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मंगलवार, जुलाई 07, 2015

जब ग़ज़ले और नज़्में बनी किसी गीत की प्रेरणा : तू किसी रेल सी गुज़रती है .. Tu kisi Rail Si .. Masaan

हिंदी फिल्मों में गीतकार पुराने दिग्गज़ों की कालजयी कृतियों से प्रेरणा लेते रहे हैं और जब जब ऐसा हुआ है परिणाम ज्यादातर बेहतरीन ही रहे हैं। पिछले एक दशक के हिंदी फिल्म संगीत में ऐसे प्रयोगों से जुड़े दो बेमिसाल नग्मे तो तुरंत ही याद आ रहे हैं। 2007 में एक फिल्म आई थी खोया खोया चाँद और उस फिल्म में गीतकार स्वानंद ने  मज़ाज लखनवी की बहुचर्चित नज़्म आवारा से जी में आता है, मुर्दा सितारे नोच लूँ... का बड़ा प्यारा इस्तेमाल किया था। फिर वर्ष 2009 में प्रदर्शित फिल्म गुलाल में पीयूष मिश्रा ने फिल्म प्यासा में साहिर के लिखे गीत ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.. को अपने लिखे गीत ओ री दुनिया... में उतना ही सटीक प्रयोग किया था। इसी कड़ी में कल जुड़ा है इसी महीने के अंत में प्रदर्शित होने वाली फिल्म मसान का ये प्यारा नग्मा जिसके बोल लिखे हैं नवोदित गीतकार वरुण  ग्रोवर ने।


ये वही वरूण ग्रोवर हैं जिन्होंने कुछ ही महीने पहले फिल्म दम लगा के हैस्सा में अपने लिखे गीत ये मोह मोह के धागे... के माध्यम से हम सभी संगीतप्रेमियों के दिल में अपनी जगह बना ली थी। दरअसल इस तरह के गीतों को फिल्मों के माध्यम से आम जनता और खासकर आज की नई पीढ़ी तक पहुँचाने के कई फायदे हैं। एक तो जिस कवि या शायर की रचना का इस्तेमाल हुआ है उसके लेखन और कृतियों के प्रति लोगों की उत्सुकता बढ़ जाती है। दूसरी ओर गायक, गीतकार और संगीतकार ऐसे गीतों पर पूरी ईमानदारी से मेहनत करते हैं ताकि मूल रचना पर किसी तरह का धब्बा ना लगे। यानि दोनों ओर से श्रोताओं की चाँदी !

वरुण ने मसान के इस गीत के लिए हिंदी के सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार दुष्यन्त कुमार की रचना का वो शेर इस गीत के लिए लिया है जिसे लोग अनोखे बिंबो के लिए हमेशा याद रखते हैं यानि तू किसी रेल सी गुज़रती है,..मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ

बनारस की गलियों में दो भोले भाले दिलों के बीच पनपते इस फेसबुकिये प्रेम को जब वरुण अपने शब्दों के तेल से छौंकते हैं तो उसकी झाँस से सच ये दिल रूपी पुल थरथरा उठता है। गीत के बोलों में छुपी शरारत खूबसूरत रूपकों के ज़रिए  उड़ा ले जाती है प्रेम के इस बुलबुले को उसकी स्वाभाविक नियति के लिए.

 

तू किसी रेल सी गुज़रती है,
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ


तू भले रत्ती भर ना सुनती है... 
मैं तेरा नाम बुदबुदाता हूँ..

किसी लंबे सफर की रातों में
तुझे अलाव सा जलाता हूँ


काठ के ताले हैं, आँख पे डाले हैं
उनमें इशारों की चाभियाँ लगा
रात जो बाकी है, शाम से ताकी है
नीयत में थोड़ी खराबियाँ लगा.. खराबियाँ लगा..

मैं हूँ पानी के बुलबुले जैसा
तुझे सोचूँ तो फूट जाता हूँ

तू किसी रेल सी गुज़रती है.....थरथराता हूँ


बतौर गायक स्वानंद की आवाज़ को मैं हजारों ख्वाहिशें ऐसी, परीणिता, खोया खोया चाँद जैसी फिल्मों में गाये उनके गीतों से पसंद करता आया हूँ। इस बार भी पार्श्व में गूँजती उनकी दमदार आवाज़ मन में गहरे पैठ कर जाती है। इंडियन ओशन ने भी गीत के बोलों को न्यूनतम संगीत संयोजन से दबने नहीं दिया है। तो आइए सुनते हैं नए कलाकारों श्वेता त्रिपाठी और विकी कौशल पर फिल्माए ये नग्मा..




गीत तो आपने सुन लिया पर दुष्यन्त कुमार की मूल ग़ज़ल का उल्लेख ना करूँ तो बात अधूरी ही रह जाएगी।  जानते हैं पूरी ग़ज़ल में कौन सा मिसरा मुझे सबसे ज्यादा पसंद है? ना ना पुल और रेल नहीं बल्कि ग़ज़ल का मतला एक जंगल है तेरी आँखों में..मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ.. :)। ना जाने इसे गुनगुनाने हुए मन इतना खुश खुश सा क्यूँ महसूस करता है। वैसे भी आँखों के समंदर में डूबना कौन नहीं पसंद करता पर यहाँ तो खुला समंदर नहीं पर गहराता जंगल है जिसके अंदर के अदृश्य पर घने राजों को जानने के लिए मन भटकने को तैयार बैठा है।

दुष्यन्त कुमार की इस ग़ज़ल को अपनी आवाज़ से सँवारा था पटियाला में जन्मी पार्श्व गायिका मीनू पुरुषोत्तम ने। फिल्म ताज महल से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली मीनू ने बात एक रात की, ये रात फिर ना आएगी, दाग, हीर राँझा, दो बूँद पानी आंदोलन जैसी फिल्मों में गाने गाए। तो आइए उनकी आवाज़ में इस ग़जल को भी सुन लिया जाए..



एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ

मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ

तू किसी रेल सी गुज़रती है,
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ

हर तरफ एतराज़ होता है
मैं अगर रोशनी में आता हूँ

एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ

वैसे ''साये में धूप'' जो दुष्यंत जी की ग़ज़लों का संकलन है में कुछ और अशआर हैं, एक तो मतला

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ

और दूसरा आखिरी शेर..
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ

शनिवार, जनवरी 03, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 24 : पैर अनाड़ी, ढूँढे कुल्हाड़ी Pair Anaadi

हिंदी सिनेमा में व्यंग्यात्मक गीतों का प्रचलन कम ही रहा है। पर पिछले कुछ सालों में कुछ गीतकार संगीतकार जोड़ियों ने लीक से हटकर कुछ ऐसे गीत भी दिए हैं जिनके तीखे कटाक्ष आज भी मन को गुदगुदाते जरूर हैं। ऐसे गीतों की सूची मे में सबसे पहला  फिल्म गुलाल का वो गीत याद पड़ता है जिसमें पीयूष मिश्रा ने अंकल सैम की खिंचाई कुछ इन शब्दों में की थी..जैसे दूर देस के, टावर में घुस जाए रे एरोप्लेन, जैसे सरे आम इराक में जाके जम गए अंकल सैम। अशोक मिश्रा का लिखा वो गीत याद है आपको जिसमें उन्होंने आज के प्रजातंत्र के खोखलेपन को उभारा था। वो गीत था फिल्म वेलकम टू सज्जनपुर का जिसमें उन्होंने लिखा था.... अरे जिसकी लाठी उसकी भैंस आपने बना दिया...हे नोट की खन खन सुना के वोट को गूँगा किया...पार्टी फंड, यज्ञ कुंड घोटाला मंत्र है..अब तो प्रजातंत्र है, अब तो प्रजातंत्र है। अब इसी श्रेणी में एक और गीत  शामिल हो गया है जो जनता की वोट ना देने या फिर वोट बेचने की प्रवृति पर तीखी चोट करता है। ये गीत है लोकसभा चुनावों के ठीक पहले प्रदर्शित हुई फिल्म 'ये है बकरपुर' का।



वार्षिक संगीतमाला की 24वीं पॉयदान पर विराजमान इस समूह गीत को अपनी आवाज़ से सँवारा है Indian Ocean के राहुल राम और अग्नि के आर मोहन व अमित ने। साथ में MTV Roadies में अपने खड़ूस व्यक्तित्व से प्रसिद्धि पाने वाले रघु राम भी हैं। इस गीत को लिखा है अब्बास टॉयरवाला ने। ये वही टॉयरवाला हैं जिनकी फिल्म जाने तू या जाने ना ने जहाँ सफलता की सीढियाँ चढ़ी थीं वहीं झूठा ही सही बॉक्स आफिस पर ढेर हो गई थी। एक पटकथालेखक के रूप में स्थापित टॉयरवाला बतौर गीतकार भी कई बार हाथ आज़मा चुके हैं। अगर अग्नि और इंडियन ओशन की मानें तो इस गीत के असली स्टार वही हैं।

गीत में अब्बास टॉयरवाला ने पैर और कुल्हाड़ी को दो मुख्य प्रतीकों के रूप में इस्तेमाल किया है। पैर उस जनता का प्रतीक है जो अपने मताधिकार का प्रयोग सही तरह से ना करने की वज़ह से कुल्हाड़ी रूपी घटिया जनप्रतिनिधि को चुन लेती है। कई बार ये जानते हुए भी कि वो जो कर रही है सही नहीं है। बाद में यही जनता जब अपने भाग्य को कोसती है तो एक कोफ्त सी होती है। जनता की इसी प्रवृति पर टायरवाला ने अपनी कमान कसी है। गीत में जनता और उनके द्वारा चुने हुए गलत नेताओं के बीच के रिश्ते को अब्बास टॉयरवाला मुर्गी और KFC, गेहूँ और चक्की व बकरी और कसाई जैसे मज़ेदार व्यंग्यात्मक रूपकों में देखते हैं।

अब्बास टॉयरवाला ने बड़ी खूबसूरती से बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद और भैंस के आगे बीन बजाना जैसे मुहावरे को मरोड़ कर बोल रचे हैं जिसे सुन कर मन मुस्कुराए बिना नहीं रह पाता। सारे गायकों ने गीत के मूड के अनुसार आनंद लेते हुए गाया है। गिटार की धुन के बीच गीत जैसे जैसे आगे बढ़ता है श्रोता अपने आप को गीत की लय के साथ झूमने से रोक नहीं पाते। कुल मिलाकर ये एक ऐसा गीत है जो बड़े प्यारे व्यंग्य बाणों को सुरीली चाशनी में घोलकर अपना संदेश श्रोताओं तक पहुँचाता है। तो आइए एक नज़र डालते हैं गीत के बोलों पर...

घटना ये घनघोर घटी है, कोई बूझ ना पाए रे
घाट घाट का पानी पीकर, कहते गंगा नहाए रे
गटक के सौ सौ चली है हज को
फिर भी चूहों को बिल्ली से प्यार रे

अरे बंदर खोजे अदरक में, स्वाद डेमोक्रेसी का,
अरे वो बोले और हम सुन लें, कि Nobody killed Jessica
भैंस बोले मेरे आगे बीन बजा दो मैं नाचूँ
बेचूँ अपने वोट फिर भी, अपनी किस्मत को डाटूँ
भाई देखो तो कितने टशन से
कहे गीदड़ मैं शहर चला

पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी, पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी
पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी,पैर अनाड़ी search कुल्हाड़ी

आज की ताज़ा ख़बर पैर ढूँढ रहा है कुल्हाड़ी
पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी, Common कुल्हाड़ी! where are you?
हमारी माँगे पूरी करो
पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी, पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी
पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी,पैर अनाड़ी search कुल्हाड़ी

गेहूँ सोचे अब तो यारी, हो गई है चक्की से
गेहूँ की friendship चक्की से हो गई
मुर्गी भी सोचे वो ज़िंदा लौटेगी Kentucky से
हा हा.. मुर्गी भी सोचे.....
आओ चुन लो अपने कसाई
ईद मुबारक तुम्हें बकरी आई

पैर अनाड़ी...
Hi my self Mister Pair You Mr Kulhadi.

और फिर देखिए इस गीत की ये live performance...



वार्षिक संगीतमाला 2014

शनिवार, फ़रवरी 19, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 11 : देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू, घाट-घाट यहाँ घटता जादू

वार्षिक संगीतमाला की ग्यारहवीं पॉयदान पर स्वागत कीजिए संगीत बैंड ' Indian Ocean' का जो पहली बार किसी संगीतमाला का हिस्सा बन रहा है। पिछले कई महिनों से इनके द्वारा बनाए इस गीत के माध्यम से आप अपने देश के रंग रँगीले प्रजातंत्र के विभिन्न रूपों की झलक देखते रहे है। वैसे भी इस बात में क्या शक हो सकता है कि 'देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू घाट-घाट यहाँ घटता जादू.....'।

निर्देशिका अनुषा रिज़वी ने पीपली लाइव के जिन दो गीतों के लिए 'Indian Ocean' को चुना उनमें से ये वाला गीत उनके एलबम 'झीनी' में शामिल था। हाँ ये जरूर हुआ कि मूलतः संजीव शर्मा के लिखे इस गीत के बोलों में पीपली लाइव के लिए गीतकार स्वानंद किरकिरे ने कुछ बदलाव किए और जो नतीजा निकला वो फिल्म रिलीज़ होने के पहले ही देश की जनता की जुबान पर आ गया।

अपने देश की विसंगतियों को ये गीत व्यंग्यात्मक दृष्टि से देखता जरूर है पर एक बाहरवाले के नज़रिए से नहीं बल्कि एक आम भारतीय के परिपेक्ष्य से। गीत के बोलों में जहाँ देश की मिट्टी का सोंधापन है वही यह गीत देश के वास्तविक हालातों का आईना भी पेश करता है। अब इन्हीं पंक्तियों को लें जिनमें देश का दर्द समाया सा लगता है..

सूखे नैना, रुखी अँखियाँ
धुँधला धुँधला सपना
आँसू भी नमकीन है प्यारे
जो टपके सो चखना

राहुल की आवाज़ की ताकत और गहरापन इस ज़मीनी हक़ीकत को और पुख्ता करता है।

आइए इस गीत के अन्य पहलुओं पर चर्चा करने के पहले इस बैंड से आपका परिचय करा दूँ। बैंड 1984 में गिटार वादक सुस्मित सेन और गायक असीम चक्रवर्ती जो कि ताल वाद्यों में भी प्रवीण थे ने शुरु किया। 1990 में बैंड का नामाकरण Indian Ocean किया गया। 1991 में राहुल राम जो आज कल इस बैंड के मुख्य गायक हैं, इसका हिस्सा बने। 1994में अमित कीलम ड्रमर के रूप में बैंड में आए। दिसंबर २००९ में असीम का हृदय गति रुक जाने से असामयिक निधन हो गया। आजकल ये बैंड अपने नए एलबम '16/330 खजूर रोड' के लांच में व्यस्त है।

पूरे गीत में बैंड ने ताल वाद्यों और गिटार का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। मुखड़े के बाद ही तबले, ढोलक , डमरू का जो सम्मिलित स्वर उभरता है वो आपको एकदम से देशी वातावरण में खींच ले जाता है। राहुल राम और उनके साथी प्पप परा रा..धूम ततक धिन के कोरस के साथ गीत में एक जोश और उर्जा सी भरते हैं।


पर गीत की सबसे सुंदर तान सुस्मित सेन की उँगलियों से निकलती हैं। गीत शुरु होने के 2.50 मिनट बाद लगभग चालिस सेकेंड तक सुस्मित अपनी थिरकती ऊँगलियों से वो जादू पैदा करते हैं कि मन मंत्रमुग्ध और ठगा सा रह जाता है। लगता है गिटार और सितार का अंतर ही समाप्त हो गया। सुस्मित अपने संगीत को अपने अनुभवों का निचोड़ बताते हैं। उन्हे जाज़ और रॉक से ज्यादा हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत पसंद आता है।(चित्र सौजन्य)


वैसे क्या आप जानते हैं कि बैंड के मुख्य गायक राहुल राम जो अपनी लंबी दाढ़ी और अलग सी वेश भूषा से अपनी अलग सी पहचान रखते हैं के पास पीएचडी की उपाधि भी है। और तो और राहुल नर्मदा बचाव आंदोलन का भी हिस्सा रह चुके हैं। अब अगर राहुल अपने आप को बुद्धिजीवियों में गिनते हों तो इसमें क्या गलत हो सकता है। यही वजह हे कि उनके साथी उन्हें 'लॉजिक बाबा' और 'ज्ञानदेव' के नाम से बुलाते हैं। (चित्र सौजन्य)

तो आइए सुनें इस गीत को



देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू
घाट-घाट यहाँ घटता जादू
देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू

देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू
घाट-घाट यहाँ घटता जादू

राई पहाड़ है कंकर-शंकर
बात है छोटी बड़ा बतंगड़
राई पहाड़ है कंकर-शंकर
बात है छोटी बड़ा बतंगड़

इंडिया सर यह चीज़ धुरंधर
इंडिया सर यह चीज़ धुरंधर
रंग रँगीला परजातंतर
रंग रँगीला परजातंतर

प प रे .....

सात रंग सतरंगा मेला
बदरंगा सा बड़ा झमेला
सात रंग सतरंगा मेला
बदरंगा सा बड़ा झमेला

गिरा गगन से खजूर ने झेला
सुच-दुःख पकड़म-पकड़ी खेला

है..एक रंग गुनियों का निराला
एक रंग अज्ञानी
रंग रंग मैं होड़ लगी है
रंगरंगी मनमानी

देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू
घाट-घाट यहाँ घटता जादू
देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू
घाट-घाट यहाँ घटता जादू

सूखे नैना, रुखी अँखियाँ
धुँधला धुँधला सपना
आँसू भी नमकीन है प्यारे
जो टपके सो चखना

धुँधला धुँधला सपना प्यारे
धुँधला धुँधला सपना

सूखे नैना, रुखी अँखियाँ
सूखे नैना, रुखी
धुँधला धुँधला सपना प्यारे
धुँधला धुँधला सपना
देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू हे....

और अगर आमिर खान को ड्रमर का रोल सँभालते देखना चाहें तो गीत का वीडिओ ये रहा...

 

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