जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
रंगों की दुनिया मुझे बेहद पसंद है। हर रंग का हमारे दिलो दिमाग पर एक अलग असर होता है। कुछ रंग हमारी कमज़ोरी होते हैं और उनसे रँगे साजो समान हमें तुरत फुरत में पसंद आ जाते हैं जबकि कुछ को देख कर ही हम अपनी नाक भौं सिकोड़ने लगते हैं। रंगों से हमारी मुलाकात बचपन में प्रतीकों के तौर पर करायी गयी थी। सफेद रंग शांति का तो काला शोक का। लाल को गुस्से से तो नीले को सौम्यता से जोड़ कर देखा गया। कभी कभी मन में सवाल उठता है कि रंगों की दुनिया क्या इतनी सहज और एकरूपी है? सच पूछिए तो हर रंग एक आईने की तरह है। देखनेवाला उसे जिस भावना से देखे वही अक़्स उस रंग में नज़र आने लगता है।
आधुनिक हिंदी कविता के जाने माने हस्ताक्षर कुँवर नारायण ने एक कविता लिखी थी उदासी के रंग। अब शायद ही जीवन का कोई हिस्सा हो जहाँ उल्लास के साथ उदासी का रंग ना फैला हो। ऐसे ही उदास मन से कुँवर नारायण ने जब अपने आसपास की प्रकृति को देखा तो उन्हें क्या नज़र आया पढ़िए व सुनिए मेरी आवाज़ में..
उदासी भी
एक पक्का रंग है जीवन का
उदासी के भी तमाम रंग होते हैं जैसे फ़क्कड़ जोगिया पतझरी भूरा
संगीतकार रोशन और गीतकार साहिर लुधयानवी ने यूँ तो कई फिल्मों में साथ साथ काम किया पर 1963 में प्रदर्शित ताजमहल उनके साझा सांगीतिक सफ़र का अनमोल सितारा थी। दोनों को उस साल ताजमहल के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। रोशन को सबसे अच्छे फिल्म संगीत के लिए और साहिर को जो वादा किया है निभाना पड़ेगा गीत लिखने के लिए। बतौर संगीतकार यूँ तो रोशन की गीत, ग़ज़ल और कव्वाली रचने में माहिरी थी पर उनमें आत्मविश्वास की बेहद कमी थी इसलिए अपने गीतों की असफलता का डर उन्हें हमेशा सताता था। वो अक्सर अपने संगीतोबद्ध गीतों पर दूसरों की राय से बहुत प्रभावित हो जाया करते थे। ऐसी मनोस्थिति में फिल्मफेयर का ये पहला पुरस्कार उनके लिए कितना मायने रखता होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
ताजमहल में जो गीत सबसे मकबूल हुआ वो था जो वादा किया है निभाना पड़ेगा। मेरी नज़र में गीत के बोलों के ख्याल से साहिर का सबसे अच्छा काम जो बात तुझमें है तेरी तस्वीर में नहीं में था पर फिल्मफेयर हमेशा से गुणवत्ता से ज्यादा लोकप्रियता पर विश्वास करता आया है इसलिए इस गीत को कोई पुरस्कार तब नहीं मिला। अपनी प्रेयसी के किन खूबसूरत पहलुओं को उसकी तस्वीर उभार नहीं पाती इसे साहिर ने कितने प्यार से गूँथा था गीत के इन अंतरों में।
रंगों में तेरा अक्स ढाला, तू ना ढल सकी साँसों की आँच, जिस्म की खुशबू ना ढल सकी तुझ में जो लोच है, मेरी तहरीर में नहीं बेजान हुस्न में कहाँ, रफ़्तार की अदा इन्कार की अदा है ना इकरार की अदा कोई लचक भी जुल्फ-ए-गिरहगीर में नहीं जो बात तुझमें है, तेरी तस्वीर में नहीं
गीतों में ऐसी कविता आजकल भूले भटके ही मिलती है। ऐसी पंक्तियाँ कोई साहिर जैसा शायर ही लिख सकता था जिसने प्रेम को बेहद करीब से महसूस किया हो। रफ़ी साहब ने इसे गाया भी बड़ी मुलायमियत से था।
रोशन ने मैहर के अताउल्लाह खान से जो सारंगी सीखी थी उसका अपने गीतों में उन्होंने बारहा प्रयोग किया। इस गीत में भी तबले के साथ सारंगी की मोहक तान को आप जगह जगह सुन सकते हैं।
इसी फिल्म का सवाल जवाब वाले अंदाज़ में रचा एक युगल गीत भी तब काफी लोकप्रिय हुआ था। साहिर की कलम यहाँ भी क्या खूब चली थी.. दो मचलते प्रेमियों की मीठी तकरार कितनी सहजता से उभरी थी उनकी लेखनी में ..
पाँवछूलेनेदोफूलोंकोइनायतहोगी दिलकीबेचैनउमंगोंपेकरमफ़रमाओ इतनारुकरुक के चलोगी तोक़यामतहोगी
शर्मरोकेहैइधर, शौक़ उधरखींचेहै क्याखबरथी कभी इसदिलकीयेहालतहोगी
वैसे तो हिंदी फिल्म संगीतकारों में मदनमोहन को फिल्मी ग़ज़लों का बेताज बादशाह माना गया है पर अगर संगीतकार रोशन द्वारा संगीतबद्ध ग़ज़लों को आँका जाए तो लगेगा कि उनकी ग़ज़लों और नज़्मों को वो सम्मान नहीं मिला जिनकी वे हक़दार थीं। लता मंगेशकर मदनमोहन की तरह रोशन की भी प्रिय गायिका थीं। रोशन ने उनकी आवाज़ में दुनिया करे सवाल तो, दिल जो ना कह सका, रहते थे कभी जिनके दिल में जैसी प्यारी ग़ज़लें रचीं। सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में उनके द्वारा संगीतबद्ध नज़्म शराबी शराबी ये सावन का मौसम भी मुझे बेहद प्रिय है।
ताजमहल के लिए भी उन्होंने साहिर से एक ग़ज़ल लिखवाई जुर्म ए उल्फत पे हमें लोग सज़ा देते हैं। बिल्कुल नाममात्र के संगीत पर भी इस ग़ज़ल की धुन का कमाल ऐसा है कि दशकों बाद भी इसका मुखड़ा हमेशा होठों पर आ जाया करता है। साहिर की शायरी का तिलिस्म लता की आवाज़ में क्या खूब निखरा है। राग अल्हैया बिलावल पर आधारित इस धुन में मुझे बस एक कमी यही लगती है कि अशआरों के बीच संगीत के माध्यम से कोई अंतराल नहीं रखा गया।
जुर्म-ए-उल्फ़तपेहमेंलोगसज़ादेतेहैं कैसेनादानहैं, शोलोंकोहवादेतेहैं हम सेदीवानेकहीं तर्क-ए-वफ़ाकरतेहैं जानजाये कि रहे,बातनिभादेतेहैं आपदौलतकेतराज़ू में दिलोंको तौलें हममोहब्बतसेमोहब्बतकासिलादेतेहैं तख़्तक्याचीज़हैऔरलाल-ओ-जवाहरक्याहै इश्क़वालेतोखुदाईभीलुटा देतेहैं हमनेदिलदेभीदियाअहद--ए-वफ़ालेभीलिया आपअब शौक़ से दे दें,जोसज़ादेतेहैं (उल्फ़त : प्रेम , तर्क-ए-वफ़ा : बेवफ़ाई, सिला :प्रतिकार, लाल-ओ-जवाहर : माणिक, अहद--ए-वफ़ा :वफ़ा का वादा )
ग़ज़ल लता के मधुर से आलाप से शुरु होती है। आलाप खत्म होते ही आती है सारंगी की आहट। फिर तो साहिर के शब्द और लता की मधुर आवाज़ के साथ इश्क का जुनूनी रूप बड़े रूमानी अंदाज़ में ग़ज़ल का हर शेर उभारता चला जाता है। रोशन की धुन में उदासी है जिसे आप इस गीत को गुनगुनाते हुए महसूस कर सकते हैं। तो आइए सुनते हैं लता की आवाज़ में ये ग़ज़ल
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
-
कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।