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शुक्रवार, फ़रवरी 03, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 : पॉयदान संख्या 9 - कैलाश खेर कहाँ ले जा रहे हैं इस 'अभिमानी मन' को !

विनय पाठक और कैलाश खेर! एक सुनहरे पर्दे का बेहतरीन अभिनेता, तो दूसरा एक ऐसा गायक जिसकी आवाज़ ऐसी प्रतीत होती है जैसे साक्षात भगवन की वाणी हो। ये एक सुखद संयोग ही है कि आज से तीन साल पहले वार्षिक संगीतमाला की नवीं पॉयदान पर पर्दे के आगे पीछे की इस जोड़ी का एक और गीत बजा था माँ प्यारी माँ मेरी माँ मम्मा...। आज ये दोनों कलाकार फिर एक साथ हुए हैं एक फिलासफिकल मूड के गीत के साथ जो जिंदगी की इस भागम भाग में ठहरकर अपने कृत्यों पर ठंडे दिमाग से एक बार पुनर्विचार करने की बात कहता है। पप्पू कॉन्ट डांस साला के इस गीत को लिखा है, फिल्म के निर्देशक सौरभ शुक्ला ने जो कि अपने आप में कमाल के चरित्र अभिनेता हैं।


क्या आपको ऍसा नहीं लगता कि कई बार हम अपने जिंदगी के तमाम जरूरी फैसले तार्किक तरीके से नहीं बल्कि अपनी भावनाओं के आवेश में आकर ले लेते हैं। इस आवेश के पीछे बहुधा होता है हमारा 'अहम' यानि 'ईगो'(ego)। ये 'ईगो' हमें अपने अपनी बनी बनाई धारणाओं में लचीला रुख इख्तियार करने से विमुख करता है। नतीजन अहम के इस बोझ से कई बार रिश्तों की मजबूत दीवारें भी चरमरा उठती है। बाद में जब अपनी भूल का अहसास होता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है। 
गीतकार सौरभ शुक्ला अपने गीत में ऐसे ही एक 'अभिमानी मन' की बात कर रहे हैं जो अपनों से भाग कर कहीं दूर शांति की तलाश में जा रहा है। शायद एकांत में रो लेने से उसका जी हल्का हो जाए ..

जिया हुआ जो मलंग
छोड़ अपनों का संग
चला मन अभिमानी मन चला
छाए बदरा सघन
और दूर है गगन
चला मन अभिमानी मन चला

जाएगा..जाएगा पर कहाँ
रो सके पल दो पल छुपके जहाँ
जिया हुआ जो मलंग...


क्या अपने आप को सबसे अलग थलग कर लेना अपने मन को छलावा देना नहीं हैं? गीतकार, गीत के अंतरे में नायक से यही सवाल करते हैं।

क्या रुत आई है, आँख भर आई है
प्रेम तेरी क्या है दास्तान
कल जो हमारा था, सब कुछ सारा था
अब ना रहेगा वास्ता
जग मेला पर अकेला
चैन पगले तू पाएगा कहाँ
जाएगा जाएगा.....

चल रे मुसाफ़िर, भोर भई पर
जाना है किस पार रे
दूर तू है आया सबको भुलाया
फिर भी हें यादें साथ रे
ना वो भूली ना तू भूला
ना वो भूली ना तू भूला
फिर बनाए हैं क्यूँ फासले
जाएगा जाएगा.....

सौरभ शुक्ला के सरल सहज शब्द, कैलाश खेर के स्वर में सीधे दिल से लगते हैं।  शायद इसीलिए फिल्म के नायक विनय पाठक को भी ये गीत फिल्म का सर्वश्रेष्ठ गीत लगता है। बतौर संगीतकार मल्हार की ये पहली फिल्म है। सचिन जिगर की तरह मल्हार भी संगीतकार प्रीतम के शागिर्द रहे हैं।  प्रीतम,  मल्हार के बारे में कहते हैं कि उसकी लोक संगीत और पश्चिमी संगीत दोनों पर पकड़ है और वो फ्यूजन बेहतरीन करता है। प्रीतम का इशारा जिस तरफ है वो आप इस गीत के मुखड़े और इंटरल्यूड्स को सुन कर समझ जाएँगे। कुल मिलाकर मल्हार का बेहतरीन संगीत संयोजन एक नई बयार की तरह कानों में पड़ता है। तो आइए सुनते हैं इस अलग मिज़ाज के गीत को..



 

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