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गुरुवार, मार्च 08, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 8 : दिल दीयाँ गल्लाँ, आख़िर क्या कहना चाहा है इरशाद कामिल ने इन पंजाबी बोलों में? Dil Diyan Gallan

इस संगीतमाला में बजने वाले पिछले कई गीत आपने नहीं सुने होंगे पर आज जिस गीत की बात आपसे करने जा रहा हूँ वो दिसंबर से ही लोकप्रियता की सारी सीढ़ियाँ धड़ल्ले से तय करता आ रहा है। ये गीत है फिल्म टाइगर जिंदा है का दिल दीयाँ गल्लाँ। अब एक हल्की फुल्की पंजाबी में लिखा गीत अगर इस तरह से लोगों के ज़ेहन में चढ़ जाए फिर उसकी  धुन और गायिकी तो कमाल की होनी ही है। 

कुछ तो है आतिफ असलम की आवाज़ में जो श्रोताओं को अपनी ओर बार बार खींचता है। आज से ग्यारह साल पहले तेरे बिन मैं यूँ कैसे जिया से पहली बार इस संगीतमाला में दाखिला लेने वाला आतिफ की आवाज़ साल दर साल किसी ना किसी गीत के माध्यम से लोगों के दिल में चढ़ती ही रही है। तेरा होने लगा हूँ (2009), मैं रंग शर्बतों का (2013)  दहलीज़ में मेरे दिल की (2015) और तेरे संग यारा (2015) जैसे उनके गाए गीत तो याद ही होंगे आपको।


पर विशाल शेखर के साथ गाया उनका ये पहला गीत है। विशाल कहते हैं कि सालों से उनके साथ काम करने के लिए कोशिश हो रही थी पर टाइगर जिंदा है के गीत के लिए संपर्क करते ही बात बन गयी। वहीं शेखर का कहना था कि उन्होंने गीत में नीचे के सुरों का इस्तेमाल करते हुए भी अपनी आवाज़ का जादू बरक़रार रखा है। 

इस गीत की लय में जो मधुरता है वो आपको शुरु से अंत तक बाँध कर रखती है। विशाल शेखर का संगीत संयोजन हिंदुस्तानी और पश्चिमी वाद्य यंत्रों का अद्भुत मिश्रण है जो कानों को सोहता है।

इस गीत के बोल लिखे हैं इरशाद कामिल ने। इस गीत के बारे में वे कहते हैं कि रोमांस में जो थोड़ी बहुत नाराज़गी चलती रहती है, जो थोड़ा बहुत मनमुटाव रहता है ये गाना उसी नाराज़गी को प्यार से दूर करने की बात कहता है। तो आइए देखें कि इन पंजाबी बोलों में आख़िर इरशाद साहब ने कहा क्या है.. 

कच्ची डोरियों, डोरियों, डोरियों से
मैनू  तू बाँध ले
पक्की यारियों, यारियों, यारियों में
होंदे ना फासले
ये नाराज़गी कागज़ी सारी तेरी
मेरे सोणया सुन ले मेरी
दिल दीयाँ गल्लाँ
कराँगे नाल नाल बह के
अँख नाल अँख नूँ मिला के
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय
कराँगे रोज़ रोज़ बह के
सच्चियाँ मोहब्बताँ निभा के

हमारी यारी इतनी मजबूत है कि अगर तू मुझे कमजोर डोरियों से भी बाँधे तो हमारे बीच का फासला कभी बढ़ेगा नहीं। ये जो तुमने चेहरे पर नाराज़गी ओढ़ रखी है ना, मैं जानता हूँ वो सारी बनावटी है। ओ मेरी प्रिये, सुनो तो, हम दोनों साथ साथ बैठेंगे और एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल अपने दिल का सारा हाल एक दूसरे से कह देंगे  दिल से दिल की बातों का सिलसिला रोज़ यूँ ही चलता रहे तभी तो हम अपनी सच्ची मोहब्बत को आजीवन निभा सकेंगे।

सताये मैनू क्यूँ
दिखाए मैनू क्यूँ
ऐवें झूठी मुट्ठी रूस के रूसाके
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के
तैनू लाखाँ तों छुपा के रखाँ
अक्खां ते सजा के तू ऐं मेरी वफ़ा
रख अपना बना के
मैं तेरे लइयाँ तेरे लइयाँ यारा
ना पाविं कदे दूरियाँ
मैं जीना हाँ तेरा..
मैं जीना हाँ तेरा
तू जीना है मेरा
दस्स लेना कि नखरा दिखा के
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के

तू मुझे बिना बात के सताती क्यूँ है? क्यूँ झूठी त्योरियाँ चढ़ा कर रखती है? मैं तो तुझे दुनिया की नज़रों से  छुपा कर अपने पास रखना चाहता हूँ। तुम मेरी आँखों का तारा हो, मेरा प्यार हो। मुझे अपना बना के रखो। मैं तो सिर्फ तुम्हारे लिए हूँ और तुमको अपने दूर जाता देख भी नहीं सकता। हम दोनों एक दूसरे की जिंदगी हैं। फिर इन बेकार के झगड़ों का क्या फायदा?

राताँ कालियाँ, कालियाँ, कालियाँ ने
मेरे दिन साँवले
मेरे हानियाँ, हानियाँ, हानियाँ जे
लग्गे तू ना गले
मेरा आसमाँ मौसमाँ दी ना सुने
कोई ख़्वाब ना पूरा बुने
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के
पता है मैनू  क्यूँ छुपा के देखे तू
मेरे नाम से नाम मिला के
दिल दीयाँ गल्लाँ हाय...मिला के

अगर तुम मुझसे अभी भी गले ना लगी तो मेरा दिन साँवला ही रह जाएगा और रातें काली। ये जो मेरे दिल का आसमान है ना, वो भी मौसमों के हिसाब से रंग बदलना छोड़ देगा। फिर उसमें मैं कैसे कोई ख़्वाब बुन पाऊँगा? मैं जानता हूँ कि सामने भले तुम मुझसे नाराज़गी ज़ाहिर करती हो पर मेरे पीछे मेरे नाम के साथ अपना नाम जोड़ मन ही मन खुश होती रहती हो।

इस गीत की शूटिंग आस्ट्रिया में हुई है और इसे फिल्माया गया है सलमान और कैटरीना पर। वैसे मुझे एक बात ये समझ नहीं आई गीत में नायक रूठी नायिका को प्यार से मना रहा है पर पर्दे पर तो कैटरीना रूठी नहीं दिखतीं। आपका इस बारे में क्या ख्याल है?

तो आइए सुनते हैं ये गीत आतिफ़ असलम की आवाज़ में। वैसे इस गीत का एक unplugged version भी है जिसे नेहा भसीन ने गाया है..

 

वार्षिक संगीतमाला 2017

शुक्रवार, मार्च 10, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान #3 : जग घूमेया थारे जैसा ना कोई Jag Ghoomeya

वार्षिक संगीतमाला 2016 की आख़िरी तीन पायदानें बची हैं और इन पर विराजमान तीनों नग्मे बड़े प्यारे व लोकप्रिय हैं और आपने पिछले साल इन्हें कई दफ़ा जरूर सुना होगा। संगीतमाला की तीसरी सीढ़ी  पर जो गीत है उसे संगीतबद्ध किया विशाल शेखर ने और बोल लिखे इरशाद कामिल ने।  सुल्तान फिल्म का ये गीत है जग घूमेया। इस गीत के दो वर्जन हैं। एक जिसे गाया राहत फतेह अली खाँ ने और दूसरे को आवाज़ दी नेहा भसीन ने। गाने तो आपको आज दोनों ही सुनाएँगे पर पहले ज़रा जान तो कि किस तरह जग घूमेया की धुन पहले दिन की पहली संगीत सिटिंग में ही बना ली गयी।

विशाल शेखर को जब सुल्तान की पटकथा सुनाई गयी तो उन्हें लगा ये तो बड़ी रोचक कहानी है और इसके लिए संगीत रचने में मजा आने वाला है। अगले ही दिन जब वो यशराज  स्टूडियो पहुँचे तो उन्होंने चार पाँच धुनें तैयार कीं पर इन धुनों में उन्होंने सबसे पहले जग घूमेया को ही फिल्म के निर्देशक अली अब्बास जाफ़र को सुनाया। अली ने धुन सुनते जी कहा कि क्या बात है ! अदित्य चोपड़ा को भी धुन पसंद आयी। अक्सर निर्माता निर्देशक  कई तरह की धुनें सुनना पसंद करते हैं पर यहाँ मामला पहली बार में ही लॉक हो गया। अली और आदि ने माना कि ये सुल्तान के संगीत की बेहतरीन शुरुआत है।

पर धुन तो गीत नहीं होता तो उसमें इरशाद कामिल को अपने शब्द भरने थे। कामिल अली के साथ पहले ही गुंडे और मेरे ब्रदर की दुल्हन में साथ काम कर चुके थे। इस गीत के लिए उन्हें सुल्तान के चरित्र में डूबना पड़ा। इरशादकामिल का इस गीत  के बारे में कहना है
जब तक आप चरित्र को पूरी तरह समझ नहीं लेते तब तक आप दिल से नहीं लिख सकते। ऊपरी तौर पर भी गीत लिखे जाते हैं पर जग घुमेया जैसे रूमानी गीत को लिखने के लिए मुझे ख़ुद सुल्तान के चरित्र को आत्मसात करना पड़ा।


शायद ही हममें से कोई ऐसा हो जिसने अपने होने वाले हमसफ़र के लिए सपने गढ़े ना हों। पर सपने कहाँ हमेशा सच होते हैं और कई बार तो हमारी तमन्नाएँ ही माशाल्लाह इतनी लंबी चौड़ी होती हैं कि वो पूरी हो भी नहीं सकती। फिर भी कुछ लोग होते हैं सुल्तान जैसे जिन्हें उनके सपनों के जहाँ से आगे की ऐसी शख़्सियत मिलती है जो दुनिया में अपनी तरह की अकेली हो। 

वैसे ये भी तो है कि अगर कोई अच्छा लगने लगे तो फिर दिल भी पूरी तरह अनुकूल यानि conditioned हो जाता है उनके लिए। उनका चेहरा हो या आँखें, मुस्कुराहट हो या नादानियाँ सब इतने प्यारे, इतने भोले लगने लगते हैं जैसे पहले  कभी लगे ही ना थे। इरशाद कामिल इन्हीं भावनाओं को बेहद नर्म रूपकों में कुछ यूँ क़ैद करते हैं...




ओ.. ना वो अखियाँ रूहानी कहीं, ना वो चेहरा नूरानी कहीं
कहीं दिल वाली बातें भी ना, ना वो सजरी जवानी कहीं
जग घूमेया थारे जैसा ना कोई, जग घूमेया थारे जैसा ना कोई

ना तो हँसना रूमानी कहीं, ना तो खुशबू सुहानी कहीं
ना वो रंगली अदाएँ देखीं, ना वो प्यारी सी नादानी कहीं
जैसी तू है वैसी रहणा...जग घूमेया...

बारिशों के मौसमों की भीगी हरियाली तू
सर्दियों में गालों पे जो आती है वो लाली तू
रातों का सुकूँ भी है, सुबह की अज़ान है
चाहतों की चादरों में, मैंने है सँभाली तू

कहीं अग जैसे जलती है, बने बरखा का पाणी कहीं
कभी मन जाणा चुपके से, यूँ ही अपनी चलाणी कहीं
जैसी तू है वैसी रहणा...जग घूमेया...

अपणे नसीबों में या, हौसले की बातों में
सुखों और दुखों वाली, सारी सौगातों में
संग तुझे रखणा है, यूने संग रहणा
मेरी दुनिया में भी, मेरे जज्बातों में

तेरी मिलती निशानी कहीं, जो है सबको दिखानी कहीं
तू तो जाणती है मरके भी, मुझे आती है निभाणी कहीं
वो ही करना है जो है कहणा

ये गीत पहले अरिजीत सिंह की आवाज़ में रिकार्ड किया गया था। बाद में सलमान से अनबन की वजह से अंततः राहत इस गीत की आवाज़ बने।  विशाल कहते हैं कि गीत के दो वर्जन अलग अलग मूड लिए हुए हैं और उनका कहना बिल्कुल सही है। राहत के वर्जन में जहाँ प्यार की खुमारी है, एक उत्साह है वही नेहा भसीन के वर्जन में प्यार के साथ एक ठहराव है, सुकून है और मेंडोलिन और तुम्बी का नाममात्र का संगीत संयोजन है। नेहा इस तरह के गीत कम ही गाती हैं पर उन्होंने इसे बखूबी निभाया है..


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
3. जग घूमेया थारे जैसा ना कोई Jag Ghoomeya
4. पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina
5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

शनिवार, जनवरी 07, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान #22 : टुक टुक टुक टुक करती चलती, मीठी थारी ज़िंदगी Tuk Tuk

संगीतकार विशाल शेखर के लिए साल 2015 कोई बहुत अच्छा नहीं रहा था। पर इस साल फिल्म सुल्तान के लिए दिया गया उनका संगीत औसत से बेहतर था। प्रेम की बाती में भींगा राहत फतेह अली खाँ का गाया जग घूमेया, सुखविंदर का जोश दिलाता सुल्तान का  शीर्षक गीत और नूरा बहनों की आवाज़ में ज़िदगी की टुक टुक से रूबरू कराता नग्मा मुझे इस एलबम के कुछ खास नगीने लगे थे ।  पर इन गीतों में 22वीं पॉयदान पर अपनी जगह बनाने में कामयाब हुआ है नूरा बहनों का गाया ये नग्मा। नूरा बहनों के  सांगीतिक सफ़र के बारे में यहाँ  पहले भी लिख चुका हूँ। 
 


दो साल पहले पटाखा गुड्डी से अपना पहला पटाखा फोड़ने वाली जालंधर की नूरा बहनें ने इस साल तीन नामी फिल्मों मिर्जया, दंगल और सुल्तान में अपनी दमदार आवाज़ श्रोताओं तक पहुंचाई है। नूरा बहनों का बिंदास अंदाज़ मुझे हाइवे में उनके गाए गीत में इतना फबा था कि उसने सीधे साल के दस बेहतरीन गीतों में जगह बना ली थी। इस बार भी नूरा बहनों के गाए दो गीत इस संगीतमाला में हैं।

विशाल शेखर को संगीत में नए नए प्रयोग करने में हमेशा आनंद आता रहा है। हालांकि मुझे विशाल की हर गीत में घुसायी जाने वाली रॉक  रिदम उतनी पसंद नहीं आती पर संगीत संयोजन में उनके नित नए प्रयोग कई बार मेलोडी से भरपूर होते हैं। टुक टुक के संगीत संयोजन के लिए विशाल शेखर अलग से नहीं बैठे। मीका के गाने चार सौ चालीस वोल्ट के संगीत को अंतिम रूप देने के पहले अचानक ही शेखर को टुक टुक की आरंभिक धुन सूझी और फिर  कुछ घंटों में ही इस  गीत ने अपनी शक्ल ले ली ।

गीत का आरंभिक संगीत संयोजन जहाँ मन में मस्ती का मूड ले आता है वहीं गायिकाओं का हो.. सजके दिखाएगी....  हो.. हँस के बुलाएगी कहना बड़ा प्यारा लगता है। अलग से सुनते वक़्त  विशाल का रैप खाने में कंकड़ की तरह लगता है पर फिल्म देखते समय लगा कि वो पश्चिमी रंग में रँगे हुए एक शहरी किरदार के लिए शायद गीत की जरूरत बन गया हो। फिल्म में ये गीत पार्श्व से आता है जब दर्शकों को निर्देशक हरियाणा के कस्बों देहातों से मिलवा रहे होते हैं।

इरशाद कामिल
इरशाद कामिल के लिए पंजाब हरियाणा की भूमि एक 'होम टर्फ' की तरह है जिसकी जुबान, ठसक, लोक रंग सबसे वो भली भांति परिचित हैं। इसलिए उनके बोल ज़मीन से जुड़े हुए दिखते हैं। हाल ही में उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि आप अपनी जड़ों से कटकर आसमान नहीं छू सकते। कम से कम कामिल में आसमान छूने की काबिलियत पूरी तरह से है। ज़िदगी के फलसफ़े के बारे में इरशाद क़ामिल ने सहजता के साथ कितनी प्यारी पंक्तियाँ रची हैं। ज़रा गौर फरमाइए ओ पारे जैसी चंचल है, रेशम है या मलमल है...या फिर गहरी दलदल है, ज़िंदगी या रा रा रा…दिन दिन घटती जाती है, फसल ये कटती जाती है..नज़र से हटती जाती है, ज़िंदगी या रा रा रा… 


दूरी दर्द, मिलन है मस्ती, दुनिया मुझको देख के हँसती
इश्क़ मेरा बदनाम हो गया, करके तेरी हुस्न परस्ती

कोई जोगी, कोई कलंदर, रहता है अपणे में
कोई भुला हुआ सिकंदर, रहता है अपणे में

हो.. सजके दिखाएगी. हो.. हँस के बुलाएगी
हो.. रज्ज के नचाएगी, टुक टुक टुक करती चलती
थारी म्हारी ज़िंदगी, रे बोले, रे बोले ढोला ढोल धड़क धिन, धड़क धिन, धड़क धिन
रे टुक टुक टुक टुक करती चलती, मीठी थारी ज़िंदगी
रे बोले, रे बोले ढोला ढोल धड़क धिन, धड़क धिन, धड़क धिन

अपनी मर्ज़ी से बणती बिगड़ती, बणती बिगड़ती
धुआँ नही, आग नही फिर भी है जलती
ओये होये, ओये होये, ओये होये, ओये…

ओ पारे जैसी चंचल है, रेशम है या मलमल है
या फिर गहरी दलदल है, ज़िंदगी या रा रा रा…
दिन दिन घटती जाती है, फसल ये कटती जाती है
नज़र से हटती जाती है, ज़िंदगी या रा रा रा…

दिल समझे नही पतंदर, रहता है अपने में
बस बनता फिरे धुरंधर रहता है अपने में
हो.. सजके दिखाएगी. हो.. हँस के बुलाएगी...धड़क धिन

तो ज़िदगी का ये गीत आप भी गुनगुनाइए मेरे साथ..

