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रविवार, मार्च 03, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : रह जाओ ना

हरिहरण का नाम आते ही एक शास्त्रीय ग़ज़ल गायक की छवि उभर कर सामने आती है हालांकि उन्होंने कई मशहूर हिंदी फिल्मी गीत भी गाए हैं। ज्यादातर उन्हें ऐसे मौके दक्षिण भारतीय संगीत निर्देशकों ने ही दिये हैं जिसमें ए आर रहमान का नाम आप सबसे आगे रख सकते हैं। गुरु का ऍ हैरते आशिक़ी हो या बांबे का तू ही रे, रोज़ा का रोज़ा जानेमन या फिर सपने का चंदा रे चंदा रे, रहमान और हरिहरण की जोड़ी खूब जमी है। पर रहमान के संगीत निर्देशन के परे उनका गाया झोंका हवा का और बाहों के दरमियाँ भी मुझे बेहद पसंद है।


वार्षिक संगीतमाला के लिए गीतों का चुनाव करते समय जब उनकी आवाज़ मेरे कानों से टकराई तो मैं चौंक गया। चौंकने की वज़ह ये भी थी कि फिल्म तेजस का एल्बम युवा संगीतकार शाश्वत सचदेव का था, फिर भी चुनिंदा गीत गानेवाले हरिहरण को उन्होंने इस फिल्म के लिए राजी कर लिया। ख़ैर शाश्वत प्रतिभावन तो हैं ही। उनके हुनर का पहला नमूना तो उनके सबसे पहले एल्बम फिल्लौरी में मैंने देख ही लिया था

हरिहरण  के साथ शाश्वत सचदेव

शाश्वत ने हरिहरण साहब को जो गीत दिया उसमें अपने प्रिय से और रुकने का अनुरोध है। ऐसी भावना लिए कई कालजयी गीत पहले भी बने हैं। मसलन अभी ना जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं, न जा कहीं अब न जा दिल के सिवा, ना जाओ सइयाँ छुड़ा के बइयाँ कसम तुम्हारी मैं रो पड़ूँगी और नज़्मों की बात करूँ आज जाने की ज़िद ना करो यूँ ही पहलू में बैठे रहो का जिक़्र कैसे छोड़ा जा सकता है।

गीतकार कुमार के साथ शाश्वत सचदेव


ये गीत उस श्रेणी का तो नहीं फिर भी हरिहरण की आवाज़ में इसे सुनकर मन में एक सुकून सा तारी हो जाता है। कुमार का लिखा मुखड़ा और प्यारा सा अंतरा, शाश्वत का गीत के पार्श्व में बजता पियानो और अंतरों के बीच में सतविंदर पाल सिंह की बजाई सारंगी इस प्रभाव को गहरा करते हैं। 


तो आइए सुनें इस प्यारे से गीत को...

बैठो तो ज़रा यहाँ, कितनी बातें बची हैं अभी
होठों पर तेरे लिए, कबसे रखी हुई है हँसी
कुछ देर के लिए, रह जाओ ना
रह जाओ ना यहीं, रह जाओ ना
अभी तो सितारों को गिनना है बाकी, अधूरी है ख़्वाहिश अभी
अभी बादलों में हमें भींगना है, बची बारिशें हैं कई
बातें बची हैं जो आधी अधूरी वो बात कह जाओ ना
छोड़ दो ये जिद ज़रा मेरा कहना भी मानो अभी
तेरा बाकी अभी रूठना, मेरा बाकी मनाना अभी
कुछ देर के लिए...  रह जाओ ना
अभी तो कहानी के कई मोड़ बाकी, बाकी कई यारियाँ
शैतानियों से खेलने की करनी है तैयारियाँ


वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा

    गुरुवार, जून 22, 2017

    मैकदे बंद करे लाख ज़माने वाले.. शहर में कम नहीं आँखों से पिलाने वाले Maikade Band Kare

    बाहर बारिश की झमाझम है और मन भी थोड़ा रिमझिम सा हो रहा है तो सोच रहा हूँ कि क्यूँ ना आज आपको हरिहरण साहब की गायी वो हल्की फुल्की पर बेहद मधुर ग़ज़ल सुनाऊँ जिसके कुछ अशआर कुछ दिनों से मन में तरलता सी घोल रहे हैं।


