बादल की डोली में लो बैठी रे बुँदनिया
धरती से मिलने को निकली सावनिया
सागर में घुलने को चली देखो नदिया, धीमे-धीमे चले पुरवैया...
नई आशा का दीपक जला, चला सपनों का नया क़ाफ़िला
देखो उड़ी एक धानी चुनरिया, हो, धीमे-धीमे चले पुरवैया...

जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से! अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वार्षिक संगीतमाला में 2023 के पच्चीस बेहतरीन गीतों की शृंखला अब अपने अंतिम चरण में आ पहुंची है। आज जिस गीत के बारे में मैं आपसे चर्चा करने जा रहा हूं उसकी रूपरेखा एक विशुद्ध मुंबईया फिल्मी गीत सरीखी है। यहां हसीन वादियां हैं, खूबसूरत परिधानों में परी सी दिखती नायिका है और साथ में एक छैल छबीला नायक जो हवा के झोंकों के बीच बहती सुरीली धुन और मन को छूते शब्दों में अपने प्रेम का इज़हार कर रहे हैं। हालांकि वास्तव में नायक वहां है नहीं पर नायिका उसकी उपस्थिति महसूस कर रही है। यथार्थ से परे होकर भी भारतीय दर्शक गीतों में इस larger than life image को दिल से पसंद करते हैं क्यूंकि ऐसे गीतों की परंपरा हिन्दी सिनेमा में शुरू से रही है या यूं कह लें कि ये बॉलीवुड की विशिष्टता है जिसे हम सबने अपनी थाती बनाकर अपने दिल में बसा लिया है।
ये गीत है फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी से। पिछले साल के अंत में आई ये फिल्म हिट तो हुई ही थी, इसके गाने भी खूब पसंद किए गए थे। वे कमलेया और वाट झुमका से तो आप परिचित होंगे ही। आज के गीत, तुम क्या मिले जो इस फिल्म का मेरा सबसे पसंदीदा गीत है, को मैंने पिछले साल खूब सुना था और अब तक सुन रहा हूं। मुझे यकीन है कि अगर आपने ये गीत अब तक नहीं सुना तो इसे सुन कर आप अवश्य इसकी मधुरता के कायल हो जाएंगे।
अक्सर गीतों के मुखड़ों के पहले कई संगीतकार पियानो का बेहद प्यार इस्तेमाल करते हैं। तुम क्या मिले की शुरुआत भी इसी वाद्य यंत्र से होती है। जब जब इस गीत को सुनना शुरु करता हूँ पियानो की ये धुन मुझे अलग ही दुनिया में ले जाती है। वो जो प्रेम की मीठी सी कसक होती है न वही कुछ है हिमांशु पारिख के बजाए मन को तरंगित करते इस टुकड़े में । मन इस स्वरलहरी में हिलोरे ले ही रहा होता है कि अमिताभ भट्टाचार्य के शब्द समय के उस छोर पे मुझे ले जाते हैं जब ऐसी ही भावनाएँ दिल में घर बनाया करती थीं।
जिस फिल्म की कथा देश के एक कोने से दूसरे कोने तक जा पहुँचती है तो बदलती जगहों और किरदारों के अनुसार संगीत को भी अलग अलग करवट लेनी पड़ती है। मैं शुक्रगुजार हूँ ऐसी कहानियों को जो संगीत में कुछ नया करने का अवसर हमें दे पाती हैं।
अतरंगी रे की ही तरह मीनाक्षी सुंदरेश्वर बतौर एलबम मुझे काफी पसंद आया और इसीलिए इस फिल्म के भी कई गीत इस वार्षिक संगीतमाला में शामिल हैं। आज इसके जिस गीत की बात मैं करने जा रहा हूँ उसे आप Long Distance Relationship पर बनी इस फिल्म का आज की शब्दावली में ब्रेक अप सॉन्ग कह सकते हैं। ये गीत है रत्ती रत्ती रेज़ा रेज़ा, जो है तेरा ले जाना.....।
मन केसर केसर का जिक्र करते हुए मैंने आपको बताया था कि इस फिल्म के संगीतकार जस्टिक प्रभाकरन तमिल हैं और हिंदी फिल्मों में संगीत देने का ये उनका पहला मौका था। आप ही सोचिए कहाँ हिंदी पट्टी से आने वाले खालिस बिहारी राजशेखर और कहाँ जस्टिन (जिन्हें तमिल और अंग्रेजी से आगे हिंदी का क, ख, ग भी नहीं पता) ने आपस में मिलकर इतना बेहतरीन गीत संगीत रच डाला।
मैं इनके बीच की कड़ी ढूँढ ही रहा था कि राजशेखर का एक साक्षात्कार सुना तो पता चला कि वो सेतु थे फिल्म के युवा निर्देशक विवेक सोनी। फिल्म के गीत संगीत पर तो लॉकडाउन में काम चलता रहा पर स्थिति सुधरने के बाद ये तिकड़ी साथ साथ ही सिटिंग में बैठती रही। राजशेखर बताते हैं कि उन्हें बड़ी दिक्कत होती थी जस्टिन को गीतों के भाव समझाने में।
राजशेखर का हाथ अंग्रेजी में तंग था और जस्टिन अंग्रेजी के शब्दों का उच्चारण भी तमिल लहजे में करते थे। जब राजशेखर ने रत्ती रत्ती रेज़ा रेज़ा मुखड़ा रचा तो उसे सुनकर जस्टिन का मासूम सा सवाल था What ..meaning ? अब राजशेखर अगर शाब्दिक अनुवाद bits & pieces बताएँ तो शब्दों के पीछे की भावनाएँ गायब हो जाती थीं तो वे ऐसे मौकों पर चुप रह जाते। ऐसे में विवेक दुभाषिए का रोल अदा करते थे।
फिल्म के गीतों पर काम करते करते जस्टिन को राजशेखर ने हिंदी के तीन चार शब्द तो रटवा ही दिए। एक मज़ेदार बात उन्होने ये सिखाई कि जस्टिन If someone asks you about lyrics you have to just say बहुत अच्छा 😀😀।
फिल्म की कथा शादी के बाद अलग अलग रह रहे नवयुगल के जीवन से जुड़ी है। वो कहते हैं ना कि जिनसे प्यार होता है उनसे उतनी जल्दी नाराज़गी भी हो जाती है। पास रहें तो थोड़ी नोंक झोंक के बाद मामला सलट जाता है पर दूरियाँ कभी कभी कई ऐसी गलतफहमियों को जन्म देती हैं जो नए नवेले रिश्ते की नर्म गाँठ को तार तार करने में ज्यादा वक़्त नहीं लगाती।
एक बार मन टूट जाए फिर उस शख़्स से लड़ने की भी इच्छा नहीं होती। इसलिए राजशेखर लिखते हैं
गीतकारों के लिए हर साल एक चुनौती रहती है कि कोई ऐसा शब्द गीत के मुखड़े के इर्द गिर्द बुनें जिसे सुनते ही लोगों की उत्सुकता उस गीत के प्रति बढ़ जाए। ए आर रहमान के संगीत निर्देशन में बनी फिल्म अतरंगी रे में ये काम किया चका चक वाले गीत ने जो आज पिछले साल के 15 शानदार गीतों की इस शृंखला में आज शामिल हो रहा है। इसे लिखा इरशाद कामिल ने। रिलीज़ होने के साथ कामिल का ये गीत सारा अली खाँ के लटकों झटकों और श्रेया घोषाल की गायिकी की बदौलत बड़ी आसानी से लोकप्रिय होता चला गया।
वैसे साफ सुंदर व्यवस्थित किये हुए किसी भी अहाते और कमरे के लिए ये कहना कि भई तुमने तो आज पूरा घर चकाचक कर रखा है पर किसी लड़की के साथ विशेषण के रूप में इस लफ़्ज़ के इस्तेमाल का श्रेय तो कामिल साहब को मिलेगा ही।
अब इरशाद तो जो भी कहना चाह रहे हों मेरा ध्यान पहली बार पलँग टूटने से ज्यादा तपती दुपहरी, लड़की गिलहरी सी, पटना की चाट हो 16 स्वाद, माटी में मेरे प्यार की खाद जैसी मज़ेदार पंक्तियों पर पहले गया। बाकी रहमान साहब ने नादस्वरम और बाकी ताल वाद्यों से दक्षिण भारतीय शादी का ऐसा समां बाँधा है कि मन गीत के माहौल में रमता चला जाता है। श्रेया घोषाल की खनकती आवाज़ तो लुभाती ही है पर जिस मस्ती, उर्जा और उत्साह के साथ उन्होंने इस गीत को निभाया है वो काबिलेतारीफ़ है।
हिंदी फिल्मों में ए आर रहमान का संगीत आजकल साल में इक्का दुक्का फिल्मों में ही सुनाई देता है। रहमान भी मुंबई वालों की इस बेरुखी पर यदा कदा टिप्पणी करते रहे हैं। तमाशा और मोहनजोदड़ो के बाद पिछले पाँच सालों में उनको कोई बड़े बैनर की फिल्म मिली भी नहीं है। दिल बेचारा पर भी शायद लोगों का इतना ध्यान नहीं जाता अगर सुशांत वाली अनहोनी नहीं हुई होती। फिल्म रिलीज़ होने के पहले रहमान ने सुशांत की याद में एक संगीतमय पेशकश रखी थी जिसमें एलबम के सारे गायक व गायिकाओं ने हिस्सा भी लिया था। रहमान के इस एलबम में उदासी से लेकर उमंग सब तरह के गीतों का समावेश था। इस फिल्म के दो गीत इस साल की गीतमाला में अपनी जगह बना पाए जिनमें पहला तारे गिन संगीतमाला की नवीं पायदान पर आसीन है।
इस संगीतमाला की शुरुआत में मैंने आपको हीमेश रेशमिया की फिल्म हैप्पी हार्डी और हीर के दो गाने सुनाए थे। पहला गीत था आदत और दूसरा तेरी मेरी कहानी । वे दोनों गीत तो बीस के नीचे की पायदानों पर सिमट गए थे।आज बारहवीं पायदान पर इस फिल्म का तीसरा और इस संगीतमाला में शामिल होने वाला आखिरी गीत ले कर आया हूँ जिसे गाया है अरिजीत सिंह और श्रेया घोषाल ने।
ये बात मैंने गौर की है कि प्रीतम की तरह ही हीमेश भी अपने गीतों में सिग्नेचर ट्यून का बारहा इस्तेमाल करते हैं। सिग्नेचर ट्यून मतलब संगीत का एक छोटा सा टुकड़ा जो पूरे गीत में बार बार बजता है। इन टुकड़ों की कर्णप्रियता इतनी ज्यादा होती है कि उसे एक बार सुन लेने के बाद आप उसके गीत में अगली बार बजने का इंतज़ार करते हैं।
एक खूबसूरत आलाप से ये गीत शुरु होता है और फिर पहले गिटार और उसी धुन का साथ देते तबले का जादू गीत के प्रति श्रोता का आकर्षण तेजी से बढ़ा देता है। सिग्नेचर ट्यून की तरह इस गीत की एक सिग्नेचर लाइन भी है जो हर अंतरे के बात लगातार दोहराई जाती है। वो पंक्ति है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा, है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना। इस गीत को लिखने वाले का नाम पढ़ कर मैं चकित रह गया। जी हाँ इस गीत को लिखा है संगीतकार विशाल मिश्रा ने जो संगीतमाला की पिछली पायदान पर गायक की भूमिका निभा रहे थे।
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