शुक्रवार, सितंबर 13, 2013

मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार, हूँ इस पार : कैसे सचिन दा ने आत्मसात किया अपनी आवाज़ में भाटियाली लोक संगीत ?

ज़रा सोचिए एक ऐसे संगीतकार के बारे में जिसने हिंदी फिल्मों में बीस से भी कम गाने गाए हों पर उसके हर दूसरे गाए गीत में से एक कालजयी साबित हुआ हो। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ पंचम के पिता और त्रिपुरा के राजसी ख़ानदान से ताल्लुक रखने वाले सचिन देव बर्मन की। सचिन दा के संगीतबद्ध गीतों से कहीं पहले उनकी आवाज़ का मैं कायल हुआ था। जब जब रेडियो पर उनकी आवाज़ सुनी उनके गाए शब्दों की दार्शनिकता और दर्द में अपने आपको डूबता पाया। बहुत दिनों से सोच रहा था कि सचिन दा के गाए गीतों के बारे में एक सिलसिला चलाया जाए जिसमें बातों का के्द्रबिंदु में उनके संगीत के साथ साथ उनकी बेमिसाल गायिकी भी हो।


इस श्रंखला में मैंने उनके उन पाँच गीतों का चयन किया है जो मेरे सर्वाधिक प्रिय रहे हैं।  तो आज इस श्रंखला की शुरुआत बंदिनी के गीत 'ओ रे माँझी, ओ रे माँझी, ओ मेरे माँझी...मेरे साजन हैं उस पार' से जो कहानी के निर्णायक मोड़ पर फिल्म समाप्त होने की ठीक पूर्व आता है। बंदिनी छुटपन में तब देखी थी जब दूरदर्शन श्वेत श्याम हुआ करता था। सच कहूँ तो आज फिल्म की कहानी भी ठीक से याद नहीं पर इस गीत और इसका हर एक शब्द दिमाग के कोने कोने में नक़्श है। कोरी भावुकता कह लीजिए या कुछ और, जब भी स्कूल और कॉलेज के ज़माने में इस गीत को सुनता था तो दिल इस क़दर बोझिल हो जाता कि मन अकेले कमरे में आँसू बहाने को करता। क्या बोल लिखे थे शैलेंद्र ने 

मन की किताब से तुम मेरा नाम ही मिटा देना..
गुण तो न था कोई भी.. अवगुण मेरे भुला देना।

नदी के जल से धुले सीधे सच्चे शब्द जो सचिन दा की आवाज़ के जादू से दिल में भावनाओं का सैलाब ले आते।

इस गीत को सुनते हुए क्या आपके मन में ये प्रश्न नहीं उठता कि एक नाविक द्वारा गाए जाने वाले गीतों को त्रिपुरा का ये राजकुमार अपनी गायिकी में इतनी अच्छी तरह कैसे समाहित कर पाया?

दरअसल असम, पश्चिम बंगाल, बाँग्लादेश से बहती ब्रह्मपुत्र नदी अपने चौड़े पाटों के बीच लोकसंगीत की एक अद्भुत धारा को पोषित पल्लवित करती है जिसे लोग भाटियाली लोक संगीत के नाम से जानते हैं। अविभाजित भारत में त्रिपुरा और आज का बाँग्लादेश का इलाका एक ही रियासत का हिस्सा रहे थे। 1922 में  इंटर पास करने के बाद सचिन दा बीए करने के लिए कलकत्ता जाना चाहते थे पर उनके पिता ने उन्हें कोमिला बुला लिया।  सत्तर के दशक में लोकप्रिय हिंदी पत्रिका धर्मयुग में दिए साक्षात्कार में सचिन देव बर्मन ने अपने उन दिनों के संस्मरण को बाँटते हुए लिखा था...

"जब एक वर्ष तक मैं पिताजी के पास रहा तब मैंने आसपास का सारा क्षेत्र घूम डाला। मैं मल्लाहों और कोलियों के बीच घूमता और उनसे लोकगीतों के बारे में जानकारी एकत्र करता जाता। मैं वैष्णव और फकीरों के बीच बैठता, उनसे गाने सुनता, उनके साथ हुक्का पीता। उन्हें पता भी नहीं चल पाया कि मैं एक राजकुमार हूँ। सारे नदी नाले जंगल तालाब मेरी पहचान के हो गए। उन दिनों मैंने इतने सारे गीत इकठ्ठा कर डाले कि मैं आज तक उनका उपयोग करता आ रहा हूँ पर भंडार कम ही नहीं होता। चालीस पचास वर्ष पूर्व के गीत आज भी मेरे गले से उसी सहजता से निकलते हैं।"

सो किशोरावस्था में अपने आस पास के संगीत से जुड़ने की वज़ह से सचिन दा के गले में जो सरस्वती विराजमान हुईं उसका रसपान कर आज कई दशकों बाद भी संगीतप्रेमी उसी तरह आनंदित हो रहे हैं जैसा पचास साठ साल पहले उन फिल्मों के प्रदर्शित होने पर हुए थे। तो आइए सचिन दा की करिश्माई आवाज़ के जादू में एक बार और डूबते हैं बंदिनी के इस अमर गीत के साथ...





