गुरुवार, सितंबर 19, 2019

ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद.. मेहदी हसन / हिमानी कपूर Zindagi Ko Na Bana Lein

कई बार नए कलाकार कुछ ऐसी पुरानी ग़ज़लों की याद दिला देते हैं जिनसे सालों से राब्ता टूटा हुआ था। पिछले हफ्ते जनाब मेहदी हसन की गायी ऐसी ही एक नायाब ग़ज़ल सुनने को मिली। दरअसल गणेशोत्सव में हर साल संगीतकार व गायक शंकर महादेवन के यहाँ सुरों की महफिल जमती है। इस बार उस आयोजन में युवा गायिका हिमानी कपूर ने बड़े प्यार से हकीम नासिर की इस ग़ज़ल के कुछ शेर गुनगुनाए और सच में सुन के आनंद आ गया।
मेहदी हसन/ हिमानी कपूर
अब जब इस ग़ज़ल की बात हो रही है तो उसे रचने वाले हकीम नासिर साहब के बारे में भी कुछ जान लिया जाए। जनाब काबिल अजमेरी की तरह नासिर साहब की पैदाइश राजस्थान के अजमेर में हुई थी। विभाजन के बाद उनका परिवार कराची में बस गया। घर का पुश्तैनी काम ही हकीमी था सो नासिर साहब ने भी बाप दादा के बनाए कराची के निजामी दवाखाने में हकीमी की। कॉलेज के ज़माने में नासिर साहब ने नियमित रूप से क्रिकेट भी खेली। कराची के हमदर्द कॉलेज से हिकमत की पढ़ाई करने के दौरान ही उन्हें शायरी का चस्का लगा।

हकीम नासिर
हकीम मोहम्मद नासिर मोहब्बतों के ही शायर रहे। उनकी सबसे ज्यादा मकबूल ग़ज़ल "जब से तूने मुझे दीवाना बना ..  " है जिसे आबिदा  परवीन  ने अपनी रुहानी आवाज़ से कालजयी बना दिया। हकीम साहब से उनके हर मुशायरे में इस ग़ज़ल को पढ़ने की गुजारिश होती रहती थी। याद के लिए चंद अशआर इसी ग़ज़ल के आप सब की नज़र

जब से तूने मुझे दीवाना बना रक्खा है
संग हर शख़्स ने हाथों में उठा रक्खा है 

उस के दिल पर भी कड़ी इश्क़ में गुज़री होगी
नाम जिस ने भी मोहब्बत का सज़ा रक्खा है 

इश्क़ के सामने कौन नहीं बेबस हो जाता है और इसी बेबसी पर उनकी एक ग़ज़ल और याद आ रही है जिसमें उन्होंने लिखा था

इश्क़ कर के देख ली जो बेबसी देखी न थी
इस क़दर उलझन में पहले ज़िंदगी देखी न थी

आप से आँखें मिली थीं फिर न जाने क्या हुआ 
लोग कहते हैं कि ऐसी बे-ख़ुदी देखी न थी

हाकिम नासिर के इश्क़िया मिज़ाज की गवाही देते ये अशआर भी खूब थे..

ये दर्द है हमदम उसी ज़ालिम की निशानी
दे मुझ को दवा ऐसी कि आराम न आए

मैं बैठ के पीता रहूँ बस तेरी नज़र से
हाथों में कभी मेरे कोई जाम न आए 

तो आइए अब बात करें उस ग़ज़ल की जिससे आज की बात शुरु हुई थी। एक अजीब सी तड़प है इस ग़ज़ल मेंजिससे मोहब्बत थी उसका साथ छूट गया पर उसके बावज़ूद शायर को इस बात का यकीं है कि जिस शिद्दत से उसने मुझे प्यार किया था वो शिद्दत अपने मन  में वो और किसी के लिए नहीं ला पाएगी। 

अब अगर ये शायर की खुशफहमी है तब तो कोई बात ही नहीं पर अगर यही हक़ीक़त है तो फिर मन ये सवाल जरूर करता है कि इतने प्यारे रिश्ते को तोड़ने की जरूरत क्या थी? पर ये भी तो सच है ना कि रिश्तों की डोर कब पूरी तरह अपने हाथ में रही है?

ज़िंदगी को न बना लें वो सज़ा मेरे बाद
हौसला देना उन्हें मेरे ख़ुदा मेरे बाद


कौन घूँघट को उठाएगा सितम-गर कह के
और फिर किस से करेंगे वो हया मेरे बाद

हाथ उठते हुए उन के न कोई देखेगा
किस के आने की करेंगे वो दुआ मेरे बाद



फिर ज़माने में मोहब्बत की न पुर्सिश* होगी
रोएगी सिसकियाँ ले ले के वफ़ा मेरे बाद

किस क़दर ग़म है उन्हें मुझ से बिछड़ जाने का
हो गए वो भी ज़माने से जुदा मेरे बाद

वो जो कहता था कि ‘नासिर’ के लिए जीता हूँ
उस का क्या जानिए क्या हाल हुआ मेरे बाद

* पूछ 

बहरहाल मेहदी हसन साहब की ये ग़ज़ल आपने सुनी ही होगी। 


हिमानी ने भी इस ग़ज़ल के कुछ अशआरों को बड़े दिल से निभाया है। हिमानी की आवाज़ का मैं तब से प्रशंसक रहा हूँ जब वे 2005 के सा रे गा मा पा में पहली बार संगीत के मंच पर दिखाई पड़ी थीं। पहली बार जब उनकी आवाज़ में  जिया धड़क धड़क जिया धड़क धड़क जाये... सुना था तो रोंगटे खड़े हो गए थे।


हिमानी ने पिछले एक दशक में बैंड बाजा बारात और बचना ऐ हसीनों सहित सात आठ फिल्मों के लिए गाने गाए हैं पर एक दो गानों को छोड़कर उनके बाकी गाने उतने लोकप्रिय नहीं हुए। इंटरनेट के युग में उनके जैसे हुनरमंद कलाकार अब अपने सिंगल्स खुद ही निकाल रहे हैं। हिमानी का मानना है कि फिल्मों के बजाए Independent Music करने में सहूलियत ये होती है कि आप अपनी पसंद के गीत चुनते हैं और दर्शकों से सीधे मुखातिब होते हैं।

ये ग़ज़ल भी उन्होंने यू ट्यूब पर पहली बार ॠषिकेश में गंगा के किनारे यूँ ही रिकार्ड की थी पर जैसा मैंने आपको ऊपर बताया कि हाल ही में इसे उन्होंने शंकर महादेवन के घर में सुनाया। आप भी सुन लीजिए उनका ये प्यारा सा प्रयास...


आज तो ना हमारे बीच हकीम मोहम्मद नासिर हैं और ना ही मेहदी हसन साहब लेकिन जब तक उनकी गायिकी का परचम फहराने वाले ऐसे युवा कलाकार हमारे बीच रहेंगे उनकी याद हमेशा दिल में बनी रहेगी।
 

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