जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वार्षिक संगीतमाला की 23 वीं पायदान पर एक बार फिर विराजमान है फिल्म मेरी क्रिसमस का एक दूसरा गीत। इससे पहले इसी फिल्म में अंतरा मित्रा और अरिजीत का गया गीत मैने आपको सुनवाया था।
प्रीतम के संगीत निर्देशन में बनी इस फिल्म के सारे गीत औसत से तो बेहतर ही थे। पर इस गीतमाला में आज इस फिल्म का वो गीत है जिसे गाया है सुनिधि चौहान ने और इस गीत के बोल लिखे हैं वरुण ग्रोवर ने।
वरुण ग्रोवर एक बेहतरीन गीतकार हैं हालाँकि मुझे लगता है की अभी भी उनको उतने गीत लिखने को नहीं मिले हैं जितनी प्रतिभा उनमें है।जोर लगा के हइशा में उनका लिखा मोह मोह के धागे या मसान में दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल से प्रेरित तू किसी रेल से गुजरती है आज भी लोगों द्वारा बड़े मन से गुनगुनाए जाते हैं। फिल्म गैंग्स आफ वासेपुर और सुई धागा में भी उमका काम बेहतरीन था।
प्रीतम के साथ काम करने का वरुण के लिए ये पहला मौका था। इस फिल्म के लिए गीत लिखने के अनुभव के बारे में वरूण का कहना था
श्रीराम राघवन की फिल्मों का अनूठा पहलू यह है कि उनकी फिल्मों के गाने पटकथा से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। यह मेरे लिए कहानी और मूड के सार को पकड़ने का मौका तो देता ही है, साथ ही फिल्म के संदर्भ से इतर भी कुछ मनोरंजक रचने का अवसर प्रदान करता है। बिना इसकी पटकथा जाने हुए भी लोगों ने इस फिल्म के गीतों को पसंद किया है।
सच तो ये है कि मैंने भी मेरी क्रिसमस नहीं देखी पर इसके बावज़ूद भी इसके गीत मेरी गीतमाला का हिस्सा बने हैं।
ये फिल्म क्रिसमस के आस पास रिलीज़ हुयी थी। इसका जो ये शीर्षक गीत है वो इसी त्योहार की मौज मस्ती की तरंग को अपने अंदर समाता हुआ सा बहता है। वरुण के शब्द और सुनिधि की प्यारी गायिकी इस खुशनुमा माहौल को धनात्मक उर्जा और प्रेम के रंगों से भर देते हैं। सुनिधि की गायिकी कितनी शानदार है वो आप इस गीत के ऐश किंग वाले वर्सन को सुन कर समझ सकते हैं। प्रीतम ने अपने इस गीत में ट्रम्पेट का बेहतरीन इस्तेमाल किया है जिसे आप गीत के बोलों के आगे पीछे इस गीत में बारहा सुनेंगे।
मन में फूटा Rum Cake सा
हर कोई लगता नेक सा दिन बड़ा ये ख़ास है, प्यार आस-पास है छाया है जादू एक सा
Cherry और Sherry का समाँ नेमत बरसाता आसमाँ सात रंग शाम के, नाचें हाथ थाम के बातें भी बन जाएँ दुआ
बस, ये ख़ुमार मुझपे थोड़ा-सा, थोड़ा-सा, थोड़ा-सा आने दे बस, एक बार मुझे गहरे समंदर में गुम हो जाने दे ओ, बस, ये ख़ुमार मुझपे थोड़ा-सा, थोड़ा-सा, थोड़ा-सा आने दे बस, एक बार मुझे गहरे समंदर में गुम हो जाने दे,
रोशन तारों की रात है हम दिल-हारों की रात है प्यार है, जुनून है, और इक सुकून है सब रस्ते आते हैं यहाँ
प्रीतम एक प्रतिभाशाली संगीतकार हैं । अपने संगीत को माँजने में अक्सर बड़ी मेहनत करते हैं। उनके बारे में मशहूर है कि गीत रिलीज़ होने के एक दिन पहले तक वो अपने संगीत संयोजन में परिवर्तन करते रहते हैं। उनके सहायक के रूप में कई नए चेहरे आए जो बाद में ख़ुद एक संगीतकार बन गए और कुछ गायक। उनमें एक हमारे अरिजीत सिंह भी हैं जिन्हें आज का युवा अपने सिर आँखों पर बिठाकर रखता है।
पर 2024 में यही प्रीतम कुछ खास कमाल नहीं दिखा सके। उनके जो कुछ गीत थोड़े बजे भी उनकी धुनों में मुझे एक दोहराव सा प्रतीत हुआ। साल 2024 की शुरुआत में उनकी एक फिल्म आई थी मेरी क्रिसमस। इस थ्रिलर के निर्देशक थे श्रीराम राघवन। प्रीतम ने इन्हीं के साथ 2012 में भी एक फिल्म की थी जिसका नाम था Agent Vinod। इस फिल्म का एक गीत था राब्ता। वार्षिक संगीतमाला की 25 वीं पायदान पर मैंने जिस गीत को रखा है वो मुझे राब्ता की याद दिला देता है। क्यूँ दिला देता है वो इस गीत को सुन कर देखियेगा। बहरहाल अरिजीत और अंतरा मित्रा की जोड़ी के साथ वरुण के बोलों ने इस गीत को इतना कर्णप्रिय जरूर बना दिया है कि वो इस संगीतमाला का हिस्सा बन पाए।
प्रीतम ज्यादातर अमिताभ भट्टाचार्य और इरशाद कामिल जैसे गीतकारों के साथ काम करते रहे हैं पर इस बार उन्होने इस फिल्म के लिए अपनी जोड़ी बनाई वरुण ग्रोवर के साथ। वरुण ग्रोवर ने बातचीत के अंदाज़ में कुछ प्यारे से बोल लिखे हैं..
रात अकेली थी तो बात निकल गई
तन्हा शहर में वो तन्हा सी मिल गई
मैंने उससे पूछा, "हम पहले भी मिले हैं कहीं क्या?"
