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रविवार, मार्च 11, 2012

बस एक चुप सी लगी है... नहीं उदास नहीं !

होली का हंगामा थम चुका है। सप्ताहांत की इन छुट्टियों के बाद एक अज़ीब सी शान्ति का अहसास तारी है। ये सन्नाटा उदासी का सबब नहीं। मन तो माहौल में बहती खामोशी में ही रमना चाहता है। वैसे भी उत्साह और उमंग की पराकाष्ठा के बाद कौन सा मन सुकून के दो पल नहीं चाहेगा। ऐसे पलों में जब गुलज़ार के लिखे और हेमंत दा के गाए इस गीत का साथ आपके पास हो तो समझिए बस परम आनंद है।

वैसे तो गुलज़ार और हेमंत दा का नाम जब भी एक साथ आता है तो सबसे पहले याद फिल्म ख़ामोशी की ही आती है। वो शाम कुछ अज़ीब थी, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो और तुम्हारा इंतज़ार है पुकार लो जैसे संवेदनशील गीतों को भला कौन भूल सकता है ? पर आज जिस फिल्म के गीत की बात मैं कर रहा हूँ वो गीत है फिल्म 'सन्नाटा 'से जो कि फिल्म 'ख़ामोशी' के तीन साल पहले यानि 1966 में प्रदर्शित हुई थी।

ये एक छोटा सा नग्मा है। गुलज़ार ने अंतरों में ज्यादा शब्द खर्च नहीं किए, ना ही उनके भावों में जटिलता है। जैसा कि गुलज़ार प्रेमी जानते हैं कि गुलज़ारिश गीत एकबारगी में ही पकड़ में आ जाते हैं। पर पहली बार जब मैंने इस गीत को सुना था तो कम से कम मैं तो अंदाज़ नहीं ही लगा पाया था कि इसे गुलज़ार ने लिखा है।

पर इस गीत में कुछ तो ऐसा है कि एक बार सुन कर ही आप इसके हो के रह जाते हैं। एक तो गुजरते जीवन के प्रति संतोष का भाव मन को सुकून पहुँचाता है तो दूसरी ओर जिस भावपूर्ण अंदाज़ में हेंमंत दा गीत को निबाहते हैं कि अन्तरमन तक गदगद हो जाता है। हेमंत दा ने गीत में संगीत नाममात्र का रखा है। उनके स्वर को संगत देता घड़ा और हारमोनियम पूरे गीत में पार्श्व में बजता रहा है।

वैसे ये तो बताइए मुझे इस गीत का कौन सा अंतरा सबसे प्रिय लगता है? हाँ जी वही जिसमें गुलज़ार सहर, रात और दोपहर के बदले शाम को चुनने की बात करते हैं। आख़िर इस चिट्ठे का नाम एक शाम मेरे नाम यूँ ही तो नहीं पड़ा ना :) !


बस एक चुप सी लगी है नहीं उदास नहीं
कहीं पे साँस रुकी है नहीं उदास नहीं
बस एक चुप सी लगी है

कोई अनोखी नहीं ऐसी ज़िंदगी लेकिन
खूब न हो..
मिली जो खूब मिली है.
नहीं उदास नहीं
बस एक चुप सी लगी है ...

सहर भी ये रात भी
दुपहर भी मिली लेकिन
हमीं ने शाम चुनी,
हमीं ने....शाम चुनी है
नहीं उदास नहीं
बस एक चुप सी लगी है ...

वो दास्ताँ जो हमने कही भी
हमने लिखी
आज वो ...खुद से सुनी है
नहीं उदास नहीं
बस एक चुप सी लगी है

यूँ तो ये गीत मुझे हेमंत दा की आवाज़ में ही सुनना पसंद है पर इस गीत को हेमंत दा ने लता जी से भी गवाया है। इस वर्जन में हेमंद दा ने संगीत थोड़ा भिन्न रखा है। तो चलते चलते लता जी को भी सुन लीजिए..

बुधवार, सितंबर 05, 2007

यादें किशोर दा की: वो कल भी पास-पास थे, वो आज भी करीब हैं ..समापन किश्त

जैसा कि पिछले वीडियो में लीना जी ने कहा कि किशोर कहते थे कि मरने के बाद भी लोग मेरे बारे में बातें करेंगे। और देखिए अपने मरने के बीस सालों के बाद भी वो हमारी यादों में अजर अमर हैं बहुत कुछ खामोशी फिल्म में उनके गाए हुए इस गीत की तरह जो मेरी इस श्रृंखला का प्रथम पायदान का गीत है।



विधाता ने कितने ही मोहक रंगों को समाहित कर ये प्रकृति बनाई। भोर से अर्धरात्रि तक फिज़ा के कितने रूप आते हैं और अपनी उपस्थिति से हमारा मन मोह लेते हैं। ऍसा ही एक रूप है शाम का जिससे बचपन से ही मेंने सबसे ज्यादा प्रीति कर ली है। जीवन के कितने यादगार पल इसी बेला में घटित हुए हैं और यही वज़ह हे कि मेरे चिट्ठे के नाम में भी शाम का जिक़्र है। फिर आप ही बताइए कि मेरा सर्वाधिक प्रिय गीत शाम से जुदा कैसे हो सकता है ?

यूँ तो हेमंत दा के संगीत और मेरे प्रिय गीतकार गुलज़ार के अद्भुत संगम से बनी खामोशी के सारे गीत लाजवाब हैं। पर बात अगर किशोर दा की हो तो ये गीत मेरे ज़ेहन में सबसे पहले उभरता है। इस गीत के उदास उदास बोल और धुन का ठहराव मन में यूँ चिपकता है कि लगता है कि इसमें अपने ही दर्द की प्रतिध्वनि तो नहीं। किशोर की बेमिसाल गायकी आपको उस अहसास से गीत सुनने के बाद भी काफी देर तक निकलने नहीं देती।
हर बार की तरह इसे गुनगुनाने का मेरा प्रयास...

wo shaam.mp3


वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है
वो कल भी पास पास थी, वो आज भी करीब है


झुकी हुई निगाह में, कहीं मेरा ख़याल था
दबी दबी हँसीं में इक, हसीन सा सवाल था
मैं सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो
न जाने क्यूँ लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो
वो शाम कुछ अजीब थी ...


मेरा ख़याल हैं अभी, झुकी हुई निगाह में
खुली हुई हँसी भी है, दबी हुई सी चाह में
मैं जानता हूँ, मेरा नाम गुनगुना रही है
वो यही ख़याल है मुझे, के साथ आ रही है वो


वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है
वो कल भी पास पास थी, वो आज भी करीब है


लीजिए सुनिए किशोर की आवाज़ में ये गीत


खामोशी फिल्म में ये गीत राजेश खन्ना, धर्मेन्द्र और वहीदा रहमान पर बेहद खूबसूरती से फिल्माया गया था।



ये तो थे मेरी पसंद के दस गीत पर बिना ये बताए कि किशोर दा को अपने श्रेष्ठ गीत कौन से लगते थे, ये श्रृंखला अधूरी रह जाएगी
  1. दुखी मन मेरे..., 'फंटूश' से
  2. गमग जगमग करता निकला......,'रिमझिम' से
  3. हुस्न भी है उदास उदास...., 'फ़रेब' से
  4. चिंगारी कोई भड़के..., 'अमरप्रेम' से
  5. मेरे नैना सावन भादो....., 'महबूबा' से
  6. कोई हम दम ना रहा...., 'झुमरू' से
  7. मेरे महबूब क़यामत होगी... , 'मिस्टर X इन बॉम्बे से'
  8. कोई होता जिसको अपना...., 'मेरे अपने' से
  9. वो शाम कुछ अज़ीब है...., 'खामोशी' से
  10. बड़ी सूनी सूनी है...., 'मिली' से


नौ भागों की इस श्रृंखला में मैंने किशोर के जीवन के अधिक से अधिक पहलुओं को आपके सामने लाने की कोशिश की है। मेरे इस प्रयास में अगर कोई तथ्यात्मक त्रुटि रह गई हो तो जरूर अवगत कराईएगा। जैसा कि मेंने पहले भी कहा हे कि ये एक महान कलाकार के प्रति, जिसने संगीत की ओर मुझे उन्मुख कराया, मेरी एक छोटी सी श्रृद्धांजलि है। आशा करता हूँ मेरा ये प्रयास आप सबको पसंद आया होगा।

अब इससे पहले मैं ये श्रृंखला समाप्त करूँ ..एक नज़र उन संदर्भों पर जिनके बिना इन लेखों को इस रूप में लाना संभव नहीं था।

References (संदर्भ):

  1. Kishore Kumar: A Definitive Biography by Kishore Valicha
  2. A melancholy but life-long prankster by Kuldeep Dhiman, Tribune
  3. Interview of Kishore Kumar with Pritish Nandy in the April 28, 1985 issue of Illustrated Weekly of India.
  4. Remembering RD by Raju Bharatan
  5. One evening with Kishore Kumar : India FM.com
  6. The Mystery and Mystique of Madhubala” by Mohan Deep , Magna Publishing Co. Ltd.
  7. Repertoire unlimited by Raju Bharatan
  8. Madhubala in Wikipedia
  9. Gulzar remembers R. D. Burman
  10. Asha on Kishore : Musical Nirvana.com
  11. Ruma Guha Thakurta
  12. Hamaraforums
  13. अक्षरमाला के गीतों की किताब
  14. The Versatile Genius : Downmemorylane.com

इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
  1. यादें किशोर दा कीः जिन्होंने मुझे गुनगुनाना सिखाया..दुनिया ओ दुनिया
  2. यादें किशोर दा कीः पचास और सत्तर के बीच का वो कठिन दौर... कुछ तो लोग कहेंगे
  3. यादें किशोर दा कीः सत्तर का मधुर संगीत. ...मेरा जीवन कोरा कागज़
  4. यादें किशोर दा की: कुछ दिलचस्प किस्से उनकी अजीबोगरीब शख्सियत के !.. एक चतुर नार बड़ी होशियार
  5. यादें किशोर दा कीः पंचम, गुलज़ार और किशोर क्या बात है ! लगता है 'फिर वही रात है'
  6. यादें किशोर दा की : किशोर के सहगायक और उनके युगल गीत...कभी कभी सपना लगता है
  7. यादें किशोर दा की : ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना
  8. यादें किशोर दा की : क्या था उनका असली रूप साथियों एवम् पत्नी लीना चंद्रावरकर की नज़र में
  9. यादें किशोर दा की: वो कल भी पास-पास थे, वो आज भी करीब हैं ..समापन किश्त
 

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