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मंगलवार, जनवरी 22, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 8 : एक दिल है, एक जान है Ek Dil Hai Ek Jaan Hai

हिंदी फिल्मों में शास्त्रीय रागों से प्रेरित गीत हमेशा बनते रहे हैं. ये जरूर है कि विगत कुछ सालों में उनकी संख्या में कमी आई है। खुशी की बात है कि आज भी संजय लीला भंसाली जैसी हस्तियाँ मौज़ूद हैं जो अपनी फिल्मों में हमारी इस अनमोल सांगीतिक विरासत का कोई ना कोई रंग छलकाते ही रहते हैं। इस साल मेरी इस संगीतमाला में बहुत दुखा मन और मैं हूँ अहम के बाद तीसरे ऐसे ही शास्त्रीय गीत एक दिल एक जान ने अपनी जगह बनाई है एक नई आवाज़ के साथ।  ये आवाज़  है शिवम  पाठक की 


इस गीत को अपनी आवाज़ से सँवारा है शिवम पाठक ने। शिवम जब उत्तर प्रदेश के छोटे शहर लखीमपुर खीरी से मुंबई आए थे तो उनका इरादा सिर्फ नेटवर्किग और हार्डवेयर के पाठ्यक्रम में दाखिला लेने का था। आवाज़ अच्छी थी तो एक मित्र ने इंडियन आइडल में किस्मत आज़माने को कहा। आडिशन में छँट गए तो लगा कि शास्त्रीय संगीत सीखना चाहिए। परिवार का संगीत से कोई नाता तो था नहीं। बैंक एकाउटेंट पिता को पुत्र का नेटवर्किंग हार्डवेयर के कोर्स से अचानक संगीत के प्रति नया रुझान अखरा क्यूँकि उस कोर्स के लिए वो काफी पैसे लगा चुके थे। फिर भी शिवम को सुरेश वाडकर की संगीत पाठशाला में उन्होंने दाखिला दिला दिया। 

शिवम पाठक 
दो साल बाद वो फिर इंडियन आइडल के मंच पर पहुँचे और अंतिम पाँच में जगह बनाई। नागेश कुकनूर की फिल्म मोड़ (2011) में उन्हें गाने का पहला मौका मिला। फिल्म कुछ खास नहीं चली। अगले कुछ सालों में ज्यादा काम उन्हें मिला नहीं तो वे गाने संगीतबद्ध करने लगे। 2014 में वे अश्विनी धीर की सिफारिश पर फिल्म मेरीकॉम के लिये संजय लीला भंसाली से मिले और अपनी एक रचना सुनाई जो संजय जी ने पसंद कर ली। फिल्म में उनके संगीतबद्ध दो गाने थे।

2014 में सरबजीत और गाँधीगिरी के कुछ गीतों को छोड़ दें तो उनकी आवाज़ ज्यादा नहीं सुनाई दी पर जैसा कि संजय लीला भंसाली की आदत है वो नए कलाकारों से अगर प्रभावित हो जाएँ तो उन्हें भविष्य में मौका देने से पीछे नहीं हटते। खुद शिवम  को संगीत संयोजन की अपेक्षा गायिकी से ज़्यादा लगाव है। जिस तरह शिवम ने इस गीत को गाया है उससे निश्चय ही संजय लीला भंसाली का विश्वास उन पर मजबूत हुआ होगा।

गीतकार ए एम तुराज़  से संजय लीला भंसाली का जुड़ाव तो और भी पुराना रहा है। गुजारिश का तेरा जिक्र से लेकर बाजीराव मस्तानी के आयत तक आपने उनके शायराना लफ़्ज़ हिंदी फिल्मों में सुने हैं। शिवम की तरह तुराज़ भी उत्तरप्रदेश से ताल्लुक रखते हैं। मुजफ्फरनगर के एक किसान परिवार से पहले शायरी और फिल्मों तक के उनके सफ़र के बारे में मैं पहले ही आपको यहाँ बता चुका हूँ। मैंने देखा है कि संजय लीला भंसाली को जब भी मोहब्बत की बात गहराई से करनी हो तो वो तुराज़ का रुख करते हैं। 

संजय लीला भंसाली व  ए एम तुराज़ 
संजय लीला भंसाली की शास्त्रीय संगीत से मोहब्बत जगज़ाहिर है। कुमार गंधर्व उनके प्रिय गायक रहे हैं। आपने भंसाली के रचे गीतों में राग भूपाली, राग अहीर भैरव, राग बसंत, राग पूरिया धनश्री जैसे रागों की झलक सुनी होगी पर जिस तरह उन्होंने राग यमन और उसके सहोदर यमन कल्याण का इस्तेमाल अपने गीतों में किया है उसका सानी आज के संगीत निर्देशकों में मिल पाना कठिन ही है। राग यमन की स्वरलहरियों से सजे लाल इश्क़, झोंका हवा का, अब अलविदा और आयत जैसे गीत तो आपके ज़हन में होंगे ही। 

एक इश्क़ एक जान एक और तोहफा है यमन प्रेमियों के लिए संजय लीला भंसाली का। इस राग से उनका ये प्रेम पद्मावत की पटकथा का हिस्सा बन गया। फिल्म में एक प्रसंग है जब छल से क़ैद किए राजा रतन सिंह के जख़्मों पर नमक छिड़कते हुए बागी राजपुरोहित राघव चेतन कहता है कि मैंने सोचा क्यूँ ना यमन कल्याण बजाऊँ, शायद तुम्हारा दर्द इसे सुन कर कम हो जाए तो राजा रतन सिंह का बेपरवाही भरा जवाब होता है बजाओ यमन.....

गीत शिवम के आलाप से शुरु होता है और मुखड़े में मंद मंद बहता हुआ दिलो दिमाग पर छा जाता है। गीत के मध्य में कव्वाली की तर्ज पर तुराज़ के शब्द अपने प्रिय को नए नए बिंबों में ढालते हैं। कव्वाली वाले हिस्से में आवाज़े हैं अज़ीज़ नाज़ां, कुणाल पंडित और फरहान साबरी की।गीत में जो ठहराव है वो सम्मोहित करता है। दिल करता है कि गीत उसी अंदाज़ में चलता रहे पर अफ़सोस गीत पहले ही खत्म हो जाता है पर शिवम के आलाप के और सागर में डुबकी लगाने के बाद।

एक दिल है, एक जान है
दोनों तुझ पे कुर्बान है
एक मैं हूँ, एक ईमान है
दोनों तुझ पे हाँ तुझ पे
दोनों तुझ पे कुर्बान है
एक दिल है..

इश्क़ भी तू मेरा प्यार भी तू
मेरी बात ज़ात जज़्बात भी तू
परवाज़ भी तू रूह-ए-साज़ भी तू
मेरी साँस नब्ज़ और हयात भी तू

मेरा राज़ भी तू, पुखराज भी तू
मेरी आस प्यास और लिबास भी तू
मेरी जीत भी तू, मेरी हार भी तू
मेरा ताज, राज़ और मिज़ाज भी तू

मेरे इश्क़ के, हर मक़ाम में
हर सुबह में, हर शाम में
इक रुतबा है, एक शान है
दोनों तुझ पे हाँ तुझ पे
दोनों तुझ पे कुर्बान है
एक दिल है..




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

गुरुवार, फ़रवरी 25, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 3 : तुझे याद कर लिया है ... आयत की तरह Aayat

वार्षिक संगीतमाला के समापन में अब सिर्फ आख़िरी की तीन सीढ़ियाँ  बची हैं और इन तीनों गीतों के बोल कुछ ऐसे हैं जो इनकी मिठास को और बढ़ा देते हैं। तीसरी पॉयदान पर एक बार फिर बाजीराव मस्तानी का वो नग्मा जिस पर आपका ध्यान फिल्म देखते हुए शायद ही गया हो। गीत के बोल थे तुझे याद कर लिया है आयत की तरह क़ायम तू हो गई है रिवायत की तरह। अब इस आयत को क्षेत्रमिति वाला आयत (Rectangle) मत समझ लीजिएगा। दरअसल क़ुरान में लिखी बात को भी आयत कहते हैं। तो किसी को..याद करने की सोच को आयत का बिम्ब देना अपने आप कमाल है ना और ये कमाल दिखाया एक किसान के बेटे ने। जी हाँ इस गीत को लिखने वाले हैं ए एम तुराज़ जो कि मुजफ्फरनगर के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। अब तुराज़ साहब के बारे में क्या कहें।

तीन पीढ़ियों तक उन्होंने घर में किसानी का काम होते ही देखा। ख़ुद तो हिंदी मीडियम से पढ़े पर पिता के शायरी के शौक़ ने उन्हें उर्दू भी सिखा दी। पहली बार कविता तो उन्होंने अठारह साल का होने के बाद लिखी पर इससे पहले ये समझ गए कि उनसे खेती बारी नहीं होने वाली। पिता तो इस आशा में थे कि वो भी उनके साथ काम करें पर उन्होंने मुंबई जा कर काम करने की इच्छा जताई। पिता की अनुमति तो नहीं मिली पर दादी अपने लाडले पोते के बचाव में आ गई और उन्होंने उनके वालिद से कह दिया कि आप भेज रहे हैं या हम भेंजें। फिर क्या था पिताजी को झुकना पड़ा  और बीस साल से भी कम उम्र में तुराज़ मुंबई आ गए। 


अरिजीत सिंह व  ए  एम तुराज़
एक दो साल इधर उधर की खाक़ छानने के बाद टीवी सीरियल के लिए गीत व संवाद लिखने का काम मिलने लगा। वर्ष 2005 बतौर गीतकार उन्होंने  इस्माइल दरबार के साथ अपनी पहली फिल्म की। इस्माइल दरबार ने ही उन्हें संजय लीला भंसाली से मिलवाया जब वे साँवरिया बना रहे थे। तुराज़ को साँवरिया में तो काम नहीं मिला पर गुजारिश के लिए संजय जी ने उन्हें फिर बुलाया। तुराज़ उस मुलाकात को याद कर कहते हैं कि

"संजय सर ने मुझसे  यही कहा कि धुन, संगीत सब भूल जाओ बस कविता के लिहाज से तुमने  जो सबसे अच्छा मुखड़ा लिखा हो वो मुझे दो । मेंने उन्हें ये तेरा जिक़्र है या इत्र है...  सुनाया और उन्होंने इसे  फिल्म के लिए चुन लिया जबकि यही मुखड़ा मैं बहुत लोगों को पहले भी सुना चुका था पर किसी की समझ में नहीं आया। मैं वो लिखना चाहता हूँ जिसे मुझे और सुननेवाले की रुह को सुकून मिले और संजय लीला भंसाली ऐसे निर्देशक हैं जिन्होंने ऐसा करने का मुझे अवसर दिया।"

जिंदगी में जब दूरियाँ बढ़ती हैं तो यादें काम आती हैं। अपने प्रिय के साथ बिताया एक एक पल हमारे जेहन में मोतियों की तरह चमकता है। उस चमक को हम अपने दिल में यूँ सँजो लेते है कि उन क्षणों के बारे में बार बार सोचना व महसूस करना हमारी आदत में शुमार हो जाता है। तुराज़ इन्हीं भावों से मुखड़े की शुरुआत करते हैं। पर मुखड़े के पहले ताल वाद्य की हल्की हल्की थाप के बीच अरिजीत सिंह का शास्त्रीय आलाप शुरु होता है जिसे सुन मन इस संजीदगी भरे गीत के रंग में रँग जाता है। 

संजय लीला भंसाली का शुरुआती संगीत संयोजन और अरिजीत का आलाप मुझे रामलीला के उनके गीत लाल इश्क़ की याद दिला देता है। हम दिल दे चुके सनम के बाद से उन्होंने इस्माइल दरबार को बतौर संगीतकार काम नहीं करवाया हो पर अपने अभिन्न मित्र के संगीत की छाप उनके बाद की फिल्मों में भी दिखी है पर इसके बावज़ूद भी गर उनके गीत मुझे इतने मधुर लगे हैं तो इसकी वज़ह है गीतकार व गायकों का उनका उचित चुनाव।

अरिजीत सिंह ने इस गीत के बोलों को अपनी रूह से महसूस करते हुए गाया है। उन्हें भले ही इस साल का फिल्मफेयर एवार्ड सूरज डूबा है के लिए मिला पर इस गीत के लिए वो उस इनाम के ज्यादा हक़दार थे। मुखड़े के बीच की कव्वाली के टुकड़े में उनका साथ दिया है अजीज़ नाजा और शाहदाब फरीदी ने।




तुझे याद कर लिया है,
तुझे याद कर लिया है
आयत की तरह
क़ायम तू हो गयी है
क़ायम तू हो गयी है
रिवायत की तरह

तुझे याद कर लिया है
मरने तलक रहेगी
मरने तलक रहेगी
तू आदत की तरह

तुझे ..की तरह

ये तेरी और मेरी मोहब्बत हयात है
हर लम्हा इसमें जीना मुक़द्दर की बात है
कहती है इश्क़ दुनिया जिसे मेरी  जान -ए -मन
इस एक लफ्ज़ में ही छुपी क़ायनात है ..

मेरे दिल की राहतों का तू जरिया  बन  गयी  है
तेरी इश्क़ की मेरे दिल में कई ईद मन गयी  है
तेरा ज़िक्र हो रहा है, तेरा ज़िक्र हो रहा है, इबादत  की  तरह
तुझे ..की तरह


वार्षिक संगीतमाला 2015

रविवार, फ़रवरी 21, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 4 : मोहे रंग दो लाल Mohe Rang Do Laal....

आजकल हिंदी फिल्मों  में एक चलन सा है कि फिल्म में कोई शास्त्रीय गीत या ग़ज़ल की बात हो तो निर्माता निर्देशक बिना उसे सुने पहले ही नकार देते हैं कि भाई कुछ हल्का फुल्का झूमता झुमाता हो तो सुनें ये तो जनता से नहीं झेला जाएगा। वैसे भी ज्यादातर फिल्मों की कहानियाँ ऐसी होती भी नहीं कि भारतीय संगीत की इन अनमोल धरोहरों को फिल्म में उचित स्थान मिल पाए। 

पर ऐसे भी निर्माता निर्देशक हैं जो जुनूनी होते हैं जिन्हें जनता से ज्यादा अपनी सोच पर, अपनी कहानी पर विश्वास होता है और वो संगीत की सभी विधाओं को अपनी फिल्म में जरूरत के हिसाब से सम्मिलित करने में ज़रा भी नहीं हिचकिचाते। संजय लीला भंसाली एक ऐसे ही निर्देशक व संगीतकार हैं। फिल्मांकन तो उनका   जबरदस्त होता ही है, संगीतकार का किरदार निभाते हुए फिल्म के गीत संगीत पर भी उनकी गहरी पकड़ रहती है। यही वज़ह है कि विविधताओं से परिपूर्ण बाजीराव मस्तानी का पूरा एलबम साल 2015 के सर्वश्रेष्ठ एलबम कहलाने की काबिलियत रखता है। 


वार्षिक संगीतमाला की चौथी पायदान पर जो गीत शोभा बढ़ा रहा है उसमें शास्त्रीयता की झनकार भी है और मन को गुदगुदाती एक चुहल भी! इस गीत को लिखा है गीतकार जोड़ी सिद्धार्थ गरिमा ने और इसे अपनी आवाज़ से सँवारा है श्रेया घोषाल व बिरजू महाराज ने। शास्त्रीय संगीत के जानकार इस गीत को कई रागों का मिश्रण बताते हैं।

चिड़ियों की चहचहाहट, गाता मयूर , शहनाई की मधुर तान, घुँघरुओं की पास आती आवाज़ और मुखड़े के पहले सितार की सरगम। कितना कुछ सँजो लाएँ हैं संजय लीला भंसाली मुखड़े के पहले के इस प्रील्यूड में जो राग मांड पर आधारित है। गीत का मुखड़ा जहाँ राग पुरिया धनश्री पर बना है वहीं अंतरे राग विहाग पर। पर ये श्रेया की सधी हुई मधुर आवाज़ का कमाल है कि इस कठिन गीत के उतार चढ़ावों को वो आसानी से निभा जाती हैं।  इंटरल्यूड्स में बाँसुरी की मधुर तान व  बिरजू महाराज के बोलों के साथ घुँघरु, सरोद व तबले की जुगलबंदी सुनते ही बनती है।

देवदास में पहला मौका देने वाले संजय सर के बारे में श्रेया कहती हैं कि वो गानों के बारे ज्यादा कुछ नहीं बताते। हाँ पर वो लता जी के आवाज़ के इतने बड़े शैदाई हैं कि ये जरूर कहते हैं कि अगर लता जी इसे गाती तो कैसे गातीं। पर बाजीराव के गीत अपने आप में कहानी से इतने घुले मिले थे कि मुझे उनसे ज्यादा कुछ पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ी।



इस गीत को लिखा है सिद्धार्थ गरिमा की जोड़ी ने जिनसे आपकी पहली मुलाकात मैं भंसाली साहब की पिछली फिल्म गोलियों की रासलीला राम लीला के गीतों में  करा चुका हूँ। सिद्धार्थ पहले हैदराबाद में विज्ञापन जगत से जुड़े थे और राजस्थान की गरिमा टीवी में शो का निर्माण करती थीं। फिर दोनों ही मुंबई की रेडियो मिर्ची में आ गए पर यहाँ भी उनके किरदार अलग थे यानि एक निर्माता और दूसरा लेखक का । पहली बार साझा लेखन का काम उन्होंने रियालिटी शोज को लिखने में किया। फिर संजय लीला भंसाली ने राम लीला के लिए उन्हें पटकथा लेखक व गीतकार की दोहरी जिम्मेदारी सौंपी जो वो बाजीराव मस्तानी में भी निभा रहे हैं। सिद्धार्थ गरिमा अपने इस गीत के बारे में कहते हैं..

ये गीत फिल्म में तब आता है जब नायक व नायिका प्रेम की शुरुआत हो रही है। नायिका नायक को नंद के लाल यानि कृष्ण के नाम से संबोधित कर रही है क्यूँ कि वो उसी भगवान की पूजा करती है। आखिर कृष्ण प्रेम ,भक्ति व चुहल के प्रतीक जो हैं और वही वो अपने प्रिय में भी देख रही है। वो ऐसे गा रही है मानो प्रभु के लिए भजन हो पर वास्तव में उसका इशारा अपने प्रियतम की ओर है। इसीलिए वो अपने प्रिय से कह रही है मुझे लाल रंग में रंग दो क्यूँकि लाल है रंग प्रेम का, उन्माद का, भक्ति का..।

यही वजह थी की गीतकार द्वय ने शब्दों के चयन में ब्रज भाषा के साथ  खड़ी बोली का मुलम्मा चढ़ाया ताकि हम और आप उसे अपने से जोड़ सकें।  नायिका की कलाई मरोड़ने, चूड़ी के टूटने और इन सब के बीच के उस क्षण चोरी चोरी से गले लगाने का ख्याल मन में गुदगुदी व सिहरन सी पैदा कर देता है और इसी ख्याल को अपने शब्दों के माध्यम से सिद्धार्थ गरिमा  गीत के अंत तक बरक़रार रखते हैं। तो आइए शास्त्रीयता की चादर ओढ़े इस बेहद रूमानी गीत का आनंद लें आज की शाम..

मोहे रंग दो लाल, मोहे रंग दो लाल
नंद के लाल लाल
छेड़ो नहीं बस रंग दो लाल
मोहे रंग दो लाल

देखूँ देखूँ तुझको मैं हो के निहाल
देखूँ देखूँ तुझको मैं हो के निहाल
छू लो कोरा मोरा काँच सा तन
नैन भर क्या रहे निहार

मोहे रंग दो लाल
नंद के लाल लाल
छेड़ो नहीं बस रंग दो लाल
मोहे रंग दो लाल

मरोड़ी कलाई मोरी
मरोड़ी कलाई मोरी
हाँ कलाई मोरी
हाँ कलाई मरोड़ी.. कलाई मोरी
चूड़ी चटकाई इतराई
तो चोरी से गरवा लगाई

हरी ये चुनरिया
जो झटके से छीनी
हरी ये चुनरिया
जो झटके से छीनी

मैं तो रंगी
हरी हरि के रंग
लाज से गुलाबी गाल

मोहे रंग दो लाल
नंद के लाल लाल
छेड़ो नहीं बस रंग दो लाल
मोहे रंग दो लाल
मोहे रंग दो लाल




वार्षिक संगीतमाला 2015

शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 9 : अब तोहे जाने ना दूँगी Ab Tohe Jane Na Doongi

वार्षिक संगीतमाला की नवीं पायदान का गीत वैसे है तो इस साल की संगीतमय व शानदार फिल्म बाजीराव मस्तानी से, पर इसे सुनकर ये मत कहिएगा कि इसे तो हमने फिल्म में देखा ही नहीं। दरअसल आजकल गाने तो स्क्रिप्ट के साथ बनते जाते हैं पर कई दफ़े फिल्म की ज्यादा लंबाई की वज़ह से इन पर कैंचियाँ भी चल जाती है। नवीं पॉयदान की  ये मीठी सी कशिश लिए हुयी शास्त्रीय बंदिश इसी कैंची का शिकार होकर फिल्म में अपनी जगह नहीं बना पायी । 

पिछले साल की प्रदर्शित फिल्मों में मुझे बाजीराम मस्तानी का एलबम अव्वल लगा। शास्त्रीयता, रोमांस, नृत्य सभी रसों का मेल था इस एलबम में। इसके कई गीत इस संगीतमाला मैं हैं तो कई को मुझे छोड़ना पड़ा। बहरहाल इस फिल्म का पहला गीत जो मैंने चुना है वो आधारित  है राग भूपाली या राग भूप पर। कर्नाटक संगीत में इस राग को राग मोहन के नाम से जाना जाता है। सरगम के सिर्फ पाँच स्वरों का इस्तेमाल करने वाले इस राग पर दिल हुम हुम करे, नील गगन की छाँव में, पंख होते तो उड़ आती रे मैं जहाँ रहूँ जैसे तमाम  कालजयी गीत बन चुके हैं।


आश्चर्य ही की बात है कि फिल्म निर्देशक के आलावा संगीत निर्देशन का भार सँभालने वाले संजय लीला भंसाली ने इस शास्त्रीय गीत के लिए दो नई आवाज़ों  पायल देव व श्रेयस पुराणिक को चुना और दोनों ने इस गीत के माध्यम से उनके विश्वास पर खरा उतरने की पूरी कोशिश की। 

पायल देव व  श्रेयस पुराणिक
खासकर पायल देव जिन्होंने अब तक बॉलीवुड में इक्का दुक्का गाने ही गाए थे ने तो उस लिहाज़ से कमाल ही कर दिया। सात आठ साल पहले मुंबई में कदम रखने वाली पायल का संगीत का सफ़र एड जिंगल्स से ही शुरु हुआ था। संगीतकारों के लिए भी गाती रहीं और उनके कुछ नग्में रुपहले पर्दे तक भी पहुँचे पर किसी ने उन्हें वो सम्मान नहीं दिलाया जितना उन्हें इस गीत को गाकर मिला।  अपने साक्षात्कारों में इस गीत के बारे में बातें करती वो फूली नहीं समाती। वे कहती हैं

"मुझे संजय सर के आफिस से एक दिन कॉल आई कि सर आपसे किसी गीत के सिलसिले में मिलना चाहते हैं। शायद उन्होंने मेरी आवाज़ पहले कहीं सुनी थी। पहले तो मुझे अपने भाग्य पर विश्वास ही नहीं हुआ। मैं वहाँ गई पर संजय सर के सामने मैं बहुत नर्वस हो गई। पहली बार गाया तो संजय सर ने समझाया कि गीत में जरूरत  से ज्यादा  हरक़तें नहीं लेनी हैं फिर उन्होंने जैसा उसे संगीतबद्ध किया था वो मुझे सुनाया। उन्हें  मेरी आवाज़ पसंद तो आई पर  उन्होंने कहा कि पूरे गीत को आराम से वापस जाकर रिकार्ड कर के भेज दो। फिर एक दिन मुझे फोन आया कि आपकी रिकार्डिग संजय सर को पसंद आ गई है। तब तक मुझे ये भी पता नहीं था कि मेरा ये गीत किस फिल्म के लिए रिकार्ड हुआ है। वो तो जब अलबेला सजन के लिए संजय सर ने मुझे फिर बुलाया तो मुझे लगा कि वो गीत भी बाजीराव मस्तानी के लिए होगा।"

तो देखा आपने की नए कलाकार  इतने नर्वस हो जाते हैं बड़े नामों के सामने कि किस फिल्म के लिए गा रहे हैं ये पूछने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते। पायल का इस गीत में साथ दिया नागपुर के श्रेयस पुराणिक ने। सुरेश वाडकर की छत्रछाया में संगीत सीखने  वाले श्रेयस की ये छोटी पर असरदार शुरुआत है। 

अब इस गीत के बारे में क्या कहें।  पियानों के नोट्स से शुरु होता हुआ ये गीत मुखड़े के बाद शहनाई के मधुर टुकड़े से मन को रससिक्त कर देता है। गीत चाहत के उस रूप को व्यक्त करता है जब प्रेमी बड़े अधिकार के साथ तन मन से अपने साथी को अंगीकार कर लेना चाहता है। तभी तो गीतकार ए एम तुराज़ प्रेम बरसाने, होठों पर होठ धरने व संग सो जाने की बात करते हैं। पर इस गीत में जिस तरह पायल जाने ना दूँगी और अब तोहे जाने ना दूँगी को निभाती हैं कि गीत सुनने के बाद भी उसका मीठा ज़ायका घंटों दिमाग में रहता  है तो आइए रात्रि के इस पहर में इस गीत के लिए बने इस गीत में थोड़ा डूबें इसके बोलों के साथ.. 


अब तोहे जाने ना दूँगी
अब तोहे जाने ना दूँगी
सौतन सी ये रैन है आई
सौतन सी ये रैन है आई
अब तोहे जाने ना दूँगी
प्रेम बरसाओ संग सो जाओ
जाने न दूँगी
अब तोहे जाने ना दूँगी

कुछ भी न बोलूँ ऐसा कर जाओ
होंठों पे मेरे होंठ धर जाओ

सुख वाली रूत जाने ना दूँगी
प्रेम बरसाओ संग सो जाओ
जाने न दूँगी
अब तोहे जाने न दूँगी

एक है मन्नत, एक है दुआ
दोनों ने इश्क की रूह को है छुआ
दायें से पढ़ या बाएँ से पढ़
फर्श से अर्श तक इश्क़ है लिखा

ना जाने ना जाने ना
ना जाने ना दूँगी
अब तोहे जाने न दूँगी
अब तोहे जाने न दूँगी
  

वार्षिक संगीतमाला 2015

शनिवार, मार्च 08, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 रनर्स अप : तुझ संग बैर लगाया ऐसा, रहा ना मैं फिर अपने जैसा (Laal Ishq )

वार्षिक संगीतमाला के पिछले दो महीनों का सफ़र पूरा करने के बाद  आज बारी है शिखर से बस एक पॉयदान दूर रहने वाले गीत की और दोस्तों यहाँ पर गीत है फिल्म गोलियों की रासलीला यानि रामलीला का। संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित फिल्मों के संगीत से मेरी हमेशा अपेक्षाएँ रही हैं। इसकी वज़ह है हम दिल दे चुके सनम, देवदास और साँवरिया का मधुर संगीत। पर जब वार्षिक संगीतमाला के गीतों के चयन के लिए मैंने रामलीला का गीत संगीत सुना तो मुझे निराशा ही हाथ लगी सिवाए इस एक गीत के। पिछले महीने जब ये फिल्म टीवी पर दिखाई गयी तो मेरी उत्सुकता सबसे ज्यादा इस गीत का फिल्मांकन देखने की थी। भगवान जाने देश के अग्रणी समाचार पत्रों ने क्या सोचकर इस फिल्म को पाँच स्टार से नवाज़ा था। गीत का इंतज़ार करते करते मुझे पूरी फिल्म झेलनी पड़ी क्यूँकि पूरा  गीत फिल्म में ना होकर उसकी credits के साथ आया। 


फिल्म चाहे जैसी हो दूसरी पॉयदान के इस गीत को बंगाल के मुर्शीदाबाद से ताल्लुक रखने वाले अरिजित सिंह ने जिस भावप्रवणता से गाया है उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम होगी। मुखड़े के पहले का उनका आलाप और फिर पीछे से उभरता कोरस आपका ध्यान खींच ही रहा होता है कि अरिजित की लहराती सी आवाज़ आपके दिल का दामन यूँ पकड़ती है कि गीत सुनने के घंटों बाद भी आप उसकी गिरफ़्त से मुक्त होना नहीं चाहते।

मेरे लिए ये आश्चर्य की बात थी कि इस फिल्म में संजय लीला भंसाली ने संगीत निर्देशन की कमान भी खुद ही सँभाली है। संजय ने  पूरे गीत में ताल वाद्यों के साथ  मजीरे का इस्तेमाल किया है। साथ ही अंतरों के बीच गूँजती शहनाई भी कानों को सुकून देती है। संजय कहते हैं कि गुजारिश के गीतों को संगीतबद्ध करने के बाद मुझे ऐसा लगा कि एक निर्देशक से ज्यादा कौन समझ सकता है कि पटकथा को किस तरह के संगीत की जरूरत है। मैं ऐसा संगीत रचने की कोशिश करता हूँ  जिसे मैं या मेरे साथ काम करने वाले गुनगुना सकें..गा सकें।

वार्षिक संगीतमाला में शामिल पिछले कुछ गीतों की तरह इस गीत के गीतकार द्वय भी फिल्म के पटकथा लेखक हैं। सिद्धार्थ और गरिमा की इस जोड़ी के लिए ये पहला ऐसा मौका था।

वैसे इस फिल्म के गीतों को लिखने और संजय के साथ काम करने का उनका अनुभव कैसा रहा ये जानना भी आपके लिए दिलचस्प रहेगा..संजय के साथ गीत संगीत को लेकर होने वाली तकरारों  के बारे में वे कहते हैं
"संगीत और बोल, सितार और तबले की तरह हैं। जुगलबंदी तो बनती है। कोई बोल सुनाने के बाद संजय सर की पहली प्रतिक्रिया एक चुप्पी होती थी। हम लोग उनसे पूछते थे सर वो अंतरा आप को कैसा लगा? उनका जवाब होता वो अंतरा नहीं संतरा था। और कुछ ही दिनों बाद संजय सर उस संतरे पर अपनी शानदार धुन बना देते। गीत के बोलों पर उनकी सामान्य सी प्रतिक्रिया कुछ यूँ होती थी तुम कितने cheap हो सालों !"
सिद्धार्थ गरिमा ने इश्क़ को इस गीत में लाल, मलाल, ऐब और बैर जैसे विशेषणों से जोड़ा है जो फिल्म की कथा के अनुरूप है। इश्क़  में मन के हालात को वो बखूबी बयाँ करते हैं जब वो लिखते हैं तुझ संग बैर लगाया ऐसा..रहा ना मैं फिर अपने जैसा। अब इस बैरी इश्क़ का खुमार ऐसा है कि दिल कह रहा है कि ये काली रात जकड़ लूँ ...ये ठंडा चाँद पकड़ लूँ आप मेरे साथ ये कोशिश करेंगे ना ?

ये लाल इश्क़, ये मलाल इश्क़
यह ऐब इश्क़, ये बैर इश्क़
तुझ संग बैर लगाया ऐसा
तुझ संग बैर लगाया ऐसा

रहा ना मैं फिर अपने जैसा
हो.. रहा ना मैं फिर अपने जैसा
मेरा नाम इश्क़, तेरा नाम इश्क़
मेरा नाम इश्क़, तेरा नाम इश्क़
मेरा नाम, तेरा नाम
मेरा नाम इश्क़
ये लाल इश्क़, ये मलाल इश्क़
यह ऐब इश्क़, ये बैर इश्क़

अपना नाम बदल दूँ.. (बदल दूँ)
या तेरा नाम छुपा लूँ (छुपा लूँ)
या छोड़ के सारी याद मैं बैराग उठा लूँ
बस एक रहे मेरा काम इश्क़
मेरा काम इश्क़, मेरा काम इश्क़
मेरा नाम इश्क़, तेरा नाम इश्क़
मेरा नाम, तेरा नाम...

ये काली रात जकड लूँ
ये ठंडा चाँद पकड़ लूँ
ओ.. ये काली रात जकड लूँ
ये ठंडा चाँद पकड़ लूँ
दिन रात के अँधेरी भेद का
रुख मोड के मैं रख दूँ
तुझ संग बैर लगाया ऐसा
रहा ना मैं फिर अपने जैसा
हो.. रहा ना मैं फिर अपने जैसा
मेरा नाम इश्क़, तेरा नाम इश्क़
मेरा नाम इश्क़, तेरा नाम इश्क़
मेरा नाम, तेरा नाम...



 

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