बुधवार, जनवरी 28, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 12 : ये बावला सा सपना, बड़ा बावला सा सपना, रुकना कहाँ है आखिर, नहीं जानता था सपना Baawla Sa Sapna...

हिंदी में बच्चों के लिए फिल्में ज्यादा नहीं बनती। लिहाज़ा उनके लिए लिखे गीत भी गिनती के होते हैं। पर अगर फिल्मों में बच्चों द्वारा गाए गीतों की बात करूँ तो वो संख्या ना के बराबर ही होती है। पर साहेबान कद्रदान अगर मैं ये कहूँ कि इस संगीतमाला का अगला गीत पाँच साल की एक छोटी बच्ची ने गाया है तो क्या आप चौंक नहीं जाएँगे ? इतनी कम उम्र में पार्श्व गायन हिंदी फिल्म इतिहास में संभवतः पहली बार ही हुआ है। ये गायिका हैं दिवा रॉय जिन्होंने फिल्म Shadi Ke Side Effects में स्वानंद किरकिरे का लिखा और प्रीतम का संगीतबद्ध किया एक बेहद प्यारा सा गाना गाया। 

दिवा रॉय Diva Roy

दिवा बिना संगीत की विधिवत शिक्षा लिए हुए भी इस गाने के लिए प्रीतम जैसे संगीतकार द्वारा चुन ली गयीं इसका मतलब ही यही बनता है कि संगीत उन्हें विरासत में मिला है। उनकी माँ प्रीथा मज़ुमदार हिंदी और बंगाली फिल्मों में पार्श्व गायिका रही हैं जबकि उनके पिता राजेश रॉय ख़ुद एक संगीतकार हैं। ढाई साल की उम्र से ही माँ की देखा देखी उन्होंने गाना शुरु कर दिया था। माँ के रियाज़ के साथ गाते गाते वो किसी फिल्म के गाने का हिस्सा बन जाएगी ये दिवा ने भी कहाँ सोचा होगा? वैसे सोचने की उसकी उम्र ही अभी कहाँ हुई है :)

दरअसल इस गाने के लिए प्रीतम एक बाल कलाकार ढूँढ रहे थे। दिवा की माँ की मित्र ने जब उन्हें प्रीतम की इस आवश्यकता के बारे में बताया तो प्रीथा ने अपनी बेटी के पहले से रिकार्ड किए गए गीत भिजवा दिए। प्रीतम को दिवा की आवाज़ पसंद आ गयी। ये दिवा की प्रतिभा का कमाल था कि उन्होंने एक ही दिन में गीत की रिकार्डिंग पूरी कर प्रीतम को संतुष्ट कर दिया।

जैसा कि मैंने आपको बताया ये गीत लिखा है स्वानंद किरकिरे ने और जब स्वानंद भाई गीतकार होंगे तो गीत के बोल तो खास होंगे ही। स्वानंद वैसे तो इस गीत में एक ऐसे 'सपने' की कहानी सुना रहे हैं जो अपने बेटे के लिए चाँद को चुरा कर लाना चाहता है। यानि सपने का मानवीकरण....है ना मज़ेदार सोच !

पर मज़े मजे की बात में वो हमारे असली सपनों के लिए भी कितनी सच्ची बात कह जाते हैं। वो ये कि हम सभी के सपनों में एक तरह का पागलपन होता है। आकाश को चूमने की ललक में अपने पंख फड़फड़ाते रहते हैं, ये जानते हुए भी कि आसमान तक की दूरी का कोई ठौर नहीं है। सीमाओं की वर्जना उन्हें दिखाई नहीं देती। वे उड़ते जाते हैं... उड़ते जाते हैं..। अपने इस बावलेपन में उन्हें ये भी अहसास नहीं होता कि कब उनके डैनों की शक्ति क्षीण हुई और कब वो औंधे मुँह गिर पड़े। इसीलिए स्वानंद कहते हैं ये बावला सा सपना, बड़ा बावला सा सपना रुकना कहाँ है आखिर, नहीं जानता था सपना

स्वानंद ने गीत की भाषा ऐसी रखी है जिसमें बच्चों सा भोलापन है, एक नर्मी है जो हमें गुदगुदाती भी है और संवेदनशील भी करती है। प्रीतम गीत को पियानो की मधुर धुन और बच्चों को कोरस से शुरु करते हैं और फिर दिवा की आवाज़ में गीत के भावों के साथ आप अंतिम तक बँधे चले जानते हैं। तो आइए सुनते हैं इस चुलबुले से गीत को..



आओ जी आओ, सुनो तुमको सुनाऊँ
इक सपने की स्टोरी,
कि मेरी पलकों की टपरी के नीचे
वो रहता था सपना टपोरी
अम्बर में उड़ने का शौक़ उसे था
अक्ल थी थोड़ी
अरे चुपके से टुपके से करना वो चाहता था
'मून' की चोरी


ये बावला सा सपना, बड़ा बावला सा सपना
मेरी मानता नहीं है, मेरा ही है वो सपना
ये बावला सा सपना, बड़ा बावला सा सपना
रुकना कहाँ है आखिर, नहीं जानता था सपना


सपने का था बेटा सपनू
प्यारा प्यारा, बड़ा दुलारा बोला
पापा आना, जल्दी जल्दी
तुम चंदा लाना
हड़बड़ी में, गड़बड़ी में
सपना निकला, सँभला, फिसला
उड़ा पहुँचा पहुँचा
चाँद के घर गया

वो रात थी अमासी
छुट्टी पे था जी चंदा
दबे पाँव गया था
खाली हाथ लौटा बंदा
ये बावला सा ...

बादल बादल घूमे पागल
सपनू को अब कैसे दिखाए
चेहरा चेहरा चेहरा…
या या या ये अपना चेहरा
तभी सड़क पे पड़ा दिखा एक
उजला उजला, प्यारा प्यारा
शीशा शीशा
शीशे में उसको जाने क्या दिखा

सपनू को जा दिखाया, शीशे में उसका चेहरा
बोला मेरे प्यारे सपनू , तू ही है चाँद अपना
ये बावला सा ....

इस गीत को चित्रों के माध्यम से उकेरने का एक खूबसूरत प्रयास जो मुझे यू ट्यूब पर मिला..




वार्षिक संगीतमाला 2014
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8 टिप्पणियाँ:

lori on जनवरी 29, 2015 ने कहा…

bahut pyara song, wahi, apke chir parichit pyare andaaz me!!! .... mazedar jankari, is baar ki sangit mala me. sarthk hua padha.

रीतेश श्रीवास्तव ने कहा…

कमाल करते हैं आप मनीष जी, २५ से १२ पायदान तक एक-दो गाने ही ऐसे थे जिनको पहले सुना था... कहाँ कहाँ से ढूंढ के लाते हैं आप ये....

अब तो आपके टॉप-१० का इन्तेज़ार है... देखें हमारे टॉप-१० के एकाध गाने भी आपकी लिस्ट में हैं की नहीं... :) :) :)

Sarita Kumari on जनवरी 30, 2015 ने कहा…

Very beautiful manish..

Jiten Dobriyal on जनवरी 30, 2015 ने कहा…

लवली सांग

कंचन सिंह चौहान on फ़रवरी 08, 2015 ने कहा…

चेहरे पर मुस्कान है गीत सुनते हुए :)

Manish Kumar on फ़रवरी 09, 2015 ने कहा…

लोरी तारीफ़ के लिए धन्यवाद !
कंचन दिवा की आवाज़ चेहरे पर मुस्कान ले ही आती है।
सरिता जी, जितेन गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया !

Manish Kumar on फ़रवरी 09, 2015 ने कहा…

रीतेश जी ये हैरानी मुझे भी होती है जब पिछले साल की प्रदर्शित हर फिल्म के गाने एक एक कर के सुनता हूँ। ज्यादातर गीत तो एक बार भी सुने नहीं होते क्यूँकि निर्माता एक दो गीतों को ही प्रमोट करते हैं जो स्क्रीन पर अच्छे दिखें या जिनमें डांस की गुंजाइश हो।

प्रथम दस गीतों में आपके सुने हुए तीन या चार गीत तो जरूर होंगे ऐसी उम्मीद है क्यूँकि वे पिछले साल काफी बजे हैं। आपकी पसंद के बारे में जानने की उत्सुकता रहेगी।

Ankit on फ़रवरी 11, 2015 ने कहा…

क्या अद्भुत गीत है, पहली बार सुना है।
फिल्म के प्रमोशन में इत्ते अच्छे गीतों को पीछे क्यों धकेल दिया जाता है, और सिर्फ हल्ला-गुल्ला समेटे गीत ही छाये रहते हैं।
शुक्रिया मनीष जी, इस गीत से मिलवाने के लिए। दिवा के तो कहने ही क्या …

 

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