की ! (Aye Sakhi Sajan...)

वार्षिक संगीतमाला की बीसवीं पॉयदान पर गीत वो जो एक पुरानी साहित्यिक विधा  को एक बार फिर से गीत के लफ़्जों में पिरो कर लाया है। ये गीत है फिल्म रांझणा का, बोल हैं इरशाद क़ामिल के और धुन बनाई है ए आर रहमान ने। आप सोच रहे होगें कि मै किस विधा की बात कर रहा हूँ? इस विधा का नाम है 'कह मुकरनी' जिसे जनाब आमिर खुसरो ने तेरहवीं सदी में विकसित किया था। 

‘कह-मुकरनी’ का अर्थ है ‘कहकर मुकर जाना’ यानी अपनी कही हुई बात को वापस ले लेना। कह मुकरनी चार पंक्तियों की छोटी कविता की एक विशेष शैली है जिसमें संवाद दो सखियों के बीच होता है। इस संवाद में बातें कुछ इस तरह से कही जाती हैं कि वो स्त्री के पति के बारे में हो सकती है या किसी और वस्तु विशेष को इंगित कर रही होती हैं। जब सखी ये कहती है कि अरे तुम तो अपने पिया की बातें कर रही हो तो झट से जवाब आता है नहीं नहीं मैं तो उस वस्तु विशेष की बात कर रही थी। अमीर खुसरो ने यूँ तो तमाम कह मुकरनी लिखीं और उनमें कुछ इंटरनेट पर सहज ही उपलब्ध हैं । मिसाल के तौर पर ये नमूना देखिए..

वो आवे तब शादी होय। उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागें वाके बोल। ए
सखी साजन? ना सखी ढोल

ऊँची अटारी पलंग बिछायौ। मैं सोयी मेरे सिर पर आयौ।
खुल गयीं अखियाँ भयौ अनन्द। ए
सखी साजन? ना सखी चंद!

अगर इन पंक्तियों को ध्यान से देखें तो आप पाएँगे कि ये पंक्तियाँ कोई अपने पिया के बारे में भी कह सकता है और वास्तव में कह भी रहा है पर आख़िर समय में वो स्वीकारोक्ति ना कर ये कह देती है कि ना जी मैं तो 'ढोल' या  'चंद्रमा' की बात कर रही थी। रांझणा में भी सहेलियों की आपसी बातचीत को इस गीत में 'कह मुकरनी' के अंदाज़ में कहा गया है। वैसे फिल्म संगीत में इस अंदाज़ को लाने का श्रेय  रहमान और इरशाद कामिल को दिया जा सकता है पर इससे पहले भी अस्सी के दशक में  आमिर खुसरो पर बने HMV के गैर फिल्मी एलबम Great Works of Amir Khusro  में संगीतकार मुरली मनोहर स्वरूप ने वाणी जयराम और कृष्णा की आवाज़ में कुछ कह मुकरनियों को रिकार्ड किया गया था।



रहमान ने बड़ी खूबसूरती से इस गीत शास्त्रीयता का रंग भरा है । गीत की शुरुआत चिन्मयी श्रीप्रदा और मधुश्री की मोहक शास्त्रीय सरगम  होती है और फिर शुरु होती हैं कह मुकरनी के अंदाज़ में कही जाने वाली पहेलियाँ। रहमान का संगीत में दक्षिण भारतीय वाद्य घाटम का प्रयोग मन को सोहता है। इरशाद कामिल अपनी पहली पहेली को कह मुकरनी का ज़ामा कुछ यूँ पहनाते हैं

बताओ बताओ है क्या ये सहेली
बताओ बताओ है क्या ये पहेली
हाँ ऐ सखी उलझन, क्या सखी उलझन
ऐ सखी उलझन,, क्या सखी उलझन

हर दर्द सारा बदल है जाता
जनम जनम का उस से नाता
हो .. कभी है बादी हो, कभी सुवादी
कभी है बादी हो, कभी सुवादी 

ऐ सखी साजन, ना सखी शादी

देख रहें हैं ना कि जो बातें शादी के लिए लागू होती हैं वही साजन के लिए। और ये रही गीत की दूसरी पहेली

चाहे तो वो कर दे अँधेरा, गीला कर दे तन मन मेरा
चाहे तो वो कर दे अँधेरा, गीला कर दे तन मन मेरा
मैं तो सुखाती हूँ फिर दामन, ऐ सखी साजन, ना सखी सावन..

