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शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 :पॉयदान संख्या 15 - धूप खिली जिस्म गरम सा है, सूरज यहीं ये भरम सा है..

फिल्म जगत में बहुत से तो नहीं, पर कुछ पटकथा लेखक जरूर हुए हैं जिन्होंने बतौर गीतकार भी नाम कमाया है। गुलज़ार से तो हम सब वाकिफ़ हैं ही। जावेद साहब ने भी सलीम के साथ कई यादगार पटकथाएँ लिखी पर अपने गीतकार वाले रोल में तभी आए जब पटकथा लेखन का काम उन्होंने छोड़ दिया।

आज के संगीत परिदृश्य में एक ऐसा ही एक युवा गीतकार है जिसने बतौर पटकथा लेखक भी उतना ही नाम कमाया है। चक दे इंडिया जैसी पटकथा से चर्चित हुए जयदीप साहनी ने तुझमें रब दिखता है... जैसे गीत की रचना भी की है। आज इस साल वार्षिक संगीतमाला की १५ वीं पॉयदान पर पहली बार पदार्पित हुए हैं वो संगीतकार सलीम सुलेमान की जोड़ी के साथ।


जयदीप द्वारा लिखे इस गीत के बोलों में एक दार्शनिकता है जो सलीम सुलेमान के शांत बहते संगीत में उभर कर सामने आती है।

पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो
दिल बोले सोया था अब जगने दो
दिल दिल में है दिल की तमन्ना सो
..चलो जरा सी तपने दो
उड़ने दो ...उड़ने दो ...
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो


वैसे भी हम सभी उड़ना ही तो चाहते हैं या उड़ नहीं भी पाते तो उसका स्वप्न जरूर देखते हैं। चाहे वो कामयाबी की उड़ान हो या सुखों के लोक में हमेशा विचरने की चाह। पर जयदीप लक्ष्य की सोच कर उड़ान भरने का संदेश इस गीत से नहीं देते। वो रुक कर, सँभल कर उड़ान भरने को तो कहते हैं पर साथ ही ये कहना भी नहीं भूलते कि एक बार सही उड़ान भर कर भटकना भी जरूरी है। सुलझाव भरी जिंदगी की उम्मीद करने के पहले बिखराव का सामना करने की क्षमता लाना जरूरी है।

धूप खिली जिस्म गरम सा है
सूरज यहीं ये भरम सा है
बिखरी हुई राहें हजारों सुनो
थामो कोई फिर भटकने दो
उड़ने दो ...उड़ने दो ...
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो



दिल की पतंग चलो दिखाती है
ढील तो दो देखो कहाँ पे जाती है
उलझे नहीं तो कैसे सुलझोगे
बिखरे नहीं तो कैसे निखरोगे

उड़ने दो ....उड़ने दो
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो

सलीम सुलेमान ने गिटार की मधुर धुन के साथ गीत का आगाज़ किया है। सलीम मर्चेंट अपनी गायिकी से चक दे इंडिया ,फैशन, कुर्बान आदि फिल्मों में पहले ही प्रभावित कर चुके हैं। उनके स्वर की मुलायमियत गीत के मूड के साथ खूब फबती है।

तो आइए सुनें सलीम का गाया फिल्म रॉकेट सिंह का ये गीत



मंगलवार, अप्रैल 15, 2008

मौला मेरे ले ले मेरी जान...सुनिए सलीम मर्चेंट का गाया ये संवेदनशील नग्मा..

आज एक गीत कुछ सूफियाना अंदाज का जिसे मैंने पिछले RMIM पुरस्कारों के दौरान नामित गीतों में होने की वज़ह से सुना था और एक बार सुनकर ही लगा था कि इसमें कुछ अलग बात है। इस गीत को फिल्म के कहानी के परिदृश्य में देखा जाए तो गीत की भावनाओं को समझने में आसानी होती है। गीत के पीछे का प्रसंग कुछ इस तरह से है ...

अपने देश के प्रति सब कुछ उत्सर्ग के के भी जब पूरी टीम की गलती का ठीकरा एक गोलकीपर पर फूटता है और अलग मज़हब होने की वजह से उसे जगह जगह गद्दार की उपाधि से विभूषित किया जाता है तो वो सोचने पर मजबूर हो जाता है। उसे लगता है कि भाई शुरु से तो मैं इसी मिट्टी का रहा, यहीं खेला, पला बढ़ा, । खुशियों के पल साथ साथ बाँटे। इसकी आन को अपना माना तो फिर आज ये सब क्यूँ सुनना पड़ा मुझे? क्या गलती हुई मुझसे। इस जलालत से तो मौत ही बेहतर थी...

इस गीत को गाया सलीम मर्चेंट के साथ कृष्णा ने । सलीम और उनके भाई सुलेमान चक दे इंडिया फिल्म से लिए गए गीत के संगीतकार हैं। सलीम सुलेमान नए संगीतकारों की जमात में एक उभरता नाम हैं। पिछले साल फिल्म डोर के लिए इनका लिखा नग्मा ये हौसला कैसे झुके काफी सराहा गया था।

इस गीत को लिखा है, जयदीप साहनी ने जो गीतकार से ज्यादा एक पटकथा लेखक की हैसियत से ज्यादा जाने जाते हैं। 'खोसला का घोसला' से लेकर 'चक दे इंडिया' में अपने पटकथा लेखन से इस कम्प्यूटर इंजीनियर ने बहुत वाहावाही लूटी है। पर इस दिल को छूने वाले गीत में उन्होंने दिखा दिया की उनकी प्रतिभा बहुआयामी है.

तो आईए सुनें ये मर्मस्पर्शी गीत...

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तीजा तेरा रंग था मैं तो
जीया तेरे ढंग से मैं तो
तू ही था मौला तू ही आन
मौला मेरे ले ले मेरी जान

तेरे संग खेली होली
तेरे संग की दीवाली
तेरे आँगनों की छाया
तेरे संग सावन आया
फेर ले तू चाहें नज़रें, चाहे चुरा ले
अब के तू आएगा रे शर्त लगा ले
तीजा तेरा रंग था मैं तो
जीया तेरे ढंग से मैं तो
तू ही था मौला तू ही आन
मौला मेरे ले ले मेरी जान

मिट्टी मेरी भी तू ही
वही मेरे घी और चूरी
वही रांझे मेरे वही हीर
वही सेवईयाँ वही खीर
तुझसे ही रूठना रे मुझे ही मनाना
तेरा मेरा नाता कोई दूजा ना जाना

तीजा तेरा रंग था मैं तो
जीया तेरे ढंग से मैं तो
तू ही था मौला तू ही आन
मौला मेरे ले ले मेरी जान
 

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