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बुधवार, जनवरी 27, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 13 : दहलीज़ पे मेरे दिल की जो रखे हैं तूने क़दम Jeena Jeena

कभी कभी संगीत का कोई छोटा सा टुकड़ा संगीतकार के तरकश से चलता है और श्रोता के  दिल में ऍसे बस जाता है कि उस टुकड़े को कितनी बार सुनते हुए भी उसे दिल से निकालने की इच्छा नहीं होती। अगर मैं कहूँ कि वार्षिक संगीतमाला की तेरहवीं पायदान पर फिल्म बदलापुर के गीत के यहाँ होने की एक बड़ी वज़ह संगीतकार सचिन जिगर का मुखड़े के बाद  बाँसुरी से बजाया गया मधुर टुकड़ा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी । 

पूरे गीत में गिटार और बाँसुरी का प्रमुखता से इस्तेमाल हुआ है। बाँसुरी की जिस धुन का मैंने उल्लेख किया है वो आपको गीत के पहले मिनट के बाद बीस सेकेंड के लिए और फिर 2.26 पर सुनने को मिलती है। इसे बजाया है वादक शिरीष मल्होत्रा ने।

बदलापुर के इस गीत को गाने की जिम्मेदारी सौंपी गई आतिफ़ असलम को जो कुछ सालों तक बॉलीवुड में अपना डंका बजवाने के बाद इधर हिंदी फिल्मों में कम नज़र आ रहे थे।  जिगर का अपने इस चुनाव के बारे में कहना था

"दरअसल इस गीत में गायक की प्रवीणता से ज्यादा उसकी गीत की भावनाओं के प्रति ईमानदारी की आवश्यकता थी और आतिफ़ असलम ने इस गीत को बिल्कुल अपने दिल से गाया है। गीत की शुरुआत और अंतरे के पहले जब वो गुनगुनाते हैं तो ऐसा लगता है कि कोई आपके  में बैठा इस गीत को गा रहा है।"

ये गीत ज्यादा लंबा नहीं है और इसमें बस एक अंतरा ही  है। पर इतने छोटे गीत को लिखने के लिए दो लोगों को श्रेय दिया गया है। एक तो निर्माता दीपक विजन को  व दूसरे गीतकार प्रिया सरैया को। दीपक विजन इसकी वज़ह ये बताते हैं कि सारे गीत खूब सारी बतकही, हँसी मजाक व सुझावों के आदान प्रदान के बाद  बने।  वाकई गीत प्रेम में  समर्पण की  भावना को सहज व्यक्त करता हुआ दिल को छू जाता है। पर मुझे लगता है कि इतनी अच्छी धुन को इससे ज्यादा बेहतर शब्दों और कम से कम एक और अंतरे का साथ मिलना चाहिए था। तो आइए सुनते हैं बदलापुर फिल्म का ये गीत

दहलीज़ पे मेरे दिल की
जो रखे हैं तूने क़दम
तेरे नाम पे मेरी ज़िन्दगी
लिख दी मेरे हमदम
हाँ सीखा मैंने जीना जीना कैसे जीना
हाँ सीखा मैंने जीना मेरे हमदम
ना सीखा कभी जीना जीना कैसे जीना
ना सीखा जीना तेरे बिना हमदम

सच्ची सी हैं ये तारीफें, दिल से जो मैंने करी हैं
जो तू मिला तो सजी हैं दुनिया मेरी हमदम
हो आसमां मिला ज़मीं को मेरी
आधे-आधे पूरे हैं हम
तेरे नाम पे मेरी ज़िन्दगी...

वार्षिक संगीतमाला 2015

शनिवार, फ़रवरी 07, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 9 : ऐसे तेरा मैं, जैसे मेरा तू.. Jaise Mera Tu


वार्षिक संगीतमाला की नवीं पायदान पर का गीत जब मैंने पहले पहल टीवी पर देखा था तो मैं ये नहीं समझ पाया था कि इसमें ऐसी कौन सी बात है जो इसके प्रति मुझे आकर्षित कर रही है। टीवी या फिल्मों में जब आप गाने देखते हैं तो कई बार आपका ध्यान इतनी बातों पर रहता है कि गीत के बोल व धुन की बारीकियों को महसूस कर पाना बड़ा मुश्किल होता है। बाद में जब संगीतमाला की सूची बनाने बैठा तो बार बार सुनते वक़्त इसके संगीत  खासकर इसके इंटरल्यूड्स में इस्तेमाल हारमोनियम की मधुर धुन ने पहले दिल में खूँटा गाड़ा और फिर गीत की भावनाएँ मन में ऐसी रमी कि देखिए ये मेरे पसंद के प्रथम दस गीतों में शामिल हो गया। संगीतकार जोड़ी सचिन जिगर द्वारा रचा ये गीत है फिल्म Happy Ending का।

वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल शुद्ध देशी रोमांस और  इसक जैसी फिल्मों में अपनी असीम प्रतिभा का परिचय देने वाली इस जोड़ी के लिए पिछला साल अपेक्षाकृत फीका जरूर रहा। वैसे आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिस तरह सुनो ना संगमरमर में जीत गाँगुली ने जिस तरह अपने संगीतबद्ध बंगाली गीत की धुन का प्रयोग किया था उसी तरह सचिन ज़िगर ने इस गीत की धुन सबसे पहले 2013 में प्रदर्शित एक तेलगु फिल्म D for Dapodi में प्रयोग की थी।


गिटार के तारों की मधुर झंकार से शुरु होते इस गीत को अंतरों में ताल वाद्यों का सुकूनदेह साथ मिलता है। अरिजित जैसे ही जैसा मेरा तू ..... खत्म करते हैं पीछे से बजता हारमोनियम अपनी पूरी रंगत (1.13-1.30) में आ जाता है।

इस संगीतमाला में ये पहला मौका है जब इस गीत की गीतकार ख़ुद इस गीत को अरिजित सिंह के साथ गा भी रही हैं। वार्षिक संगीतमाला 2014 की फेरहिस्त में रश्मि सिंह और क़ौसर मुनीर के बाद बतौर महिला गीतकार नाम जुड़ रहा है प्रिया सरैया का। बतौर गीतकार उन्हें मैंने तीन साल पहले लिखे गीत धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे , जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो.. (शोर इन दि सिटी) से पहली बार जाना था। पिछले तीन साल में प्रिया के जीवन में दो अहम बातें हुई। एक तो संगीतकार जिगर से उनकी ज़िदगी के तार हमेशा हमेशा के लिए जुड़ गए और वो प्रिया पंचाल से प्रिय सरैया हो गयीं और दूसरे सचिन जिगर ने अपनी फिल्मों में बतौर पार्श्व गायिका उनकी आवाज़ का भी इस्तेमाल किया। 

प्रिया को इस गीत में ऐसे दो चरित्रों के बीच की भावनाओं को उभारना था जिन्हें एक दूसरे का साथ तो पसंद है पर जो ये निर्णय नहीं ले पा रहे कि जो उनके मन में चल रहा है क्या वो ही प्रेम है ? इसलिए प्रिया गीत के मुखड़े में लिखती हैं.. उलझी सी बातें दिल, मुझ से भी बाँटे..तो मेहर मेहर मेहरबानियाँ..। पर अगर पता चल ही जाए कि प्रेम है भी तो उसे स्वीकारना तब तो और भी कठिन है अगर आप उस रिश्ते के लिए प्रतिबद्ध नहीं हों। सो एक कदम आगे बढ़ने से पहले दो कदम पीछे हट जाना ही बेहतर लगता है प्रिया के इन शब्दों की तरह ऐ दिल फरेबी थम सा गया क्यूँ ...ऐसी वैसी बातें सोचकर

उलझी सी बातें दिल, मुझ से भी बाँटे
तो मेहर मेहर मेहरबानियाँ
खुद ही समझ के मुझे समझा दे
तो मेहर मेहर मेहरबानियाँ


हो मेहरबानी जो दिल दे जुबानी
कह दे वो जो ना कभी कहा है
ऐसे तेरा मैं, जैसे मेरा तू

मिलते रहे जो ऐसे ही दोनों
लग ना जाए इश्क़ की नज़र
ऐ दिल फरेबी थम सा गया क्यूँ
ऐसी वैसी बातें सोचकर


बस में ना मेरे अब ये रहा है
तुझ पे आ के दिल ये जो रुका है
ऐसे तेरा मैं, जैसे मेरा तू

फरियाद करती, फिर याद करती
सोचती हूँ तुमको बार बार
ना चाहतें हैं, पर चाहती क्यूँ
तुमको यूँ ही मेरे आस पास

कुछ भी नहीं है, कुछ फिर भी है
तुमसे मिलके दिल को ये लगा है...
ऐसे तेरा मैं ..जैसे मेरा तू


गायिकी के लिहाज़ से ये गीत प्रिया से ज्यादा अरिजित सिंह का है। इस संगीतमाला में शामिल अरिजित का ये पाँचवा नग्मा है। मुर्शीदाबाद से ताल्लुक रखने वाले इस शर्मीले से गायक ने हर तरह के गीतों को इस साल अलग अलग अंदाज़ों में निभाया है जो उनकी आवाज़ की परिपक्वता को दिखाता है। इस गीत को भी जिस मस्ती में डूबकर उन्होंने गाया है उसे सुनने वाला अछूता नहीं रह पाता । तो आइए आनंद लें प्रिया और अरिजित के गाए इस युगल गीत का...



वार्षिक संगीतमाला 2014

शनिवार, फ़रवरी 01, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 11 : झीनी रे झीनी याद चुनरिया (Jheeni Re Jheeni Yaad Chunaria)

वार्षिक संगीतमाला की पिछली चौदह सीढ़ियाँ चढ़ कर आ पहुँचे है हम ग्यारहवीं पायदान पर। ग्यारहवीं पायदान का ये गीत संगीतमाला में शामिल अन्य सभी गीतों से एक बात में अलहदा है और वो है इसकी लंबाई। करीब साढ़े सात मिनट लंबे युगल गीत पर जो सम्मिलित परिश्रम इसके संगीतकार, गीतकार और गायक द्वय ने किया है वो निश्चय ही काबिलेतारीफ़ है। ये गीत है फिल्म 'इसक' का और इसके संगीतकार हैं सचिन ज़िगर, जबकि शब्द रचना है नीलेश मिश्रा की।

इससे पहले उन्होंने 2011 में अपने गीत धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे , जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो से मुझे प्रभावित किया था। सचिन जिगर के संगीतकार बनने से पहले की दास्तान मैं आपको यहाँ बता चुका हूँ। पिछला साल तो इस जोड़ी के लिए फीका रहा पर इस साल रमैया वस्तावइया, ABCD, इसक और शुद्ध देशी रोमांस में उनके संगीतबद्ध गीतों को साल भर सुना जाता रहा। जब जब सचिन जिगर ने लीक से हटकर संगीत देने की कोशिश की है उनका काम शानदार रहा है। अब इसी गीत को लें हिंदुस्तानी वाद्यों से सजे संगीत संयोजन में तबले व सारंगी का कितना सुरीला इस्तेमाल किया हैं उन्होंने। इंटरल्यूड्स के बीच पार्श्व से आती सरगम की ध्वनि भी मन को बेहद सुकून पहुँचाती है।

गीतकार नीलेश मिश्रा एक बार फिर अपने हुनर का ज़ौहर दिखलाने में सफल रहे हैं। इतना लंबा गीत होने के बावज़ूद वे अपने खूबसूरत अंतरों द्वारा श्रोताओं का ध्यान गीत की भावनाओं से हटने नहीं देते। मिसाल के तौर पर इन पंक्तियों पर गौर करें ज़हर चखा है आग है पीली...चाँदनी कर गई पीड़ नुकीली..पर यादों की झालन चमकीली या फिर धूप में झुलस गए दूरियों से हारे...पार क्या मिलेंगे कभी छाँव के किनारे । मन खुश कर देती हैं ये पंक्तियाँ  खासकर तब जब उस्ताद राशिद खाँ और प्रतिभा वाघेल उसे अपनी आवाज़ से सँवारते हैं।