गीत के इंटरल्यूड्स में सह गायिकाओं द्वारा पैं पैं... की ध्वनि का प्रयोग कर रहमान सहेलियों के बीच के हल्के फुल्के माहौल का संकेत दे देते हैं। गीत के आख़िरी अंतरे में इरशाद क़ामिल सचमुच के साजन को कुछ यूँ परिभाषित करते हैं।

हाय पास ना हो बड़ा सताए..(सताए)
पास जो हो बड़ा सताए..(सताए)
पास बुलाये बिना बतलाये..(बताए)
पास वो आये बिना बतलाये..(बताए)
पास रहे नज़र ना आये..(ना आये)
पास रहे नज़र लगाये..(लगाये)
पास उसी के रहे ख्वाहिशें..ख्वाहिशें
पास उसी के कहें ख्वाहिशें..ख्वाहिशें

कुल मिलाकर चिन्मयी और मधुश्री के मधुर स्वर में ये गीत हमें आनंद के कुछ और क्षण दे जाता है। आपका क्या ख्याल है?

सोमवार, फ़रवरी 05, 2007

पायदान # 8: गुरु गुलजार की बेसुवादी रतिया में रहमान चिन्मयी की बतिया !

बीते ना बिताई रैना, बिरहा की जाई रैना
भीगी हुई अखियों ने लाख बुझाई रैना....
....चाँद की बिन्दी वाली, बिन्दी वाली रतियाँ
जागी हुई अखियों में रात ना आई रैना


रात का ये तनहा सफर गुलजार के लिए नया नहीं । परिचय के इस गीत की तरह कई बार इन मनोभावों को उभारा है उन्होंने ।
अब वैसे भी मन का मीत ही साथ ना हो तो शीतल, सलोनी , चाँदनी रात में इश्क का तड़का लगाएगा कौन ! फिर तो वो रात भी फीकी-फीकी बेस्वादी ही होगी ना !
इसी मुखड़े को सजाया है अपनी धुन से संगीतकार ए. आर. रहमान ने । और इसे गाया है रहमान के साथ युवा नवोदित गायिका चिन्मयी श्रीपदा ने । चिन्मयी बहुभाषाविद हैं, मनोविज्ञान की छात्रा हैं, बचपन से शास्त्रीय संगीत सीख रही हैं और खुशी की बात ये कि वो हमारी और आपकी तरह एक ब्लॉगर भी हैं । देखिये तो खुद क्या कहती हैं अपने चिट्ठे पर गुरु के गीतों की उनकी अदायगी के बारे में ।

"मुझे बस इतना याद है कि रहमान सर ने कहा कि अपनी आवाज को पूरी तरह बहने दो और गाओ । चाहे ऐसा करने पर तुम्हें ये क्यूँ ना लगे कि तुम अव्वल दर्जे की मूर्ख हो । वैसे तो मन का संकोच ना जाना था ना गया, पर ये जरूर हुआ कि दिमाग में कोई दीपक उस वक्त जरूर जल उठा और उसकी वजह से अपनी कम काबिलियत का अहसास जाता रहा । पर रिकार्डिंग के बाद अपनी गायिकी पर सवाल रह रह कर मन में फिर से उठने लगे । यहाँ तक की गीत सुनकर मुझे आपनी आवाज ही पहचान में नहीं आई । "

ये तो हुई गायिका की बात पर इस गीत का सबसे सशक्त पहलू इसकी धुन है जो धीरे धीरे दिलो दिमाग में चढ़ती है और फिर उसके बाद उतरने का नाम नहीं लेती ।गीत के बीच की बंदिश और भारतीय वाद्य यंत्रों का प्रयोग मन को खुश कर देने वाला है । रहमान ने इस गीत को नुसरत फतेह अली खाँ को अपनी ओर से श्रृद्धांजलि बताया है । तो चलिए आप सब भी ८ वीं पायदान की इस मधुर तान का आनंद उठायें ।

दम दारा दम दारा मस्त मस्त
दारा दम दारा दम दारा मस्त मस्त
दारा दम दारा दम दम
ओ हमदम बिन तेरे क्या जीना!
तेरे बिना बेसुवादी बेसुवादी रतिया, ओ सजना !
हो, रूखी रे ओ रूखी रे
काटू रे काटे कटे ना
तेरे बिना बेसुवादी बेसुवादी रतिया, ओ सजना !

ना जा, चाकरी के मारे
ना जा, सौतन पुकारे
सावन आएगा तो पूछेगा, ना जा रे
फीकी फीकी बेसुवादी ये रतिया
काटू रे कटे ना कटे ना
अब तेरे बिन सजना सजना, काटे कटे ना..
काटे ना.. काटे ना..तेरे बिना
तेरे बिना बेसुवादी बेसुवादी रतिया, ओ सजना !


तेरे बिनाऽऽऽ चाँद का सोना खोटा रे
पीली पीली धूल उड़ावे, झूठा रेऽऽऽ
तेरे बिन सोना पीतल, तेरे संग कीकर पीपल
आ जा कटे ना रतियाऽऽ
तेरे बिना बेसुवादी बेसुवादी रतिया, ओ सजना....




 

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इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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