आज मेरे ब्लॉग एक शाम मेरे नाम का छठा जन्मदिन है। गुजरे छः सालों में अपने चिट्ठे के माध्यम से मैंने वैसे लोगों का सानिध्य व प्रेम पाया है जो बगैर ब्लागिंग किए बिना मुश्किल था। सच कहूँ तो आज भी ये सिलसिला ज़ारी है।
ये आपका प्रेम ही है कि विगत छः सालों में इस ब्लॉग के पृष्ठ पलटने की संख्या (Page loads) साढ़े चार लाख और इसे ई मेल से पढ़ने वालों की संख्या 900 के करीब पहुँच गई है वो भी तब जबकि मेरे लेखन की आवृति पिछले सालों से कम हुई है।
मैं इसके लिए अपने मित्रों और इस चिट्ठे को अलग अलग ज़रिए ( e-mail, Networked Blogs, Facebook Page, Google Friend Connect) से अनुसरण करने वाले तमाम जाने अनजाने चेहरों को हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूँ और आशा करता हूँ कि उनका साथ भविष्य में भी बना रहेगा।
मैं इसके लिए अपने मित्रों और इस चिट्ठे को अलग अलग ज़रिए ( e-mail, Networked Blogs, Facebook Page, Google Friend Connect) से अनुसरण करने वाले तमाम जाने अनजाने चेहरों को हार्दिक धन्यवाद देना चाहता हूँ और आशा करता हूँ कि उनका साथ भविष्य में भी बना रहेगा।
अब वर्षगाँठ मनानी है तो कुछ अलग होना चाहिए ना हमेशा के ढर्रे से तो आइए देखें कि गुजरे साल इस चिट्ठे पर संगीत और साहित्य का ये सफ़र कैसा रहा आपकी नज़रों में..
नए पुराने गीतों की बात करते हुए जब मैं आपसे उस गीत से जुड़ी यादें पढ़ता हूँ तो बेहद आनंद आता है। चर्चा हो रही थी हिंदी गीतों में आपसी नोंक झोंक की। गीत था ठहरिए होश में आ लूँ तो चले जाइएगा। साथी चिट्ठाकार कंचन सिंह चौहान का कहना था
"ये गीत कॉलेज में खूब गाया गया है। गीत एक लड़की और ऊँहु बीच में कोई भी या सब के सब....!! वैसे प्रेमिका की उलाहना और प्रेमी के कूल रिएक्शन पर इसी फिल्म का एक गीत "तुमको होती मोहब्बत जो हमसे, तुम ये दीवानापन छोड़ देते" की वार्ता व्यक्तिगत रूप से मुझे और अधिक पसंद है।"
वहीं गुलज़ार के लिखे नग्मे पूछे जो कोई मेरी निशानी रंग हया लिखना पर फेसबुक मित्र शैली शर्मा का कहना था
"वादी के मौसम भी एक दिन तो बदलेंगे" ये गीत कई बार सुना था पर इस पक्ति पर आज पहली बार आपका लेख पढ़कर गौर किया....... और याद आ गया कि आज भी हर हिन्दुस्तानी के दिल में कही न कही ये सपना है कि कश्मीर फिर से धरती का स्वर्ग बन जाए...."
पिछले साल जगजीत सिंह की गायी ग़ज़लों के आरंभिक दौर पर विस्तार से चर्चा की थी। हिंदी ब्लॉग जगत के मेरे पसंदीदा शायरों में से एक दानिश भाई का कहना था..
"पुरानी यादों का फिर से ताज़ा हो जाना....मानो लफ्ज़ लफ्ज़ में धडकनों का महसूस होने लगना, बड़ा एहसान फरमाया आपने जनाब !! "
वहीं हिमांशु ने कहा."बाद मुद्दत यहाँ आना, और अपने प्रिय गायक जगजीत को सुनना, उनके बारे में पढ़ना अद्भुत अनुभव है ! आपकी लिखावट की कारीगरी देखते बनती है, जब आप गम्भीर गायकों/गायकी को अपनी रोचक लेखनी के सुन्दर संतुलन से सहज बना कर प्रस्तुत कर रहे होते हैं .."
जगजीत जी की पुरानी ग़ज़लों पर अपनी लेखमाला मैंने पूरी भी नहीं की थी कि वे हमारा साथ छोड़ कर चले गए। मेरी कोशिश रहेगी अपनी यादों से जुड़े उनके बाकी एलबमों को भी आपके सामने इस साल प्रस्तुत करूँ।
शम्मी कपूर ने भी पिछले साल हमारा साथ छोड़ा दिया। श्रद्धंजलि स्वरूप मैंने मोहम्मद रफ़ी के साथ उनके फिल्मी सफ़र के चंद रोचक लमहे आपके साथ बाँटे। साथी चिट्ठाकार रंजना जी ने लिखा
"काफी समय तक शम्मी जी के लटके झटके से मुझे भी खासी अरुचि रही...पर बाद में जब उनके व्यक्तित्व के विषय में जाना कि वे कितने नेकदिल इंसान हैं, तो उन्हें गंभीरता से लेने लगी..बड़ी तफ़सील में जानकारी दी आपने युगल जोड़ी की...बड़ा ही अच्छा लगा...सच है, जैसे मुकेश जी ने राज कपूर जी की शोहरत चमकाई ,वैसे ही मुहम्मद रफ़ी जी ने शम्मी जी की. गंभीर और शर्मीले स्वभाव के रफ़ी साहब ने शम्मी जी का चुहलपन कैसे ओढा होगा,सचमुच काबिले तारीफ़ है..."
हिंदी ग़ज़ल के लोकप्रिय स्तंभ अदम गोंडवी लंबी बीमारी के बाद चल बसे। उनकी कविता मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको की प्रस्तुति पर साथी चिट्ठाकार डा. सोनरूपा विशाल का कहना था..
"सामाजिक सरोकारों के कवि ,आम जन की आवाज ,विडंवनाओं के धुर विरोधी अदम जी जैसे कवि विरले ही होते हैं जो सम्मान के लिए नहीं समाज के लिए लिखते हैं ! दुखद अवसान !"
फिल्म और साहित्यिक विभूतियों के आलावा कुछ साथी चिट्ठाकार भी हमारा साथ छोड़ गए। डा. अमर कुमार को उनकी ईमानदार टिप्पणियों के लिए पूरे ब्लॉग जगत में जाना जाता था। इब्नें इंशा से जुड़ी एक नज़्म पर दिए उनके विचार इस चिट्ठे पर उनके अंतिम हस्ताक्षर थे..
आज दिल में वीरानी, अब्र बन के घिर आयी
आज दिल को क्या कहिये, बावफ़ा न हरज़ाई
"अपने ललित लेख और व्यंग्य संकलन "उर्दू की आख़िरी किताब" में इंशा ने इसे स्वीकार भी किया है.. पर वज़ह को लेकर नामालूम की अदा ओढ़ ली ।यह लाइनें बहुत उदास कर जाती हैं। इस दुर्लभ रचना से आज की प्रस्तुति विशिष्ट बन गयी है ।"
"मुनव्वर राणा की एक सी डी मेरे पास है पठानकोट में मुशायरे की, इतवार को सुनता हूँ.. घर को वो अनोखे अंदाज़ से याद करते हैं और माँ तो फेमस है ही. यहाँ लिखे सारे शेर उसमें उनके मुंह से सुनना राहत देता है, कई बार वो शेर पढ़ते पढ़ते रोने लगते हैं और उनका हाथ क्षितिज की ओर उठता है."
वहीं विभा को वरुण के बेटे को आंचलिक ऊपन्यास करार देने पर ऐतराज था..
"सुंदर समीक्षा. बाबा ने अपने मिथिला इलाके का जीवन चित्र खींचा है तो जाहिर है कि वहां की भाषा की गंध आएगी ही. मगर इसका यह मतलब नहीं कि उनके लेखन को आंचलिक लेखन के खाते में डाल दिया जाए. एक समय था, जब तथाकथित मुख्य धारा के हिंदी लेखकों ने अपनी राजनीति और अपने वर्चस्व के लिए फणीश्वर नाथ रेणु जैसे साहित्यकर को आंचलिकता के खाते में डाल दिया था. जो जिस प्रदेश की पृष्ठभूमि पर लिखेगा, उसकी लेखनी में वह भाषा बोली, संस्कृति आयेगी ही, यही सच्चे लेखक की ईमानदारी भी है. बाबा या रेणु आंचलिक नहीं पूरे देश के कथाकार हैं."
