सोमवार, अप्रैल 07, 2008

शहर के दुकानदारों कारोबार-ए-उलफ़त में सूद क्या ज़ियाँ क्या है, तुम न जान पाओगे...जावेद और नुसरत साहब की आवाज़ों में

शहर के दुकानदारों ...जावेद अख्तर की नज़्मों में मेरी पसंदीदा रही है। आज की दुनिया में पैसों के बल पर कुछ लोग भावनाओं को भी बिकाऊ समझने लगे हैं। पर क्या भावनाएँ बिक सकती हैं ? क्या धन के सिलबट्टे से उन्हें तौला जा सकता है? हर संवेदनशील इंसान की प्रतिक्रिया यही होगी - नहीं, हरगिज नहीं। जावेद साहब ने भी अपनी इस खूबसूरत नज़्म में यही बात रखनी चाही है।

कुछ नज़्में सुनने से ज्यादा पढ़ने में आनंद देती हैं और मेरे लिए ये नज़्म, इसी तरह की नज़्म है। इसे पढ़ते पढ़ते आवाज़ खुद-ब-खुद ऊँची हो जाती है, रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है और मन एक अलग से जोश मिश्रित आनंद में डूब जाता है। यूँ तो नज़्म का हर हिस्सा हृदय को छूता है पर नज़्म की आखिरी चार पंक्तियाँ मेरी जुबां हर वक़्त रहा करती हैं।

जानता हूँ कि तुम को जौक-ए-शायरी भी है
शख्सियत सजाने में इक ये माहिरी भी है
फिर भी हर्फ चुनते हो, सिर्फ लफ़्ज सुनते हो
इनके दरमियाँ क्या हैं, तुम ना जान पाओगे


जावेद साहब ने इस नज़्म को अपने एलबम 'तरकश' में अपनी आवाज से सँवारा है। 'तरकश' जावेद अख्तर की ग़ज़लों और नज़्मों का संग्रह है जो १९९५ में बाजार में आया। इसकी CD आप यहाँ से खरीद सकते हैं। मुझे लगा कि जावेद साहब पूरी नज़्म पढ़ने में थोड़ा और वक़्त लगाते तो शब्दों का असर और गहरा होता..



शहर के दुकाँदारों कारोबार-ए-उलफ़त में
सूद क्या ज़ियाँ1 क्या है, तुम न जान पाओगे
दिल के दाम कितने हैं ख़्वाब कितने मँहगे हैं
और नकद-ए-जाँ2 क्या है तुम न जान पाओगे


1-हानि 2- आत्मा की पूँजी

कोई कैसे मिलता है, फूल कैसे खिलता है
आँख कैसे झुकती है, साँस कैसे रुकती है
कैसे रह निकलती है, कैसे बात चलती है
शौक की ज़बाँ क्या है तुम न जान पाओगे

वस्ल1 का सुकूँ क्या हैं, हिज्र2 का जुनूँ क्या है
हुस्न का फुसूँ3 क्या है, इश्क के दुरूँ4 क्या है
तुम मरीज-ए-दानाई5, मस्लहत के शैदाई6
राह ए गुमरहाँ क्या है तुम ना जान पाओगे


1- मिलन, 2-विरह, 3-जादू 4 - अंदर, 5- जिसे सोचने समझने का रोग हो, 6- कूटनीति पसंद करने वाला

ज़ख़्म कैसे फलते हैं, दाग कैसे जलते हैं
दर्द कैसे होता है, कोई कैसे रोता है
अश्क़ क्या है नाले* क्या, दश्त क्या है छाले क्या
आह क्या फुगाँ** क्या है, तुम ना जान पाओगे


* दर्दभरी आवाज़ ** फरियाद


नामुराद दिल कैसे सुबह-ओ-शाम करते हैं
कैसे जिंदा रहते हैं और कैसे मरते हैं
तुमको कब नज़र आई ग़मज़र्दों* की तनहाई
ज़ीस्त बे-अमाँ** क्या है तुम ना जान पाओगे

* दुखियारों ** असुरक्षित जीवन

जानता हूँ कि तुम को जौक-ए-शायरी* भी है
शख्सियत सजाने में इक ये माहिरी भी है
फिर भी हर्फ चुनते हो, सिर्फ लफ़्ज सुनते हो
इनके दरमियाँ क्या हैं, तुम ना जान पाओगे


* शायरी का शौक

सूफी गायिकी के बादशाह स्वर्गीय नुसरत फतेह अली खाँ साहब ने जावेद अख्तर साहब के साथ एक एलबम किया था जिसका नाम था 'संगम' और जो HMV पर निकला था। ये नज्म इस एलबम का भी हिस्सा है। इसकी CD यहाँ उपलब्ध है। नुसरत ने इस नज़्म को एक अलग ही अंदाज में गाया है जो कि धीरे-धीरे आपके ज़ेहन में उतरता है। इसलिए इसे जब भी सुनें पर्याप्त समय लेकर सुनें और इसका लुत्फ़ उठाएँ।

Related Posts with Thumbnails

9 टिप्पणियाँ:

कंचन सिंह चौहान on अप्रैल 07, 2008 ने कहा…

puri nazm hi khubsurat...fir bhi...

जानता हूँ कि तुम को जौक-ए-शायरी* भी है
शख्सियत सजाने में इक ये माहिरी भी है
फिर भी हर्फ चुनते हो, सिर्फ लफ़्ज सुनते हो
इनके दरमियाँ क्या हैं, तुम ना जान पाओगे

bahut khub

VIMAL VERMA on अप्रैल 07, 2008 ने कहा…

मनीष जी आपकी पसंद के तो हम कायल हैं,और ये जो आप खरीदने वाला लिंक भी दे रहे हैं,ये ्तो गज़ब कर रहे हैं... शानदार पोस्ट...

PD on अप्रैल 07, 2008 ने कहा…

Superb..
वैसे "संगम" का तो हर गीत ही शानदार था.. चाहे "मैं और मेरी आवारगी हो" या "जिस्म दमकता, जुल्फ़ घनेरी" या "अब क्या सोचें"..
एक बात बहुत बढिया किया जो इसकी सीडी खरीदने का लिंक भी दे दिया..

राज भाटिय़ा on अप्रैल 07, 2008 ने कहा…

मनीष जी बहुत खुब मेरे पास हे सब लेकिन कभी कभी नेट पर सुनने का मजा ही कुछ अलग हे, बहुर मजा आया आप का धन्यवाद

Udan Tashtari on अप्रैल 07, 2008 ने कहा…

क्या क्या पेश करते हैं..आनन्द आ गया, बहुत खूब!!

SahityaShilpi on अप्रैल 07, 2008 ने कहा…

इतनी खूबसूरत नज़्म सुनवाने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद, मनीष भाई! आपकी पसंद सचमुच कमाल है!

- अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://intermittent-thoughts.blogspot.com/

Unknown on अप्रैल 08, 2008 ने कहा…

इनके दरमियाँ से इनके दरमियाँ तक कितने दरमियाँ - कैफी और गुलज़ार मिले जावेद अख्तर छूट गए - चलो इस लिंक से देखेंगे

Abhishek Ojha on अप्रैल 08, 2008 ने कहा…

अब क्या कहें... आपकी पोस्ट का इंतज़ार करने लगे हैं आजकल

Manish Kumar on अप्रैल 11, 2008 ने कहा…

नज़्म सराहने के लिए आप सबका शुक्रिया !

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie