राहत फतेह अली खाँ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
राहत फतेह अली खाँ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, जनवरी 27, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान #16 : मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र Mere Rashke Qamar

साल के पच्चीस बेहतरीन गीतों की फेरहिस्त में आज चर्चा उस गीत की जिसे जनता जनार्दन ने पिछले साल हाथों हाथ लिया था । गीत की धुन तो इतनी लोकप्रिय हुई कि नक्कालों ने इसका इस्तेमाल कर जो भी  पैरोडी बनाई  वो भी हिट हो गयी। जी हाँ, बात हो रही है रश्के क़मर की जिसे मूलरूप में कव्वाली के लिए नुसरत फतेह अली खाँ ने संगीतबद्ध किया और गाया था। इसे लिखा था फ़ना बुलंदशहरी ने जिनके पुरखे भले भारत से रहे हों पर उन्होंने अपना काव्य पाकिस्तान में रचा। 

बहुत से लोग इस गीत के मुखड़े का अलग मतलब लगा लेते हैं क्यूँकि "क़मर" और "रश्क" जैसे शब्द उनकी शब्दावली के बाहर के हैं। उनकी सुविधा के लिए बता दूँ कि शायर ने मुखड़े में कहना चाहा है कि तुम्हारी खूबसरती तो ऐसी हैं कि चाँद तक को तुम्हें देख कर जलन होती है। ऐसे में तुमसे नज़रें क्या मिलीं  दिल बाग बाग हो गया। तुम्हें देख के ऐसा लगा मानो आसमान में बिजली सी चमक गयी हो। अब तो जिगर जल सा उठा है पर इस अगन का मज़ा ही कुछ और है ।



मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया 
बर्क़ सी गिर गयी काम ही कर गयी आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया 
जाम में घोल कर हुस्न की मस्तियाँ चाँदनी मुस्कुराई मज़ा आ गया 

चाँद के साए में ऐ मेरे साकिया तू ने ऐसी पिलाई मज़ा आ गया 
नशा शीशे में अंगड़ाई लेने लगा बज़्म ए रिन्दाँ में सागर खनकने लगे 
मैकदे पे बरसने लगी मस्तियाँ जब घटा गिर के छाई मज़ा आ गया 
बेहिजाबाँ जो वो सामने आ गए 
और जवानी जवानी से टकरा गयी  
आँख उनकी लड़ी यूँ मेरी आँख से 
देख कर ये लड़ाई मज़ा आ गया मेरे 
मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

आँख में थी हया हर मुलाक़ात पर 
सुर्ख आरिज़ हुए वस्ल की बात पर  
उसने शर्मा के मेरे सवालात पे  
ऐसे गर्दन झुकाई मज़ा आ गया 
मेरे रश्के क़मर .....मज़ा आ गया  
बर्क़ सी गिर गयी ...मज़ा आ गया 

शेख साहिब का ईमान बिक ही गया 
देख कर हुस्न-ए-साक़ी पिघल ही गया 
आज से पहले ये कितने मगरुर थे 
लुट गयी पारसाई मज़ा आ गया 
ऐ फ़ना शुक्र है आज बाद-ए-फ़ना 
उसने रख ली मेरे प्यार की आबरू 
अपने हाथों से उसने मेरी क़ब्र पर 
चादर-ए-गुल चढ़ाई मज़ा आ गया 
मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

(शब्दार्थ :   रश्क- ईर्ष्या, बर्क़ - बिजली, क़मर - चाँद, रिंद - शराब पीने वाले,  बेहिज़ाब  - बिना किसी पर्दे के, आरिज़ - गाल, मगरुर - अहंकार, वस्ल - मिलन, फ़ना -मृत्यु )

नुसरत साहब ने इस कव्वाली में अपनी हरक़तें डालकर इसके शब्दों को एक अलग ही मुकाम पे पहुँचा दिया था। इसलिए अगर आप नुसरत प्रेमी हैं तो मैं चाहूँगा कि इस कव्वाली पर आधारित गीत को सुनने के पहले मूल रचना को अवश्य सुनें। फ़ना साहब की शायरी में जो शोखी और रसीलापन है वो जरूर आपके मन में आनंद जगा जाएगा..


फिल्म  बादशाहो के निर्माता भूषण कुमार ने नुसरत की ये गाई ग़ज़ल जब सुनी थी तभी से इसे गीत की शक्ल में किसी फिल्म में डालने का विचार उनके मन में पनपने लगा था। निर्देशक मिलन लूथरा ने जब उन्हें फिल्म में नायक नायिका के पहली बार आमने सामने होने की परिस्थिति बताई तो भूषण को लगा कि  नुसरत साहब की उस कव्वाली को इस्तेमाल करने की ये सही जगह होगी। मिलन ख़ुद नुसरत प्रेमी रहे हैं। मजे की बात ये है कि उनकी पिछली फिल्म कच्चे धागे का संगीत निर्देशन भी नुसरत साहब ने ही किया था और उस फिल्म में भी अजय देवगन मौज़ूद थे। यही वज़ह रही कि भूषण जी का विचार तुरंत स्वीकृत हुआ।

गीत के बोलों को आज के दौर के हिसाब से परिवर्तित करने का दायित्व गीतकार मनोज मुन्तशिर को सौंपा गया। संगीत की बागडोर सँभाली इस साल सब से तेजी से उभरते संगीतकार तनिष्क बागची ने। अगर आपने नुसरत साहब की कव्वाली सुनी होगी तो पाएँगे कि मूल धुन से तनिष्क बागची ने ज़रा भी छेड़ छाड़ नहीं की है। कव्वाली में हारमोनियम के साथ तालियों के स्वाभाविक मेल को उन्होंने यहाँ भी बरक़रार रखा है। जोड़ा है मेंडोलिन को  जो कि इंटरल्यूड्स में  बजता सुनाई देता है। कव्वाली और गीत के बोलों के मिलान आप समझ जाएँगे कि मुखड़े और बर्क़ सी गिर गई वाले अंतरे को छोड़ बाकी के बोल मनोज मुन्तशिर के हैं।

ये अलग बात है कि मनोज अक़्सर कहते रहे हैं कि पुराने गीतों को नया करने का ये चलन उन्हें पसंद नहीं है क्यूँकि इसमें गीतकार और संगीतकार को श्रेय नहीं मिल पाता। बात सही भी है अगर इस गीत को कोई याद करेगा  तो वो सबसे पहले नुसरत और फ़ना का ही नाम लेगा। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसे गाया है राहत फतेह अली खाँ साहब ने

ऐसे लहरा के तू रूबरू आ गयी
धड़कने बेतहाशा तड़पने लगीं
तीर ऐसा लगा दर्द ऐसा जगा
चोट दिल पे वो खायी मज़ा आ गया

मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र
जब नज़र से मिलायी मज़ा आ गया
जोश ही जोश में मेरी आगोश में
आके तू जो समायी मज़ा आ गया
मेरे रश्के क़मर .... मज़ा आ गया

रेत ही रेत थी मेरे दिल में भरी 
प्यास ही प्यास थी ज़िन्दगी ये मेरी
आज सेहराओं में इश्क़ के गाँव में
बारिशें घिर के आईँ मज़ा आ गया
मेरे रश्के क़मर  तूने पहली नज़र ...

रांझा हो गए हम फ़ना हो गए ऐसे तू मुस्कुरायी मज़ा आ गया
मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र जब नज़र से मिलायी मज़ा आ गया
बर्क़ सी गिर गयी काम ही कर गयी  आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया



चलते चलते ये भी बता दूँ कि आज इस गीत की लोकप्रियता का ये आलम है कि मुखड़े में हास्यास्पद तब्दीलियाँ करने के बावज़ूद मेरे रश्क़ ए क़मर तूने आलू मटर इतना अच्छा बनाया मजा आ गया जैसी पंक्तियाँ भी उतने ही चाव से सुनी जा रही हैं।

वार्षिक संगीतमाला 2017

शुक्रवार, मार्च 10, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान #3 : जग घूमेया थारे जैसा ना कोई Jag Ghoomeya

वार्षिक संगीतमाला 2016 की आख़िरी तीन पायदानें बची हैं और इन पर विराजमान तीनों नग्मे बड़े प्यारे व लोकप्रिय हैं और आपने पिछले साल इन्हें कई दफ़ा जरूर सुना होगा। संगीतमाला की तीसरी सीढ़ी  पर जो गीत है उसे संगीतबद्ध किया विशाल शेखर ने और बोल लिखे इरशाद कामिल ने।  सुल्तान फिल्म का ये गीत है जग घूमेया। इस गीत के दो वर्जन हैं। एक जिसे गाया राहत फतेह अली खाँ ने और दूसरे को आवाज़ दी नेहा भसीन ने। गाने तो आपको आज दोनों ही सुनाएँगे पर पहले ज़रा जान तो कि किस तरह जग घूमेया की धुन पहले दिन की पहली संगीत सिटिंग में ही बना ली गयी।

विशाल शेखर को जब सुल्तान की पटकथा सुनाई गयी तो उन्हें लगा ये तो बड़ी रोचक कहानी है और इसके लिए संगीत रचने में मजा आने वाला है। अगले ही दिन जब वो यशराज  स्टूडियो पहुँचे तो उन्होंने चार पाँच धुनें तैयार कीं पर इन धुनों में उन्होंने सबसे पहले जग घूमेया को ही फिल्म के निर्देशक अली अब्बास जाफ़र को सुनाया। अली ने धुन सुनते जी कहा कि क्या बात है ! अदित्य चोपड़ा को भी धुन पसंद आयी। अक्सर निर्माता निर्देशक  कई तरह की धुनें सुनना पसंद करते हैं पर यहाँ मामला पहली बार में ही लॉक हो गया। अली और आदि ने माना कि ये सुल्तान के संगीत की बेहतरीन शुरुआत है।

