रविवार, जुलाई 23, 2017

कहाँ से आए बदरा..रोए मन है पगला Kahan Se Aaye Badra ...

मौसम सावन का  है। वर्षा की हल्की हल्की फुहारें बंद होने का नाम नहीं ले रहीं और काले बादल मेरे शहर में यूँ खूँटा डाले हैं जैसे कह रहे हों कि कभी तो घर से निकलोगे? आज तो तर कर के ही छोड़ेंगे। इसी रिमझिम के बीच टहलते हुए रेडियो से एक सदाबहार नग्मा सुनाई दिया जिसे आख़िर तक सुनते हुए मन ग़मगीन सा हो गया। मैं सोचने लगा। इंसान की फितरत भी अजीब है। अपने आस पास के वातावरण को मूड के हिसाब से कुछ यूँ ढाल लेता है कि सावन, बदरा... जैसे बिंब जो कभी मन को उमंग से भर देते हैं वही हृदय में दर्द का सैलाब भी ले आते हैं।

मैं जिस गीत की बात आपसे कर रहा हूँ वो है अपने ज़माने की बेहद चर्चित फिल्म चश्मे बद्दूर का जो 1981 में बनी थी और खासी सफल भी हुई थी। । मैंने जब छुटपन में ये फिल्म देखी थी तो मिस चमको और तीन दोस्तों की आपरी तकरार के दृश्य ही बहुत दिनों तक मन में जमे रहे थे। इस फिल्म की पटकथा, निर्देशन व अभिनय को जितनी तवज़्जह मिली पर लोगों का उतना ध्यान इसके गीत संगीत रचनेवालों पर नहीं गया। अब संगीतकार राजकमल, गीतकार इंदु जैन और येशुदास का इस गीत में साथ निभाने वाली गायिका हेमंती शुक्ला के नाम तो आज की पीढ़ी के लिए अनसुने ही होंगे।

बतौर संगीतकार राजकमल ने फिल्म सावन को आने दो में अपने दो दशक तक फैले फिल्मी कैरियर का सबसे शानदार काम किया। तबले में प्रवीण राजकमल शास्त्रीय और लोक दोनों तरह के संगीत में समान रूप से पकड़ रखने के लिए जाने जाते थे। चश्मे बद्दूर में उन्होंने दो शास्त्रीय गीतों की रचना की। काली घोड़ी द्वार खड़ी.. और कहाँ से आए बदरा। कहाँ से आए बदरा.. राग मेघ पर आधारित गीत है जिसके लिए येशुदास के साथ राजकमल ने बंगाल की शास्त्रीय गायिका हेमंती शुक्ला की आवाज़ का इस्तेमाल किया।

येशुदास के साथ राजकमल ने जब जब काम किया परिणाम शानदार रहे। येसूदास ने उनके संगीतबद्ध हर नग्मे में आवाज़ की गहराई और खनक से गीत में प्राण फूँक दिए । ये गीत यूँ तो फिल्म में नायिका के अन्तरमन का द्वार खोल रहा है पर येशुदास की उपस्थिति ने इस गीत को लोकप्रियता की बुलंदियों तक पहुँचाया।

येशुदास, इंदु जैन, हेमंती शुक्ला व राजकमल
ये युगल गीत एक मनमोहक आलाप से शुरु होता है और फिर आती है मुखड़े के साथ घुँघरुओं और तबले की सुरीली संगत। गीत में प्रयुक्त इंटरल्यूड्स हों या अंतरे में बोलों के पीछे चलती हल्की बाँसुरी राजकमल के संगीत का जादू हर तरफ दिखाई देता है। रही बात शब्दों की तो इंदु जैन के लिखे शब्द इस गीत की जान हैं। 

आकाश में उमड़ते घुमड़ते काले बादल नायिका के व्यथित हृदय की पीड़ा को किस तरह अश्रुओं के सावन में तब्दील कर देते हैं इसी का संवेदनशील चित्रण किया है इंदु जी ने इस गीत में। उनके गीत में ठेठ हिंदी शब्दों को समावेश है जो कि एक कविता के रूप में बहते चले जाते हैं। इस गीत का उनका आखिरी अंतरा मुझे सर्वाधिक प्रिय हैं जिसमें वो कहती हैं..उतरे मेघ हिया पर छाये ...निर्दय झोंके अगन बढ़ाये...बरसे है अँखियों से सावन...रोए मन है पगला...कहाँ से आये बदरा..

ये बड़े अफ़सोस की ही बात हे कि इतनी प्रतिभावान गीतकार होते हुए भी इंदु जैन का फिल्मी कैरियर सई परांजपे की फिल्मों कथा, स्पर्श और चश्मे बद्दूर में ही सिमट कर रह गया। हिंदी फिल्म संगीत में भले ही उन्होंने एक छोटी पारी खेली हो पर साहित्य के क्षेत्र में इंदु जी ने बतौर कवयित्री कुछ न कुछ टकराएगा जरूर, कितनी अवधि, आसपास राग, यहाँ कुछ हुआ तो था, चूमो एक लहर है कविता, हवा की मोहताज क्यों रहूँ जैसे कई कविता संग्रह के ज़रिए अपना महती योगदान दिया। दूरदर्शन और रेडियो से भी वो जीवन पर्यन्त जुड़ी रहीं। 72 वर्ष की आयु में सन 2008 में उन्होंने इस संसार को अलविदा कह दिया।

तो आइए सुनें येशुदास और हेमंती की आवाज़ में ये गीत..

कहाँ से आए बदरा हो..
घुलता जाए कजरा
कहाँ से आए बदरा ...

पलकों के सतरंगे दीपक
बन बैठे आँसू की झालर
मोती का अनमोलक हीरा
मिट्टी में जा फिसला

कहाँ से आए बदरा हो..घुलता जाए कजरा
कहाँ से आए बदरा ...

नींद पिया के संग सिधारी
सपनों की सूखी फुलवारी
अमृत होठों तक आते ही
जैसे विष में बदला

कहाँ से आए बदरा हो..
घुलता जाए कजरा
कहाँ से आए बदरा ...

उतरे मेघ हिया पर छाये
निर्दय झोंके अगन बढ़ाये
बरसे है अँखियों से सावन
रोए मन है पगला
कहाँ से आये बदरा..

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10 टिप्पणियाँ:

Rajesh Goyal on जुलाई 24, 2017 ने कहा…

मेरे पसंदीदा गीत से पुनः मुलाकात करवाने का शुक्रिया । इस गीत में चमत्कारिक रूप से किसी का भी मूड चेंज करने की क्षमता है। Marvelous music and exceptional singing. Once again Thank YOU very much.

Rajesh Goyal on जुलाई 24, 2017 ने कहा…

येसुदास मेरे पसंदीदा गायक हैं । इन पर भी एक शोधपरक post करेंगे तो ये मेरे ऊपर आपका व्यक्तिगत अहसान होगा।

pushpendra dwivedi on जुलाई 25, 2017 ने कहा…

waah bahut khoob behtareen lekh iske madhyam se apne to 80 ke dasak ki sair kara di shukriyaa

Manish Kumar on जुलाई 29, 2017 ने कहा…

राजेश जी सही कहा आपने इस गीत के बारे में। येसूदास के बारे में आलेख के लिए आपका अनुरोध को जब भी फली भूत कर पाऊँगा आपको इत्तला करूँगा।

Manish Kumar on जुलाई 29, 2017 ने कहा…

पुष्पेंद्र जी धन्यवाद !

सोहेल कापड़िया on सितंबर 14, 2017 ने कहा…

जी ये गीत हर बार मुझे नया लगता है

Manish Kumar on सितंबर 16, 2017 ने कहा…

अच्छा ऐसा.. :)

pushpendra dwivedi on सितंबर 16, 2017 ने कहा…

manish ji tahe dil se swagat hai apka

सोहन शर्मा ने कहा…

बहुत शानदार गीत आपने सही कहा इस गीत के रचनाकारों संगीतकारों और गायको जो सम्मान मिलना चाहिए वो नहीं मिला आज के दौर में एसे गीतों की कल्पना भी नहीं की जा सकती

Manish Kumar on फ़रवरी 14, 2024 ने कहा…

@Sohan Sharma हर दौर में फिल्म संगीत अपनी शक़्ल बदलता है। आज के दौर में तो ऐसे गीतों को याद कर के खुश रहा जा सकता है।

 

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