छः साल पहले यानि 2005 में कश्मीर समस्या की पृष्ठभूमि पर एक फिल्म बनी थी नाम था 'यहाँ'! फिल्म ज्यादा भले ही ना चली हो पर इसके गीत आज भी संगीतप्रेमी श्रोताओं के दिल में बसे हुए हैं,खासकर इसका ये रोमांटिक नग्मा। गुलज़ार ने अपनी लेखनी से ना जाने कितने प्रेम गीतों को जन्म दिया है पर उनकी लेखनी का कमाल है कि हर बार प्यार के ये रंग बदले बदले अल्फ़ाज़ों के द्वारा मन में एक अलग सी क़ैफ़ियत छोड़ते है।
'यहाँ' फिल्म का ये गीत सुनकर दिल सुकून सा पा लेता है। श्रेया घोषाल की स्निग्ध आवाज़ और पार्श्व में शान्तनु मोएत्रा के बहते संगीत पर गुलज़ार के बोल गज़ब का असर करते हैं। गुलज़ार गीत के मुखड़े से ही रूमानियत का जादू जगाते चलते हैं। नायिका का ये कहना कि यूँ तो मेरी रंगत हिना से मिलती जुलती है पर जब तुम्हारा स्पर्श मुझे मिलता है मेरी हर बात एक अदा बन जाती है,अन्तरमन को गुदगुदा जाता है..
फिल्म यहाँ की कहानी एक कश्मीरी लड़की और फ़ौज के एक अफ़सर के बीच आतंकवाद के साए में पलते प्रेम की कहानी है। ज़ाहिर है प्रेमी युगल आशावान हैं कि आज नहीं तो कल ये हालात बदलेंगे ही...गुलज़ार पहले अंतरे में यही रेखांकित करना चाहते हैं
पूछे जो कोई मेरी निशानी
पूछे जो कोई मेरी निशानी
रंग हिना लिखना
गोरे बदन पे
उँगली से मेरा
नाम अदा लिखना
कभी कभी आस पास चाँद रहता है
कभी कभी आस पास शाम रहती है..
झेलम में बह लेंगे..
वादी के मौसम भी
इक दिन तो बदलेंगे
कभी कभी आस पास चाँद रहता है
कभी कभी आस पास शाम रहती है..
गीत के दूसरा और तीसरे अंतरे में श्रोता अपने आप को प्रकृति से जुड़े गुलज़ार के चिर परिचित मोहक रूपकों से घिरा पाते हैं। शाम की फैली चादर, चाँद की निर्मल चाँदनी, गिरती बर्फ , फैलती धुंध, बदलते रंग और जलती लकड़ियों की आँच सब कुछ तो है जो जवाँ दिलों को एक दूसरे से अलग होने नहीं देती.. । गुलज़ार की लेखनी एक अलग ही धरातल पर तब जाती दिखती है जब वो कहते हैं..शामें बुझाने आती हैं रातें, रातें बुझाने, तुम आ गए हो.। ये सब पढ़ सुन कर बस एक आह सी ही निकलती है...
आऊँ तो सुबह
जाऊँ तो मेरा नाम सबा लिखना
बर्फ पड़े तो बर्फ पे मेरा नाम दुआ लिखना
ज़रा ज़रा आग वाग पास रहती है
ज़रा ज़रा कांगड़ी का आँच रहती है
कभी कभी आस पास चाँद रहता है
कभी कभी आस पास शाम रहती है..
जब तुम हँसते हो
दिन हो जाता है
तुम गले लगो तो
दिन सो जाता है
डोली उठाये आएगा दिन तो
पास बिठा लेना
कल जो मिले तो
माथे पे मेरे सूरज उगा देना
ज़रा ज़रा आस पास धुंध रहेगी
ज़रा ज़रा आस पास रंग रहेंगे
पूछे जो कोई मेरी निशानी...शाम रहती है..
इस गीत में श्रेया का साथ दिया है शान ने। श्रेया इस गीत को अपने गाए सर्वप्रिय गीतों में से एक मानती हैं। इस गीत के बारे में अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि
इस गीत में ऐसा कुछ है जो मुझे अपनी ओर खींचता है। वे इसके शब्द नहीं हैं, ना ही मेरी गायिकी और ना ही इसका संगीत पर इन तीनों के समन्वय से बनी इस गीत की पूर्णता ही मुझे इस गीत को बार बार सुनने को मजबूर करती है।
श्रेया के मुताबिक इस फिल्म के संगीतकार शान्तनु मोएत्रा एक ऐसे संगीतकार हैं जिनका संगीत संयोजन इस तरह का होता है कि वो गीत में वाद्य यंत्रों का नाहक इस्तेमाल नहीं करते। श्रेया का कहना बिल्कुल सही है।शांतनु की इस विशिष्ट शैली को हम उनकी बाद की फिल्मों परिणिता, खोया खोया चाँद और एकलव्य दि रॉयल गार्ड जैसी फिल्मों में भी देखते आए हैं।
यहाँ फिल्म अभिनेत्री मिनीषा लांबा की पहली फिल्म थी। फिल्म में उनका अभिनय और फिल्म का छायांकन चर्चा का विषय रहे थे। इस गीत के वीडिओ में आप फिल्म की इन दोनों खूबियों का सुबूत सहज पा लेंगे....
चलते चलते जरा याद कीजिए की विगत बीस सालों (1990 -2010) में गुलज़ार के लिखे रूमानी नग्मों में आपको सबसे ज्यादा कौन पसंद हैं? अपनी पसंद बताइएगा। फिलहाल मेरी पसंद तो ये रही..