रविवार, मार्च 01, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 रनर्स अप : मनवा लागे, लागे रे साँवरे Manwa Lage

दो महीने के इस सफ़र के बाद आज ये संगीतमाला जा पहुँची है अपनी दूसरी सीढ़ी पर। एक शाम मेरे नाम पर इस साल की संगीतमाला का रनर्स अप खिताब जीता है फिल्म Happy New Year के गीत मनवा लागे ने। विशाल शेखर ने इस गीत की ऐसी मधुर धुन रची कि गीत के यू ट्यूब पर रिलीज होते ही एक दिन के अंदर ही इसे दस लाख लोगों ने सुना। क्या कहें इस गीत की मधुरता ही ऐसी है कि पहली बार सुनते ही आप इसके हो के रह जाते हैं। सच तो ये हैं कि धुन की मधुरता के साथ साथ  इरशाद क़ामिल की शब्द रचना और श्रेया व अरिजित सिंह की प्यारी युगल गायिकी ने इस गीत को वार्षिक संगीतमाला की दूसरी पॉयदान पर ला कर खड़ा कर दिया है। 

इस कोटि के गीतों को निभाने में श्रेया घोषाल की सलाहियत जग ज़ाहिर है। इरशाद क़ामिल के प्रेम से रससिक्त बोलों को जब श्रेया की गुड़ सी मीठी आवाज़ का साथ मिलता है तो समझि॓ए सीधे दिल में छनछनाहट होती है।  गीतकार इरशाद क़ामिल इस गीत को मिली मकबूलियत के बारे में कहते हैं
"सहज शब्द अगर दिल से कहे जाएँ तो वो बिना किसी मशक्कत के लोगों के हृदय में अपना घर बना लेते हैं, इस गीत की सफलता से मेरी इस धारणा को बल मिला है। मैं श्रोताओं को धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन्होंने अपना प्यार इस गीत पर लुटाया।"
इरशाद क़ामिल ने इस गीत में जिस खूबसुरती से शब्दों का दोहराव किया है वो सुनने में बड़ा प्यारा लगता है। गीत के बीच के कोरस में जब वो लिखते हैं रस बुँदिया नयन पिया रास रचे..दिल धड़ धड़ धड़के शोर मचे..यूँ देख सेक सा लग जाये..मैं जल जाऊँ बस प्यार बचे तो उनके शब्दों में प्यार की मीठी तपिश को श्रोता सहज ही महसूस कर पाता है

पार्श्व गायिकी के लिहाज़ से ये साल अरिजित सिंह के नाम रहा है। शायद ही किसी संगीतमाला में  एक ही गायक के इतने सारे गीत एक साथ बजे हों। पर जहाँ तक इस गीत की बात है विशाल शेखर ने इसे दो साल पहले यानि 2012 में रिकार्ड किया था जब अरिजित पार्श्व गायन में इतने बड़े नाम नहीं थे जितने वो आज हैं। अरिजित को गीत का जितना हिस्सा मिला है उसमें वो श्रेया के साथ अपना असर भी छोड़ने में सफल हुए हैं।

ज़हनसीब के बारे में चर्चा करते समय मैंने लिखा था कि  मेलोडी पर  विशाल शेखर की गहरी पकड़ हर साल ऐसे कुछ गाने दे ही जाती है जिन्हें बार बार गुनगुनाने को दिल चाहता है। संगीतकार जोड़ी का ये मानना है कि
इस संसार में जहाँ हर बात हो हल्ले से कही जाती है ये गीत प्रेम और सुकून का बहता हुआ झोंका है। 
बिल्कुल सही कह रहे हैं विशाल शेखर पर ये हो पाया है उनके गीत में ढोल के साथ अन्य वाद्यों के सुंदर संगीत संयोजन से। तो आइए एक बार फिर से सुने इस रोमांटिक गीत को..

मनवा लागे, ओ मनवा लागे
लागे रे साँवरे, लागे रे साँवरे
ले तेरा हुआ जिया का, जिया का, जिया का ये गाँव रे
मनवा लागे, ओ मनवा लागे
लागे रे साँवरे, लागे रे साँवरे
ले खेला मैंने जिया का, जिया का, जिया का है दाँव रे

मुसाफिर हूँ मैं दूर का, दीवाना हूँ मैं धूप का
मुझे ना भाये, ना भाये, ना भाये छाँव रे

ऐसी वैसी बोली तेरे नैनों ने बोली
जाने क्यों मैं डोली
ऐसा लगे तेरी हो ली मैं, तू मेरा
तूने बात खोली कच्चे धागों में पिरो ली
बातों की रंगोली से ना खेलूँ ऐसे होली मैं, ना तेरा
किसी का तो होगा ही तू
क्यूँ ना तुझे मैं ही जीतूँ
खुले ख़्वाबों मे जीते हैं, जीते हैं बावरे
मन के धागे, ओ मन के धागे
धागे पे साँवरे, धागे पे साँवरे
है लिखा मैंने तेरा ही, तेरा ही, तेरा ही तो नाम रे

रस बुँदिया नयन पिया रास रचे
दिल धड़ धड़ धड़के शोर मचे
यूँ देख सेक सा लग जाये
मैं जल जाऊँ बस प्यार बचे

ऐसे डोरे डाले काला जादू नैना काले
तेरे मैं हवाले हुआ सीने से लगा ले, आ मैं तेरा
दोनों धीमे धीमे जलें
आजा दोनों ऐसे मिलें
ज़मीं पे लागे, ना तेरे, ना मेरे पाँव रे
मनवा लागे...

रहूँ मैं तेरे नैनों की, नैनों की, नैनों की ही छाँव रे
ले तेरा हुआ जिया का, जिया का, जिया का ये गाँव रे
रहूँ मैं तेरे नैनों की, नैनों की, नैनों की ही छाँव रे


अगर आपने इस संगीतमाला में शामिल किए गए गीतों को नहीं सुना तो उन्हें सुनिए नीचे की इन कड़ियों पर और इंतज़ार कीजिए वार्षिक संगीतमाला के सरताजी बिगुल का क्यूँकि सर्वोच्च पॉयदान पर गीत ऐसा जो शायद आपके लिए अनजाना हो...

वार्षिक संगीतमाला 2014

बुधवार, फ़रवरी 18, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 6 : ज़हनसीब..ज़हनसीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब .. Zehnaseeb

वार्षिक संगीतमाला की गाड़ी धीरे धीरे चलती हुई शुरु की छः पायदानों तक पहुँच गई है। इन छः गीतों से मुझे बेहद प्यार है और इन सभी को पहली बार सुनते ही मैंने अपनी इस सालाना सूची में डाल दिया था। तो छठी सीढ़ी पर गाना वो जिसकी धुन तैयार की युवाओं में खासी लोकप्रिय संगीतकार जोड़ी विशाल शेखर ने। वार्षिक संगीतमालाओं में हर साल विशाल शेखर की उपस्थिति अनिवार्य रहती है। वैसे व्यक्तिगत तौर पर मुझे विशाल शेखर की इस जोड़ी में शेखर रवजियानी की संगीतबद्ध धुनें हमेशा से ज्यादा आकर्षित करती रही हैं। मेलोडी पर इनकी गहरी पकड़ हर साल ऐसे कुछ गाने दे ही जाती है जिन्हें बार बार गुनगुनाने को दिल चाहता है। अगर पिछले कुछ सालों की बात करूँ तो उनके संगीतबद्ध गीतों में फलक़ तक चल साथ मेरे...., कुछ कम रौशन है रोशनी, कुछ कम गीली हैं बारिशें...., तू ना जाने आस पास है ख़ुदा...., बिन तेरे..कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे.... और जो भेजी थी दुआ... जैसे कर्णप्रिय गीत सहज दिमाग में आ जाते हैं।



संगीतमाला की इस पायदान पर आसीन है फिल्म हँसी तो फँसी का ये नग्मा जिसे गाया है शेखर रवजियानी ने चिन्मयी श्रीपदा के साथ। आपको याद होगा कि पिछले साल शेखर ने फिल्म चेन्नई एक्सप्रेस के गीत ''तितली'' के लिए चिन्मयी को ही चुना था। पहले ये गीत शेखर ने सिर्फ अपनी आवाज़ में रिकार्ड किया था। पर ' हँसी तो फँसी' में इस गाने के द्वारा चूँकि सिद्धार्थ मल्होत्रा और परिणिति चोपड़ा के साथ गुजरे मीठे पलों का फिल्मांकन करना था तो उसे युगल गीत बनाना पड़ा। सच तो ये है कि चिन्मयी ने अपनी आवाज़ से इस गीत को रेशम सी मुलायमियत बख्श दी है।  इस गीत के बारे में चेन्नई से ताल्लुक रखने वाली चिन्मयी कहती हैं कि 
"शेखर सर ने मुझे इस गीत की रिकार्डिंग के पहले बस इतना बताया था कि ये एक रोमांटिक गीत है। गीत के बोलों से वैसे भी मैं समझ ही गई थी। हाँ मैंने गाने के पहले ये जरूर जान लिया था कि ज़हनसीब और बेतहाशा जैसे शब्दों का मतलब क्या है।"
Chinmayi Sripada & Shekhar Ravjiani
वैसे इस फिल्म के निर्माता करण जौहर का भी ये पसंदीदा नग्मा है और इस गीत के प्रति उनकी उत्सुकता का आलम ये था कि वो गीत की रिकार्डिंग में भी साथ मौज़ूद थे। सच में विशाल शेखर ने क्या मधुर धुन बनाई है इस गीत की। गीत का शुरुआती टुकड़ा हो या इंटरल्यूड्स, मन बस  गिटार की प्रमुखता से सजी धुन के साथ बहता चला जाता है। अमिताभ के बोल जब चिन्मयी की कोकिल कंठी आवाज़ में निकलते हैं तो हृदय में प्रेम की मिसरी सी घुलने लगती है। अमिताभ की लिखी इन पंक्तियाँ पर गौर करें तेरे संग बीते हर लम्हें पर हमको नाज़ है..तेरे संग जो न बीते उस लम्हें पर ऐतराज है.... या फिर तेरी अँखियों के शहर में यारा सब इंतज़ाम है..ख़ुशियों का एक टुकड़ा मिले या मिले ग़म की खुरचनें.... कितना नर्म सा अहसास मन में जगा  जाती हैं ये शब्द रचना !

वैसे हिंदी में 'ज़हनसीब' का मतलब होता है भाग्यशाली होना। यानि अमिताभ कहना चाहते हैं कि तुम्हारा  साथ पाकर मैं अपने आप को कितना भाग्यशाली महसूस करता हूँ। ये जो feeling lucky वाला अहसास है ना वो सिर्फ गूगल सर्च पर नहीं होता बल्कि हम सब की ज़ि्दगी में किसी खास शख़्स की वज़ह से आ ही जाता है। क्यूँ है ना ?

ज़हनसीब, ज़हनसीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब
मेरे क़रीब, मेरे हबीब, तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब

तेरे संग बीते हर लम्हे पे हमको नाज़ है
तेरे संग जो ना बीते उसपे ऐतराज़ है

इस क़दर हम दोनों का मिलना एक राज़ है
हुआ अमीर दिल ग़रीब
तुझे
चाहूँबेतहाशा ज़हनसीब...

लेना-देना नहीं दुनिया से मेरा बस तुझसे काम है
तेरी अँखियों के शहर में यारा सब इंतज़ाम है
ख़ुशियों का एक टुकड़ा मिले या मिले ग़म की खुरचनें
यारा तेरे मेरे खर्चे में दोनों का ही एक दाम है


होना लिखा था यूँ ही जो हुआ
या होते-होते अभी अनजाने में हो गया
जो भी हुआ, हुआ अजीब
तुझे चाहूँ बेतहाशा ज़हनसीब




सच इस गीत को सुनते सुनते मेरा दिल तो गरीब हो चुका है और आपका ?

वार्षिक संगीतमाला 2014

शनिवार, जनवरी 25, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 14 बन के तितली दिल उड़ा उड़ा उड़ा हैं, कहीं दूर .. ( Ban ke Titli...)

गीतमाला की अगली सीढ़ी पर एक बड़ा ही सुरीला नग्मा खड़ा है आपके इंतज़ार में। एक ऐसा गीत जिसे मात्र एक दो बार सुनकर ही आप इसकी गिरफ़्त में आ जाएँ। कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ जब मैंने चेन्नई एक्सप्रेस के इस गीत को पहली बार सुना। विशाल शेखर द्वारा संगीतबद्ध रोमांटिक गीतों की मुलायमियत से हम सब वाकिफ़ हैं। अगर पिछले कुछ सालों के उनके रिकार्ड को देखा जाए तो हलके हलके रंग छलके.., जाने हैं वो कहाँ जिसे ढूँढती है नज़र.., फ़लक तक चल साथ मेरे.., कुछ कम रौशन है रोशनी..कुछ कम गीली है बारिशें.., बिन तेरे कई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे, बहारा बहारा हुआ दिल पहली बार रे... जैसे रूमानियत का रंग बिखेरते गीतों की लंबी झड़ी तुरंत ही दिमाग में आ जाती है। तितली.. विशाल शेखर की तरफ़ से इस तरह के गीतों को पसंद करने वाले श्रोताओं के लिए नया तोहफा है।


चेन्नई एक्सप्रेस के लिए विशाल शेखर ने गीतकार के रूप में अमिताभ भट्टाचार्य को चुना और क्या मुखड़ा लिखा अमिताभ ने बन के तितली दिल उड़ा उड़ा उड़ा है, कहीं दूर ...चल के खुशबू से जुड़ा जुड़ा जुड़ा है, कहीं दूर .. विशाल की मधुर धुन पर चिन्मयी श्रीप्रदा की आवाज़ में इन शब्दों को सुन मन मयूर सब कुछ भूल कर सचमुच उड़ने लगता है भावनाओं के क्षितिज में। अमिताभ ने ''ख़्वाबदारी'' और ''रागदारी'' जैसे अप्रचलित शब्दों का प्रयोग कर अंतरे में नया रंग भरने की कोशिश की है। 

इस गीत में चिन्मयी का साथ दिया है मलयाली संगीतकार व गायक गोपी सुंदर ने। इस साल भले ही चिन्मयी श्रीपदा ऐ सखी साजन, तू रंग शरबतों का और तितली जैसे गीतों में सुनी गई हैं पर गुरु के गीत तेरे बिना बेसुवादी रतियाँ के बाद उनकी हिंदी फिल्मों मे उपस्थिति नगण्य ही रही है। इसकी एक वज़ह ये भी है कि जिस कोटि के गीत उनकी आवाज़ में जँचते हैं वहाँ श्रेया घोषाल ने अपनी पहचान पहले से बना रखी है। चिन्मयी इस गीत को अपनी झोली में आने के बारे में कहती  हैं..
"मुझे मुंबई फिल्मों में और गाने गाने का मन तो करता है पर समझ नहीं आता कि उसके लिए मैं काम करूँ। अपने लिए काम ना मै चेन्नई में माँगती हूँ और ना ये तरीका मैंने मुंबई वालों के लिए अपनाया है। नवंबर में जब शेखर सर चेन्नई आए तो उन्होंने कहा कि मुझे तेरे बिना गाने वाली लड़की से मिलना है। मुझे बुलाया गया, गीत की परिस्थिति बताई गयी और गीत रिकार्ड भी हो गया। बाद में जब शाहरुख सर ने ट्वीट किया कि उन्हें मेरा गाया गीत बेहद पसंद आया तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।

बन के तितली दिल उड़ा उड़ा उड़ा है, कहीं दूर ...
चल के खुशबू से जुड़ा जुड़ा जुड़ा है, कहीं दूर
...
हादसे ये कैसे, अनसुने से जैसे
चूमे अँधेरों को, कोई नूर ...

सिर्फ कह जाऊँ या, आसमाँ पे लिख दूँ
तेरी तारीफों में, चश्मेबददूर ...

भूरी भूरी आँखें तेरी
कनखियों से तेज़ तीर कितने छोड़े
धानी धानी बातें तेरी
उडते-फिरते पंछियों के रुख भी मोड़े


अधूरी थी ज़रा सी, मैं पूरी हो रही हूँ
तेरी सादगी में हो के चूर ....
बन के तितली ...

रातें गिन के नींदें बुन के
चीज़ क्या है ख़्वाबदारी हम ने जानी
तेरे सुर का साज़ बन के
होती क्या है रागदारी हम ने जानी

जो दिल को भा रही हैं, वो तेरी शायरी है
या कोई शायरना है फितूर..
बन के तितली ...



 

चलते चलते इस गीत से जुड़ी एक बात और। हिंदी भाषी लोगों के मन में ये प्रश्न जरूर उठता होगा कि इस गीत की शुरुआत में और अंतरे में जो तमिल श्लोक सुनाई देता है उसका क्या अर्थ है। इस श्लोक के धार्मिक महत्तव पर बिना विस्तार में जाए बस आपको इतना बताना चाहूँगा कि भगवन को संबोधित करते इसमें कहा गया है कि भगवान एक बार जब तुम्हारे अद्वितीय रूप के दर्शन हो गए तो मुझे इस संसार में अब कुछ और देखने की इच्छा नहीं बची।

रविवार, फ़रवरी 17, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 8 : जो भेजी थी दुआ ..वो जा के आसमान से यूँ टकरा गयी...

जिंदगी की राहें हमेशा सहज सपाट नहीं होती। कभी कभी ये ज़िंदगी बड़े अज़ीब से इम्तिहान लेने लगती है। आपके और आपके करीबियों के साथ कुछ ऐसा होता है जो आप एकदम से स्वीकार नहीं कर पाते। मन अनायास ही ये सवाल कर उठता है..ऐसा मेरे साथ ही क्यूँ भगवन ? पर उस सवाल का जवाब देने के लिए ना आपके संगी साथी ही आते हैं ना ये परवरदिगार। अपने आँसुओं के बीच की ये लड़ाई ख़ुद आपको लड़नी पड़ती है। मन की इन्हीं परिस्थितियों को उभारता हैं वार्षिक संगीतमाला की आठवी पॉयदान का ये संवेदनशील नग्मा जिसे लिखा है कुमार राकेश ने और जिसे संगीतबद्ध किया है विशाल शेखर की जोड़ी ने। 


गीतकार कुमार, जिनसे आपकी मुलाकात मैंने 2010 की वार्षिक संगीतमाला में बहारा बहारा हुआ दिल पहली बार रे  गीत के साथ कराई थी ने गीत की इन भावनाओं के लिए कमाल के बोल लिखे हैं। ज़िंदगी के कठोर हालातों से उपजी बेबसी और हताशा उभर कर सामने आती है जब कुमार कहते हैं पसीजते है सपने क्यूँ आँखो में..लकीरें जब छूटे इन हाथो से यूँ बेवजह..जो भेजी थी दुआ ..वो  जा के आसमान से यूँ टकरा गयी कि आ गयी है लौट के सदा ...

फिल्म शंघाई के इस गीत को गाया है एक ऐसी गायिका ने जिनकी आवाज़ में कुछ ऐसा जरूर है जिसे पहली बार सुनकर आप ठिठक से जाते हैं। ये आवाज़ है नंदिनी सिरकर (Nandini Sirkar) की। नंदिनी की आवाज़ पर  हिंदी फिल्म संगीत प्रेमियों का ध्यान भले ही 2011 में प्रदर्शित फिल्म रा वन के गीत भरे नैना.. से गया हो पर बहुमुखी प्रतिभा की नंदिनी पिछले एक दशक से सांगीतिक जगत में सक्रिय रही हैं। 

नंदिनी को सांगीतिक विरासत अपनी माँ शकुंतला चेलप्पा से मिली जो कर्नाटक संगीत की हुनरमंद गायिका थी। बारह साल की उम्र तक नंदिनी ने वीणा, सितार और फिर एकाउस्टिक गिटार बजाना सीख लिया था। पर नंदिनी ने युवावस्था में संगीत को एक शौक़ की तरह ही लिया । संगीत की तरह पढ़ने लिखने में नंदिनी अपना कमाल दिखलाती रही। गणित में परास्नातक की डिग्री लेने वाली और भौतिकी को बेहद पसंद करने वाली नंदिनी सूचना प्राद्योगिकी से जुड़ी नौकरी में लीन थीं जब संयोग से हरिहरण जी ने उनका गाना सुना।  इस तरह पहली बार 1998 में एक तमिल फिल्म में उन्हें पार्श्व गायिका का काम मिला। पिछले एक दशक में उन्हें दक्षिण  भारतीय  और हिंदी फिल्मों में गाने के इक्का दुक्का अवसर मिलते रहे। पर 2011में रा वन  (भरे नैना..) और फिर 2012 में एजेंट विनोद  (दिल मेरा मुफ्त का ..)  में उनके गाए गीतों ने खूब सुर्खियाँ बटोरीं।

शंघाई के इस गीत में जिस दर्द की आवश्यकता थी वो नंदिनी के स्वर में स्वाभाविक रूप से फूटती नज़र आती है। इस गीत में नंदिनी का बतौर गायक साथ दिया है संगीतकार शेखर रवजियानी ने। विशाल शेखर ने इस गीत में अपने हिप हाप संगीत से अलग हटकर संगीत संयोजन देने की कोशिश की है। जब गीत की लय शुरुआती सवालों से उठती हुई जो भेजी थी दुआ.. तक पहुँचती है तो वो पुकार सीधे दिल से टकराती प्रतीत होती है।

तो आइए कुमार के दिल को छूते शब्दों के साथ महसूस करें इस गीत की पीड़ा को..

 

किसे पूछूँ, है ऐसा क्यूँ
बेजुबाँ सा ये ज़हाँ है
ख़ुशी के पल, कहाँ ढूँढूँ
बेनिशान सा वक्त भी  यहाँ है
जाने कितने लबो पे गिले हैं
ज़िन्दगी से कई फासले हैं
पसीजते है सपने क्यूँ आँखो में
लकीरें जब छूटे इन हाथो से यूँ बेवजह

जो भेजी थी दुआ ..वो  जा के आसमान
से यूँ टकरा गयी
कि आ गयी है लौट के सदा

साँसो ने कहाँ रूख मोड़ लिया
कोई राह नज़र में न आये
धड़कन ने कहाँ दिल छोड़ दिया
कहाँ छोड़े इन जिस्मो ने साए
यही बार बार सोचता हूँ
तनहा मैं यहाँ
मेरे साथ साथ चल रहा है
यादों का धुआँ
....

बुधवार, जनवरी 18, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 16 : तेरे वास्ते मेरा इश्क़ सूफ़ियाना...

वार्षिक संगीतमाला की सोलहवीं पॉयदान पर स्वागत कीजिए जी सा रे गा मा पा के 2010 के विजेता कमल खान का जिन्होंने दि डर्टी पिक्चर में आए अपने इस गीत से खासी लोकप्रियता अर्जित की है। अगर आपने सा रे गा मा पा पिछले साल देखा हो तो आप भली भांति जानते होंगे कि पंजाब के निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से आया ये २७ वर्षीय युवक गले से कितना सुरीला है। कार्यक्रम में ऊँचे सुरों पर जब कमल पंजाबी लोकगीतों की तान छेड़ते थे तो लगता था कि मानों हम एक दूसरी दुनिया में ही पहुँच गए हों।

कमल की आवाज़ को फिल्मी पर्दे पर लाने का पूरा श्रेय संगीतकार विशाल शेखर की जोड़ी को दिया जाना चाहिए जिन्होंने पहले 'तीस मार खाँ' और अब 'दि डर्टी पिक्चर' में उसका बखूबी इस्तेमाल किया है। कमल की आवाज़ में इतना दम और हुनर जरूर है कि अगर वो यूँ ही अपनी आवाज़ को तराशते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब वो भारत के 'राहत' बन जाएँगे।

पर इस गीत को इतना मधुर बनाने में कमल के आलावा गीतकार संगीतकार जोड़ी का भी बराबर का हाथ है। मुखड़े के ठीक पहले बजती पियानो की धुन सबसे पहले आकर्षित करती है और फिर आता है मुखड़ा जिसमें गीतकार ने प्रेम को इतने मोहक रूपों में बाँधा है कि पढ़ सुन कर बस वाह या आह ही निकलती है। ज़रा आप भी देखिए ना..

रब की क़व्वाली है इश्क़ कोई
दिल की दीवाली है इश्क़ कोई
महकी सी प्याली है इश्क़ कोई
सुबह की लाली है इश्क़....
गिरता सा झरना है इश्क़ कोई
उठता सा कलमा है इश्क़ कोई
साँसों में लिपटा है इश्क़ कोई
आँखों में दिखता है इश्क़...

गीत के इंटरल्यूड्स में भी हिंदुस्तानी और पश्चिमी वाद्य यंत्रों का संयोजन ने निकली धुन गीत के आनंद को बढ़ा देती है। वैसे क्या आपको पता है ये गीत किसने लिखा है। इस गीत को लिखने वाले हैं रजत अरोड़ा। रजत के गीतकार बनने का सफ़र बहुत कुछ 'रब ने बना दी जोड़ी' वाले जयदीप साहनी जैसा है। इन दोनों ने गीतकार बनने की सीढी पटकथा लेखक बनने के बाद तय की है।

वैसे रजत हमेशा से गीतकार ही बनना चाहते थे। पर मुंबई आने पर उन्हे काम मिला पटकथा लेखक का। टैक्सी नंबर 9 दो 11,  Once Upon A Time in Mumbai और चाँदनी चौक टू चाइना जैसी फिल्मों का पटकथा लेखन करने के बाद जब उन्हे विशाल शेखर ने ये फिल्म बतौर गीतकार पेश की तो वो फूले ना समाए।। रजत कहते हैं कि पटकथा लेखन के बाद गीतों को लिखना और भी सहज हो जाता है क्यूँकि लेखक जानता है कि उसके सृजित किरदार अलग अलग परिस्थितियों में किस भावना से गुजर रहे हैं।

इस गीत में रजत ने नायक के प्रेम को सूफ़ियाना विशेषण दिया है। यानि किसी के प्रेम में ऐसा डूब जाना कि अपने अस्तित्व का पता ही ना चले। विशाल शेखर भी इस गीत को इस फिल्म की सबसे मेलोडियस रचना मानते हैं। तो आइए आनंद लेते हैं इस गीत का..


मेरे दिल को तू जान से जुदा कर दे
यूँ बस तू मुझको फ़ना कर दे
मेरा हाल तू, मेरी चाल तू
बस कर दे आशिक़ाना
तेरे वास्ते मेरा इश्क़ सूफ़ियाना
मेरा इश्क़ सूफ़ियाना ,मेरा इश्क़ सूफ़ियाना


सोचूँ तुझे तो है सुबह,
सोचूँ तुझे तो शाम है
हो ओ.. मंज़िलों पे अब तो मेरी…...
एक ही तेरा नाम है
तेरे आग में ही जल के,
कोयले से हीरा बन के
ख्वाबों से आगे चलके,
है तुझे बताना…..
तेरे वास्ते मेरा इश्क़ सूफ़ियाना.....


साथ-साथ चलते-चलते हाथ छूट जाएँगे
ऐसी राहों में मिलो ना
बातें-बातें करते-करते रात कट जाएगी
ऐसी रातों में मिलो ना
क्या हम हैं, क्या रब है
जहाँ तू है वहीं सब है
तेरे लब मिले मेरे लब खिले
अब दूर क्या है जाना
तेरे वास्ते मेरा इश्क़ सूफ़ियाना....
रब की.........इश्क़

मेरे दिल को तू ....मेरा इश्क़ सूफ़ियाना...


सोमवार, जनवरी 16, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 17 : जानिए अमित जी का हाल - ए - दिल !

अमिताभ बच्चन के अभिनय का तो हम सभी लोहा मानते हैं। उनके धारदार अभिनय को दर्शकों के दिल में बसाने में उनकी आवाज़ का बहुत बड़ा हाथ है। बचपन मे फिल्मों के प्रोमो रेडिओ पर आते थे 'प्रायोजित कार्यक्रम' के नाम से। अगर फिल्म अमित जी की हो तो कहना ही क्या। हम उनकी आवाज़ सुनने के लिए ट्रांजिस्टर के साथ कान लगाए फिरते। अमित जी के डॉयलॉग ज्यूँ ही कानों में पड़ते लगता कि आज का दिन ही बन गया। फिल्मी पर्दे पर भी उनकी स्क्रीन प्रेसेंस का अहम हिस्सा थी उनकी आवाज़....

अमिताभ ने बहुत कम गीत गाए हैं पर जब जब उन्होंने अपनी आवाज़ का इस्तेमाल बतौर पार्श्व गायक किया उनका जादू वहाँ भी चला। जब स्कूल में थे तो उनकी फिल्म नटवरलाल का गीत 'मेरे पास आओ मेरे दोस्तों इक किस्सा सुनो..' हम बच्चों को इतना पसंद आता था कि क्या कहें। गीत सुनकर हँसते हँसते हालत खराब हो जाती थी। फिर आई उनकी फिल्म सिलसिला। किशोरावस्था में इस फिल्म के लिए उनका गाया हुआ गीत नीला आसमान सो गया... सुनते तो लगता पूरे ज़हाँ का दुख अपने दिल में ही समा गया है। वहीं रँग बरसे.. की मस्ती से पूरा बदन थिरक उठता।

विगत कुछ वर्षों में अमिताभ हर साल इक्का दुक्का फिल्मों में अपनी आवाज़ देते रहे हैं। वर्ष 2007 में विशाल भारद्वाज के संगीत निर्देशन में फिल्म निःशब्द के लिए उनका गाया संवेदनशील गीत रोज़ाना जिएँ रोज़ाना मरें तेरी यादों में हम मेरी वार्षिक संगीतमाला का हिस्सा बना था। इस साल एक बार फिर उनके गीत ने कदम रखा है संगीतमाला की सत्रहवीं पॉयदान पर। फिल्म बुड्ढा होगा तेरा बाप के इस गीत में अमिताभ पर्दे पर हेमा जी से अपने हाल- ए- दिल का इज़हार कर रहे हैं।

अमिताभ अपने एक साक्षात्कार में इस गीत के बारे में कहते हैं
जब संगीतकार विशाल शेखर ने मुझे इस फिल्म के गीत गवाने की इच्छा ज़ाहिर कि तो मुझे लगा कि मैंने एक बुरा स्वप्न देख लिया। पर वे अच्छे मित्र हैं इसलिए उनकी बात नज़रअंदाज़ भी नहीं कर सकता था। हम लोग एक साथ स्टूडिओ में बैठे। हँसी मजाक के साथ गप्पें चल रही थीं कि किसी ने कोई वाद्य यंत्र उठाया और बस यूँ ही एक धुन तैयार हो गई।

विशाल शेखर अमिताभ की आवाज़ का असर भली भांति जानते हैं। इसलिए अमिताभ जब गीत शुरु करते हैं तो संगीत संयोजन नाममात्र का ही है। अमिताभ जब एक बार गीत के मुखड़े और एकमात्र अंतरे को गा लेते हैं तो ताल वाद्यों की बढ़ती रिदम के साथ गीत की पुनरावृति होती है। बीच बीच में पार्श्व गायिका मोनाली ठाकुर की  मधुर तान गूँजती है  जो मन को भली लगती है।

इस गीत के बोलों का क्रेडिट सम्मिलित रूप से दिया गया है गीतकार स्वानंद किरकिरे और अन्विता दत्त गुप्तान को। तो आइए सुनते हैं इस मधुर गीत को..


हाल-ए-दिल हाल-ए-दिल
तुमसे कैसे कहूँ
यूँ कभी आ के मिल
तुमसे कैसे कहूँ

यादों में ख्वाबों में
आप की छब में रहें
हाल ए दिल हाल ए दिल
तुमसे कैसे कहूँ

हम तो उधड़ से रहे
होठ यूँ सिल से रहे
तेरी ही जुल्फों के धागे
यूँ तो सौ ख़त भी लिखे
कई पन्ने रट भी लिए
तेरी कहानी दोहराते
कबसे ये कह रहे
आपकी छब में रहे
हाल-ए-दिल हाल-ए-दिल.....

शनिवार, मार्च 05, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे... कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे...

वार्षिक संगीतमाला 2010 का सफ़र अब अपने अंतिम दौर में पहुँच गया है। और अब बात बची है संगीतमाला के प्रथम पाँच गीतों की। ये पाँचों नग्मे ऍसे हैं जिनको सुन कर मन उनमें डूबता सा जाता है। वैसे भी जब कोई गीत आपको अपने अभी के मूड से हटाकर सीधे गीत की भावनाओं में बहा ले जाता है तो वो आपके लिए विशिष्ट हो उठता है। पाँचवी पॉयदान के इस गीत को गाया है शफक़त अमानत अली खाँ और सुनिधि चौहान ने। फिल्म का नाम तो आप समझ ही चुके होंगे 'I Hate Luv Storys'.

मैंने ये फिल्म नहीं देखी पर इसके गीत संगीत पर विशाल शेखर ने जो काम किया है वो निश्चय ही प्रशंसनीय है। जैसा कि अनजाना अनजानी के गीत तू ना जाने आस पास है ख़ुदा ... के बारे में बातें करते वक़्त मैंने आपको बताया था कि विशाल और शेखर एकदम भिन्न संगीतिक परिवेश से आए हैं। पर इस भिन्नता को इन्होंने अपनी ताकत की तरह इस्तेमाल किया है। कुछ दिनों पहले मैं कोमल नाहटा द्वारा उनके टीवी पर लिए साक्षात्कार को सुन रहा था। साक्षात्कार में उनसे पूछा गया कि अपना संगीत वो किस तरह रचते हैं। क्या उनके पास कोई म्यूजिक बैंक है ? विशाल शेखर का कहना था..

आज का युग धुनों को इकट्ठा करके उन्हें इस्तेमाल करने का नहीं रह गया है। आज तो सारे निर्देशक हमें स्क्रिप्ट लिखने के समय से ही हमें विचार विमर्श में शामिल कर लेते है। हमारी खुशकिस्मती है कि अब तक हम लोगों ने जितने निर्देशकों के साथ काम किया है उनमें ज्यादातर हमारे निकट के मित्र थे। इसलिए धुन सुनाते समय हमें उनकी निष्पक्ष राय मिलती रही। वैसे भी अगर हम सफल हैं तो बस ऊपरवाले की वजह से। चाहे हम कितनी भी मेहनत कर लें पर विश्वास मानिए वो मेहनत गीत का मुखड़ा हमारे मन में नहीं लाती। हमारे अधिकांश लोकप्रिय नग्मों का सृजन कॉफी शाप में, गाड़ी में ड्राइव पर या ऐसी ही किसी अनौपचारिक अवस्था में हुआ है । इसीलिए हम अपने आप को बस एक माध्यम मानते हैं उसका जो हमसे ये करा रहा है। कोई गीत हिट होगा या नहीं इससे ज्यादा हमें ये बात ज्यादा मायने की लगती है कि हम अपने रचे संगीत का आनंद ले पा रहे हैं या नहीं।

विशाल ददलानी इस गीत के गीतकार भी हैं। गीतकार और संगीतकार की दोहरी भूमिकाएँ वो पहले भी निभा चुके हैं। वैसी भी रॉक बैंड से अपने संगीत के सफ़र की शुरुआत करने वाले विशाल को ये काम आसान लगता है क्यूँकि बैंड में काम करने वालों को गीत लिखने से लेकर उसके संगीत और गायन का काम खुद ही करना पड़ता है।

गिटार की धुन और फिर शुरुआती अंग्रेजी कोरस से इस गीत का आगाज़ होता है।

Lost n lonely coz you're the only
One that knows me
That I can't be without you
Lost n lonely coz you're the only
One that knows me
That I can't be without you


फिर उभरती है पार्श्व से शफक़त अमानत अली खाँ की आवाज़ जो मुखड़े के साथ ही आपको गीत की उदासी में भिंगो लेती है। बन कर बिगड़ते रिश्तों की पीड़ा गीत में सहज ही व्यक्त होती है। नतीजा ये कि नायक की जिंदगी का एकाकीपन आपको भी काटने सा दौड़ता है । खासकर तब जब अमानत तरह तरह से बिन तेरे..कोई ख़लिश है हवाओं में को अपने अलग अलग अंदाजों में दोहराते हैं। शफक़त अमानत अली खाँ , राहत की तरह हिंदी फिल्मों में निरंतरता से तो नहीं गाते पर अपने गिने चुने गीतों में वो खासा असर छोड़ जाते हैं। मितवा... और मोरा सैयाँ मोसे बोले ना... में उनकी गायिकी का मैं हमेशा से मुरीद रहा हूँ। तो आइए सुने उनकी व सुनिधि की आवाज़ में इस बेहतरीन नग्मे को...



है क्या ये जो तेरे मेरे दरमियाँ है
अनदेखी अनसुनी कोई दास्तां है
लगने लगी अब ज़िन्दगी खाली, है मेरी
लगने लगी हर साँस भी खाली
बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे
कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे

अजनबी से हुए क्यूँ पल सारे
ये नज़र से नज़र ये मिलाते ही नहीं
इक घनी तन्हाई छा रही है
मंजिलें रास्तों में ही गुम होने लगी
हो गयी अनसुनी हर दुआ अब मेरी
रह गयी अनकही बिन तेरे
बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे

राह में रौशनी ने है क्यूँ हाथ छोड़ा
इस तरफ शाम ने क्यूँ है अपना मुँह मोड़ा
यूँ के हर सुबह इक बेरहम सी रात बन गयी
है क्या ये ......

ये गीत इरफान खान और सोनम कपूर पर फिल्माया गया है और कोई ताज्जुब नहीं कि दोनों ही इसे इस फिल्म का सबसे अच्छा गीत मानते हैं।


इस गीत का एक और वर्सन भी फिल्म में है जिसे लिखा है कुमार ने और गाया है शेखर ने। इस वर्सन की खास बात ये है कि इसमें वाद्य यंत्र के रूप में सिर्फ गिटार का इस्तेमाल हुआ है।



चलते चलते गीत के मूड को क़ायम रखना चाहता हूँ कंचन जी की इन पंक्तियों के साथ

हँसी बेफिक्र वही और हमारी फिक्र वही,
तेरी शरीर निगाहों में मेरा ज़िक्र वही,
दिखाई देती न हो उसकी इबारत लेकिन,
है सारी बात फिज़ा में वही, हवा में वही...


तुम्हारी खुशबू अभी भी यही पे बिखरी है
तुम्हारी मुस्कुराहटें हैं आस पास वही...

रविवार, फ़रवरी 27, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 8 : जब 'राहत' करवाते हैं सीधे ऊपरवाले से बात-.तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…

चलिए बढ़ते हें वार्षिक संगीतमाला की आठवीं पॉयदान पर। हम सब के जीवन में एक वक़्त ऐसा भी आता है जब हर बाजी आपके खिलाफ़ पलटती नज़र आती है। संगी साथी सब आपका साथ एक एक कर के छोड़ने लगते हैं। हताशा और अकेलेपन की इस घड़ी में आगे सब कुछ धुँधला ही दिखता है। आठवीं पॉयदान का गीत एक ऐसा गीत है जो ज़िंदगी के ऐसे दौर में विश्वास और आशा का संचार ये कहते हुए करता है मुश्किल के इन पलों में और कोई नहीं तो वो ऊपरवाला तुम्हारे साथ है।

फिल्म 'अनजाना अनजानी' के इस गीत को गाया है राहत फतेह अली खाँ ने और संगीत रचना है विशाल शेखर की। विशाल शेखर को इस गीत को बनाने के पहले निर्देशक ने सिर्फ इतना कहा था कि आपको ऐसा गीत बनाना है जिसमें भगवान ख़ुद इंसान को अपने होने का अहसास दिला रहे हैं। विशाल शेखर की जोड़ी के शेखर रवजियानी ने झटपट मुखड़ा रच डाला तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…। पर इस मुखड़े के बाकी अंतरे विशाल ददलानी ने लिखे हैं।

विशाल शेखर की ज्यादातर संगीतबद्ध धुनें हिंदुस्तानी और वेस्टर्न रॉक के सम्मिश्रण से बनी होती हैं। दरअसल जहाँ शेखर ने विधिवत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली है वहीं विशाल मुंबई के रॉक बैंड पेंटाग्राम के गायक रहे हैं। इस अलग अलग परिवेश से आने का प्रभाव उनके संगीत पर स्पष्ट दिखता है।


पर जहाँ पिछले गीत में इरशाद क़ामिल के बोलों को मैंने गीत की जान माना था यहाँ वो श्रेय पूरी तरह से राहत फतेह अली खाँ को जाता है। उन्होंने पूरे गीत को इतना डूब कर गाया है कि श्रोता गीत की भावनाओं से अपने आपको एकाकार पाता है। मुखड़े की उनकी अदाएगी इतनी जबरदस्त है कि उनकी आवाज़ की प्रबलता आपको भावविभोर कर देती है और मन अपने आप से गुनगुनाने लगता है तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…। विशाल शेखर के गिटार के इंटरल्यूड्स मन को सुकून देते हैं। राहत से हर संगीतकार कोई सरगम कोई आलाप अपने गीतों में गवाता ही है। राहत यहाँ भी अपनी उसी महारत का बखूबी प्रदर्शन करते हैं।

तो आइए सुनें इस गीत को




धुँधला जाएँ जो मंज़िलें, इक पल को तू नज़र झुका
झुक जाये सर जहाँ वहीं, मिलता है रब का रास्ता
तेरी किस्मत तू बदल दे, रख हिम्मत, बस चल दे
तेरे साथ ही मेरे कदमों के हैं निशां

तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…
ख़ुद पे डाल तू नज़र, हालातों से हार कर कहाँ चला रे
हाथ की लकीर को मोड़ता मरोड़ता है, हौसला रे
तो ख़ुद तेरे ख्वाबों के रंग में तू अपने ज़हां को भी रंग दे
कि चलता हूं मैं तेरे संग में, हो शाम भी तो क्या
जब होगा अंधेरा, तब पाएगा दर मेरा
उस दर पे फिर होगी तेरी सुबह
तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…

मिट जाते हैं सब के निशां, बस एक वो मिटता नहीं, हाय
मान ले जो हर मुश्किल को मर्ज़ी मेरी, हाय
हो हमसफ़र ना तेरा जब कोई, तू हो जहाँ रहूँगा मैं वहीं
तुझसे कभी ना एक पल भी मैं जुदा
तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…

फिल्म में ये गीत रणवीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा पर फिल्माया गया है।



अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

गुरुवार, फ़रवरी 10, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 14 : बहारा बहारा, हुआ दिल पहली बार वे...बहारा बहारा, कि चैन तो हुआ फरार वे

वसंत हमारे द्वार पर दस्तक दे रहा है। सर्दी अपनी कड़क छोड़ चुकी है। मौसम भी आशिकाना है और संत वेलेंटाइन के पुण्य प्रताप से ये सप्ताह भी। और तो और इस मौसम को और रूमानी बनाने का आ पहुँचा है वार्षिक संगीतमाला 2010 की चौदहवीं पॉयदान पर का ये बेहद सुरीला नग्मा।

इस नग्मे को गाया है कोकिल कंठी श्रेया घोषाल ने। पर श्रेया की मधुर आवाज़ के साथ गीत की शुरुआत और अंतरों के बीच एक और स्वर सुनाई देगा आपको जिसमें गँवई मिट्टी की खुशबू भी है और लोक गीत सी मिठास भी। ये स्वर है सोना महापात्रा का। वर्ष 2006 में सोनी द्वारा निकाले एलबम सोना से अपने संगीत के कैरियर की शुरुआत करने वाली सोना महापात्रा को लोग एक रॉक गायक के रूप में ज्यादा जानते हैं। पर शायद इस गीत की सफलता के बाद पार्श्व गायिका के रूप में उन्हें ज्यादा मौके मिले।


पर फिल्म I Hate Luv Storys का ये गीत यहाँ है तो श्रेया घोषाल की वज़ह से। इस गीत में श्रेया की मिसरी सी मीठी आवाज़ का बेहतरीन उपयोग किया है संगीतकार युगल विशाल शेखर ने। हर अंतरे को जब श्रेया वो ओ ओ ओ.. की स्वर लहरी से शुरु करती हैं तो मन झूम जाता है। वैसे भी रोमांटिक गीतों को गाने में फिलहाल श्रेया का कोई सानी नहीं है।

विशाल शेखर इस साल के सबसे सफल संगीतकारों में रहे हैं। इस गीत में भी इंटरल्यूड्स में उनका संगीत संयोजन बेहद कर्णप्रिय है। वैसे विशाल शेखर ने इस एलबम में राहत फतेह अली खाँ से भी इस गीत का एक वर्जन गवाया है। पर ये गीत श्रेया की आवाज़ पर ज्यादा जमता है।

इस गीत को लिखा है 'कुमार' ने। एक तो ये नाम आप को आधा अधूरा सा लग रहा होगा और दूसरे एक गीतकार के रूप में ये नाम आपके लिए नया भी होगा। तो चलिए पहली बार एक शाम मेरे नाम की संगीतमाला में शिरक़त करने वाले कुमार साहब से आपका परिचय करा दें। कुमार का पूरा नाम है 'राकेश कुमार'। राकेश पंजाब के जालंधर शहर से ताल्लुक रखते हैं। मुंबई फिल्म उद्योग में इनके कदम पन्द्रह साल पहले पड़े। पर पहली फिल्म में गीतकार बनने का मौका 2004 में फिल्म 'प्लॉन' के लिए मिला। वैसे देश के फिल्मी बाजार में लोकप्रिय होने के लिए इन्हें 2009 तक इंतज़ार करना पड़ा। फिल्म दोस्ताना में इनके लिखे गीतों 'देशी गर्ल' और 'माँ का लाडला बिगड़ गया' पर पूरा भारत झूमा था और आज भी नाच गानों की महफिलों में ये गीत बारहा बजते सुनाई दे जाते हैं। और हाँ अगर गीत के साथ उनके नाम की जगह 'Kumaar' दिखे तो इस अतिरिक्त 'a' को देखकर चौंकिएगा नहीं। अपने फिल्मी नामाकरण में उन्होंने इसी spelling का उपयोग किया है।

बहरहाल अपने धूमधड़ाका गीतों के विपरीत 'कुमार' ने इस गीत के रूमानी मूड को देखते हुए बड़ी प्यारी शब्द रचना की है जो श्रेया की आवाज़ में और निखर उठती है। तो चलिए अब बातों का क्रम बंद करते हैं और खो जाते हैं इस सुरीले गीत के आगोश में..



हूँ तोरा साजन, आयो तोरे देश
बदली बदरा बदला सावन
बदला जग ने भेस रे
तोरा साजन, आयो तोरे देश..

सोयी सोयी पलकों पे चल के
मेरी सपनों की खिड़की पे आ गया
आते जाते फिर मेरे दिल के
इन हाथों में वो ख़त पकड़ा गया
प्यार का, लफ़्ज़ों में रंग है प्यार का
बहारा बहारा, हुआ दिल पहली बार वे
बहारा बहारा, कि चैन तो हुआ फरार वे
बहारा बहारा, हुआ दिल पहली पहली बार वे
हो तोरा साजन...

वो कभी दिखे ज़मीन पे, कभी वो चाँद पे
ये नज़र कहे उसे यहाँ मैं रख लूँ
बाँध के इक साँस में
धडकनों के पास में, हाँ पास में घर बनाए
हाय भूले ये ज़हाँ
बहारा बहारा, हुआ दिल पहली बार वे...

प्रीत में तोरी ओ री सँवारिया
पायल जैसे छमके बिजुरिया
छम छम नाचे तन पे बदरिया हूँ हो हो ओ हो
बादालिया तू बरसे घना
बरसे घना, बरसे घना

ये बदलियाँ, वो छेड़ दे,तो छलके बारिशें
वो दे आहटें, करीब से
तो बोले ख़्वाहिशें कि आज कल, ज़िन्दगी हर एक पल,
हर एक पल से चाहे, हाय जिसका दिल हुआ

बहारा बहारा, हुआ दिल पहली बार वे...
सोयी सोयी पलकों पे चल के....
बहारा बहारा.... हो तोरा साजन...



अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

मंगलवार, मार्च 03, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 :पायदान संख्या 6 - कुछ कम रौशन है रोशनी..कुछ कम गीली हैं बारिशें

वार्षिक संगीतमाला 2008 में लग गया था बेक्र जिस वज़ह से मेरी ये गाड़ी पॉयदान संख्या 7 पर रुकी हुई थी। और इसी बीच हिंदी फिल्म संगीत ने वो मुकाम तय किया जो अब तक हमें कभी नहीं मिला था। तो सबसे पहले ए आर रहमान और गुलज़ार की जोड़ी को आस्कर एवार्ड मिलने के लिए एक बड़ा सा जय हो ! ये इस बात को पुख्ता करता है कि भले ही हम अपने फिल्म संगीत के स्वर्णिम अतीत को पीछे छोड़ आए हों पर नया संगीत भी असीम संभावनाओं से भरा है और इससे बिलकुल नाउम्मीदी सही नहीं है।

तो चलें इस संगीतमाला की आखिर की छः सीढ़ियों का सफ़र तय करें कुछ अद्भुत गीतों के साथ। छठी पायदान पर एक ऐसे कलाकार हैं जो एक नामी संगीतकार जोड़ी का अहम हिस्सा तो हैं ही, वे गाते भी हैं और अपनी चमकदार चाँद के साथ दिखते भी बड़े खूब हैं। पर हुजूर अभी इनकी खूबियाँ खत्म नहीं हुई हैं। छठी पायदान के इस गीत को लिखा भी इन्होंने ही है। जी हाँ ये हैं विशाल ददलानी और मेरी संगीतमाला की छठी पायदान पर गीत वो जिसे फिल्म दोस्ताना में आवाज़ दी है शान ने...


गर जिंदगी की जद्दोज़हद में अगर आप उबे हुए हों तो निश्चय ही ये गीत आपके लिए मरहम का काम करेंगा। पियानों के प्यारे से आरंभिक नोट्स , शान की मखमली आवाज़ और गिरती मनःस्थिति में मन को सहलाते विशाल के शब्द इस गीत के मेरे दिल में जगह बनाने की मुख्य वज़हें रहीं हैं। तो आइए सुनें ये गीत जो एक शाम मेरे नाम पर प्रस्तुत किया जाने वाला १०० वाँ गीत भी है

कुछ कम रौशन है रोशनी
कुछ कम गीली हैं बारिशें
थम सा गया है ये वक्त ऍसे
तेरे लिए ही ठहरा हो जैसे

कुछ कम रौशन है रोशनी....
क्यूँ मेरी साँस भी कुछ भींगी सी है
दूरियों से हुई नज़दीकी सी है
जाने क्या ये बात है हर सुबह अब रात है
कुछ कम रौशन है रोशनी.....

फूल महके नहीं कुछ गुमसुम से हैं
जैसे रूठे हुए, कुछ ये तुमसे हैं
खुशबुएँ ढल गईं, साथ तुम अब जो नहीं
कुछ कम रौशन है रोशनी........






और इससे पहले कि आगे बढ़ें एक नज़र उन गीतों पर जो इस साल की संगीतमाला की शोभा बढ़ा चुके हैं।



वार्षिक संगीतमाला 2008 में अब तक :


 

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