शनिवार, जनवरी 30, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 12 : हाँ.. हँसी बन गए, हाँ.. नमी बन गए Hansi Ban Gaye

बड़ा विचित्र युग है संगीत का ये। नेट की इस खुली दुनिया ने हमें पिछले कई सालों में  नए व हुनरमंद संगीतकार, गायक व गीतकारों को दिया है। कुछ दशक पहले  अपनी आवाज़ और संगीत को सही हाथों तक पहुँचने में ही बरसों एड़ियाँ घिसनी पड़ती थी। आज उस फासले को बहुत हद तक कम कर दिया है तकनीक ने। पर इस वज़ह से प्रतिस्पर्धा भी बढ़ गई है। पहले पूरी फिल्म में एक संगीतकार, एक गीतकार और ज़्यादा से ज़्यादा दो से तीन गायक रहते थे। आजकल निर्माता निर्देशक संगीत जगत रूपी ताश की गड्डी के हर इक्के को अपने पास रखना चाहते हैं। जाने कौन सा इक्का हाथ बना ले और कौन सा कट जाए? 

ऐसा ही एक बैनर है भट्ट खानदान की विशेष फिल्मस का। अनेक संगीतकारों की टीम के साथ काम करने वाले इस बैनर को ये श्रेय जाता है कि नए कलाकारों को आज़माने में इसने कभी कोताही नहीं बरती। अंकित तिवारी से लेकर अरिजित सिंह जैसे कलाकारों को सही मौका दे सफलता के शिखर तक पहुँचाने में इनका जबरदस्त हाथ रहा है। अब इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने हमारी अधूरी कहानी फिल्म के एक गीत के लिए मौका दिया अमि मिश्रा को जिनका संगीतबद्ध गीत वार्षिक संगीतमाला की बारहवीं पायदान की शोभा बढ़ा रहा है।


इंदौर से ताल्लुक रखने वाले अमि मिश्रा की सांगीतिक पृष्ठभूमि को टटोलने के लिए आपको उनकी कॉलेज की ज़िंदगी में झाँकना होगा। अमि ने अपने दोस्तों के साथ कॉलेज में एक बैंड बनाया व रियालटी शो में भाग लेने की कोशिश करते रहे। पर एक बार MBA की डिग्री हाथ आ गई तो अपने सहपाठियों की तरह ही कार्पोरेट जगत के भँवर में खिंचते चले गए।

पर दिल तो उनका संगीत में मन रमाने को कह रहा था सो उसकी आवाज़ सुनते हुए मोटी आमदनी वाली नौकरी को छोड़ रेस्ट्राँ में गाने बजाने लगे। उन्होंने अपने इस निर्णय से अपने मध्यमवर्गीय माता पिता को भी नाराज कर दिया पर संगीत से उनका जुड़ाव बढ़ता ही गया। अगला पड़ाव मुंबई का था। महीनों इधर उधर हाथ आज़माने के बाद मुकेश भट्ट से जब उनकी मिलने की कोशिश बेकार गई तो उन्होंने इंदौर वापस लौटने का मन बना लिया। पर इससे पहले कि वे वापस इंदौर आते विशेष फिल्म द्वारा उनका रचा गीत हँसी स्वीकार कर लिया गया। तब तो उन्हें ये भी नहीं  पता था कि ये गीत किस फिल्म के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

हमारी अधूरी कहानी में अमि ने ख़ुद भी इस गीत को अपनी आवाज़ दी है पर जब अमि की मधुर धुन का श्रेया की दिलकश आवाज़ का साथ मिलता है तो बस गीत में चार चाँद लगा जाते हैं। अमि का कहना है कि चूंकि ये गीत विद्या बालन पर फिल्माया जाना था तो मुझे एक परिपक्व आवाज़ की तलाश थी जो श्रेया पर जाकर खत्म हुई।  

वैसे अमि मिश्रा के साथ हिंदी फिल्मों में इस गीत से अपने कैरियर की शुरुआत की है कुणाल वर्मा ने भी। अभी हाल फिलहाल में राजस्थान एन्थम और रैपरिया बालम की वज़ह से चर्चा में आने वाले कुणाल जयपुर में रहते हैं। इस साल उनके गीतों को आप कई नई फिल्मों में सुन पाएँगे। बहरहाल कुणाल की ये पंक्ति हाँ.. हँसी बन गए, हाँ.. नमी बन गए तुम मेरे आसमां, मेरी ज़मीन बन गए.. लोगों के दिल में बस गई।

सही कह  रहे हैं कुणाल, अगर किसी की बेसाख्ता सी खिलखिलाहट आपके तन मन को प्रसन्न कर दे या फिर किसी की रंच मात्र की उदासी आपके दिल को विकल कर दे तो  प्रेम तो हुआ समझिए। तो आइए सुनते हैं ये प्यारा सा नग्मा

मैं जान ये वार दूँ , हर जीत भी हार दूँ
क़ीमत हो कोई तुझे ,बेइंतेहा प्यार दूँ 
सारी हदें मेरी, अब मैंने तोड़ दी
देकर मुझे पता, आवारगी बन गए
हाँ.. हँसी बन गए, हाँ.. नमी बन गए
तुम मेरे आसमां, मेरी ज़मीन बन गए.. ओ..

क्या खूब रब ने किया, बिन माँगे इतना दिया
वरना है मिलता कहाँ, हम काफ़िरों को ख़ुदा
हसरतें अब मेरी, तुमसे हैं जा मिली
तुम दुआ अब मेरी, आखिरी बन गए
हाँ.. हँसी बन गए, हाँ.. नमी बन गए... 

वार्षिक संगीतमाला 2015

बुधवार, जनवरी 27, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 13 : दहलीज़ पे मेरे दिल की जो रखे हैं तूने क़दम Jeena Jeena

कभी कभी संगीत का कोई छोटा सा टुकड़ा संगीतकार के तरकश से चलता है और श्रोता के  दिल में ऍसे बस जाता है कि उस टुकड़े को कितनी बार सुनते हुए भी उसे दिल से निकालने की इच्छा नहीं होती। अगर मैं कहूँ कि वार्षिक संगीतमाला की तेरहवीं पायदान पर फिल्म बदलापुर के गीत के यहाँ होने की एक बड़ी वज़ह संगीतकार सचिन जिगर का मुखड़े के बाद  बाँसुरी से बजाया गया मधुर टुकड़ा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी । 

पूरे गीत में गिटार और बाँसुरी का प्रमुखता से इस्तेमाल हुआ है। बाँसुरी की जिस धुन का मैंने उल्लेख किया है वो आपको गीत के पहले मिनट के बाद बीस सेकेंड के लिए और फिर 2.26 पर सुनने को मिलती है। इसे बजाया है वादक शिरीष मल्होत्रा ने।

बदलापुर के इस गीत को गाने की जिम्मेदारी सौंपी गई आतिफ़ असलम को जो कुछ सालों तक बॉलीवुड में अपना डंका बजवाने के बाद इधर हिंदी फिल्मों में कम नज़र आ रहे थे।  जिगर का अपने इस चुनाव के बारे में कहना था

"दरअसल इस गीत में गायक की प्रवीणता से ज्यादा उसकी गीत की भावनाओं के प्रति ईमानदारी की आवश्यकता थी और आतिफ़ असलम ने इस गीत को बिल्कुल अपने दिल से गाया है। गीत की शुरुआत और अंतरे के पहले जब वो गुनगुनाते हैं तो ऐसा लगता है कि कोई आपके  में बैठा इस गीत को गा रहा है।"

ये गीत ज्यादा लंबा नहीं है और इसमें बस एक अंतरा ही  है। पर इतने छोटे गीत को लिखने के लिए दो लोगों को श्रेय दिया गया है। एक तो निर्माता दीपक विजन को  व दूसरे गीतकार प्रिया सरैया को। दीपक विजन इसकी वज़ह ये बताते हैं कि सारे गीत खूब सारी बतकही, हँसी मजाक व सुझावों के आदान प्रदान के बाद  बने।  वाकई गीत प्रेम में  समर्पण की  भावना को सहज व्यक्त करता हुआ दिल को छू जाता है। पर मुझे लगता है कि इतनी अच्छी धुन को इससे ज्यादा बेहतर शब्दों और कम से कम एक और अंतरे का साथ मिलना चाहिए था। तो आइए सुनते हैं बदलापुर फिल्म का ये गीत

दहलीज़ पे मेरे दिल की
जो रखे हैं तूने क़दम
तेरे नाम पे मेरी ज़िन्दगी
लिख दी मेरे हमदम
हाँ सीखा मैंने जीना जीना कैसे जीना
हाँ सीखा मैंने जीना मेरे हमदम
ना सीखा कभी जीना जीना कैसे जीना
ना सीखा जीना तेरे बिना हमदम

सच्ची सी हैं ये तारीफें, दिल से जो मैंने करी हैं
जो तू मिला तो सजी हैं दुनिया मेरी हमदम
हो आसमां मिला ज़मीं को मेरी
आधे-आधे पूरे हैं हम
तेरे नाम पे मेरी ज़िन्दगी...

वार्षिक संगीतमाला 2015

सोमवार, जनवरी 25, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 14 : चम्पई रंग यार आ जाए Champai Rang Yaar Aa Jaye...

वार्षिक संगीतमाला की अगली पायदान पर जो गीत या यूँ कहो कि जो ग़ज़ल है वो ज्यादा उम्मीद है कि आपने नहीं सुनी होगी। अब सुनेंगे भी तो कैसे पिछले साल अगस्त में जानिसार सिनेमा के पर्दे पर कब आई और कब चली गई पता ही नहीं चला। एक ज़माना होता था जब मुजफ्फर अली की फिल्मों का लोग बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते थे। एक तो उनके गंभीर कथानक के लिए लिए व दूसरे उनके बेमिसाल संगीत के लिए। गमन और उमराव जान का दिलकश संगीत आज भी लोगों के दिलो दिमाग में उसी तरह बसा हुआ है। 

उमराव जान के बाद आगमन, ख़िजां व जूनी जैसी फिल्में उन्होंने बनाई जरूर पर इनमें से ज्यादातर प्रदर्शित नहीं हो पायीं। इसलिए दो दशकों के बाद उनका जांनिसार के साथ   फिल्म निर्माण में उतरना संगीतप्रेमियों के लिए अच्छी ख़बर जरूर था। फिल्म तो ख़ैर ज्यादा सराही नहीं गई पर इसका संगीत आज के दौर में एक अलग सी महक लिए हुए जरूर था।


1877 के समय अवध के एक राजकुमार और उनके ही दरबार में क्रांतिकारी विचार रखने वाली नृत्यांगना के बीच बढ़ते प्रेम को दिखाने के लिए मुजफ्फर अली ने वाज़िद अली शाह की इस ग़ज़ल को चुना। संगीत रचने की जिम्मेदारी पाकिस्तान के सूफी गायकव शास्त्रीय संगीत के मर्मज्ञ शफ़क़त अली खाँ को सौंपी।  शफ़क़त उम्र से तो मात्र 44 साल के हैं पर शास्त्रीय संगीत की ख्याल परंपरा के उज्ज्वल स्तंभ माने जाते हैं। 

तो  आइए देखें वाज़िद अली शाह ने इस ग़ज़ल में कहना क्या चाहा है। 



ग़ज़ल के मतले में वाज़िद अली शाह महबूब से दूर रहते हुए अपने जज़्बातों को शब्द देते हुए कहते हें कि काश चम्पा सदृश उस गौर वर्णी की चेहरे की रंगत सामने आ जाती। ये हवा ज़रा उसकी खुशबुओं को हमारे पास ले आती।

चम्पई रंग यार आ जाए
चम्पई रंग यार आ जाए
निख़ते खुश गवार आ जाए
निख़ते खुश गवार आ जाए
चम्पई रंग यार आ जाए

अब उनके हुस्न की क्या तारीफ़ करें हम!  वो तो शीशे को एक नज़र देख क्या लें.. आइना उनके प्रतिबिंब के घमंड से ही इतराने लगे

वो हसीं देख ले जो आइना
वो हसीं देख ले जो आइना
आइने पर गुबार आ जाए
आइने पर गुबार आ जाए
चम्पई रंग ....

तुम्हारे  बिना मेरी ज़िंदगी उस खाली शीशे की तरह है जो बिना जाम के बेरंग सा दिखता है इसीलिए मेरी साकी इस गिलास को जाम से खाली होने मत दो..

खाली शीशे को क्या करूँ साकी
खाली शीशे को क्या करूँ साकी
जाम भी बार बार आ जाए
जाम भी बार बार आ जाए
चम्पई रंग....

वाज़िद अली शाह अख़्तर के उपनाम से ग़ज़लें कहा करते थे। सो मक़ते में वो कहते हैं कि उनकी प्रेयसी की आँखों की रवानी कुछ ऐसी है जिसे देख के दिल में नशे सी ख़ुमारी आ जाती है।

उनकी आँखों को देख कर अख्तर
उनकी आँखों को देख कर अख्तर
नशा बे-इख्तियार आ जाए
नशा बे-इख्तियार आ जाए
चम्पई रंग ....



