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गुरुवार, जून 05, 2025

वार्षिक संगीतमाला 2024 :Top 25 वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो

फिल्म संगीत हो , वेब सीरीज या फिर स्वतंत्र संगीत अमित त्रिवेदी अपनी रचनात्मकता श्रोताओं के सामने लाते ही रहे हैं। विगत कुछ सालों में Songs of Love, Songs of Trance, जादू सलोना जैसे स्वतंत्र संगीत से जुड़े एल्बम रचने के बाद 2024 के आखिरी महीनों में उनका नया एल्बम आया Azaad Collab.। इस एल्बम में उन्होंने कई ऐसे गायक गायिकाओं के साथ गीत के वीडियो बनाए जो अक्सर उनकी फिल्मों में बतौर पार्श्व गायक नज़र आते हैं। अमित का कहना था कि उन्होंने Play back singers को इस एल्बम के जरिए Play front करवाया यानी वो सिर्फ सुनाई ही नहीं बल्कि गीत के फिल्मांकन में दिखाई भी देंगे।

 
चौदह गीतों से सजे इसी एल्बम का एक गीत है वल्लो वल्लो जिसे मैने चुना है वार्षिक संगीतमाला की 18 वीं पायदान के लिए। इस गीत को गाया है नीति मोहन और असीस कौर ने। ये वही नीति मोहन हैं जिन्होने गुलज़ार के गीत  जिया जिया रे ( जब तक है जान) से फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाई थी। उसके बाद सपना जहां और दिल उड़ जा रे में भी उन्होंने अपनी गायिकी से मुझे प्रभावित किया था  इस गीतमाला में भी  उनका एक गीत प्रथम पाँच में अपनी जगह बनाता हुआ दिख रहा है।

असीस कौर ने तो वैसे बहुतेरे गाने गाए हैं पर मुझे उनका गाया वे कमलेया कमाल लगता हैं। हालांकि फिल्म में श्रेया वाला वर्सन ही इस्तेमाल हुआ। इस गीत को लिखने वाले हैं गीत सागर जो गाहे बगाहे फिल्मी गीतों में अपनी आवाज़ भी देते रहे है और एक रियलिटी शो X  Factor के विजेता भी रह चुके हैं। जावेद अख़्तर साहब के शैदाई हैं और एक रेडियो जॉकी भी हैं। जाहिर है एक अच्छी आवाज़ के मालिक भी होंगे ही। हालांकि मुझे वो एक गायक की तुलना में गीतकार व रेडियो जॉकी के रूप  में  ज्यादा पसंद  आए 

वल्लो वल्लो एक तरह का अभिवादन है कश्मीरी शादी में दूल्हे के लिए। दरअसल ये युगल गीत में दोनों कश्मीरी लड़कियां ये सोच रही हैं कि उनका होने वाला हमसफ़र कैसा होगा? गीत सागर के लिए ये विषय नया था पर उन्होंने इस गीत को दो लड़कियों की बातचीत को उर्दू के शब्दों से इस तरह तराशा कि ये गीत एक अफ़साना सा ही बन गया। 


वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो,,,
महजबीं हसीन दुल्हन से मिलो
वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो

होगा कोई माहरु जिसकी मुझे आरज़ू 

होगा कोई माहरु जिसकी मुझे आरज़ू

मेरा दिलदार यार होगा कभी रूबरू
मेरे दिल को भी प्यार होगा कभी हूबहू
वो जिसकी हर अदा पे जाऊँगी क़ुर्बान मैं
वो जिसका इश्क़ बनूँगी वो जिसकी जान मैं
वो जिसके साथ फिरुँगी मैं सदा कूबकू कूबकू

उनकी लिखी कुछ पंक्तियों पर गौर फरमाएं जो मुझे खास तौर पर पसंद आईं.. ध्यान रहे यहां बात होने वाले पतिदेव के व्यक्तित्व की हो रही है

वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो....
खुरदुरी आवाज़ में ओस  की नमी
जिसको देख देख चले साँस मद्धमी 
जिसका रोब देख के रास्ते खुले
जिसके नैन देख के तड़पे चाँदनी
तड़पे चाँदनी तड़पे चाँदनी

मेरी हस्ती ज़रा चमके किसी जुगनू की तरह

मेरी साँसें सदा महकें नई खुशबू की तरह

किसी तितली की तरह खुश लगे ये जस्तजू जस्तजू

ओह वल्लो वल्लो,,,महजबीं हसीन दुल्हन से मिलो

वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो


ना जी ना अभी अहर्ताएं और भी हैं और ये तो और ज्यादा जरूरी हैं


किसी ज़ेवर की तरह साथ रखे याद मेरी

किसी बच्चे की तरह ज़िंदगी हो शाद मेरी

मेरे हँसने मेरे रोने से उसे फर्क पड़े

उसे पा कर के लगे ज़िंदगी दिलशाद मेरी

फरियाद मेरी ओ फरियाद मेरी

खुश रहे तू अज़ीज़ा आबाद मेरी

शगुन वाली रात आई, खुशियों के जज़्बात लाई
रौनकें सब साथ लाई, देखो देखो देखो देखो

चाँदनी है दर पे खड़ी, होंठों पे मुस्कान बड़ी

अँखियों में बूँदों की लड़ी, देखो देखो देखो देखो

वल्लो वल्लो ,,,महजबीं हसीन दुल्हन से मिलो ,,,वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो

अमित त्रिवेदी का संगीत और वाद्य यंत्रों का चुनाव आपको कश्मीर की वादियों में ले जाता है। नीति मोहन और असीस कौर दोनों ही बेहतरीन गायिका हैं और इस गीत में उनकी आवाज और अभिनय दोनों में ही परफेक्ट ट्यूनिंग है। अगर बात कश्मीर की हो तो रबाब का इस्तेमाल तो गीत में होना ही था और उसके साथ बौज़ौकी भी है जिसे तापस रॉय ने हमेशा की तरह बखूबी बजाया है। गीत के बोल, गायिकी और संगीत की जुगलबंदी से ये गीत मन को एक खुशनुमा अहसास से भर देता है। 

गायिकाओं , संगीतकार गीतकार की जोड़ी के साथ इस गीत के वीडियो में कुछ प्यारे बच्चे भी हैं जिनकी वज़ह से वो देखने लायक बन गया है। अमित त्रिवेदी ने भी अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि वो इस गीत से एक खास लगाव रखते हैं।  इस गीत को देखिए कहीं आप भी मेरी तरह इसके अनुरागी बन जाएँ 

गुरुवार, जनवरी 20, 2022

वार्षिक संगीतमाला 2021 Top 15 : दिल उड़ जा रे, रस्ता दिखला रे Dil Udd Jaa Re

मुंबई फिल्म जगत में अक्सर ऐसा होता है कि बहुत सारे कलाकार बतौर गायक अपनी किस्मत आज़माने आते हैं पर परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि बन जाते हैं संगीतकार। लेकिन एक बेहद सफल गायक का संगीतकार बनना थोड़ा तो अजूबा लगता है। पर अरिजीत सिंह हैं ही इतने गुणी कि पिछले साल उन्होंने ये मुकाम भी बड़े शानदार अंदाज़ में हासिल कर लिया फिल्म पगलेट का संगीत निर्देशन कर । वैसे अपने कैरियर की शुरुआत में अरिजीत संगीतकार प्रीतम के सहायक की भूमिका निभा चुके हैं। आज इसी फिल्म का गीत दिल उड़ जा रे शामिल हो रहा है मेरी वार्षिक संगीतमाला में जिसे लिखा है नीलेश मिश्रा ने और अपनी आवाज़ दी है नीति मोहन ने। 


