जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वार्षिक संगीतमाला की सीढ़ियों को चढ़ते हुए आज बारी है 21वें पायदान के गीत की जिसे गाया है अपनी आवाज़ में चंचलता का रस घोलते हुए श्रेया घोषाल ने। पुष्पा 2 फिल्म के इस couple song के नाम से मशहूर इस गीत की धुन बनाई है देवी श्री प्रसाद ने।
उत्तर भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए देवी श्री प्रसाद भले ही अनजान हों पर तेलुगू फिल्म उद्योग में वो जाना पहचाना नाम हैं। शायद ही आपको पता हो कि उन्हें उनके प्रशंसक प्यार से DSP RockStar के नाम से बुलाते हैं। पच्चीस सालों के अपने लंबे कैरियर में नौ फिल्मफेयर और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित DSP अपनी धमाकेदार धुनों के लिए जाने जाते हैं।
पुष्पा के प्रथम संस्करण में श्रीवल्ली और उ उ अन्टवा मावा से धूम मचाने वाले DSP पुष्पा 2 में भी अंगारों और किसिक जैसे गीतों को लेकर खासे चर्चित रहे। हाँ ये जरूर है कि पुष्पा के प्रथम संस्करण की तुलना में फिल्म के गीत उतना नहीं बजे ।
बहरहाल DSP ने गीतकार के रूप में एक बार फिर अपने जोड़ीदार रक़ीब आलम को लिया। रक़ीब उनकी पहली फिल्म देवी में भी उनके साथ रहे थे। पुष्पा के गीत लिखने के बाद निर्देशक सुकुमार उनसे इतने प्रभावित हुए कि पुष्पा 2 के भी सारे गीत उनकी ही झोली में गए। रक़ीब बहुभाषी गीतकार हैं। दक्षिण भारतीय भाषाओं में लिखने के आलावा वे स्लमडॉग मिलयनियर और गैंगस्टर जैसी फिल्मों के गीत लिख चुके हैं।
अंगारों का अम्बर सा..एक ऐसा गीत है जिसमें नायिका बाहर से कठोर छवि रखने वाले पति के अन्दर से मुलायम स्वभाव का बखान कर रही है। बड़ी ही सहज भाषा में एक घरेलू स्त्री अपने पति की जिन बातों पर नाज़ कर रही है वो कहने को तो मामूली हैं पर ऐसे ही पल रोज़ की आपाधापी में पति पत्नी के आपसी प्रेम को प्रगाढ़ करते रहते हैं अब चाहे वो कुर्ता ढूंढ कर देने की बात हो या गोद में सर रख कर सोने की।आंतरिक और ब्राह्य व्यक्तित्व में.अंतर स्पष्ट करने के लिए गीतकार द्वारा कुछ नए शब्दों का इस्तेमाल करना खास तौर पर सोहता है जब वो लिखते हैं
आग देखी ताब (चमक) देखी इसकी आँखों में सबने आब (पानी ) देखा ख्वाब देखा इसकी आंखों में हमने
अगर DSP के संगीत की बात करूँ तो सबसे पहले इस गीत को सुनते हुए आपका ध्यान ताल वाद्यों पर जायेगा जिसकी थाप पर नायक नायिका मस्ती में झूमते हैं।. मुखड़े के साथ पीछे बजते घुँघरू, अंतरों के बीच बजती शहनाई और दिलरुबा के छोटे मगर प्यारे टुकड़े संगीत में जान डालते हैं। गीत में शहनाई बजायी है बालेश ने और दिलरुबा पर उँगलियाँ हैं सरोजा जी की।
पत्थर है वो, मुझे रोक टोक कहते हैं लोग पर मोम सा है मेरा जानू नश्तर है वो यही दूर दूर गूंजे फितूर पर बादशाह है मेरा जानू
हो कड़वी है बोली, दिल है रंगोली इसमें पत्थर क्यों लोग देखते हैं मुझको तो दिखता है इसने कोई सनम अंगारों का अंबर सा लगता है मेरा सामी मेरी राहों में फूलों का रास्ता है मेरा सामी
आग देखी ताब देखी इसकी आँखों में सबने आब देखा ख्वाब देखा इसकी आंखों में हमने इसके मूँछों में बला के देखी है शान सबने पर इन्हीं मूँछों के पीछे देखी मुस्कान हमने
शेरों की अगर रफ़्तार हो इसकी रहती है उस पे सबकी नजर सो जाए जब सर गोद में रखकर इसकी थकन तो श्री वल्ली को हो खबर अंगारों का अंबर सा लगता है मेरा सामी मेरी राहों में फूलों का रास्ता है मेरा सामी हो
