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गुरुवार, मई 07, 2009

तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना : राजेंद्र और नीना मेहता / प्रेम वारबर्टनी Jab aanchal raat ka .. Rajendra Mehta

एक महीने पहले अप्रैल में जब पटना जाना हुआ था तो मन ही मन इस बार यात्रा का एक लक्ष्य ये भी रखा था कि घर पर पुरानी रिकार्डिंग वाली कैसेट्स की छानबीन की जाए और ये देखा जाए कि मैंने और मेरी बड़ी दीदी ने मिलकर किसी ज़माने में जो ग़ज़लें गैर फिल्मी गीत रेडिओ से रिकार्ड की थीं वो अब सुरक्षित हैं भी या नहीं। अपनी इस मुहिम के दौरान पुरानी कुछ ग़ज़लें मिलीं पर आज के mp3 की गुणवत्ता के सामने वो कहीं नहीं ठहरती थीं। पर खोज बीन का फायदा ये हुआ कि कुछ प्रिय गीत ग़ज़ल जो ज़ेहन में कहीं दब से गए थे वो एक बार फिर से उभर कर आ गए। उन्हीं मे से एक था राजेंद्र और नीना मेहता का गाया ये नग्मा जो ताजमहल की पृष्ठभूमि में लिखा गया एक अद्भुत प्रेम गीत है।


इस गीत को अपनी बड़ी दी की बदौलत पहली बार मैंने अस्सी के दशक में सुना था। ये वो वक़्त था जब ग़ज़ल गायिकी में एक नई प्रथा विकसित हुई थी युगल जोड़ियों के साथ साथ गाने की। मेहता युगल के आलावा राजकुमार रिज़वी / इन्द्राणी रिज़वी और जगजीत सिंह / चित्रा सिंह की जोड़ी ग़ज़ल गायिकी को एक नया आयाम दे रही थीं। बाद में इस ट्रेंड को अनूप और सोनाली जलोटा (जो अब सोनाली राठौड़ हो गईं हैं और रूप कुमार राठौड़ के साथ कान्सर्ट में नज़र आती हैं) और भूपेंद्र और मीताली मुखर्जी ने खूबसरती से आगे बढ़ाया।
चित्र साभार : हमारा फोरम

एक साथ पुरुष और नारी स्वर को सुनना भाता तो बहुत था पर कुछ एक जोड़ियों को छोड़ दें तो पुरुष स्वर की आवाज़ गुणवत्ता के सामने जोड़ीदार महिला स्वर उस कोटि का नहीं हो पाता था। नब्बे के दशक में फिल्म संगीत जब फिर से उभरने लगा और परिणामस्वरूप ग़ज़ल गायिकी में खासकर युगल जोड़ियों के एलबम की संख्या में तेजी से कमी आई। और अब तो ये देख रहा हूँ कि पिछले दशक में कोई नई जोड़ी ग़ज़ल गायिकी के क्षेत्र में उभर कर सामने नहीं आई।

आज जिस गैर फिल्मी गीत को आपके सामने पेश कर रहा हूँ वो मेहता युगल के आलावा कई अन्य फ़नकारों ने भी गाया है पर मुझे यही वर्सन सबसे ज्यादा पसंद आता है। उस ज़माने में गीत ग़ज़लों का ये गुलदस्ता कैसेट और सीडी के रूप में ना आकर हमसफ़र नाम के LP के रूप में रिकार्ड किया गया था़। नीचे और ऊपर के चित्रों में आप इस LP की आवरण तसवीरें देख सकते हैं

इस गीत को लिखा था प्रेम वारबर्टनी साहब ने। व्यक्तिगत रूप से उनके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है पर उनका नाम उन शायरों में अक्सर आता रहा जिनके क़लामों को जगजीत ने अपने एलबम में जगह दी। इतना तो स्पष्ट हे कि अपने नाम के अनुरूप प्रेम साहब ने बेहतरीन रोमांटिक ग़ज़ले और नज़्में कहीं। मिसाल के तौर पर ये नज़्म याद है ना आपको

जवानी के हीले हया के बहाने
ये माना कि तुम मुझ से पर्दा करोगी
ये दुनिया मगर तुझ सी भोली नहीं है
छुपाकर मोहब्बत को रुसवा करोगी

या फिर उनकी ग़ज़ल के इन अशआरों को देखिए
कभी तो खुल के बरस अब्र ए मेहरबाँ की तरह
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकाँ की तरह
सुक़ूत ए दिल तो जज़ीरा है बर्फ का लेकिन
तेरा ख़ुलूस है सूरज के सायबाँ की तरह

तो आपने देखा कि प्रेम साहब की शायरी किस क़दर रूमानी ख़यालातों से भरपूर है। अपने इसी हुनर का जादू बिखेरा है उन्होंने इस गीत में। ताजमहल को मोहब्बत का मक़बरा मानने वालों के लिए उनकी ये पंक्तियाँ तो सीधे दिल में उतर जाती हैं

ये ताजमहल जो चाहत की आँखों का सुनहरा मोती है
हर रात जहाँ दो रुहों की खामोशी जिंदा होती है

खैर अब आप सुनिए ये पूरा गीत और बताइए मुझे कि इसे सुनकर उन पुराने दिनों के बारे में आपको क्या याद आया....

जब आँचल रात का लहराए और सारा आलम सो जाए
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....

ये ताजमहल जो चाहत की आँखों का सुनहरा मोती है
हर रात जहाँ दो रुहों की खामोशी जिंदा होती है
इस ताज के साये में आकर तुम गीत वफ़ा का दोहराना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....

तनहाई है जागी जागी सी, माहौल है सोया सोया हुआ
जैसे के तुम्हारे ख़्वाबों में खुद ताजमहल हो खोया हुआ
हो ताजमहल का ख़्वाब तुम्हीं ये राज ना मैंने पहचाना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....

जो मौत मोहब्बत में आए वो जान से बढ़कर प्यारी है
दो प्यार भरे दिल रौशन हैं गो रात बहुत अँधियारी है
तुम रात के इस अँधियारे में बस एक झलक दिखला जाना
तुम मुझसे मिलने शमा जलाकर ताजमहल में आ जाना
जब आँचल रात का लहराए.....


 

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