
तो आज बात रूना लैला जी की क्योंकि आज इनकी ही एक गैर फिल्मी उदास नज़्म आपको सुनवा रहा हूँ जो मैंने नब्बे के दशक में सुनी थी। आपको तो पता ही होगा की रूना लैला बाँगलादेश से हैं। बेहद छोटी उम्र से उन्होंने उस्ताद हबीबद्दीन खाँ से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरु की। मात्र छः साल की आयु में उन्होंने बतौर गायक अपना जनता के सामने अपना पहला कार्यक्रम दिया।
१२ साल की उम्र में उनके गीत पाकिस्तानी फिल्म 'जुगनू' में शामिल हुए। पर ये मौका भी उन्हें अचानक हाथ लगा। गाने के लिए चुनाव उनकी बड़ी बहन दीना का हुआ था पर जिस दिन उन्हें गाना था उनका गला खराब हो गया और रूना को उनकी जगह गाने को कहा गया। नन्ही रूना को उस वक़्त तानपूरा भी पकड़ने नहीं आता था सो तिरछा ना रख कर सीधा रख कर रूना ने एक 'खयाल' गाया जो लोगों को बेहद पसंद आया। उसके बाद तो उनका कैरियर ग्राफ ऊपर ही चलता गया।
रूना बाँगलादेश, पाकिस्तान और भारत में समान रूप से लोकप्रिय हुईं। खासकर 'दमा दम मस्त कलंदर' की लोकप्रियता के बाद रूना लैला हिंदुस्तान के कोने कोने में जानी जाने लगीं थी। पाँच हजार से अधिक गीत गाने वालीं रूना, १७ भाषाओं का ज्ञान रखती हैं। कई हिंदी फिल्मों में अपनी आवाज़ दे चुकी हैं जिनमें घरौंदा फिल्म के लिए गाए उनके गीत तो मुझे बेहद प्रिय हैं। आज भी रूना विश्व के कोने कोने में अपने स्टेज शो करती रहती हैं।
मुझे रूना जी की आवाज़ हमेशा से पसंद है। और जब जब दिल में मायूसी और बेचैनी का पुट ज्यादा हो जाता हैं तो उनकी इस नज़्म को सुनना अच्छा लगता है।
ये कैसा ऐ निखरते बादलों तुम पर शबाब आया
कोई ईमान खो बैठा, कोई ईमान ले आया
फरिश्तों की इबादत से बताओ दुश्मनी क्यों है
किसी के वास्ते कोई तड़प कर जान दे आया
दिल की हालत को कोई क्या जाने
दिल की हालत को कोई क्या जाने
या तो हम जाने या ख़ुदा जाने
सुबह के साथ हैं हसीं किरणें
रात सज जाए चाँद तारों से
सुबह के साथ हैं हसीं किरणें
रात सज जाए चाँद तारों से
एक हम हैं कि क्या मुकद्दर है
कोई रिश्ता नहीं बहारों से
काश दे दें हाए ~ ~ ~
काश दे दें सुकून वीराने
दिल की हालत को कोई क्या जाने
या तो हम जाने या ख़ुदा जाने
क्या सितम है कि मोतिया बूँदें
कच्चे जख्मों को गुदगुदाती हैं
इन घटाओं का क्या करे कोई
जो सदा खून ही रुलाती हैं
अब कहाँ जाएँ हाए ~ ~ ~
अब कहाँ जाएँ दिल को बहलाने
दिल की हालत को कोई क्या जाने
या तो हम जाने या ख़ुदा जाने

अगली पोस्ट मे रूना जी का गाया मेरा मनपसंद गीत आपके सामने होगा।
10 comments:
मनीष जी क्या बात है, क्या खूब सुनवाया है आपने..और जहाँ से खरीदना है ये बता के आपने तो पुन्य का काम किया है शुक्रिया साथी
एक बधाई और स्वीकारें पचास हज़ार का आंकड़ा पार करने पर...तो आंकड़ा तो ये कहता है कि क्या बात है!
बढ़िया गाने सुनते सुनाते रहें और स्वास्थ्य लाभ करते रहें ..
बहुत खूब!
ब्लॉग जगत के संगीतालयों में एक आपका जिसमें बिना आए नही रहा जाता. शुभकामनाएँ
वाह जी...आपने तो हमारी शाम बना दी,
हम्म्म् सुना है मैने भी कि टायफाइड के बाद दिल में ऐसी ही घबराहट होती है कि या तो खुद जानो या खुदा जाने.... तेज़ एंटीबॉयटिक्स का असर है....:)
ये कैसा ऐ निखरते बादलों तुम पर शबाब आया
कोई ईमान खो बैठा, कोई ईमान ले आया
फरिश्तों की इबादत से बताओ दुश्मनी क्यों है
किसी के वास्ते कोई तड़प कर जान दे आया
वाह
सुबह के साथ हैं हसीं किरणें
रात सज जाए चाँद तारों से
एक हम हैं कि क्या मुकद्दर है
कोई रिश्ता नहीं बहारों से
क्या सितम है कि मोतिया बूँदें
कच्चे जख्मों को गुदगुदाती हैं
इन घटाओं का क्या करे कोई
जो सदा खून ही रुलाती हैं
मन को छू गईं नज़्म
विमल भाई और ममता जी गीत को पसंद करने का शुक्रिया !
पचासहजार का आंकड़ा आप जैसे लोगों के ही प्रेम से ही पार हुआ है ! बधाई के लिए धन्यवाद।
प्रत्यक्षा दुआ के लिए शुक्रिया !
समीर जी, इष्ट देव और मीनाक्षी जी रूना जी की ये नज्म आप सब को पसंद आई जानकर प्रसन्नता हुई।
कंचन आपने मेरी मनःस्थिति को सही पकड़ा है। :)नज़्म अच्छी लगी जानकर कुशी हुई।
maine runa laila ji ki aawaz me ranjish hi sahi suni thi. tab se mujhe unki awaz bahut pasand hai. ye ghazal sunwane ka shukriya.
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