मँहगे मँहगे बाँटे तोहफे ये है इसकी नवाबी मुझसे डर डर के ये मांगे एक झप्पी गुलाबी मसला कितना भी हो मुश्किल, चुटकियों में कर ले हल कुर्ता इसका ना मिले तो मांगे मुझसे ये पागल घर से अलग बाहर की दुनिया झुकती रहे इसके आगे पर जब जब घर से निकले माथे पे तिलक मुझसे आके मांगे अंगारों का अंबर सा लगता है मेरा सामी ऐसा घरवाला मिल जाए तो घर वाले महारानी
गीत और संगीत अपनी जगह पर अगर इस गीत को श्रेया की चुलबुली आवाज का साथ नहीं मिला होता तो ये गीत इस मुकाम तक पहुंच नहीं पाता । दरअसल हर एक मँजा हुआ गायक अभिनय कला में पारंगत होता है पर फर्क बस इतना है की उसे ये अभिनय परदे के पीछे रहकर अपनी आवाज़ के जरिये बाहर लाना पड़ता है।
गीत और संगीत अपनी जगह पर अगर इस गीत को श्रेया की चुलबुली आवाज का साथ नहीं मिला होता तो ये गीत इस मुकाम तक पहुंच नहीं पाता । दरअसल हर एक मँजा हुआ गायक अभिनय कला में पारंगत होता है पर फर्क बस इतना है की उसे ये अभिनय परदे के पीछे रहकर अपनी आवाज़ के जरिये बाहर लाना पड़ता है। अब इसी गीत में "सामे" बोलते समय श्रेया के लहजे की मस्ती और "नवाबी" बोलते समय आवाज़ की मदहोशी सुनते ही बनती है। कहीं कहीं ऊंचे सुरों में अपनी रेंज से भी ऊपर जा कर गाने की कोशिश भी श्रेया ने इस गीत में की है ।
वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल के शानदार पन्द्रह गीतों की कड़ी में आख़िरी गीत फिल्म पुष्पा से। ये गीत कौन सा है ये तो आप समझ ही गये होंगे क्यूँकि पिछले साल के अंतिम महीने से लेकर आज तक ये गीत लगातार बज रहा है वो भी अलग अलग भाषाओं में। देशी कलाकार तो एक तरफ, ये गीत विदेशी कलाकारों को भी अपने मोहपाश में बाँध चुका है। हाल ही में मुंबई पुलिस के बैंड द्वारा सामूहिक रूप इसकी धुन की प्रस्तुति चर्चा का विषय बनी हुई है। जी हाँ ये गीत है श्रीवल्ली जिसकी अद्भुत संगीत रचना करने वाले देवी श्री प्रसाद बताते हैं कि इस धुन की रूप रेखा उन्होंने पाँच मिनट में ही गिटार पर बजा कर बना डाली थी। इस गीत की धुन इतनी पसंद की जायेगी ये उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था🙂
उत्तर भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए देवी श्री प्रसाद भले ही अनजान हों पर तेलुगू फिल्म उद्योग में वो जाना पहचाना नाम हैं। शायद ही आपको पता हो कि उन्हें उनके प्रशंसक प्यार से DSP RockStar के नाम से बुलाते हैं। पच्चीस सालों के अपने लंबे कैरियर में नौ फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित DSP अपनी धमाकेदार धुनों के लिए जाने जाते हैं। इसी फिल्म के लिए उनका गीत उ अन्टवा मावा..उ उ अन्टवा मावा.. इस साल का सबसे जबरदस्त डांस नंबर साबित हुआ है पर जहां तक श्रीवल्ली का सवाल है तो वो एक ऐसे आशिक का प्रेम गीत है जिसे ये शिकायत है कि उसकी महबूबा उसके प्यार को अनदेखा कर रही है।
देवी श्री प्रसाद
DSP ने इस फिल्म के हिंदी वर्जन को लिखने के लिए अपने पुराने मित्र रक़ीब आलम को चुना जो उनकी पहली फिल्म देवी में भी उनके साथ रहे थे। रक़ीब बहुभाषी गीतकार हैं। दक्षिण भारतीय भाषाओं में लिखने के आलावा वे स्लमडॉग मिलयनियर और गैंगस्टर जैसी फिल्मों के गीत लिख चुके हैं।