उस्ताद राशिद खाँ तो किसी परिचय के मुहताज नहीं पर प्रतिभा वघेल के बारे में ये बताना जरूरी होगा कि वर्ष 2009 में वो जी सारेगामा के फाइनल राउंड में पहुँची थीं। रीवा से ताल्लुक रखने वाली प्रतिभा बघेल ने शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा ली है।अपना अधिकतर समय संगीत से जुड़े कार्यक्रमों में बिताने वाली प्रतिभा की 'प्रतिभा' को हिंदी फिल्म संगीत में और मौके मिलेंगे इसकी उम्मीद रहेगी। राशिद साहब की भारी आवाज़ के सामने प्रतिभा का स्वर मिश्री की डली सा लगता है।

इससे पहले की आप ये गीत सुनें ये बता दूँ कि शायद गीत की लय की वज़ह से राशिद खाँ साहब इस गीत के मुखड़े में याद को 'यद' की तरह उच्चारित करते हैं जो पहली बार सुनने पर थोड़ा अटपटा लग सकता है।




अखिया किनारों से जो, बोली थी इशारों से जो
कह दे फिर से तू ज़रा
फूल से छुआ था तोहे, तब क्या हुआ था मोहे
सुन ले जो फिर से तू ज़रा
झीनी रे झीनी याद चुनरिया..लो फिर से तेरा नाम लिया

सारे जख़म अब मीठे लागें,
कोई मलहम भला अब क्या लागे
दर्द ही सोहे मोहे जो भी होवे
टूटे ना टूटे ना. टूटे ना टूटे ना......

सूझे नाही बूझे कैसे जियरा पहेली
मिलना लिखा ना लिखा पढ़ले हथेली
पढ़ली हथेली पिया, दर्द सहेली पिया
ग़म का है ग़म  अब ना हमें
रंग ये लगा को ऐसो, रंगरेज़ को भी जैसो
रंग देवे अपने रंग में
झीनी रे झीनी याद चुनरिया..लो फिर से तेरा नाम लिया

सुन रे मदा हूँ तेरे जैसी
काहे सताये आधी रात निदिया बैरी भयी
ज़हर चखा है आग है पीली
चाँदनी कर गई पीर नुकीली
पर यादों की झालन चमकीली
टूटे ना टूटे ना. टूटे ना टूटे ना......

धूप में झुलस गए दूरियों से हारे
पार क्या मिलेंगे कभी छाँव के किनारे
छाँव के किनारे कभी, कहीं मझधारे कभी
हम तो मिलेंगे देखना
तेरे सिराहने कभी, नींद के बहाने कभी
आएँगे हम ऐसे देखना
झीनी रे झीनी याद चुनरिया



मंगलवार, जनवरी 28, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 13 : तेरे मेरे बीच में क्या है .. ( Tere Mere Beech Mein Kya Hai..)

हिंदी फिल्म संगीत में नायक नायिका की आपसी बातचीत को गीतों में ढालने की रिवायत पुरानी रही है। इस कोटि में एक और गीत शामिल हो गया है वार्षिक संगीतमाला की तेरहवीं सीढ़ी पर। इसे लिखा पटकथा लेखक व गीतकार जयदीप साहनी ने, धुन बनाई सचिन ज़िगर ने और अपनी बेहतरीन आवाज़ से इसमें जान फूँकी मोहित चौहान और सुनिधि चौहान ने। झीनी रे झीनी के बारे में बात करते हुए मैंने आपको बताया था कि संगीतकार सचिन ज़िगर के लिए ये साल बेहतरीन रहा है। शुद्ध देशी रोमांस की पटकथा और चरित्र चित्रण भले ही मुझे पसंद ना आया हो पर इस फिल्म का संगीत दिल के करीब रहा।

अब इसी गीत के आरंभिक संगीत पर गौर करें।  रिक्शे के हार्न, नुक्कड़ में खेलते बच्चों की आवाज़ों के साथ गिटार और ट्रामबोन्स का मेल आपको एक बार में ही गीत के मस्ती भरे मूड में ले आता है। नायक और नायिका की नोंक झोंक को जयदीप अपने शब्दों में बड़ें प्यार अंदाज़ में विकसित करते हैं। गीत में इस्तेमाल किए गए उनके कुछ रूपक 'चद्दर खद्दर की,अरमान हैं रेशम के...'  या 'अरमान खुले हैं , जिद्दी बुलबुलें हैं ..' मन को सोहते हैं।

ये नोंक झोंक सजीव लगे इसके लिए जरूरी था कि मोहित और सुनिधि की गायिकी का गठजोड़ शानदार हो और गीत सुनने के बाद आप तुरंत इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं कि इन दोनों ने इस गीत की अदाएगी में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सचिन जिगर का मिली मिली है ,ज़रा खिली खिली है के बाद एकार्डियन, गिटार और ट्रामबोन्स का सम्मिलित संगीत संयोजन आप को थिरकने पर मजबूर कर देता है।

तो आइए थोड़ा झूमते हैं सचिन जिगर की इस बेहतरीन संगीत रचना के साथ..


ऐ सुन, सुन ले ना सुन मेरा कहना तू
हो गफ़लत में ..गफ़लत में ना रहना तू
हम्म जो दिन तेरे दिल के होंगे, तो होगी मेरी रैना..
तू अभी भी सोच समझ ले , कि फिर ये ना कहना
कि तेरे मेरे बीच में क्या है
ये तेरे मेरे बीच में क्या है
हम्म चद्दर..
हो चद्दर खद्दर की,अरमान हैं रेशम के
हो चद्दर खद्दर की,अरमान हैं रेशम के
मिली मिली है ,ज़रा खिली खिली है
फाइनली चली है मेरी लव लाइफ
मिली मिली है ,ज़रा खिली खिली है
literally silly है मेरी लव लाइफ

हो तेरे तेरे मेरे मेरे
तेरे मेरे तेरे  बीच में
ये तेरे मेरे बीच में
तेरे तेरे ..तेरे मेरे तेरे बीच में
तेरे मेरे बीच में, कभी जो राज़ हो कोई
धूप में छिपी-छिपी, कहीं जो रात हो कोई

हो तेरे मेरे बीच में, कभी जो बात हो कोई
जीत में छिपी-छिपी, कहीं पे मात हो कोई
पूछूँगा हौले से, हौले से ही जानूँगा
जानूँगा मैं हौले से, तेरा हर अरमान
अहां… अरमान खुले हैं , जिद्दी बुलबुलें हैं
अरमान खुले हैं, जिद्दी बुलबुलें हैं
मिली मिली है ,ज़रा खिली खिली है ..लव लाइफ
हे सुन ....

जो नींद तूने छीन ली तो, तो मैं भी लूँगा चैना
तू अभी भी सोच समझ ले , तो फिर ये ना कहना
कि तेरे मेरे बीच में क्या है ...क्या है ?
तुम्हें पता तो है क्या है
कि तेरे मेरे बीच में क्या है
बातें...लम्बी बातें हैं छोटी सी रातें हैं
लम्बी लम्बी बातें हैं, छोटी सी रातें हैं
मिली मिली है ...


वैसे ज़रा बताइए तो आपको आपसी गपशप में बढ़ते ऐसे कौन से गीत सबसे ज्यादा गुदगुदाते हैं?

सोमवार, जनवरी 30, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 11 :धीरे धीरे ..जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो !

वार्षिक संगीतमाला की पिछली दो पॉयदानों पर आपने सुने मिथुन शर्मा और प्रीतम द्वारा संगीतबद्ध दो बेहद कर्णप्रिय नग्मे। आज जिस गीत को आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ वो भी उतना ही मधुर है। इस गीत की ख़ासियत है कि इसके गीत , संगीत और गायिकी सभी में अलग अलग जोड़ियों का हाथ रहा है। इसे संगीतबद्ध किया है नवोदित संगीतकार जोड़ी सचिन-जिगर ने। बोल लिखे हैं समीर और प्रिया पंचाल ने और इस युगल गीत को आवाज़ें दी हैं श्रेया घोषाल और तोची रैना ने। गीत तो आप पहचान ही गए होंगे 'धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे , जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो...।  कमाल की धुन बनाई है संगीतकार सचिन जिगर ने। गीत के शब्दों के विपरीत ये नग्मा धीरे धीरे नहीं बल्कि एक बार सुनते ही दौड़ के दिलो दिमाग पर हावी हो जाता है।

पर गीत की बात करने के पहले आपकी मुलाकात तो करा दूँ इस संगीतकार जोड़ी से। सचिन यानि सचिन संघवी और ज़िगर यानि ज़िगर सरैया की ये जोड़ी श्रोताओं के लिए नई जरूर है पर फिल्म जगत में ये पिछले कुछ सालों से काम कर रहे हैं। पहले संगीतकार  राजेश रोशन और फिर प्रीतम के लिए काम करने के बाद पिछले साल इन्होंने स्वतंत्र रूप से काम करना शुरु किया।
 
शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लिये हुए सचिन के मन में संगीतकार बनने का ख़वाब ए आर रहमान ने पैदा किया। सचिन रोज़ा में रहमान के संगीत संयोजन से इस क़दर प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि मुझे भी यही काम करना है। अपने मित्र अमित त्रिवेदी के ज़रिए उनकी मुलाकात ज़िगर से हुई। दो गुजरातियों का ये मेल  एक नई जोड़ी का अस्तित्व ले बैठा। सचिन ज़िगर अपने साक्षात्कारों में प्रीतम की तारीफ़ करना कभी नहीं भूलते। वे हमेशा कहते हैं कि प्रीतम जिस तरह से कच्ची धुन से पक्के गीत की प्रक्रिया को विभिन्न भागों में बाँटकर अनुशासित रूप में गुजरते हैं उस क़वायद से हम जैसे नए लोगों ने बहुत कुछ सीखा।

सचिन ज़िगर को अपनी पहली सफलता फिल्म फालतू के डांस नंबर चार बज गए मगर पार्टी .....से मिली। पिछले साल उन्होंने 'हम तुम शबाना' और शोर  इन दि सिटी के कुछ गीतों का भी संगीत संयोजन किया। शोर इन दि सिटी के इस गीत में गिटार और वॉयलिन का बेहद खूबसूरत उपयोग किया है सचिन जिगर ने। पहले इंटरल्यूड में वॉयलिन की धुन क्या कमाल की है। जरा ध्यान दीजिएगा..

ये तो हम सभी जानते हैं कि नए नए पिया यानि अपने 'साइबो' धीरे धीरे ही दिल में उतरते हैं।  दो दिलों को पास आने के लिए आँखों, लबों की कितनी कही अनकही बातों से होकर गुजरना पड़ता है , गीतकार द्वय यही तो बता रहे हैं हमें इस प्यारे से गीत में। गीत में एक ओर तो श्रेया की मिश्री सी आवाज़ है तो दूसरी ओर तोची रैना का बुलंद ज़मीनी स्वर। पर दोनों मिलकर एक ऐसा प्रभाव उत्पन्न करते हैं कि मन इस गीत का हो के रह जाता है...


मन ये साहेब जी, जाणे है सब जी
फिर भी बनाए बहाने
नैणा नवाबी जी देखें हैं सब जी
फिर भी ना समझे इशारे
मन ये साहेब जी, हाँ करता बहाने
नैणा नवाबी जी ना समझे इशारे
धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे
जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो
धीरे धीरे बेगाना धीरे धीरे
अपना सा धीरे धीरे लागे रे साएबो


सुर्खियाँ है हवाओं में, दो दिलों के मिलने की
अर्जियाँ है नज़ारों मे, लमहा ये थम जाने की
कैसी हजूरी जी ये लब दिखलाएँ
चुप्पी लगा के भी गज़ब है ये ढाएँ

धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे
जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो
धीरे धीरे बेगाना धीरे धीरे
अपना सा धीरे धीरे लागे रे साएबो



वार्षिक संगीतमाला 2011 पहुँच चुकी है उस मुकाम पर जहाँ से शुरु होती है प्रथम दस यानि TOP 10 गीतों की आख़िरी दस सीढ़ियाँ ! इन दस गीतों में रूमानियत की हवाएँ भी हैं और सूफ़ियत की झंकार भी। दुखों के बादल भी हैं और ज़िदगी को मुड कर देखने की कोशिश भी। आशा हैं हम सब मिलकर एक साथ महसूस करेंगे गीतों के इन विविध रंगों को आने वाली कड़ियों में..
 

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