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रविवार, नवंबर 13, 2022

हमसे तो वो बेहतर हैं जो किसी के ना हुए Ghazals of new web series Mukhbir

हाल ही में ZEE5 पर आई एक वेब सीरीज का एक संगीत एलबम सुनने को मिला। खास बात ये कि इस एल्बम में दो ग़ज़लें भी थीं। वैसे तो आज के दौर में भी कम ही सही पर युवा कलाकार पुरानी ग़ज़लों को तो बखूबी निभा रहे हैं पर उनकी  गायी नई ग़ज़लों के मिसरों में वो गहराई नहीं दिखती जो ग़ज़ल को सही मायने  ग़ज़ल का रूतबा दिलाने के लिए बेहद जरूरी है।


दरअसल कविता तो ग़ज़ल की आत्मा है जिसके मूड को समझते हुए संगीतकार उसमें अपनी धुन का रंग भरता है और गायक उसके शब्दों के वज़न को समझते हुए अपनी अदाएगी के ज़रिए हर मिसरे के भावों को श्रोताओं के दिल में बैठा देता है। मुझे मुखबिर में शामिल ग़ज़लों को सुनते हुए ये लगा कि शायरी, धुन और गायिकी तीनों को इस तरह से पिरोया गया है कि उनका सम्मिलित प्रभाव एक समां बाँध देता है।

जब आप हमसे तो वो बेहतर हैं  सुनेंगे तो आपको लगेगा कि आप एकदम से साठ सत्तर के दशक में पहुँच गए हैं जब बेगम अख्तर, मेहदी हसन और गुलाम अली जैसे गायकों की तूती बोलती थी और ग़ज़लें  एक परम्परागत तरीके से  गायी जाती थीं। ये ग़ज़ल भी उसी माहौल में रची बसी है क्यूँकि कहानी का काल खंड भी वही है। क्या निभाया है ग़ज़ल गायिकी के उस तौर तरीके को रोंकिनी ने और वैभव ने उन्हें मौका दिया है हर मिसरे में तंज़ की शक्ल में छुपी पीड़ा को अपनी शास्त्रीय अदाकारी से उभारने का। 

ज़िंदगी में हमारा हुनर, हमारा व्यवहार कौशल अपने से दूर खड़े लोगों में भले ही खूबसूरत छवि गढ़ दे पर उसका क्या फायदा जब हम अपनी मिट्टी, अपने शहर और अपने करीबियों के मन को ही ना जीत पाएँ। ऐसे ही व्यक्तित्व के विरोधाभास को उभारा है वैभव मोदी ने अपने शब्दों में।

अभिषेक नेलवाल के संगीत निर्देशन में ग़ज़ल के मिसरों के बीच अभिनय रवांडे का बजाया हारमोनियम मन को लुभाता है। तो आइए सुनिए इस ग़जल को

हमसे तो वो बेहतर हैं जो किसी के ना हुए
इक आप हैं जिसके हैं उसी के ना हुए

परवाज़ को जिनके मिली आसमां की ये रज़ा
कुछ लोग 
हैं ऐसे जो ज़मीं के ना हुए

इक उम्र लग गयी कि कहें वो भी वाह वाह
वो हो गए कायल मगर खुशी से ना हुए

लेते हमारा नाम ये गलियाँ ये रास्ते
पर हम थे जिस शहर के वहीं के ना हुए


एल्बम की दूसरी ग़ज़ल का मिज़ाज थोड़ा नर्म और रूमानियत से भरा है। ज़ाहिर है यहाँ वाद्य यंत्रों का चुनाव भारतीय और पश्चिमी का मिश्रण है। मुखड़े के पहले गिटार की कानों में मिश्री भरती टुनटुनाहट है तो मिसरों के बीच ताली की थपथपाहट के साथ कभी बाँसुरी तो कभी तार वाद्यों की झंकार रोंकिनी का गाना है तो फिर सरगम का सुरीला तड़का तो बीच बीच में रहेगा ही।

अभिषेक की मधुर धुन जहाँ मन को सहलाती  है वहीं वैभव के मिसरे वास्तव में दिल को तसल्ली देते हुए एक उम्मीद सी जगाते हैं।  तेरे सीने पे हर इक रात की सहर हो बस वाला शेर तो कमाल सा करता हुआ निकल जाता है रोंकिनी की आवाज़ इस ग़ज़ल की जान है। क्या निभाया है उन्होंने दोनों ग़ज़लों के अलग अलग मूड को। इस बात को आप तब और महसूस करेंगे जब इसी ग़ज़ल को अभिषेक की आवाज़ में सुनेंगे।


क्या पता फिर से ये सँभल जाए
तेरे आने से दिल बहल जाए

सर्द आहों से बुझ गयी थी कभी
कुछ ऐसा कर ये शमा जल जाए

ये आरजू ये शिकस्त ये तेरे इश्क़ की बाजी
ख़ुदा करे कि तेरा कोई दाँव चल जाए

तेरे सीने पे हर इक रात की सहर हो बस
तेरी बाहों में मेरा दम यूँ ही निकल जाए

गंभीर भावनात्मक गीतों में रोंकिनी अपनी काबिलियत पहले ही साबित कर चुकी हैं पर इन ग़ज़लों में जो रंग उनकी आवाज़ ने भरा उससे उनकी बहुमुखी प्रतिभा की नयी झलक देखने को मिली।


तो बताइए कैसी लगीं आप सबको ये दोनों ग़ज़लें।

शनिवार, जुलाई 04, 2020

यूँ ही कभी हो जाता है.. पंचम के संगीत की याद दिलाता एक प्यारा नग्मा

पिछले हफ्ते  संगीतकार पंचम का जन्मदिन था। जैसा कि अक्सर होता है जन्मदिवस पर हम उस व्यक्ति विशेष की कृतियाँ याद करते हैं। उनके बनाए गीत सुनते हैं, गाते हैं, उससे जुड़ी यादें साझा करते हैं और यही कल बहुत लोगों ने किया भी। पर इन सारी पेशकश में सबसे अलग था दो कलाकारों का एक मौलिक प्रयास जो हमें हर पल में पंचम के संगीत की याद दिला रहा था।

एक साझा और बेहद प्यारी कोशिश आश्विन श्रीनिवासन और रोंकिनी गुप्ता की युगल जोड़ी की तरफ से भी हुई। दोनों ही कलाकार शास्त्रीय संगीत की अलग अलग विधाओं में पारंगत हैं। रोंकिनी की शास्त्रीय गायिकी कमाल की है वही आश्विन की उँगलियाँ बचपन से ही बाँसुरी पर थिरकती रही हैं। दोनों ही ऐसे कलाकार हैं जिनका हुनर एक विधा तक सीमित नहीं हैं। इन्होंने अपने संगीत के साथ काफी प्रयोग करने की कोशिश की है। हिन्दी फिल्मों में रोंकिनी के गाए गीत हर साल प्रशंसा बटोरते रहे हैं वहीं आश्विन ने भी संगीत निर्माण से लेकर गीत लिखने व गाने में नामी हस्तियों के साथ गठजोड़ किया है।


आश्विन श्रीनिवासन व  पंचम 
पंचम की संगीत रचना के बहुत सारे अवयव हैंं जैसे ताल वाद्यों की उनकी एक खास तरह की रिदम, गीत में अक्सर कुछ नई तरीके की आवाज़ पैदा करने की उनकी ललक, इंटरल्यूड्स का संगीत संयोजन, गीत के बीच तैरता आलाप, किरदारों की आपसी बातचीत और भी बहुत कुछ जिसे आप इस गीत को सुनते हुए महसूस कर सकेंगे। आश्विन (Ashwin Srinivasan) ने पंचम की इन्हीं विशिष्टताओं को बड़ी बारीकी से पकड़ा और ऐसा इसीलिए संभव हो सका कि वे पंचम के संगीत के अनन्य भक्त रहे हैं।

रोंकिनी गुप्ता 
रहा रोंकिनी (Ronkini Gupta) का सवाल तो अब तक वो जैसे गीत गाती रही हैं ये उससे हट के कुछ अलग कोटि का गीत था और बड़ी खूबी से उन्होंने इसे निभाया। या फिर मैं ऐसे कहूँ कि उन्होंने अपनी बेहतरीन गायिकी से गीत के सहज शब्दों को भी अनमोल बना दिया। मुखड़े से अंतरे में बदलता स्केल हो या इंटरल्यूड्स में संगीत के उनकी ला ला करती मीठी तान..या अंत की चंचल चुहल..ये सब गीत का मज़ा दोगुना कर देती है। कुल मिलाकर इस गीत को सुन कर ऐसा लगता है कि पंचम, आशा व किशोर की तिकड़ी साक्षात पुनः प्रकट हो गयी हो।
तो अब आप इस गीत का आनंद लीजिए आश्विन के लिखे इन शब्दों के साथ
यूँ ही कभी हो जाता है
ख़्वाबों में दिल खो जाता है
तुझसे भी तो हो जाता है
मुझमें भी तू खो जाता है
मुझमें धड़कता है..
यूँ भी कभी हो जाता है.... 

ऐसी कृतियाँ जो एक महान संगीतकार के संगीत के मुख्य पहलुओं को चंद मिनटों में यूँ सजा दें निश्चय ही सराहने योग्य हैं। तो आइए सुनते हैं इस गीत को इस युगल जोड़ी की आवाज़ में।



आश्विन एक मँजे हुए बाँसुरी वादक हैं। चूँकि आज की पोस्ट पंचम दा पर हैं तो क्यूँ ना उनकी बाँसुरी की माहिरी पंचम की बनाई हुई कुछ सदाबहार धुनों पर सुन ली जाए।


एक शाम मेरे नाम पर पंचम के कई सुरीले गीतों की चर्चा होती रही है। उन सब की फ़ेहरिस्त यहाँ पर

गुरुवार, जनवरी 24, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 6 : तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा Chaav Laaga

संगीतमाला की आज की कड़ी में है अनु मलिक द्वारा संगीत निर्देशित सुरीला युगल गीत चाव लागा जो इस साल इतना बजा और सराहा गया है कि आप इससे भली भांति परिचित होंगे। इसके पहले जब शरद कटारिया, अनु मलिक, वरुण ग्रोवर, पापोन की चौकड़ी दम लगा के हइसा में साथ आई थी तो मोह मोह के धागे सा यादगार गीत बना था।

मोह मोह के धागे एकल गीत था जिसे पापोन और मोनाली ठाकुर ने अलग अलग गाया था जबकि इस बार अनु मलिक ने सुई धागा के इस गीत को पापोन और रोंकिनी के युगल स्वर में गवाया। रोंकिनी की सधी हुई गायिकी तो आपने 2017 में  रफ़ू और पिछले साल तू ही अहम  में सुनी ही होगी। पापोन तो ख़ैर इस संगीतमाला में दो बार पहली बार बर्फी के गीत क्यूँ ना हम तुम और दूसरी बार मोह मोह के धागे के लिए सरताज गीत का गौरव प्राप्त कर ही चुके हैं। 


सुई धागा की कथा एक निम्म मध्यम वर्गीय परिवार की है जिसका चिराग यानि नायक कोई नौकरी करने के बजाए हुनर के बलबूते पर अपने लिए एक अलग मुकाम बनाना चाहता है। उसकी ज़िंदगी तब खुशनुमा रंग ले लेती है जब उसकी नई नवेली पत्नी पूरे जोशो खरोश से उसके सपने को अपना लेती है।

पति पत्नी के पनप रहे इस नए रिश्ते में कभी खराशें आती हैं तो कभी मुलायमियत के पल और इसी को ध्यान में रखते हुए वरुण ग्रोवर ने गीत का मुखड़ा लिखा कभी शीत लागा कभी ताप लागा तेरे साथ का है जो श्राप लागा.. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा।

गीत  में शीत और ताप.. चाव और घाव.. नींद और जाग की उनकी जुगलबंदी तो कमाल की थी। एक दूसरे को समझते बूझते ये साथी इन प्यार भरी राहों में हल्के हल्के कदम भरना चाहते हैं और इसीलिए कह उठते हैं रास्ते आस्ते चल ज़रा।

वैसे मुखड़े में "साथ का श्राप" थोड़ी ज़्यादा तीखी अभिव्यक्ति हो गयी ऐसा मुझे महसूस हुआ। इसी तरह शहर बिगाड़ने वाली पंक्तियाँ भी उतनी प्रभावी नहीं लगीं। इसीलिए मुझे गीत के दो अंतरों में दूसरा वाला अंतरा ज्यादा बेहतर लगा। वैसे क्या आपको पता है कि वरुण ने इस गीत के लिए एक तीसरा अंतरा भी रचा था। पहले अंतरे की जगह अगर वो इस्तेमाल हो जाता तो ये गीत और निखर उठता। देखिए कितना प्यारा लिखा था वरुण ने

इकटक तुझपे, मन ये टिका है
बाँध ले चाहे, खुल जाने दे
आज मिलावट, थोड़ी कर के 
ख़ुद में मुझको घुल जाने दे
तुझपे ही खेला दाँव रे, दाँव रे
तेरा चाव लागा, जैसे कोई घाव लागा

रोकिनी  व  पापोन 
गिटार की टुनटुनाहट के बीच रोंकिनी के मधुर आलाप से गीत का आगाज़ होता है और फिर गीत पापोन की मुलायम और रोंकिनी के शास्त्रीय रंग में रँगी आवाज़ों में घुलता मिलता आगे बढ़ जाता है। जब मैंने पहली बार ये गीत सुना था तो रोंकिनी जब रास्ते... आस्ते चले ज़रा गाती हैं तो किशोर कुमार का गाया एक गीत जेहन में कौंध उठा था जिसे मैं याद नहीं कर पा रहा था। बाद में मैंने जब रोंकिनी से ये प्रश्न किया तो उन्होंने बताया कि वो हिस्सा उन्हें भी मैं शायर बदनाम की याद दिलाता है। 

अनु मलिक के संगीत संयोजन में गिटार और बाँसुरी इस गीत में प्रमुखता से बजती है। पहले इंटरल्यूड में गिटार पर अंकुर मुखर्जी की धुन सुनकर मन झूम उठता है वहीं दूसरे में बाँसुरी पर नवीन कुमार की बजाई धुन कानों में मिश्री घोलती है। अचरज ना होगा गर इस गीत की लोकप्रियता इसे फिल्मफेयर एवार्ड के गलियारों तक पहुँचा दे।  

कभी शीत लागा कभी ताप लागा 
तेरे साथ का है जो श्राप लागा 
मनवा बौराया.. 
तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा 

रह जाएँ चल यहीं घर हम तुम ना लौटें 
ढूँढें कोई ना आज रे 
तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा 
तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा 
रास्ते, आस्ते चले ज़रा , रास्ते..., आस्ते चले ज़रा 
तेरा चाव लागा ....

संग में तेरे लागे नया सा 
काम पुराना लोभ पुराने 
दिन में ही आ जा शहर बिगाड़ें 
जो भी सोचे लोग पुराने 
तू नीदें तू ही जाग रे जाग रे 
तेरा चाव लागा ...

देख लिहाज़ की चारदीवारी 
फाँद ली तेरे एक इशारे 
प्रीत की चादर, छोटी मैली 
हमने उस में पैर पसारे 

काफी है तेरा साथ रे साथ रे..   




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

गुरुवार, जनवरी 17, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान #11 : तू ही अहम, तू ही वहम Tu Hi Aham

वार्षिक संगीतमाला की 21 वीं सीढ़ी पर एक कव्वाली थी तो 11वीं पायदान पर है एक भजन फिल्म सुई धागा का जिसे संगीतबद्ध किया है अनु मलिक ने, बोल हैं वरुण ग्रोवर के और आवाज़ रोंकिनी गुप्ता की।

किसी देखी हुई फिल्म का एलबम सुनते वक़्त अचानक से कोई गीत अच्छा लगता है और फिर हम सोचते हैं कि अरे ये फिल्म में कहाँ था? कई बार कुछ गीत फिल्मों में संपादन के दौरान ही हट जाते हैं या उनकी कुछ हिस्सा ही फिल्म में शूट होता है। सुई धागा के इस सुरीले भजन को तो मैं फिल्म में देख नहीं पाया पर हो सकता है मेरे ध्यान से रह गया हो या सिर्फ इसकी कुछ पंक्तियाँ इस्तेमाल हुई हों। इस गीत का प्रमोशन भी फिल्म के बाकी गीतों की तरह नहीं किया गया। इसलिए मुझे यकीन है कि आपमें से ज्यादातर लोगों के लिए ये मीठा सा भजन अनसुना होगा। 


इस गीत की चर्चा शुरु करते हैं गीतकार वरुण ग्रोवर से। तीन साल पहले अनु मलिक के साथ मिलकर उन्होंने मोह मोह के धागे लिखकर श्रोताओं को अपने मोह जाल में फाँस लिया था। उसी साल मसान में दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल से प्रेरित उनका गीत तू किसी रेल सी गुजरती है मुझे बेहद पसंद आया था। वरुण ग्रोवर का नाम मैं जब भी किसी फिल्म की क्रेडिट में देखता हूँ तो मन पहले से ही खुश हो जाता है कि चलो अब कुछ सार्थक गहरे बोलों से मुलाकात होने वाली है।

तू ही अहम के मुखड़े को ही को ही देख लीजिए। इस भजन के पीछे की सोच किसी ऐसे  इंसान की है जिसके मन में भगवान के होने के प्रति पहले कुछ शंका (वहम) थी पर उसका आभास होने से वो एक गौरव, एक शक्ति (अहम) में बदल गयी है। अब उस शक्ति से जुड़ाव हो गया है तो ये भरोसा हो चला है कि आगे का मार्ग भी वही दिखलाएगा। मुझे शब्दों के लिहाज से इस गीत का दूसरे अंतरा सबसे प्रिय है जिसमें वरुण माया मोह में पड़े इंसान की मनोवृतियों को वे खूबसूरत बिंबों से सामने रखते नज़र आते हैं।

अनु मालिक व  वरुण ग्रोवर 
कुछ साल के अज्ञातवास के बाद जबसे अनु मलिक ने दम लगा कर हइसा के संगीत से वापसी की है तबसे उनके गीतों में मेलोडी लौट आई है। पिछले साल की फिल्मों में सुई धागा के साथ साथ जे पी दत्ता की फिल्म पलटन में भी उनका काम सराहनीय था। अगर तू ही अहम की बात करूँ तो  प्रील्यूड व पहले इंटरल्यूड में  गिटार की तरंगों के बीच उभरता रोंकिनी का आलाप, बोलों के पीछे बार बार उभरती बाँसुरी मन को सुकून से भर देती है। दूसरे इंटरल्यूड में बाँसुरी की मोहक तान का तो कहना ही क्या! 

इन सब के आलावा अनु मलिक की तारीफ़ इसलिए भी करनी होगी कि उन्होंने इस शास्त्रीयता के रंग में डूबे इस गीत के लिए एक ऐसी गायिका को चुना जो इस तरह के गीत के साथ पूरी तरह न्याय कर सकती थीं। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ रोंकिनी गुप्ता की जिनके तुम्हारी सुलू के गीत रफ़ू ने पिछले साल इस गीतमाला का सरताज बनने का गौरव प्राप्त किया था।

रोंकिनी गुप्ता 
जो लोग बतौर गायिका रोंकिनी के सांगीतिक सफ़र से परिचित नहीं हैं वो उनके बारे में यहाँ पढ़ सकते हैं। तुम्हारी सुलु का गीत गाते वक़्त सहायक निर्देशक मनन ने  (जो सुई धागा में भी सहायक निर्देशन का काम कर रहे थे) रोकिनी का नाम फिल्म के निर्देशक शरत कटारिया को सुझाया। अनु मलिक चाहते थे कि उनके संगीतबद्ध गीतों को कोई संगीत सीखी हुई तैयार गायिका मिले जिसकी आवाज़ का स्वाद कुछ अलग सा हो। रोंकिनी इन मापदंडों में बिल्कुल खरी उतरीं।  शास्त्रीय गायिकी पर उनकी पकड़ तो सर्वविदित है इसलिए उनके गीतों में संगीतकार कोई ना कोई आलाप डाल ही देते हैं। नतीजा ये  कि आप इस आलाप के साथ ही गीत से बँधने लगते हैं। इस गीत में जब वो परबत तोड़ धरम का ... या मुक्ति जो ये चाहे... गाती हैं तो उनकी आवाज़ का उतार चढ़ाव देखते ही बनता है। इस साल गायिकाओं के गाए बेहतरीन एकल गीतों में इस गीत का नाम भी मन में स्वाभाविक रूप से उठता है।

तो आइए सुनते हैं ये भजन उनकी आवाज़ में। 

तू ही अहम, तू ही वहम
तू ही अहम, तू ही वहम
तुझसे जुड़ा  वास्ता
हम हैं पाखी भटके हुए, तू साँझ का रास्ता
घाट तू ही पानी तू ही प्यास है
तू ही चुप्पी तू अरदास है, तू ही अहम, तू ही वहम

हमको तू ना माने, हम मानेंगे तुझको
घोर अंधेरे में भी पहचानेंगे तुझको
परबत तोड़ धरम का हम पायेंगे तुझको
तू रंग भी बेरंग भी
तू रंग भी बेरंग भी
शंका तू ही आस्था
हम हैं पाखी भटके हुए, तू साँझ का रास्ता
घाट तू ही.. तू अरदास है, तू ही अहम, तू ही वहम

तन ये भोग का आदी, मन ये कीट पतंगा
झूठ के दीवे नाचे, झूठा बने ये मलंगा
मुक्ति जो ये चाहे, तो मारे मोह अड़ंगा
तू ही सदा से दूर था
तू ही सदा से दूर था
तू ही सदा पास था
हम हैं पाखी भटके हुए, तू साँझ का रास्ता
घाट तू ही.. तू अरदास है
तू ही अहम.... तू ही वहम


वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

सोमवार, अप्रैल 02, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 सरताज गीत : कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ Rafu

वर्ष 2017 के पच्चीस शानदार गीतों के इस तीन महीने से चल रहे सफ़र का आख़िरी पड़ाव आ चुका है और इस साल के सरताज गीत का सेहरा बँधा है तीन ऐसे नए कलाकारों के ऊपर जो वैसे तो अपनी अपनी विधा में बेहद गुणी हैं पर हिंदी फिल्मी गीतों में जिनकी भागीदारी शुरु ही हुई है। अब आप ज़रा बताइए कि क्या शांतनु घटक, रोंकिनी गुप्ता और अनूप सातम का नाम आपने पहले कभी सुना था? पर शांतनु ने गीत की धुन और बोल, रोंकिनी ने अपनी बेमिसाल गायिकी और अनूप ने गिटार पर अपनी कलाकारी का जो सम्मिलित जौहर दिखलाया है वो इस गीत को वार्षिक संगीतमाला 2017 का सरताज गीत बनाने में कामयाब रहा है।



वैसे एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं में नए प्रतिभावान कलाकार वार्षिक संगीतमाला की प्रथम पायदान पर पहले भी काबिज होते रहे हैं। 2005 में स्वानंद किरकिरे और शांतनु मोइत्रा (रात हमारी तो, परिणिता), 2008 में अमित त्रिवेदी और अमिताभ भट्टाचार्य (इक लौ, आमिर), 2011 में क्रस्ना और राज शेखर (ऍ रंगरेज़ मेरे, तनु वेड्स मनु), 2014 में जी प्रकाश कुमार और गौरव सौलंकी (पापा, Ugly) जैसे गीतकार संगीतकार की जोड़ियों ने जब सरताज गीत का खिताब अपने नाम किया था तो वो फिल्म उद्योग में बेहद नए थे। पर इनमें से अधिकतर अपना नाम फिल्म उद्योग में बना चुके हैं या उस ओर अग्रसर हैं। ये अजब संयोग हैं कि संगीतमाला के हर तीसरे साल में नए चेहरे अपनी मेहनत और अपने हुनर पे विश्वास रखते हुए कामयाबी की सीढ़ियों तक पहुँच रहे हैं।

तो इससे पहले इस गीत की बात करूँ आपको इसके पीछे के कलाकारों से मिलवाता चलूँ। अब देखिए संगीतमाला में  रनर्स अप रहे गीत के संगीतकार विशाल मिश्रा कानून की पढ़ाई करते हुए संगीत निर्देशक बन गए वहीं शान्तनु घटक तो कुछ दिन पहले तक एक बैंकर थे। सांख्यिकी के लिए नामी कोलकाता के Indian Statstical Institute से  पोस्ट ग्रेजुएट करने वाले शांतनु ने पूरी तरह संगीत में अपना समय देने के पहले लगभग  एक दशक तक  क्रेडिट कार्ड कंपनी अमेरिकन एक्सप्रेस में कार्य किया। 

नौकरी करते हुए शांतनु ने नाटकों के भी काम किया। अभिनय के साथ साथ वो गाने का भी शौक़ रखते हैं।  ये उनकी काबिलियत का ही कमाल है कि जब पहली बार किसी हिंदी फिल्म के लिए उन्होंने कलम पकड़ी तो फिल्मफेयर से लेकर म्यूचिक मिर्ची एवार्ड तक में नामांकित हो गए। तकरीबन दो साल पहले वे शास्त्रीय गायिका रोंकिनी के संपर्क में आए और मिल जुल कर पुराने गीतों के कवर वर्जन  के साथ साथ  अपनी कृतियाँ यू ट्यूब के माध्यम से लोगों तो पहुँचाते रहे। तुम्हारी सुलु के निर्देशक सुरेश त्रिवेणी की जब उन पर नज़र पड़ी तो फिल्म के एक गीत का जिम्मा शांतनु को सौंपा जिसने एक बैंकर को उभरते हुए संगीतकार की श्रेणी में ला खड़ा किया। 

रोंकिनी, शान्तनु और अनूप

शांतनु ने बेहतरीन धुन बनाई। मुखड़ा भी गजब का लिखा पर गीत को इस स्तर पर पहुँचाने का श्रेय मैं रोंकिनी गुप्ता  को देना चाहूँगा जो इस तिकड़ी की सबसे मँजी हुई कलाकार हैं। शिल्पा राव और माधवन की तरह जमशेदपुर से ताल्लुक रखने वाली रोंकिनी ने विपणन और विज्ञापन की पढ़ाई के साथ साथ शास्त्रीय संगीत में संगीत विशारद की उपाधि भी ली है । शास्त्रीय संगीत की आरंभिक शिक्षा उन्होंने ग्वालियर घराने के चंद्रकांत आप्टे जी से ली। बाद में किराना घराने के उस्ताद दिलशाद खान और पंडित समरेश चौधरी भी उनके शिक्षक रहे। 

रोंकिनी गुप्ता

ये उनकी मार्केंटिंग का ही हुनर था कि उन्होंने इंटरनेट पर दो साल पहले किसी को उपहार में एक गाना भेंट करने के विचार को व्यवसायिक ज़ामा पहनाने की कोशिश की। गीत का विषय उपहार देने वाला बताता था और उस आधार पर गीत की रचना रोंकिनी करती थीं। आजकल वे जॉज़ और शास्त्रीय संगीत के फ्यूजन पर काम कर रही हैं। अगर आप उनकी गायी शास्त्रीय बंदिश के इंटरनेट पर उपलब्ध टुकड़े सुनेंगे तो उनकी गायिकी के कायल हो जाएँगे। फिल्म आँखो देखी में भी राग बिहाग पर आधारित एक शास्त्रीय बंदिश गाई थी। 

इस गीत में नाममात्र का संगीत संयोजन है और जो गिटार गीत के साथ बहता हुआ चलता है उस पर चलने वाली उँगलियाँ अनूप सातम की हैं। अनूप गिटार बजाने के साथ शांतनु की ही तरह ही गायिकी में भी प्रवीण हैं। 

तुम्हारी सुलु एक ऐसी गृहिणी की कहानी है जो घर के चारदीवारी से बाहर निकल कामकाजी महिलाओं की तरह ही नौकरी करना चाहती है पर शैक्षणिक योग्यता का ना रहना उसे मायूस करता रहता है। दोस्तो रिश्तेदारों के तानों को सहते हुए अपने पति के सहयोग से वो एक रेडियो स्टेशन में नौकरी करने लगती है। पति, बच्चे और नौकरी में सामंजस्य बैठाती और नित नयी चुनौतियों को स्वीकार करती सुलु की दाम्पत्य जीवन की गाड़ी झटकों के साथ चलती रहती है। अपने साथी के संग जीवन के उतार चढ़ावों को सफलतापूर्वक सामना करती सुलु के मनोभावों को व्यक्त करने के लिए शांतनु को  ये गीत लिखना था और उन्होंने ये काम बड़ी सहजता से किया भी।

शांतनु ने सुखों को धूप और परेशानियों को बादलों की लड़ियों जैसे रूपकों से मुखड़े में बेहद खूबसूरती से बाँधा है। किसी भी रिश्ते की डोर में आई कमज़ोरी को दूर करने का दारोमदार पति पत्नी दोनों पर होता है। जब दोनों मिलकर रिश्तों को रफू करते हैं तो रिश्ते की गाँठ ताउम्र चलती है। पहले अंतरे में जहाँ शांतनु सुलु के घर बाहर की परेशानियों से जूझने को कुछ यूँ शब्द देते हैं तेरी बनी राहें मेरी थीं दीवारें...उन दीवारों पे ही मैने लिख ली बहारें वहीं दूसरे अंतरे में साथ रहते हुए छोटी छोटी आधी पौनी खुशियों को बँटोरने की बात करते हैं।

पर ये रोंकिनी की आवाज़ का जादू है कि आप गीत की पहली पंक्ति से ही गीत के हो कर रह जाते हैं । अनूप का गिटार रोंकिनी की आवाज़ में ऐसा घुल जाता है कि उसका अलग से अस्तित्व पता ही नहीं चलता। आशा है रोंकिनी की इस जानदार आवाज़ का इस्तेमाल बाकी संगीत निर्देशक भी करेंगे। तो आइए सुनें और गुनें साल के इस सरताज गीत को।

कैसे कैसे धागों से बुनी है ये दुनिया
कभी धूप कभी बादलों की ये लड़ियाँ
कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ

तेरी बनी राहें मेरी थीं दीवारें
तेरी बनी राहें मेरी थीं दीवारें
उन दीवारों पे ही मैने लिख ली बहारें
शाम हुई तू जो आया सो गयी थी कलियाँ
फिर शाम हुई तू जो आया सो गयी थी कलियाँ
कुछ तूने सी है मैने की है रफ़ू ये डोरियाँ...

रे मा पा नि धा पा मा पा गा मा धा पा गा मा पा गा मा रे सा नि रे
गा मा पा गा मा रे सा नि रे सा

यूँ सीते सीते मीलों की बन गयी कहानी
यूँ सीते सीते मीलों की बन गयी कहानी
कुछ तेरे हाथों से कुछ मेरी ज़ुबानी
अब जो भी है ये आधा पौना है तो रंगरलियाँ
अब जो भी है ये आधा पौना है तो रंगरलियाँ
कुछ तूने सी है मैने की है रफ़ू ये डोरियाँ



वार्षिक संगीतमाला के इस सफ़र में साथ साथ चलने के लिए आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया।

वार्षिक संगीतमाला 2017

1. कुछ तूने सी है मैंने की है रफ़ू ये डोरियाँ
2. वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे
3. ले  जाएँ जाने कहाँ हवाएँ हवाएँ
 

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