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मंगलवार, जनवरी 03, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 24 : माया ठगनी नाच नचावे Maya Thagni Nach Nachave

वार्षिक संगीतमाला की साल के बेहतरीन पच्चीस गीतों की अगली कड़ी में है फिल्म जय गंगाजल का गीत। संगीतकार सलीम सुलेमान और गीतकार मनोज मुन्तशिर तो हिंदी फिल्म संगीत में किसी परिचय के मुहताज नहीं पर इस गीत के यहाँ होने का सेहरा बँधता है इस गीत के गायक प्रवेश मलिक के सिर। खासकर इसलिए भी कि ये गीत हिंदी फिल्मों में गाया उनका पहला गीत है।

प्रकाश झा की फिल्में हमेशा से हमारे आस पास के समाज से जुड़ी होती हैं। समाज की अच्छाइयों बुराइयों का यथार्थ चित्रण करने का हुनर उनकी फिल्मों में दिखता रहा है। पर अगर फिल्म के गीत भी समाज का आइना दिखलाएँ तो उसका आनंद ही कुछ अलग होता है। वार्षिक संगीतमाला की 24 वीं पॉयदान के गीत का चरित्र भी कुछ ऐसा ही है। समाज के तौर तरीकों पर व्यंग्य के तीर कसते गीत कम ही सही पर पिछले सालों में भी बने हैं और एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं का हिस्सा रहे हैं। मूँछ मुड़ानी हो तो पतली गली आना...... , पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी....., सत्ता की ये भूख विकट आदि है ना अंत है...... जैसे गीत इसी कोटि के थे।


इस फिल्म का संगीत रचते समय सलीम सुलेमान को निर्देशक प्रकाश झा से एक विशेष चुनौती मिली। चुनौती ये थी कि फिल्म के नाटकीय दृश्यों पर अमूमन  दिये जाने वाले  पार्श्व संगीत के बदले उसे चित्रित करता हुआ गीत लिखा जाएगा। माया ठगनी भी इसी प्रकृति का गीत है जो फिल्म के आरंभ  में आता है और  दर्शकों को कथानक की पृष्ठभूमि से रूबरू कराता है। वैसे जीवन दर्शन से रूबरू कराते इसी फिल्म के गीत सब धन माटी में मनोज की शब्द रचना भी बेहतरीन है।

गीतकार मनोज मुन्तशिर ने गीत के बोलों में जिसकी लाठी उसकी भैंस के सिद्धांत पर चलते इस समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी पर अपने व्यंग्य बाण कसे हैं।  ये उल्टी पुल्टी व्यवस्था  एक डर भी जगाती है और साथ चेहरे पर एक विद्रूप मुस्कान भी खींच देती है । 

संगीतकार व निर्देशक को इस गीत के लिए ऐसे गायक की जरूरत थी जो लोकसंगीत में अच्छी तरह घुला मिला हो और प्रवेश ने उनकी वो जरूरत बखूबी पूरी कर दी। लोकधुन और पश्चिमी संगीत के फ्यूज़न में रचे बसे इस गीत को अगर प्रवेश ने अपनी देशी आवाज़ की ठसक नहीं दी होती तो ये गीत इस रूप में खिल नहीं पाता।

प्रवेश मलिक
नेपाल के जनकपुर धाम के एक मैथिल परिवार में जन्मे प्रवेश मलिक को अपने पिता से कविता और भाइयों से लोकगीत गायिकी का माहौल बचपन से मिला। बिहार और नेपाल में संगीत की शुरुआती शिक्षा के बाद प्रवेश ने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में परास्नातक की डिग्री भी हासिल की। अनेक गैर फिल्मी एलबमों में संगीत संयोजन से लेकर गायिकी तक करने वाले प्रवीण सूफी रॉक बैंड सानिध्य से भी जुड़े रहे हैं। माया ठगनी में बाँसुरी की धुन के साथ जब प्रवीण की आवाज़ ए य ऐ .. ए य ऐ. करती हुई लहराती है तो मन बस उस सोंधी मिठास में झूम उठता है।

 इस ज्यूकबॉक्स का पहला गीत ही माया ठगनी है। यहाँ आप पूरा गीत सुन पाएँगे।

 

माया ठगनी नाच नचावे , माया ठगनी नाच नचावे
इहे ज़माना चाले रे. अब इहे ज़माना चाले रे
डर लागे और हँसी आवे, अब इहे ज़माना चाले रे

डंका उसका बोलेगा,, डंडा जिसके हाथ में
घेर के पहले मारेंगे,बात करेंगे बाद में
हवा बदन में सेंध लगावे......, हवा बदन में सेंध लगावे
इहे ज़माना चाले रे, अब इहे ज़माना चाले रे
डर लागे और हँसी आवे, अब इहे ज़माना चाले रे

कोयल हुई रिटायर, कौवे गायें दरबारी
कौवे गाये दरबारी, कौवे गायें  दरबारी
आ…., दरबारी
कोयल हुई रिटायर, कौवे गायें  दरबारी

बिल्ली करती है भैया, यहाँ दूध की चौकीदारी
यहाँ दूध की चौकीदारी, यहाँ दूध की चौकीदारी
भोले का डमरू मदारी बजावे....., भोले का डमरू मदारी बजावे
इहे ज़माना चाले रे, अब इहे ज़माना चाले रे
डर लागे और हँसी आवे, अब इहे ज़माना चाले रे


और ये है गीत का संक्षिप्त वीडियो वर्सन

शुक्रवार, जनवरी 18, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 18 : ख़्वाहिशों का चेहरा क्यूँ धुंधला सा लगता है ?

वार्षिक संगीतमाला की 18 वीं पॉयदान पर इस गीतमाला में आखिरी बार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है सलीम सुलेमान की जोड़ी। जोड़ी ब्रेकर और हीरोइन के अधिकांश गीतों में वो कोई नया कमाल नहीं दिखा सके। उनके कई गीतों में उनकी पुरानी धुनों की झलक भी मिलती रही। अगर हीरोइन का ये दूसरा गीत इस गीतमाला में दाखिला ले रहा है तो इसकी वज़ह सलीम सुलेमान का संगीत नहीं बल्कि गीतकार और पटकथा लेखक निरंजन अयंगार के बोल हैं।

फैशन या कुर्बान के गीतों को याद करें तो आपको पियानों पर  इन दोनों भाइयों की पकड़ का अंदाजा हो जाएगा।  हीरोइन फिल्म का ये गीत भी पियानों की मधुर धुन से शुरु होता है। पर जैसे ही पौने दो मिनटों बाद इंटरल्यूड में संगीत सॉफ्ट रॉक का स्वरूप ले लेता है गीत का आनंद आधा रह जाता है।

पर सलीम सुलेमान जहाँ चूकते हैं उसके बाद भी निरंजन अयंगार के शब्द अपनी मजबूती बनाए रखते हैं। एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं में शामिल होने वाला निरंजन का ये तीसरा गीत है। वार्षिक संगीतमाला 2010 में My Name is Khan के दो गीत सजदा.... और नूर ए ख़ुदा... शामिल हुए थे और तभी मैंने इस तमिल मूल के लेखक की गीतकार बनने की कहानी आपसे बाँटी थी। हीरोइन फिल्म के इस गीत में कमाल की काव्यात्मकता है।इसलिए गीत के बोल पढ़ते हुए भी गीतकार की लेखनी को दाद देने को जी चाहता है। अपनी तारीफ़ पर वो कुछ ऐसी प्रतिक्रिया देते हैं
मुझे अच्छा लगता है जब लोग मेरा काम सराहते हैं। पर एक मँजा हुआ गीतकार समझे जाने के लिए मुझे अभी ढेर सारा काम करना है। जब हम गुलज़ार साहब के कृतित्व पर टिप्पणी करते हैं तो हमारे ज़ेहन में उनका वर्षों से किया गया अच्छा काम रहता है। मैं अपनी एक सफलता से खुश नहीं होना चाहता और ना ही किसी एक विफलता से निराश।
निरंजन का ये गीत हमारी उस मानसिकता की पड़ताल करता है जो हमें अपनी इच्छाओ का दास बना देती है। एक चाह पूरी हुई कि दूसरी ने डेरा डाल दिया। उनको पूरा करने की सनक कब हमारी छोटी छोटी खुशियों , हमारे बने बनाए रिश्तों को डस लेती हैं इसका हमें पता ही नहीं चलता। इसलिए निरंजन गीत में कहते हैं

ख़्वाहिशों का चेहरा क्यूँ धुंधला सा लगता है
क्यूँ अनगिनत ख़्वाहिशें हैं
ख़्वाहिशों का पहरा क्यूँ, ठहरा सा लगता है
क्यूँ ये गलत ख़्वाहिशें हैं

हर मोड़ पर, फिर से मुड़ जाती हैं
खिलते हुए, पल में मुरझाती हैं
हैं बेशरम, फिर भी शर्माती हैं ख़्वाहिशें

ज़िंदगी को धीरे धीरे डसती हैं ख़्वाहिशें
आँसू को पीते पीते हँसती हैं ख़्वाहिशें
उलझी हुई कशमकश में उमर कट जाती है


निरंजन हमें आगाह करते हैं कि ख़्वाहिशों के इस भँवर में फँसे इंसान की नियति उसी भँवर में डूबने की होती है। खुशियों की चकाचौंध में आँखें मिचमिचाने से क्या ये अच्छा नहीं कि उसकी एक हल्की किरण की गुनगुनाहट का हम आनंद लें ?

आँखें मिच जाएँ जो उजालों में
किस काम की ऐसी रोशनी
भटका के ना लाए जो किनारों पे
किस काम की ऐसी कश्ती

आँधी है, धीरे से हिलाती है
वादा कर धोखा दे जाती है
मुँह फेर के, हँस के चिढ़ाती हैं ख़्वाहिशें

ज़िंदगी को धीरे धीरे डसती हैं ख़्वाहिशें


इस गीत को  गाया है श्रेया घोषाल ने। इस में कोई दो राय नहीं कि नीचे और ऊँचे सुरों में भी वो गीत के शब्दों की गरिमा के साथ पूरी तरह न्याय करती हैं। तो आइए श्रेया की आवाज़ के साथ डूबते हैं हम ख़्वाहिशों के इस समर में...

गुरुवार, जनवरी 10, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 20 : कुछ तो था तेरे मेरे दरमियाँ...

वार्षिक संगीतमाला की पॉयदान संख्या 20 पर पहली बार इस साल दाखिल हो रही है संगीतकार सलीम सुलेमान और इरशाद कामिल की जोड़ी, फिल्म जोड़ी ब्रेकर के इस गीत के साथ। इरशाद कामिल रूमानी गीतों में हमेशा से अपना हुनर दिखाते आए हैं और ये गीत भी उसकी एक मिसाल है। प्रेमानुभूति की गहनता कवि हृदयों को नए नए तरीके से अपनी बात कहने का अवसर देती रही है। यही वज़ह है कि दशकों से ऍसे गीतों को सुनते रहने के बावज़ूद भी हर साल हमें कुछ ऐसे गीत सुनने को मिल ही जाते हैं जिनकी काव्यात्मकता दिल को छू जाती है। 


प्रेम में रिश्ते बनते हैं, पलते हैं, प्रगाढ़ होते हैं और फिर टूट भी जाते हैं। पर रिश्तों को तोड़ना किसी के लिए आसान नहीं होता। बरसों लगते हैं उन साझी यादों को मिटाने के लिए। जो मंजिलें साथ साथ चल कर सामने दिखती थीं वो एकदम से आँखों से ओझल हो जाती हैं और हम भटकने लगते हैं मन के बियावान जंगलों में निरुद्देश्य..... दिशाविहीन.....

इरशाद क़ामिल इन्ही भावनाओं को अपने बोलों में खूबसूरती से उतारते हैं।.सलीम सुलेमान का संगीत तो मधुर है पर एक Déjà vu का सा आभास देता है। गीत के पार्श्व में गिटार और तबले की संगत अंत तक चलती है। प्रीतम और विशाल शेखर की हिंदी अंग्रेजी मिश्रित शैली को यहाँ सलीम सुलेमान भी कुशलता से अपनाते नज़र आते हैं। तो आइए सुनें शफक़त अमानत अली खाँ की आवाज़ में ये गीत..



लफ़्ज़ों से जो था परे
खालीपन को जो भरे
कुछ तो था तेरे मेरे दरमियाँ
रिश्ते को क्या मोड़ दूँ
नाता यह अब तोड दूँ
या फिर यूँ ही छोड़ दूँ ,
दरमियाँ
बेनाम रिश्ता वो ..बेनाम रिश्ता वो ,
बेचैन करता जो हो ना .. सके जो बयान , दरमियाँ दरमियाँ
दरमियाँ दरमियाँ दरमियाँ दरमियाँ कुछ तो था तेरे मेरे दरमियाँ

Oh its a special feeling
These moments between us
How will I live without you

आँखों में तेरे साये चाहूँ तो हो न पाए
यादों से तेरी फासला हाय
जा के भी तू ना जाए
ठहरी तू दिल में हाए
हसरत सी बन के क्यूँ भला
क्यूँ याद करता हूँ मिटता हूँ बनता हूँ
मुझको तू लाई यह कहाँ
बेनाम  रिश्ता  वो..दरमियाँ

Hard for us to say
It was so hard for us to say
Can't close a day by day
But Then the world's got me in way

चलते थे जिन पे हम तुम
रास्ते वो सारे हैं गुम
अब  ढूँढें कैसे  मंजिलें
रातें हैं जैसे मातम
आते हैं दिन भी गुमसुम
रूठी हैं सारी महफ़िलें
इतना सताओ ना, यूँ याद आओ ना
बन जाएँ आँसू ही जुबाँ
बेनाम  रिश्ता  वो..दरमियाँ

इस गीत के एक अंतरे को श्रेया घोषाल ने भी गाया है। श्रेया से ये गीत धीमे टेम्पो में गवाया गया है। गिटार की बीट्स की जगह पियानो की टनटनाहट के बीच से आती श्रेया की मधुर आवाज़ दिल पर सीधे चोट करती है।


सोमवार, जनवरी 07, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 22 : मेरे साइयाँ रे, साचा बोले ना झूठा माहिया रे...

वार्षिक संगीतमाला की अगली पॉयदान पर के गीत को लिखा है अमिताभ भट्टाचार्य ने। बेवफाई से व्यथित हृदय की वेदना को व्यक्त करते इस गीत को गाया है राहत फतेह अली खाँ ने। गीत साइयाँ के कोरस से शुरु होता है और जैसे ही  राहत के स्वर में मेरे साइयाँ रे की करुण तान आपके कानों में पड़ती हैं आपको गीत का मूड समझने में देर नहीं लगती। फिल्म 'हीरोइन' के इस गीत की धुन बनाई है सलीम सुलेमान ने। दर्द की अभिव्यक्ति के लिए इंटरल्यूड्स में वॉयलिन का प्रयोग संगीतकार बखूबी करते हैं।


प्रेम की सबसे बड़ी शर्त है आपसी विश्वास और एक दूसरे के प्रति सम्माऩ। पर जो आपका सबसे प्रिय हो वही आपके भरोसे की धज्जियाँ उड़ा दे तो..पैरों तले ज़मीन खिसकने सी लगती है। सच्चा प्यार कुछ होता भी है इस पर भी मन में संशय उत्पन्न होने लगता है। अपने आस पास के लोग, सारी दुनिया  बेमानी लगने लगती है। 

अमिताभ के बोल इसी टूटे दिल की भावनाओं को टटोलते हैं इस गीत में। पर अमिताभ भट्टाचार्य के शब्दों से ज्यादा राहत की गायिकी और गीत की लय श्रोताओं को अपनी ओर खींचती है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को।

साइयाँ रे, मेरे साइयाँ रे
साचा बोले ना झूठा माहिया रे हो
मेरे साइयाँ रे, साइयाँ रे
झूठी माया का झूठा है जिया रे हो
अब किस दिशा जाओ, कित मैं बसेरा पाऊँ
तू जो था मैं सँभल जाऊँ
साइयाँ रे
मेरे साइयाँ रे
दामन में समेटे, अँधेरा लाई है
बहुरूपिया रौशनी
हो...लोरियाँ गाए तो
नींदे जल जाती हैं
लागे कलसुरी चाँदनी
दिल शीशे का टूटा आशियाँ रे
साइयाँ रे, मेरे साइयाँ रे

रविवार, जनवरी 08, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 21 : यूँ रुह की ऊँगलियों से, खींची है तूने लकीरें..आफ़रीन

दोस्तों वार्षिक संगीतमाला की चार पॉयदानों को पार करते हम आ पहुँचे हैं, गीतमाला की 21 वीं सीढ़ी पर जहाँ का गीत है फिल्म अज़ान  से। इस गीत की धुन बनाई है संगीतकार सलीम सुलेमान ने और इसे लिखने वाले हैं अमिताभ भट्टाचार्य

अमिताभ भट्टाचार्या एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं के लिए नया नाम नहीं हैं।  वर्ष 2008 में जहाँ आमिर के लिए उनका लिखा नग्मा सरताज गीत की बुलंदियों को छू गया था वहीं पिछले साल उड़ान में लिखे उनके गीतों ने खासा प्रभावित किया था। पर गंभीर और अर्थपूर्ण लेखन से अपनी पहचान बनाने वाले अमिताभ ने इस साल हर तरह यानि हर 'जेनर' (genre) के गीत लिखे। पर थैंक्यू ,हाउसफुल, रिकी बहल.., लव का दि एण्ड जैसी तमाम फिल्मों में उन्होंने एक तरह से अपने प्रशंसकों को निराश ही किया। लोकप्रियता के मापदंडों से देखें तो इस साल उनकी सबसे बड़ी सफ़लता देलही बेली थी जिसके गीत डी के बोस के बारे में मैं अपनी राय यहाँ ज़ाहिर कर चुका हूँ। इसके आलावा फिल्मों  'रेडी' के लिए लिखा उनका आइटम सांग भी खूब बजा।

बंगाली होते हुए भी  हिंदी और उर्दू पर समान पकड़ रखने वाला ये गीतकार लखनऊ से ताल्लुक रखता है। फिल्म अज़ान में इस गीत के बोलों पर ध्यान देने से उनकी ये सलाहियत साफ नज़र आती है। इस गीत का मुखड़ा है आफ़रीन हो आफ़रीन..। अज़ान तो आप जानते ही हैं कि नमाज़ की पुकार को कहते हैं पर इससे पहले कि इस गीत के बारे में बात की जाए ये प्रश्न आपके दिल को मथ रहा होगा कि ये आफ़रीन क्या बला है? दिलचस्प बात  है कि ये शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की और उर्दू में भिन्न भिन्न अर्थों से जाना जाता है। अरबी में इसका मतलब खूबसूरत, उर्दू में बेहतरीन और फ़ारसी में भाग्यशाली होता है। वैसी गीत को पर्दे पर देखने ने सहज अंदाजा लग जाता है कि यहाँ आफ़रीन नायिका की खूबसूरती को इंगित करने के लिए प्रयुक्त हुआ है।
सच पूछिए तो अज़ान के लिए अमिताभ के लिखे इस नग्मे की हर पंक्ति से प्रेम की किरणें फूटती नज़र आती हैं। गीत का प्यारा मुखड़ा गीत के मूड को बना देता है और उसके बाद सुनने वाला गीत में व्यक्त भावनाओं के साथ बहता चला जाता है

संगीतकार सलीम सुलेमान  इस फिल्म के बारे में कहते हैं कि
हमने इसके संगीत को पवित्र रखने की कोशिश की है जिससे की इसका हर गीत एक प्रार्थना के समक्ष लगे। आप देखेंगे कि फिल्म के प्रेम गीतों में भी एक भक्ति का भाव उभर कर आता है। इसके लिए हमने गीतों की गति मंद रखी ताकि उनके अंदर के भाव श्रोताओ तक पहुँचे।

मेरे ख्याल से सलीम सुलेमान का कथन आफ़रीन के संदर्भ में शत प्रतिशत सही बैठता है खासकर जब आप इसे राहत जैसे बेमिसाल गायक की आवाज़ में सुनें। गीत के इंटरल्यूड्स में गिटार और पियानो का प्रयोग मन को सुकून देता है। तो देर किस बात की आइए लगाते हैं प्रेम की वैतरणी में डुबकी फिल्म अज़ान के इस गीत के साथ..



यूँ रुह की ऊँगलियों से
खींची है तूने लकीरें
तसवीर है रेत की वो
या ज़िंदगी है मेरी रे

जख़्मों को तूने भरा है
तू मरहमों की तरह है
आफ़रीन हो आफ़रीन...आफ़रीन हो आफ़रीन

तेरे पहलू को छू के
महकी है खुशबू में
आब ओ हवा आफ़रीन हो हो
दुनिया बदल जाए
तू जो मुझे मिल जाए
इक मर्तबा आफ़रीन आफ़रीन आफ़रीन....

ये मरहबा रूप तेरा
दिल की मिटी तिश्नगी रे
सारे अँधेरे फ़ना हों
ऐसी तेरी रोशनी रे
जख़्मों को तूने भरा है
तू मरहमों की तरह है
आफ़रीन आफ़रीन...

वैसे इस गीत के दो वर्जन हैं। फिल्म में सलीम का गाया वर्सन प्रयुक्त हुआ है।

रविवार, जनवरी 09, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 23 : यादों के नाज़ुक परों पे चला आया प्यार...

वार्षिक संगीतमाला की 23 वीं पॉयदान पर है एक प्यारा सा मीठा सा रोमांटिक नग्मा जिसे गाया है मोहित चौहान ने। फिल्म 'आशाएँ' के इस गीत को संगीत से सँवारा हैं सलीम सुलेमान की जोड़ी ने। सलीम सुलेमान ने अपने संगीतबद्ध इस गीत में मन को शांत कर देने वाला संगीत रचा है। गीत की शुरुआत पिआनो की धुन से होती है। पूरे गीत में संगीतकार द्वय ने वेस्टर्न फील बनाए रखा है जो उनके संगीत की पहचान रहा है। भारतीयता का पुट भरने के लिए तबले का बीच बीच में अच्छा इस्तेमाल हुआ है।

पर इस गीत का सबसे मजबूत पहलू है मोहित चौहान की गायिकी और मीर अली हुसैन के बोल। मीर अली हुसैन एक गीतकार के रूप में बेहद चर्चित नाम तो नहीं पर चार साल पहले वो तब पहली बार सुर्खियों में आए थे जब फिल्म डोर का गीत संगीत खूब सराहा गया था। हुसैन को ज्यादा मौके सलीम सुलेमान ने ही दिये हैं और उन्होंने मिले इन चंद मौकों पर अपने हुनर का परिचय दिया है। सहज शब्दों में हुसैन आम संगीत प्रेमी के दिलों को छूने का माद्दा रखते हैं। मिसाल के तौर पर ये पंक्तियाँ मोहब्बत का दरिया अजूबा निराला..जो बेख़ौफ़ डूबा वही तो पहुँच पाया पार  या फिर कभी जीत उसकी है सब कुछ गया हो जो हार तुरंत ही सुनने में अच्छी लगने लगती हैं।

और जब मोहित डूबते उतराते से यादों के नाजुक परों पर उड़ते हुए हमारे कानों में प्रेम के मंत्र फूकते हैं तो बरबस होठों से गीत फूट ही पड़ता है। तो आइए सुनें और मन ही मन गुनें मोहित चौहान के साथ इस गीत को




ख़्वाबों की लहरें, खुशियों के साये
खुशबू की किरणें, धीमे से गाये
यही तो है हमदम, वो  साथी, वो  दिलबर, वो यार
यादों के नाज़ुक परों पे चला आया प्यार
चला आया प्यार, चला आया प्यार

मोहब्बत का दरिया अजूबा निराला
जो ठहरा, वो पाया कभी ना किनारा
जो बेख़ौफ़ डूबा वही तो पहुँच पाया पार
यादों के नाज़ुक परों पे चला आया प्यार
चला आया प्यार, चला आया प्यार

कभी ज़िन्दगी को सँवारे सजाये
कभी मौत को भी गले से लगाये
कभी जीत उसकी है सब कुछ गया हो जो हार
यादों के नाज़ुक परों  पे चला आया प्यार
चला  आया  प्यार, चला  आया  प्यार

ख़्वाबों की लहरें, खुशियों के साए.....

फिल्म में इस गीत को जान अब्राहम पर फिल्माया गया है



वार्षिक संगीतमाला 2010 से जुड़ी प्रविष्टियो को अब आप फेसबुक पर बनाए गए एक शाम मेरे नाम के पेज पर यहाँ भी देख सकते हैं।

शनिवार, अक्टूबर 23, 2010

साजिश में शामिल सारा ज़हाँ है, हर ज़र्रे ज़र्रे की ये इल्तिज़ा है,ओ रे पिया...

राहत फतेह अली खाँ मौसीकी की दुनिया में एक ऐसा नाम है जिसे सुनकर ही मन इस सुकून से भर उठता है कि अब जो आवाज़ कानों में छलकेगी वो दिलो दिमाग को यकीनन 'राहत' पहुँचाएगी। हिंदी फिल्म पाप के अपने गाए गीत लगन लागी तुमसे मन की लगन से.. अपना बॉलीवुड़ का सफ़र शुरु करने वाले राहत हर साल कुछ चुनिंदा गाने गाते हैं पर कमाल की बात ये हैं कि उनमें से अधिकांश आम और खास दोनों तरह के संगीतप्रेमियों के दिल में समान असर डालते हैं।
इस साल भी उन्होंने कुछ कमाल के गीत गाए हैं और इस बात का सुबूत आप एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला 2010 में निश्चय ही पाएँगे। पर इस ब्लॉग पर होने वाले सालाना वार्षिक संगीतमाला का जलसे में तो अभी भी करीब ढाई महिने का समय बाकी है।

राहत साहब का नाम अक्सर उनके चाचा नुसरत फतेह अली खाँ के साथ लिया जाता है। कव्वालियों के बेताज बादशाह नुसरत की सांगीतिक विरासत को राहत ने आगे बढ़ाने की कोशिश की है। पर उनके साथ अपनी किसी तरह की तुलना को वो बेमानी बताते हैं। राहत एक ऍसे परिवार में पैदा हुए जहाँ सिर्फ संगीत की तालीम को असली पढ़ाई माना जाता था। सात साल की आयु से ही उन्हें संगीत की शिक्षा दी जाने लगी थी। और तो और क्या आप मानेंगे की नौ साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने अपना पहला स्टेज शो दे दिया था।

संगीत के प्रति उनका ये समर्पण उनकी गायिकी में झलकता है। वे कोई गीत तभी गाते हैं जब उसके बोल उन्हें पसंद आते है् अन्यथा वो गीत गाने से ही मना कर देते हैं। किसी गीत के बोल उसकी आत्मा होते हैं। शायद यही वज़ह है कि गाते वक़्त अपने को गीत की भावनाओं से इस क़दर जुड़ा पाते हैं मानो गीतकार की कही हुई बातें उन पर खुद ही बीत रही हैं।

चलिए आज आपको राहत साहब का वो गाना सुनवाते हैं जो उन्होंने वर्ष 2008 में सलीम सुलेमान के संगीतनिर्देशन में फिल्म 'आजा नच ले' के लिए गाया था। इस गीत के बोल लिखे थे जयदीप साहनी ने। जयदीप के इस गीत में अपने पिया के लिए एक विकल पुकार है। पूरे गीत के बोलों में जगह जगह हाए शब्द का प्रयोग हुआ है। राहत जितनी बार 'हाए' कहते हैं हर बार उसका लहज़ा और उस से जुड़ी तड़प रह रह कर उभरती है।




ओ रे पिया हाए..हाए..हाए

उड़ने लगा क्यूँ मन बावला रे
आया कहाँ से ये हौसला रे
ओ रे पिया हाए

वैसे भी जब हवा की छूती सरसराहट, बारिश की मचलती बूँदें सब मिलकर उनकी ही याद दिलाएँ तो फिर मन को मसोस कर कहाँ तक रखा जा सकता है...

तानाबाना तानाबाना बुनती हवा हाए..
बुनती हवा
बूँदें भी तो आए नहीं, बाज यहाँ हाए..
साजिश में शामिल सारा ज़हाँ है
हर ज़र्रे ज़र्रे की ये इल्तिज़ा है
ओ रे पिया, ओ रे पिया हाए
ओ रे पिया

राहत की गायिकी का सबसे सुखद पहलू है, उनका अपनी गायिकी में शास्त्रीय संगीत की सीखी हुई विधा का अद्भुत प्रयोग। उनके लगभग हर गीत में एक सरगम सुनने को आपको मिलेगी जिसका टेम्पो सरगम के साथ बढ़ता चला जाता है। गीत के साथ जब अंतरे के बाद इस सरगम को सुनते हैं तो गीत प्रेम की भावनाओं से भी कहीं आगे आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। राहत की गायिकी का ये पहलू उन्हें दूसरे गायकों से अलग कर देता है।

नि रे, रे रे गा
गा गा मा
मा मा पा
पा मा गा रे सा
सा रे रे सा
गा गा रे
मा मा गा
पा पा मा
धा धा पा
नि नि सा सा सा
पा सा मा पा धा नि सा नि
रे नि सा सा सा....

नज़रें बोलें दुनिया बोले
दिल कि ज़बाँ हाए दिल कि ज़बाँ
इश्क़ माँगे इश्क़ चाहे कोई तूफाँ

हाए चलना आहिस्ते इश्क नया है
पहला ये वादा हमने किया है
ओ रे पिया हाए ..

नंगे पैरों पे अंगारो
चलती रही हाए चलती रही
लगता है कि गैरों में
मैं पलती रही हाए
ले चल वहाँ जो
मुल्क तेरा है
ज़ाहिल ज़माना
दुश्मन मेरा है
ओ रे पिया हाए ..

राहत को 'लाइव' इस गीत को गाते देखना चाहेंगे....


एक शाम मेरे नाम पर राहत फतेह अली खाँ

गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 : पॉयदान संख्या 11 -बावली सी प्रीत मोरी अब चैन कैसे पावे,आजा रसिया मोहे अंग लगा ले ...

वार्षिक संगीतमाला की ग्यारहवीं पॉयदान का गीत एक ऐसा गीत हे जिससे शायद आप अभी तक अनजान हों। वैसे तो ये गीत जिस फिल्म से है उसका विभिन्न चैनलों पर काफी प्रमोशन किया गया था। पर प्रमोशन के दौरान इस गीत के बजाए अन्य गीतों को ज्यादा तरज़ीह दी गई। इस गीत की गायिका का फिल्मों के लिए गाया ये सिर्फ तीसरा गीत है। पर इनकी गायिकी का कमाल देखिए कि पिछले साल अपने पहले गीत के लिए इन्हें फिल्मफेयर एवार्ड के लिए नामित कर दिया गया।


आप भी सोच रहे होंगे कि ये बंदा पहेलियाँ ही बुझाता रहेगा या गायिका का नाम भी बताएगा। तो चलिए आपकी उत्सुकता भी शांत किए देते हैं। ये गायिका हैं श्रुति पाठक जिनका फैशन फिल्म के लिए गाया गीत मर जावाँ... बेहद लोकप्रिय हुआ था और पिछले साल मेरी संगीतमाला की 16 वीं पॉयदान पर बजा भी था। पर उस पोस्ट में श्रृति के बारे में आपसे ज्यादा बातें नहीं हो पाई थीं।

27 वर्षीय श्रुति पाठक गुजरात से ताल्लुक रखती हैं। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा श्रुति ने अपने गुरु दिवाकर ठाकुर जी से अहमदाबाद में ली। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो मुंबई आ गईं। फिलहाल वो सुनील गुरगावकर से संगीत की शिक्षा ले रही हैं। यूँ तो श्रुति का नाम फैशन फिल्म के संगीत रिलीज होने के बाद चमका पर उन्हें गाने का पहला मौका ले के पहला पहला प्यार... के रीमिक्स वर्सन (एलबम - बेबी डॉल) को गाने में मिला था। अगला मौका मिलने में श्रुति को 3 साल लग गए और इसके लिए नवोदित संगीतकार अमित त्रिवेदी से उनकी जान पहचान काम आई जिन्होंने फिल्म Dev D में उन्हें गाने का मौका दिया।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि श्रुति गाने के साथ साथ गीत लिखने का शौक भी रखती हैं। देव डी के गीत पायलिया .... को गाने के साथ उसे अपनी कलम से सँवारने का काम भी उन्होंने किया। श्रुति सोनू निगम की जबरदस्त प्रशंसक हैं और रोज़ कम से कम दो घंटे का समय रियाज़ में देती हैं।

आखिर क्या खास है श्रुति की आवाज़ में.. कुछ ऐसा कि आप उस आवाज़ की गहराइयों में डूबते चले जाएँ। ऐसी आवाज़ रूमानियत भरे नग्मों को आपकी संवेदनाओं के काफी करीब ले जाने की क्षमता रखती है। इसीलिए फैशन के बास फिल्म कुर्बान में जब संगीतकार सलीम सुलेमान के सामने एक शादी शुदा जोड़े के बीच प्रणय दृश्य की परिस्थिति आई तो एक बार फिर उन्होंने श्रुति पाठक को ही चुना। और श्रृति ने गीतकार प्रसून जोशी के शब्दों में निहित भावनाओं को बखूबी अपनी आवाज़ के साँचे में ढाल कर श्रोताओं तक पहुँचा दिया।

तो आइए सुनें कुर्बान फिल्म का ये गीत।



ओ रसिया...रसिया..

बावली सी प्रीत मोरी
अब चैने कैसे पावे
आ जा रसिया मोहे
अंग लगा ले

अंग लगा ले..अंग लगा ले

गेसुओं सी काली रतियाँ
अधरों पे काँपे बतियाँ
सांवली सी साँसे मोरी
अरज सुनावें
आके मोरी श्वेत प्रीत पे
रंग सजा दे

बावली सी प्रीत मोरी ....





और हाँ अगर पहले अंतरे के बाद की आवाज़ आपको अलग तरह की लगे तो बता दूँ कि गीत के बीच की ये पंक्तियाँ करीना कपूर ने पढ़ी हैं।
तन एक, जाँ एक
अपना खूँ ज़हाँ एक
ऐसे लिपटे रुह से रुह
कि हो जाए ईमाँ एक...


आशा है श्रुति की इस खास आवाज़ का फ़ायदा संगीतकार आगे भी उठाते रहेंगे जिससे हम जैसे संगीतप्रमियों को उनकी आवाज़ के अन्य आयामों का भी पता चल सके।

शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 :पॉयदान संख्या 15 - धूप खिली जिस्म गरम सा है, सूरज यहीं ये भरम सा है..

फिल्म जगत में बहुत से तो नहीं, पर कुछ पटकथा लेखक जरूर हुए हैं जिन्होंने बतौर गीतकार भी नाम कमाया है। गुलज़ार से तो हम सब वाकिफ़ हैं ही। जावेद साहब ने भी सलीम के साथ कई यादगार पटकथाएँ लिखी पर अपने गीतकार वाले रोल में तभी आए जब पटकथा लेखन का काम उन्होंने छोड़ दिया।

आज के संगीत परिदृश्य में एक ऐसा ही एक युवा गीतकार है जिसने बतौर पटकथा लेखक भी उतना ही नाम कमाया है। चक दे इंडिया जैसी पटकथा से चर्चित हुए जयदीप साहनी ने तुझमें रब दिखता है... जैसे गीत की रचना भी की है। आज इस साल वार्षिक संगीतमाला की १५ वीं पॉयदान पर पहली बार पदार्पित हुए हैं वो संगीतकार सलीम सुलेमान की जोड़ी के साथ।


जयदीप द्वारा लिखे इस गीत के बोलों में एक दार्शनिकता है जो सलीम सुलेमान के शांत बहते संगीत में उभर कर सामने आती है।

पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो
दिल बोले सोया था अब जगने दो
दिल दिल में है दिल की तमन्ना सो
..चलो जरा सी तपने दो
उड़ने दो ...उड़ने दो ...
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो


वैसे भी हम सभी उड़ना ही तो चाहते हैं या उड़ नहीं भी पाते तो उसका स्वप्न जरूर देखते हैं। चाहे वो कामयाबी की उड़ान हो या सुखों के लोक में हमेशा विचरने की चाह। पर जयदीप लक्ष्य की सोच कर उड़ान भरने का संदेश इस गीत से नहीं देते। वो रुक कर, सँभल कर उड़ान भरने को तो कहते हैं पर साथ ही ये कहना भी नहीं भूलते कि एक बार सही उड़ान भर कर भटकना भी जरूरी है। सुलझाव भरी जिंदगी की उम्मीद करने के पहले बिखराव का सामना करने की क्षमता लाना जरूरी है।

धूप खिली जिस्म गरम सा है
सूरज यहीं ये भरम सा है
बिखरी हुई राहें हजारों सुनो
थामो कोई फिर भटकने दो
उड़ने दो ...उड़ने दो ...
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो



दिल की पतंग चलो दिखाती है
ढील तो दो देखो कहाँ पे जाती है
उलझे नहीं तो कैसे सुलझोगे
बिखरे नहीं तो कैसे निखरोगे

उड़ने दो ....उड़ने दो
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो

सलीम सुलेमान ने गिटार की मधुर धुन के साथ गीत का आगाज़ किया है। सलीम मर्चेंट अपनी गायिकी से चक दे इंडिया ,फैशन, कुर्बान आदि फिल्मों में पहले ही प्रभावित कर चुके हैं। उनके स्वर की मुलायमियत गीत के मूड के साथ खूब फबती है।

तो आइए सुनें सलीम का गाया फिल्म रॉकेट सिंह का ये गीत



मंगलवार, फ़रवरी 17, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 - पायदान संख्या 8 :रूप कुमार राठौड़ की मखमली आवाज़ जो दिखाती है रब का रास्ता...

वार्षिक संगीतमाला २००८ में डेढ़ महिने का सफ़र पूरा कर हम सब आ चुके हैं आठवीं पॉयदान पर। और इस पॉयदान पर गीत उस फिल्म का जिसे लोकप्रियता में एक शाम मेरे नाम के हिंदी और रोमन संस्करणों के पाठकों ने कुल मिलाकर अबतक सबसे ज्यादा वोट दिए हैं। जी हाँ इस संगीतमाला की आठवीं पॉयदान पर फिल्म रब ने बना दी जोड़ी का वो गीत जिसे लिखा जयदीप साहनी ने, धुन बनाई सलीम सुलेमान ने और अपनी मखमली आवाज़ से निखारा रूप कुमार राठौड़ ने..


रूप कुमार राठौड़ एक ऍसे गायक हैं जिन्हें बतौर पार्श्व गायक , चुनिंदा गीत ही मिलते हैं पर उसमें वे वो प्रभाव पैदा करते हैं जो सालों साल मन से नहीं निकल पाता। अब वो चाहे बार्डर का गीत संदेशे आते हों हो या अनवर का मौला मेरे मौला। और पिछले साल मनोरमा फिल्म का गीत तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना, दे ना सकूँ में उनके लगाए बेहतरीन ऊँचे सुर, उस गीत को मेरी संगीतमाला की छठी पॉयदान तक ले गए थे।

क्या आप जानते हैं कि इतनी सधी आवाज़ के मालिक रूप कुमार राठौड़ ने संगीत का ये सफ़र एक गायक के तौर पर नहीं बल्कि तबला वादक की हैसियत से शुरु किया था? अस्सी के दशक की शुरुआत में जब ग़जलों का स्वर्णिम काल चल रहा था तब रूप कुमार राठौड़ सारे मशहूर गज़ल गायकों के चहेते तबला वादक थे। बाद में जब पत्नी सोनाली राठौड़ ने उनसे गाने के लिए प्रेरित किया तो वो गायिकी के क्षेत्र में आ गए।

रूप कुमार राठौड़ का परिवार संगीतिक विभूतियों से भरा पड़ा है। पिता पंडित चतुर्भुज राठौड़ खुद एक शास्त्रीय गायक थे। बड़े भाई श्रवण एक मशहूर संगीतकार रहे जिन्होंने नदीम के साथ मिलकर नब्बे के दशक में कई हिट फिल्में दीं और छोटे भाई विनोद भी पार्श्व गायक हैं।

अगर इस गीत को रूप साहब की आवाज़ में सुनकर आप गीत की भावपूर्ण मेलोडी से अभिभूत हो जाते हैं तो उसका श्रेय गीतकार और संगीतकार की जोड़ी को भी जाता है। जयदीप साहनी के लिए इस तरह के गीत को रचना एक अलग अनुभव था। अपने प्यार को अपना अराध्य मानने का ख्याल भारतीय संस्कृति में कोई नया नहीं है पर आजकल इस परिकल्पना को लेकर बनाए गए गीतों की तादाद बेहद कम रह गई है। जयदीप के लिए मुश्किल ये थी कि वो खुद भी इस तरह की सोच से मुतास्सिर नहीं थे फिर भी उन्होंने कहानी की माँग के हिसाब से इस विचार को अपने बोलों में ढाला और जो परिणाम निकला वो तो आप देख ही रहे हैं। जयदीप खुद अपने प्रयास से बेहद संतुष्ट हैं और कहते हैं कि
"अपनी सोच की चारदीवारी में जो गीतकार बँध के रह गया वो अलग अलग पटकथाओं के अनुरूप गीतों की रचना कैसे कर पाएगा?"

चलिए बातें तो आज बहुत हो गईं अब सुनते हैं ये बेहद प्यारा सा नग्मा


तू ही तो जन्नत मेरी, तू ही मेरा जूनून
तू ही तो मन्नत मेरी, तू ही रूह का सुकून
तू ही अँखियों की ठंडक, तू ही दिल की है दस्तक
और कुछ ना जानूँ, मैं बस इतना ही जानूँ
तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ
सज़दे सर झुकता है, यारा मैं क्या करुँ

कैसी है ये दूरी, कैसी मजबूरी
मैंने नज़रों से तुझे छू लिया
कभी तेरी खुशबू, कभी तेरी बातें
बिन माँगे ये जहां पा लिया
तू ही दिल की है रौनक, तू ही जन्मों की दौलत
और कुछ ना जानूँ, बस इतना ही जानूँ
तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ...

छम छम आए, मुझे तरसाए
तेरा साया छेड़ के चूमता..
तू जो मुस्काए, तू जो शरमाये
जैसे मेरा है ख़ुदा झूमता..
तू मेरी है बरक़त, तू ही मेरी इबादत
और कुछ ना जानूँ, बस इतना ही जानूँ
तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ ...

और पर्दे पर शाहरुख अनुष्का की जोड़ी पर फिल्माए इस मधुर गीत की झलक आप यहाँ देख सकते हैं

शनिवार, जनवरी 31, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 - पायदान संख्या 13 : जानिए हौले हौले हवा चलती है के रचित होने के पीछे की सोच

तो आ गई है वार्षिक संगीतमाला के बीचों बीच की 13 वीं पायदान और यहाँ गीत वो जो पूरे देश को अपने लफ़्जों के बल पर हौले हौले झुमा रहा है। तो किसने लिखा ये गीत? एक समय तो मीडिया में ये खबरें भी आ गईं कि इसे लिखने वाले कोई और हैं और उन सज्जन ने टीवी पर इस गीत से सुसज्जित इक किताब भी दिखा डाली जो उनके हिसाब से कई साल पहले ही छप गई थी। खैर मीडिया की कई कहानियों की तरह वो स्टोरी भी आई गई हो गई। खैर, मैं तो यही मान कर चलूँगा कि ये गीत जयदीप साहनी का ही लिखा है जो इससे पहले चक दे इंडिया के गीतों को लिख कर चर्चा में आ चुके हैं।

वेसे क्या आप बता सकते हैं कि जयदीप और जावेद अख्तर में क्या समानता है? भई इन दोनों ने फिल्म जगत मं अपने कैरियर की शुरुआत बतौर पटकथा लेखक से की। ये अलग बात है कि जावेद साहब अब गीतों की रचना में ही वक़्त लगाते हैं जबकि जयदीप अभी भी पटकथा लेखक के तौर पर ज्यादा जाने जाते हैं।

जयदीप के बारे में आपको कुछ और बताएँगे आगे की पायदानों में पर अभी तो ये जानिए कि क्या कहना है गीतकार जयदीप साहनी का इस गीत के बारे में..
संध्या अय्यर को हाल ही में दिए गए एक साक्षात्कार में जयदीप ने बताया कि "...ये गीत फिल्म के मुख्य पात्र सूरी की मनोदशा कहने का प्रयास करता है कि दिल से जुड़े मसलों के बारे में वो कैसे सोचता है। मेरा ये गीत एक ऐसे चरित्र की बात करता है जो खुद को विश्वास दिलाना चाहता है कि सब्र करने से काम अंत में जाकर बनता है। पर ये काम सूरी के लिए आसान नहीं क्योंकि उसी के दिल के दूसरे हिस्से की सोच बिल्कुल अलग है। यानि एक ओर सब्र तो दूसरी ओर लक्ष्य पाने की जल्दी। अब ना तो सूरी स्टाइलिश है, ना कोई प्रखर वक्ता और ना ही चुम्बकीय व्यक्तित्व का स्वामी। वो तो एक आम आदमी है, विद्युत विभाग का अदना सा कर्मचारी, जो वो जुमले बोल भी नहीं सकता जो भारतीय फिल्मों के नायक अक्सर प्रेम में पड़ने के बाद बोलते हैं। पर सूरी के पास एक खूबी तो है ही और वो है उसकी लगन और सच्चाई और वो अपनी इसी ताकत को खुद को बता रहा है। और इसी सोच पर मैंने इस गीत को रचा है।...."

शायद गीत की यही सच्चाई है जिसने इसे आम जन और समीक्षकों दोनों में इसे लोकप्रिय बनाया है। जयदीप साहनी के बोलों के साथ सलीम सुलेमान का संगीत पूरी तरह न्याय करता है। सुखविंदर सिंह ने हौले हौले चलने वाले नग्मे की खूबसूरत अदाएगी कर ये जतला दिया है कि उनका हुनर सिर्फ ऊँचे सुरों वाले डॉन्स नंबर तक ही सीमित नहीं।
तो आइए पहले चलें रब ने बना दी जोड़ी के इस गीत की शब्द यात्रा पर


हौले-हौले से हवा लगती है,
हौले-हौले से दवा लगती है,
हौले-हौले से दुआ लगती है, हाँ......

हाए ! हौले-हौले चंदा बढ़ता है,
हौले-हौले घूँघट उठता है,
हौले-हौले से नशा चढ़ता है... हाँ.......

तू सब्र तो कर मेरे यार
ज़रा साँस तो ले दिलदार
चल फिक्र नूँ गोली मार
यार है दिन जिंदड़ी दे चार
हौले हौले हो जाएगा प्यार, चलया
हौले हौले हो जाएगा प्यार, चलया

इश्क ए दी गलियाँ तंग हैं
शरमो शर्मीले बंद हैं
खुद से खुद की कैसी ये जंग है
पल पल ये दिल घबराए
पक पल ये दिल शरमाए
कुछ कहता है और कुछ कर जाए
कैसी ये पहेली मुआ.दिल मर जाना
इश्क़ में जल्दी बड़ा जुर्माना
तू सब्र........हौले.....प्यार

रब दा ही तब कोई होणा, करें कोई यूँ जादू टोणा
मन जाए मन जाए हाए मेरा सोणा
रब दे सहारे चल दे, ना है किनारे चल दे
कोई है ना कहारे चल दे
क्या कह के गया था शायर वो सयाना
आग का दरिया डूब के जाना
तू सब्र........हौले.....प्यार


गीत तो आप ने सुन लिया अब आइए जानते हैंइस रोचक वीडिओ में सलीम सुलेमान, जयदीप, शाहरुख, वैभवी आदि से कि कैसे बना ये गीत! (वैभवी मर्चेंट इस गीत की कोरियोग्राफर हैं।)

सोमवार, जनवरी 26, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 - पायदान संख्या 16 : मर जावाँ... भीगे भीगे सपनों का जैसे खत है

आज बारी है इस संगीतमाला के गीत नम्बर सोलह की और इस पायदान पर गीत वो जिसकी, गायिका, संगीतकार और यहाँ तक की गीतकार भी इस साल पहली बार अपनी जगह बना रहे हैं। ये गीत मैंने तब सुना जब मैं इस संगीतमाला की सारी २५ पायदानें की सूची तैयार कर चुका था। पर इस साल की सा रे गा मा पा की विजेता वैशाली म्हाणे को जब मैंने ये गीत गाते सुना तो मुझे लगा कि इस गीत के लिए तो जगह बनानी पड़ेगी। पहली बार इस गीत को सुनते ही गायिका श्रुति पाठक की पीठ थपथपाने की इच्छा होती है। इस गीत में नीचे के सुरों को जिस तरह उन्होंने निभाया है वो निसंदेह तारीफ के काबिल है।

पर इस प्रशंसा की हक़दार सिर्फ श्रुति नहीं हैं। अगर श्रुति की गहरी आवाज़ का जादू आप पर होता है तो वो इरफ़ान सिद्दकी के बोलों की वज़ह से। प्रेम में डूबी एक लड़की की भावनाओं को जब वो इरफ़ान के इन शब्दों में हम तक पहुँचाती हैं तो मन बस गुलजारिश हो जाता है।

सोचे दिल कि ऍसा काश हो
तुझको इक नज़र मेरी तालाश हो
जैसे ख्वाब है आँखों में बसे मेरी
वैसे नीदों पे सिलवटें पड़े तेरी
भीगे भीगे अरमानों की राहत है
हाए गीली गीली ख्वाहिश भी तो बेहद है
मर जावाँ मर जावाँ तेरे इश्क़ पे मर जावाँ......
इरफान सिद्दकी एक युवा गीतकार हैं और गुलज़ार से खासे प्रभावित भी। वे कहते हैं कि गुलज़ार हल्के फुल्के शब्दो के साथ गहरे शब्दों के मिश्रण की कला जानते हैं। इरफ़ान वैसे तो गीत के बोल सहज रखने पर विश्वास रखते हैं पर वो ये भी महसूस करते हैं कि उर्दू शब्दों का प्रयोग करने से गीत का असर और बढ़ जाता है। जैसे इसी गीत की चर्चा करते हुए वे कहते हैं कि उन्होंने नीचे की पंक्तियों में 'खत' और 'लत' का इस्तेमाल इसी लिहाज़ से किया
भीगे भीगे सपनों का जैसे ख़त है
हाए! गीली गीली चाहत की जैसे लत है
इसी गीत के साथ पहली बार बतौर संगीतकार सलीम सुलेमान ने इस साल की संगीतमाला में प्रवेश कर लिया है। सलीम सुलेमान इससे पहले पिछले साल डोर और चक दे इंडिया के गीतों के साथ वार्षिक संगीतमालाओं का हिस्सा बन चुके हैं। इस गीत में सलीम मर्चेंट ने अंतरे के बीच अरबी बोलों का समावेश किया है जो कुछ सुनने में इस तरह लगते हैं

रादी क्राह दी क्रावा, वल हवा वसाबाह
वादी क्राह हितावह्त, अल्लाह दुखा वसाबाह
लातेह्वाल फलाहवह्त, अल्लाह दुखा वसाबाह
वादी क्राह हितावह्त, अल्लाह दुखा वसाबाह

अब इस की लिखनें में भूलें तो अवश्य हुई होंगी पर चूंकि अरबी का जानकार नहीं हूँ इसलिए इसे नज़रअंदाज कर दीजिएगा। अंतरजाल पर इसके अनुवाद से इन लफ्ज़ों के भावों का अंदाज़ लगता है जो कुछ इस तरह से है...."भगवान साक्षी है कि तेरी याद में तरसने और अपना गुनाह कुबूल करने के बावजूद तुमने अपना वादा नहीं निभाया"

खैर सलीम का ये तरीका गाने में एक नयापन लाता है पर मुझे लगता है कि अरबी बोलों के बिना भी और हल्के संगीत संयोजन से भी गीत की प्रभाविकता बनी रहती। तो आइए सुने और देखें फैशन फिल्म का ये गीत

मर जावाँ मर जावाँ
तेरे इश्क़ पे मर जावाँ
भीगे भीगे सपनों का जैसे खत है
हाए गीली गीली चाहत की जैसे लत है
मर जावाँ मर जावाँ तेरे इश्क़ पे मर जावाँ......

सोचे दिल कि ऍसा काश हो
तुझको इक नज़र मेरी तालाश हो
जैसे ख्वाब है आँखों में बसे मेरी
वैसे नीदों पे सिलवटें पड़े तेरी
भीगे भीगे अरमानों की राहत है
हाए गीली गीली ख्वाहिश भी तो बेहद है
मर जावाँ मर जावाँ तेरे इश्क़ पे मर जावाँ......


मंगलवार, अप्रैल 15, 2008

मौला मेरे ले ले मेरी जान...सुनिए सलीम मर्चेंट का गाया ये संवेदनशील नग्मा..

आज एक गीत कुछ सूफियाना अंदाज का जिसे मैंने पिछले RMIM पुरस्कारों के दौरान नामित गीतों में होने की वज़ह से सुना था और एक बार सुनकर ही लगा था कि इसमें कुछ अलग बात है। इस गीत को फिल्म के कहानी के परिदृश्य में देखा जाए तो गीत की भावनाओं को समझने में आसानी होती है। गीत के पीछे का प्रसंग कुछ इस तरह से है ...

अपने देश के प्रति सब कुछ उत्सर्ग के के भी जब पूरी टीम की गलती का ठीकरा एक गोलकीपर पर फूटता है और अलग मज़हब होने की वजह से उसे जगह जगह गद्दार की उपाधि से विभूषित किया जाता है तो वो सोचने पर मजबूर हो जाता है। उसे लगता है कि भाई शुरु से तो मैं इसी मिट्टी का रहा, यहीं खेला, पला बढ़ा, । खुशियों के पल साथ साथ बाँटे। इसकी आन को अपना माना तो फिर आज ये सब क्यूँ सुनना पड़ा मुझे? क्या गलती हुई मुझसे। इस जलालत से तो मौत ही बेहतर थी...

इस गीत को गाया सलीम मर्चेंट के साथ कृष्णा ने । सलीम और उनके भाई सुलेमान चक दे इंडिया फिल्म से लिए गए गीत के संगीतकार हैं। सलीम सुलेमान नए संगीतकारों की जमात में एक उभरता नाम हैं। पिछले साल फिल्म डोर के लिए इनका लिखा नग्मा ये हौसला कैसे झुके काफी सराहा गया था।

इस गीत को लिखा है, जयदीप साहनी ने जो गीतकार से ज्यादा एक पटकथा लेखक की हैसियत से ज्यादा जाने जाते हैं। 'खोसला का घोसला' से लेकर 'चक दे इंडिया' में अपने पटकथा लेखन से इस कम्प्यूटर इंजीनियर ने बहुत वाहावाही लूटी है। पर इस दिल को छूने वाले गीत में उन्होंने दिखा दिया की उनकी प्रतिभा बहुआयामी है.

तो आईए सुनें ये मर्मस्पर्शी गीत...

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तीजा तेरा रंग था मैं तो
जीया तेरे ढंग से मैं तो
तू ही था मौला तू ही आन
मौला मेरे ले ले मेरी जान

तेरे संग खेली होली
तेरे संग की दीवाली
तेरे आँगनों की छाया
तेरे संग सावन आया
फेर ले तू चाहें नज़रें, चाहे चुरा ले
अब के तू आएगा रे शर्त लगा ले
तीजा तेरा रंग था मैं तो
जीया तेरे ढंग से मैं तो
तू ही था मौला तू ही आन
मौला मेरे ले ले मेरी जान

मिट्टी मेरी भी तू ही
वही मेरे घी और चूरी
वही रांझे मेरे वही हीर
वही सेवईयाँ वही खीर
तुझसे ही रूठना रे मुझे ही मनाना
तेरा मेरा नाता कोई दूजा ना जाना

तीजा तेरा रंग था मैं तो
जीया तेरे ढंग से मैं तो
तू ही था मौला तू ही आन
मौला मेरे ले ले मेरी जान

शनिवार, जनवरी 20, 2007

गीत # 15 : ये हौसला कैसे झुके, ये आरजू कैसे रुके..

इंसान की इच्छाओं की कोई सीमा नहीं...
अपने जीवन में हम कितने सपने बुनते हैं...
आने वाले कल से कितनी आशाएँ रखते हैं...
और उन्हें पाने की कोशिश भी करते हैं...
पर क्या हमारे सारे प्रयास क्या सफल हो पाते हैं ? नहीं..
और फिर आता है असफलता से उत्पन्न निराशा और हताशा का दौर
इतिहास गवाह है कि जो लोग इस मुश्किल वक्त में अपनी नाकामियों को जेहन से दूर रख अपने प्रयास उसी जोश ओ खरोश के साथ जारी रखते हैं सफलता उनका कदम चूमती है ।


१५ वीं पायदान का ये गीत इंसान की इसी Never Say Die वाली भावना को पुख्ता करता है। इसे बेहद खूबसूरती से गाया है पाकिस्तान के उदीयमान गायक शफकत अमानत अली खाँ ने। वैसे तो इनकी चर्चा इस गीतमाला में आगे भी होनी है पर जो लोग इन्हें नहीं जानते उनके लिए इतना बताना मुनासिब होगा कि वे उस्ताद अमानत अली खाँ के सुपुत्र हें और शास्त्रीय संगीत के पटियाला घराने से ताल्लुक रखते हैं।
डोर के इस गीत की धुन बनाई है, सलीम सुलेमान मर्चेंट की युगल जोड़ी ने और गीत के बेहतरीन बोलों का श्रेय जाता है जनाब मीर अली हुसैन को !
तो मेरी सलाह यही है दोस्तों कि जब भी दिल में मायूसियाँ अपना डेरा डालने लगें ये गीत आप अवश्य सुनें । आपके दिल की आवाज आपको उत्साहित करेगी उस लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए जिसे हासिल करने का स्वप्न आपने दिल में संजोया हुआ है ।

ये हौसला कैसे झुके, ये आरजू कैसे रुके ?
मंजिल मुश्किल तो क्या,
धुंधला साहिल तो क्या
तनहा ये दिल तो क्या होऽऽ

राह पे काँटे बिखरे अगर
उसपे तो फिर भी चलना ही है
शाम छुपा ले, सूरज मगर
रात को इक दिन ढलना ही है
रुत ये टल जाएगी, हिम्मत रंग लाएगी
सुबह फिर आएगी होऽऽ
ये हौसला कैसे झुके, ये आरजू कैसे रुके ?


होगी हमें जो रहमत अदा
धूप कटेगी साये तले
अपनी खुदा से है ये दुआ
मंजिल लगा ले हमको गले
जुर्रत सौ बार रहे,
ऊँचा इकरार रहे,
जिंदा हर प्यार रहे होऽऽ

ये हौसला कैसे झुके, ये आरजू कैसे रुके ?


 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
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Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
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Lolita
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स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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