इस गाने की पहली खासियत इसकी शुरुआत और अंतरों के बीच बजने वाला वाद्य है जिसे सुनकर मन सुकून की एक अलग ही दुनिया में पहुँच जाता है। दिल करता है वादक तापस रॉय की उँगलियाँ साज़ पर थिरकती ही रहें। ईरान का ये वाद्य तार के नाम से जाना जाता है। तीन जोड़ी तारों से मिलकर बना हुआ वाद्य ईरान के आलावा मध्य एशिया के कई देशों में भी प्रचलित है।


पगलैट एक ऐसी लड़की की कहानी है जो शादी के चंद महीने बाद ही अपने पति को खो बैठती है। इतने कम समय में पति के साथ उसके मन के तार ठीक से जुड़ भी नहीं पाते हैं और तभी उसे पता चलता है कि जो अनायास ही ज़िंदगी से चला गया उसकी एक प्रेमिका भी थी। दुख की इस घड़ी में उसके अंदर एक वितृष्णा सी जाग उठती है।  और नीलेश मिश्रा के शब्द उसके मन के इन्हीं भावों को इस गीत में टटोलते हैं। मन अशांत है, दिमाग पहेलियों में उलझा हुआ और आगे का रास्ता बेहद धुँधला। ऐसे में नए सफ़र पर इन सबके पार चलने का हौसला दिल की कोई उड़ान ही दे सकती है इसलिए नीलेश ने लिखा

लम्हा यूँ दुखता क्यूँ
क्यूँ मैं सौ दफा, खुद से हूँ ख़फा
कैसे पूछूँ निकला क्यूँ
इतना बेवफा, खुद से हूँ ख़फा

अरमान ये गुमसुम से
चाहें ये क्या, मुझको क्या पता
इनमें जो सपने थे, क्यूँ वो लापता
मुझको क्या पता
ख्वाहिशें तो करते हैं, ज़िन्दगी से डरते हैं
डूबते उबरते हैं
टूटे जो तारे, रूठे हैं सारे
दिल तू उड़ जा रे, रस्ता दिखला रे

   

नीलेश बरसों बाद फिल्मी गीतों को रचते नज़र आए हैं। यूँ तो उनके बहुत से प्यारे गीत हैं पर बर्फी का गीत क्यूँ ना हम तुम चलें टेढ़े मेरे से रस्ते पे नंगे पाँव रे उनका लिखा मेरा सबसे पसंदीदा गीत है। नीति मोहन ने इस संवेदनशील गीत को बखूबी निभाया है। तो आँख बंद कीजिए और नायिका की मायूसी का अनुभव कीजिए इस गीत में तापस के अद्भुत तार वादन के साथ..

 

अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत नीचे से ऊपर के क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी। और हाँ अगर आप सब का साथ रहा तो अंत में गीतमाला की आख़िरी लिस्ट निकलने के पहले 2019 की तरह एक प्रतियोगिता भी कराई जाएगी जिसमें अव्वल आने वालों को एक छोटा सा पुरस्कार मिलेगा। ☺☺

शुक्रवार, जनवरी 19, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान 20 :मीर-ए-कारवाँ Meer e Kaarwan

एक हफ्ते के विराम के बाद वार्षिक संगीतमाला का कारवाँ फिर चल पड़ा है साल के बचे हुए बीस शानदार गीतों के सफ़र पर  संगीतमाला की बीसवीं पायदान पर गीत वो जिसे लिखा नवोदित गीतकार अधीश वर्मा ने, धुन बनाई संगीतकार रोचक कोहली ने और जिसमें आवाज़े दीं नीति मोहन व अमित मिश्रा ने । जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ फिल्म लखनऊ सेंट्रल के गीत मीर ए कारवाँ की।

चंडीगढ़ से ताल्लुक रखने वाले रोचक कोहली का सितारा पहली बार आयुष्मान के साथ रचे उनके गीत पानी दा रंग के साथ चमका था। आरंभिक कुछ सालों में आयुष्मान के साथ अपना फिल्म संगीत की शुरुआत करने वाले रोचक कोहली इस साल नाम शबाना, करीब करीब सिंगल और लखनऊ सेंट्रल से बतौर संगीतकार अपनी व्यक्तिगत पैठ बनाते दिखे। चाहे विकी डोनर का पानी दा रंग हो या हवाईज़ादा कासपना है निजाम का ,रोचक की गिटार पर महारत देखते ही बनती है।


मीर ए कारवाँ में भी मुखड़े के पहले  गिटार के साथ तबले का अद्भुत मेल श्रोताओं का ध्यान एक बार ही में आकर्षित कर लेता है। गिटार और तबले की ये संगत ऐसी है जिसे बार बार सुनने का मन  होता है और रोचक इसीलिए उसका प्रयोग इंटरल्यूड्स में भी करते हैं। ये कहना लाजिमी होगा कि संगीत का ये टुकड़ा इस गीत की सिग्नेचर ट्यून बन कर उभरा है। रोचक कोहली ने अधीश की मदद से इस गीत को सूफियत का जामा पहनाने की कोशिश की है। पर गीत के कुछ हिस्से "मितवा" की याद दिला देते हैं जिससे बचा जा सकता था।

फिल्म के गीतकार अधीश वर्मा का फिल्मों के लिए लिखा गया दूसरा गीत है। इससे पहले वे रोचक के साथ बैंक चोर  का एक गीत लिख चुके थे। मीर ए कारवाँ एक ऐसा गीत है जो फिल्म की कहानी में ज़िंदगी की अलग अलग राहों से भटकते हुए किरदारों को संगीत के माध्यम से जोड़ता है। जेल की सलाखों में बंद इन किरदारों को एक नयी मंज़िल की तलाश है।

अधीश ने गीत में मीर-ए-कारवाँ का जुमला उछाला है। दरअसल सफ़र में साथ चलने वाले समूह के नेता को ही 'मीर-ए-कारवाँ' कहा जाता  है। पर अधीश ने इस गीत में कहना चाहा है कि जब हम जीवन की जटिल राहों में अकेले ही संघर्ष करते हैं तो हमारी उम्मीद की किरण, हमारे सफ़र का मसीहा यानि हमारा मीर ए कारवाँ बस एक ऊपर वाला होता है। अधीश इसी मीर ए कारवाँ से अपने किरदारों (जो जीवन की इस गहरी स्याह रात से होकर गुज़र रहे हैं ) के लिए नए उजाले की दुआ करते हैं। 

बहार क्यूँ तेरे दर ना आती.. वाले अंतरे में अधीश किरदारों की अपने आस पास की परिस्थितियों से उपजी हताशा को बखूबी रेखांकित करते हैं। नीति मोहन की आवाज़ मुझे हमेशा से प्यारी लगती रही है। इस गीत में उनका अमित मिश्रा  ने भी बखूबी साथ दिया  है तो आइए सुनें इन दोनों के स्वर में फिल्म लखनऊ सेंट्रल का ये गाना...


ओ बंदेया ओ बंदेया
ओ बंदेया ओ बंदेया
ओ बंदेया ओ बंदेया

तेरी मंज़िलें हुईं गुमशुदा
फिर भी रास्ता है तेरा मेहेरबां
ओ मीर-ए-कारवाँ 
तेरी राहों पे रवाँ
कि मेरे नसीबों में
हो कोई तो दुआ
ओ मीर-ए-कारवाँ
ले चल मुझे वहाँ
ये रात बने जहाँ सुबह
मीर-ए-कारवाँ, ओ मीर-ए-कारवाँ

ओ बस कर दिल अब बस कर भी
हो बस कर दिल अब बस कर भी
उस राह मुझे जाना ही नहीं
पल दो पल का साथ सफ़र फिर
होगी जुदा रहगुज़र
नदिया थाम के जो बहते रहे
मिलते हैं वो किनारे कहाँ

ओ मीर-ए-कारवाँ, तेरी राहों पे रवाँ...

बहार क्यूँ तेरे दर ना आती
है क्या भरम जो नज़र दिखाती
अब और कितनी ये रात बाक़ी
है रात बाक़ी, ये रात बाक़ी
निगल ना जायें तुझे ये साये
गले में घुटती हैं सर्द आहें
बता ओ बंदे क्यूँ मात खाये
क्यूँ मात खाये रे

लागे ना दिल अब लागे नहीं
लागे ना दिल अब लागे नहीं
मेरे पैरों तले निकली जो ज़मीं
इस बस्ती में था मेरा घर
उसे किस की लगी फिर नज़र
वो जो सपनों का था काफ़िला
ऐसा झुलसा की अब है धुआँ

ओ मीर-ए-कारवाँ, तेरी राहों पे रवाँ...
चल अकेला राही, चल चल अकेला राही
हाफ़िज़ तेरा इलाही, हाफ़िज़ तेरा इलाही



वार्षिक संगीतमाला 2017


सोमवार, फ़रवरी 15, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 6 : सपना जहाँ दस्तक ना दे, चौखट थी वो आँखें मेरी.. Sapna Jahan...

वार्षिक संगीतमाला की अंतिम छः पायदान का एक एक नग्मा मुझे बेहद पसंद है। छठी पायदान के इस गीत को पहली बार मैंने तब सुना जब अपनी संगीतमाला के लिए गीतों का चयन कर रहा था और पहली बार सुनते ही  मैं इसके सम्मोहन में आ गया। क्या शब्द. क्या संगीत और क्या गायिकी। वैसे अगर मैं आपके सामने संगीतकार अजय अतुल, सोनू निगम व अमिताभ भट्टाचार्य की तिकड़ी का नाम लूँ तो बताइए आपके मन में कौन सा लोकप्रिय गीत उभरता है? अरे वही अग्निपथ का संवेदनशील नग्मा अभी मुझ में कहीं बाकी थोड़ी सी है ज़िदगी जिसने वार्षिक संगीतमाला के 2012 के अंक में रनर्स अप का खिताब जीता था। इन तीनों ने मिलकर एक बार फिर ब्रदर्स ले लिए एक बेहद सार्थक, मधुर, सुकून देने वाला रोमांटिक नग्मा रचा है।


मराठी संगीत के जाने माने चेहरे अजय अतुल के बारे में अग्निपथसिंघम के गीतों के ज़रिए आपका परिचय करा चुका हूँ। करण मेहरोत्रा की पहली फिल्म अग्निपथ की सफलता के पीछे उनके शानदार संगीत का भी बहुत बड़ा हाथ था। ज़ाहिर सी बात थी कि अगली फिल्म के लिए भी बतौर संगीतकार उन्होंने अजय अतुल को चुना। तो आइए जानते हैं कि क्या कहना है संगीतकार जोड़ी का इस गीत के बारे में। तो पहले जानिए कि अतुल के विचार

आजकल जिस तरह का संगीत बॉलीवुड में चल रहा है उसको देखते हुए बड़ा कलेजा चाहिए था सपना जहाँ जैसे गीत को चुनने के लिए। रोहित को एक भावपूर्ण गीत की जरूरत थी और उन्होंने इस धुन को चुना। रोहित हमारे मित्र की तरह हैं। हम जो भी करते हैं वो तभी करते हैं गर वो चीज़ हमें अच्छी लगती है। जब ये गाना बन रहा था उसी दिन मैंने कहा था कि ये भी अभी मुझ में कहीं.. जितना ही गहरा व प्यारा गीत बनेगा। सोनू की आवाज़ की बुनावट में अक्षय की सी परिपक्वता है इसीलिए हमने इस गीत के लिए उनको चुना और क्या निभाया उन्होंने इस गीत को।

वहीं अजय सोनू निगम की सहगायिका नीति मोहन के बारे में कहते हैं
उनके गाए अब तक सारे गाने मुझे अच्छे लगे थे। तू रूह है की जो लय है उसे सँभालते हुए बड़े प्यार से उन्हें गीत में प्रवेश करना था जो थोड़ा कठिन तो था पर उन्होंने बखूबी किया।

ये गीत नायक की ज़िदगी की पूरी कहानी को मुखड़ों और अंतरों में समा लेता है। गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य को अपनों से अलग थलग एक बेमानी सी जिंदगी जीते हुए इंसान की कहानी के उस मोड़ की दास्तान बयाँ करनी थी जब वो नायिका से मिलता है और देखिए तो उन्होंने कितनी खूबसूरती से लिखा.. सपना जहाँ दस्तक ना दे, चौखट थी वो आँखे मेरी...बातों से थीं तादाद में, खामोशियाँ ज्यादा मेरी.. जबसे पड़े तेरे कदम, चलने लगी दुनिया मेरी। 

सहज शब्दों में काव्यात्मक अंदाज़ में कहीं बातें जो दिल को सहजता से छू लें अमिताभ के लिखे गीतों की पहचान हैं। मुखड़े में आगे भटकते हुए बादल की आसमान में ठहरने की बात तो पसंद आती ही है, पहले अंतरे में रूह के साथ काया, उम्र के साथ साया और बैराग के साथ माया की जुगलबंदी व सोच भी बतौर गीतकार उनके हुनर को दर्शाती है।

अजय अतुल का संगीत भी बोलों की नरमी की तरह ही एक मुलायमियत लिए हुए है। पियानों की मधुर धुन से नग्मा शुरु होता है। बीच में बाँसुरी के इंटरल्यूड के आलावा गीत के साथ ताल वाद्यों की हल्की थपकी ज़ारी रहती है। गीत का फिल्मांकन भी असरदार है तो आइए सुनते हैं इस गीत को..
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सपना जहाँ दस्तक ना दे, चौखट थी वो आँखें  मेरी
बातों से थीं तादाद में, खामोशियाँ ज्यादा मेरी

जबसे पड़े तेरे कदम, चलने लगी दुनिया मेरी

मेरे दिल मे जगह खुदा की खाली थी
देखा वहाँ पे आज तेरा चेहरा है
मैं भटकता हुआ सा एक बादल हूँ
जो तेरे आसमान पे आ के ठहरा है


तू रूह है तो मैं काया बनूँ
ता-उम्र मैं तेरा साया बनूँ
कह दे तो बन जाऊँ बैराग मैं
कह दे तो मैं तेरी माया बनूँ

तू साज़ हैं, मैं रागिनी
तू रात हैं, मैं चाँदनी

मेरे दिल मे .... ठहरा हैं

हम पे सितारों का एहसान हो
पूरा, अधूरा हर अरमान हो
एक दूसरे से जो बाँधे हमें
बाहों मे नन्ही सी इक जान हो
आबाद हो छोटा सा घर
लग ना सके किसी की नज़र

मेरे दिल मे .... ठहरा है


वार्षिक संगीतमाला 2015

शनिवार, जनवरी 26, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 15 :जिया रे जिया रे जिया जिया रे जिया रे...

वार्षिक संगीतमाला की पन्द्रहवीं पॉयदान पर पहली और इस साल की संगीतमाला में आख़िरी बार दाखिल हो रही है ए आर रहमान और गुलज़ार की जोड़ी। वैसे तो ये दोनों कलाकार मेरे प्रिय हैं पर मेरा ऐसा मानना है कि जितना अच्छा परिणाम रहमान जावेद अख़्तर के साथ  देते रहे हैं वो गुलज़ार के साथ उनकी जोड़ी में दिखाई नहीं देता । 'जब तक है जान' के गीत 'छल्ला' पर भले ही गुलज़ार फिल्मफेयर एवार्ड लेने में कामयाब रहे हों पर उनकी लेखनी के प्रेमियों को इस एलबम से जितनी उम्मीदें थी उस हिसाब से उन्होंने निराश ही किया। यही हाल रहमान का भी रहा। जब तक है जान में गुलज़ार ने एक गीत में लिखा

साँस में तेरी साँस मिली तो, मुझे साँस आई.. मुझे साँस आई
रूह ने छू ली जिस्म की खुशबू, तू जो पास आई..  तू जो पास आई

पढ़ने में तो भले ही ये पंक्तियाँ आपको प्रभावित करे पर जब रहमान ने इन बोलों को संगीतबद्ध किया तो सुन कर घुटन सी होने लगी यानि साँस आने के बजाए रुकने लगी। पर जिया रे जिया रे  के लिए रहमान ने जिन दो कलाकारों पर भरोसा किया उन्होंने द्रुत गति की रिदम के इस गीत के साथ पूरा न्याय किया। ये कलाकार थे टेलीविजन के चैनल वी के रियल्टी शो पॉपस्टार की विजेता नीति मोहन और नामी गिटारिस्ट चन्द्रेश कुड़वा। ये गीत फिल्म में बिंदास चरित्र अकीरा यानि अनुष्का शर्मा पर फिल्माया जाना था। नीति ने ये गीत खुली आवाज़ में स्वछंदता से पूरी तह आनंदित होकर गाया है जिसकी गीत के मूड को जरूरत थी। (वैसे नीति इस साल एक और चर्चित गीत गा चुकी हैं जो इस संगीतमाला का हिस्सा नहीं है। बताइए तो कौन सा गीत है वो ?)


चन्द्रेश गिटार पर अपनी उँगलियों की थिरकन शुरु से अंत तक बरक़रार रखते हैं। पार्श्व से दिया उनका सहयोग गीत के रूप को निखार देता है। रहमान इंटरल्यूड्स में गिटार के साथ बाँसुरी और ताली का अच्छा मिश्रण करते हैं।
 
गुलज़ार के बोल ज़िदगी के हर लमहे को पूरी तरह से जीने के लिए हमें उद्यत करते हैं। गीतकार ने कहना चाहा है कि अगर हम जीवन की छोटी छोटी खुशियों को चुनते रहें तो उसकी मिठास ज़ेहन में सालों रस घोलती रहती है। ज़िदगी के उतार चढ़ावों को खुशी खुशी स्वीकार कर हम ना केवल ख़ुद बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी अच्छी मनःस्थिति में रख सकते हैं। जब भी ये गीत सुनता हूँ मन में एक खुशनुमा अहसास सा तारी होने लगता है। तो आइए सुनें इस गीत को



चली रे, चली रे...जुनूँ को लिए
कतरा, कतरा...लमहों को पीये
पिंजरे से उड़ा, दिल का शिकरा
खुदी से मैंने इश्क किया रे
जिया, जिया रे जिया रे

छोटे-छोटे लमहों को, तितली जैसे पकड़ो तो
हाथों में रंग रह जाता है, पंखों से जब छोडो तो
वक़्त चलता है, वक़्त का मगर रंग
उतरता है अकीरा
उड़ते-उड़ते फिर एक लमहा
मैंने पकड़ लिया रे
जिया रे जिया रे जिया जिया रे...

हलके-हलके पर्दों में, मुस्कुराना अच्छा लगता है
रौशनी जो देता हो तो, दिल जलाना अच्छा लगता है
एक पल सही, उम्र भर इसे
साथ रखना अकीरा
ज़िन्दगी से फिर एक वादा
मैंने कर लिया रे
जिया जिया रे जिया रे...
 

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