    हरिहरण ने ये ग़ज़ल अपने एलबम काश में वर्ष 2000 में रिकार्ड की थी। 'काश' उस समय तक के हरिहरण के एलबमों से थोड़ी भिन्नता लिए जरूर था। सामान्यतः हरिहरण ग़ज़लों में हमेशा से अपनी शास्त्रीयता के लिए जाने जाते रहे हैं। ग़ज़ल में परंपरागत रूप से इस्तेमाल होने वाले वाद्य यंत्रों जैसे हारमोनियम, सारंगी और तबले के साथ हरिहरण का आलाप आपने भी कई ग़ज़लों में सुना होगा। पर जगजीत सिंह की तरह ही वक़्त के साथ उन्होंने भी कई एलबमों में नए नए प्रयोग करने की कोशिश की। जनवरी 1999 से इस एलबम की तैयारी शुरु हुई पर इसे बनने में पूरा एक साल लग गया। बकौल हरिहरण

    "मुझे इस एलबम को पूरा रिकार्ड करने में इतना समय इसलिए लगा क्यूँकि इन ग़ज़लों को मैं उस आवाज़ व संगीत के साथ पेश करना चाहता था जो वर्षों से मेरे मन में रच बस रही थी। आप इसे आज के प्रचलित वाद्यों के साथ कविता और ठेठ गायिकी का मिश्रण मान सकते हैं।"

    हरिहरण ने अपने इस प्रयोग को तब Urdu Blues की संज्ञा दी थी। अब ये एलबम उस वक़्त सराहा तो गया था पर इतना भी नहीं कि इसे हरिहरण के सर्वोत्तम एलबमों में आँका जा सके। इसका एक कारण हरिहरण की चुनी हुई कुछ ग़ज़लों में शब्दों की गहराई का ना होना भी था।

    ख़ैर एलबम की कुछ पसंदीदा ग़ज़लों में एक थी मैकदे बंद करे लाख जमाने वाले. जिसे मैं आज आपको सुनवाने जा रहा  हूँ। गिटार और बांसुरी के साथ उस्ताद रईस खान का सितार मन को तब चंचल कर देता है जब  ग़ज़ल के मतले में हरिहरण की आवाज़ कुछ ये कहती सुनाई पड़ती है

    मैकदे बंद करे लाख ज़माने  वाले
    शहर में कम नहीं आँखों से पिलाने वाले

    सच ही तो है , जिसने भी हुस्न और  शोखियों का स्वाद उनकी आँखों के पैमाने से पिया है उसे भला मयखाने जाने की क्या जरूरत?

    मतले के बाद का शेर  सुनकर तो बस आह ही उभरती है, कोई पुरानी कसक याद दिला ही जाता है ये नामुराद शेर

    काश मुझको भी लगा ले तू कभी सीने से
    मेरी तस्वीर को सीने से लगाने वाले

    ग़ज़ल का अगला शेर सुनने के पहले आप घटम और सितार की मधुर जुगलबंदी सुन सकते हैं। वैसे इस एलबम में ड्रम्स या घटम जैसे ताल वाद्यों को बजाया  था मशहूर ड्रमर शिवमणि ने ।

    हम यकीं आप के वादे पे भला कैसे करें
    आप हरगिज़ नहीं हैं वादा निभाने वाले

    इस ग़ज़ल को किसने लिखा ये ठीक ठीक पता कर पाना मुश्किल है। कुछ लोग इसे ताज भोपाली की ग़ज़ल बताते हैं। पर हरिहरण साहब ने एक जगह जरूर ये कहा था कि मैंने इस एलबम में ताहिर फ़राज़, मुन्नवर मासूम, मुजफ्फर वारसी, वाली असी, कैफ़ भोपाली, शहरयार और क़ैसर उल जाफ़री की ग़ज़लें ली थीं। अब इनमें से जिन जनाब की भी ये ग़ज़ल हो आख़िरी शेर में सादी जुबां में ज़िदगी की एक हकीक़त ये कह कर बयाँ की है कि

    अपने ऐबों पर नज़र जिनकी नहीं होती है
    आईना उनको दिखाते हैं ज़माने वाले

    तो आइए इस बरसाती मौसम में आप भी मेरे साथ इस ग़ज़ल का लुत्फ़ उठाइए...

    रविवार, मई 07, 2017

    मरीज़-ए-इश्क़ का क्या है, जिया जिया ना जिया .. है एक साँस का झगड़ा, लिया लिया ना लिया

    नब्बे के दशक में हरिहरण फिल्म संगीत और ग़ज़ल गायिकी में एक सितारे की तरह चमके थे। इस दौरान उनकी ग़ज़लों के कई एलबम आए  जिनमें से एक था 1992 में रिलीज़ हुआ हाज़िर। इस एलबम की पहली ग़ज़ल (जो सबसे लोकप्रिय हुई थी) का मतला कुछ यूँ था मरीज़-ए-इश्क़ का क्या है, जिया जिया ना जिया ..है एक साँस का झगड़ा, लिया लिया ना लिया

    ये उन दिनों की बात थी जब इंजीनियरिंग कॉलेज के चार साल पूरे होने आए थे और इश्क़ था कि हमारी ज़िदगानी से मुँह छुपाए घूम रहा था। ऐसे में इस ग़ज़ल के मतले को मन ही मन मैं कुछ यूँ गुनगुनाने को मज़बूर हो गया था।
    मरीज़-ए-इश्क़ का क्या है, किया किया ना किया
    है तो ये रोज़ का लफड़ा, लिया लिया ना लिया 😁


    सच तो ये था कि उन दिनों भी कहकशाँ व गालिब जैसे जगजीत के एलबमों का जादू मेरे सिर चढ़ कर बोल रहा था। हरिहरण की गायिकी लुभाती तो थी पर जगजीत की आवाज़ का मैं कुछ ज्यादा ही मुरीद था। उस वक्त दूरदर्शन पर भी नियमित रूप से हरिहरण के कार्यक्रम आया करते थे। मुझे याद है कि ऐसे ही एक महफिल में उन्होंने एक प्यारे से गीत को अपनी आवाज़ दी थी जिसके बोल थे मेरी साँसों में बसी है, तेरे दामन की महक, जैसे फूलों में उतर आई हो उपवन की महक। कभी इस गीत की रिकार्डिंग हाँ लगी तो जरूर आपसे साझा करूँगा।

    प्रियंका बार्वे
    तो फिर अचानक ही इतने सालों बाद मुझे हरिहरण की याद कहाँ से आ गयी। हुआ यूँ कि कुछ दिनों पहले मराठी फिल्मों की प्रतिभावान गायिका प्रियंका बार्वे की आवाज़ में ये ग़ज़ल सुनने को मिल गयी। प्रियंका ने बिना किसी संगीत के शुरुआत के तीन अशआर गा कर मन में मिठास सी घोल दी। सच तो ये है कि कुछ ग़ज़लें बिना संगीत के आभूषण के सुनी जाएँ तो ज्यादा आनंद देती हैं और मेरे ख़्याल से ये एक ऐसी ही ग़ज़ल है।


    पुणे के संगीतज्ञों के परिवार से ताल्लुक रखने वाली प्रियंका ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा अपनी दादी मालती पांडे बार्वे से ली। फिलहाल प्रियंका का इरादा गायिकी के साथ साथ अभिनय के क्षेत्र में उतरने का भी है। पिछले साल वे फिरोज़ खान द्वारा निर्देशित नाटक मुगल ए आज़म में अनारकली के रूप में नज़र आयीं। प्रियंका की इस प्रस्तुति को सुन कर ऐसा लगा कि उन्हें मराठी के आलावा हिंदी फिल्मों और ग़ज़लों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरना चाहिए।

    इस ग़ज़ल को लिखा है ब्रिटेन में रहने वाले उर्दू के नामचीन शायर डा. सफ़ी हसन ने। आपको जान कर अचरज होगा कि पाकिस्तान से ताल्लुक रखने वाले और फिलहाल बर्मिंघम में बसे सफ़ी साहब पेशे से एक वैज्ञानिक हैं। कितना खूबसूरत मतला लिखा था सफ़ी साहब ने। जिसे इश्क़ का रोग लग गया उसकी तो हर साँस ही गिरवी हो जाती है। फिर उसका जीना क्या और मरना क्या?

    मरीज़-ए-इश्क़ का क्या है, जिया जिया ना जिया
    है एक साँस का झगड़ा, लिया लिया ना लिया 

    सफ़ी साहब आगे फर्माते हैं कि अगर दर्द से पूरा शरीर ही छलनी हो तो दिल को रफ़ू कर के कौन सी ठंडक मिलने वाली है?

    बदन ही आज अगर तार-तार है मेरा
    तो एक चाक-ए-ग़रेबाँ, सिया सिया ना सिया

    और इसकी तो बात ही क्या ! पसंदीदा शेर है मेरा इस ग़ज़ल का। जनाब सफ़ी हसन यहाँ कहते हैं की भले ही उनका नाम मेरे होठों पर नहीं आया पर क्या कभी उन्हें अपने ख्यालों से दूर  कर पाया हूँ?

    ये और बात के तू हर रह-ए-ख़याल मे है
    कि तेरा नाम जुबाँ से, लिया लिया ना लिया

    मेरे ही नाम पे आया है जाम महफ़िल मे
    ये और बात के मै ने, पिया पिया ना पिया

    ये हाल-ए-दिल है 'सफ़ी' मैं तो सोचता ही नही
    कि क्यों किसी ने सहारा, दिया दिया ना दिया

    वैसे चलते चलते हरिहरण की आवाज़ में पूरी ग़ज़ल भी सुनते जाइए। तबले पे हरिहरण जी का साथ दे रहे हैं मशहूर वादक ज़ाकिर हुसैन ।

    रविवार, अप्रैल 12, 2015

    खिली चाँदनी ..दिल को द्रवित करती वॉयलिन पर कार्तिक अय्यर की धुन Karthik Iyer's violin adaptation of Rahman's Nila Kaikiradhu

    एक शाम मेरे नाम पर अक्सर कोई गीत, कोई ग़ज़ल या रिकार्डिंग आपको सुनवाता रहा हूँ। पर आज इन सबसे अलग एक ऐसी धुन सुनवाने जा रहा हूँ जो मूलतः तो एक तमिल गीत के लिए बनाई गई थी पर पिछले एक हफ्ते से मेरे दिलो दिमाग पर कब्ज़ा जमाए बैठी है। किसी धुन के अंदर बहते संगीत पर किसी सरहद की मिल्कियत नहीं होती। सरहदें तो हम भाषा के आधार पर बना लेते हैं पर किसी वाद्य यंत्र पर बजती रागिनी तो संसार के किसी कोने में बैठे संगीतप्रेमी के ह्रदय का स्पर्श कर सकती है। जब हम कोई धुन सुनते हैं तो उससे मन में एक मूड, एक कैफ़ियत सी बनने लगती है। उस मूड से जो भावनाएँ मन में उभरती हैं वो बिल्कुल अपनी होती हैं। वही धुन जब शब्दों का जामा पहन कर गीत का रूप धारण कर लेती हैं तो हम उन चरित्रों की परिस्थितियों को अपने अनुभवों के परिपेक्ष्य में तौलते हैं। पर गीत हमें अपनी कहानियाँ में डूबने की ये आज़ादी हमेशा नहीं देते जो धुनें हमें सहज ही प्रदान कर देती हैं।

    Karthik Iyer कार्तिक अय्यर
    ये धुन आधारित है 1995 में आई तमिल फिल्म इंदिरा से और इसे संगीतबद्ध किया था भारत के मोजार्ट कहे जाने वाले संगीतकार ए आर रहमान ने। उन की इस धुन को परिमार्जित किया युवा वॉयलिन वादक कार्तिक अय्यर ने। अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर मैं ये कहूँ कि कार्तिक अय्यर ने मूल धुन के साथ जो अंश जोड़े हैं वो उसमें चार चाँद लगाते हैं।

    चेन्नई से ताल्लुक रखने वाले कार्तिक ने नौ साल की उम्र से ही वॉयलिन बजाना शुरु कर दिया था। तेरह साल की छोटी उम्र में उन्होंने अपना पहला कान्सर्ट किया। पर तब तक वो इसे मात्र अपना शौक़ मानते थे। पर अपने इस शौक़ को अपनी रोज़ी रोटी का ज़रिया बनाने का निर्णय उन्होंने तब लिया जब वे इंजीनियरिंग के तीसरे वर्ष में थे। उन्हें उस वक़्त इंजीनियरिंग छोड़ संगीत के अनिश्चित कैरियर को अंगीकार करने की अनुमति देना उनके पिता के लिए बेहद कठिन निर्णय था। तीस वर्षीय कार्तिक अब तक दस देशों में दस हजार से भी अधिक कन्सर्ट कर चुके हैं और रहमान, रघु दीक्षित और शंकर महादेवन जैसे नामी संगीतकारों के साथ काम भी। शास्त्रीय संगीत के साथ देश विदेश की नई शैलियों को मिश्रित करने में उन्हें कभी गुरेज़ नहीं रहा। उनका ये नज़रिया भारतीय संगीत के प्रति उनकी इस सोच में सामने आता है

    "भारतीय सभ्यता ने समय के थपेड़ों को सहा है और इस प्रक्रिया में अपने में कितनी ही नई संस्कृतियों का स्वागत और समावेश किया है और ऐसा करते हुए वो हर बार एक नए स्वरूप में बिना अपनी गहराई खोए हुए उभरी है। ठीक उसी तरह मेरे बैंड ने संगीत को किसी एक विधा के दायरे में ना रखकर उसमें दूसरे तरह के संगीत प्रभावों को इस तरह अपनाया है कि उसकी भारतीयता अक्षुण्ण रहे।"

    इलेक्ट्रिक वॉयलिन पर बजती इस धुन की शुरुआत के पहले एक मिनट चालीस सेकेंड का मधुर टुकड़ा कार्तिक और रामप्रसाद सुंदर की बेहतरीन भागीदारी का नतीज़ा हैं। ये शुरुआत के सौ सेकेंड एक ऐसी स्वरलहरी की रचना करते हैं जिसे सुन मन में एक नीरवता सी छाने लगती है। फिर आती है गीत की मूल धुन जो जैसे जैसे आगे बढ़ती है आप अपने को गुमसुम होता पाते हैं और धुन का 2.15 से 2.40 का हिस्सा सुनते सुनते मन के अंदर की नमी आँखों तक पहुँच जाती है। 3.55 से अगले आधे मिनट तक आप कार्तिक की वॉयलिन पर की गई अपनी जादूगरी का नमूना सुनते हैं जो फिर गीत की मूल धुन में समाविष्ट हो जाती है।

    कुल मिलाकर इस धुन को सुनना मन को मलिन करती ख़्वाहिशों व अंदर पलती बेचैनियों के खारेपन को धो कर उनसे कुछ देर के लिए ही सही अपने आप को मुक्त कर लेने जैसा है।


    इस गीत को तमिल फिल्म इंदिरा में Nila Kaikiradhu के रूप में हरिहरण और हरिनी ने एकल गीत के रूप में गाया था। बाद में फिल्म का हिंदी रूपांतरण प्रियंका के नाम से हुआ जिसमें वैरामुथु के शब्दों का अनुवाद गीतकार पी के मिश्रा ने किया। अब इस धुन में लीन होने के बाद कम से कम मैं तो इस गीत को तुरंत सुनने की सलाह नहीं दूँगा। पर बाद में अगर सुनना चाहें तो हरिहरण की आवाज़ में गाया गीत ये रहा

    खिली चाँदनी, हमें कह रही
    गाओ सभी मिल के
    इस दिल के तुम्हीं हो उजाले
    खिली पूर्णिमा चली ये हवा
    शबनम यहाँ बरसे
    इस दिल के तुम्हीं हो उजाले
    गाए मेरा मन, यूँ ही रात दिन
    फिर भी प्यार तरसे
    आ आ.. वो ही भूमि है 
    वो ही आसमाँ, अपना दुख भला 
    किसको सुनाएँ..खिली चाँदनी, हमें कह रही....



    वैसे कार्तिक अय्यर की बजाई ये धुन आपके दिल से क्या कहती है?
     

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