दक्षिण भारतीय फिल्में जब डब होकर हिंदी में आती हैं तो गीतकार के पास वो रचनात्मक आज़ादी नहीं होती क्यूँकि तब तक मूल भाषा में गीत बन चुका होता है और हिंदी में बस उसका भावानुवाद करना होता है। रक़ीब आलम को जब इसके मूल तेलुगू बोल मिले तो मुखड़े की एक पंक्ति का अर्थ कुछ यूँ था कि तुम्हारी झलक सोने की चमक सी बेशकीमती है। अब हिंदी में मुखड़े का मीटर जम नहीं पा रहा था तो रक़ीब उर्दू जुबान की शरण में गए और नायिका के लिए जो विशेषण चुना वो था अशर्फी।
अशर्फी में सोना और चमक दोनों मायने निहित थे। उर्दू से अनजान लोग मुखड़े में इस्तेमाल किए जुमले "बातें करे दो हर्फी" को सुनकर असमंजस में पड़ जाते हैं। दरअसल फिल्म की नायिका नायक को ज़रा भी भाव नहीं देती और कुछ पूछने पर भी दो हर्फी जवाब देती है जैसे हाँ, ना, क्यूँ, अच्छा। यहाँ हर्फ का मतलब अक्षर से है।
वहीं मदक बर्फी से गीतकार का अभिप्राय नायिका की नशीली मादक आँखों से हैं। गीत में हिंदी का वही मादक शब्द मीटर में लाने के लिए मदक में बदल दिया गया है। हालांकि आंखों की तुलना बर्फी से करना सोहता तो नहीं पर अशर्फी से तुक मिलान के लिए शायद गीतकार को ये करना पड़ा। कई लोगों ने मुझसे मुखड़े की इस गुत्थी को सुलझाने के लिए कहा था। तो अब तो आप समझ गए होंगे मुखड़े के पीछे गीतकार की सोच
भगवान जो कि छुपा हुआ है उस के लिए तो नायिका पूजा अर्चना में लीन है पर नायक की आँखों में बसा प्रेम उसे नज़र नहीं आता। इसी भाव को गीत में उतारते हुए रक़ीब ने लिखा
नज़रें मिलते ही नज़रों से, नज़रों को चुराये कैसी ये हया तेरी, जो तू पलकों को झुकाये रब जो पोशीदा है, उसको निहारे तू और जो गरवीदा है, उसको टाले तू
बाकी गीत की भाषा रकीब ने ऐसी रखी है जो नायक के किरदार के परिवेश के अनुरूप है। जावेद अली ने इस गीत में अपनी आवाज़ की बनावट में जगह जगह परिवर्तन किया है। वो कहते हैं आवाज़ में बदलाव का ऐसा प्रयोग उन्होंने इस गीत के लिए पहली बार किया और ऐसा करते समय उन्होंने किरदार के थोड़े रूखे आक्रामक व्यक्तित्व का भी ध्यान रखा।
जावेद अली और रक़ीब आलम के साथ देवी श्री प्रसाद
पर इस गीत के असली हीरो देवी श्री प्रसाद ही हैं। ये उनकी इस मधुर धुन की ही ताकत है कि भाषा की दीवार लाँघता हुआ ये गीत देश विदेश में इतना लोकप्रिय हो रहा है। गीत की शुरुआत वो गिटार और ताल वाद्यों की संगत में सारंगी पर बजाई गीत की सिग्नेचर ट्यून से करते हैं। गीत में जो सवा दो मिनट के बाद से बैंजो पर मधुर टुकड़ा बजता है उसे स्वयम् देवी प्रसाद ने बजाया है जबकि सारंगी पर मनोनमणि की उँगलियाँ थिरकी हैं।
इस गीत में अभिनेता अल्लू अर्जुन का चप्पल निकलने वाला स्टेप आम लोगों से लेकर बड़े बड़े कलाकारों और खिलाड़ियों को इतना पसंद आया कि उस पर सबने हजारों छोटे छोटे वीडियो बना डाले। गीत की बढ़ती लोकप्रियता में उनके स्टाइल का भी असर जबरदस्त है।
वैसे तो श्रीवल्ली को इतने लोगों ने गाया है कि उसका कोई एक कवर वर्सन चुन कर सुनाना एक मुश्किल काम है पर जिस तरह जुड़वाँ बहनों किरण और निवि साईशंकर ने ये इस गाने का टुकड़ा गाया है उससे मुझे गीत के तेलुगू शब्द भी भाने लगे। गीत के मुखड़े और अंतरे के अंत में लिया उनका आलाप इस गीत को अलग ही ऊँचाइयों पर ले जाता है।
इस संगीतमाला के सारे गीतों की चर्चा तो हो चुकी। अब इन पन्द्रह गीतों को अपनी पसंद के क्रम में सजाइए और मुझे भेज दीजिए मेरे फेसबुक पेज मेल या यहाँ कमेंट में। जिसकी पसंद का क्रम मेरे से सबसे ज्यादा मिलेगा वो होगा हर साल की तरह एक छोटे से इनाम का हक़दार।
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
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