ओ रे माँझी, ओ रे माँझी, ओ मेरे माँझी,
मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार हूँ इस पार
ओ मेरे माँझी अब की बार, ले चल पार, ले चल पार
मेरे साजन हैं उस पार..

मन की किताब से तुम मेरा नाम ही मिटा देना
गुण तो न था कोई भी अवगुण मेरे भुला देना
मुझे आज की विदा का, मर के भी रहता इंतज़ार
मेरे साजन हैं उस पार..

मत खेल जल जाएगी, कहती है आग मेरे मन की
मैं बंदिनी पिया की, मैं संगिनी हूँ साजन की
मेरा खींचती है आँचल, मनमीत तेरी, हर पुकार
मेरे साजन..ओ रे माँझी...

विमल राय ने इस गीत को जिस खूबसूरती से पर्दे पर उतारा था वो भी देखने के क़ाबिल है। अगर सचिन दा के गाए इस गीत के संगीत पक्ष की ओर ध्यान दें तो पाएँगे कि पूरे गीत में बाँसुरी की मधुर तान तबले की संगत के साथ चलती रहती है। गीत की परिस्थिति के अनुसार स्टीमर के हार्न और ट्रेन की सीटी को गीत में इतने सटीक ढंग से डाला गया है कि अपने साजन से बिछुड़ रही  नायिका के मन में उठ रहा झंझावात जीवंत हो उठता है।


सचिन दा की गायिकी से जुड़ी इस श्रंखला की अगली कड़ी में चर्चा होगी उनके गाए एक और बेमिसाल गीत की...

सचिन दा की गायिकी से जुड़ी इस श्रंखला की सारी कड़ियाँ...

Related Posts with Thumbnails

30 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

उनके गीतों के भाव पक्ष अभिभूत कर जाते हैं।

HARSHVARDHAN on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

सचिन दा के हम भी बहुत बड़े प्रशंसक हैं, मुझे उनका "गाइड" (1965) फिल्म में गाया हुआ गाना "वहाँ कौन है तेरा … मुसाफ़िर जायेगा कहाँ … दम ले ले घड़ी भर ये छईया पाएगा कहाँ …." बहुत पसंद है। सचिन दा के बारे बहुत ही रोचक जानकारी दी है आपने। आभार।।

नये लेख : कुमार श्री रणजीत सिंह "रणजी"

Manish Kumar on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

हर्षवर्धन मुझे भी वो गीत बेहद पसंद है और सचिन देव बर्मन से जुड़ी इस श्रंखला में उस पर भी चर्चा होगी।

ANULATA RAJ NAIR on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

सचमुच बेहद सुन्दर गीत.....
मन की गहराई से उपजा और मन के भीतर तक धंसता चला जाता है ....

बार बार सुनने लायक ...
शुक्रिया
अनु

कंचन सिंह चौहान on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

मेरा बहुत ही प्रिय गीत। बल्कि उनके गाये अधिकतर गीत मुझे बहुत अच्छे लगते हैं, हो सकता है इसलिये क्योंकि वो शायद अपने लिये अच्छे लिरिक्स भी चुनते होंगे।

पता नही पूरी सिरीज़ पर आ भी पाऊँगी या नही, लेकिन ये सिरीज़ होगी उत्तम ये जानती हूँ।

मैं बंदिनी पिया की, मैं संगिनी हूँ साजन की।

ओह ओह......

Prashant Suhano on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

'सफल होगी तेरी अराधना, काहे को रोए'
ये गीत मेरे पसंदीदा गीतों में से रहा है....

ओंकारनाथ मिश्र on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

बहुत ही रोचक शुरुआत की है आपने. दादा बर्मन का जवाब नहीं. मेरे सर्वाधिक प्रिय गायक और संगीतकार. उम्मीद है उनके बांग्ला गीत "रांगिला रे" की भी चर्चा होगी.

Upendra Yadav on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

मजा आ गया, कई साल बाद सुना इसे.... अब इस गाने के लिए और शब्द नहीं हैं......

Nutan Sharma on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

sd burman jiii ka yadgaar geet he.Awesome song.

Ekta Singh on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

Spiritual song...simply heart touching..Story of movie z also memorable..

अनिल सहारण 'सोनङी' on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

Manish ji, 'Guide' ka geet 'whanha kaun hai tera' kya Sachin da ne gaya tha ?

Anil Kumar on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

Very Nice song.

Amit Momyan on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

very very nice song ji

Manish Kumar on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

हाँ अनिल गाइड का वो गाना सचिन दा ने ही गाया था। बर्मन साहब ने बीस से कम हिंदी नग्मों को अपनी आवाज़ दी है। माँझी गीतों में उनका कोई सानी नहीं है। इस श्रंखला में गर आप साथ रहे तो उनकी आवाज़ को पहचानना आपके लिए मुश्किल नहीं होगा।

Mahendra Bahadur Rai on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

thanks ! for this

Manish Kumar on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

कंचन ये सही है कि उन्होंने अपने गाए गीतों में अच्छे बोल चुने पर मैं उन गीतों के बारे में उनकी आवाज़ के बगैर सोच भी नहीं पाता। लोक संगीत की समझ के साथ साथ जिस तरह उसकी मिठास उसकी गूँज उन्होंने अपने गले में उतारी उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है

Ghughuti Basuti on सितंबर 13, 2013 ने कहा…

मैंने भी बचपन में देखी थी और इस गाने ने ऐसी अमित छाप छोड़ी कि मन में बस गया.

lori on सितंबर 14, 2013 ने कहा…

बहुत शुक्रिया`
इस प्यारी सी पोस्ट के लिए।
मुझे एक गीत की तलाश है, शायद पंचम दा का ही:
"माझी रे माझी। रमय्या माझी
मोईनी नदी के उस पार पार जाना है
उस पार देखो आया है जोगी, जोगी को मन का रोग दिखाना है। "
"आवाज़ पक्के में आशा जी की है।
शायद आप बता पायें।

Radha Chamoli on सितंबर 14, 2013 ने कहा…

maine ba bachpan me dekhi thi ye movie aaj is gaane ko sunke phir se dekhne ko man kr raha hai shukriya Manish ji :)

parag on सितंबर 14, 2013 ने कहा…

कहीं ना कहीं मन में ये सवाल उठता है क्या बर्मन जी का संगीत सृजन करना उनके गायक होने पर भारी पड़ गया ।कुछ ही गीत ऐसे होते हैं जो कि कालजयी होते हैं और किसी भी युग में गुणवत्ता की,दिल को छू लेने की मिसाल बने रहेंगे।
मनीष जी बहुत बहुत धन्यवाद कालजयी गीतों पर एक श्रेष्ठतम प्रस्तुति के लिए ।

Manish Kumar on सितंबर 14, 2013 ने कहा…

लोरी जी आप जिस गीत की बात कर रही हैं वो पंचम, गुलज़ार और आशा जी के गैर फिल्मी एलबम "दिल पड़ोसी है" का है। आप इस गीत को यहाँ सुन सकती हैं। वैसे चप्पू की आवाज़ के साथ स्टीमर के हार्न का इस गीत की शुरुआत में खूबसूरत प्रयोग हुआ है
http://www.youtube.com/watch?v=EZ_t5uwaUFA

धन्यवाद इस गीत की याद दिलाने के लिए !

Rajeshwari P Raj on सितंबर 14, 2013 ने कहा…

is geet ke bol sunder aur dil main ek khas jagah banane wale hai

Paramita Mohanty on सितंबर 14, 2013 ने कहा…

lovely song...

Ritesh Ranjan Sahai on सितंबर 15, 2013 ने कहा…

Manish Kumar ji ka bayaan geet se kam nahin hai

सुरिन्दर सिंह on सितंबर 16, 2013 ने कहा…

बहुत खूब...

Naval R Kishore on सितंबर 17, 2013 ने कहा…

YAAD NA JAAYE BITE DINO KI !

Manish Kumar on सितंबर 18, 2013 ने कहा…

प्रवीण, अनु जी, एकता, नूतन, घुघूती जी, राजेश्वरी, नवल किशोर बिल्कुल सहमत हूँ आपके कथन से !
उपेन्द्र, अमित, अनिल, महेंद्र बहादुर, राधा, सुरिद्र, पारामिता गीत को पसंद करने क शुक्रिया !

रीतेश आपको इस गीत से जुड़ा मेरा विश्लेषण पसंद आया जान कर खुशी हुई।

Manish Kumar on सितंबर 18, 2013 ने कहा…

निहार रंजन मेरे ख्याल से बतौर गायक बंगाली में गाए हुए सचिन दा के गीतों का अनुपम खजाना है जिसके बारे में हिंदी संगीत प्रेमी कम ही जानते हैं। आपने सचिन दा के जिस लोकप्रिय बंगाली गीत का जिक्र किया उसकी चर्चा उनके कुछ और गीतों की बाते इस श्रंखला में होती रहेंगी।

Manish Kumar on सितंबर 18, 2013 ने कहा…

पराग बर्मन दा ने मुंबई फिल्म जगत में तो अपनी आवाज़ के जलवे नहीं दिखाए पर मुंबई में काम करते हुए भि वो पूजा के अवसरों पर कोलकाता जा कर बंगाली में अपने गीत रिकार्ड कराते रहे।

ashok kumar mehra ने कहा…

burman da ke bare me jankari ke liye dhanyawad. kahate hai gyanijeewan hai phani hat kisi ke na aani. jayega kahan. dum lele. great sachin da

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie