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शनिवार, मई 24, 2025

वार्षिक संगीतमाला 2024 Top 25: धीमे-धीमे चले पुरवैया

देश में युद्ध के बादल थम चुके हैं। जब हमारे पराक्रमी सैनिक और सरहदों के पास रहने वाले देशवासी युद्ध जैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हों तो फिर दिल में गीत संगीत की बात तो उठती ही नहीं, बस एक ही भाव रहता है कि जल्द से जल्द देश का अहित चाहने वालों का नाश हो और हमारी सेना अपने लक्ष्य में सफल हों। यही वज़ह थी की वार्षिक संगीतमाला पर पिछले एक महीने से मैंने बीच में ही विराम लगा दिया था।


अब जबकि युद्ध के बादलों की जगह बारिश के बादलों ने ले ली है तो इस संगीतमाला को फिर से शुरु करते हुए लौटते हैं पिछले साल के बेहतरीन गीतों की इस शृंखलाकी उन्नीसवीं पायदान के इस गीत की तरफ जिसे लिखा स्वानंद किरकिरे ने, धुन बनाई राम संपत ने और गाया श्रेया घोषाल ने। फिल्म लापता लेडीज़ तो आपमें से बहुतों ने देखी होगी और ये गीत फिल्म के सुखद अंत के समय आता है जब जया अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक नए सफ़र पर निकल पड़ती है। स्वानंद जया के मन को कुछ इन पंक्तियों में बाँधने की प्यारी कोशिश करते हैं।

धीमे-धीमे चले पुरवैया बोले, "थाम तू मेरी बैयाँ" 
संग चल मेरे, रोके क्यूँ जिया हो, 
धीमे-धीमे चले पुरवैया

रुत ये अनोखी सी आई, सजनिया
बादल की डोली में लो बैठी रे बुँदनिया
धरती से मिलने को निकली सावनिया
सागर में घुलने को चली देखो नदिया, धीमे-धीमे चले पुरवैया...

एक ऐसे अनजान गाँव से जहाँ नियति के चक्र ने उसे अचानक ला खड़ा किया था, जया अपने सपनों का मुकाम तलाशने शहर की ओर जा रही है। गाँव नदी, शहर समंदर और बादल की वो बूँद अगर जया हो तो स्वानंद का लिखा ये अंतरा कितना सार्थक हो उठता है। नई उम्मीद का संचार करता गीत का दूसरा अंतरा भी उतना ही प्रभावी है। 

नया सफ़र है, एक नया हौसला, बाँधा चिड़ियों ने नया घोंसला
नई आशा का दीपक जला, चला सपनों का नया क़ाफ़िला
कल को करके सलाम, आँचल हवाओं का थाम
देखो उड़ी एक धानी चुनरिया, हो, धीमे-धीमे चले पुरवैया...


संगीतकार राम संपत ने शांत करती गीत की धुन के साथ तार वाद्यों का न्यूनतम संयोजन रखा है। श्रेया घोषाल की आवाज़ के साथ बस आँख बंद कर इस गीत की भावनाओं को दिल में समेटिए। एक बहती धारा की कलकल ध्वनि के बगल में बैठकर  दिल में जो आनंद का अनुभव होता है कुछ वैसा ही शायद इस गीत को सुनकर आप महसूस करें।

शनिवार, अप्रैल 05, 2025

वार्षिक संगीतमाला 2024 Top 25 : अंगारों का अंबर सा लगता है मेरा सामी

वार्षिक संगीतमाला की सीढ़ियों को चढ़ते हुए आज बारी है 21वें पायदान के गीत की जिसे गाया है अपनी आवाज़ में चंचलता का रस घोलते हुए श्रेया घोषाल ने। पुष्पा 2  फिल्म के इस couple song के नाम से मशहूर इस गीत की धुन बनाई है देवी श्री प्रसाद ने



उत्तर भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए देवी श्री प्रसाद भले ही अनजान हों पर तेलुगू फिल्म उद्योग में वो जाना पहचाना नाम हैं। शायद ही आपको पता हो कि उन्हें उनके प्रशंसक प्यार से  DSP RockStar के नाम से बुलाते हैं। पच्चीस सालों के अपने लंबे कैरियर में नौ फिल्मफेयर और राष्ट्रीय  पुरस्कार से सम्मानित DSP अपनी धमाकेदार धुनों के लिए जाने जाते हैं।

पुष्पा के प्रथम संस्करण  में श्रीवल्ली और उ उ अन्टवा मावा से धूम मचाने वाले DSP पुष्पा 2 में भी अंगारों और किसिक जैसे गीतों को लेकर खासे चर्चित रहे। हाँ ये जरूर है  कि पुष्पा के प्रथम संस्करण की तुलना में  फिल्म के गीत उतना नहीं बजे ।

बहरहाल DSP ने गीतकार के रूप में एक बार फिर अपने जोड़ीदार रक़ीब आलम को लिया। रक़ीब उनकी पहली फिल्म देवी में भी उनके साथ रहे थे। पुष्पा के गीत लिखने के बाद निर्देशक सुकुमार उनसे इतने प्रभावित हुए कि पुष्पा 2 के भी सारे गीत उनकी ही झोली में गए। रक़ीब बहुभाषी गीतकार हैं। दक्षिण भारतीय भाषाओं में लिखने के आलावा वे स्लमडॉग मिलयनियर और गैंगस्टर जैसी फिल्मों के गीत लिख चुके हैं। 

अंगारों का अम्बर सा..एक ऐसा गीत है जिसमें नायिका बाहर से कठोर छवि रखने वाले पति के अन्दर से मुलायम स्वभाव का बखान कर रही है। बड़ी ही सहज भाषा  में एक घरेलू  स्त्री अपने पति की जिन बातों पर नाज़ कर रही है वो कहने को तो मामूली हैं  पर ऐसे ही पल रोज़ की आपाधापी में  पति पत्नी के आपसी प्रेम को प्रगाढ़ करते रहते हैं अब चाहे वो कुर्ता ढूंढ  कर देने की बात हो या गोद  में सर रख कर सोने  कीआंतरिक और ब्राह्य  व्यक्तित्व में.अंतर स्पष्ट  करने के लिए गीतकार द्वारा  कुछ नए शब्दों का इस्तेमाल करना खास तौर पर सोहता है  जब वो लिखते हैं 

आग देखी ताब (चमक)  देखी इसकी आँखों में सबने 
आब (पानी ) देखा ख्वाब देखा इसकी आंखों में हमने 

