वार्षिक संगीतमाला की सात सीढियाँ चढ़ते हुए आज हम आ पहुँचे हैं गीतमाला की अठारवीं पॉयदान पर। वैसे तो इस गीत के संगीतकार के रूप में शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी है पर नाममात्र संगीत पर बने इस गीत को इस पॉयदान तक पहुँचाने के असली हक़दार इसके गायक और गीतकार हैं। गायक ऐसा जिसकी आवाज़ की गर्मी से पानी भी भाप बन जाए और गीतकार ऐसे जिनके लिखे काव्यात्मक गीत हृदय में भावनाओं का ज्वार उत्पन्न कर दें। अगर आप अभी तक इस गायक गीतकार की जोड़ी को लेकर असमंजस में हैं तो बता दूँ कि मैं बात कर रहा हूँ पाकिस्तान के पंजाबी लोक गायक आरिफ़ लोहार और अपने गीतकार कवि प्रसून जोशी की।
आरिफ लोहार की आवाज़ से मेरा प्रथम परिचय कोक स्टूडियो में उनके मीशा सफ़ी के साथ गाए जुगनी गीत अलिफ़ अल्लाह चंबे दी बूटी...दम गुटकूँ दम गुटकूँ से हुआ था। उनकी आवाज़ की ठसक, उच्चारण की स्पष्टता और ऊँचे सुरों को आसानी से निभा लेने की सलाहियत ने मुझे बेहद प्रभावित किया था। इस गीत को भारत में इतनी लोकप्रियता मिली कि इसमें थोड़ा बदलाव ला के इसका प्रयोग हिंदी फिल्मों में भी हुआ। ख़ुद आरिफ़ का अपनी गायिकी के बारे में क्या कहना है उनकी ही जुबानी पढ़िए..
"मेरा एक अलग ही अंदाज़ होता है। मैं समझता हूँ कि हर कलाकार का एक अलग अंदाज़ होना चाहिए। मुझे जानकर अच्छा लगता है कि भारत में लोग मुझे दमगुटकूँ के गायक के नाम से जानते हैं। मेरा सूफी संगीत उस समय लोकप्रिय हुआ जब उसकी जरूरत थी। मैं जब भी गाऊँगा अपने तरीके से गाऊँगा। मैं चिमटा ले कर भी अपने आप को राकस्टार मानता हूँ।"
जी हाँ आरिफ़ जब भी स्टेज पर होते हैं उनके हाथ में चिमटा होता है। उनके गीतों की धुनें चिमटों के टकराहट से उपजी बीट्स से निकलती हैं। इस गीत में भी शुरु से आख़िर तक शंकर अहसान लाए ने लोहार के चिमटे के साथ इकतारे और गिटार का ही प्रयोग किया है। पर फिल्म भाग मिल्खा भाग के इस शीर्षक गीत में आरिफ़ गायन की जिस बुलंदी पर पहुँचे हैं उसमें प्रसून जोशी के शब्दों की उड़ान का बहुत बड़ा हाथ है। इस गीत की एक एक पंक्ति किस तरह एक धावक के मन में उत्साह का संचार करती है उसके लिए इस लंबे गीत को बस एक बार पढ़ कर देखिए।
अरे शक्ति माँग रहा संसार, अब तू आने दे ललकार
तेरी तो बाहें पतवार, कदम हैं तेरे हाहाकार
तेरी नस नस लोहाकार, तू है आग मिल्खा
ओ बस तू भाग मिल्खा
अरे छोड़ दे बीते कल की बोरी, काट दे रस्सी सुतली डोरी
तुझ से पूछेगी ये मट्टी, करके साँस साँस को भट्टी
अब तू जाग मिल्खा, बस तू भाग मिल्खा
ओ सरिया, ओ कश्ती,
ओ सरिया ओ सरिया, ओए मोड़ दे आग का दरिया
ओ कश्ती ओ कश्ती, ओ डूब जाने में ही है हस्ती
हो जंगल, हो जंगल, आज शहरों से है तेरा दंगल
अब तू भाग भाग, भाग भाग भाग मिल्खा़ अब तू भाग मिल्खा
धुआँ धुआँ धमकाए धूल, राह में राने बन गए शूल
तान ले अरमानों के चाकू, मुश्किलें हो गयीं सारी डाकू
तू बन जा नाग ,नाग , नाग मिल्खा़ अब तू भाग मिल्खा
तेरा तो बिस्तर है मैदान, ओढना धरती तेरी शान
तेरे सराहने है चट्टान, पहन ले पूरा आसमान
तू पगड़ी बाँध मिल्खा, अब तू भाग मिल्खा....
हो भँवर भँवर है चक्कर चक्कर चक्कर
गोदी में उठाया माँ ने, चक्कर चक्कर चक्कर
गोदी उठाया बापू ने, चक्कर चक्कर चक्कर
भँवर भँवर है आज खेल तू, भँवर को खेल बना दे
आँधियाँ रेल बना दे, पटखनी दे उलझन को
चीख बना दे सरगम को, ओ चक्कर चक्कर चक्कर
उतार के फेंक दे सब जंजाल, बीते कल का हर कंकाल
तेरे तलवे हैं तेरी नाल, तुझे तो करना है हर हाल
अब तू जाग मिल्खा़, जाग मिल्खा़, जाग मिल्खा़, अब तू...
खोल तू रथ के पहिए खोल, बना के चक्र सुदर्शन गोल
जंग के फीते कस के बाँध, खुली है आज शेर की माँद
तू गोली दाग मिल्खा, दाग मिल्खा, दाग मिल्खा, अब तू...
दाँत से काट ले बिजली तार, चबा ले तांबे की छनकार
फूँक दे खुद को ज्वाला ज्वाला, बिन खुद जले ना होए उजाला
लपट है आग मिल्खा, आग मिल्खा, आग मिल्खा, अब तू..
अब तू जाग मिल्खा, तू बन जा नाग मिल्खा
तू पगड़ी बाँध मिल्खा, तू गोली दाग मिल्खा,
ओह तू है आग मिल्खा, ओह तू भाग मिल्खा, अब तू..
अब तू भाग मिल्खा...
तेरी तो बाहें पतवार, कदम हैं तेरे हाहाकार
तेरी नस नस लोहाकार, तू है आग मिल्खा
ओ बस तू भाग मिल्खा
अरे छोड़ दे बीते कल की बोरी, काट दे रस्सी सुतली डोरी
तुझ से पूछेगी ये मट्टी, करके साँस साँस को भट्टी
अब तू जाग मिल्खा, बस तू भाग मिल्खा
ओ सरिया, ओ कश्ती,
ओ सरिया ओ सरिया, ओए मोड़ दे आग का दरिया
ओ कश्ती ओ कश्ती, ओ डूब जाने में ही है हस्ती
हो जंगल, हो जंगल, आज शहरों से है तेरा दंगल
अब तू भाग भाग, भाग भाग भाग मिल्खा़ अब तू भाग मिल्खा
धुआँ धुआँ धमकाए धूल, राह में राने बन गए शूल
तान ले अरमानों के चाकू, मुश्किलें हो गयीं सारी डाकू
तू बन जा नाग ,नाग , नाग मिल्खा़ अब तू भाग मिल्खा
तेरा तो बिस्तर है मैदान, ओढना धरती तेरी शान
तेरे सराहने है चट्टान, पहन ले पूरा आसमान
तू पगड़ी बाँध मिल्खा, अब तू भाग मिल्खा....
हो भँवर भँवर है चक्कर चक्कर चक्कर
गोदी में उठाया माँ ने, चक्कर चक्कर चक्कर
गोदी उठाया बापू ने, चक्कर चक्कर चक्कर
भँवर भँवर है आज खेल तू, भँवर को खेल बना दे
आँधियाँ रेल बना दे, पटखनी दे उलझन को
चीख बना दे सरगम को, ओ चक्कर चक्कर चक्कर
उतार के फेंक दे सब जंजाल, बीते कल का हर कंकाल
तेरे तलवे हैं तेरी नाल, तुझे तो करना है हर हाल
अब तू जाग मिल्खा़, जाग मिल्खा़, जाग मिल्खा़, अब तू...
खोल तू रथ के पहिए खोल, बना के चक्र सुदर्शन गोल
जंग के फीते कस के बाँध, खुली है आज शेर की माँद
तू गोली दाग मिल्खा, दाग मिल्खा, दाग मिल्खा, अब तू...
दाँत से काट ले बिजली तार, चबा ले तांबे की छनकार
फूँक दे खुद को ज्वाला ज्वाला, बिन खुद जले ना होए उजाला
लपट है आग मिल्खा, आग मिल्खा, आग मिल्खा, अब तू..
अब तू जाग मिल्खा, तू बन जा नाग मिल्खा
तू पगड़ी बाँध मिल्खा, तू गोली दाग मिल्खा,
ओह तू है आग मिल्खा, ओह तू भाग मिल्खा, अब तू..
अब तू भाग मिल्खा...