फिर?
उसकी नज़र झुकी, चाल बदल गई
ज़रा सा क़रीब आई, और सँभल गई
हौले से जो बोली, मेरी जान बहल गई, हाँ
क्या बोली?
हाँ, हम मिले हैं १००-१०० दफ़ा
मैं धूल हूँ, तू कारवाँ
इक-दूसरे में हम यूँ लापता
मैं धूल हूँ, तू कारवाँ
क्या आपने इस फिल्म के बाकी गाने सुने हैं? इस फिल्म का एक और गीत है मेरी इस संगीतमाला में। उसे बाद में सुनवाता हूँ । फिलहाल इसे सुन लीजिए।
वार्षिक संगीतमाला में 2023 के पच्चीस बेहतरीन गीतों की शृंखला अब अपने अंतिम चरण में आ पहुंची है। आज जिस गीत के बारे में मैं आपसे चर्चा करने जा रहा हूं उसकी रूपरेखा एक विशुद्ध मुंबईया फिल्मी गीत सरीखी है। यहां हसीन वादियां हैं, खूबसूरत परिधानों में परी सी दिखती नायिका है और साथ में एक छैल छबीला नायक जो हवा के झोंकों के बीच बहती सुरीली धुन और मन को छूते शब्दों में अपने प्रेम का इज़हार कर रहे हैं। हालांकि वास्तव में नायक वहां है नहीं पर नायिका उसकी उपस्थिति महसूस कर रही है। यथार्थ से परे होकर भी भारतीय दर्शक गीतों में इस larger than life image को दिल से पसंद करते हैं क्यूंकि ऐसे गीतों की परंपरा हिन्दी सिनेमा में शुरू से रही है या यूं कह लें कि ये बॉलीवुड की विशिष्टता है जिसे हम सबने अपनी थाती बनाकर अपने दिल में बसा लिया है।
ये गीत है फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी से। पिछले साल के अंत में आई ये फिल्म हिट तो हुई ही थी, इसके गाने भी खूब पसंद किए गए थे। वे कमलेया और वाट झुमका से तो आप परिचित होंगे ही। आज के गीत, तुम क्या मिले जो इस फिल्म का मेरा सबसे पसंदीदा गीत है, को मैंने पिछले साल खूब सुना था और अब तक सुन रहा हूं। मुझे यकीन है कि अगर आपने ये गीत अब तक नहीं सुना तो इसे सुन कर आप अवश्य इसकी मधुरता के कायल हो जाएंगे।
अक्सर गीतों के मुखड़ों के पहले कई संगीतकार पियानो का बेहद प्यार इस्तेमाल करते हैं। तुम क्या मिले की शुरुआत भी इसी वाद्य यंत्र से होती है। जब जब इस गीत को सुनना शुरु करता हूँ पियानो की ये धुन मुझे अलग ही दुनिया में ले जाती है। वो जो प्रेम की मीठी सी कसक होती है न वही कुछ है हिमांशु पारिख के बजाए मन को तरंगित करते इस टुकड़े में । मन इस स्वरलहरी में हिलोरे ले ही रहा होता है कि अमिताभ भट्टाचार्य के शब्द समय के उस छोर पे मुझे ले जाते हैं जब ऐसी ही भावनाएँ दिल में घर बनाया करती थीं।
भला किसको अपनी ज़िंदगी में किसी ऐसे शख़्स से मिलने का इंतज़ार नहीं होता जो उसकी बेरंगी शामों को रंगीन बना दे। फीके लम्हों में नमकीनियाँ भर दे। और जब दिल की ये मुराद पूरी हो जाती है तो यही चाहत बेचैनी और मुसीबत का सबब भी बन जाती है और इसीलिए अमिताभ ने गीत के मुखड़े में लिखते हैं
बेरंगे थे दिन, बेरंगी शामें
आई हैं तुम से रंगीनियाँ
फीके थे लम्हे जीने में सारे
आई हैं तुम से नमकीनियाँ
बे-इरादा रास्तों की बन गए हो मंज़िलें
मुश्किलें हल हैं तुम्हीं से या तुम्हीं हो मुश्किलें?
पियानो की मिठास अब भी इन शब्दों के पीछे बरक़रार रहती है। अरिजीत के मोहक स्वर में तुम क्या मिले की पंच लाइन आते आते ढोलक, तबले के साथ साथ तार वाद्य और ट्रम्पेट अपनी संगत से गीत का मूड खुशनुमा कर देते हैं और फिर फ़िज़ा में तैर जाती है श्रेया की दिलकश आवाज़। अंतरों के बीच श्रेया का आलाप रस की फुहार जैसा प्रतीत होता है। प्रीतम मेलोडी के बादशाह है। श्रोताओं के कानों में कब कैसा रस घोलना है वो बखूबी जानते हैं। अरिजीत, श्रेया और अमिताभ उनके संगीत संयोजन को गायिकी और बोल से ऐसे उभारते हैं कि मन रूमानी हो ही जाता है। गीत का अंत तरार वाद्यों के साथ बजते ट्रम्पेट के उत्कर्ष से होता है।
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले हम ना रहे हम, तुम क्या मिले जैसे मेरे दिल में खिले फागुन के मौसम, तुम क्या मिले तुम क्या मिले, तुम क्या मिले तुम क्या मिले, तुम क्या मिले
कोरे काग़ज़ों की ही तरह हैं इश्क़ बिना जवानियाँ दर्ज हुई हैं शायरी में, जिनकी हैं प्रेम कहानियाँ हम ज़माने की निगाहों में कभी गुमनाम थे अपने चर्चे कर रही हैं अब शहर की महफ़िलें
तुम क्या मिले,....
हम थे रोज़मर्रा के, एक तरह के कितने सवालों में उलझे उनके जवाबों के जैसे मिले झरने ठंडे पानी के हों रवानी में, ऊँचे पहाड़ों से बह के ठहरे तालाबों से जैसे मिले
तुम क्या मिले....
गीत के बारे में इतना कुछ कहने के बाद इसके फिल्मांकन की बात ना करूँ तो कुछ चीजें अधूरी रह जाएँगी। करण जौहर ने जब इस गीत का फिल्मांकन किया तो उनके मन में यश चोपड़ा की फिल्मों के गीत उमड़ घुमड़ रहे थे।
इस गीत में गुलमर्ग, पहलगाम और श्रीनगर के शूट किए दृश्य इतने शानदार हैं कि उन्हें देख मन बर्फ की वादियों में तुरंत लोट पोट करने का करता है। अमिताभ एक जगह लिखते हैं झरने ठंडे पानी के हों रवानी में, ऊँचे पहाड़ों से बह के ..ठहरे तालाबों से जैसे मिले...तुम क्या मिले.... और कैमरा पहाड़ से गिरती बलखाती नदी का एरियल शॉट ले रहा होता है।
प्राकृतिक खूबसूरती के साथ साथ आलिया बर्फ की सफेद चादर के परिदृश्य में अपनी रंग बिरंगी शिफॉन की साड़ियों से दर्शकों का मन मोह जाती हैं। इस गीत के बाद उन साड़ियों का ऐसा क्रेज हुआ कि वे कुल्फी साड़ियों के नाम से बाजार में बिकने भी लगीं। आलिया के व्यावसायिक कौशल की तारीफ़ करनी होगी कि प्रेगनेंसी के चार महीने बाद ही पूरी तरह फिट हो कर इस गीत के लिए कश्मीर के ठंडे मौसम में अपने आप को तैयार किया।
आइए देखें ये पूरा गीत जो है रॉकी और रानी की प्रेम कहानी का।
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
वार्षिक संगीतमाला में अब सिर्फ पाँच गीतों से आपका परिचय कराना रह गया है और उनमें से आज का गीत है फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी से। गीत का मुखड़ा शुरु होता है वे कमलेया.. से। हिंदी फिल्म के गानों ने पिछले एक दो दशकों में आम जन को हिंदी से ज्यादा पंजाबी शब्दों से खासा रूबरू कराया है भले ही पंजाबी चरित्र फिल्म में हों या ना हों। वैसे यहाँ वो मसला नहीं है और बात रॉकी रंधावा के पागल दिल की हो रही है। दरअसल कमलेया शब्द कमली से निकला है जिसका शाब्दिक अर्थ है पागल या जुनूनी।
पिछले साल आई फिल्मों में रॉकी और रानी की प्रेम कहानी की सफलता का बहुत बड़ा श्रेय इसके संगीत को जाता है। फिल्म का संगीत रचने के पहले निर्माता करण जौहर ने दो हिदायतें दी थीं प्रीतम को। पहली ये कि गाने लंबे यानी कम से कम दो अंतरों के होने चाहिए और दूसरी कि गीतों में नब्बे के दशक की छाप होनी चाहिए। हालांकि फिल्म के संपादन में अक्सर गाने की लंबाई पर कैंची चलती है। इस फिल्म में भी यही हुआ पर उसके पहले पूरा एलबम इतना कामयाब हो चुका था कि मेरे जैसे दर्शक तो फिल्म के गाने सुनते सुनते इसे देखने पहुँच गए। अंतरों के बीच कोरस का इस्तेमाल तो पहले भी होता था और प्रीतम ने उसी खांचे को यहाँ भी फिट करने की कोशिश की है।
जहाँ फिल्म की कथा में भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा हो तो कोई गीत तभी दिल को छूता है जब उसके शब्द के साथ आप अपने को जोड़ पाएँ। प्रेम या विरह गीतों के साथ ये सहूलियत है कि आप उन्हें फिल्म से इतर भी सुनें तो वो उतना ही असर छोड़ते हैं क्यूँकि ये ऐसे जज़्बात है जिन्हें शायद ही किसी ने महसूस नहीं किया होगा। अमिताभ प्रेमी के बेचैन दिल की दास्तान की कितनी प्यारी शुरुवात करते हुए लिखते हैं ....दो नैनों के पेचीदा सौ गलियारे इन में खो कर तू मिलता है कहाँ?......तुझको अम्बर से पिंजरे ज्यादा प्यारे उड़ जा कहने से सुनता भी तू है कहाँ ? अमिताभ की लेखनी का कमाल दूसरे अंतरे में भी बना रहता है। प्रेम में डूबे दिल के लिए कितना सही लिखा उन्होंने..... जिनपे चल के मंजिल मिलनी आसान हो, वैसे रस्ते तू चुनता है कहाँ.?... कसती है दुनिया कस ले फ़िक़रे, ताने उँगली पे आखिर गिनता भी तू है कहाँ ?
प्रीतम की मेलोडी पर बेहतरीन पकड़ है। उनकी फिल्मों में बोल लिखने का काम ज्यादातर या तो अमिताभ के पास होता है या फिर इरशाद कामिल के पास। दोनों ही कमाल के गीतकार हैं। रही बात अरिजीत की तो वो हमेशा संगीतकार की अपेक्षा से बढ़कर कर काम करते हैं। प्रीतम, अमिताभ और अरिजीत के मन के तार कहीं और भी जा के मिलते हैं। अरिजीत और अमिताभ ने अपने कैरियर के आरंभिक दौर में प्रीतम के सहायक का काम किया था। संघर्ष के उन दिनों में इस बंगाली जोड़ी को निर्माता निर्देशकों तक पहुँचाने में प्रीतम की अहम भूमिका थी। इतना समय साथ बिताने की वज़ह से उनके बीच की आपसी समझ पुख्ता हुई है। यही वज़ह है कि ये तिकड़ी जहाँ भी एक साथ होती है कुछ अच्छा बन के ही निकलता है।
वे कमलेया वे कमलेया, वे कमलेया मेरे नादान दिल दो नैनों के पेचीदा सौ गलियारे इन में खो कर तू मिलता है कहाँ तुझको अम्बर से पिंजरे ज्यादा प्यारे उड़ जा कहने से सुनता भी तू है कहाँ गल सुन ले आ गल सुन ले आ वे कमलेया मेरे नादान दिल
जा करना है तो प्यार कर ज़िद पूरी फिर इक बार कर कमलेया वे कमलेया मनमर्ज़ी कर के देख ले बदले में सब कुछ हार कर कमलेया वे कमलेया
तुझपे खुद से ज्यादा यार की चलती है इश्क़ है ये तेरा या तेरी गलती है गर सवाब है तो क्यों सज़ा मिलती है
जिनपे चल के मंजिल मिलनी आसान हो वैसे रस्ते तू चुनता है कहाँ.
कसती है दुनिया कस ले फिकरे ताने
उँगली पे आखिर गिनता भी तू है कहाँ मर्ज़ी तेरी जी भर ले आ वे कमलेया मेरे नादान दिल...
अरिजीत के साथ गीत का एक छोटा सा हिस्सा श्रेया ने भी गाया है। एक साल बीत गया पर अभी भी ये गीत लोगों की जुबां पे है। तो आइए सुनें इस गीत को एक बार फिर
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
वार्षिक संगीतमाला की अगली कड़ी में आज एक गीत फिल्म डंकी से। ये फिल्म तो लोगों ने उतनी पसंद नहीं की, हां पर इसके एक दो गाने यू ट्यूब पर खूब बजे, इंस्टा की रीलों पर छा गए। अब इसका सबसे ज्यादा श्रेय तो मैं संगीतकार प्रीतम को देना चाहता हूं।
प्रीतम एक ऐसे संगीतकार हैं जिनकी मेलोडी पर जबरदस्त पकड़ है। वो ये बखूबी समझते हैं कि श्रोताओं को कैसी सिग्नेचर धुन, कैसे इंटरल्यूड्स पसंद आयेंगे। ज्यादातर वे इरशाद कामिल और अमिताभ भट्टाचार्य के साथ अपने गीत रचते हैं जो उनकी बनाई धुनों के साथ न्याय करने में सक्षम हैं।
तो डंकी फिल्म का जो गीत मेरे पसंदीदा गीतों की सूची में आया है वो है ओ माही ओ माही। मुखड़े के पहले के बीस सेकेंड में ही प्रीतम अपनी आरंभिक धुन से ध्यान खींच लेते हैं।
माही शब्द को केंद्र में ले के दर्जनों गीत बन होंगे पर मजाल है कि श्रोता आज तक इससे ऊबे हों। इस गीत की तो ओ माही के दुहराव वाली पंक्ति ही लोगों के मन में रच बस गई है। दरअसल आज भी युवा अपने प्रेम का इज़हार करने के लिए ऐसे फिल्मी गीतों का सहारा लेते हैं जिसके बोल प्यारे पर सहज हों और जिसका संगीत कर्णप्रिय हो।
वार्षिक संगीतमाला का ये गीत किस पायदान पर अंततः आएगा उसका खुलासा तो बाद में होगा पर इतना तो तय है कि सुरीले गीतों की इस साल की फेरहिस्त में अरिजीत सिंह का नाम बार बार आएगा।
तो अगर आपने इरशाद कामिल का लिखा ये गीत न सुना हो तो सुन लीजिए।
जो गीत सिनेमा की पटकथा से निकल कर आते हैं वो तभी जनता तक पहुँच पाते हैं जब फिल्म सफल होती है। 1983 विश्व कप क्रिकेट में भारत की अप्रत्याशित जीत पर बनी फिल्म 83 के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। प्रीतम का संगीत और कौसर मुनीर के लिखे गीत औसत से अच्छे थे पर उतना सुने नहीं गए जितने के वे हक़दार थे। जीतेगा जीतेगा इंडिया जीतेगा तो फिल्म की कहानी का हिस्सा नहीं बन पाया पर इसी फिल्म का अरिजीत सिंह द्वारा गाया गीत लहरा दो फिल्म में था और आज मेरी इस पिछले साल के शानदार गीतों की परेड में भी शामिल हो रहा है।
ये गीत फिल्म में तब आता है जब भारत उस प्रतियोगिता में करो और मरो वाली स्थिति में आ गया था। जितनी बात फाइनल में कपिल के पीछे भागते हुए विवियन रिचर्डस का कैच लेने की जाती है उतने ही गर्व से कपिल की उस पारी को याद किया जाता है जो उन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ खेली थी। जो क्रिकेट के शौकीन नहीं हैं वो थोड़ा असमंजस में जरूर पड़ेंगे कि आख़िर जिम्बाब्वे जैसे कमज़ोर क्रिकेट खेलने वाले देश के साथ खेली गयी पारी पर इतनी वाहवाही क्यूँ? तो थोड़ा तफसील से इसकी वजह बताना चाहूँगा आपको क्यूँकि तभी आप इस गीत का और आनंद ले पाएँगे।
83 में भारत की टीम को एकदिवसीय क्रिकेट में बेहद कमज़ोर टीमों में ही शुमार किया जाता था जिसने तब तक विश्व कप कि किसी भी प्रतियोगता में सिर्फ एक मैच ही जीता था। पर उस विश्व कप में भारत पहले मैच में वेस्ट इंडीज़ जैसे देश को हराकर सनसनी फैला दी थी। वैसा ही कारनामा जिम्बाब्वे ने आस्ट्रेलिया को हरा कर रचा था। तब ग्रुप की सारी टीमें एक दूसरे से दो दो मैच खेलती थीं। दूसरे मैच में जिम्बाब्वे को हराने के बाद अपने तीसरे और चौथे मैच में भारत, आस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ से बुरी तरह हारा था।
कई खिलाड़ियों की चोट से जूझती भारतीय टीम जिम्बाब्वे के खिलाफ़ अपने अगले मैच में मजबूत प्रदर्शन देने के लिए उतरी थी। कपिल ने टॉस जीता और बल्लेबाजी करने का फैसला लिया और तरोताजा होने के लिए गर्म पानी से स्नान का आनंद लेने चल दिए। इधर वो नहा रहे थे उधर भारतीय बल्लेबाज धड़ाधड़ आउट होते जा रहे थे। गावस्कर, श्रीकांत और संदीप पाटिल जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने तो खाता खोलने की भी ज़हमत नहीं उठाई थी। नौ रन पर चार विकेट और फिर 17 के स्कोर पर जब पाँचवा विकेट गिरा कपिल तब भी नहाने में तल्लीन थे। बाहर से लगातार आवाज़ दी जा रही थी कि पाजी निकल लो। कपिल हड़बड़ाकर भींगे बालों में ही निकले और उसके बाद उन्होने 175 रनों की नाबाद पारी खेल कर भारत को मैच में वापसी दिलायी।
फिल्म में ये गीत ठीक इस मैच के पहले आता है। उत्साह बढ़ाती भीड़ और लहराते झंडों के बीच अरिजीत सिंह की दमदार आवाज़ उभरती हुई जब कहती है
अपना है दिन यह आज का, दुनिया से जाके बोल दो...बोल दो ऐसे जागो रे साथियों, दुनिया की आँखें खोल दो...खोल दो लहरा दो लहरा दो, सरकशीं का परचम लहरा दो गर्दिश में फिर अपनी, सरजमीं का परचम लहरा दो
तो मन रोमांचित हो जाता है। गर्दिश में पड़ी टीम को कप्तान की आतिशी पारी उस मुहाने पर ला खड़ा करती है जहाँ से विश्व विजेता बनने का ख़्वाब आकार लेने लगता है। पूड़ी टीम कपिल की इस पारी को उस विश्व कप का टर्निंग प्वाइंट मानती है। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसमें प्रीतम ने अंतरों को कव्वाली जैसा रूप दिया है
हो हाथ धर के बैठने से, क्या भला कुछ होता है हो हाथ धर के बैठने से क्या भला कुछ होता है जा लकीरों को दिखा क्या ज़ोर बाजू होता है हिम्मत-ए-मर्दा अगर हो संग खुदा भी होता है जा ज़माने को दिखा दे खुद में दम क्या होता है
लहरा दो लहरा दो, सरकाशी का परचम लहरा दो गर्दिश में फिर अपनी, सर ज़मीन का परचम लहरा दो लहरा दो लहरा दो...परचम लहरा दो लहरा दो लहरा दो...लहरा दो लहरा दो लहरा दो लहरा दो...लहरा दो लहरा दो..
अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत किसी क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी।
वार्षिक संगीतमाला की शुरुआत तो हुई राताँ लंबियाँ से। चलिए आपको आज गीतमाला की दूसरी पेशकश में प्रेम के मैदान से ले चलें खेल के मैदान में।तीन दशक से भी ज्यादा हो गए जब पहली बार भारत ने विश्व कप क्रिकेट का वो अनूठा मुकाबला इंग्लैंड के ऐतिहासिक लार्ड्स के मैदान में जीता था और उस अप्रत्याशित जीत की यादें ताज़ा करने के लिए 83 बनाई गयी। फिल्म ऐसे समय आई जब ओमिक्रान का भय लोगों के दिलों में पाँव पसार चुका था। युवा भी इस अनदेखी विजय से उस तरह से नहीं जुड़ नहीं पाए जैसा अन्य खेल आधारित फिल्मों के साथ होता रहा है। शायद यही वज़ह रही कि फिल्म के साथ साथ उसका संगीत उतना लोकप्रिय नहीं हुआ जितना हो सकता था।
मैं तो फिल्म देखने के पहले ही प्रीतम द्वारा संगीतबद्ध और कौसर मुनीर के लिखे गीतों से सजे इस एलबम को सुन चुका था। पर फिल्म में बहुत सारे गीत इस्तेमाल हुए ही नहीं या हुए भी तो एक आध पंक्ति तक सीमित रह गए। इसी फिल्म का ऐसा ही गीत रहा जीतेगा जीतेगा, इंडिया जीतेगा। जीतेगा...मन में संघर्ष कर जीतने की भावना जगाता ऐसा गीत है जो अरिजीत की आवाज़ पाकर जीवंत हो उठता है।
निर्देशक कबीर खान ने फिल्म में इसका पूरा उपयोग नहीं किया तो उसकी एक वज़ह थी। सच बात तो ये है कि भारत की टीम तब वहाँ जीतने के लिए गयी ही नहीं थी। वहाँ जाने के पहले हमारा रिकार्ड विश्व कप में इतना बुरा था कि उससे पहले तक हमारी एकमात्र जीत पूर्वी अफ्रीका जैसी दूसरे दर्जे की टीम के खिलाफ़ दर्ज़ थी। टीम के मन में तो ये था कि कुछ मैच जीत लें तो बहुत है। बाहर की ट्रिप्स तब लगती नहीं थी। ऐसा पेड हॉलीडे और इंग्लैंड की गोरी मेमों से मिलने का मौका मिलना कहाँ था। पूरे दौरे में दिन में टीम के कप्तान कपिल हुआ करते थे और रात में संदीप पाटिल जो अपने युवा साथियों के मनोरंजन का बीड़ा उठाते थे। टीम की ऐसी मनःस्थिति के बीच जीतेगा इंडिया जैसा गीत निर्देशक कबीर खाँ फिल्म में डालते भी तो कहाँ? ☺
भगवान की दया से उस वक़्त ना आज का सोशल मीडिया ना दिन भर जीत का हुंकार भरते टीवी चैनल। हम जैसे क्रिकेट प्रेमियों की तब उम्मीद इतनी ही थी कि भारत बस पहले से बेहतर करे।
लेकिन इतना जरूर कहूँगा कि कौसर मुनीर का लिखा इस गीत के खेल के मैदान में देश का Winning Anthem बनने के सारे गुण मौज़ूद हैं। सहज शब्दों में भी उनकी लेखनी दिल में वो भाव भरती है जिसके लिए ये गीत लिखा गया।
आगे आगे सबसे आगे, अपना सीना तान के
आ गये मैदान में, हम साफा बांध के
आगे आगे सबसे आगे, अपना सीना तान के
आ गये मैदान में, हम झंडे गाड़ने
हो अब आ गये है, जो छा गये है़
जो दम ये ज़माना देखेगा
देखो जूनून क्या होता है, ज़िद्द क्या होती है
हमसे ज़माना सीखेगा
जीतेगा जीतेगा, इंडिया जीतेगा
है दुआ हर दिल की, है यक़ीन लाखों का
जीतेगा जीतेगा, इंडिया जीतेगा
वादा निभायें आ
सर उठा के यूँ चलेंगे आ
फिर झुका ना पाये जो ये जहाँ
डर मिटा के यूँ लड़ेंगे आ
फिर हरा ना पाये जो ये जहाँ
हो अब आ ...इंडिया जीतेगा
प्रीतम का ताल वाद्यों की मदद से ताल ठोंकता संगीत और अरिजीत की उत्साही आवाज़ उसे और असरदार बनाती है। जब जब देश की टीम किसी भी खेल में विपक्षी टीम के साथ दो हाथ करेगी ये गीत दर्शकों और खिलाडियों में जोश भरने में पीछे नहीं रहेगा। तो आइए आज सुनते हैं फिल्म 83 का ये नग्मा
अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत नीचे से ऊपर के क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी। और हाँ अगर आप सब का साथ रहा तो अंत में गीतमाला की आख़िरी लिस्ट निकलने के पहले 2019 की तरह एक प्रतियोगिता भी कराई जाएगी जिसमें अव्वल आने वालों को एक छोटा सा पुरस्कार मिलेगा। ☺☺
संगीतमाला की दूसरी पायदान पर एक बार फिर है प्रीतम और अरिजीत की जोड़ी। फर्क सिर्फ इतना है कि इस दफ़ा गीतकार का किरदार सँभाला है सईद क़ादरी ने और क़ादरी साहब के बोल ही थे जो इस गीत कौ तीसरी या चौथी सीढ़ी से खिसकाकर इस साल का रनर अप बनाने में सफल हुए। ये गीत है फिल्म लूडो का हरदम हमदम।
जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि अनुराग बसु और प्रीतम की दोस्ती उनकी साझा फिल्मों में कमाल की केमेस्ट्री पैदा करती है। जग्गा जासूस और बर्फी और उसके पहले Gangster और Life In a Metro जैसी फिल्मों में इनके संगीत का स्वाद आप चख ही चुके होंगे।
लूडो के गाने भी बेहद पसंद किए गए। हरदम हमदम की धुन प्रीतम ने अनुराग को बरसों पहले सुनाई थी। अनुराग ने इसे सुनते ही ये वादा ले लिया था कि वो इसे अपनी किसी फिल्म में शामिल करेंगे। वो मौका आया लूडो में। प्रीतम का कहना था कि लूडो जैसी क्राइम थ्रिलर में ढेर सारे गीतों की जरूरत नहीं थी पर अनुराग बसु की कोई कहानी गीतों के बिना दौड़ ही नहीं सकती सो लूडो के लिए चार गीत बनाए गए।
प्रीतम की जैसी आदत है उन्होंने हरदम हमदम की पुरानी धुन को अलग अलग संगीत संयोजन में बाँधा। प्रीतम ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि इस गीत के नौ वर्जन उन्होंने तैयार किए थे पर उनमें अनुराग को जँचा सबसे पहला वाला जिसे फिल्म वर्सन के नाम से जाना गया हालांकि फिल्म के प्रमोशन के लिए झटक मटक वाले वर्सन का इस्तेमाल किया गया।
राजस्थान के जोधपुर से ताल्लुक रखने वाले सईद क़ादरी पिछले दो दशकों से हिंदी फिल्म जगत में सक्रिय हैं। आपको याद होगा कि सईद क़ादरी ने महेश भट्ट की फिल्म जिस्म के आवारापन बंजारापन से हिंदी फिल्मों की दुनिया में क़दम रखा था। मर्डर में उनके गीत भींगे होठ तेरे और कहो ना कहो ने काफी सुर्खियाँ बटोरी थीं। 2007 में उनका गीत जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए, जितने भी मौसम दिए...सब नम दिए पहली बार किसी संगीतमाला का हिस्सा बना। फिर 2011 में Murder 2 का फिर मोहब्बत करने चला है तू और 2012 में बर्फी का गीत फिर ले आया दिल मजबूर क्या कीजे ने मेरा दिल जीता। पर उसके बाद क़ादरी साहब को आठ साल लगे अपने किसे लिखे गीत के ज़रिए इस संगीतमाला में शिरकत करने के लिए।
सईद क़ादरी
अब इस रूमानी गीत के बारे में क्या कहा जाए पूरा गीत ही ऐसा है कि जिसे किसी भी को अपने खास के लिए गाने का दिल करेगा। सिर्फ इतना जरूर कहूँगा कि मुझे इसके दूसरे अंतरे की मुलायमियत बेहद पसंद आई। कितना प्यारा लिखा क़ादरी साहब ने दिल चाहे हर घड़ी तकता रहूँ तुझे....जब नींद में हो तू, जब तू सुबह उठे....ये तेरी ज़ुल्फ़ जब चेहरा मेरा छुए......दिल चाहे उंगलियाँ उनमें उलझी रहें। बोलों के आलावा प्रीतम की धुन और अरिजीत की गायिकी तो बेहतरीन है ही।
लूडो में चार रंग की गोटियों की तरह चार समानांतर कहानियाँ चलती हैं और कहानियों के किरदार के आपसी प्रेम को एक साथ जोड़ कर ये गीत फिल्माया गया है। तो आइए पहले सुने इस गीत का वो वर्जन जो फिल्म के प्रमोशन में इस्तेमाल हुआ। गीत की आरंभिक धुन में गिटार प्रमुखता से बजता है। बीच में सरोद और सितार की भी मधुर ध्वनि सुनाई देती है। अंतरे में प्रीतम ने प्रमोशन वाले वर्जन में डांस की रिदम डाली है तो फिल्म वर्सन में इस प्रभाव को टोन डाउन किया गया है।
इस गीत के संगीत में एक मस्ती है और बोलों में पुराने गीतों सा सौंदर्य और मिठास जो इसे अलहदा बनाती है।
ये ली है मेरी आँखों ने, क़सम ऐ यार रखेगी तुझे ख़्वाब में, हमेशा, हरदम हरपल हरशब हमदम-हमदम
कितना हूँ चाहता कैसे कहूँ तुझे साया तेरा दिखे तो चूम लूँ उसे जिस दिन तुझे मिलूँ, दिल ये दुआ करे दिन ये ख़त्म ना हो, ना शाम को ढले रहे है बस साथ हम, तू रहे पास रखूँ मैं तुझे बाहों में हमेशा हरदम
हर पल, हर शब, हमदम-हमदम
तो आइए सबसे पहले सुनें इस गीत का प्रमोशनल वर्सन
फिल्म वर्जन में संगीत संयोजन तो बदलता ही है, साथ ही गीत का दूसरा अंतरा भी सुनाई देता है।
दिल चाहे हर घड़ी तकता रहूँ तुझे जब नींद में हो तू, जब तू सुबह उठे ये तेरी ज़ुल्फ़ जब चेहरा मेरा छुए दिल चाहे उंगलियाँ उनमें उलझी रहें सुन ऐ मेरे सनम, सुन मेरी जान तू है एहसास में
हमेशा, हरदम हर पल, हर शब, हमदम-हमदम
अरिजीत के आलावा इस गीत को प्रीतम ने शिल्पा राव से भी गवाया जो शायद फिल्म में इस्तेमाल नहीं हुआ।
लो देते हैं हम तुम्हें
कसम फिर यार
बहेंगे हम अश्क में
आँखों से हर दम हमदम
हरदम हमदम हरदम
कितना हूँ...ना शाम को ढले
छाने ये दिल बात में
तेरे ही जज़्बात में
सजना मेरी बातों में
तुम ही तो हर दम हमदम
हरदम हमदम हरदम
अब वार्षिक संगीतमाला की बस आख़िरी पायदान बची है जो निश्चय ही अपनी गुणवत्ता में बाकी सब गीतों से कहीं ऊपर है यानी उसे चुनते हुए मुझे पिछले साल के किसी और गीत का दूर दूर तक भी ख़्याल नहीं आया। तो बताइए ये गीत कैसा लगा और कौन है इस साल का सरताज गीत?
ढाई महीने का ये सफ़र हमें ले आया है वार्षिक संगीतमाला की तीसरी पायदान पर जहाँ गाना वो जो पिछले साल की शुरुआत में आया और आते ही संगीतप्रेमियों के दिलो दिमाग पर छा गया। अब तक ये पन्द्रह करोड़ से भी ज्यादा बार इंटरनेट पर सुना जा चुका है। जी हाँ ये गाना था लव आज कल 2 से शायद
प्रीतम, इरशाद कामिल और अरिजीत सिंह जब साथ आ जाएँ तो कमाल तो होना ही है। तीन साल पहले भी एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला में यही तिकड़ी तीसरे स्थान पर थी जब हैरी मेट सेजल के गीत हवाएँ के साथ। एक बार फिर वैसा ही जादू जगाने में सफल हुए हैं ये तीनों इस नग्मे में ।
प्रीतम अपनी धुनों को तब तक माँजते हैं जब तक उन्हें यकीन नहीं हो जाता कि श्रोता उसे हाथों हाथ लेंगे। उनके गीतों में सिग्नेचर ट्यून का इस्तेमाल बारहा होता है और ये ट्यून इतनी आकर्षक होती है कि सुनने वाला दूर से ही सुन के पहचान जाता है कि ये वही गीत है। यहाँ भी मुखड़े के बाद जो धुन बजती है वो तन मन प्रफुल्लित कर देती है।
इरशाद कामिल ने प्रेम के इकतरफे स्वरूप को इतने सहज शब्दों में इस गीत में उतारा है कि शायद ही कोई हो जो इस गीत की भावनाओं के मर्म से अछूता रह पाए । हर प्रेमी की ये इच्छा होती है कि सामने वाला बिना कहे उसकी बात समझ सके। अब ये इच्छा भगवान पूरी भी कर दें तो भी उस 'शायद' की गुंजाइश बनी रहती है क्यूँकि सामने वाला भी तो कई बार समझ के नासमझ बना रहता है। इसीलिए गीत के मुखड़े में इरशाद लिखते हैं.. शायद कभी ना कह सकूँ मैं तुमको...कहे बिना समझ लो तुम शायद...शायद मेरे ख्याल में तुम एक दिन...मिलो मुझे कहीं पे गुम शायद । देखिए कितना सुंदर और अनूठा प्रयोग है शायद शब्द का कि वो पहली और तीसरी पंक्ति की शुरु में आता है तो दूसरी और चौथी की आख़िर में। आँखों को ख्वाब देना खुद ही सवाल करके..खुद ही जवाब देना तेरी तरफ से वाली पंक्ति भी बड़ी खूबसूरत बन पड़ी है।
अरिजीत की गायिकी के लिए युवाओं में एक जुमला खासा मशहूर है और वो ये कि अरिजीत के गाने और मम्मी के ताने सीधे दिल पे लगते हैं। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि अगर ये गाना अरिजीत के आलावा किसी और से गवाया गया होता तो उसका प्रभाव तीन चौथाई रह जाता। ऊंचे व नीचे सुरों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें आजकल के अपने समकालीन पुरुष गायकों से कहीं ऊपर ले जाती है।
प्रीतम के संगीत संयोजन में गिटार का प्रमुखता से इस्तेमाल होता है। मजे की बात ये है कि इस गीत की प्रोग्रामिंग से लेकर एकास्टिक गिटार पर अरिजीत की उँगलियाँ ही थिरकी हैं। वुडविंड वाद्य यंत्रों से बनी मनमोहक सिग्नेचर धुन बजाने वाले हैं निर्मल्य डे। तो आइए सुनते हैं एक बार फिर इस गीत को जो शुरुआत तो एक मायूसी से होता है पर अंतरे तक पहुँचते पहुँचते आपको गीत की धुन में डुबाते हुए एक धनात्मक उर्जा से सराबोर कर देता है
शायद कभी ना कह सकूँ मैं तुमको कहे बिना समझ लो तुम शायद शायद मेरे ख्याल में तुम एक दिन मिलो मुझे कहीं पे गुम शायद जो तुम ना हो रहेंगे हम नहीं जो तुम ना हो रहेंगे हम नहीं ना चाहिए कुछ तुमसे ज्यादा तुमसे कम नहीं जो तुम ना हो तो हम भी हम नहीं ..कम नहीं
आँखों को ख्वाब देना खुद ही सवाल करके खुद ही जवाब देना तेरी तरफ से बिन काम काम करना जाना कहीं हो चाहे हर बार ही गुज़रना तेरी तरफ से ये कोशिशें तो होंगी कम नहीं ये कोशिशें तो होंगी कम नहीं ना चाहिए कुछ तुमसे ज्यादा ...जो तुम ना हो
लव आज कल 2 तो लॉकडाउन के पहले आई पर इसके गाने कोविड काल में भी लोगों को सुहाते रहे। आप में से बहुत लोगों को पता ना हो कि लॉकडाउन में प्रीतम ने अरिजीत और इरशाद कामिल के साथ मिलकर गीत का एक और अंतरा रचा था जिसके बोल कुछ यूँ थे..
वार्षिक संगीतमाला की आठवीं पायदान पर है गीत फिल्म लूडो का जिसे अपनी शानदार आवाज़ दी है युवाओं के चहेते अरिजीत सिंह ने और जिसकी धुन बनाई प्रीतम ने अनुराग बसु के निर्देशन में। संगीतकार प्रीतम और निर्माता निर्देशक अनुराग बसु की जोड़ी जब भी किसी फिल्म के लिए बनती है उस फिल्म के संगीत का श्रोताओं को बेसब्री से इंतज़ार रहता है। प्रीतम यूँ तो ऐसे भी बेहद सफल संगीतकार हैं पर अनुराग के लिए उनका काम एक अलग स्तर पर ही पहुँच जाता है। इस करिश्माई जोड़ी की संगीतमय फिल्मों को याद करूँ तो हाल फिलहाल में जग्गा जासूस और बर्फी और उसके पहले Gangster और Life In a Metro जैसी फिल्मों का बेहतरीन संगीत याद आ जाता है।
लूडो के भी तमाम गाने पसंद किए गए। ज़ाहिर है इस गीतमाला में इस फिल्म के गीतों की भागीदारी आगे भी रहेगी। ये एलबम लोगों की नज़र में और चढ़ता यदि फिल्म को सिनेमाघरों में प्रदर्शित किया जा पाता। महामारी की वज़ह से अप्रैल में प्रदर्शित होने वाली ईस फिल्म को नवंबर में नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ किया गया।
फिल्म लूडो के इस गीत को लिखा है संदीप श्रीवास्तव ने जो प्रीतम की फिल्मों में पहले भी कुछ गीत लिख चुके हैं। संदीप पटकथा लेखक भी रहे हैं। बतौर गीतकार उन्होंने शिवाय, कहानी, न्यूयार्क और Life In a Metro के गीतों के लिये जाना जाता है। एकतरफे प्रेम में दूसरे की स्वीकृति की कितनी चाहत होती है ये गीत इसी भावना को व्यक्त करता है। मुखड़े में संदीप लिखते हैं कि अगर हाँ कहकर तुमने मेरी ज़िंदगी को आबाद नहीं किया तो फिर ये जीवन बर्बादी की राह खुद चुन लेगा। अरिजीत नायक की बैचैनी और तड़प को बड़ी खूबी से अपनी आवाज़ में उतारते हैं। नायक की मायूसी को शब्दों में उतारती संदीप की ये पंक्तियाँ ख़्वाबों को जगह ना मिली आँखों में, वहाँ पहले से ही सैलाब था...नग्मे बनाता फिरा साज़ों पे, दिल अपना फ़क़त मिज़राब था प्रभावित करती हैं।
गीतकार अक्सर अपने गीतों में नवीनता भरने के लिए उर्दू के अप्रचलित शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं। संदीप ने भी यहाँ मिज़राब का प्रयोग किया है जिसका अर्थ तार वाद्यों को बजाने वाले छल्ले से है। शायद संदीप ये कहना चाहते हैं प्रेम रूपी संगीत में वाहवाही साज़ की हुई और उनका दिल उस छल्ले सा उपेक्षित रहा जिसने साज़ में अपने रंग भरे।
इस गीत का सबसे मजबूत पक्ष प्रीतम की धुन और संगीत संयोजन है जो एक बार सुनते ही मन में रमने लगती है। पश्चिमी बीट्स के साथ गिटार, वॉयला और क्लारिनेट गीत में मस्ती का रंग भरता है तो तीन मिनट के बाद बजती गुलाम अली की सारंगी दर्द का अहसास जगाती है। कहने की जरूरत नहीं कि अरिजीत ऊँचे सुरों जो कि उनका ट्रेडमार्क बन गया है आसानी से साधते हैं। तो आइए सुनते हैं ये पूरा गीत..
या तो बर्बाद कर दो या फिर आबाद कर दो वो ग़लत था ये सही है झूठ ये आज कह दो इतना एहसान कर दो इतना एहसान कर दो पूरे अरमान कर दो
लब पे आ कर जो रुके हैं, ढाई वो हर्फ़ कह दो मेरी साँसों से जुड़ी है तेरी हर साँस कह दो मुश्किल आसान कर दो मुश्किल आसान कर दो या तो बर्बाद कर दो या फिर आबाद कर दो
मीठा सा ये ज़हर मैं तो पीता रहूँगा तू ख़ुदा ना सही मैं तो सजदे करूँगा तुम जो शीरी ना हुए क्या हमको फरहाद कर दो मेरी साँसों ...आबाद कर दो
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
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