शिव कुमार बटालवी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
शिव कुमार बटालवी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, मार्च 14, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 रनर्स अप : इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत गुम है गुम है गुम है Ikk Kudi

वार्षिक संगीतमाला 2016 के रनर्स अप खिताब का सेहरा बँधा है पंजाब के लोकप्रिय कवि शिव कुमार बटालवी की कविता इक कुड़ी जेदा नाम मोहब्बत के एक अंश पर आधारित उड़ता पंजाब के इस गीत के नाम। शिव कुमार बटालवी का नाम पंजाब के उन कवियों में शुमार होता है जो वहाँ के बाशिंदों के ह्रदय में बसते हैं। उड़ता पंजाब के निर्देशक अभिषेक दुबे ने उनकी कविता का अपनी फिल्म में इस्तेमाल कर इस कवि के प्रति पूरे देश में रुचि उत्पन्न कर दी जिसकी वजह से काव्य प्रेमी शिव कुमार बटालवी की  कई अन्य बेहतरीन रचनाओं से रूबरू हो पाए हैं । 

शिव कुमार बटालवी की निजी ज़िंदगी से इस कविता का क्या सरोकार था,? कौन थी वो लड़की जो उनकी ज़िदगी से गुम हो गयी थी ? इन सब के बारे में मैं पहले ही यहाँ विस्तार से लिख चुका हूँ। आज तो आपको मुझे  ये बताना है कि ये प्यारा सा नग्मा उड़ता पंजाब का हिस्सा कैसे बन गया?


दरअसल फिल्म के निर्देशक जब फिल्म की कहानी पर काम कर रहे थे तभी इस गीत की जरूरत उन्हें महसूस हुई। फिल्म में बिहारी मजदूर का किरदार निभाती आलिया भट्ट की पंजाब में आने के पहले की ज़िंदगी और उसके अंदर एक हाकी खिलाड़ी बनने की चाह को निर्देशक इस गीत को पार्श्व में रखकर दिखाना चाहते थे। जब बटालवी की पूरी कविता चार पन्नों में सज कर अमित त्रिवेदी के पास पहुँची तो वो असमंजस में पड़ गए कि आख़िर फिल्म के गीत के लिए इसका कौन सा हिस्सा चुना जाए ? आख़िरकार कविता के शुरुआती हिस्से को चुना गया। गीत के दो वर्जन बने। एक को शाहिद माल्या से गवाया गया और दूसरे को दिलजीत दोसांझ से। गीत दोनों रूपों में बेहतरीन है पर दिलजीत की आवाज़ के साथ अमित त्रिवेदी की धुन दिल को सचमुच जीत ले जाती है।

पंजाब के संगीत उद्योग में दिलजीत दोसांझ कोई नया नाम नहीं हैं। जालंधर के दोसांझ कलां गाँव से ताल्लुक रखने वाले दिलजीत पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से पंजाबी संगीत जगत में सक्रिय हैं। दस के करीब संगीत एलबम निकालने वाला ये गायक कई पंजाबी फिल्मों का भी हिस्सा रह चुका है। जहाँ तक हिंदी फिल्मों का सवाल है उड़ता पंजाब के आलावा दिलजीत  तेरे नाल लव हो गया, मेरे डैड की मारुति, यमला पगला दीवाना 2  और सिंह इज़ ब्लिंग जैसी फिल्मों में अपनी आवाज़ दे चुके हैं। बटालवी ने ख़ुद इसे जिस अंदाज़ में गाया था उससे अलग लय में अमित ने दिलजीत से ये गीत गवाया और उनकी इस बात के लिए तारीफ करनी होगी की गीत के मूड को उन्होंने यूँ  पकड़ा की उनकी आवाज़ में उस गुम हुई लड़की का दर्द सहज ही उभर आया। गीत में उदासी की लकीरों को और गहरा करने में साथ दिया इलेक्ट्रिक व बास गिटार से सजे  संगीत संयोजन ने ।

आख़िर गीत के पंजाबी बोलों में बटालवी ने कहना क्या चाहा है?


इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है

सूरत ओसदी परियाँ  वरगी, 
सीरत दी ओ.. मरियम लगदी
हसदी है ताँ फुल्ल झड़दे ने
तुरदी है ताँ ग़ज़ल है लगदी
लम्म स लम्मी सरू दे  क़द दी। . हाय
उम्र अजे है मर के अग्ग दी
पर नैणा दी गल्ल समझ दी
इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है...

इक लड़की जिसका नाम मोहब्बत था, वो गुम है, गुम है , गुम है। सादी सी, प्यारी सी वो लड़की गुम है। उसका चेहरा परियों जैसा था और हृदय मरियम सा पवित्र। वो हँसती तो लगता जैसे फूल झड़ रहे हों और चलती तो लगता जैसे एक ग़ज़ल ही मुकम्मल  हो गई हो। लंबाई ऐसी कि सरू के पेड़ को भी मात दे दे। जवानी तो जैसे उसके अभी उतरी थी पर आंखों की भाषा वो खूब समझती थी। पर वो आज नहीं है। कहीं नहीं है। :(



सच कहूँ तो इस गीत का कैनवस फिल्म से कहीं आगे तक विस्तृत है। अगर आप उड़ता पंजाब ना भी देखें तो भी इस गीत से जुड़ने आपको थोड़ा सा भी वक़्त नहीं लगेगा। आख़िर कितनी प्रेम कहानियाँ अपने मुकाम तक पहुँच पाती हैं? जिस मोहब्बत का हम सपना देखते हैं क्या वो भाव जीवन पर्यन्त हमारे साथ रहता है? क्या हम एक समझौते के तहत प्रेम में बने रहने का ख़ुद से छलावा नहीं करते? क्या उस खोयी मोहब्बत की गुमशुदगी का अहसास रह रह कर हमें नहीं कचोटता?

शिव कुमार बटालवी का ये सहज सा गीत इसलिए विशेष नहीं कि वो उनकी प्रेमिका की खूबसूरती बयाँ करता है बल्कि इसलिए कि ये हमारे अंदर की उस टीस, उस हसरत को उभारता है जिस मोहब्बत को हमने वक़्त के हाथों लाचार होकर भुलाया हुआ है।

वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
2. इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत गुम है गुम है गुम है Ikk Kudi
3. जग घूमेया थारे जैसा ना कोई Jag Ghoomeya
4. पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina
5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

बुधवार, मई 25, 2016

शिव कुमार बटालवी : प्रसिद्धि की आड़ में घुलती, पिघलती ज़िंदगी Ikk Kudi Jihda Naam Mohabbat Part II

तो पिछली बार बातें हुई आपसे बटालवी साहब की दो प्रेम कथाओं की। पहली मीना और दूरी अनुसूया  जो लंदन जाकर गुम हो गयी । बटालवी की ज़िंदगी के प्रेम मंदिर में इन गुम हुई लड़कियों का कोई वारिस नहीं था। पटवारी की नौकरी करते हुए ज़मीन की नाप जोखी करने में तो बटालवी का मन नहीं लगा पर इसी दौरान उन्होंने पंजाब की लोक कथाओं में मशहूर पूरन भगत की कहानी को एक नारी की दृष्टि से देखते हुए उसे अपने नज़रिए से पेश किया । 
आख़िर क्या थी ये लोककथा? लोक कथाओं के अनुसार पूरन सियालकोट के राजा के बेटे थे। उनके पिता ने अपने से काफी उम्र की लड़की लूना से विवाह किया। लूना का दिल मगर अपने हमउम्र पूरन पर आ गया जो राजा की पहली पत्नी के बेटे थे। पूरन ने जब लूना का प्रेम स्वीकार नहीं किया तो उसने उसकी शिकायत राजा से की। राजा ने मार पीट कर पूरन को कुएँ में फिकवा दिया। पर उसे एक संत ने बचा लिया। उनके सानिध्य में पूरन ख़ुद एक साधू बन गया। बरसों बाद निःसंतान लूना जब अपनी कोख भरने की गुहार लगाने इस साधू के पास आई तो उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। पूरन ने लूना और अपने पिता को क्षमा कर दिया और लूना को संतान का सुख भी मिल गया।

बटालवी ने इसी लूना को केंद्र बनाकर अपनी काव्य नाटिका का सृजन किया। उनकी लूना एक नीची जाति की एक कोमल व सुंदर लड़की थी जिसे अपनी इच्छा के विरुद्ध एक अधेड़ राजा से विवाह करना पड़ा। बटालवी ने  प्रश्न ये किया  कि अगर लूना को अपने हमउम्र लड़के से प्रेम हुआ तो इसमें उसका क्या दोष था? लूना पुरानी मान्यतओं को चोट करती हुई एक स्त्री की व्यथा का चित्रण करती है। बटालवी ने 1965 में लूना लिखी और इसी पुस्तक के लिए 28 वर्ष की छोटी उम्र में साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले पहले व्यक्ति बने। दरअसल बटालवी ने अपनी पीड़ा को  कविता में ऐसे बिम्बों व चरित्रों में व्यक्त किया जो सहज होने के साथ लोक जीवन के बेहद करीब थे।

तो गुम हुई लड़की पर लिखी इस  लंबी कविता के द्वारा  बटालवी के दिल के  कष्ट को समझने की कोशिश करते हैं वहाँ से जहाँ से मैंने पिछली पोस्ट में इसे छोड़ा था ..

हर छिन मैंनू यूँ लगदा है, हर दिन मैंनू यूँ लगदा है
जूड़े जशन ते भीड़ा विचों, जूड़ी महक दे झुरमट विचों
ओ मैनूँ आवाज़ दवेगी, मैं ओहनू पहचान लवाँगा
ओ मैनू पहचान लवेगी, पर इस रौले दे हद विच्चों
कोई मैंनू आवाज़ ना देंदा, कोई वी मेरे वल ना वेंहदा


हर पल, हर दिन मुझे ऐसा लगता है कि इस भागती दौड़ती भीड़ के बीच से, इन महकती खुशबुओं के बीच से वो मुझे आवाज़ लगाएगी। मै उसे पहचान लूँगा, वो भी मुझे पहचान लेगी। लेकिन सच तो ये है कि इन तमाम आवाज़ों के बीच से कोई मुझे नहीं पुकारता। कोई नज़र मुझ तक नहीं टकराती।

पर ख़ौरे क्यूँ तपला लगदा, पर खौरे क्यूँ झोल्ला पैंदा
हर दिन हर इक भीड़ जुड़ी चों, बुत ओहदा ज्यूँ लंघ के जांदा
पर मैंनू ही नज़र ना ओंदा,
गुम गया मैं उस कुड़ी दे, चेहरे दे विच गुमया रंहदा,
ओस दे ग़म विच घुलदा रंहदा, ओस दे ग़म विच खुरदा जांदा


पर पता नहीं क्यूँ मुझे लगता है, मुझे पूरा यकीं तो नहीं है पर हर दिन इस भीड़ भड़क्के के बीच उसका साया लहराता हुआ मेरी बगल से गुजरता है पर उसे मैं देख ही नहीं पाता। मैं तो उसके चेहरे में ही गुम हो गया हूँ और उस खूबसूरत जाल से बाहर निकलना भी नहीं चाहता। बस उसके ग़म में घुलता रहता हूँ , पिघलता रहता हूँ।   

ओस कुड़ी नूं मेरी सौंह है, ओस कुड़ी नूं आपणी सौंह है
ओस कुड़ी नूं सब दी सौंह है, ओस कुड़ी नूं रब्ब दी सौंह है

जे किते पढ़दी सुणदी होवे, जिउंदी जां उह मर रही होवे
इक वारी आ के मिल जावे, वफ़ा मेरी नूं दाग़ न लावे
नई तां मैथों जिया न जांदा, गीत कोई लिखिया न जांदा
इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत गुम है गुम है गुम है।


मैं तो बस याचना ही कर सकता हूँ कि ऐ लड़की गर मेरे लिए नहीं तो अपने आप के लिए , हम सब के लिए या भगवान के लिए ही सही   अगर तुम कहीं भी इसे पढ़ या सुन रही होगी, जी रही या मरती  होगी.... बस एक बार आकर मुझसे मिल लो । तुमने जो अपनी वफ़ा पर दाग लगाया है उसे आकर धो जाओ। नहीं तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊँगा। कोई नया गीत नहीं लिख पाऊँगा।

और बटालवी अपने अंतिम दिनों में अपनी इन्हीं भावनाओं को चरितार्थ कर गए।  पटवारी की नौकड़ी छोड़ कर अब वो स्टेट बैंक बटाला में काम करने लगे। इसी बीच करुणा बटालवी से उनकी शादी हुई और कुछ ही सालों में वो दो बच्चों के पिता भी बन गए। बटाला उन्हें खास पसंद नहीं था सो उन्होंने  चंडीगढ़ में नौकरी शुरू की । ये वो दौर था जब वे हर साहित्यिक संस्था से पुरस्कार बटोर रहे थे। कॉलेज के समय से उनके प्रशंसकों ने उन्हें सॉफ्ट ड्रिंक  व सिगरेट की तलब लगा दी थी । वो गाते और उनके प्रशंसक उन्हें पिलाते।
साफ्ट ड्रिंक से हुए इस शगल ने उन्हें शराब की ओर खींचा। लोग को जब भी उन्हें गवाना होता मुफ्त की शराब पिलाते। लिहाज़ उनके फेफड़े की हालत खराब होने लगी। ऐसी हालत में सन 1972 में उन्हें इग्लैंड जाने का न्योता मिला। अनुसूया  को बटालवी भुला  नहीं पाए थे। उनका  दिल तो न  जाने कितनी बार लंदन की उड़ान भर चुका  था फिर ऐसे मौके को वो कैसे जाने देते ?

बटालवी 1972 में लंदन गए। उनकी ख्याति पंजाबी समुदाय में पहले से ही फैली हुई थी। सब लोग उन्हें अपने घर बुलाते। खातिरदारी का मतलब होता लजीज़ खाना और ढेर सारी शराब। पता नहीं उनके मेजबानों को उनकी गिरती तबियत का अंदाज़ा था या नहीं  या फिर अच्छा सुनने की फ़िराक़ में उन्होंने अपनी इंसानियत दाँव पर लगा दी थी। बटालवी अनुसूया से तो नहीं मिल पाए पर लंदन से लौटते लौटते अपने शरीर का बेड़ा गर्क जरूर कर लिया। वापस आ कर अस्पताल में भर्ती हुए पर उन्हें ये इल्म था कि ज़िंदगी उन्हें अब ज्यादा मोहलत नहीं देगी। इंग्लैंड जाने के एक साल बाद ही  पठानकोट के किर मंगयाल गाँव में उन्होंने अपने जीवन की अंतिम साँसें लीं।

तो चलते चलते सुनिए इस पूरी कविता को शिव कुमार बतालवी की तड़प भरी आवाज़ में जो एक टूटे दिल से ही निकल सकती है..


मंगलवार, मई 17, 2016

इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत : कौन थी शिव कुमार बटालवी की वो गुमनाम कुड़ी ? Ikk Kudi Udta Punjab Part I

शिव कुमार बटालवी का व्यक्तित्व मेरे लिए अबूझ पहेली रहा है। पंजाब के इस बेहद लोकप्रिय कवि की लेखनी में आख़िर ऐसी क्या बात थी जिसने आम लोगों को बड़े कम समय में इनकी लिखी कविताओं का दीवाना बना दिया। 37 साल की छोटी उम्र में ऊपर कूच करने वाला इस इंसान क्यूँ ज़िदगी को एक धीमी गति से घटने  वाली आत्महत्या मानता था?

जब मैंने इन बातों को जानने समझने के लिए शिव बटालवी के बारे में पढ़ना शुरु किया तो आँखों में कई चेहरे घूम गए उनमें एक मजाज़ का तो एक गोपाल दास नीरज का भी था। 1936  में पंजाब के गुरुदासपुर जिले के एक गाँव में जन्मे बटालवी  मिजाज़  में रूमानियत शुरु से थी। स्कूल से निकलते तो पास की नदी के पास घंटों अकेले  ख्यालों  में डूबे रहते । लड़कों की अपेक्षा गाँव की बालाओं से ही उनकी दोस्ती ज्यादा होती। प्राथमिक शिक्षा पूरी कर जब वो बटाला गए तो कविता के साथ उसे तरन्नुम में गा के सुनने की अदा उनके व्यक्तित्व का अहम हिस्सा हो गई। शुरुआत के उनके रचित  गीत रूमानी कलेवर ही ओढ़े मिलेंगे पर बटालवी से प्रेम के बारे में सवाल होता तो वो यही कहते की जीवन में लड़कियाँ तो हजारों आयीं पर कोई मुकम्मल तसवीर नहीं बन पाई। पर क्या ये बात पूरी तरह सही थी?


दरअसल जब जब बटालवी ने कोई चेहरा अपने दिल में गढ़ना शुरु किया उसके पहले ही वो तक़दीर के हाथों मिटा डाला गया। बटालवी खुली तबियत के इंसान  थे। किसी चीज़ से बँधना उन्हें मंजूर ना था। उनके तहसीलदार पिता ने उन्हें लायक बनाने की बहुत कोशिश की। पर बटालवी का दिल कभी एक तरह की पढ़ाई में नहीं रमा। किसी कॉलेज में वे विज्ञान के छात्र रहे तो कहीं कला के। यहाँ तक कि बीच में कुछ दिनों के लिए वो बैजनाथ में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने भी चले गए। पर इनमें से कोई भी कोर्स वो पूरा नहीं कर पाए। 

बैजनाथ के एक मेले में उनकी मुलाकात मीना से हुई। चंद मुलाकातें ही इस मीना को उनके दिल की मैना बनाने के लिए काफी थीं । मीना पर भी प्रेम का ज्वर चढ़ चुका था पर इससे पहले कि वो अपनी स्वाभाविक नियति पर जाता वो टायफाइड की वजह  से इस संसार को ही छोड़ कर चली गई। बटालवी के लिए ये गहरा धक्का था और उनकी कविताओं में मीना को खो देने की पीड़ा झलकती रही।

पिता वैसे ही बटालवी से कोई आशा छोड़ चुके थे। उनके लिए बटालवी की छवि एक बिना काम के छुटभैये कवि से ज्यादा नहीं थी। पिता के दबाव में आकर बटालवी ने पटवारी की परीक्षा पास कर ली। पर वो जिस कॉलेज में भी गए अपनी कविता में भीतर का दुख उड़ेलते रहे और लोकप्रियता की पायदानों पर चढ़ते रहे। गाँव और कस्बों में उनके रचे गीत लोकगीतों की तरह गाए जाने लगे। इसी दौरान वो दूसरी बार मोहब्बत में पड़े। बटालवी पर इस बार एक साहित्यकार की पुत्री अपना दिल दे बैठी थीं। पर पिता को जब ये पता चला  तो गुस्से में उन्होंने उसे लंदन भेज दिया। बटालवी को खबर भी न हुई। उसकी याद में उन्होंने बहुत कुछ लिखा पर उस पर लिखी ये पंक्तियाँ खासी मशहूर हुई..

माये नी माये
मैं इक शिकरा यार बनाया.
चूरी कुट्टां तां ओ खांदा नाही
ओन्हुं दिल दा मांस खवाया
इक उडारी ऐसी मारी
ओ मुड़ वतनी ना आया.

हे माँ देख ना मैंने इक बाज को अपना दोस्त बनाया। चूरी (घी व रोटी से बनाया जाने वाला मिश्रण) तो वो खाता नहीं सो मैंने तो उसे अपना कलेजा ही खिला दिया और देखो मुझे छोड़कर ऐसी उड़ान भर कर चला गया जहाँ से वो वापस अपने घर कभी नहीं लौटेगा।

दर्द से शिव कुमार बटालवी का रिश्ता यहीं खत्म नहीं हुआ। पर उस दास्तान तक पहुँचने के पहले आपको ये बताना चाहता हूँ कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी से गायब इस लड़की पर एक लंबी सी कविता लिखी जिसे महेंद्र कपूर से लेकर हंस राज हंस जैसे गायकों ने अपनी आवाज़ से सँवारा। तो आइए आज कोशिश करते हैं बटालबी की इस सहज सी कविता को हिंदी में समझने की.

सूरत उसदी परियाँ  वरगीसीरत दी ओ.. मरियम लगदी
हसदी है ताँ फुल्ल झड़दे ने
तुरदी है ताँ ग़ज़ल है लगदी
लम्म सलम्मी सरू दे  क़द दी
उम्र अजे है मर के अग्ग दी
पर नैणा दी गल्ल समझ दी
इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है...

इक लड़की जिसका नाम मोहब्बत था, वो गुम है, गुम है , गुम है। सादी सी, प्यारी सी वो लड़की गुम है। उसका चेहरा परियों जैसा था और हृदय मरियम सा पवित्र। वो हँसती तो लगता जैसे फूल झड़ रहे हों और चलती तो लगता जैसे एक ग़ज़ल ही मुकम्मल  हो गई हो। लंबाई ऐसी की सरू के पेड़ को भी मात दे दे। जवानी तो जैसे उसके अभी उतरी थी पर आंखों की भाषा वो खूब समझती थी। पर वो आज नहीं है। कहीं नहीं है।

गुमियां जन्म जन्म हन ओए, पर लगदै ज्यों कल दी गल्ल है
इयों लगदै ज्यों अज्ज दी गल्ल है, इयों लगदै ज्यों हुण दी गल्ल है
हुणे ता मेरे कोल खड़ी सी, हुणे ता मेरे कोल नहीं है
इह की छल है इह केही भटकण, सोच मेरी हैरान बड़ी है

नज़र मेरी हर ओंदे जांदे,
चेहरे दा रंग फोल रही है, ओस कुड़ी नूं टोल रही है
इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत, गुम है गुम है गुम है

सालों साल बीत गए उसे देखे हुए पर लगता है जैसे कल की ही बात हो।  कभी कभी तो  लगता  है जैसे शायद आज की ही या अभी की बात हो । वो तो मेरे बगल में ही खड़ी थी। अरे, पर अभी तो वो नहीं है। ये कैसा छल है ये कैसी चाल है? मैं हैरान हूँ, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। मेरी आँखें हर गुजरने वालों को टोहती हैं। मैं हर चेहरे की रंगत पढ़ने की कोशिश करता हूँ, शायद उन्हीं में वो हसीं भी दिख जाए पर वो तो नामालूम कहाँ गुम है।

सांझ ढले बाज़ारां दे जद, मोड़ां ते ख़ुशबू उगदी है
वेहल थकावट बेचैनी जद, चौराहियां ते आ जुड़दी है
रौले लिप्पी तनहाई विच
ओस कुड़ी दी थुड़ खांदी है, ओस कुड़ी दी थुड़ दिसदी है
इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत, गुम है गुम है गुम है


जब बाजार पर सांझ की लाली पसरती है। जब इत्र की खुशबू से बाजार का कोना कोना मदहोश हो जाता है। जब बेचैनी और थकान फुर्सत के उन पलों से मिलते हैं उसकी यादें मुझे काटने को दौड़ती हैं। हर दिन हर पल मुझे ऐसा लगता है कि इस भीड़ के बीच से, इन खुशबुओं के बीच से वो मुझे आवाज़ देगी। वो मुझे दिखती है और फिर गुम हो जाती है... ..
 
ना ये लंबी कविता खत्म हुई है ना बटालवी की कहानी। पर आज यहीं विराम लेना होगा। तो चलने के पहले आपको सुनवाते हैं फिल्म उड़ता पंजाब का ये नग्मा जिसमें बटालवी के इस गीत के शुरुआती हिस्से का बड़ी ख़ूबसूरती  से प्रयोग किया है संगीतकार अमित त्रिवेदी ने। आवाज़ है दिलजीत दोसांझ   की



उस गुम हुई लड़की के पीछे बँधी उनके जीवन की डोर कैसे पतली होती हुई टूट गई जानने के लिए पढ़ें इस आलेख की अगली कड़ी...
 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie