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बुधवार, मार्च 26, 2025

वार्षिक संगीतमाला 2024 Top 25 : मन रे मन रे पागल मन रे

वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल के पच्चीस बेहतरीन गीतों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए चलते हैं 22वीं पायदान के गीत की तरफ जिसे यहाँ तक पहुँचाने में मुख्य भूमिका रही है संगीतकार जी वी प्रकाश कुमार व गीतकार सजीव सारथी की। ये गीत है पिछले साल आई और काफी सराही गयी युद्ध आधारित फिल्म आमरण (अमरन) का। 

प्रकाश की वॉयलिन पर बजती मधुर स्वरलहरियाँ और एक नवयुगल के प्रेम को व्यक्त करते सजीव के मुलायम शब्द इस गीत को कई बार सुनने को मजबूर करते हैं। 


हिन्दी ब्लागिंग के शुरुआती  दौर के साथी कवि का एक बड़ी बैनर की फिल्म के गीतकार के रूप में अपना सिक्का जमाते हुए देखना अपने आप में एक बेहद खुशी का सबब था और वो भी तब जबकि सजीव को इस फिल्म के सारे गीतों को लिखने के लिए  सिर्फ दो तीन दिनों का ही वक़्त मिला।

देवेंद्र, सजीव (बीच में) के साथ मैं (वर्ष 2007)

मूलतः तमिल में बनी इस फिल्म की हिंदी में प्रदर्शित करने का निर्णय अंतिम समय में लिया गया। वक़्त कम था और हिंदी वर्सन के लिए जब प्रकाश ने पहले साथ काम कर चुके सजीव का नाम सुझाया तो उन्हें फिल्म के गीत पहले हे सोनिये लिखने का अवसर मिला जो निर्देशक राजकुमार पेरियासामी को इतना पसंद आया कि उन्होंने सारे गीतों को लिखने का जिम्मा सजीव को दे दिया। तमिल से जब गीतों को हिंदी में लिखने की बारी आई तो सजीव ने शाब्दिक अनुवाद से परे हटके गीत की भावनाओं को पकड़ा और उन्हें अपने शब्द दिये। सजीव कहते हैं कि अगले  चार दिनों में सारे गीत लिखे गए, संगीत का संयोजन हुआ और गीतों  की अंतिम रिकार्डिग भी  कर ली गई। बतौर सजीव

ये मेरे जीवन की सबसे यादगार चार रातें थीं और इन बेहतरीन धुनों पर काम करते हुए इतना आनंद मुझे पहले कभी नहीं आया। इस फिल्म को दिल्ली में जब सैनिकों को विशेष रूप से दिखाया गया तो बहुतों की रुलाई छूट गयी पर साथ ही फिल्म के गीतों पर दर्शकों की प्रतिक्रिया देखकर संगीतकार जी वी प्रकाश को कहना पड़ा कि हिंदी वर्सन के गीत संगीत तो लगता है तमिल की अपेक्षा ज्यादा बेहतर तरीके से उभर कर आए हैं।
सजीव और प्रकाश के गीत संगीत से सजा जो गीत मेरी इस गीतमाला का हिस्सा बना है वो है मन रे मन रे। दो लोगों के मिलने, परिणय सूत्र में बँधने और उनके निरंतर प्रगाढ़ होते प्रेम को दिखाता हुआ फिल्म का ये गीत पार्श्व में चलता रहता है। बाँसुरी के मधुर टुकड़े से ये गीत शुरु होता है जब मुखड़े में सजीव लिखते हैं..

सौंधी सी सुबहों में
कुछ भीगे सपने हैं
सपनों में है कोई अपना सा
कोई जादू हो जैसे
बदला ये जग कैसे
दिल जैसे हो दिल में धड़का सा
मन रे मन रे, पागल मन रे, कैसा तू दीवाना
इसके बाद जो जी वी प्रकाश कुमार की  वॉयलिन आधारित धुन है उसे फिल्म में अभिनेत्री साई पल्लवी के इन्ट्रो में भी इस्तेमाल किया गया है और इस गीत के इंटल्यूड्स में।

जी वी प्रकाश कुमार

मैंने पिछले साल के जितने गीतों को सुना उसमें संगीत का ये टुकड़ा मेरे दिल में बस सा गया। बाद में मैंने पाया कि इस धुन की लोकप्रियता का ये आलम है कि इंस्टाग्राम पर हजारों की संख्या में लोग बाग इसी धुन को पार्श्व में रखकर रील बना रहे हैं। प्रकाश पिछले दो दशकों से तमिल और तेलगु फिल्मों के संगीत निर्देशन में सक्रिय रहे हैं और एक बार राष्ट्रीय पुस्कार भी जीत चुके हैं।