हमेशा की तरह इस चिट्ठे पर नए साल की शुरुआत हुई वार्षिक संगीतमाला के साथ और इस बार मैंने सीधे गीतकारों से बातें कर उन गीतों की तह तक पहुँचने का प्रयास किया। राजशेखर, सीमा सैनी और पंक्षी जालौनवी से बात कर लगा ही नहीं कि मैं किसी से पहली बार बात कर रहा हूँ। पंक्षी जालोनवी से जुड़ी पोस्ट पर बेहद पुख्ता टिप्पणी रही अपूर्व श्रीवास्तव की जब उन्होंने कहा..
"शुक्रिया...जालौनवी साहब के बारे मे जानना अच्छा लगा..अपनी म्यूजिक इंडस्ट्री की बिडम्बना मुझे लगती है कि गीतकार को कोई पहचान कोई हाइलाइट जल्द नही मिलती..जब तक कि वो खुद गुलजार या प्रसून जैसा सेलिब्रिटी ना हो जाये..सो कुछ अच्छे बोल भी सिंगर को कम्पोजर, ऐक्टर को ज्यादा फ़ायदा पहुचाते हैं बनिस्बत कि उन्हे लिखने वाले के.गीतकारों के लिये इंडियन-आइडल जैसे स्टेजेज भी नही होते ग्लैमर का इस्तकबाल करने के लिये...नये और अच्छे गीतकारों के बारे मे लोगों को और भी ज्यादा पता चलना चाहिये.."
"विशाल इन लफ्जों की रूह को समझते है , इनकी उदासियो को भी , ओर गुलज़ार को भी ....दरअसल शायर से मुतासिर हुए बगैर अच्छा कम्पोज़ करना मुश्किल काम है .सच कहूँ तो आर डी के बाद अगर किसी ने गुलज़ार को "पूरा "समझा है तो वो विशाल ही है ....बेकराँ मुझे बेहद अज़ीज़ है....विशाल की आवाज को बहुत सूट करता है , विशाल जानते है रहमान की तरह उन्हें कहाँ ओर कब गाना है।"
गीतकार स्वानंद किरकिरे जो मेरे फेसबुक मित्र भी हैं ने ये साली ज़िंदगी के अपने लिखे गीत को संगीतमाला में पाकर टिप्पणी की उफ्फ ये गाना जिंदा है ?
इस चिट्ठे की पुरानी पाठिका मृदुला तांबे ने कुन फ़ाया कुन की इन पंक्तियों जब कहीं पे कुछ भी नहीं था वही था को इस श्लोक से जोड़कर देखा
इस चिट्ठे की पुरानी पाठिका मृदुला तांबे ने कुन फ़ाया कुन की इन पंक्तियों जब कहीं पे कुछ भी नहीं था वही था को इस श्लोक से जोड़कर देखा
"नासदासीन नो सदासीत तदानीं नासीद रजो नो वयोमापरो यत|
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद गहनं गभीरम ||
सृष्टि से पहले सत नहीं था। असत भी नहीं, अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था। छिपा था क्या, कहाँ किसने ढका था उस पल तो अगम अतल जल भी कहां था |"
संगीतमाला के सरताज गीत रंगरेज़ पर अंकित सफ़र का कहना था
राज शेखर जी को बन्दे का सलाम! क्या खूब लिखा है, हर शब्द अपना एक अलग आकाश ढूंढ रहा है, सब मिलके अनंत हो जा रहे हैं.
पूरे साल में विभिन्न प्रविष्टियों में व्यक्त आपके उद्गारों में से कुछ को ही यहाँ समेट पाया हूँ। एक शाम मेरे नाम के संगीतमय सफ़र में आप यूँ ही मेरे साथ बने रहेंगे ऐसी आशा करता हूँ।"I was waiting for the 'Sartaj Geet' :) am thrilled its this one! When this album/song released i listened to it and talked about it so much that i almost can't say anything about it anymore except how much i love it. sheer brilliance! the lyrics and singing are super ..loved the countdown , lots of stuff i hadn't heard before. congratulations on the steady run and trust it will last a long time to come despite how busy you are :). I get breathless even thinking of how you must manage it ."