पर धुन तो गीत नहीं होता तो उसमें इरशाद कामिल को अपने शब्द भरने थे। कामिल अली के साथ पहले ही गुंडे और मेरे ब्रदर की दुल्हन में साथ काम कर चुके थे। इस गीत के लिए उन्हें सुल्तान के चरित्र में डूबना पड़ा। इरशादकामिल का इस गीत  के बारे में कहना है
जब तक आप चरित्र को पूरी तरह समझ नहीं लेते तब तक आप दिल से नहीं लिख सकते। ऊपरी तौर पर भी गीत लिखे जाते हैं पर जग घुमेया जैसे रूमानी गीत को लिखने के लिए मुझे ख़ुद सुल्तान के चरित्र को आत्मसात करना पड़ा।


शायद ही हममें से कोई ऐसा हो जिसने अपने होने वाले हमसफ़र के लिए सपने गढ़े ना हों। पर सपने कहाँ हमेशा सच होते हैं और कई बार तो हमारी तमन्नाएँ ही माशाल्लाह इतनी लंबी चौड़ी होती हैं कि वो पूरी हो भी नहीं सकती। फिर भी कुछ लोग होते हैं सुल्तान जैसे जिन्हें उनके सपनों के जहाँ से आगे की ऐसी शख़्सियत मिलती है जो दुनिया में अपनी तरह की अकेली हो। 

वैसे ये भी तो है कि अगर कोई अच्छा लगने लगे तो फिर दिल भी पूरी तरह अनुकूल यानि conditioned हो जाता है उनके लिए। उनका चेहरा हो या आँखें, मुस्कुराहट हो या नादानियाँ सब इतने प्यारे, इतने भोले लगने लगते हैं जैसे पहले  कभी लगे ही ना थे। इरशाद कामिल इन्हीं भावनाओं को बेहद नर्म रूपकों में कुछ यूँ क़ैद करते हैं...




ओ.. ना वो अखियाँ रूहानी कहीं, ना वो चेहरा नूरानी कहीं
कहीं दिल वाली बातें भी ना, ना वो सजरी जवानी कहीं
जग घूमेया थारे जैसा ना कोई, जग घूमेया थारे जैसा ना कोई

ना तो हँसना रूमानी कहीं, ना तो खुशबू सुहानी कहीं
ना वो रंगली अदाएँ देखीं, ना वो प्यारी सी नादानी कहीं
जैसी तू है वैसी रहणा...जग घूमेया...

बारिशों के मौसमों की भीगी हरियाली तू
सर्दियों में गालों पे जो आती है वो लाली तू
रातों का सुकूँ भी है, सुबह की अज़ान है
चाहतों की चादरों में, मैंने है सँभाली तू

कहीं अग जैसे जलती है, बने बरखा का पाणी कहीं
कभी मन जाणा चुपके से, यूँ ही अपनी चलाणी कहीं
जैसी तू है वैसी रहणा...जग घूमेया...

अपणे नसीबों में या, हौसले की बातों में
सुखों और दुखों वाली, सारी सौगातों में
संग तुझे रखणा है, यूने संग रहणा
मेरी दुनिया में भी, मेरे जज्बातों में

तेरी मिलती निशानी कहीं, जो है सबको दिखानी कहीं
तू तो जाणती है मरके भी, मुझे आती है निभाणी कहीं
वो ही करना है जो है कहणा

ये गीत पहले अरिजीत सिंह की आवाज़ में रिकार्ड किया गया था। बाद में सलमान से अनबन की वजह से अंततः राहत इस गीत की आवाज़ बने।  विशाल कहते हैं कि गीत के दो वर्जन अलग अलग मूड लिए हुए हैं और उनका कहना बिल्कुल सही है। राहत के वर्जन में जहाँ प्यार की खुमारी है, एक उत्साह है वही नेहा भसीन के वर्जन में प्यार के साथ एक ठहराव है, सुकून है और मेंडोलिन और तुम्बी का नाममात्र का संगीत संयोजन है। नेहा इस तरह के गीत कम ही गाती हैं पर उन्होंने इसे बखूबी निभाया है..


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
3. जग घूमेया थारे जैसा ना कोई Jag Ghoomeya
4. पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina
5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

मंगलवार, जनवरी 07, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान संख्या 22 : मेरे बिना तू...मेरे बिना ख़ुश रहे तू ज़माने में (Mere Bina Tu)

पिछली वार्षिक संगीतमाला के सिरमौर प्रीतम इस साल पहली बार दाखिल हो रहें गीतमाला की अगली पॉयदान पर। संगीत संयोजन के मामले में प्रीतम का अपना एक अलग ही अंदाज़ रहा है। उनकी धुनों की मधुरता ऐसी होती है कि कई बार आप शब्दों की तह तक पहुँचने के पहले ही उन्हें गुनगुनाने लगते हैं। फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो में प्रीतम एक बार फिर अपने पसंदीदा गीतकार इरशाद कामिल के साथ नज़र आए हैं। पर वार्षिक संगीतमाला की बाइसवीं पॉयदान पर जो गीत है उसके यहाँ होने की वज़ह इसके गायक राहत फतेह अली खाँ और प्रीतम हैं।

राहत फतेह अली खाँ की गायिकी का जादू  पहली बार फिल्म पाप के गीत लगन लागी तुमसे मन की लगन सुनने के बाद सम्मोहित कर गया था। पिछले एक दशक में वार्षिक संगीतमालाओं में नैणा ठग लेंगे, धागे तोड़ लाओ चाँदनी से नूर के,मैं जहाँ रहूँ तेरी याद साथ है,मन बावरा तुझे ढूँढता, मन के मत पे मत चलिओ, तू ना जाने आस पास है ख़ुदा, सुरीली अँखियों वाले, तेरे मस्त मस्त दो नैन, तोरे नैना बड़े दगाबाज़ रे,  सज़दा, दिल तो बच्चा है जी जैसे बेमिसाल गीतों के माध्यम से वो छाए रहे हैं।



विछोह की भावना को प्रदर्शित करता फिल्म फटा पोस्टर निकला हीरो का ये गीत गिटार और पियानो की मिश्रित प्रारंभिक धुन से शुरु होता है। ये धुन ऐसी है कि इसकी खनक मिलते ही कानों के राडार एकदम से खड़े हो जाते हैं । इस धुन को प्रीतम ने इस गीत की सिग्नेचर ट्यून की तरह जगह जगह इस्तेमाल किया है। प्रीतम आरंभिक संगीत से गीत में रुचि  जागृत करते हैं और फिर राहत की आवाज़  गीत के अंत तक आपका ध्यान हटने नहीं देती। सच कहूँ तो इरशाद क़ामिल के सहज शब्दों को राहत अपनी गायिकी से वो गहनता प्रदान करते हैं जो गीत को सामान्य से उत्कृष्ट की श्रेणी में खड़ा कर देती है।

तो आइए सुनते हैं इस गीत को। 


मेरे बिना तू, मेरे बिना तू
मेरे बिना ख़ुश रहे तू ज़माने में
कि आऊँ ना मैं याद भी अनजाने में
मेरे बिना तू...

भूल अब जाना गुज़रा ज़माना
कह तो रहे हो मुझको मगर
तस्वीरें ले लो, ख़त भी ले जाओ
लौटा दो मेरे शाम-ओ-सहर
जान जाए रे, जान जाए रे
जान जाए मेरी तुझको भुलाने में
कि आऊँ ना मैं याद भी अनजाने में
मेरे बिना तू...

तुझसे है वादा, है ये इरादा
अब ना मिलेंगे तुझसे कभी
दे जाओ मुझको सारे ही आँसू
ले जाओ मुझसे मेरी खुशी
मेरी खुशी तो, मेरी खुशी तो
मेरी खुशी आँसुओं को बहाने में
कि आऊँ ना मैं याद भी अनजाने में
मेरे बिना तू...

फिल्म में ये गीत राहत का गीत ना होके राहत और हर्षदीप कौर के युगल गीत के रूप में आया है। प्रीतम ने वहाँ संगीत संयोजन में कुछ प्रयोग करने की कोशिश की है पर मुझे युगल गीत से ज्यादा अकेले राहत का गाया वर्सन ही पसंद आता है। वैसे आपका इस गीत के बारे में क्या ख्याल है?

मंगलवार, फ़रवरी 05, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 12 : तोरे नैना बड़े दगाबाज रे...

हिंदी फिल्म संगीत में आज का दौर प्रयोगधर्मिता का दौर है। युवा संगीतकार लीक से हटकर नए तरह के संगीत संयोजन को बेहतरीन आयाम दे रहे हैं। पिछले कुछ सालों से अमित त्रिवेदी और पिछले साल गैंग आफ वासीपुर में स्नेहा खानवलकर का काम इसी वज़ह से सराहा भी गया था। पर प्रयोगधर्मिता तभी तक अच्छी लगती है जब तक उसका सुरीलापन बरक़रार रहे। मेलोडी के बिना कभी कभी ये प्रयोग कौतुक तो जगाते हैं पर इनका असर कुछ दिनों में ही हल्का पड़ने लगता है।

वार्षिक संगीतमाला की बारहवीं पॉयदान पर विशुद्ध भारतीय मेलोडी की चाशनी में डूबा गीत पाश्चात्य संक्रमण और प्रयोगधर्मिता की परिधि से परे है और एक बार में ही कानों के रास्ते सीधे हृदय में जगह बना लेता है। संगीतकार साज़िद वाज़िद का संगीतबद्ध ये गीत है फिल्म दबंग 2 का और इसे लिखा है समीर ने।

गाने की परिस्थिति ऐसी है कि नायक अपनी रूठी पत्नी को मना रहा है। ज़ाहिर सी बात है समीर को गीत में मीठी तकरार का पुट देना था। समीर सहज शब्दों में ही इस नोंक झोंक को गीत के दो अंतरों की सहायता से आगे बढ़ाते हैं। समीर ने गीत के बोलों में इस बात का ध्यान रखा है कि उसमें उत्तर प्रदेश की बोली का ज़ायका मिले आखिर हमारे चुलबुल पांडे इस प्रदेश के जो ठहरे।

पर गीत का असली आनंद है राहत की सुकून भरी गायिकी और साज़िद वाज़िद के मधुर संगीत संयोजन में। मुखड़े में तबले ताली और हारमोनियम का अद्भुत मिश्रण गीत की मस्ती को आत्मसात किए चलता है। इंटरल्यूड्स में पहले सितार और फिर हारमोनियम का प्रयोग बेहद मधुर लगता है। जिस मुलायमियत की जरूरत इस गीत को थी उसे राहत अपनी दिलकश आवाज़ से साकार करते दिखते हैं। उनकी गायिकी का असर ये होता है कि मन श्रेया के हिस्से से जल्द निकलने को करने लगता है।

तो आइए सुनें इस गीत को राहत और श्रेया की आवाज़ों में..



तोरे नैना बड़े दगाबाज रे
कल मिले, कल मिले ई हमका भूल गए आज रे
दगाबाज रे, हाए दगाबाज रे..तोरे नैना बड़े दगाबाज रे


काहे ख़फा ऐसे, चुलबुल से बुलबुल
काहे ना तू माने बतियाँ
काहे पड़ा पीछे, जान पे बैरी
ना जानूँ क्या तोरी बतियाँ
ज़िंदगी अपनी हम तोका दान दई दें
मुस्कुराके जो माँगे परान दई दें
कल मिले, कल मिले ई हमका भूल गए आज रे..
दगाबाज रे, हाए दगाबाज रे..तोरे नैना बड़े दगाबाज रे

डरता ज़हाँ हमसे, हम तोसे डरते
इ सब जानें मोरी रनिया हाए
मसका लगाओ ना छोड़ो जी छोड़ो
समझती है तोरी धनिया
इस अदा पे तो हम कुर्बान गए जी
तोहरी ना ना में हामी है जान गए जी
कल मिले, कल मिले ई हमका भूल गए आज रे..
तोरे नैना बड़े दगाबाज रे

सोमवार, जनवरी 07, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 22 : मेरे साइयाँ रे, साचा बोले ना झूठा माहिया रे...

वार्षिक संगीतमाला की अगली पॉयदान पर के गीत को लिखा है अमिताभ भट्टाचार्य ने। बेवफाई से व्यथित हृदय की वेदना को व्यक्त करते इस गीत को गाया है राहत फतेह अली खाँ ने। गीत साइयाँ के कोरस से शुरु होता है और जैसे ही  राहत के स्वर में मेरे साइयाँ रे की करुण तान आपके कानों में पड़ती हैं आपको गीत का मूड समझने में देर नहीं लगती। फिल्म 'हीरोइन' के इस गीत की धुन बनाई है सलीम सुलेमान ने। दर्द की अभिव्यक्ति के लिए इंटरल्यूड्स में वॉयलिन का प्रयोग संगीतकार बखूबी करते हैं।


प्रेम की सबसे बड़ी शर्त है आपसी विश्वास और एक दूसरे के प्रति सम्माऩ। पर जो आपका सबसे प्रिय हो वही आपके भरोसे की धज्जियाँ उड़ा दे तो..पैरों तले ज़मीन खिसकने सी लगती है। सच्चा प्यार कुछ होता भी है इस पर भी मन में संशय उत्पन्न होने लगता है। अपने आस पास के लोग, सारी दुनिया  बेमानी लगने लगती है। 

अमिताभ के बोल इसी टूटे दिल की भावनाओं को टटोलते हैं इस गीत में। पर अमिताभ भट्टाचार्य के शब्दों से ज्यादा राहत की गायिकी और गीत की लय श्रोताओं को अपनी ओर खींचती है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को।

साइयाँ रे, मेरे साइयाँ रे
साचा बोले ना झूठा माहिया रे हो
मेरे साइयाँ रे, साइयाँ रे
झूठी माया का झूठा है जिया रे हो
अब किस दिशा जाओ, कित मैं बसेरा पाऊँ
तू जो था मैं सँभल जाऊँ
साइयाँ रे
मेरे साइयाँ रे
दामन में समेटे, अँधेरा लाई है
बहुरूपिया रौशनी
हो...लोरियाँ गाए तो
नींदे जल जाती हैं
लागे कलसुरी चाँदनी
दिल शीशे का टूटा आशियाँ रे
साइयाँ रे, मेरे साइयाँ रे

गुरुवार, जनवरी 12, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 19 :तेरी मेरी मेरी तेरी प्रेम कहानी दो लफ़्ज़ों में बयाँ ना हो पाए.....

कभी कभी सीधे सहज बोल भी एक अच्छी धुन पर बेहतरीन गायकों द्वारा गाए जाएँ तो कानों को भले लगते हैं। वार्षिक संगीतमाला की 19 वीं पॉयदान पर भी एक ऐसा ही नग्मा है जिसे गाया है एक बार फिर राहत साहब ने, कोकिल कंठी श्रेया घोषाल के साथ। फिल्म बॉडीगार्ड का ये गीत संगीत रिलीज़ होने के कुछ ही दिन बाद लोगों की जुबाँ पर आ गया। गीत तो आप पहचान ही गए होंगे तेरी मेरी मेरी तेरी प्रेम कहानी दो लफ़्ज़ों में बयाँ ना हो पाए......। इस गीत को लिखा है गीतकार शब्बीर अहमद ने।

बॉडीगार्ड के साथ हीमेश रेशमिया ने फिल्म जगत से लिया अपना अस्थायी अवकाश खत्म कर दिया था। गायक और अभिनेता के किरदार की अपेक्षा वो संगीतकार के रूप में मुझे ज्यादा जँचे हैं। इस साल आई उनकी फिल्म दमादम में भी कुछ अच्छी धुनें थीं और बाडीगार्ड का गीत संगीत तो लोकप्रिय हुआ ही है। पर जहाँ तक हीमेश के इस गीत की बात आती है तो इसे एक प्रेरित यानि inspired कम्पोजीशन कहना ही उचित होगा। गीत में राहत का आलाप और बीच का अंतरा तो हीमेश का रचा हुआ है पर  मुखड़े की धुन, जो गीत में बार बार दोहरायी जाती है हूबहू इस रोमानियन ईसाई गीत La Betleem..से मेल खाती है।


इन प्रेरित धुनों के बारे में अपना नज़रिया मैं पहले भी अपने एक लेख में स्पष्ट कर चुका हूँ
भारतीय संगीतकार अपनी धुनों के साथ साथ पाश्चात्य धुनों को भारतीयता के रंग में ढाल कर उसे भारतीय श्रोताओं के सामने प्रस्तुत करते रहे और वाह वाही और निंदा दोनों लूटते रहे। मुझे इस तरह विदेशी धुनों पर हिंदी गीत बनाने में कोई आपत्ति नहीं है बशर्ते धुन के वास्तविक रचनाकार के नाम को पूरे क्रेडिट के साथ फिल्म और उसके एलबम में दिखाया जाए। पर पता नहीं क्यूँ हमारे नामी संगीतकार भी ऐसा करने से कतराते रहे हैं। कई बार ये संगीतकार गीतकारों की मदद से गीत को उसके आरिजनल से भी बेहतर बना देते हैं। पर उनकी ये मेहनत उसके मूल रचनाकार से बिना अनुमति व बिना क्रेडिट के धुल जाती है।
गीत पर पूरी वाह वाही लूटने के बाद जब हीमेश से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैंने गीत के कुछ अंश जरूर सलमान की बताई एक लोक धुन पर आधारित किए पर बाकी तो मेरा खुद की संगीतबद्ध रचना है। हीमेश जी, अगर गीत के क्रेडिट्स में ही इस बात का उल्लेख होता तो इससे आपका कद बढ़ता ही। ख़ैर चलिए विवादों को परे रख ये प्रेम गीत सुनते हैं।



.

रविवार, जनवरी 08, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 21 : यूँ रुह की ऊँगलियों से, खींची है तूने लकीरें..आफ़रीन

दोस्तों वार्षिक संगीतमाला की चार पॉयदानों को पार करते हम आ पहुँचे हैं, गीतमाला की 21 वीं सीढ़ी पर जहाँ का गीत है फिल्म अज़ान  से। इस गीत की धुन बनाई है संगीतकार सलीम सुलेमान ने और इसे लिखने वाले हैं अमिताभ भट्टाचार्य

अमिताभ भट्टाचार्या एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं के लिए नया नाम नहीं हैं।  वर्ष 2008 में जहाँ आमिर के लिए उनका लिखा नग्मा सरताज गीत की बुलंदियों को छू गया था वहीं पिछले साल उड़ान में लिखे उनके गीतों ने खासा प्रभावित किया था। पर गंभीर और अर्थपूर्ण लेखन से अपनी पहचान बनाने वाले अमिताभ ने इस साल हर तरह यानि हर 'जेनर' (genre) के गीत लिखे। पर थैंक्यू ,हाउसफुल, रिकी बहल.., लव का दि एण्ड जैसी तमाम फिल्मों में उन्होंने एक तरह से अपने प्रशंसकों को निराश ही किया। लोकप्रियता के मापदंडों से देखें तो इस साल उनकी सबसे बड़ी सफ़लता देलही बेली थी जिसके गीत डी के बोस के बारे में मैं अपनी राय यहाँ ज़ाहिर कर चुका हूँ। इसके आलावा फिल्मों  'रेडी' के लिए लिखा उनका आइटम सांग भी खूब बजा।

बंगाली होते हुए भी  हिंदी और उर्दू पर समान पकड़ रखने वाला ये गीतकार लखनऊ से ताल्लुक रखता है। फिल्म अज़ान में इस गीत के बोलों पर ध्यान देने से उनकी ये सलाहियत साफ नज़र आती है। इस गीत का मुखड़ा है आफ़रीन हो आफ़रीन..। अज़ान तो आप जानते ही हैं कि नमाज़ की पुकार को कहते हैं पर इससे पहले कि इस गीत के बारे में बात की जाए ये प्रश्न आपके दिल को मथ रहा होगा कि ये आफ़रीन क्या बला है? दिलचस्प बात  है कि ये शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की और उर्दू में भिन्न भिन्न अर्थों से जाना जाता है। अरबी में इसका मतलब खूबसूरत, उर्दू में बेहतरीन और फ़ारसी में भाग्यशाली होता है। वैसी गीत को पर्दे पर देखने ने सहज अंदाजा लग जाता है कि यहाँ आफ़रीन नायिका की खूबसूरती को इंगित करने के लिए प्रयुक्त हुआ है।
सच पूछिए तो अज़ान के लिए अमिताभ के लिखे इस नग्मे की हर पंक्ति से प्रेम की किरणें फूटती नज़र आती हैं। गीत का प्यारा मुखड़ा गीत के मूड को बना देता है और उसके बाद सुनने वाला गीत में व्यक्त भावनाओं के साथ बहता चला जाता है

संगीतकार सलीम सुलेमान  इस फिल्म के बारे में कहते हैं कि
हमने इसके संगीत को पवित्र रखने की कोशिश की है जिससे की इसका हर गीत एक प्रार्थना के समक्ष लगे। आप देखेंगे कि फिल्म के प्रेम गीतों में भी एक भक्ति का भाव उभर कर आता है। इसके लिए हमने गीतों की गति मंद रखी ताकि उनके अंदर के भाव श्रोताओ तक पहुँचे।

मेरे ख्याल से सलीम सुलेमान का कथन आफ़रीन के संदर्भ में शत प्रतिशत सही बैठता है खासकर जब आप इसे राहत जैसे बेमिसाल गायक की आवाज़ में सुनें। गीत के इंटरल्यूड्स में गिटार और पियानो का प्रयोग मन को सुकून देता है। तो देर किस बात की आइए लगाते हैं प्रेम की वैतरणी में डुबकी फिल्म अज़ान के इस गीत के साथ..



यूँ रुह की ऊँगलियों से
खींची है तूने लकीरें
तसवीर है रेत की वो
या ज़िंदगी है मेरी रे

जख़्मों को तूने भरा है
तू मरहमों की तरह है
आफ़रीन हो आफ़रीन...आफ़रीन हो आफ़रीन

तेरे पहलू को छू के
महकी है खुशबू में
आब ओ हवा आफ़रीन हो हो
दुनिया बदल जाए
तू जो मुझे मिल जाए
इक मर्तबा आफ़रीन आफ़रीन आफ़रीन....

ये मरहबा रूप तेरा
दिल की मिटी तिश्नगी रे
सारे अँधेरे फ़ना हों
ऐसी तेरी रोशनी रे
जख़्मों को तूने भरा है
तू मरहमों की तरह है
आफ़रीन आफ़रीन...

वैसे इस गीत के दो वर्जन हैं। फिल्म में सलीम का गाया वर्सन प्रयुक्त हुआ है।

शुक्रवार, जनवरी 06, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 22 : आईना देखा तो मेरा चेहरा बदल गया..

वार्षिक संगीतमाला की 22 वीं पॉयदान पर पिछली सीढ़ी की तरह ना तो ख्वाबों की उड़ान है और ना ही आशाओं का सूरज। यहाँ तो उदासी का आलम ही चारों ओर बिखरा पड़ा है। निराशा और हताशा के बादल छाए हैं और इन्हीं के बीच गूँज रहा है राहत फतेह अली खाँ का स्वर। ये गीत है फिल्प 'खाप' का। पिछले साल खाप पंचायत और उसकी रुढ़िवादी परंपराओं के किस्से टीवी और अख़बारों की सुर्खियों में रहे थे। कितने प्रेमी युगलों की जिंदगियाँ ऐसी पंचायतों के अमानवीय फैसलों से बदल गयीं। गीतकार पंछी जालोनवी का लिखा ये नग्मा ऐसे ही टूटे दिलों का दर्द बयाँ करता है।

इस गीत का सबसे सशक्त पहलू है राहत की गायिकी और पंछी जालोनवी के शब्द। राहत और उनकी गायिकी से तो आप सब पहले भी इस चिट्ठे पर कई बार रूबरू हो चुके हैं। आइए जानते हैं पंक्षी जालोनवी उर्फ सैयद अथर हसन के बारे में। ये नाम आपको नया भले लगे पर चंबल के बीहड़ों से सटे कस्बे जालोन से जुड़े इस गीतकार को फिल्म इंडस्ट्री में मकबूलियत 2005 में आई फिल्म 'दस' से ही मिल गई थी। पर इसे विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि साहित्य और शायरी में रुचि रखने वाले लेखक को फिल्म उद्योग 'दस बहाने...' और 'दीदार दे...' जैसे आइटम नंबरों से जानने लगा। 

जब पंछी से मैंने इस बदलाव के बारे में पूछा तो वो कहने लगे कि समझ नहीं आता कि मैं फिल्म इंडस्ट्री में आकर बिगड़ गया या आज के मापदंडों के हिसाब से पहले से बिगड़ा हुआ था। अपनी इस छवि से निकलने की ज़द्दोज़हद पंछी करते रहे हैं क्यूंकि उन्हें अपनी शायरी पे भरोसा है..ज़रा उनकी इन पंक्तियों को देखें

बोल कड़वे हो तो जुबाँ में रख
ऐसे तीरों को तू कमान में रख
पर तो काटे हैं वक़्त ने 'पंछी'
कुछ भरोसा मगर उड़ान में रख

इस साल पंछी के लिखे रा वन के गीत काफी चर्चित हुए हैं। रा वन में उनका लिखा नग्मा बहे नैना , भरे मोरे नैना के बोल तो वाकई काबिलेतारीफ़ हैं पर मेरी संगीतमाला में स्थान बना पाया फिल्म 'खाप' का ये गीत। जालोनवी की शायरी के रंग राहत की आवाज़ से और निखर जाते हें जब राहत गाते हैं
बादल मेरी ज़मीन पे आकर यूँ थम गए
आई ज़रा जो धूप तो साया बदल गया

या फिर

उलझी रही सवालों में जीने की हर खुशी
जब बुझ गए दीये तो मिली है रोशनी
आँखों में नींद आई तो सपना बदल गया

नायक के दिल की उदासी इन बिंबों से और जीवंत हो उठती है। हालांकि गायिकी और बोल की तुलना में अनुज कप्पो का संगीत उतना दमदार नहीं लगता। खासकर खूबसूरत अंतरों के बीच के इंटरल्यूड्स और बेहतर हो सकते थे। तो आइए सुनें फिल्म खाप का ये गीत..



आईना देखा तो मेरा चेहरा बदल गया
देखते ही देखते क्या क्या बदल गया
बादल मेरी ज़मीन पे आकर यूँ थम गए
आई ज़रा जो धूप तो साया बदल गया

उलझी रही सवालों में जीने की हर खुशी
जब बुझ गए दीये तो मिली है रोशनी
आँखों में नींद आई तो सपना बदल गया
देखते ही देखते क्या क्या बदल गया

आईना देखा तो मेरा चेहरा बदल गया

क़ैद किये थे ख़्वाब किसी ने नींद किसी ने हारी
हार गयी है हार कहीं पर जीत कहीं पर हारी
तरह तरह से खूब वक़्त भी भेष बदल के आया
मिली मुझे ना धूप आज की मिला ना कल का साया

मंज़िल करीब आई तो रस्ता बदल गया
देखते ही देखते क्या क्या बदल गया
आईना देखा तो मेरा चेहरा बदल गया

गुरुवार, मार्च 17, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - सरताज गीत पर बह रही है गुलज़ार विशाल व राहत की त्रिवेणी...

तो भाइयों एवम बहनों वार्षिक संगीतमाला के ढाई महिने के सफ़र के बाद वक़्त आ गया है सरताजी बिगुल बजाने का। यहाँ संगीतकार व गीतकार की वही जोड़ी है जिसने पिछले साल भी मिलकर सरताज गीत का खिताब जीता था। वैसे तो पहली पाँच पॉयदानों के गीत अपने आप में कमाल हैं पर पहली पॉयदन का ये गीत हर लिहाज़ में अलहदा है। बाकी पॉयदानों के गीतों को ऊपर नीचे के क्रम में सजाने में मुझे काफी मशक्क़त करनी पड़ी थी। पर पहली सीढ़ी पर विराजमान इश्क़िया फिल्म का ये गीत कभी अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। इस गीत के बोलों का असर देखिए कि साल पूरा हुआ नहीं कि गीत के मुखड़े को लेकर एक नई फिल्म रिलीज़ भी हो गई।


जी हाँ इस साल एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला का सरताज बनने का गौरव हासिल किया है गुलज़ार के लिखे, विशाल भारद्वाज द्वारा संगीतबद्ध और राहत फतेह अली खाँ द्वारा गाए गीत दिल तो बच्चा है जी ने..। इस गीत के बारे में नसीर भाई (जिन पर ये गाना फिल्माया गया है)की टिप्पणी दिलचस्प है. नसीर कहते हैं..
"गाने का काम है फिल्म में मूड को क्रिएट करना। जो जज़्बात उस वक़्त हावी हैं फिल्म में, उसको रेखांकित (underline) करना। मुझे नहीं मालूम था कि ये गाना फिल्म में बैकग्राउंड में होगा कि मैं इसे गाऊँगा। एक तरह से ये अच्छा ही हुआ कि मैंने गाया नहीं क्यूँकि इससे उससे उस आदमी (किरदार) के दिल के ख़्यालात और ज़ाहिर हुए।"

गुलज़ार के बारे में नसीर कहते हैं 
"आदमी उतना ही जवान या बूढ़ा होता है जितना आप उसे होने देते हैं और गुलज़ार भाई दिल से नौजवान हैं। बहुत कुछ ऐसा है गुलज़ार में जो आदमी उनसे अपेक्षा नहीं कर सकता और यही एक सच्चे कलाकार की निशानी है।"

सच, कौन नहीं जानता कि प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती। और ये भी कि प्रेम में पड़ जाने के बाद हमारा मस्तिष्क मन का दास हो जाता है। पर उन सर्वविदित अहसासों को गुलज़ार इतनी नफ़ासत से गीत की पंक्तियों में उतारते हैं कि सुनकर मन ठगा सा रह जाता है।

गुलज़ार की कलाकारी इसी बात में निहित हैं कि वो हमारे आस पास घटित होने वाली छोटी से छोटी बात को बड़ी सफाई से पकड़ते हैं । अब इसी गीत में प्रेम के मनोविज्ञान को जिस तरह उन्होंने समझा है उसकी उम्मीद सिर्फ गुलज़ार से ही की जा सकती है। अब गीत की इस पंक्ति को लें

हाए जोर करें, कितना शोर करें
बेवजा बातों पे ऐं वे गौर करें

बताइए इस 'ऐ वे' की अनुभूति तो हम सब ने की है। किसी की बेवजह की बकवास को भी मंत्रमुग्ध होते हुए सुना है। बोल क्या रहा है वो सुन नहीं रहे पर उसकी आवाज़ और अदाएँ ही दिल को लुभा रही हैं और मन खुश.. बहुत खुश.. हुआ जा रहा है। पर क्या कभी सोचा था कि कोई गीतकार प्रेम में होने वाले इन सहज से अहसासों को गीत में ढालेगा?

गुलज़ार की किसी जज़्बे को देखने और महसूस करने की अद्भुत क्षमता तो है ही पर साथ ही उनके बिंब भी बड़े प्रभावशाली होते हैं।मुखड़े में ढलती उम्र का अहसास दिलाने के लिए उनका कहना दाँत से रेशमी डोर कटती.. नहीं...मन को लाजवाब कर देता है।

संगीतकार विशाल भारद्वाज ने इस गीत का संगीत एक रेट्रो की फील देता है। ऐसा लगता है कि आप साठ के दशक का गाना सुन रहे हैं। वाद्य यंत्रों के नाम पर कहीं हल्का सा गिटार तो कहीं ताली को संगत देता हुआ हारमोनियम सुनाई दे जाता है। राहत फतेह अली खाँ को अक्सर संगीतकार वैसे गीत देते हैं जिसमें सूफ़ियत के साथ ऊँचे सुरों के साथ खेलने की राहत की महारत इस्तेमाल हो। पर वहीं विशाल ने इससे ठीक उलट सी परिस्थिति वाले (झिझकते शर्माते फुसफुसाते से गीत में) में राहत का इस्तेमाल किया और क्या खूब किया। तो आइए पहले सुनें और गुनें ये गीत



ऐसी उलझी नज़र उनसे हटती नहीं...
दाँत से रेशमी डोर कटती.. नहीं...
उम्र कब की बरस के सुफेद हो गयी
कारी बदरी जवानी की छटती नहीं


वर्ना यह धड़कन बढ़ने लगी है
चेहरे की रंगत उड़ने लगी है
डर लगता है तन्हा सोने में जी

दिल तो बच्चा है जी...थोड़ा कच्चा है जी

किसको पता था पहलु में रखा
दिल ऐसा पाजी भी होगा
हम तो हमेशा समझते थे कोई
हम जैसा हाजी ही होगा

हाय जोर करें, कितना शोर करें
बेवजा बातों पे ऐं वे गौर करें

दिल सा कोई कमीना नहीं..

कोई तो रोके , कोई तो टोके
इस उम्र में अब खाओगे धोखे
डर लगता है इश्क़ करने में जी


दिल तो बच्चा है जी
ऐसी उदासी बैठी है दिल पे
हँसने से घबरा रहे हैं
सारी जवानी कतरा के काटी
बीड़ी में टकरा गए हैं

दिल धड़कता है तो ऐसे लगता है वोह
आ रहा है यहीं देखता ही ना हो
प्रेम कि मारें कटार रे

तौबा ये लम्हे कटते नहीं क्यूँ
आँखें से मेरी हटते नहीं क्यूँ
डर लगता है तुझसे कहने में जी

दिल तो बच्चा है जी,थोड़ा कच्चा है जी

पर गीत को पूरी तरह महसूस करना है इस गीत का वीडिओ भी देखिए। गीत का फिल्मांकन बड़ी खूबसूरती से किया गया है। नसीर मुँह से कुछ नहीं बोलते पर उनकी आँखें और चेहरे के भाव ही सब कुछ कह जाते हैं..




इसी के साथ वार्षिक संगीतमाला का ये सालाना आयोजन यहीं समाप्त होता है। जो साथी इस सफ़र में साथ बने रहे उनका बहुत आभार।  

आप सब की होली रंगारंग बीते इन्हीं शुभकामनाओं के साथ..

गुरुवार, मार्च 10, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : सजदा तेरा सजदा, दिन रैन करूँ .ना ही चैन करूँ..

वार्षिक संगीतमाला का सरताज बिगुल बजने में अब सिर्फ दो पॉयदानों की दूरी है। यानि आज है तीसरी पॉयदान की बारी। गीतमाला की इस सीढ़ी पर जो गीत है उसकी खास बात ये है कि ये गीतकार का रचा पहला गीत है। गीतकार वही जो नूर ए ख़ुदा के साथ आपसे बीसवीं पॉयदान पर मुख़ातिब हुए थे। जी हाँ फिल्म My Name Is Khan का लिखा गीत सज़दा निरंजन अयंगार का बतौर गीतकार रचा पहला गीत है।

निरंजन के कच्चे गीतों से पक्के गीतकार बनने का वाक़या मैं आपसे पहले ही बाँट चुका हूँ। संगीतकार शंकर अहसान लॉए ने फिल्म की पटकथा के हिसाब से एक ऐसे गीत की दरकार थी जिसमें प्रेम के साथ सूफ़ियत का रंग भी हो और जिसकी शुरुआत सज़दा जैसे शब्द से हो। निरंजन को इसी आधार पर एक कच्चे गीत को लिखने का काम सौंपा गया। निरंजन ने जो गीत रचा उसे जब करण ज़ौहर घर ले के गए तो गीत के बोल सुन कर उनकी माँ ने पूछा क्या इसे जावेद साहब ने लिखा है? बाद में करण और शंकर एकमत हुए कि जो गीत निरंजन ने लिखा है वो ही फिल्म में जाएगा।

पर क्या आपके मन में ये प्रश्न नहीं आ रहा कि एक तमिल होते हुए भी निरंजन अयंगार ने अपने पहले कुछ गीतों में ही सूफ़ियत का इतना प्यारा रंग कैसे डाल दिया? दरअसल निरंजन को सूफ़ी और उर्दू कवियों की रचनाएँ शुरु से भाती रही हैं और वे बुल्ले शाह, गुलाम फ़रीद, ज़िगर मुरादाबादी और अहमद फ़राज़ जैसे शायरों को निरंतर पढ़ते रहे हैं।

सज़दा एक ऍसा गीत है जिसका संगीत संयोजन और गायिकी अव्वल दर्जे की है। गीत शुरु होता है ॠचा शर्मा के गहरे स्वर में। ॠचा प्रेम में अपने रोम रोम डूब जाने की बात खत्म करती ही हैं कि राहत अपनी रुहानी आवाज़ में सज़दा शब्द को इस तरह उठाते हैं कि दिल वाह वाह कर उठता है। पर जब इन गायकों के सुरीले स्वर के बाद कोरस उभरता है ये गीत एक अलग ही धरातल पर पहुँच जाता है और क्या आम क्या खास सभी संगीतप्रेमी इसे गुनगुनाने नज़र आते हैं।

शंकर अहसान लॉए ने इंटरल्यूड्स में सिंथेसाइजर और तबले के संयोजन से जो धुन निकाली है वो सहज ही आपका ध्या

न खींचती है। शंकर इस गीत के बारे में कहते हैं कि एक सहज गीत को संगीतबद्ध करना मुश्किल होता है। खासकर तब जब वो दिल को छूते वो एक सही और प्यारी सी बात भी कहता चले। पर इस मुश्किल काम को निभाने में शंकर अहसान लॉए की जोड़ी सफल रही है।

आइए सुनें ये नग्मा जो प्रेम की बात को एक आध्यात्मिक रंग देता हुआ चला जाता है...



रोम रोम तेरा नाम पुकारे
एक हुए दिन रैन हमारे
हम से हम ही छिन गए हैं
जब से देखे नैन तिहारे
सजदा ….