ये धरती ये गगन, हैं अपने मिलन के गवाह
दोहराते जायेगें , सदियों सदियों तक ये दास्तां
हम चाहत के माने, दुनिया को सिखाने
फिर लौटेंगे वापस यहां
मन रे मन रे, पागल मन रे, कैसा तू दीवाना

मजे की बात ये है कि इस गीत के दो अंतरे हैं जिसमें एक का इस्तेमाल फिल्म में हुआ है जबकि दूसरे का इ्ंटरनेट पर उपलब्ध आडियो में। फिल्म वर्सन में सजीव की लिखी ये पंक्तियाँ मुझे बेहद प्यारी लगीं

तेरी खुशबू ले पवन, मेरी सांसों को छूकर गई
कोई बदली चाहत की, मन मेरा भिगो कर गई
मैं तुझमें हूं खोया, न जागा न सोया
है मेरा भी कुछ हाल ऐसा
मन रे मन रे, पागल मन रे, कैसा तू दीवाना

इस गीत को गाया है शान के साथ श्वेता अशोक ने। हालांकि मुझे ऍसा लगा कि अगर श्वेता की जगह ये गीत श्रेया की आवाज़ में होता तो क्या ही बात होती। तो आइए सुनते हैं गीत अपने पहले अंतरे के साथ। दूसरे अंतरे के लिए तो आपको फिल्म देखनी होगी


मंगलवार, जनवरी 13, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 19 : चार कदम बस चार कदम, चल दो ना साथ मेरे Char Kadam ..

वार्षिक संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर है स्वानंद, शान्तनु और शान की तिकड़ी। मुझे याद है कि इससे पहले इस तिकड़ी की भागीदारी से एक और गाना एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला की शोभा बढ़ा चुका है। वो गीत था फिल्म Three Idiots का और गाने के बोल थे बहती हवा सा था वो। 


पाँच साल बाद इस तिकड़ी ने फिल्म पीके में एक और मधुर गीत की रचना की है। मुझे ऐसा लगता रहा है कि शान जिस आवाज़ के मालिक हैं उसका सदुपयोग कुछ ही संगीतकार कर पा रहे हैं। अपनी जानदार और ताज़ी आवाज़ से शान गीत के स्तर को और उठाने में कामयाब रहे हैं। वैसे इस गीत की आख़िर में श्रेया घोषाल ने भी दो पंक्तियाँ के माध्यम से अपनी आवाज़ की मिठास घोली है।   शान इस गीत की के बारे में कहते हैं...
सच कहूँ तो मुझे भी ये भरोसा नहीं था कि इस गीत को इतनी सफलता मिलेगी। शायद इसकी वज़ह ये है कि इसमें तेज बीट्स और ऊँचे सुर के बोल नहीं है। इस गीत को सुनकर एक गर्मजोशी भरे प्यार का ख्याल आता है। ये मेरे गाए बेहतरीन गीतों में से एक है। बेल्जियम के उस पुल पर जहाँ ये गीत फिल्माया गया है, से मेरी यादें जुड़ी हैं क्यूँकि वहाँ सपरिवार मैं छुट्टियाँ मनाने जा चुका हूँ।

स्वानंद किरकिरे के लेखन का मैं शुरुआती दिनों से प्रशंसक रहा हूँ और विगत वर्षों की वार्षिक संगीतमालाओं में उनके डेढ़ दर्जन गीत अपना स्थान बना चुके हैं। स्वानंद ने ये गीत पीके के लिए सोच कर नहीं लिखा था। कविता के रूप में ये गीत वो पहले ही लिख चुके थे और वो भी फेसबुक पर। जब अपनी फेसबुकिया कविता स्वानंद ने निर्देशक राजकुमार हिरानी को सुनाई तो उन्होंने जस का तस इसे फिल्म में ले लिया। 

शान्तनु मोइत्रा इस फिल्म के लिए संगीतबद्ध गीतों में इस गीत को अपना पसंदीदा मानते हैं। शान्तनु के दिमाग में इस रोमांटिक गीत की धुन तैयार करते हुए दो बातें थीं एक तो यूरोप और दूसरा वहाँ का नृत्य वाल्टज़ (Waltz)। इन्हीं दोनों पहलुओं ने उन्हें गीत का मूड बनाने में मदद की। पियानो, गिटार और इंटरल्यूड्स में यूरोपीय कोरस का सहारा ले के उन्होंने ये माहौल खूबसूरती से रचा भी है। हालांकि उन पर ये आरोप भी लगे कि इस धुन को उन्होंने फिल्म Beyond Sunset के गीत  Waltz for a night पर आधारित कर बनाया। 

मैंने जब ये गीत सुना तो पाया कि दोनों गीतों के बोल तो अलग हैं ही,  धुन की शुरुआत में भी हल्की सी साम्यता  है पर उसे उन्होंने इस गीत में एक अलग ढंग से विकसित किया है। बहरहाल उस गीत की धुन तुलना के लिए आप यहाँ सुन सकते हैं। इसलिए मुझे इस आरोप में ज्यादा दम नहीं लगा । बहरहाल आइए अब सुनें ये गीत



 बिन पुछे मेरा नाम और पता, रस्मों को रख के परे
चार कदम बस चार कदम, चल दो ना साथ मेरे

बिन कुछ कहे, बिन कुछ सुने, हाथों में हाथ लिए
चार कदम बस चार कदम, चल दो ना साथ मेरे

राहों में तुमको जो धूप सताए, छाँव बिछा देंगे हम
अंधेरे डराए तो जा कर फलक पे चाँद सज़ा देंगे हम
छाए उदासी लतीफ़े सुना कर तुझको हँसा देंगे हम
हँसते हँसाते यूँही गुनगुनाते चल देंगे चार कदम

तुमसा मिले जो कोई रहगुज़र, दुनिया से कौन डरे
चार कदम क्या सारी उमर, चल दूँगी साथ तेरे  क्यूँ

फिल्म में अनुष्का और सुशांत के पहली बार मिलने से ले कर रिश्तों में बँधने का प्रसंगइस गीत के माध्यम से  बस चार मिनटों में ही निपटा दिया गया। हॉल में जब मैं ये फिल्म देख रहा था तो गीत खत्म होते के साथ बगल की सीट से आवाज़ आई I swear..It was damn quick man और मैं बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोक पाया। बहरहाल ये रहा इस गीत का वीडियो..



वार्षिक संगीतमाला 2014

रविवार, अगस्त 14, 2011

पूछे जो कोई मेरी निशानी रंग हिना लिखना, गोरे बदन पे उँगली से मेरा नाम अदा लिखना

छः साल पहले यानि 2005 में कश्मीर समस्या की पृष्ठभूमि पर एक फिल्म बनी थी नाम था 'यहाँ'! फिल्म ज्यादा भले ही ना चली हो पर इसके गीत आज भी संगीतप्रेमी श्रोताओं के दिल में बसे हुए हैं,खासकर इसका ये रोमांटिक नग्मा। गुलज़ार ने अपनी लेखनी से ना जाने कितने प्रेम गीतों को जन्म दिया है पर उनकी लेखनी का कमाल है कि हर बार प्यार के ये रंग बदले बदले अल्फ़ाज़ों के द्वारा मन में एक अलग सी क़ैफ़ियत छोड़ते है।
'यहाँ' फिल्म का ये गीत सुनकर दिल सुकून सा पा लेता है। श्रेया घोषाल की स्निग्ध आवाज़ और पार्श्व में शान्तनु मोएत्रा के बहते संगीत पर गुलज़ार के बोल गज़ब का असर करते हैं। गुलज़ार गीत के मुखड़े से ही रूमानियत का जादू जगाते चलते हैं। नायिका का ये कहना कि यूँ तो मेरी रंगत हिना से मिलती जुलती है पर जब तुम्हारा स्पर्श मुझे मिलता है मेरी हर बात एक अदा बन जाती है,अन्तरमन को गुदगुदा जाता है..

फिल्म यहाँ की कहानी एक कश्मीरी लड़की और फ़ौज के एक अफ़सर के बीच आतंकवाद के साए में पलते प्रेम की कहानी है। ज़ाहिर है प्रेमी युगल आशावान हैं कि आज नहीं तो कल ये हालात बदलेंगे ही...गुलज़ार पहले अंतरे में यही रेखांकित करना चाहते हैं

पूछे जो कोई मेरी निशानी
पूछे जो कोई मेरी निशानी
रंग हिना लिखना
गोरे बदन पे
उँगली से मेरा
नाम अदा लिखना
कभी कभी आस पास चाँद रहता है
कभी कभी आस पास शाम रहती है..

झेलम में बह लेंगे..
वादी के मौसम भी
इक दिन तो बदलेंगे
कभी कभी आस पास चाँद रहता है
कभी कभी आस पास शाम रहती है..

गीत के दूसरा और तीसरे अंतरे में श्रोता अपने आप को प्रकृति से जुड़े गुलज़ार के चिर परिचित मोहक रूपकों से घिरा पाते हैं। शाम की फैली चादर, चाँद की निर्मल चाँदनी, गिरती बर्फ , फैलती धुंध, बदलते रंग और जलती लकड़ियों की आँच सब कुछ तो है जो जवाँ दिलों को एक दूसरे से अलग होने नहीं देती.. । गुलज़ार की लेखनी एक अलग ही धरातल पर तब जाती दिखती है जब वो कहते हैं..शामें बुझाने आती हैं रातें, रातें बुझाने, तुम आ गए हो.। ये सब पढ़ सुन कर बस एक आह सी ही निकलती है...

आऊँ तो सुबह
जाऊँ तो मेरा नाम सबा लिखना
बर्फ पड़े तो बर्फ पे मेरा नाम दुआ लिखना
ज़रा ज़रा आग वाग पास रहती है
ज़रा ज़रा कांगड़ी का आँच रहती है
कभी कभी आस पास चाँद रहता है
कभी कभी आस पास शाम रहती है..

जब तुम हँसते हो
दिन हो जाता है
तुम गले लगो तो
दिन सो जाता है
डोली उठाये आएगा दिन तो
पास बिठा लेना
कल जो मिले तो
माथे पे मेरे सूरज उगा देना
ज़रा ज़रा आस पास धुंध रहेगी
ज़रा ज़रा आस पास रंग रहेंगे

पूछे जो कोई मेरी निशानी...शाम रहती है..
इस गीत में श्रेया का साथ दिया है शान ने। श्रेया इस गीत को अपने गाए सर्वप्रिय गीतों में से एक मानती हैं। इस गीत के बारे में अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि
इस गीत में ऐसा कुछ है जो मुझे अपनी ओर खींचता है। वे इसके शब्द नहीं हैं, ना ही मेरी गायिकी और ना ही इसका संगीत पर इन तीनों के समन्वय से बनी इस गीत की पूर्णता ही मुझे इस गीत को बार बार सुनने को मजबूर करती है।

श्रेया के मुताबिक इस फिल्म के संगीतकार शान्तनु मोएत्रा एक ऐसे संगीतकार हैं जिनका संगीत संयोजन इस तरह का होता है कि वो गीत में वाद्य यंत्रों का नाहक इस्तेमाल नहीं करते। श्रेया का कहना बिल्कुल सही है।शांतनु की इस विशिष्ट शैली को हम उनकी बाद की फिल्मों परिणिता, खोया खोया चाँद और एकलव्य दि रॉयल गार्ड जैसी फिल्मों में भी देखते आए हैं।

यहाँ फिल्म अभिनेत्री मिनीषा लांबा की पहली फिल्म थी। फिल्म में उनका अभिनय और फिल्म का छायांकन चर्चा का विषय रहे थे। इस गीत के वीडिओ में आप फिल्म की इन दोनों खूबियों का सुबूत सहज पा लेंगे....
चलते चलते जरा याद कीजिए की विगत बीस सालों (1990 -2010) में गुलज़ार के लिखे रूमानी नग्मों में आपको सबसे ज्यादा कौन पसंद हैं? अपनी पसंद बताइएगा। फिलहाल मेरी पसंद तो ये रही..

सोमवार, जनवरी 18, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 : पायदान संख्या 21 - क्या आपकी जिंदगी से भी कोई शख्स गुमशुदा है?

हिंदी फिल्म संगीत में कई बार ऍसा होता है कि जब आप किसी गीत को सिर्फ सुनते हैं तो वो आप पर जबरदस्त प्रभाव डालता है पर फिल्म को देखते समय वो गीत कहानी में घुलता मिलता नज़र नहीं आता। पर दूसरी ओर परिस्थितिजन्य गीत होते हैं जो कहानी की पटकथा के अनुसार अपने आप को ढाल लेते हैं। ऐसे गीत एकबारगी सुनने में तो वो असर नहीं डालते पर फिल्म देखने के बाद धीरे धीरे मन में बैठने लगते हैं। वार्षिक संगीतमाला 2009 की 21 वीं पॉयदान पर एक ऐसा ही गीत विराजमान है। इस गीत की धुन बनाई शान्तनु मोइत्रा ने, इसे लिखा स्वानंद किरकिरे ने और अपनी मखमली आवाज़ से इसमें रंग भरे गायक शान ने।

स्वानंद किरकिरे को फिल्म '3 Idiots' की पटकथा लिखते समय से ही इस परियोजना में शामिल कर लिया गया था। इसलिए इस फिल्म के सारे गीतों के बोल पटकथा की धारा के साथ बहते नज़र आए। All Izz Well की उत्पत्ति के बारे में स्वानंद जी की राय से मैं आपको पहले ही अवगत करा चुका हूँ। आज जानते हैं कि स्वानंद के जोड़ीदार शान्तनु क्या कहते हैं इस गीत के बारे में ।

वैसे शान्तनु मोइत्रा एक ऐसे संगीतकार हैं जो अपनेआप को पूर्णकालिक संगीतकार नहीं मानते। एड जिंगल करते करते फिल्म उद्योग का रास्ता देखने वाले शान्तनु को संगीत से उतना ही प्यार है जितना कि खगोल विज्ञान, घुमक्कड़ी और पर्वतारोहण से। साल में वो चुनिंदा फिल्म करते हैं। हजारों ख्वाहिशें ऐसी और परिणिता के माध्यम से 'एक शाम मेरे नाम' की वार्षिक संगीतमाला 2004 और 2005 में ऊपर की पॉयदानों पर धूम मचा चुके हैं।

शान्तनु इस गीत के बारे में कहते हैं
हमारा ये गीत ऍसे एक शख़्स की कहानी कहता है जो हमारी जिंदगी में आया,हमें जानने की कोशिश की,जिसने हमारे दिल को छुआ और फिर अपने विचारों से आगे बढ़ने की रोशनी दिखाकर इतनी सहजता से हमारी जिंदगी से अलग हो गया जैसे कुछ हुआ ही ना हो। सालों बाद जब आप उसके बारे में सोचते हैं तो लगता है अरे वो तो कभी स्मृति पटल से दूर गया ही नहीं। और मन अनायास ही उद्विग्न हो उठता है कि आखिर वो गया कहाँ?

शान्तनु ने जो बात कही है उसकी सच्चाई से शायद ही मुझे या आपको संदेह होगा। इसी बात को पुरज़ोर ढंग से रखने में गायक गीतकार और संगीत निर्देशक की जोड़ी कामयाब हुई है। स्वानंद के सहज बोल,शान्तनु का बहता संगीत खासकर मुखड़े के बाद का टुकड़ा और इंटरल्यूड्स मन को बेहद सुकून देते हैं। शान की आवाज़ की मुलायमियत आपको अतीत की यादों की पुरवाई में भटकने को बाध्य करती है।

तो आइए इस गीत के बोलों को पढ़ते हुए सुनें इस गीत को


बहती हवा सा था वो
उड़ती पतंग सा था वो
कहाँ गया उसे ढूँढो...

हम को तो राहें थीं चलाती
वो खुद अपनी राह बनाता
गिरता सँभलता मस्ती में चलता था वो
हम को कल की फिक्र सताती
वो बस आज का जश्न मनाता
हर लमहे को खुल के जीता था वो
कहाँ से आया था वो
छूके हमारे दिल को
कहाँ गया उसे ढूँढो

सुलगती धूप में छाँव के जैसा
रेगिस्तान में गाँव के जैसा
मन के घाव में मरहम जैसा था वो
हम सहमे से रहते कुएँ में
वो नदिया में गोते लगाता
उल्टी धारा चीर के तैरता था वो
बादल आवारा था वो
प्यार हमारा था वो
कहाँ गया उसे ढूँढो

हम को तो राहें थीं चलाती.....
.........कहाँ गया उसे ढूँढो




चलते चलते एक मज़ेदार तथ्य जो इस से गीत से जुड़ा है वो आपसे बाँटता चलूँ। जब इस गीत की रिकार्डिंग पूरी हो चुकी थी तो निर्देशक राजकुमार हिरानी के बुलावे पर आमिर स्टूडिओ आए।

हिरानी ने तब आमिर से कहा जानते हो फिल्म में इस गीत के आलावा कब ये गीत पूरे देश में बजेगा? आमिर असमंजस में थे कि राजकुमार जी ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा ये तुम्हारा Funeral Song होगा ये। मरोगे तब टेलीविजन पर इसी गीत के माध्यम से तुम्हें याद किया जाएगा। ये सुनकर आमिर हँस पड़े।

गुरुवार, फ़रवरी 14, 2008

वार्षिक संगीतमाला २००७ : पायदान ८ - वैलेंटाइन डे स्पेशल !

आज वैलेंटाइन डे है। पहली बार जब वैलेंटाइन डे के चर्चे सुने थे तो मन ही मन एक मुस्कुराहट जरूर दौड़ गई थी कि चलो भाई हमारी ना सही, अब आज की पीढ़ी को इज़हार-ए-दिल करने के लिए कोई तो दिन मिला। वर्ना एक ज़माने वो भी था कि लोग बाग अपनी उन तक पहुँचने के लिए घर, कॉलेज और कोचिंग तक रिक्शे का पीछा करते थे। मामला घर के बगल का हुआ तो प्रेम पत्र पत्थर से छत पर फेंका जाता था, या सिर्फ खिड़कियों से हाथ हिलाने से ही रात की नींदे हराम हो जाया करती थीं। और अगर दिल की अंदरुनी हालत काबू के बाहर हो जाए तो वो अनायास ही उनके सामने जा कर आई लव यू बोल देने की हिम्मत भी कुछ वीर बांकुड़े दिखा ही जाते थे। जो कुछ ज्यादा दूरदर्शी होता वो फेल सेफ कंडीशन लॉजिक का प्रयोग कर जेब में एक डोरी भी रखता कि मामला कुछ उलटा पड़ा तो उनके थप्पड़ के पहले अपनी भूल का अहसास करने वाले भाई का हाथ आगे होगा।:)

तो ना हम ऊपर की किसी कवायद का हिस्सा बन पाए ना ही वैलेंटाइन डे से अपने आप को जोड़ सके। पर ये स्पष्ट करना चाहूँगा कि प्रेम को महिमामंडित करते हुई कोई पर्व मनाने में मेरी पूरी आस्था है । भले ही हम, "है प्रीत जहाँ की रीत वहाँ..... जैसे गीत गाते रहें फिर भी इस बात को नज़रअंदाज नहीं कर सकते कि ये देश वैसे लोगों का भी है जो भाषा, धर्म, जाति के आधार पर नफ़रत के बादल सदा फैलाते आए हैं और रहेंगे। प्रेम में वो शक्ति है जो इन व्यर्थ की दीवारों को तोड़ने के लिए हमें प्रेरित करती है।

और हम साल दर साल इसी बात को एक पर्व के माध्यम से नई पीढ़ी के सामने रखें तो इसमें बुराई क्या है? हाँ ये जरूर है कि अगर ये पर्व, वसंतोत्सव या अपनी संस्कृति से जुड़े किसी अन्य रूप में मनाया जाए तो समाज का हर वर्ग इसे अपने से जोड़ कर देख सकता है।

ये सुखद संयोग है कि इस गीतमाला की आठवीं पायदान का गीत प्रेम के रस से पूरी तरह सराबोर है। इसे गाया शान ने, बोल लिखे समीर ने और इस गीत की धुन बनाई मोन्टी शर्मा ने। मोन्टी शर्मा संगीतकार प्यारेलाल के भतीजे और अपने दादा पंडित राम प्रसाद शर्मा के शिष्य हैं। मोन्टी खुद एक कीबोर्डप्लेयर हैं और इससे पहले उन्होंने फिल्म ब्लैक का बैकग्राउंड स्कोर दिया था। इस गीत की खूबसूरती है इसकी मधुर लय और संगीत में, जिसे शान ने अपनी आवाज़ के जादू से और उभारा है

मेरे मित्रों और एक शाम मेरे नाम के पाठकों को इस दिन की हार्दिक बधाई। मेरी मनोकामना है कि आप सब प्रेम के अभूतपूर्व अनुभव से अपने जीवन में आज नहीं तो कल जरूर गुजरें।

तो आइए प्रेम का ये पर्व मनाएँ सांवरिया से लिखे इस प्यारे से गीत के साथ....
जब से तेरे नैना..., मेरे नैनों से, लागे रे
तबसे दीवाना हुआ, सबसे बेगाना हुआ
रब भी दीवाना लागे रे..........




पुनःश्च (१५.२.२००८)
कल रात अपने ६ वर्षीय बेटे से बात हो रही थी की वेलेंटाइन डे के दिन लोग एक दूसरे को फूल भेंट करते हैं और वो भी खास गुलाब के। बेटे ने झट से कहा गुलाब...मुझे तो वो ज़रा भी पसंद नहीं।
तो फिर आप क्या लोगे किसी से?
तपाक से उत्तर मिला बस "एक केला दे दे तो कितना अच्छा लगेगा।"

बेटे के इस उत्तर को सुन कर हमारा हँसते हँसते बुरा हाल हो गया। सोचा आप सब से बाँटता चलूँ। :)

रविवार, जनवरी 20, 2008

वार्षिक संगीतमाला २००७ : पायदान १७ - चका चका ची चा चो चक लो रम...बम बम बोले

दफ़्तर के दौरों की वज़ह से ये संगीतमाला अटकती हुई आगे बढ़ रही है और इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। आज सुबह ही नागपुर से लौटा हूँ और रात में फिर एक दूसरे काम से प्रस्थान करना है। खैर ये सब तो चलता ही रहेगा । तो आज आपके सामने है इस संगीतमाला की पायदान १७ जिस पर एक ऐसी फिल्म का गीत है जिसके गाने इस पूरी श्रृँखला में दो तीन बार नहीं बल्कि पूरे चार बार बजने वाले हैं। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ 'तारे जमीं पर' कि जिसका मूल विषय नन्हे बच्चों की जिंदगी से जुड़ा है। अब जहाँ बच्चे हों और मौज मस्ती का माहौल ना हो ऍसा कहीं हो सकता है।

मेरे प्रिय गीतकार प्रसून जोशी ने बच्चों की इसी उमंग को बनाए रखा है अपने खूबसूरत बोलों के लिए। बच्चे कितना खुले दिमाग से सोचते हैं..उनकी कल्पनाएँ बिना किसी पूर्वाग्रह के रचित होती हैं..इस ख्याल को प्रसून इतने बेहतरीन अंदाज़ में शब्दों का जामा पहनाते हैं कि मन उनकी इस काबिलियत को नमन करने को होता है।

अब देखिए तो बारिश को आसमान के नल खुले होने से जोड़ना , या पेड़ की जगह किसी व्यक्ति के लबादा ओढ़ खड़े होने की बात हो। ये सोच सहज ही एक बाल मन को सामने ले आती है। प्रसून ने साथ ही इस गीत और इस फिल्म के अन्य गीतों में भी वर्तमान शैक्षिक प्रणाली में रट्टेबाजी की अहमियत को आड़े हाथों लेते हुए मौलिक चिंतन को तरज़ीह देने पर बल दिया है। उनकी ये सोच निश्चय ही प्रशंसनीय है और इस गीत के माध्यम से एक अच्छा संदेश देने में सफल रहे हैं।



इस गीत को संगीतबद्ध किया है शंकर-अहसान-लॉए की तिकड़ी ने और इसे स्वर दिया है शान के साथ खुद आमिर खान ने। कुल मिलाकर ये एक ऍसा गीत है जो बच्चों के साथ साथ बड़ों को भी गुनगुनाने में बेहद आनंद देता है। मैंने इसके बोलों को गीत के साथ सुनते हुए लिखने की कोशिश की है ताकि गीत सुनते सुनते आप भी आमिर की तरह अक्को टक्को करते चलें :)।


चका चका ची चा चो चक लो रम
गंडो वंडो लाका राका टम
अक्को टक्को इडि इडि इडि गो
इडि पाई विडि पाई चिकी चक चो
गिली गिली मल सुलु सुलु मल
माका नाका हुकू बुकू रे
टुकू बुकू रे चाका लका
बिक्को चिक्को सिली सिली सिली गो
बगड़ दुम चगड़ दुम चिकी चका चो


देखो देखो क्या वो पेड़ है
चादर ओढ़े या खड़ा कोई
बारिश है या आसमान ने
छोड़ दिए हैं नल खुले कहीं
हो... हम जैसे देखें ये ज़हां है वैसा ही
जैसी नज़र अपनी
खुल के सोचें आओ
पंख जरा फैलाओ
रंग नए बिखराओ
चलो चलो चलो चलो
नए ख्वाब बुन लें

हे हे हे........
सा पा, धा रे, गा रे, गा मा पा सा
बम बम बम, बम बम बम बोले
बम चिक बोले, अरे मस्ती में डोले
बम बम बोले.....मस्ती में डोले
बम बम बोले..मस्ती में तू डोल रे


भला मछलियाँ भी क्यूँ उड़ती नहीं
ऐसे भी सोचो ना
सोचो सूरज, रोज़ नहाए या
बाल भिगोके ये, बुद्धू बनाए हमें
ये सारे तारे, टिमटिमाए
या फ़िर गुस्से में कुछ बड़बड़ाते रहें
खुल के सोचें आओ
पंख जरा फैलाओ
रंग नए बिखराओ
चलो चलो चलो चलो
नए ख्वाब बुन लें

हे हे हे........
बम बम बोले.....मस्ती में डोले
बम बम बोले..मस्ती में तू डोल रे

ओ रट रट के क्यूँ टैंकर फुल
...टैंकर फुल टैंकर फुल...
आँखें बंद तो डब्बा गुल
... डब्बा गुल डब्बा गुल...
ओए बंद दरवाजे खोल रे
...खोल रे खोल रे खोल रे...
हो जा बिंदास बोल रे
...बोल बोल बोल बोल रे
मैं भी हूँ तू भी है
मैं भी तू भी हम सब मिल के
बम चिक, बम बम चिक, बम बम चिक, बम बम चिक
बम बम बम

ऍसी रंगों भरी अपनी दुनिया हैं क्यूँ
सोचो तो सोचो ना
प्यार से चुन के इन रंगों को
किसी ने सजाया ये संसार है
जो इतनी सुंदर, है अपनी दुनिया
ऊपर वाला क्या कोई कलाकार है
खुल के सोचें आओ
पंख जरा फैलाओ
रंग नए बिखराओ
चलो चलो चलो चलो
नए ख्वाब बुन लें
बम बम बोले.....मस्ती में डोले
बम बम बोले..मस्ती में तू डोल रे



तो आइए सुनें १७ वीं पायदान का ये गीत





शुक्रवार, जनवरी 12, 2007

गीत # 19 : चाँद सिफारिश जो करता हमारी, देता वो तुमको बता

कार्यालय के काम - काज से मुझे बैंगलूरू के पास भद्रावती में जाना पड़ा और इसी वजह से इस गीतमाला पर मुझे लेना पड़ गया चार दिनों का दीर्घ विराम ।

खैर, अब वापस आ गया हूँ एक बार फिर सीढ़ियाँ चढ़ने की कवायद जारी रखने !

१९ वीं पायदान पर के इस गीत में कई खास बाते हैं । पहली तो ये के इसके गीतकार, संगीतकार और यहाँ तक की गायक भी पहली बार इस गीतमाला में तशरीफ रख रहे हैं । इस गीत को लिखा प्रसून जोशी ने, धुन बनाई जतिन-ललित ने और गायक वो जिनके आज ही साक्षात दर्शन करने का सुअवसर मिला । जी हाँ मैं 'शान' की ही बात कर रहा हूँ । आज बैंगलूरू से कोलकाता की विमान यात्रा खत्म हुई तो पाया कि जनाब हमारे साथ ही सफर कर रहे हैं । खैर सामने ना सही पर टी वी स्क्रीन पर सा रे गा मा...कार्यक्रम में आप सब इन से रूबरू हो चुके होंगे । वैसे २००० में उनके एलबम 'तनहा दिल' की सफलता के बाद से शान यानि शान्तनु मुखर्जी ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा । इस गीत की लोकप्रियता में शान की सुरमयी आवाज का काफी हाथ है।

और गर ये गीत आपने ध्यान से सुना हो तो जतिन-ललित ने यहाँ ताली का इस्तेमाल एक निराले ढंग से किया जो निश्चय ही तारीफ योग्य है।

चाँद सिफारिश जो करता हमारी, देता वो तुमको बता
शर्म - ओ - हया के पर्दे गिरा के, करनी है हमको खता..
जिद है अब तो है खुद को मिटाना, होना है तुझमें फना


चलते चलते एक सवाल आप सब से..क्या आपको पता है कि इस गीत की शुरुआत में सुभान अल्लाह की मधुर तान किसने छेड़ी है ?



इस गीत के पूरे बोल
यहाँ पढ़ सकते हैं ।
 

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