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गुरुवार, जनवरी 16, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान 18 :ओ बस तू भाग मिल्खा (Bas Tu Bhag Milkha...)

वार्षिक संगीतमाला की सात सीढियाँ चढ़ते हुए आज हम आ पहुँचे हैं गीतमाला की अठारवीं पॉयदान पर। वैसे तो इस गीत के संगीतकार के रूप में शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी है पर नाममात्र संगीत पर बने इस गीत को इस पॉयदान तक पहुँचाने के असली हक़दार इसके गायक और गीतकार हैं। गायक ऐसा जिसकी आवाज़ की गर्मी से पानी भी भाप बन जाए और गीतकार ऐसे जिनके लिखे काव्यात्मक गीत हृदय में भावनाओं का ज्वार उत्पन्न कर दें। अगर आप अभी तक इस गायक गीतकार की जोड़ी को लेकर असमंजस में हैं तो बता दूँ कि मैं बात कर रहा हूँ पाकिस्तान के पंजाबी लोक गायक आरिफ़ लोहार और अपने गीतकार कवि प्रसून जोशी की।


आरिफ लोहार की आवाज़ से मेरा प्रथम परिचय कोक स्टूडियो में उनके मीशा सफ़ी के साथ गाए जुगनी गीत अलिफ़ अल्लाह चंबे दी बूटी...दम गुटकूँ दम गुटकूँ से हुआ था। उनकी आवाज़  की ठसक, उच्चारण की स्पष्टता और ऊँचे सुरों को आसानी से निभा लेने की सलाहियत ने मुझे बेहद प्रभावित किया था। इस गीत को भारत में इतनी लोकप्रियता मिली कि इसमें थोड़ा बदलाव ला के  इसका प्रयोग हिंदी फिल्मों में भी हुआ। ख़ुद आरिफ़ का अपनी गायिकी के बारे में क्या कहना है उनकी ही जुबानी पढ़िए..
"मेरा एक अलग ही अंदाज़ होता है। मैं समझता हूँ कि हर कलाकार का एक अलग अंदाज़ होना चाहिए। मुझे जानकर अच्छा लगता है कि भारत में लोग मुझे दमगुटकूँ के गायक के नाम से जानते हैं। मेरा सूफी संगीत उस समय लोकप्रिय हुआ जब उसकी जरूरत थी। मैं जब भी गाऊँगा अपने तरीके से गाऊँगा। मैं चिमटा ले कर भी अपने आप को राकस्टार मानता हूँ।"
जी हाँ आरिफ़ जब भी स्टेज पर होते हैं उनके हाथ में चिमटा होता है।  उनके  गीतों की धुनें चिमटों के टकराहट से उपजी बीट्स से निकलती हैं। इस गीत में भी शुरु से आख़िर तक शंकर अहसान लाए ने लोहार के चिमटे के साथ इकतारे और गिटार का ही प्रयोग किया है। पर फिल्म भाग मिल्खा भाग के इस शीर्षक गीत में आरिफ़ गायन की जिस बुलंदी पर पहुँचे हैं उसमें प्रसून जोशी के शब्दों की उड़ान का बहुत बड़ा हाथ है।  इस गीत की एक एक पंक्ति किस तरह एक धावक के मन में उत्साह का संचार करती है उसके लिए इस लंबे गीत को बस एक बार पढ़ कर देखिए।

अरे शक्ति माँग रहा संसार, अब तू आने दे ललकार
तेरी तो बाहें पतवार, कदम हैं तेरे हाहाकार
तेरी नस नस लोहाकार, तू है आग मिल्खा
ओ बस तू भाग मिल्खा

अरे छोड़ दे बीते कल की बोरी, काट दे रस्सी सुतली डोरी
तुझ से पूछेगी ये मट्टी, करके साँस साँस को भट्टी
अब तू जाग मिल्खा, बस तू भाग मिल्खा

ओ सरिया, ओ कश्ती,
ओ सरिया ओ सरिया, ओए मोड़ दे आग का दरिया
ओ कश्ती ओ कश्ती, ओ डूब जाने में ही है हस्ती
हो जंगल, हो जंगल, आज शहरों से है तेरा दंगल
अब तू भाग भाग, भाग भाग भाग मिल्खा़ अब तू भाग मिल्खा

धुआँ धुआँ धमकाए धूल, राह में राने बन गए शूल
तान ले अरमानों के चाकू, मुश्किलें हो गयीं सारी डाकू
तू बन जा नाग ,नाग , नाग मिल्खा़ अब तू भाग मिल्खा

तेरा तो बिस्तर है मैदान, ओढना धरती तेरी शान
तेरे सराहने है चट्टान, पहन ले पूरा आसमान
तू पगड़ी बाँध मिल्खा, अब तू भाग मिल्खा....

हो भँवर भँवर है चक्कर चक्कर चक्कर
गोदी में उठाया माँ ने, चक्कर चक्कर चक्कर
गोदी उठाया बापू ने, चक्कर चक्कर चक्कर
भँवर भँवर है आज खेल तू, भँवर को खेल बना दे
आँधियाँ रेल बना दे, पटखनी दे उलझन को
चीख बना दे सरगम को, ओ चक्कर चक्कर चक्कर
उतार के फेंक दे सब जंजाल, बीते कल का हर कंकाल
तेरे तलवे हैं तेरी नाल, तुझे तो करना है हर हाल
अब तू जाग मिल्खा़, जाग मिल्खा़, जाग मिल्खा़, अब तू...

खोल तू रथ के पहिए खोल, बना के चक्र सुदर्शन गोल
जंग के फीते कस के बाँध, खुली है आज शेर की माँद
तू गोली दाग मिल्खा, दाग मिल्खा, दाग मिल्खा, अब तू...

दाँत से काट ले बिजली तार, चबा ले तांबे की छनकार
फूँक दे खुद को ज्वाला ज्वाला, बिन खुद जले  ना होए उजाला
लपट है आग मिल्खा, आग मिल्खा, आग मिल्खा, अब तू..
अब तू जाग मिल्खा, तू बन जा नाग मिल्खा
तू पगड़ी बाँध मिल्खा, तू गोली दाग मिल्खा,
ओह तू है आग मिल्खा, ओह तू भाग मिल्खा, अब तू..
अब तू भाग मिल्खा...



प्रसून ने गीत में उस ओजमयी भाषा का प्रयोग किया है जिसे लिख कर वीर रस का कवि भी गर्व महसूस करेगा। इन उत्प्रेरक शब्दों को जब आरिफ लोहार की बुलंद आवाज़ का सहारा मिलता है तो बस भागने के आलावा चारा क्या बचता है? :)

गुरुवार, अक्टूबर 28, 2010

अलिफ़ अल्लाह चंबे दी बूटी...दम गुटकूँ दम गुटकूँ :आरिफ़ लोहार का शानदार 'जुगनी' लोकगीत

पंजाबी लोकगीतों का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है। बुल्लेशाह का सूफी गीत हो या हीर और सोहणी महीवाल के प्रेम या विरह में डूबे गीत, सब अपना जादू जगाते रहे हैं। आज आपके सामने पंजाब की एक ऐसे ही एक लोकगीत श्रेणी से परिचय कराने जा रहा हूँ जिसे 'जुगनी' के नाम से जाना जाता है। बरसात की अंधकारमयी रातों में चमकते जुगनू तो हम सब ने देखे हैं। पर जुगनू की भार्या इस जुगनी को देखने या पहचानने का हुनर तो शायद ही हम में से किसी के पास होगा।

पंजाबी लोकगीतों में यही जुगनी एक मासूम पर्यवेक्षक का काम करती है। इन गीतों में जुगनी के इस बिंब से हँसी ठिठोला भी होता है .कटाक्ष भी होते हैं, तो कभी आस पास के परिवेश का दुख इसके मुँह से फूट पड़ता है। पर जुगनी से जुड़े अधिकांश गीत मूलतः एक अध्यात्मिक सोच को आगे बढ़ाते हैं। ये सोच कभी अपने आस पास के संसार को समझने की होती है तो कभी मानव से भगवान के रिश्ता को टटोलने की क़वायद।

वैसे क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे कि जुगनी लोकगीत कैसे रचती है? अब जुगनी का क्या है उड़ कर गली मोहल्ले, स्कूल या बाजार कहीं भी पहुँच सकती है और इन जगहों पर वो जो देखती है उसे ही तीन या चार अंतरों में कह देती है। ठेठ पंजाबी शैली में गाए इन गीतों को आम जन बड़ी आसानी से अपनी ज़िंदगी से जोड़ लेते हैं।

जुगनी से जुड़े लोकगीतों को अपनी गायिकी से सरहद के दोनों ओर के कलाकार लोगों तक पहुँचाते रहे हैं। कुछ साल पहले रब्बी शेरगिल का ऐसा ही एक गीत बेहद चर्चित रहा था। रब्बी के आलावा गुरुदास मान और आशा सिंह मस्ताना ने भी श्रोताओं को कई जुगनी गीत दिए हैं।

सरहद पार यानि अगर पाकिस्तान की बात की जाए तो जुगनी ही क्या पंजाबी लोकगीतों की हर विधा को पूरे मुल्क में मशहूर करने में सबसे पहला नाम आलम लोहार का आता है। आलम लोहार ने साठ और सत्तर के दशक में जुगनी गीतों की एक अलग पहचान बना दी। आलम जब जुगनी गाते थे तो एक अद्भुत वाद्य यंत्र उनके हाथों में रहता था। ये वाद्य यंत्र था चिमटा,! जी हाँ आलम लोहार ने ही इन गीतों के साथ साथ चिमटे के टकराने से निकलने वाली ध्वनि का बीट्स की तरह इस्तेमाल किया। फ्यूजन के इस युग में भी उनके पुत्र आरिफ़ लोहार अपने पिता द्वारा शुरु की गई इस गौरवशाली परंपरा का वहन कर रहे हैं। हाँ लोहे के उस पुराने चिमटे के स्वरूप में जरूर थोड़ा बदलाव हुआ है।



पिछले हफ्ते ही मुझे आरिफ़ लोहार का गाया एक जुगनी लोकगीत सुनने को मिला। ये लोकगीत उन्होंने इस साल पाकिस्तान में कोक स्टूडिओ ( Coke Studio ) के तीसरे सत्र के दौरान गया था। अगर आप ये सोच रहे हों कि ये कोक स्टूडिओ क्या बला है तो ये बताना मुनासिब रहेगा कि कोक स्टूडिओ पाकिस्तान में कोला कंपनी कोक की सहायता से स्थापित किया गया एक सांगीतिक मंच है जो देश के विभिन्न हिस्सों में पनपते परंपरागत संगीत को बढ़ावा देता है। इस मंच पर देश के नामी व नवोदित गायक लाइव रिकार्डिंग के तहत अपनी प्रतिभा को दर्शकों के सामने प्रस्तुत करते हैं।

पहली बार इस जुगनी को सुनते ही आरिफ़ लोहार की गायिकी का मैं शैदाई हो गया। गीत की भावनाओं के अनुरूप ही उनके चेहरे के भाव बदलते हैं। आरिफ लोहार का शब्दों का उच्चारण इतना स्पष्ट है कि गीत को कोई शब्द आपके ज़ेहन से भटकने की जुर्रत नहीं कर पाता। गीत में वो तो डूबते ही हैं सुनने वालों को भी अपने साथ बहा ले जाते हैं। लोहार की बेमिसाल गायिकी के साथ साथ फ्यूजन और कोरस का जिस तरह से इस गीत में प्रयोग हुआ है कि सुनने के साथ हाथ पाँव थिरकने लगते हैं। इस गीत में उनका साथ दिया पाकिस्तान की युवा मॉडल और अब गायिका मीशा शफ़ी ने। जिस तरह हम माता शेरोवाली के भजन गाते समय माता की जयजयकार करते हैं उसी तरह मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि चाहे आपको पंजाबी आती हो या नहीं गीत को सुनने के साथ साथ आप कोरस में उठ रहे जुगनी जी के सुर में सुर मिलाना अवश्य चाहेंगे।






पर इस गीत का पूर्ण आनंद उठाने के लिए पहले ये जानते हैं कि इस गीत में आख़िर जुगनी ने कहना क्या चाहा है ....

अलिफ़ अल्लाह चंबे दी बूटी.
ते मेरे मुर्शिद मन विच लाइ हू

हो नफी उस बात दा पाणी दे के
हर रगे हरजाई हू
हो जुग जुग जीवे मेरा मुर्शिद सोणा
हत्ते जिस ऐ बूटी लाइ हो

मेरे साई ने मेरे हृदय में प्रेम का पुष्प अंकुरित किया है। साई की भक्ति से मेरे आचरण में जो विनम्रता और दया आई है उससे मन का ये फूल और खिल उठा है। मेरा साई, मेरी हर साँस, हर धड़कन में विद्यमान है। मुझमें प्राण भरने वाले साई तुम युगों युगों तक यूँ ही बने रहो।


पीर मेरिआ जुगनी जी
ऐ वे अल्लाह वालियाँ दी जुगनी जी,ऐ वे अल्लाह वालियाँ दी जुगनी जी
ऐ वे नबी पाक दी जुगनी जी, ऐ वे नबी पाक दी जुगनी जी
ऐ वे मौला अली वाली जुगनी जी,ऐ वे मौला अली वाली जुगनी जी
ऐ वे मेरे पीर दी जुगनी जी, ऐ वे मेरे पीर दी जुगनी जी
ऐ वे सारे सबद दी जुगनी जी, ऐ वे सारे सबद दी जुगनी जी
ओ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ....गुटकूँ गुटकूँ
पढ़े साईं ते कलमा नबी दा, पढ़े साई पीर मेरया


मेरे साथ मेरा मार्गदर्शक है मेरा संत है , मेरी आत्मा, भगवन और उनके दूतों के विचारों से पवित्र है। भगवन जब भी मैं तुम्हारे बारे में सोचता हूँ मेरा हृदय एक आनंद से धड़कने लगता है। उल्लास के इन क्षणों में मैं ख़ुद ब ख़ुद तेरे नाम का मैं कलमा पढ़ने लगता हूँ।


जुगनी तार खाईं विच थाल
छड्ड दुनिया दे जंजाल
कुछ नी निभणा बंदया नाल
राक्खी सबद सिध अमाल

ऐ वे अल्लाह .... जुगनी जी


मेरे साई कहते हैं कि तुम्हारे पास जो भी है उसे बाँटना सीखो। मोह माया जैसे दुनिया के जंजालों से दूर रहो। जीवन में ऍसा कुछ भी ऍसा नहीं है जो तुम्हें दूसरों से मिलेगा और जिसे तुम मृत्यु के बाद तुम अपने साथ ले जा सकोगे। इसलिए ऐ अल्लाह के बंदे अपने कर्मों और भावनाओं की पवित्रता बनाए रखो।

जुगनी दिग पई विच रोई
ओथ्थे रो रो कमली होई
ओद्दी वाथ नइ लैंदा कोई
ते कलमे बिना नइ मिलदी तोई

ऐ वे अल्लाह .... जुगनी जी
ओ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ....गुटकूँ गुटकूँ


अब इस जुगनी को ही देखो। लोभ मोह के जाल से ऐसी आसक्त हुई कि पाप की गहराइयों में जा फँसी। अब लगातार रोए जा रही है। पर अब उसे पूछनेवाला कोई नहीं है। इस बात को गाँठ बाँध कर सुन लो बिना सृष्टिकर्ता का ध्यान किए तुम्हें कभी शांति या मोक्ष नहीं मिल सकता।

हो वंगा चढ़ा लो कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ
वंगा चढ़ा लो कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ


हो ना कर तीया खैड़ पियारी
माँ दैंदियाँ गालड़ियाँ
दिन दिन ढली जवानी जाँदी
जूँ सोना पुठिया लरियाँ
औरत मरद शहजादे सोणे
ओ मोती ओ ला लड़ियाँ
सिर दा सरफाँ कर ना जैड़े
पीर प्रेम प्या लड़ियाँ
ओ दाता के दे दरबार चाखो
पावन खैड़ सवा लड़ियाँ

लड़कियों वो वाली चूड़ियाँ पहन लो जो तुम्हें साई के दरबार से मिली थीं। और हाँ अपने यौवन का इतना गुमान ना करना कि तुम्हें अपनी माताओं की डाँट फटकार सुनने को मिल जाए। जैसे जैसे दिन बीतते हैं ये यौवन और बाहरी सुंदरता और फीकी पड़ती जाती है। इस संसार में कोई वस्तु हमेशा के लिए नहीं है। इस सोने को ही लो कितना चमकता है पर एक बार भट्टी के अंदर जाते ही पिघलकर साँचे के रूप में अपने आप को गढ़ लेता है। सच बात तो ये है कि इस दुनिया के वे सारे मर्द और औरत उन माणिकों और मोतियों की तरह सुंदर हैं जो अपनों से ज्यादा दूसरों के लिए सोचते और त्याग करते हैं। ऐसे ही लोग सच्चे तौर पर पूरी मानवता से प्यार करते हैं। इसलिए सच्चे मन से साई का नमन करो वो तुम्हारी झोली खुशियों से भर देंगे।

हो वंगा चढ़ा ला कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ
हो वंगा चढ़ा ला कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ

दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ..करे साईं
पढ़े साई ते कलमा नबी दा, पढ़े साई पीर मेरया
ऐ वे मेरे पीर दी जुगनी जी....

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