तेरी काली अँखियों से ज़िंद मेरी जागे
धड़कन से तेज दौडूँ, सपनों से आगे
अब जान लुट जाए, ये ज़हाँ छूट जाए
संग प्यार रहे, मैं रहूँ ना रहूँ

सजदा तेरा सजदा, दिन रैन करूँ .ना ही चैन करूँ
सजदा तेरा सजदा, लख बार करूँ मेरी जान करूँ

अब जान ....सजदा तेरा सजदा....

रांझणा.. नैनो के तीर चल गए..
साजना.. साँसों से दिल सिल गए…
पलकों में छुपा लूँ, तेरा सजदा करूँ
सीने में समा लूँ, दिन रैन करूँ
पलकों में छुपा लूँ, सीने में समा लूँ
तेरे अंग अंग रंग मेरा बोले
अब जान ....सजदा तेरा सजदा....

बेलिया…क्या हुआ जो दिल खो गया
माहिया.. इश्क़ में ख़ुदा मिल गया
जरा अँख से पिला दे..तेरा सजदा करूँ
जरा ख़्वाब सजा दे..ओ दिन रैन करूँ
अब जान ....सजदा तेरा सजदा....
तेरी काली ... ना रहूँ
सजदा तेरा सजदा.....

वैसे इस गीत के दौरान शाहरुख और काजोल की शादी को फिल्माया जाना था। शूटिंग स्थल था कॉलेज आफ फाइन आर्टस कैलीफोर्निया। पर शादी के लिए सजावट के लिए रंग बिरंगे कपड़े से पंडाल सजाना था। पर शूटिंग के दौरान हवा इतनी तेज हो गई कि शादी को एक बड़े पेड़ के नीचे शूट करना पड़ा।

गुरुवार, मार्च 03, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 6 : तेरे मस्त मस्त दो नैन..मेरे दिल का ले गये चैन

कुछ साल पहले की बात है जनाब अमज़द इस्लाम अमज़द साहब का इक शेर पढ़ा था। सालाना संगीतमाला की छठी पॉयदान पर विराजमान इस गीत को देख कर वही शेर बरबस याद आ जाता है

जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक
आँखों में तेरी डूब के देखेंगे किसी दिन

सच किसी भी चेहरे की जान होती हैं ये आँखें। इसीलिए शायरों की कलम जब भी इनकी तारीफ़ में चली है..चलती ही गई है। और नतीजा ये है कि

इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं
इन आँखों के वाबस्ता अफ़साने हजारों हैं

उन्हीं अफ़सानों को और समृद्ध करता फैज़ अनवर का लिखा फिल्म दबंग का ये गीत ऐसे ही दो मनचले शोख़ नयनों की कहानी कह रहा है। वैसे भी नैनों के वार से आशिक़ जन्म जन्मांतर से घायल होते रहे हैं। जगजीत जी की गाई ग़ज़ल की वो पंक्तियाँ याद है ना आपको

उनकी इक नज़र काम कर गई
होश अब कहाँ होश ए यार में

दबंग का ये गीत साल के सबसे चर्चित में से एक रहा है और इसकी मुख्य वज़ह है साज़िद वाज़िद की बेहद कर्णप्रिय धुन और राहत की गायिकी। वैसे क्या आपको पता है कि इन भाइयों की संगीतकार जोड़ी में कौन बड़ा है और कौन छोटा? चलिए आपकी मुश्किल मैं आसान किए देता हूं। बड़े हैं साज़िद जिन्हें रिदम में खास महारत हासिल है वहीं छोटे भाई वाज़िद शास्त्रीय संगीत सीखे हुए गायक हैं। संगीत इनके परिवार में कई पीढ़ियों से जुड़ा रहा है। इनके पिता उस्ताद शराफ़त खाँ माने हुए तबला वादक हैं।

इस जोड़ी ने जिस तरह पूरे गीत में तबले और इंटरल्यूड्स में गिटार का इस्तेमाल किया है वो एक बार सुन कर ही मन मोहित हो जाता है। पर गीत को लोकप्रियता के इस मुकाम तक पहुँचाने में राहत की गायिकी का भी बराबर का हाथ रहा है। वैसे इस गीत को राहत से गवाने के लिए साज़िद वाज़िद को काफी मशक्क़त उठानी पड़ी थी। मुंबई में जब रिकार्डिंग करने का समय आया तो राहत को भारत आने का वीसा नहीं मिल पाया। फिर गीत की रिकार्डिंग पाकिस्तान में हुई तो उसकी गुणवत्ता से साज़िद वाज़िद संतुष्ट नहीं हुए। अंत में साज़िद वाज़िद ने राहत को लंदन बुलाकर रिकार्डिंग करवाई।

उनकी गायिकी पर इतना विश्वास रखने वाले इन संगीतकारों के इस परिश्रम को राहत ने व्यर्थ जाने नहीं दिया और सम्मिलित प्रयासों से जो नतीजा निकला वो गीत के बाजार में आते ही हर संगीतप्रेमी शख़्स के होठों पर था। तो आइए एक बार फिर से आनंद लें इस गीत का.



ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में... हाए, नैनों में..... हाए...
ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में बसियाँ जैसे नैन ये तेरे
नैनों में बसियाँ जैसे नैन ये तेरे
तेरे मस्त मस्त दो नैन
मेरे दिल का ले गये चैन
मेरे दिल का ले गये चैन
तेरे मस्त मस्त दो नैन

पहले पहल तुझे देखा तो दिल मेरा
धड़का हाए धड़का, धड़का हाए
जल जल उठा हूँ मैं, शोला जो प्यार का
भड़का हाए भड़का, भड़का हाए
नींदों में घुल गये हैं सपने जो तेरे
बदले से लग रहे हैं अंदाज़ मेरे
बदले से लग रहे हैं अंदाज़ मेरे

तेरे मस्त मस्त दो नैन...

माही बेआब सा, दिल ये बेताब सा
तडपा जाए तडपा, तडपा जाए
नैनों की झील में, उतरा था यूँ ही दिल,
डूबा जाए डूबा, डूबा जाए
होशो हवास अब तो खोने लगे हैं
हम भी दीवाने तेरे होने लगे हैं
हम भी दीवाने तेरे होने लगे हैं
तेरे मस्त मस्त दो नैन...

ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में बंसिया जैसे नैन ये तेरे
नैनों में बंसिया जैसे नैन ये तेरे
तेरे मस्त मस्त दो नैन.....

और गीत का वीडिओ जो सलमान और सोनाक्षी सिन्हा पर फिल्माया गया है ये रहा।



सोनाक्षी कहती हैं कि वो सिर्फ सपने में सोचती थी कि उनकी आँखों को केंद्र में रखकर कोई गीत फिल्माया जाए। और देखिए उनका सपना कितनी जल्दी पूरा हो गया। चलते चलते उनके नयनों के लिए तो बस यही कहना चाहूँगा कि

डूब जा उन हसीं आँखों में फराज़
बड़ा हसीन समंदर है खुदकुशी के लिये

अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

सोमवार, फ़रवरी 28, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 7: सुरीली अँखियों वाले, सुना है तेरी अँखियों से बहती हैं नींदें...और नींदों में सपने

अँखियाँ भी क्या सुरीली हो सकती हैं? सच कहूँ तो कभी आँखों के सुरीलेपन को जाँचने की कोशिश की ही कहाँ मैंने? शायद उसके लिए गुलज़ार जैसी शायराना तबियत की जरूरत थी। हाँ ये जरूर है कि जब से गुलज़ार ने आँखों के लिए इस विशेषण का इस्तेमाल अपने लिखे इस गीत में कर दिया है तबसे मैं भी एक जोड़ी सुरीले नयनों की तलाश में हूँ। देखूँ ढूँढ पाता हूँ या नहीं :)!

शायरों की यही तो खासियत है कि ऐसे ऐसे रूपकों को इस्तेमाल करते हैं जिन्हें सुन कर सुनने वाला पहले तो ये सोचता है कि ये ख़्याल उसके मन में पहले क्यूँ नहीं आया और फिर लिपटता चला जाता है शायर द्वारा बिछाए गए कल्पनाओं के जाल में। वार्षिक संगीतमाला की सातवीं पॉयदान पर फिल्म वीर का ये गीत हृदय में कुछ ऐसा ही अहसास दे कर चला जाता है।


साज़िद वाज़िद वैसे तो बतौर संगीतकार पिछले बारह सालों से फिल्म उद्योग से जुड़े हैं। पर उनके द्वारा रचे गए पहले के संगीत में ऍसी कोई बात दिखती नहीं थी कि उन्हें संगीतकारों की भीड़ से अलग दृष्टि से देखा जाए। इस लिए जब निर्देशक अनिल शर्मा को अंग्रेजी राज के ज़माने की इस ऍतिहासिक प्रेम कथा के संगीत रचने के लिए साज़िद वाज़िद का नाम सलमान खाँ द्वारा सुझाया गया तो वो मन से इसके लिए तैयार नहीं थे। पर साज़िद वाज़िद की जोड़ी ने अपने बारे में उनकी सोच को बदलने पर मज़बूर कर दिया। गीतकार गुलज़ार जिन्होंने पहली बार साज़िद वाज़िद के साथ इस फिल्म में काम किया ने पिछले साल स्क्रीन पत्रिका में दिये गए एक साक्षात्कार में कहा था कि

साज़िद वाज़िद बेहद प्रतिभाशाली हैं। इन्हें इनके हुनर के लिए जो सम्मान मिलना चाहिए वो अब तक उन्हें नहीं मिला। शायद इस फिल्म के बाद लोगों में वो अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हों। पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे प्रभावित कर दिया। उन्नीसवीं शताब्दी के ब्रिटिश राज में उपजी इस प्रेम कहानी को पाश्चात्य और लोक धुनों के जिस सम्मिश्रण की आवश्यकता थी वो इन दोनों ने भली भांति पूरी की है।

खुद भाइयों की ये संगीतकार जोड़ी मानती हैं कि ये फिल्म उन्हें सही समय पर मिली। अगर कैरियर की शुरुआत में ऐसी फिल्म मिलती तो उसके साथ वे पूरा न्याय नहीं कर पाते। इस फिल्म को करते हुए उन्होंने अपने एक दशक से ज्यादा के अनुभव का इस्तेमाल किया। संगीत के हर टुकड़ों को रचने के लिए पूरा वक्त लिया और सही असर पैदा करने के लिए गीत की 'लाइव' रिकार्डिंग भी की।

गिटार और पियानो की पार्श्व धुन से शुरु होते इस गीत को जब गुलजार के बहते शब्दों और राहत की सधी हुई गायिकी का साथ मिलता है तो मूड रोमांटिक हो ही जाता है। गीत के पीछे के संगीत संयोजन में कम से कम वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल हुआ है पर उसकी मधुरता और बहाव गीत की भावनाओं के अनुरूप है। फिल्म के पश्चिमी परिवेश की वजह से गीत का एक अंतरा अंग्रेजी में लिखा गया है जिसे सूजन डिमेलो ने अपनी आवाज़ से सँवारा है।

तो आइए डूबते हैं गुलज़ार के शब्दों के साथ राहत जी के द्वारा गाए हुए इस बेमिसाल गीत में..



सुरीली अँखियों वाले, सुना है तेरी अँखियों से
बहती हैं नींदें...और नींदों में सपने
कभी तो किनारों पे, उतर मेरे सपनों से
आजा ज़मीन पे और मिल जा कहीं पे
मिल जा कहीं, मिल जा कहीं समय से परे
समय से परे मिल जा कहीं
तू भी अँखियों से कभी मेरी अँखियों की सुन
सुरीली अँखियों वाले, सुना है तेरी अँखियों से...

जाने तू कहाँ है
उड़ती हवा पे तेरे पैरों के निशां देखे
ढूँढा है ज़मीं पे छाना है फ़लक पे
सारे आसमाँ देखे
मिल जा कहीं समय से परे
समय से परे मिल जा कहीं
तू भी अँखियों से कभी मेरी अँखियों की सुन

सुरीली अँखियों वाले सुना दे ज़रा अँखियों से

Everytime I look into your eyes, I see my paradise
The stars are shining right up in the sky, painting words or designs
Can this be real, are you the one for me
You have captured my mind, my heart, my soul on earth
You are the one waiting for
Everytime I look into your eyes, I see my paradise
Stars are shining right up in the sky, painting words or designs

ओट में छुप के देख रहे थे,
चाँद के पीछे, पीछे थे
सारा ज़हाँ देखा, देखा ना आँखों में
पलकों के नीचे थे
आ चल कहीं समय से परे
समय से परे चल दे कहीं
तू भी अँखियों से कभी मेरी अँखियों की सुन



अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

रविवार, फ़रवरी 27, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 8 : जब 'राहत' करवाते हैं सीधे ऊपरवाले से बात-.तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…

चलिए बढ़ते हें वार्षिक संगीतमाला की आठवीं पॉयदान पर। हम सब के जीवन में एक वक़्त ऐसा भी आता है जब हर बाजी आपके खिलाफ़ पलटती नज़र आती है। संगी साथी सब आपका साथ एक एक कर के छोड़ने लगते हैं। हताशा और अकेलेपन की इस घड़ी में आगे सब कुछ धुँधला ही दिखता है। आठवीं पॉयदान का गीत एक ऐसा गीत है जो ज़िंदगी के ऐसे दौर में विश्वास और आशा का संचार ये कहते हुए करता है मुश्किल के इन पलों में और कोई नहीं तो वो ऊपरवाला तुम्हारे साथ है।

फिल्म 'अनजाना अनजानी' के इस गीत को गाया है राहत फतेह अली खाँ ने और संगीत रचना है विशाल शेखर की। विशाल शेखर को इस गीत को बनाने के पहले निर्देशक ने सिर्फ इतना कहा था कि आपको ऐसा गीत बनाना है जिसमें भगवान ख़ुद इंसान को अपने होने का अहसास दिला रहे हैं। विशाल शेखर की जोड़ी के शेखर रवजियानी ने झटपट मुखड़ा रच डाला तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…। पर इस मुखड़े के बाकी अंतरे विशाल ददलानी ने लिखे हैं।

विशाल शेखर की ज्यादातर संगीतबद्ध धुनें हिंदुस्तानी और वेस्टर्न रॉक के सम्मिश्रण से बनी होती हैं। दरअसल जहाँ शेखर ने विधिवत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली है वहीं विशाल मुंबई के रॉक बैंड पेंटाग्राम के गायक रहे हैं। इस अलग अलग परिवेश से आने का प्रभाव उनके संगीत पर स्पष्ट दिखता है।


पर जहाँ पिछले गीत में इरशाद क़ामिल के बोलों को मैंने गीत की जान माना था यहाँ वो श्रेय पूरी तरह से राहत फतेह अली खाँ को जाता है। उन्होंने पूरे गीत को इतना डूब कर गाया है कि श्रोता गीत की भावनाओं से अपने आपको एकाकार पाता है। मुखड़े की उनकी अदाएगी इतनी जबरदस्त है कि उनकी आवाज़ की प्रबलता आपको भावविभोर कर देती है और मन अपने आप से गुनगुनाने लगता है तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…। विशाल शेखर के गिटार के इंटरल्यूड्स मन को सुकून देते हैं। राहत से हर संगीतकार कोई सरगम कोई आलाप अपने गीतों में गवाता ही है। राहत यहाँ भी अपनी उसी महारत का बखूबी प्रदर्शन करते हैं।

तो आइए सुनें इस गीत को




धुँधला जाएँ जो मंज़िलें, इक पल को तू नज़र झुका
झुक जाये सर जहाँ वहीं, मिलता है रब का रास्ता
तेरी किस्मत तू बदल दे, रख हिम्मत, बस चल दे
तेरे साथ ही मेरे कदमों के हैं निशां

तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…
ख़ुद पे डाल तू नज़र, हालातों से हार कर कहाँ चला रे
हाथ की लकीर को मोड़ता मरोड़ता है, हौसला रे
तो ख़ुद तेरे ख्वाबों के रंग में तू अपने ज़हां को भी रंग दे
कि चलता हूं मैं तेरे संग में, हो शाम भी तो क्या
जब होगा अंधेरा, तब पाएगा दर मेरा
उस दर पे फिर होगी तेरी सुबह
तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…

मिट जाते हैं सब के निशां, बस एक वो मिटता नहीं, हाय
मान ले जो हर मुश्किल को मर्ज़ी मेरी, हाय
हो हमसफ़र ना तेरा जब कोई, तू हो जहाँ रहूँगा मैं वहीं
तुझसे कभी ना एक पल भी मैं जुदा
तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…

फिल्म में ये गीत रणवीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा पर फिल्माया गया है।



अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

गुरुवार, फ़रवरी 24, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 9 : मन के 'मत' पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा

वार्षिक संगीतमाला की नवीं पॉयदान पर एक बार फिर आ रहे हैं जनाब राहत फतेह अली खाँ । राहत इधर कुछ गलत कारणों से समाचार पत्रों में सुर्खियाँ बटोर रहे थे। अपनी रूहानी आवाज़ से जो शख़्स मन को शांत और मुदित कर देता है उससे इस तरह के आचरण की उम्मीद कम से कम हम और आप जैसे प्रशंसक तो नहीं ही कर सकते। आशा है राहत इस घटना से सबक लेंगे और भविष्य में जब भी उनकी चर्चा हो तो सिर्फ उनकी गायिकी के लिए...

जब राहत का पिछला गीत सोलहवीं पॉयदान पर बजा था तो मेंने आपसे कहा था कि इस साल की वार्षिक संगीतमाला में राहत ने अपने गीतों से जो धूम मचाई है उसकी मिसाल पहले की किसी भी संगीतमाला में देखने को नहीं मिली। राहत की गायिकी के दबदबे का अंदाज़ आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस साल के प्रथम दस गीतों में से पाँच उनके द्वारा गाए नग्मे हैं।

तो अब बात करें नवीं पॉयदान के इस गीत की जो लिया गया है फिल्म 'आक्रोश' से। अनुपम अमोद की आवाज़ में इस फिल्म का एक और प्यारा गीत सौदा उड़ानों का है या आसमानों का है, ले ले उड़ानें मेरी.. आप पहले ही संगीतमाला में सुन चुके हैं। आक्रोश का संगीत दिया है प्रीतम ने और लिखा है इरशाद क़ामिल ने। दरअसल राहत की गायिकी तो अपनी जगह है ही पर इस गीत की जान है इरशाद क़ामिल के बोल। रूमानियत भरे गीतों में इरशाद कमाल करते हैं वो तो आप पिछले सालों में जब वी मेट, लव आज कल, अजब प्रेम की गजब कहानी और इस साल Once Upon A Time In Mumbai सरीखी फिल्मों में पहले ही देख चुके हैं। पर आक्रोश के इस गीत में इरशाद गीत के बोलों में एक दार्शनिक चिंतन का भी सूत्रपात करते हैं। वैसे तो गीत के हर अंतरे में इरशाद अपनी लेखनी से चमत्कृत करते हैं पर खास तौर पर उनकी लिखी ये पंक्तियाँ मन को लाजवाब सा कर देती हैं।

"..मन से थोडी अनबन रखना,
मन के आगे दर्पण रखना
मनवा शकल छुपा लेगा.."