इस गीत को संगीतकार शफक़त अली खाँ के साथ श्रेया घोषाल ने गाया है। श्रेया घोषाल रूमानी गीतों को तो अपनी मिश्री जैसी आवाज़ का रस घोलती ही रहती हैं पर एक ग़ज़ल को जिस ठहराव की आवश्यकता होती है उसको भी समझते हुए उन्होंने इसे अपनी आवाज़ में ढाला है। शफक़त इस ग़ज़ल में श्रेया की अपेक्षा थोड़े फीके रहे हैं पर उनका संगीत संयोजन वाज़िद अली शाह के रूमानियत भरे बोलों के साथ दिल में सुकून जरूर पहुँचाता है।

वार्षिक संगीतमाला 2015

शनिवार, जनवरी 23, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 15 : घुटता हैं दम दम.. दम दम घुटता है Dum Ghutta hai

वार्षिक संगीतमाला के तीन हफ्तों से सफ़र में अब बारी है पिछले साल के मेरे सबसे प्रिय पन्द्रह गीतों की और पन्द्रहवीं पायदान पर जो गीत है ना जनाब उसमें प्रेम, विरह, खुशी जैसे भाव नहीं बल्कि एक तरह की पीड़ा और  दबी  सी घुटन है जो सीने से बाहर आने के लिए छटपटा रही है पर कुछ लोगों का डर ने उसे बाहर आने से रोक रखा है। पर इससे पहले कि मैं आपको इस गीत के बारे में बताऊँ आपसे एक रोचक तथ्य को बाँट लेता हूँ। जानते हैं काम मिलने के बाद संगीतकार व गीतकार ने सोचा हुआ था कि इस फिल्म के लिए वो कोई मस्त सा आइटम नंबर लिखेंगे। पर उनके मंसूबों पर पानी तब फिरा जब फिल्म के निर्देशक निशिकांत कामत ने उनसे आकर ये कहा कि मैं आपसे फिल्म सदमा के गीत ऐ ज़िंदगी गले लगा ले.. जैसा गीत बनवाना चाहता हूँ। 


ये फिल्म थी दृश्यम और संगीतकार गीतकार की जोड़ी थी विशाल भारद्वाज और गुलज़ार की। विशाल इस फर्माइश को सुनकर चौंक जरूर गए पर मन ही मन खुश भी हुए ये सोचकर कि आज के दौर में ऐसे गीतों की माँग कौन करता है? विशाल फिल्म के निर्माता कुमार मंगत पाठक के बारे में कहते हैं कि ओंकारा के समय से ही मैंने जान लिया था कि अगर कुमार जी से पीछा छुड़ाना हो तो उन्हें एक अच्छा गीत बना के देना ही होगा। यानि निर्माता निर्देशक चाहें तो गीत की प्रकृति व गुणवत्ता पर अच्छा नियंत्रण रख सकते हैं।

बकौल विशाल भारद्वाज ये गीत बहुत चक्करों के बाद अपने अंतिम स्वरूप में आया। दम घुटता है का मुखड़ा भी बाद में जोड़ा गया। पहले सोचा गया था कि ये गीत राहत फतेह अली खाँ की आवाज़ में रिकार्ड किया जाएगा। फिर विशाल को लगा कि गीत एक स्त्री स्वर से और प्रभावी बन पाएगा। तो रिकार्डिंग से रात तीन बजे लौटकर उन्होंने अपनी पत्नी व गायिका रेखा भारद्वाज जी से कहा कि क्या कल कुछ नई कोशिश कर सकती हो? रिकार्डिंग के लिए तुम्हें भी साढ़े दस बजे जाना पड़ेगा। अक्सर विशाल को रेखा उठाया करती हें पर उस दिन विशाल ने रेखा जी को साढ़े नौ बजे उठाते हुए कहा कि आधे घंटे थोड़ा रियाज़ कर लो फिर चलते हैं। ग्यारह बजे तक बाद रेखा विशाल के साथ स्टूडियो में थीं। पहले की गीत रचना को बदलते हुए विशाल ने रेखा जी के हिस्से उसी वक़्त रचे और फिर दोपहर तक राहत की आवाज़ के साथ मिक्सिंग कर गीत अपना अंतिम आकार ले पाया।

एक व्यक्ति की अचानक हुए हादसे में हत्या का बोझ लिए एक परिवार के मासूम सदस्यों की आंतरिक बेचैनी को व्यक्त करने का जिम्मा दिया गया था गुलज़ार को और शब्दों के जादूगर गुलज़ार ने मुखड़े में लिखा

पल पल का मरना
पल पल का जीना
जीना हैं कम कम
घुटता हैं दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम घुटता है


उजड़े होठों , सहमी जुबां, उखड़ती सांसें, रगों में दौड़ती गर्मी जो जलकर राख और धुएँ में तब्दील हो जाना चाहती हो और अंदर से डर इतना कि इंसान अपनी ही परछाई से भी घबराने लगे। कितना सटीक चित्रण है ऐसे हालात में फँसे किसी इंसान का। गुलज़ार ने इन बिंबों से ये जतला दिया कि एक अच्छे गीतकार को व्यक्ति के अंदर चल रही कशमकश का, उसके मनोविज्ञान का पारखी होना कितना जरूरी है नहीं तो व्यक्ति के अंदर की घुटन की आँच को शब्दों में वो कैसे उतार पाएगा? 

तो आइए एक बार फिर से सुनें ये बेहतरीन नग्मा..


दुखता हैं दिल दुखता हैं
घुटता हैं दम दम घुटता हैं
डर हैं अन्दर छुपता हैं
घुटता हैं दम दम दम दम दम दम दम दम दम दम घुटता है

पल पल का मरना
पल पल का जीना
जीना हैं कम कम
घुटता हैं दम दम घुटता हैं
घुटता हैं दम दम ....

मेरे उजड़े उजड़े से होंठो में
बड़ी सहमी सहमी रहती हैं ज़बान
मेरे हाथों पैरों मे खून नहीं
मेरे तन बदन में बहता हैं धुआँ
सीने के अन्दर आँसू जमा हैं
पलके हैं नम नम
घुटता हैं दम दम...


क्यूँ बार बार लगता हैं मुझे
कोई दूर छुप के तकता हैं मुझे
कोई आस पास आया तो नहीं
मेरे साथ मेरा साया तो नहीं
चलती हैं लेकिन नब्ज़ भी थोड़ी
साँस भी कम कम
घुटता हैं दम दम घुटता हैं
घुटता हैं दम दम घुटता हैं


साँस भी कुछ कुछ रुकता हैं
घुटता हैं दम दम घुटता हैं
पल पल क्यूँ दम घुटता हैं
घुटता हैं दम दम ...

रेखा जी की आवाज़ के साथ राहत की आवाज़ का मिश्रण तो काबिलेतारीफ़ है ही गीत के इंटरल्यूड्स में ढाई मिनट बाद गिटार के साथ घटम का संगीत संयोजन मन को सोह लेता है। वैसे अंत में राहत का साँस भी कुछ कुछ रुकती की जगह रुकता है कहना कुछ खलता है।

फिल्म के किरदारों की मनोस्थिति को बयाँ करता ये गीत फिल्म का एक अहम हिस्सा रहा और इसी वज़ह से फिल्म के प्रोमो में इसका खूब इस्तेमाल किया गया। 

वार्षिक संगीतमाला 2015 में अब तक

वार्षिक संगीतमाला 2015

गुरुवार, जनवरी 21, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 16 : इश्क़ सच्चा वही..जिसको मिलती नहीं मंज़िलें मंज़िलें Humari Adhoori Kahani ..

पियानो के दिल पर चोट से करते नोट्स..वायलिन की उदास करती धुन और फिर अरिजीत की दर्द की चाशनी में डूबती उतरती आवाज़ के साथ जो गीत आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ वो है फिल्म हमारी अधूरी कहानी का।

ज़िदगी ज्यूँ ज्यूँ आगे बढ़ती है हमारे रिश्तों की पोटली भी भारी होने लगती है। कई रिश्तों को हम ताउम्र ढोते रहते हैं तो कईयों को चाहे अनचाहे अपने से अलग कर देते हैं। अपने इर्द गिर्द की परिस्थितियाँ हमारे रिश्तों के दायरों को तय करती हैं। ज़ाहिर है इश्क़ के जिस मुकाम की तलाश में हम भटकते हैं वो इन दायरों की तंग गलियों में फँस कर कई बार मंज़िल से दूर ही रह जाता है। कभी विकलता से छटपटाता हुआ तो कभी हालात से समझौता करता हुआ। पर भले ही कहानियाँ दम तोड़ देती हैं इश्क़ वहीं का वहीं रहता है दिल के किसी कोने में सुलगता हुआ।

फिल्म हमारी अधूरी कहानी का ये शीर्षक गीत मन में कुछ ऐसी ही भावनाओं का संचार करता है। इस गीत को लिखा है रश्मि सिंह ने। रश्मि के लिखे गीतों को पहली बार मैंने पिछले साल फिल्म सिटीलाइट्स में सुना था और उनका लिखा नग्मा सोने दो ख़्वाब बोने दो... पिछले साल की संगीतमाला में शामिल भी हुआ था। इसी फिल्म के एक अन्य गीत मुस्कुराने की वज़ह के लिए उन्हें पिछले साल फिल्मफेयर ने सर्वश्रेष्ठ गीतकार के पुरस्कार से नवाज़ भी था।

रश्मि आजकल अपने जोड़ीदार पटकथालेखक व गीतकार विराग मिश्रा के साथ रश्मि विराग के नाम से साझा गीत रच रही हैं। शीर्षक गीत होने की वज़ह से गीतकार द्वय के सामने हर अंतरे को हमारी अधूरी कहानी से इस तरह ख़त्म करने की चुनौती थी कि वो सार्थक भी लगे और गीत की लय भी बनी रहे और उन्होंने गीत में बखूबी ये कर भी दिखाया है।  गीत में एक पंक्ति आती है कि इश्क़ सच्चा वही..जिसको मिलती नहीं मंज़िलें मंज़िलें.. आशावादी इससे सहमत तो नहीं होंगे पर शायद लेखिका ने कहना ये चाहा हो कि दूरियाँ इश्क़ की पवित्रता उसकी प्रगाढ़ता को बनाए रखती हैं।

संगीतकार जीत गाँगुली मुकेश भट्ट मोहित सूरी की फिल्मों  के हाल फिलहाल के अनिवार्य अंग रहे हैं। फिल्म के अपने इकलौते गीत में पियानो, बाँसुरी के साथ उन्होंने वॉयलिन का प्रमुखता से इस्तेमाल किया है पर इस गीत को चार चाँद लगाया है अरिजीत सिंह ने अपनी आवाज़ से। गीत के बोलो के अंदर के भावों को जिस ईमानदारी से उन्होंने पकड़ा है वो दिल को छू जाता है। तो आइए याद करें अपनी अधूरी कहानियों को और सुनें ये संवेदनशील नग्मा..

 

पास आए..
दूरियाँ फिर भी कम ना हुई
एक अधूरी सी हमारी कहानी रही
आसमान को ज़मीन ये ज़रूरी नहीं ...जा मिले.. जा मिले..
इश्क़ सच्चा वही..जिसको मिलती नहीं मंज़िलें मंज़िलें


रंग थे, नूर था जब करीब तू था, इक जन्नत सा था, ये जहान
वक़्त की रेत पे कुछ मेरे नाम सा, लिख के छोड़ गया तू कहाँ
हमारी अधूरी कहानी....

खुश्बुओं से तेरी यूँ ही टकरा गए
चलते चलते देखो ना हम कहाँ आ गए

जन्नतें गर यहीं, तू दिखे क्यूँ नहीं, चाँद सूरज सभी है यहाँ
इंतज़ार तेरा सदियों से कर रहा, प्यासी बैठी है कब से यहाँ
हमारी अधूरी कहानी

प्यास का ये सफर खत्म हो जायेगा
कुछ अधूरा सा जो था पूरा हो जायेगा

झुक गया आसमान, मिल गए दो जहान, हर तरफ है मिलन का समाँ
डोलियां हैं सजी, खुशबुएँ हर कहीं, पढ़ने आया ख़ुदा ख़ुद यहाँ
हमारी अधूरी कहानी... 


वार्षिक संगीतमाला 2015

बुधवार, जनवरी 20, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 17 : ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे.. O Sathi Mere..

वर्षिक संगीतमाला का सफ़र अब मुड़ रहा हैं थिरकते, मुस्कुराते गीतों से अपेक्षाकृत गंभीर और रूमानी गीतों की तरफ़ और इस कड़ी की पहली पेशकश है सत्रहवीं पायदान पर बैठा तनु वेड्स मनु रिटर्न का ये नग्मा। संगीतकार क्रस्ना सोलो व गीतकार राजशेखर की जोड़ी इससे पहले 2011 में वार्षिक संगीतमाला के सरताज गीत यानि शीर्ष पर रहने का तमगा हासिल कर चुकी है। ज़ाहिर है जब इस फिल्म का सीक्वेल आया तो इस जोड़ी के मेरे जैसे प्रशंसक को थोड़ी निराशा जरूर हुई।

पिछली फिल्म में शर्मा जी के प्यार का भोलापन पहली फिल्म में राजशेखर से कितने दफ़े दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफ़े और रंगरेज़ जैसे गीत लिखा गया था। पर सीक्वेल में चरित्र बदले परिवेश बदला उसमें गीतकार संगीतकार के लिए पटकथा ने कुछ ज्यादा गंभीर व प्यारा करने लायक छोड़ा ही ना था। लिहाजा गीत संगीत फिल्म की परिस्थितियों के अनुरूप लिखे गए जो देखते समय तो ठीक ही ठाक लगे पर कानों में कोई खास मीठी तासीर नहीं छोड़ पाए। फिल्म देखने के बाद जब इस एलबम के गीतों को फिर से सुना तो एक गीत ऐसा मिला जिसे मैं फिल्म की कहानी से जोड़ ही नहीं पाया क्यूँकि शायद इसका फिल्म में चित्रांकन तो किया ही नहीं गया था। अब जब नायिका के तेवर ऐसे हों कि शर्मा जी हम बेवफ़ा क्या हुए आप तो बदचलन हो गए तो फिर शर्मा जी क्या खाकर बोल पाते कि ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे.. हाथों की अब गिरह दी ऐसे की टूटे ये कभी ना..


बहरहाल गीत की परिस्थिति फिल्म में भले ना बन पाई हो राजशेखर के लिखे बेहतरीन बोलों और सोनू निगम की गायिकी ने इस गीत का दाखिला संगीतमाला में करा ही दिया। बिहार के मधेपुरा के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले हुनरमंद राजशेखर के मुंबई पहुँचने की कहानी तो आपको यहाँ मैं पहले ही बता चुका हूँ। पिछले साल बिहार के चुनावों में बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो का उनका गीत खासा लोकप्रिय हुआ। बचपन में माँ पापा से नज़रे बचाकर पन्द्रह  सोलह घंटे रेडियो सुनने वाले इस बालक के लिखे गाने लोग उसी रेडियो पर बड़े चाव से सुन रहे हैं।

ज़िदगी का खट्टा मीठा सफ़र अपने प्रियतम के साथ गुजारने की उम्मीद रखते इस गीत की सबसे प्यारी पंक्तियाँ मुझे वो लगती हैं जब राजशेखर कहते हैं..

हम जो बिखरे कभी
तुमसे जो हम उधड़े कहीं
बुन लेना फिर से हर धागा
हम तो अधूरे यहाँ
तुम भी मगर पूरे कहाँ
करले अधूरेपन को हम आधा

सच अपने प्रिय से ऐसी ही उम्मीद तो दिल में सँजोए रखते हैं ना हम !

संगीतकार क्रस्ना सोलो का नाम अगर आपको अटपटा लगे तो ये बता दूँ कि वो ये उनका ख़ुद का रचा नाम है ताकि जब वो अपने विश्वस्तरीय संगीतज्ञ बनने का सपना पूरा कर लें तो लोगों को उनके नाम से ख़ुद को जोड़ने में दिक्कत ना हो। वैसे माता पिता ने उनका नाम अमितव सरकार रखा था। क्रस्ना ने इस गीत की जो धुन रची है वो सामान्य गीतों से थोड़ी हट के है और इसीलिए उसे मन तक उतरने में वक़्त लगता है। मुखड़े के बाद का संगीत संयोजन गीत के बोलों जितना प्रभावी नहीं है। रही गायिकी की बात तो कठिन गीतों को चुनौती के रूप में स्वीकार करना सोनू निगम की फितरत रही है। इस गीत में बदलते टेम्पो को जिस खूबसूरती से उन्होंने निभाया है वो काबिले तारीफ़ है। तो आइए सुनें ये गीत..

 

ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे..
हाथों की अब गिरह दी ऐसे
की टूटे ये कभी ना..

चल ना कहीं सपनों के गाँव रे
छूटे ना फिर भी धरती से पाँव रे
आग और पानी से फिर लिख दें वो वादे सारे
साथ ही में रोए हँसे, संग धूप छाँव रे
ओ साथी मेरे..

हम जो बिखरे कभी
तुमसे जो हम उधड़े कहीं
बुन लेना फिर से हर धागा
हम तो अधूरे यहाँ
तुम भी मगर पूरे कहाँ
कर ले अधूरेपन को हम आधा
जो भी हमारा हो मीठा हो या खारा हो
आओ ना कर ले हम सब साझा
ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे ..

 गहरे अँधेरे या उजले सवेरे हों
ये सारे तो हैं तुम से ही
आँख में तेरी मेरी उतरे इक साथ ही
दिन हो पतझड़ के रातें या फूलों की
कितना भी हम रूठे पर बात करें साथी
मौसम मौसम यूँ ही साथ चलेंगे हम
लम्बी इन राहों में या फूँक के फाहों से
रखेंगे पाँव पे तेरे मरहम

आओ मिले हम इस तरह
आए ना कभी विरह
हम से मैं ना हो रिहा
हमदम तुम ही हो
हरदम तुम ही हो
अब है यही दुआ
साथी रे उम्र के सलवट भी साथ तहेंगे हम
गोद में ले के सर से चाँदी चुनेंगे हम
मरना मत साथी पर साथ जियेंगे हम
ओ साथी मेरे..  

वार्षिक संगीतमाला 2015

शनिवार, जनवरी 16, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 18 : दिल की मान के, सीना तान के इश्क़ करेंगे, इश्क़ करेंगे Ishq karenge

कुछ संगीतकार, गीतकार व गायक ऐसे होते हैं जिनकी हर नई प्रस्तुति का हम सभी को बड़ी बेसब्री से इंतज़ार होता है। गुलज़ार, स्वानंद किरकिरे, प्रसून जोशी जिस फिल्म में हों उनसे ये उम्मीद हमेशा रहती है कि उनके शब्द जाल से कोई काव्यात्मक सा नग्मा निकलेगा । अमित त्रिवेदी, सचिन जिगर, प्रीतम के कुछ नए से संगीत संयोजन व रहमान, विशाल शेखर और एम एम करीम सरीखे संगीतकारों से कुछ मधुर गीतों की अपेक्षा तो रहती ही है। अगर गायिकी की बात करूँ तो सोनू निगम, राहत फतेह अली खाँ, अरिजित सिंह व श्रेया घोषाल भी ऐसी आशा जगाते हैं। पर इन गायकों के साथ एक और नाम है एक शख़्स का जिनकी आवाज़ का जादू ऐसा है कि उनके गीतों का इंतज़ार मुझे हमेशा होता है। ये आवाज़ है सोना महापात्रा की। 

सोना हिंदी फिल्मों में ज्यादातर अपने पति संगीतकार राम संपत की फिल्मों में ही गाती दिखाई पड़ती हैं। सत्यमेव जयते में उनके गाए गीतों को तो खासी लोकप्रियता मिली ही, पिछली संगीतमालाओं में उनके गाए गीत मन तेरा जो रोग है, अम्बरसरियानैना नूँ पता भी काफी सराहे गए। पिछले साल MTV के  कोक स्टूडियो में भी उन्होंने धमाल मचाया। पर इतना सब होते हुए भी मुझे हमेशा लगता है उनमें जितना हुनर है उस हिसाब से उनके और गाने हम संगीतप्रेमियों को सुनने को मिलने चाहिए।

इस साल उनका गाया जो गीत इस संगीतमाला में दाखिल हुआ है वो एक समूह गीत है। ये गीत है फिल्म बंगिस्तान का । अब जिस फिल्म का नाम इतना अटपटा हो उसके गीतों में हास्य की झलक तो मिलेगी ना। बंगिस्तान फिल्म का ये गीत लोगों को इश्क़ करने को बढ़ावा देता है और वो भी एक अलग और अनूठे अंदाज़ में।


इस गीत को लिखा है नवोदित गीतकार और मेरठ के बाशिंदे पुनीत कृष्ण ने। पुनीत को बचपन से ही कविता लिखने का शौक़ था। पहली नौकरी मुंबई में मिली तो अंदर ही अंदर फिल्म इंडस्ट्री में काम का सपना और तेजी से पैर फैलाने लगा। पहली बार तबादला होने पर पुनीत ने नौकरी ही छोड़ दी और दूसरों को नौकरी लगाने के लिए एक फर्म खोल ली। साथ ही वे फिल्म उद्योग के लोगों से भी मेल जोल बढ़ाते रहे। अपने दोस्तों के साथ मिलकर उन्होंने बंगिस्तान की कहानी लिखी जो निर्माता फरहान अख़्तर को पसंद आ गई। पटकथा के बहाने उन्हें गीत लिखने का भी मौका मिला और अब उसका नतीज़ा अब आपके सामने है। गीत में प्रयुक्त उनके दो भाव गीत को सुनने के बाद भी  याद रह जाते हैं। एक तो  तब जब वो रूमानी अंदाज़ में वो इश्क की चाशनी से दिल के कुओं से  भरने की बात करते हैं और  दूसरी ओर अपनी उन का हाथ पकड़ने से लाइफ के बैकग्राउंड स्कोर मे, सेंटी वायलिन बजने की बात होठों पर एक मुस्कुराहट छोड़ जाती है।

इस गीत में सोना मोहापात्रा का साथ दिया है अभिषेक नैलवाल और शादाब फरीदी की तिकड़ी ने। गीत को जिस जोश खरोश की जरूरत थी वो अपनी उर्जा से इस तिकड़ी ने उसमें भर दी है। राम संपत ने गीत का अंदाज़ कव्वालियों वाला रखा है। मुखड़े और इंटल्यूड्स में राम हारमोनियम का खूबसूरत प्रयोग करते हैं खासकर तीसरे मिनट के बाद आने वाले टुकड़े में। तो आप भी थोड़ा इश्क़ कर लीजिए ना इस गीत से..




चढ़ के ऊँची दीवारों पे, हम ऍलान करेंगे
दिल की सुनने वालो से ही, हम पहचान करेंगे
और नहीं कुछ पढना हमको, हम तो हीर पढेंगे
इश्क चाशनी से हम, अपने दिल के कुएँ भरेंगे
अरे और नहीं कुछ पढना हमको, हम तो हीर पढेंगे
इश्क चाशनी से हम, अपने दिल के कुएँ भरेंगे
जब भी उसका हम हौले से, हाथ ज़रा पकड़ेंगे
लाइफ के बैकग्राउंड स्कोर मे, सेंटी वायलिन बजा करेंगे
दिल की मान के, सीना तान के इश्क़ करेंगे, इश्क़ करेंगे
अरे दिल की मान के, सीना तान के इश्क़ करेंगे, इश्क़ करेंगे
हो इश्क़ करेंगे, इश्क़ करेंगे इश्क़ करेंगे

ख्वाब आँखों से यूँ छलके, हो साथी बन के दो पल के
हाँ तू भी देख ले यारा, हाँ मेरे साथ मे चलके
हो ऐसा आएगा एक दिन, हर कोई गायेगा एक दिन
जो तुझसे रूठ के बैठा, वो दर पे आएगा एक दिन
जिन गलियों से वो गुजरेगा, दिल अपना रख देंगे
रेड कार्पेट पे फ्लैश बल्बस ले, उसकी राह तकेंगे
दिल की मान के सीना तान के इश्क़ करेंगे....

तू राँझा हैं, तू मजनूँ हैं, जिधर देखू हाँ बस तू हैं
तू मिले तो झूम के नाचूँ, ख़ुशी का आलम हरसू हैं
ये तेरे हाथो की नरमी, ये तेरे बातो की नरमी
गले तेरे जो लग जाऊँ, तो मई और जून की गर्मी
हर जाड़ो मे हम थोड़ी सी, धूप ज़रा सेकेंगे
हैप्पी सा दि एंड होगा, सनसेट संग देखेंगे
दिल की मान के सीना तान के इश्क़ करेंगे....

ना तेरा हैं, ना मेरा हैं, ये जग तो रैन बसेरा हैं
ये काली रात जो जाए, तो फिर उजला सवेरा हैं
ये तेरे हाथ में प्यारे, कि बंधन तोड़ दे सारे
कि तू आज़ाद हो जाए, वो तेरे चाँद और तारे
सच कहते हैं हम तो, जब भी कोशिश ज़रा करेंगे
स्लो मोशन मे विद इमोशन, लाखो फूल झडेंगे
हम बन्दे हैं बंगिस्तान के, इश्क करेंगे, इश्क करेंगे
अरे दिल की मान के सीना तान के इश्क़ करेंगे....

वार्षिक संगीतमाला 2015

शुक्रवार, जनवरी 15, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 19 : अफ़गान जलेबी, माशूक फ़रेबी .. Afghan Jalebi

वार्षिक संगीतमाला के दो हफ्तों के सफ़र को पार कर हम जा पहुँचे है इस गीतमाला की उन्नीस वीं सीढ़ी पर। यहाँ जो गीत बैठा है वो मेरा इस साल का चहेता डॉन्स नंबर है। जब भी ये गीत सुनता है मन झूमने को कर उठता है। ये गीत है फिल्म फैंटम का और इसके संगीतकार हैं प्रीतम। 

आजकल जो गाने थिरकने के लिए बनाए जाते हैं उसमें ध्यान बटोरने के अक़्सर भोंडे शब्दों का इस्तेमाल जनता जनार्दन में सस्ती लोकप्रियता हासिल करने में होता रहा है। मेरा मानना है कि नृत्य प्रधान गीत भी अच्छे शब्दों के साथ उतना ही प्रभावी हो सकता है। बंटी और बबली का गीत कजरारे कजरारे तेरे काले काले रैना जो एक ऐसा ही गीत था । अफ़गान जलेबी में भी शब्दों का चयन साफ सुथरा है और इसका जानदार संगीत संयोजन इस गीत को संगीतमाला में स्थान दिलाने में कामयाब रहा है।

गीत तालियों की थाप से शुरु होता है और फिर अपनी लय को पकड़ लेता है जिससे श्रोता एक बार बँधता है तो फिर बँधता ही चला जाता है। अमिताभ भट्टाचार्य ने फिल्म के माहौल के हिसाब से गीत में उर्दू के शब्दों का इस्तेमाल किया है। प्रीतम ने इस गीत को कई गायकों से थोड़ी बहुत फेर बदल के साथ गवाया है। पर जो वर्सन में आपको सुनाने जा रहा हूँ वो पाकिस्तान के गायक सैयद असरार शाह ने गाया है। प्रीतम ने असरार  की आवाज़ कोक स्टूडियो पर सुनी और इस गीत के लिए उन्हें चुन लिया। असरार कहते हैं कि इस गीत को गाना उन्होंने इसलिए स्वीकार किया क्यूँकि इसमें नायिका की खूबसूरती को एक तरीके से उभारा गया है और अल्लाह की बनाई किसी चीज़ की तारीफ़ करना ख़ुदा की ही इबादत करना है।

अमिताभ भट्टाचार्य का ये गीत रोमांटिक से ज्यादा नटखट गीतों में गिना जाएगा जिसके सहज बोलों में हल्का सा हास्य का पुट भी है। इसलिए एक ओर तो गीत में बंदूक दिखा दिखा के प्यार करने वाली नायिका की उलाहना करते हैं तो दूसरी ओर अपनी दाल नहीं गलने पर ख़्वाज़ा जी से शिकायत लगाने की भी बात करते हैं। तो आइए सुनते हैं ये मज़ेदार नग्मा

 


मक़तूल ज़िगर1 या बाबा, क़ातिल है नज़र या बाबा
इक माहजबीं2 या बाबा, इक नूरे ए नबी या बाबा
रब की रुबाई3 या बाबा, या है तबाही या बाबा
गर्दन सुराही या बाबा, बोली इलाही या बाबा
अफ़गान जलेबी, माशूक फ़रेबी
घायल है तेरा दीवाना, भाई वाह,  भाई वाह

1 वो हृदय जो छलनी हो 2. चंद्रमा के समान मुख वाली यानि बेहद सुंदर 3. भगवान की कविता

बन्दूक दिखा के क्या प्यार करेगी
चेहरा भी कभी दिखाना भाई वाह
भाई वाह भाई वाह भाई

ओ.. देख दराज़ी 4, ओ बंदा नमाज़ी
खेल के बाज़ी वल्लाह खामख्वाह
अब ठहरा ना किसी काम का वल्लाह वल्लाह
मीर का कोई वल्लाह, शेर सुना के वल्लाह
घूँट लगा के वल्लाह जाम का..मैं रहा खान महज़ नाम का

4 शारीरिक बनावट

ओये लख्त ए जिगर5 या बाबा
ओये नूर ए नज़र6 या बाबा
एक तीर है तू या बाबा, मैं चाक ज़िगर या बाबा
बन्दों से नहीं तो, अल्लाह से डरेगी
वादा तो कभी निभाना भाई वाह
भाई वाह भाई वाह भाई
बन्दूक दिखा दिखा के क्या प्यार करेगी...
चेहरा भी कभी दिखाना भाई वाह, भाई वाह

5. दिल का टुकड़ा 6 आँख की रोशनी

ख्वाज़ाजी की पास तेरी चुगली करूँगा
मैं तेरी चुगली करुँगा, हाँ तेरी चुगली करूँगा
अगूँठी में क़ैद तेरी उँगली करूँगा,
मैं तेरी चुगली करुँगा, हाँ तेरी चुगली करूँगा

गुले गुलज़ार  या बाबा, मेरे सरकार या बाबा
बड़े मंसूब या बाबा, तेरे रुखसार7 या बाबा
हाय शमशीर8 निगाहें, चाबुक सी अदाएँ
नाचीज़ पे ना चलाना भाई वाह भाई वाह
 

7..गाल 8. तलवार

बन्दूक दिखा दिखा के क्या प्यार करेगी
चेहरा भी कभी दिखाना भाई वाह, भाई वाह
 

वार्षिक संगीतमाला 2015

मंगलवार, जनवरी 12, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 20 : रंग दे तू मोहे गेरुआ Rang De Tu Mohe Gerua

वार्षिक संगीतमाला के इस सफ़र में हम आ पहुँचे हैं बीसवीं पायदान के गीत पर। आइसलैंड की खूबसूरत वादियाँ में फिल्माया ये चर्चित गीत है फिल्म दिलवाले का जिसे आपने पिछले महीने एफ एम रेडियो या संगीत के चैनल्स पर जरूर सुना होगा। गाना तो आप पहचान ही गए होंगे रंग दे तू मोहे गेरुआ। इस गीत के बारे में आज बातें तो होंगी ही पर साथ ही आपको बताएँगे इस गीत के अहम किरदारों के बारे में और ये भी कि ये गीत कैसे अस्तित्व में आया?


प्रीतम जब दिलवाले की धुन को रच रहे थे तब निर्देशक रोहित शेट्टी बुल्गारिया में शूटिंग कर रहे थे। शाहरुख को भी वहाँ जाना था पर जाने के पहले वो गीत को अंतिम रूप में सुन लेना चाहते थे।  वहाँ जाने के पहले तय हुआ कि शाहरुख प्रीतम के स्टूडियो में गाना सुनने आएँगे। प्रीतम ने मुखड़े की धुन तो रच ली थी पर गाना तैयार नहीं हुआ था।  उन्होंने गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य को कहा कि जब तक शाहरुख बाद्रा से अँधेरी पहुँचे तब तक हमें गीत तैयार कर लेना है। 

प्रीतम की धुन पर अमिताभ ने लिखा रांझे की दिल से है दुआ ..रंग दे तू मोहे गेरुआ । अब इसमें जो गेरुआ शब्द है वो प्रीतम को जँचा नहीं। हिंदी भाषा से वो ज्यादा परिचित नहीं थे तो उन्हें ये कम प्रयुक्त होने वाला शब्द अटपटा सा लगा। पर अमिताभ अड़े रहे। अंत में प्रीतम को झुकना पड़ा। ख़ैर पैंतालीस मिनट के भीतर गीत का मुखड़ा क्या अंतरा तक बन गया। शाहरुख ने भी गाना सुन यही कहा कि  गेरुआ सुनने में तो अच्छा लग रहा है पर पता नहीं नया शब्द होने की वज़ह से  देखने वाले उसे कैसे लेंगे पर फिर भी गीत वैसे ही बना।

अरिजीत तो बर्फी के ज़माने से ही प्रीतम के प्रिय रहे हैं। स्त्री स्वर के लिए उन्होंने नवोदित गायिका अंतरा मित्रा को चुना। ये वही अंतरा थीं जिन्होंने प्रीतम ने  आर राजकुमार में साड़ी का फॉल सा तुझे मैच किया रे में मौका दिया था। बंगाल के संथालपरगना जिले के एक छोटे से शहर से ताल्लुक रखने वाली अंतरा यूँ तो संगीत बचपन से सीखती रहीं पर इसे कैरियर बनाने का ख़्याल उन्हें तब आया जब वो इंडियन आइडल  कार्यक्रम के अंतिम पाँच प्रतियोगियों में जगह बनाने में कामयाब रहीं। वर्ना इससे पहले वो मेडिकल की प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रही थीं। दिलवाले के इस गीत के लिए उन्हें एक डमी सिंगर की हैसियत से बुलाया गया था ताकि ये अंदाज़ा लगे कि स्त्री स्वर में ये गीत कैसा लग रहा है। गीत की रिकार्डिंग रात तीन बजे हुई।  बाद में रोहित व शाहरुख ने उनके उस रात गाए वर्सन को ही स्वीकृति दे दी और वो फिल्म का हिस्सा बन गया।

गीत की शुरुआत (पहले बीस सेकेंड निकलने के बाद) प्रीतम ने इसी फिल्म के दूसरे गीत जनम जनम की सिग्नेचर धुन से की है। बाकी का संगीत संयोजन कुछ deja vu सा अहसास दिलाता है। अमिताभ के बोल भी जितना मुखड़े में आकर्षित करते हैं उतनी पकड़ अंतरों में नहीं रख पाते पर संपूर्णता में गीत को सुनना अच्छा ही लगता है। 

और हाँ ये तो बताइए कि अमिताभ रंग दे तू मोहे गेरुआ द्वारा कहना क्या चाहते हैं? नायक नायिका से कहना ये चाह रहा है कि तुम मुझे अपने प्रेम में जोगी बना दो यानि गेरुए रंग में रंग दो..

धूप से निकल के, छाँव से फिसल के
हम मिले जहाँ पर, लम्हा थम गया
आसमां पिघल के, शीशे में ढल के
जम गया तो तेरा, चेहरा बन गया
दुनिया भुला के तुमसे मिला हूँ
निकली है दिल से ये दुआ
रंग दे तू मोहे गेरुआ
रांझे की दिल से है दुआ
रंग दे तू मोहे गेरुआ
हाँ निकली है दिल से ये दुआ
हो रंग दे तू मोहे गेरुआ

हो तुमसे शुरू.. तुमपे फ़ना
है सूफियाना ये दास्तां
मैं कारवाँ मंज़िल हो तुम
जाता जहाँ को हर रास्ता
तुमसे जुड़ा जो, दिल ज़रा संभल के
दर्द का वो सारा , कोहरा छन गया
दुनिया भुला के तुमसे मिला हूँ ....रंग दे तू मोहे गेरुआ

हो वीरान था, दिल का जहान
जिस दिन से तू दाखिल हुआ
इक जिस्म से इक जान का
दर्ज़ा मुझे हासिल हुआ
हाँ फीके हैं सारे, नाते जहाँ के
तेरे साथ रिश्ता गहरा बन गया
दुनिया भुला के तुमसे मिला हूँ ....रंग दे तू मोहे गेरुआ

ये गाना इस साल के सबसे खूबसूरत फिल्माए गानों की उपाधि  के लिए सबसे मजबूत दावेदार हैं। आइसलैंड की खूबसूरती को रोहित शेट्टी ने बड़े क़रीने से उतारा है रुपहले पर्दे पर इस गीत के माध्यम से..

वार्षिक संगीतमाला 2015

सोमवार, जनवरी 11, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 21 : सूरज डूबा है यारों Sooraj Dooba Hai Yaaron...

संगीतमाला की अगली पायदान सुरक्षित है एक ऐसे गीत के लिए जिसके बोल और संगीत के साथ पिछले साल देश की युवा पीढ़ी के सबसे ज्यादा पैर थिरके होंगे।  फिल्म रॉय के इस गीत में अमल द्वारा दिए गए नृत्य के लिए मन माफिक संगीत संयोजन के साथ अरिजित सिंह की आवाज़ और कुमार के बोल मस्ती का वो माहौल तैयार करते हैं कि मन सब कुछ भूल इस गीत की रिदम के साथ बहता चला जाता है। बतौर फिल्म रॉय कोई खास तो नहीं चली पर इसके संगीत को आम जन में लोकप्रियता खूब मिली। 


कुमार का लिखा ये गीत हमें अपनी अभी की परेशानियों को भूल कर बेफिक्री के कुछ पल अपने आप को देने की ताकीद करता है। सच बेफिक्री का भी अपना ही मज़ा है। जीवन में काम तो लगे ही रहते हैं पर उसमें अपनी ज़िंदगी इतनी भी ना उलझा लीजिए कि ख़ुद अपने लिए वक़्त ही ना रहे। जब तक चिंतामुक्त होकर अपने अंदर की आवाज़ को हम बीच बीच में नहीं टटोलेंगे तो बस एक मशीन बन कर ही रह जाएँगे।  अब ये अलग बात है कि कुछ लोग इस अहसास तक पहुंचने के लिए नशे का सहारा लेते हैं तो कुछ स्वाभाव से ही मस्तमौला होते हैं। 

अपने देश में तो मद्यपान बहस का विषय है पर इस गीत के मुखड़े को सुन कर मुझे जापान के लोग याद आ जाते हैं। आपको विश्वास नहीं होगा कि वहाँ दिन भर लोग कड़े अनुशासन में मेहनत से काम करते हैं पर शाम ढलते ही उनका सारा ध्यान इस बात पर रहता है कि कब उन्हें मदिरा पान का सुख मिलेगा। पश्चिमी संस्कृति की तरह जापानी समाज के बहुत बड़े तबके का रिलैक्स होने का यही तरीका है। मतलब जिस तरह ये गीत यहाँ लोकप्रिय हुआ है वैसा जापान में भी हो जाता। :)

इस गीत के युवा संगीतकार हैं अमल मलिक जो गायक व संगीतकार अरमान मलिक के भाई और अनु मलिक के भतीजे हैं। अमल के कैरियर की शुरुआत 23 साल की छोटी उम्र में सलमान खाँ की फिल्म जय हो से हुई थी। पिछले साल खूबसूरत में भी उनके गाने सराहे गए थे। अपने संगीत में वो ज्यादा जटिलताएँ नहीं चाहते। उनके लिए अच्छे संगीत का मतलब वो है जिससे आम जन अपने आप को जोड़ सकें। अगर आपने किसी पार्टी में हफ्ते में चार शनिवार होने चाहिए वाला गीत सुना है तो ये उनकी ही कृति है। ख़ैर ये उनके शुरुआती दिन हैं। वक्त के साथ उनकी इस सोच में और गंभीरता आएगी ये उम्मीद तो अभी उनसे रखी ही जा सकती है।

अरिजित सिंह की आवाज़ के हम सब शैदाई हैं और उन्होंने इस गीत में नया कुछ भले ना किया हो पर सुनने वालों को निराश भी नहीं किया। गीत में उनका साथ दिया है अदिति सिंह शर्मा ने। तो आइए सुनते हैं झूमने झुमाने वाला ये गीत..


मतलबी हो जा ज़रा मतलबी
दुनिया की सुनता है क्यूँ
ख़ुद की भी सुन ले कभी

कुछ बात ग़लत भी हो जाए
कुछ देर ये दिल खो जाए
बेफिक्र धड़कने, इस तरह से चले
शोर गूँजे यहाँ से वहाँ

सूरज डूबा है यारों दो घूँट नशे के मारो
रस्ते भुला दो सारे घर बार के
सूरज डूबा है यारों दो घूँट नशे के मारो
ग़म तुम भुला दो सारे संसार के

Ask me for anything, I can give you everything
रस्ते भुला दो सारे घर बार के
Ask me for anything, I can give you everything
ग़म तुम भुला दो सारे संसार के

अता पता रहे ना किसी का हमें
यही कहे ये पल ज़िन्दगी का हमें
अता पता रहे ना किसी का
यही कहे ये पल ज़िन्दगी का
की ख़ुदग़र्ज़ सी, ख्वाहिश लिए
बे-साँस भी हम तुम जियें
है गुलाबी गुलाबी समां, सूरज डूबा है यारों... 

चलें नहीं उड़ें आसमां पे अभी 
पता न हो है जाना कहाँ पे अभी
चलें नहीं उड़ें आसमां पे
पता न हो है जाना कहाँ पे
कि बेमंजिलें हो सब रास्ते
दुनिया से हो जरा फासलें
कुछ ख़ुद से भी हो दूरियाँ

वार्षिक संगीतमाला 2015

 

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