अगर DSP  के संगीत की बात करूँ तो सबसे पहले इस गीत को सुनते हुए आपका ध्यान ताल वाद्यों  पर जायेगा जिसकी थाप पर नायक नायिका  मस्ती में झूमते हैं. मुखड़े के साथ पीछे बजते घुँघरू, अंतरों के बीच बजती शहनाई और दिलरुबा के छोटे मगर प्यारे  टुकड़े संगीत में जान डालते हैं गीत में शहनाई बजायी है बालेश ने और दिलरुबा पर उँगलियाँ हैं सरोजा जी की


पत्थर है वो, मुझे रोक टोक कहते हैं लोग 
पर मोम सा है मेरा जानू 
नश्तर है वो यही दूर दूर गूंजे फितूर 
पर बादशाह है मेरा जानू 

हो कड़वी है बोली, दिल है रंगोली 
इसमें पत्थर क्यों लोग देखते हैं 
मुझको तो दिखता है इसने कोई सनम 
अंगारों का अंबर सा लगता है मेरा सामी 
मेरी राहों में फूलों का रास्ता है मेरा सामी 

आग देखी ताब देखी इसकी आँखों में सबने 
आब देखा ख्वाब देखा इसकी आंखों में हमने 
इसके मूँछों में बला के देखी है शान सबने 
पर इन्हीं मूँछों के पीछे देखी मुस्कान हमने 


शेरों की अगर रफ़्तार हो इसकी 
रहती है उस पे सबकी नजर 
सो जाए जब सर गोद में रखकर 
इसकी थकन तो श्री वल्ली को हो खबर 
अंगारों का अंबर सा लगता है मेरा सामी मेरी राहों में फूलों का रास्ता है मेरा सामी हो 

मँहगे मँहगे बाँटे तोहफे ये है इसकी नवाबी 
मुझसे डर डर के ये मांगे एक झप्पी गुलाबी 
मसला कितना भी हो मुश्किल, चुटकियों में कर ले हल 
कुर्ता इसका ना मिले तो मांगे मुझसे ये पागल 
घर से अलग बाहर की दुनिया झुकती रहे इसके आगे 
पर जब जब घर से निकले माथे पे तिलक मुझसे आके मांगे 
अंगारों का अंबर सा लगता है मेरा सामी ऐसा घरवाला मिल जाए तो घर वाले महारानी

गीत और संगीत  अपनी जगह पर अगर इस गीत को श्रेया की चुलबुली आवाज का साथ नहीं मिला होता तो ये गीत  इस मुकाम तक पहुंच नहीं पाता  दरअसल हर एक मँजा हुआ गायक अभिनय कला में पारंगत होता है पर फर्क बस इतना है की उसे ये अभिनय परदे के पीछे रहकर अपनी आवाज़  के जरिये बाहर लाना पड़ता है। 



गीत और संगीत  अपनी जगह पर अगर इस गीत को श्रेया की चुलबुली आवाज का साथ नहीं मिला होता तो ये गीत  इस मुकाम तक पहुंच नहीं पाता  दरअसल हर एक मँजा हुआ गायक अभिनय कला में पारंगत होता है पर फर्क बस इतना है की उसे ये अभिनय परदे के पीछे रहकर अपनी आवाज़  के जरिये बाहर लाना पड़ता है। अब इसी गीत में "सामे" बोलते समय श्रेया के लहजे की मस्ती  और "नवाबी"  बोलते समय आवाज़ की मदहोशी  सुनते  ही बनती है कहीं कहीं ऊंचे सुरों में अपनी रेंज से भी ऊपर जा कर गाने की कोशिश भी  श्रेया ने इस गीत में की है 

तो आइये सुनें ये झूमता गुदगुदाता गीत 

शनिवार, मई 25, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : मुश्किलें हल हैं तुम्हीं से या तुम्हीं हो मुश्किलें... तुम क्या मिले

वार्षिक संगीतमाला में 2023 के पच्चीस बेहतरीन गीतों की शृंखला अब अपने अंतिम चरण में आ पहुंची है। आज जिस गीत के बारे में मैं आपसे चर्चा करने जा रहा हूं उसकी रूपरेखा एक विशुद्ध मुंबईया फिल्मी गीत सरीखी है। यहां हसीन वादियां हैं, खूबसूरत परिधानों में परी सी दिखती नायिका है और साथ में एक छैल छबीला नायक जो हवा के झोंकों के बीच बहती सुरीली धुन और मन को छूते शब्दों में अपने प्रेम का इज़हार कर रहे हैं। हालांकि वास्तव में नायक वहां है नहीं पर नायिका उसकी उपस्थिति महसूस कर रही है। यथार्थ से परे होकर भी भारतीय दर्शक गीतों में इस larger than life image को दिल से पसंद करते हैं क्यूंकि ऐसे गीतों की परंपरा हिन्दी सिनेमा में शुरू से रही है या यूं कह लें कि ये बॉलीवुड की विशिष्टता है जिसे हम सबने अपनी थाती बनाकर अपने दिल में बसा लिया है। 

ये गीत है फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी से। पिछले साल के अंत में आई ये फिल्म हिट तो हुई ही थी, इसके गाने भी खूब पसंद किए गए थे। वे कमलेया और वाट झुमका से तो आप परिचित होंगे ही। आज के गीत, तुम क्या मिले जो इस फिल्म का मेरा सबसे पसंदीदा गीत है, को मैंने पिछले साल खूब सुना था और अब तक सुन रहा हूं। मुझे यकीन है कि अगर आपने ये गीत अब तक नहीं सुना तो इसे सुन कर आप अवश्य इसकी मधुरता के कायल हो जाएंगे।

अक्सर गीतों के मुखड़ों के पहले कई संगीतकार पियानो का बेहद प्यार इस्तेमाल करते हैं। तुम क्या मिले की शुरुआत भी इसी वाद्य यंत्र से होती है। जब जब इस गीत को सुनना शुरु करता हूँ पियानो की ये धुन मुझे अलग ही दुनिया में ले जाती है। वो जो प्रेम की मीठी सी कसक होती है न वही कुछ है हिमांशु पारिख के बजाए मन को तरंगित करते इस टुकड़े में । मन इस स्वरलहरी में हिलोरे ले ही रहा होता है कि अमिताभ भट्टाचार्य के शब्द समय के उस छोर पे मुझे ले जाते हैं जब ऐसी ही भावनाएँ दिल में घर बनाया करती थीं।


भला किसको अपनी ज़िंदगी में किसी ऐसे शख़्स से मिलने का इंतज़ार नहीं होता जो उसकी बेरंगी शामों को रंगीन बना दे। फीके लम्हों में नमकीनियाँ भर दे। और जब दिल की ये मुराद पूरी हो जाती है तो यही चाहत बेचैनी और मुसीबत का सबब भी बन जाती है और इसीलिए अमिताभ ने गीत के मुखड़े में लिखते हैं

बेरंगे थे दिन, बेरंगी शामें
आई हैं तुम से रंगीनियाँ
फीके थे लम्हे जीने में सारे
आई हैं तुम से नमकीनियाँ

बे-इरादा रास्तों की बन गए हो मंज़िलें
मुश्किलें हल हैं तुम्हीं से या तुम्हीं हो मुश्किलें?

पियानो की मिठास अब भी इन शब्दों के पीछे बरक़रार रहती है। अरिजीत के मोहक स्वर में तुम क्या मिले की पंच लाइन आते आते ढोलक, तबले के साथ साथ तार वाद्य और ट्रम्पेट अपनी संगत से गीत का मूड खुशनुमा कर देते हैं और फिर फ़िज़ा में तैर जाती है श्रेया की दिलकश आवाज़। अंतरों के बीच श्रेया का आलाप रस की फुहार जैसा प्रतीत होता है। प्रीतम मेलोडी के बादशाह है। श्रोताओं के कानों में कब कैसा रस घोलना है वो बखूबी जानते हैं। अरिजीत, श्रेया और अमिताभ उनके संगीत संयोजन को गायिकी और बोल से ऐसे उभारते हैं कि मन रूमानी हो ही जाता है। गीत का अंत तरार वाद्यों के साथ बजते ट्रम्पेट के उत्कर्ष से होता है।

तुम क्या मिले, तुम क्या मिले
हम ना रहे हम, तुम क्या मिले
जैसे मेरे दिल में खिले
फागुन के मौसम, तुम क्या मिले
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले

कोरे काग़ज़ों की ही तरह हैं इश्क़ बिना जवानियाँ
दर्ज हुई हैं शायरी में, जिनकी हैं प्रेम कहानियाँ
हम ज़माने की निगाहों में कभी गुमनाम थे
अपने चर्चे कर रही हैं अब शहर की महफ़िलें
तुम क्या मिले,....

हम थे रोज़मर्रा के, एक तरह के कितने सवालों में उलझे
उनके जवाबों के जैसे मिले
झरने ठंडे पानी के हों रवानी में, ऊँचे पहाड़ों से बह के
ठहरे तालाबों से जैसे मिले
तुम क्या मिले....

गीत के बारे में इतना कुछ कहने के बाद इसके फिल्मांकन की बात ना करूँ तो कुछ चीजें अधूरी रह जाएँगी। करण जौहर ने जब इस गीत का फिल्मांकन किया तो उनके मन में यश चोपड़ा की फिल्मों के गीत उमड़ घुमड़ रहे थे। 

इस गीत में गुलमर्ग, पहलगाम और श्रीनगर के शूट किए दृश्य इतने शानदार हैं कि उन्हें देख मन बर्फ की वादियों में तुरंत लोट पोट करने का करता है। अमिताभ एक जगह लिखते हैं झरने ठंडे पानी के हों रवानी में, ऊँचे पहाड़ों से बह के ..ठहरे तालाबों से जैसे मिले...तुम क्या मिले.... और कैमरा पहाड़ से गिरती बलखाती नदी का एरियल शॉट ले रहा होता है। 

प्राकृति खूबसूरती के साथ साथ आलिया बर्फ की सफेद चादर के परिदृश्य में अपनी रंग बिरंगी शिफॉन की साड़ियों से दर्शकों का मन मोह जाती हैं। इस गीत के बाद उन साड़ियों का ऐसा क्रेज हुआ कि वे कुल्फी साड़ियों के नाम से बाजार में बिकने भी लगीं। आलिया के व्यावसायिक कौशल की तारीफ़ करनी होगी कि प्रेगनेंसी के चार महीने बाद ही पूरी तरह फिट हो कर इस गीत के लिए कश्मीर के ठंडे मौसम में अपने आप को तैयार किया।

आइए देखें ये पूरा गीत जो है रॉकी और रानी की प्रेम कहानी का।




वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा

    गुरुवार, अप्रैल 18, 2024

    वार्षिक संगीतमाला 2023 : बोलो भी, बोलो ना

    वार्षिक संगीतमाला के अब अंतिम चरण में प्रवेश करते हुए ऊपर की इस पायदान पर मधुर स्वरलहरी गूंज रही है श्रेया घोषाल की। ये नग्मा है फिल्म 12th Fail का जिसने पिछले साल खासी तारीफ़ बटोरी थी।निर्माता निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने इस फिल्म के गीत संगीत की जिम्मेदारी दी थी शांतनु मोइत्रा और स्वानंद किरकिरे की जोड़ी को। स्वानंद के बारे में तो पहले भी आपको बता ही चुका हूँ आज थोड़ी बातें शांतनु की।

    12th फेल के मुख्य किरदार की तरह ही शांतनु का आरंभिक जीवन मध्यमवर्गीय परिवार में बीता जो संगीत को शौक़ की तरह लेने का हिमायती तो था पर पढ़ाई लिखाई के साथ। शांतनु के पिता अपनी नौकरी के साथ साथ सरोद बजाने में भी माहिर थे। पिता के संगीत से इस जुड़ाव ने शांतनु को भी इस विधा को अपनाने के लिए प्रेरित किया। शांतनु ने उस ज़माने में रेडियो पर तरह तरह के कार्यक्रमों को सुनकर अपनी सांगीतिक समझ को पुख्ता किया और इसीलिए परिणिता जैसी पीरियड फिल्म से लेकर Three Idiots जैसी युवा चरित्रों से जुड़ी फिल्मों में बेहतरीन संगीत रचने  में सफल साबित हुए।


    हजारों ख्वाहिशें ऐसी, परिणिता, Three Idiots, PK, लगे रहो मुन्ना भाई, खोया खोया चाँद जैसी तमाम फिल्मों में कमाल का गीत संगीत दिया है इस जोड़ी ने। 

    शांतनु ने फिल्म की पटकथा पढ़ी। मनोज और श्रद्धा के किरदार के बीच पनप रहे अव्यक्त प्रेम के लिए जब उन्होंने धुन बनानी शुरू की तो उनके मन में जो शब्द गूँजे, वो थे.... बोलो भी बोलो ना...। फिर वे स्वानंद के पास गए और कहा तुम इस पंक्ति और धुन के इर्द गिर्द गीत लिख दो। स्वानंद का पहला जवाब था मुझसे ना हो पाएगा।

    शांतनु का कहना है कि स्वानंद के साथ पिछले दो दशकों के साथ ने उन्हें सिखा दिया है कि वे डेडलाइन के दबाव में काम करना पसंद नहीं करते। उनको धुन दे दो, खुला छोड़ दो तो ख़ुद मिनटों में गीत लेकर तैयार हो जाते हैं। जैसी उम्मीद थी स्वानंद गीत ले के आए और शांतनु ने ये गीत श्रेया घोषाल और शान की आवाज़ में रिकार्ड कर लिया।

    बेहद मधुर धुन बनाई हैं शांतनु ने इस गीत के लिए। गिटार की प्यारी टुनटुनाहट से गीत शुरु होता है और फिर श्रेया की आवाज़ में गीत का सुरीला मुखड़ा सुनकर मन खुश हो जाता है। पहले अंतरे के बाद शान गीत में आते जरूर हैं पर बेहद कम समय के लिए। स्वानंद गीत के बोलों में प्रेम की अंतरध्वनि को प्राकृतिक बिबों के सहारे बखूबी ढूँढते हैं। गीत में बाँसुरी बजाई है आश्विन श्रीनिवासन और गिटार पर हैं रिकराज नाथ।

    ये पतंगें अम्बर से कहती हैं क्या, सुन लो
    ये हवाएँ कहती क्या बादल से, हाँ, सुन लो, हाँ
    क्या कहें दिल से धड़कनें पागल
    सुन लो क्या बोले साँसों की हलचल

    बाँसुरी होंठों से जो कहे, तुम लबों से बोलो ना
    तितलियाँ जो फूलों से कहें, तुम नज़र से बोलो ना
    हौले से बोलो ना, चुपके से बोलो ना
    बोलो ना, हाँ, बोलो ना, बोलो भी, बोलो ना


    सुन लो क्या बोलें बूँदें सावन से
    सुन लो क्या बोलें बूँदें सावन से
    क्या कहें आँसू भीगे काजल से
    बोलो ना, हाँ, बोलो ना, बोलो भी, बोलो ना


    तो आइए सबसे पहले सुनते हैं ये गीत श्रेया और शान की आवाज़ में

       

    गाना तो श्रेया और शान की आवाज़ में रिकार्ड हो चुका था पर पर विधु विनोद चोपड़ा के मन में कुछ और ही चल रहा था। फिल्म में वो ये गीत किरदारों से लोकेशन पर गवाना चाहते थे ताकि वो दृश्य ज्यादा से ज्यादा स्वाभाविक लग सके। इसीलिए नायिका का चुनाव करते समय एक पात्रता ये रखी गयी कि उसे अभिनय के आलावा गायिकी भी आनी चाहिए। मेधा शंकर को चुनने के पीछे एक कारण ये भी रहा कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली हुई थी। 

    फिल्म में जब ये गाना आता है तो विधु विनोद चोपड़ा ने मेधा की आवाज़ शूट के साथ ही रिकार्ड की थी। नतीजा ये हुआ कि इस गीत को गवाते हुए नायिका के मन का असमंजस और भावों की कोमलता को चोपड़ा स्वाभाविक रूप में दिखा सके। 

    और ये है इस गीत का फिल्म वर्सन जिसमें आवाज़ है मेधा की

     
    वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
    1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
    2. तुम क्या मिले
    3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
    4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
    5. आ जा रे आ बरखा रे
    6. बोलो भी बोलो ना
    7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
    8. नौका डूबी रे
    9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
    10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
    11. वे कमलेया
    12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
    13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
    14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
    15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
    16. बाबूजी भोले भाले
    17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
    18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
    19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
    20. ओ माही ओ माही
    21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
    22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
    23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
    24. दिल झूम झूम जाए
    25. कि रब्बा जाणदा

      गुरुवार, फ़रवरी 15, 2024

      वार्षिक संगीतमाला 2023 : नौका डूबी रे

      वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल के बेहतरीन गीतों के इस सिलसिले में आज का जो गीत है उसका नाम है नौका डूबी। ऐसे तो नौका डूबी रवीन्द्रनाथ टैगोर का एक मशहूर उपन्यास भी है जिसकी कहानी पर कई बार हिंदी और बंगाली में फिल्में बनी हैं पर आज इसी नाम के जिस गीत की चर्चा मैं करने जा रहा हूँ उसका टैगोर के उपन्यास से बस इतना ही लेना देना है कि वहाँ भी एक नौका डूबती है और कहानी में उथल पुथल मचा देती है जबकि इस गीत में रिश्तों की नैया डूबती उतरा रही है। 

      ये गीत है पिछले साल आई फिल्म Lost का और इसे लिखा है मेरे प्रिय गीतकार स्वानंद किरकिरे ने, धुन बनाई है उनके पुराने जोड़ीदार शांतनु मोइत्रा ने। चूंकि ये फिल्म एक ऐसे OTT प्लेटफार्म पर आई जो उतना लोकप्रिय नहीं है इसी वज़ह से आप में से अधिकांश ने शायद ये गीत न सुना हो। पर इस गीत के साथ साथ किसी गुमशुदा इंसान की खोज करती एक महिला पत्रकार की कहानी भी बेहद सराही गई थी।


      एक ज़माना था जब मदनमोहन जैसे कई संगीतकार लता जी की आवाज़ और क्षमतको ध्यान में रखकर गीत की धुनें बनाते थे और आज वही रुतबा श्रेया घोषाल ने अपने लिए अर्जित किया है। आज की तारीख़ में उनकी कोशिश यही रहती है कि वे ऐसे गाने लें जिसमें उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिले।

      किशोरावस्था में देवदास से अपना फिल्म संगीत का सफ़र शुरू करने वाली श्रेया को आज फिल्म जगत में बीस से ज्यादा साल हो चुके हैं पर आज भी आवाज़  की उस मिश्री सी खनक के साथ साथ उनमें नया कुछ करने की वैसी ही ललक है जैसी मुझे सोनू निगम और अरिजीत में दिखाई देती है। 

      कमाल गाया है उन्होंने ये गीत। ऊँचे से एकदम नीचे सुरों का उतार चढ़ाव वे इतनी सहजता से लाँघती है कि सुन के आनंद आ जाता है। शांतनु का शांत संगीत तार वाद्यों, हारमोनियम और बाँसुरी की मदद से गीत के साथ बहता चलता है।

      शहर समंदर ये दिल का शहर समंदर
      दो कश्तियाँ थी तैरती, यहाँ बनके हमसफ़र 
      ओ कितना हसीं दिखता था, वो इश्क़ का मंज़र
      तभी वक्त की एक आँधी उठी आया बवंडर

      खोया मेरा प्यार, खोया ख़्वाब खोया, नौका डूबी रे
      तेरा मेरा साथ छूटा, फिर बने हम अजनबी रे
      खोया मेरा चाँद खोया, चाँदनी अम्बर से टूटी रे
      तेरा मेरा साथ छूटा, फिर बने हम अजनबी रे

      शहर समंदर ये दिल का, शहर समंदर
      दो कश्तियाँ थी तैरती, यहाँ हो के बेखबर
      तू रात में ही उलझा था मैं बन गई सहर
      तू साँसें माँगता था और मैं पी गयी ज़हर 

      हम दोनों दो किनारे, पास नहीं हैं
      कैसे कह दें, हम जुदा हैं, हम दूर नहीं हैं
      परछाइयाँ बन दूर रह के साथ चलेंगे
      कभी आना तुम ख़्यालों में, हम बातें  करेंगे

      खोया मेरा प्यार...हम अजनबी रे
      खोया मेरा चाँद खोया, हम अजनबी रे
      अजनबी रे... अजनबी रे.

      अंबर से चांदनी के टूटने का बिंब तो प्रभावी लगता ही है पर अगले अंतरे में स्वानंद की लेखनी दिल में टीस सी पैदा करती है जब वो लिखते हैं तू रात में ही उलझा था मैं बन गई सहर..तू साँसें माँगता था और मैं पी गयी ज़हर

      ZEE5 पर प्रदर्शित फिल्म Lost के इस गीत को बेहद खूबसूरती से  फिल्माया है यामी गौतम और नील भूपालम पर


      गीत के आडियो वर्सन में स्वानंद का लिखा एक और अंतरा भी है और हां उन्होंने ख़ुद भी इस गीत को गाया है एल्बम में।

      शहर समंदर ये दिल का, शहर समंदर
      दो कश्तियाँ थी तैरती, यहाँ हो के बेखबर
      तू रात में ही उलझा था मैं बन गई सहर
      तू साँसें माँगता था और मैं पी गयी ज़हर 


      वार्षिक संगीतमाला का ये गीत फिलहाल प्रथम दस के आप पास मँडरा रहा है। आशा है आप लोगों को भी ये उतना ही पसंद आएगा।

      वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
      1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
      2. तुम क्या मिले
      3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
      4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
      5. आ जा रे आ बरखा रे
      6. बोलो भी बोलो ना
      7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
      8. नौका डूबी रे
      9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
      10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
      11. वे कमलेया
      12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
      13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
      14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
      15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
      16. बाबूजी भोले भाले
      17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
      18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
      19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
      20. ओ माही ओ माही
      21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
      22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
      23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
      24. दिल झूम झूम जाए
      25. कि रब्बा जाणदा

        गुरुवार, मार्च 24, 2022

        वार्षिक संगीतमाला Top Songs of 2021 : तेरे रंग रंगा मन महकेगा तन दहकेगा Tere Rang

        वार्षिक संगीतमाला के आखिरी मोड़ तक पहुँचने में बस दो गीतों का सफ़र तय करना रह गया है। अब आज के गीत के बारे में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि जिन्हें भी भारतीय शास्त्रीय संगीत से थोड़ा भी प्रेम होगा उन्हें संगीतमाला में शामिल इस अनूठे गीत के मोहपाश में बँधने में ज़रा भी देर नहीं लगेगी। ये गीत है ए आर रहमान के संगीत निर्देशन में बनी फिल्म अतरंगी रे का। मुझे पूरा यकीन है कि ये गीत आपमें से बहुतों ने नहीं सुना होगा पर गुणवत्ता की दृष्टि से मुझे तो ये फिल्म अंतरंगी रे ही नहीं बल्कि पिछले साल के सर्वश्रेष्ठ गीतों में एक लगा।


        यूँ तो पूरी फिल्म में रहमान साहब का संगीत सराहने योग्य है पर इस गीत को जिस तरह से उन्होंने विकसित किया है तमाम उतार चढ़ावों के साथ, वो ढेर सी तारीफ़ के काबिल है। इतनी बढ़िया धुन को अगर अच्छे बोल नहीं मिलते तो सोने पे सुहागा होते होते रह जाता। लेकिर इरशाद कामिल ने प्रेम के रंगों में रँगे इस अर्ध शास्त्रीय गीत को बड़े प्यारे बोलों से सजाया है। गीत में बात है वैसे प्रेम की जैसा राधा से कृष्ण ने किया हो। गीत का आग़ाज़ द्रुत गति के बोलों से  इरशाद कामिल कुछ यूँ करते हैं

        तक तड़क भड़क, दिल धड़क धड़क गया, अटक अटक ना माना
        लट गयी रे उलझ गयी, कैसे कोई हट गया, मन से लिपट अनजाना
        वो नील अंग सा रूप रंग, लिए सघन समाधि प्रेम भंग
        चढ़े अंग अंग फिर मन मृदंग, और तन पतंग, मैं संग संग..और कान्हा

        गीत को गाया है कर्नाटक संगीत के सिद्धस्त गायक हरिचरण शेषाद्री ने नये ज़माने की स्वर कोकिला श्रेया घोषाल के साथ। चेन्नई के एक सांगीतिक पृष्ठभूमि से आने वाले हरिचरण दक्षिण भारतीय फिल्मों के लिए नया नाम नहीं हैं पर हिंदी फिल्मों में संभवतः ये उनका पहला गीत है। 

        हरिचरण शेषाद्री श्रेया घोषाल के साथ

        रहमान साहब ने हिंदी फिल्मों में ना जाने कितने हुनरमंद कलाकारों को मौका देकर उनके कैरियर को उभारा है। साधना सरगम, नरेश अय्यर, बेनी दयाल, चित्रा, श्रीनिवास, विजय प्रकाश, अभय जोधपुरकार, चिन्मयी श्रीपदा, शाशा तिरुपति... ये फेरहिस्त दिनोंदिन लंबी होती ही जाती है। इसीलिए सारे नवोदित गायकों का एक सपना होता है कि वो रहमान के संगीत निर्देशन में कभी गा सकें। हरिचरण इसी जमात के एक और सदस्य बन गए हैं।

        हरिचरण भी रहमान के कन्सर्ट में बराबर शिरकत करते रहे हैं। जिस आसानी से इस बहते हुए गीत को उन्होंने श्रेया घोषाल के साथ निभाया है वो मन को सहज ही आनंद से भर देता है।

        मुरली की ये धुन सुन राधिके, मुरली की ये धुन सुन राधिके, मुरली की ये धुन सुन राधिके

        धुन साँस साँस में बुन के, धुन सांस सांस में बुन के
        कर दे प्रेम का, प्रीत का, , मोह का शगुन

        मुरली की ये धुन सुन राधिके...

        हो आना जो आके कभी, फिर जाना जाना नहीं
        जाना हो तूने अगर, तो आना आना नहीं
        तेरे रंग रंगा, तेरे रंग रंगा
        मन महकेगा तन दहकेगा

        तुमसे तुमको पाना, तन मन तुम..तन मन तुम
        तन से मन को जाना..उलझन गुम...उलझन गुम
        तुमसे तुमको पाना तन मन तुम
        जिया रे नैना, चुपके चुपके हारे
        मन गुमसुम, मन गुमसुम

        डोरी टूटे ना ना ना, बांधी नैनो ने जो संग तेरे
        देखे मैंने तो, सब रंग तेरे सब रंग तेरे
        फीके ना हो छूटे ना ये रंग

        तेरे रंग रंगा.. शगुन

        इस अर्ध शास्त्रीय गीत में क्या नहीं है तानें, आलाप, कोरस, मन को सहलाते शब्द, कमाल का गायन, ताल वाद्यों की थाप के बीच चलते गीत के अंत में बाँसुरी की स्वरलहरी और इन सब के ऊपर रहमान की इठलाती धुन जो तेरे रंग रंगा, तेरे रंग रंगा मन महकेगा तन दहकेगा.. तक आते आते दिल को प्रेम रस से सराबोर कर डालती है। 


        निर्देशक आनंद राय रहमान के इस जादुई संगीत से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस म्यूजिकल के अंत में A film by A R Rahman का कैप्शन दे डाला। आनंद तो यहाँ तक कहते हैं कि मेरा बस चले तो मैं रहमान के सारे गानों को सिर्फ अपनी फिल्मों के लिए रख दूँ। वहीं श्रेया कहती हैं कि ऊपरवाला रहमान के हाथों संगीत का सृजन करता है। स्वयम् ए आर रहमान इस फिल्म की संगीत की सफलता का श्रेय इसकी पटकथा को देते हुए कहते हैं कि 

        जिस फिल्म की कथा देश के एक कोने से दूसरे कोने तक जा पहुँचती है तो बदलती जगहों और किरदारों के अनुसार संगीत को भी अलग अलग करवट लेनी पड़ती है। मैं शुक्रगुजार हूँ ऐसी कहानियों को जो संगीत में कुछ नया करने का अवसर हमें दे पाती हैं।

        वार्षिक संगीतमाला 2021 में अब तक

        शुक्रवार, फ़रवरी 04, 2022

        वार्षिक संगीतमाला Top Songs 2021 रत्ती रत्ती रेज़ा रेज़ा, जो है तेरा ले जाना Ratti Ratti

        अतरंगी रे की ही तरह मीनाक्षी सुंदरेश्वर बतौर एलबम मुझे काफी पसंद आया और इसीलिए इस फिल्म के भी कई गीत इस वार्षिक संगीतमाला में शामिल हैं। आज इसके जिस गीत की बात मैं करने जा रहा हूँ उसे आप Long Distance Relationship पर बनी इस फिल्म का आज की शब्दावली में ब्रेक अप सॉन्ग कह सकते हैं। ये गीत है रत्ती रत्ती रेज़ा रेज़ा, जो है तेरा ले जाना.....।  

        मन केसर केसर का जिक्र करते हुए मैंने आपको बताया था कि इस फिल्म के संगीतकार जस्टिक प्रभाकरन तमिल हैं और हिंदी फिल्मों में संगीत देने का ये उनका पहला मौका था। आप ही सोचिए कहाँ  हिंदी पट्टी से आने वाले खालिस बिहारी राजशेखर और कहाँ जस्टिन (जिन्हें तमिल और अंग्रेजी से आगे हिंदी का क, ख, ग भी नहीं पता) ने आपस में मिलकर इतना बेहतरीन गीत संगीत रच डाला। 


        मैं इनके बीच की कड़ी ढूँढ ही रहा था कि राजशेखर का एक साक्षात्कार सुना तो पता चला कि वो सेतु थे फिल्म के युवा निर्देशक विवेक सोनी। फिल्म के गीत संगीत पर तो लॉकडाउन में काम चलता रहा पर स्थिति सुधरने के बाद ये तिकड़ी साथ साथ ही सिटिंग में बैठती रही। राजशेखर बताते हैं कि उन्हें बड़ी दिक्कत होती थी जस्टिन को  गीतों के भाव समझाने में। 

        राजशेखर का हाथ अंग्रेजी में तंग था और जस्टिन अंग्रेजी के शब्दों का उच्चारण भी तमिल लहजे में करते थे। जब राजशेखर ने रत्ती रत्ती रेज़ा रेज़ा मुखड़ा रचा तो उसे सुनकर जस्टिन का मासूम सा सवाल था What ..meaning ? अब राजशेखर अगर शाब्दिक अनुवाद bits & pieces बताएँ तो शब्दों के पीछे की भावनाएँ गायब हो जाती थीं तो वे ऐसे मौकों पर चुप रह जाते। ऐसे में विवेक दुभाषिए का रोल अदा करते थे।

        जस्टिन प्रभाकरन , विवेक सोनी और राजशेखर 

        फिल्म के गीतों पर काम करते करते जस्टिन को राजशेखर ने हिंदी के तीन चार शब्द तो रटवा ही दिए। एक मज़ेदार बात उन्होने ये सिखाई कि जस्टिन If someone asks you about lyrics you have to just say बहुत अच्छा 😀😀।

        फिल्म की कथा शादी के बाद अलग अलग रह रहे नवयुगल के जीवन से जुड़ी है। वो कहते हैं ना कि जिनसे प्यार होता है उनसे उतनी जल्दी नाराज़गी भी हो जाती है। पास रहें तो थोड़ी नोंक झोंक के बाद मामला सलट जाता है पर दूरियाँ कभी कभी कई ऐसी गलतफहमियों  को जन्म देती हैं जो नए नवेले रिश्ते की नर्म गाँठ को तार तार करने में ज्यादा वक़्त नहीं लगाती। 

        एक बार मन टूट जाए फिर उस शख़्स से लड़ने की भी इच्छा नहीं होती। इसलिए राजशेखर लिखते हैं

        जाना अगर है तो जा, मुझे कुछ नहीं कहना
        ना यकीं हो रहा, संग हम दोनो का था 
        बस इतना ही क्या
        क्या ही कहें, क्या ही लड़ें
        जब प्यार ही ना रहा

        गीत का मुखड़ा तो क्या खूब लिखा है राजशेखर ने 

        रत्ती रत्ती रेज़ा रेज़ा, जो है तेरा ले जाना
        यादें बातें दिन और रातें, सब ले जा तू

        और अंतरे में बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले की तर्ज पर  जीवन में  move on करने की बात करते हैं।

        क्या करें कि जल्दी-जल्दी, तुझे भूल जाएँ अब
        साथ वाली सारी शामें, याद फिर ना आए अब 
        छोटी-छोटी यादों में हम अटके रहें क्यूँ 
        पीछे जाती सड़कों पे भटके रहें क्यूँ 
        जो धागा-धागा उधड़ा है -क्या ही है बचा 
        जो रेशा रेशा पकड़ा है - कर दे ना रिहा

        रत्ती रत्ती..सब ले जा तू

        जस्टिन गीत की शुरुआत एक उदास करती धुन से करते हैं। गीत में मुख्यतः बाँसुरी और गिटार का प्रयोग हुआ है। इस युगल गीत को गाया है अभय जोधपुरकर और श्रेया घोषाल की जोड़ी ने। श्रेया तो संगीतप्रेमियों के लिए किसी परिचय का मोहताज नहीं। जहाँ तक अभय का सवाल है वे  शाहरुख की फिल्म ज़ीरो के गीत मेरे नाम तू में अपनी गायिकी के लिए काफी सराहे गए थे। उस वक्त मैंने यहाँ उनके बारे में लिखा भी था। 

        अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत किसी  क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी। 

        सोमवार, जनवरी 24, 2022

        वार्षिक संगीतमाला 2021 Top 15 हाय चकाचक चकाचक हूँ मैं Chaka Chak

        गीतकारों के लिए हर साल एक चुनौती रहती है कि कोई ऐसा शब्द गीत के मुखड़े के इर्द गिर्द बुनें जिसे सुनते ही लोगों की उत्सुकता उस गीत के प्रति बढ़ जाए। ए आर रहमान के संगीत निर्देशन में बनी फिल्म अतरंगी रे में ये काम किया चका चक वाले गीत ने जो आज पिछले साल के 15 शानदार गीतों की इस शृंखला में आज शामिल हो रहा है। इसे लिखा इरशाद कामिल ने। रिलीज़ होने के साथ कामिल का ये गीत सारा अली खाँ के लटकों झटकों और श्रेया घोषाल की गायिकी की बदौलत बड़ी आसानी से लोकप्रिय होता चला गया। 


        वैसे साफ सुंदर व्यवस्थित किये हुए किसी भी अहाते और कमरे के लिए ये कहना कि भई तुमने तो आज पूरा घर चकाचक कर रखा है पर किसी लड़की के साथ विशेषण के रूप में इस लफ़्ज़ के इस्तेमाल का श्रेय तो कामिल साहब को मिलेगा ही।

        शादी के समय में संगीत के कार्यक्रमों में गाना नाचना होता ही रहता है। पहले ज़माने में लोकगीत गाए जाते थे और उसकी भाषा भी बेबाक ही हुआ करती थी। मौका ऐसा रहता था कि ऐसे हँसी मजाक की छूट थी और आज भी है। फर्क इतना है कि आजकल लोक गीत की जगह फिल्मी गानों ने ले ली है। कोई अचरज नहीं कि इस गीत पर भी आप युवाओं को अगली शादी में नाचता गाता देखें।

        इरशाद कामिल के इस गीत के माध्यम से नायिका अपनी चाहत का खुला इज़हार कर रही है, बिना किसी संकोच के अपनी शारीरिक और भावनात्मक इच्छाओं, खूबियों और कमियों को बताते हुए ये साबित कर देना चाह रही है कि नायक के लिए वो कितना सही चुनाव रहती।

        अब इरशाद तो जो भी कहना चाह रहे हों मेरा ध्यान पहली बार पलँग टूटने से ज्यादा तपती दुपहरी, लड़की गिलहरी सी, पटना की चाट हो 16 स्वाद, माटी में मेरे प्यार की खाद जैसी मज़ेदार पंक्तियों पर पहले गया। बाकी रहमान साहब ने नादस्वरम और बाकी ताल वाद्यों से दक्षिण भारतीय शादी का ऐसा समां बाँधा है कि मन गीत के माहौल में रमता चला जाता है। श्रेया घोषाल की खनकती आवाज़ तो लुभाती ही है पर जिस मस्ती, उर्जा और उत्साह के साथ उन्होंने इस गीत को निभाया है वो काबिलेतारीफ़ है।


        वैसे कोई पटना वाला बताएगा कि सोलह स्वादों वाली चाट वहाँ कहाँ नसीब होती है? ☺

        वार्षिक संगीतमाला 2021 में अब तक

        अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत नीचे से ऊपर के क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी। 

        मंगलवार, फ़रवरी 16, 2021

        वार्षिक संगीतमाला 2020 : गीत # 9 तारे गिन, तारे गिन सोए बिन, सारे गिन Taare Ginn...

        हिंदी फिल्मों में ए आर रहमान का संगीत आजकल साल में इक्का दुक्का फिल्मों में ही सुनाई देता है। रहमान भी मुंबई वालों की इस बेरुखी पर यदा कदा टिप्पणी करते रहे हैं। तमाशा और मोहनजोदड़ो के बाद पिछले पाँच सालों में उनको कोई बड़े बैनर की  फिल्म मिली भी नहीं है। दिल बेचारा पर भी शायद लोगों का इतना ध्यान नहीं जाता अगर सुशांत वाली अनहोनी नहीं हुई होती। फिल्म रिलीज़ होने के पहले रहमान ने सुशांत की याद में एक संगीतमय पेशकश रखी थी जिसमें एलबम के सारे गायक व गायिकाओं ने हिस्सा भी लिया था। रहमान के इस एलबम में उदासी से लेकर उमंग सब तरह के गीतों का समावेश था। इस  फिल्म के दो गीत इस साल की गीतमाला में अपनी जगह बना पाए जिनमें पहला तारे गिन संगीतमाला की  नवीं पायदान पर आसीन है। 


        इस गीत की सबसे खास बात इसका मुखड़ा है। कितने प्यारे बोल लिखे हैं अमिताभ भट्टाचार्य ने। इश्क़ का कीड़ा जब लगता है तो मन की हालत क्या हो जाती है वो इन बोलों में बड़ी खूबी से उभर कर आया है। जहाँ तक तारे गिनने की बात है तो एकाकी जीवन में अपने हमसफ़र की जुस्तज़ू करते हुए जिसने भी खुली छत पर तारों की झिलमिल लड़ियों को देखते हुए रात बिताई हो वे इस गीत से ख़ुद को बड़ी आसानी से जोड़ पाएँगे। 

        जब से हुआ है अच्छा सा लगता है
        दिल हो गया फिर से बच्चा सा लगता है 
        इश्क़ रगों में जो बहता रहे जाके 
        कानों में चुपके से कहता रहे 
        तारे गिन, तारे गिन सोए बिन, सारे गिन 
        एक हसीं मज़ा है ये, मज़ा है या सज़ा है ये 

        अंतरे में भी अमिताभ एक प्रेम में डूबे हृदय को अपनी लेखनी से टटोलने में सफल हुए हैं।

        रोको इसे जितना, महसूस हो ये उतना 
        दर्द ज़रा सा है थोड़ा दवा सा है 
        इसमें है जो तैरा वो ही तो डूबा है 
        धोखा ज़रा सा है थोड़ा वफ़ा सा है 
        ये वादा है या इरादा है 
        कभी ये ज़्यादा है कभी ये आधा है 
        तारे गिन, तारे गिन सोए बिन, सारे गिन 

        श्रेया घोषाल और मोहित चौहान पहले भी रहमान के चहेते गायक रहे हैं और इस युगल जोड़ी ने अपनी बेहतरीन गायिकी से रहमान के विश्वास को बनाए रखने की पुरज़ोर कोशिश की है। 

        रहमान अपने गीतों में हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करते रहते हैं। यहाँ उन्होंने श्रेया की आवाज़ को अलग ट्रैक पर रिकार्ड कर मोहित की आवाज़ पर सुपरइम्पोज़ किया है।  पर रहमान के इस नए प्रयोग की वज़ह से अंतरे में गीत के बोल (खासकर श्रेया वाले) उतनी सफाई से नहीं समझ आते। अंत में रहमान स्केल बदलकर गीत का समापन करते हैं।

        मुझे इस गीत का पहले दो मिनटों  का हिस्सा बहुत भाता है और मन करता है कि आगे जाए बिना उसी हिस्से को रिपीट मोड में सुनते रहें। काश रहमान इस गीत की वही सहजता अंतरे में भी बनाए रहते ! गीत का आडियो वर्जन एक मिनट ज्यादा लंबा है और इस वर्जन के के आख़िर में वॉयलिन का एक खूबसूरत टुकड़ा भी है जिसे संजय ललवानी ने बजाया है। तो आइए सुनते हैं इस गीत का वही रूप...


        वार्षिक संगीतमाला 2020


        शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2021

        वार्षिक संगीतमाला 2020 गीत # 12 : ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा, है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना ... Heeriye

        इस संगीतमाला की शुरुआत में मैंने आपको हीमेश रेशमिया की फिल्म हैप्पी हार्डी और हीर के दो गाने सुनाए थे। पहला गीत था आदत और दूसरा तेरी मेरी कहानी । वे दोनों गीत तो बीस के नीचे की पायदानों पर सिमट गए थे।आज बारहवीं पायदान पर इस फिल्म का तीसरा और इस संगीतमाला में शामिल होने वाला आखिरी गीत ले कर आया हूँ जिसे गाया है अरिजीत सिंह और श्रेया घोषाल ने। 

        ये बात मैंने गौर की है कि प्रीतम की तरह ही हीमेश भी अपने गीतों में सिग्नेचर ट्यून का बारहा इस्तेमाल करते हैं। सिग्नेचर ट्यून मतलब संगीत का एक छोटा सा टुकड़ा जो पूरे गीत में बार बार बजता है। इन टुकड़ों की कर्णप्रियता इतनी ज्यादा होती है कि उसे एक बार सुन लेने के बाद आप उसके गीत में अगली बार बजने का इंतज़ार करते हैं। 

        एक खूबसूरत आलाप से ये गीत शुरु होता है और फिर पहले गिटार और उसी धुन का साथ देते तबले का जादू गीत के प्रति श्रोता का आकर्षण तेजी से बढ़ा देता है।  सिग्नेचर ट्यून की तरह इस गीत की एक सिग्नेचर लाइन भी है जो हर अंतरे के बात लगातार दोहराई जाती है। वो पंक्ति है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा, है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना। इस गीत को लिखने वाले का नाम पढ़ कर मैं चकित रह गया। जी हाँ इस गीत को लिखा है संगीतकार विशाल मिश्रा ने जो संगीतमाला की पिछली पायदान पर गायक की भूमिका निभा रहे थे।



        इश्क की भावनाओं से लबरेज इस गीत में विशाल के बिंब और बोलों का प्रवाह देखने लायक है। खासकर शब्दों का दो बार बार दोहराव सुनने में मन को सोहता है। 

        है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना, है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना 
        ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा, है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना 
        इश्क़ मज़हब जैसे ख़ुदा, इश्क़ निस्बत जैसे दुआ 
        ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना 
        है इश्क मेरा सरफिरा फ़साना 

        तेरी आँखों में हम अपनी ज़िन्दगी का हर एक सपना देखते हैं ओ रांझणा 
        ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना 
        है इश्क मेरा सरफिरा फ़साना ...आ आ..

        धूप में तुझसे ठंडक, सर्द में तुझसे राहत
        रूह की तुम शिद्दत, आह की तुम चाहत
        दवा दवा में तू है, ज़फा ज़फा में तू है
        सफ़ा सफ़ा में तू है, मेरे ख़ुदा मेरे ख़ुदा
        इश्क़ सोहबत जैसे वफ़ा, इश्क़ फितरत जैसे नशा
        ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा है इश्क मेरा सरफिरा फ़साना 

        अश्कों में तेरी खुशियाँ पल में बस बीती सदियाँ 
        दिन सी ये लगती रतियाँ, खट्टी मीठी ये बतियाँ 
        सबा सबा में तू है, हवा हवा में तू है 
        घटा घटा में तू है मेरे ख़ुदा, मेरे ख़ुदा, मेरे ख़ुदा.. 
        इश्क कुदरत जैसे फ़ना, इश्क़ तोहमत जैसे सज़ा 
        ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना ....

        श्रेया घोषाल को इस गीत में दो ही पंक्तियाँ मिली हैं पर उतने में ही वो अपना कमाल दिखा जाती हैं। अब इस मिश्री सी मधुर धुन को अरिजित की आवाज़ का साथ मिले तो गीत कैसे ना पसंद आए। तो आइए सुनते हैं हीमेश, विशाल, श्रेया और अरिजीत के इस सम्मिलित कमाल को जो ऐश्वर्या मजूमदार, ॠतुराज, सलमान  शेख और अनु दत्त के कोरस और आलापों से और श्रवणीय हो गया है।


        वार्षिक संगीतमाला 2020


         

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