इरशाद क़ामिल आज हिंदी फिल्म संगीत में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाते जा रहे हैं। पर अगर उनके पिता की चलती तो वो आज इंजीनियरों की जमात में खड़े होते। रासायन शास्त्र के प्रोफेसर के पुत्र होने के नाते उन्हें कॉलेज में गणित और विज्ञान विषयों को जबरन चुनना पड़ा। अरुचिकर विषयों का साथ और उसके साथ चार चार ट्यूशन करने की बाध्यता इरशाद को नागवार गुज़री। कॉलेज की उस व्यस्त दिनचर्या में क़ामिल कुछ सुकून की तलाश में रंगमंच में रुचि लेने लगे। साल के अंत में जब नतीजे निकले तो वो गणित और भौतिकी में फेल हो गए थे। क़ामिल के पिता के लिए वो निराशा का दिन था पर क़ामिल इसे अपनी जिंदगी की सबसे अच्छी असफलताओं में गिनते हैं क्यूँकि इस असफलता ने ही उन्हें जीवन की नई दिशा प्रदान की।

वैसे तो मानव मन की विचित्रताओं पर पहले भी गीत लिखे जा चुके हैं और इरशाद साहब का ये गीत उसी कड़ी में एक उल्लेखनीय प्रयास है। प्रीतम संगीत के साथ यहाँ ज्यादा प्रयोग नहीं करते और गीत के फक़ीराना मूड को अपनी धुन से बरक़रार रखते हैं।

वैसे मन के भटकाव के बारे में सब जानते समझते भी क्या हम इसकी इच्छाओं के आगे घुटने नहीं टेक देते, इसके दास नहीं बन जाते। खासकर तब जब हमारे हृदय में किसी के प्रति प्रेम की वैतरणी बहने लगती है। तो आइए सुनते हैं इस अर्थपूर्ण गीत को राहत जी के स्वर में..



इस गीत को आप यहाँ भी सुन सकते हैं

इश्क मुश्क पें जोर ना कोई
मनसे बढकर चोर ना कोई
बिन आग बदन सुलगा देगा
ये रग रग रोग लगा देगा


मन के 'मत' पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा
मन के 'मत' पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा
माशूक़ मोहल्ले में जाके बेसब्रा रोज दगा देगा
हो. मन की मंडी, मन व्यापारी, मन ही मन का मोल करे
हा हा हा...
भूल भाल के नफ़ा मुनाफा, नैन तराजू तोल करे
नैन तराजू तोल करे
खुद ही मोल बढा दे मनवा, खुद ही माल छुपा दे मनवा
खुद ही भाव गिरा देगा


मन के मत पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा


मन बहकाए, मन भटकाए, मन बतलाए सौ रस्ते
मन की मत में प्यार हैं मँहगा, प्राण पखेरू हैं सस्ते
प्राण पखेरू हैं सस्ते
मन से थोडी अनबन रखना, मन के आगे दर्पण रखना
मनवा शकल छुपा लेगा
मन के मत पे चलिओ..

चलते चलते इरशाद क़ामिल की लिखी इन पंक्तियों के साथ आपको छोड़ना चाहूँगा

जो सामने है सवाल बनके…
कभी मिला था ख़याल बनके…
देगी उसे क्या मिसाल दुनिया …
जो जी रहा हो मिसाल बनके

इरशाद बतौर गीतकार एक मिसाल बन कर उभरें, मेरी उनके लिए यही शुभकामनाएँ हैं..

अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

गुरुवार, फ़रवरी 03, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 16 : तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी...

वार्षिक संगीतमाला की सोलहवीं पॉयदान पर इस साल पहली बार तशरीफ ला रहे हैं जनाब राहत फतेह अली खाँ साहब। राहत ने इस साल की गीतमाला पर कितनी गहरी छाप छोड़ी है वो आप गीतमाला के सफ़र के आख़िर तक पहुँचते पहुँचते देख ही लेंगे। फिल्म पाप के गीत 'लगन लागी तुमसे मन की लगन' से मुंबईया फिल्मों में अपने गीतों का सफ़र शुरु करने वाले राहत आज अपनी बेमिसाल गायिकी के ज़रिए हर संगीतकार की पहली पसंद बन गए हैं। पर इस पसंद की वज़ह क्या है?

दरअसल सूफ़ी गायिकी में महारत रखने वाले राहत ने जब आपनी आवाज़ हिंदी फिल्मों में देनी शुरु की तभी संगीतकारों को समझ आ गया था कि इस सुरीली आवाज़ के ताने बाने में ऐसे गीत रचे जा सकते हैं जो तब तक मौज़ूद गायकों से नहीं गवाए जा सकते थे। आज हर संगीतकार गायिकी में उनकी आवाज़ के कमाल, लंबी पहुँच, ऊँचे सुरों की जबरदस्त पकड़ के हिसाब से गीत तैयार करता है। राहत उन गीतों में अपनी ओर से भी कुछ नवीनता लाते हैं। अलग अलग तरह से गाए एक ही गीत को संगीतकारों को वे भेज देते हैं और संगीतकार फिल्म की स्थितियों के हिसाब से उनमें से एक का चुनाव कर लेते हैं। अगर आपको सांगीतिक समझ रखने वाला इतना गुणी फ़नकार मिल जाए तो फिर आपको क्या चाहिए।

सोलहवीं पॉयदान पर फिल्म Once Upon a Time in Mumbai के गीत को गीतमाला के इस मुकाम तक पहुँचाने में भी राहत की गायिकी का बहुत बड़ा हाथ है। साथ ही संगीतकार प्रीतम की भी तारीफ करने होगी कि उन्होंने इस गीत में राहत की आवाज़ के साथ कोरस का बेहतरीन इस्तेमाल किया है।

पाया मैंने पाया तुम्हें
रब ने मिलाया तुम्हें
होंठों पे सजाया तुम्हें
नग्मे सा गाया तुम्हें
पाया मैंने पाया तुम्हें
सब से छुपाया तुम्हे
सपना बनाया तुम्हें
नींदों में बुलाया तुम्हें

कोरस की तेज रफ्तार और कर्णप्रिय गायिकी बस आपका मूड एकदम से मस्त कर देती है। विज्ञान के असफल विद्यार्थी से लेकर हिंदी कविता में डॉक्टरेट की उपाधि का सफ़र तय करने वाले इरशाद क़ामिल जब गीतकार होंगे तो ही इश्क़ में दिन को सोना और रात को चाँदी में तब्दील होने की सोच तो देखने को मिलेगी ही। राहत के लिए लिखे गए अंतरों में भी उनकी पंक्तियाँ सीधे दिल पर असर करती हैं। सहगायिका के रूप में राहत का साथ दिया है तुलसी कुमार ने। पर नवोदित गायिका के रूप में तुलसी ने भी राहत जैसे मँजे कलाकार के साथ गाते हुए अपना हिस्सा बड़े करीने से निभाया है। हाँ ये जरूर है कि अगर ये हिस्सा श्रेया घोषाल को दिया गया होता तो मुझे इस गीत को सुनने में शायद ज्यादा आनंद आया होता।

वैसे आप में से बहुतों को शायद मालूम ना हो कि तुलसी, टी सीरीज के मालिक स्वर्गीय गुलशन कुमार की सुपुत्री हैं। अपनी गायिकी का सफ़र उन्होंने भजन व भक्ति गीत से शुरु किया था। देखना है कि हिंदी फिल्म संगीत में उनका आगे का सफ़र कैसा रहता है। तो आइए गीत के बोलों के साथ आनंद लें राहत की अद्भुत गायिकी का



तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी
इश्क़ मज़हब, इश्क़ मेरी ज़ात बन गयी

पाया मैंने पाया तुम्हें...

तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी
सपने तेरी चाहतों के
सपने तेरी चाहतों के
सपने तेरी चाहतों के देखती हूँ अब कई
दिन है सोना और चाँदी रात बन गयी

पाया मैंने पाया तुम्हें...

चाहतों का मज़ा फासलों में नहीं
आ छुपा लूँ तुम्हें हौसलों में कहीं
सबसे ऊपर लिखा है तेरे नाम को
ख्वाहिशों से जुड़े सिलसिलों में कहीं

ख्वाहिशें मिलने की तुमसे
ख्वाहिशें मिलने की तुमसे रोज़ होती है नयी
मेरे दिल की जीत मेरी बात बन गयी
हो तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी

पाया मैंने पाया तुम्हें, रब ने मिलाया तुम्हें

ज़िन्दगी बेवफा है ये माना मगर
छोड़ कर राह में जाओगे तुम अगर
छीन लाऊँगा मैं आसमान से तुम्हे
सूना होगा न ये दो दिलों का नगर

रौनके हैं दिल के दर पे
रौनके हैं दिल के दर पे धड़कने हैं सुरमई
मेरी किस्मत भी तुम्हारी साथ बन गयी
हो तुम जो आये ज़िन्दगी में बात बन गयी
इश्क मज़हब, इश्क मेरी ज़ात बन गयी
सपने तेरी चाहतों के...बन गयी
पाया मैंने पाया तुम्हें...


सोलहवी पॉयदान के साथ इस गीतमाला का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव समाप्त हो रहा है। बस इतना कहना चाहूँगा कि इसके ऊपर आने वाले पन्द्रहों गीत किसी ना किसी दृष्टि से विलक्षण है। मुझे यकीन है कि इन पन्द्रह गीतों में हर एक के साथ एक शाम क्या आपका पूरा हफ्ता गुजर सकता है तो बने रहिए गीतमाला के आने वाले इन नगीनों के साथ...

अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...
 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie