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मंगलवार, मार्च 01, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 सरताज गीत : मोह मोह के धागे Moh Moh Ke Dhage

दो महीनों की इस संगीत यात्रा के बाद बारी है आज वार्षिक संगीतमाला 2015 के सरताजी बिगुल को बजाने की। संगीतमाला की चोटी पर गाना वो जिसके साथ संगीतकार अनु मलिक ने की है हिंदी फिल्म जगत में शानदार वापसी। शिखर पर एक बार फिर हैं  वरुण ग्रोवर के प्यारे बोल जो पापोन व मोनाली ठाकुर की आवाज़ के माध्यम से दिल में प्रीत का पराग छोड़ जाते हैं। यानि ये कहना बिल्कुल अतिश्योक्ति नहीं होगी कि वो होगा ज़रा पागल जिसने इसे ना चुना :)। तो चलिए आज इस आपको बताते हैं इस गीत की कहानी इसे बनाने वाले किरदारों की जुबानी।



अनु मलिक का नाम हिंदी फिल्म संगीत में लीक से हटकर बनी फिल्मों के साथ कम ही जुड़ा है। पर जब जब ऐसा हुआ है उन्होंने अपने हुनर की झलक दिखलाई है। एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं के एक दशक से लंबे इतिहास में उमराव जान के गीत अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो के लिए वो ये तमगा पहले भी हासिल कर चुके हैं। पर इस बात का उन्हें भी इल्म रहा है कि अपने संगीत कैरियर का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने  बाजार की जरूरतों को पूरा करने में बिता दिया। इतनी शोहरत हासिल करने के बाद भी उनके अंदर कुछ ऐसा करने की ललक बरक़रार है जिसे सुन कर लोग लंबे समय याद रखें। उनकी इसी भूख का परिणाम है फिल्म दम लगा के हईशा  का ये अद्भुत गीत ! 

अनु मलिक ने गीत के मुखड़ा राग यमन में बुना जो आगे जाकर राग पुरिया धनश्री में मिश्रित हो जाता है। इंटरल्यूड्स में एक जगह शहनाई की मधुर धुन है तो दूसरे में बाँसुरी की। पर अनु मलिक की इस रचना की सबसे खूबसूरत बात वो लगती है जब वो मुखड़े के बाद तू होगा ज़रा पागल से गीत को उठाते हैं। पर  ये भी सच है की उनकी इतनी मधुर धुन को अगर वरुण ग्रोवर के लाजवाब शब्दों का साथ नहीं मिला होता तो ये गीत कहाँ अमरत्व को प्राप्त होता ?


वरुण ग्रोवर और अनु मलिक
वैसे इसी अमरत्व की चाह, कुछ अलग करने के जुनून  ने IT BHU के इस इंजीनियर को मुंबई की माया नगरी में ढकेल दिया। यूपी के मध्यम वर्गीय परिवार में पले बढ़े वरुण ग्रोवर का साहित्य से बस इतना नाता रहा कि उन्होंने बचपन में  बालहंस नामक बाल पत्रिका के लिए एक कहानी भेजी थी। हाँ ये जरूर था कि घर में पत्र पत्रिकाएँ व किताबें के आते रहने से उन्हें पढ़ने का शौक़ शुरु से रहा। वरुण कहते हैं कि छोटे शहरों में रहकर कई बार आप बड़ा नहीं सोच पाते। लखनऊ ने उन्हें अपने सहपाठियों की तरह इंजीनियरिंग की राह पकड़ा दी। बनारस गए तो पढ़ाई के साथ नाटकों से जुड़ गए और बतौर लेखक उनके मन में कुछ करने का सपना पलने लगा था। पुणे में नौकरी करते समय उन्होंने सोचा था कि दो तीन साल काम कर कुछ पैसे जमा कर लेंगे और फिर मुंबई की राह पकड़ेंगे। पर ग्यारह महीनों में  सॉफ्टवेयर जगत में काम करते हुए उनका अपनी नौकरी से  मोह भंग हो गया।

लेखक के साथ वरुण को चस्का था कॉमेडी करने का तो मुंबई की फिल्मी दुनिया में उन्हें पहला काम ग्रेट इ्डियन कॉमेडी शो लिखने का मिला। बाद में वो ख़ुद ही स्टैंड अप कॉमेडियन बन गए पर साथ साथ वो फिल्मों में लिखने के लिए अवसर की तलाश कर रहे थे। जिन लोगों के साथ वो काम करना चाहते थे वहाँ पटकथा लिखने का तो नहीं पर गीत रचने का मौका था। सो वो गीतकार बन गए। नो स्मोकिंग के लिए गाना लिखा पर वो उसमें इस्तेमाल नहीं हो सका। फिर अनुराग कश्यप ने उन्हें दि गर्ल इन येलो बूट्स में मौका दिया पर वरुण पहली बार लोगों की नज़र में आए गैंग्स आफ वासीपुर के गीतों की वजह से। फिर दो साल पहले आँखो देखी आई जिसने उनके काम को सराहा गया और आज देखिए इस वार्षिक संगीतमाला की दोनों शीर्ष पायदानों पर उनके गीत राज कर रहे हैं।

अनु मलिक ने अपने इस गीत के लिए जब पापोन को बुलाया तो वो तुरंत तैयार हो गए। अनु कहते हैं कि पहली बार ही गीत सुनकर पापोन का कहना था कि ये गाना जब आएगा ना तो जान ले लेगा

मोनाली ठाकुर और पापोन
जब गीत का फीमेल वर्सन बनने लगा तो अनु मलिक को मोनाली ठाकुर  की आवाज, की याद आई। ये वही मोनाली हैं जिन्होंने सवार लूँ से कुछ साल पहले लोगों का दिल जीता था।  मोनाली ने इंडियन आइडल में जब हिस्सा लिया था तो अनु जी ने उनसे वादा किया था कि वो अपनी फिल्म में उन्हें गाने का एक मौका जरूर देंगे। अनु मलिक को ये मौका देने में सात साल जरूर लग गए पर जिस तरह के गीत के लिए उन्होंने मोनाली को चुना उसके लिए वो आज भी उनकी शुक्रगुजार हैं। पापोन व मोनाली दोनों ने ही अपने अलग अलग अंदाज़ में इस गीत को बेहद खूबसूरती से निभाया है।

वरुण ने क्या प्यारा गीत लिखा है। सहज शब्दों में इक इक पंक्ति ऐसी जो लगे कि अपने लिए ही कही गई हो। अब बताइए मोह के इन धागों पर किसका वश चला है? एक बार इनमें उलझते गए तो फिर निकलना आसान है क्या? फिर तो हालत ये कि आपका रोम रोम इक तारा बन जाता है जिसकी चमक आप उस प्यारे से बादल में न्योछावर कर देना चाहते हों । अपनी तमाम कमियों और अच्छाइयों के बीच जब कोई आपको पसंद करने लगता है, आपकी अनकही बातों को समझने लगता है तो फिर  व्यक्तित्व की भिन्नताएँ चाहे दिन या रात सी क्यूँ ना हों मिलकर एक सुरमयी शाम की रचना कर ही देती हैं। इसीलिए गीत में वरुण कहते हैं.

हम्म... ये मोह मोह के धागे,तेरी उँगलियों से जा उलझे 
कोई टोह टोह ना लागे, किस तरह गिरह ये सुलझे 
है रोम रोम इक तारा.. 
है रोम रोम इक तारा ,जो बादलों में से गुज़रे.. 

ये मोह मोह के धागे....


तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना 
तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना 
कैसे तूने अनकहा, तूने अनकहा सब सुना 
तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना 
तू दिन सा है, मैं रात आना दोनों  
मिल  जाएँ शामों की तरह 

बिना आगे पीछे सोचे अपने प्रिय के साथ बस यूं ही समय बिताना बिना किसी निश्चित मंजिल के भले ही एक यूटोपियन अहसास हो पर उस बारे में सोचकर ही मन कितना आनंदित हो जाता है...नहीं ?


ये मोह मोह के धागे....
कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था 
कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था 
चिट्ठियों को जैसे मिल गया ,जैसे इक नया सा पता 
कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था 
खाली राहें, हम आँख मूंदे जाएँ 
पहुंचे कहीं तो बेवजह 

ये मोह मोह के धागे। ... 

 
अनु जी की धुन पर वरुण ने ये गीत पहले पापोन वाले वर्सन के लिए लिखा। मोनाली ठाकुर वाले वर्सन में गीत का बस दूसरा अंतरा बदल जाता है।

कि तेरी झूठी बातें मैं सारी मान लूँ
आँखों से तेरे सच सभी सब कुछ अभी जान लूँ
तेज है धारा, बहते से हम आवारा
आ थम के साँसे ले यहाँ



तो बताइए कैसा लगा आपको ये सरताज नग्मा ? पिछले साल के गीत संगीत की विभिन्न विधाओं में अव्वल रहे कलाकारों की चर्चा के साथ लौटूँगा इस संगीतमाला के पुनरावलोकन में।


वार्षिक संगीतमाला 2015

1  ये मोह मोह के धागे  Moh Moh Ke Dhage

रविवार, जनवरी 05, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान संख्या 23 : हवा के झोंके आज मौसमों से रूठ गये..सँवार लूँ (Sanwaar Loon)

अमित त्रिवेदी  व अमिताभ भट्टाचार्य के गीत संगीत का मैं उनकी पहली फिल्म आमिर के दिनों से ही शैदाई रहा हूँ और इसकी अभिव्यक्ति गुजरे साल की वार्षिक संगीतमालाओं में होती रही है। 2013 में इस जोड़ी द्वारा किया गया बेहतरीन काम आपको इस संगीतमाला के विभिन्न पड़ावों पर दिखेगा। पिछले साल उनका जो गीत देश के टीवी और रेडियो चैनलों ने सबसे अधिक बजाया है वो है सँवार लूँ ...और यही गीत बैठा है वार्षिक संगीतमाला 2013 की अगली सीढ़ी पर। 

पिछले कई सालों से आपने एक बात गौर की होगी कि जब जब हमारे संगीतकारों को गुज़रे ज़माने से जुड़ी कोई पटकथा हाथ लगी है तो उन्होंने उसके अनुरूप संगीत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। ए आर रहमान की 'जोधा अकबर' और 'लगान', प्रीतम की 'बर्फी', शांतनु मोइत्रा की 'परिणिता', इस्माइल दरबार की 'देवदास' इसके कुछ जीते जागते उदाहरण है। लुटेरा के साथ अमित त्रिवेदी का नाम भी ऐसे संगीतकारों की सूची में जुड़ा है।

'उड़ान' के संगीत निर्देशन के दौरान अमित और विक्रमादित्य के बीच जो आपसी समझ बूझ विकसित हुई उसका विस्तार लुटेरा के दृश्यों में रचे बसे गीतों में मिलता है। निर्देशक अमित त्रिवेदी कहते हैं कि विक्रमादित्य की पटकथाएँ ही अपने आप में इतनी उत्प्रेरक होती हैं कि उसका संगीत रचने के लिए अलग से हमें किसी 'brief' की आवश्यकता नहीं होती। विक्रमादित्य मोटवाने जब अमित त्रिवेदी के सामने लुटेरा की पटकथा लाए तो उनके सामने पचास और साठ के दशक का बंगाल घूम गया। ये वो दौर था जब वहाँ के संगीत में सलिल चौधरी, सचिन देव बर्मन और राहुल देव बर्मन की तूती बोलती थी और उन्होंने इस फिल्म के गीतों को इन्हीं दिग्गज़ों द्वारा रचे संगीत जैसी ही आवाज़ दी। यही वज़ह है कि जहाँ सँवार लूँ की धुन एस डी बर्मन को समर्पित है वहीं 'अनकही' का गीत संगीत गुलज़ार-पंचम द्वारा इजाज़त के किए गए काम से प्रेरित।"

अमित के संगीत और अमिताभ के बोलों को साथ मिला है नवोदित गायिका  मोनाली ठाकुर के स्वर का । यूँ अब मोनाली को सिर्फ गायिका कहना ठीक नहीं क्यूँकि शीघ्र ही बतौर नायिका वो हिंदी फिल्मों के पर्दों पर नज़र आने वाली हैं। इंडियन आइडल-2, 2006 के प्रथम दस में स्थान बनाने वाली 28 वर्षीय मोनाली, यूँ तो बंगाल के एक सांगीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से आती हैं पर उन्हें गायिकी के आलावा नृत्य और अभिनय करने से भी परहेज़ नहीं है।


इंडियन आइडल 2 में चर्चित होने के बाद उन्हें हिंदी फिल्म जगत में अपनी  पहली सफलता दो साल के संघर्ष के बाद 2008 में रेस  के गीत 'ज़रा जरा टच मी ' से मिली। वैसे पिछले पाँच सालों में उनकी झोली में दर्जन भर से थोड़े ज्यादा गीत ही आ पाए हैं। सँवार लूँ और फिल्मों में अभिनय की शुरुआत के बाद उनका कैरियर किस करवट बैठेगा ये तो वक़्त ही बताएगा।

सँवार लूँ का सबसे आकर्षक हिस्सा मुझे इसका आरंभिक संगीत और मुखड़ा लगता है। मुखड़े का आकर्षण पहले और फिर दूसरे अंतरे तक आते आते थोड़ा क्षीण हो जाता है।  गीत के साथ चलती हुई ताल वाद्यों की थपक  जहाँ पंचम की तो वहीं इंटरल्यूड्स में सुनाई देने वाली बाँसुरी और सीमिल आर्केस्ट्रा सचिन दा के संगीत की याद दिला जाता है। मोनाली ठाकुर की चुलबुली आवाज़ में शोखी के साथ जो मिठास है वो गीत सुने वक़्त दिल को तरंगित कर देती है।

अमिताभ भट्टाचार्य नायिका के दिल का मूड परखने के पहले उसकी आँखों से प्रकृति की कारगुजारियों का जो खाका खींचते हैं वो वाकई शानदार है। मिसाल के तौर पर गीत का मुखड़ा देखिए जहाँ अमिताभ लिखते हैं कि पवन देवता इसलिए रुष्ट हो गए कि इससे पहले वे फूलों की पंखुड़ियों को सहला पाते, भौंरे उन पुष्पों की सुंदरता का रसपान करके फुर्र हो लिए। किसी अजनबी के लिए नायिका के हृदय में कोमल भावनाओं का आगमन को अमिताभ पहले अंतरे में कुछ यूँ बाँधते हैं पंक्तियाँ बरामदे पुराने हैं, नयी सी धूप हैं, जो पलके खटखटा रहा हैं किसका रूप है अब आप ही बताइए ऐसी शरारतें कर दिल को गुदगुदाने वाले को  नायिका कैसे अपनी शर्मो हया छोड़कार नाम कैसे पुकार ले ?

तो आइए सुनते हैं इस गीत को एक बार फिर से..


हवा के झोंके आज मौसमों से रूठ गये
गुलों की शोखियाँ जो भँवरे आ के लूट गये
बदल रही हैं आज ज़िंदगी की चाल ज़रा
इसी बहाने क्यूँ ना मैं भी दिल का हाल ज़रा
सँवार लूँ , सँवार लूँ ,सँवार लूँ  हाए सँवार लूँ


बरामदे पुराने हैं, नयी सी धूप हैं
जो पलके खटखटा रहा हैं किसका रूप हैं

शरारातें करे जो ऐसे, भूल के हिजाब
कैसे उसको नाम से, मैं पुकार लूँ
सँवार लूँ .....

ये सारी कोयलें बनी हैं आज डाकिया
कूहु-कूहु में चिठ्ठियाँ पढ़े मज़ाकिया

इन्हे कहो की ना छुपाये
किसने है लिखा बताये
उसकी आज मैं नज़र उतार लूँ
सँवार लूँ ....हवा के झोंके आज मौसमों से रूठ गये
...

 वैसे इस गीत का फिल्मांकन भी बड़ा खूबसूरत है ...



 चलते चलते एक बात और ! इस गीत से जुड़ी एक विचित्र बात मुझे ये लगी कि हर जगह इसके गीत को सवार लूँ (Sawaar Loon) के नाम से क्यूँ प्रचारित किया गया जबकि गीत में ये सँवार लूँ  (Sanwaar Loon) की तरह आया है? अर्थ का अनर्थ करती इस भूल के प्रति विक्रमादित्य मोटवाने और अमित त्रिवेदी जैसी हस्तियाँ सजग नहीं रहीं ये देख कर अच्छा नहीं लगा।
 

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