सोमवार, दिसंबर 03, 2007

"अथ श्री चिट्ठाकारमिलन कथा" भाग २ : आइए मिलवाते हैं आपको रंगमंच कलाकार, युवा कवि विकास से

विकास से पहले का मेरा खास परिचय नहीं था। साहित्य प्रेमी बालक है, कविता और गद्य लेखन में रुचि है उसके चिट्ठे पर आते जाते मैं इतना तो जान गया था। २६ की शाम को बुलाते ही आज्ञाकारी बालक की तरह रूम पर आ गया। मैंने बात कविता लेखन से शुरु की पर कवि कहने से वो झेंप गया। कहने लगा क्यूँ मजाक़ उड़ा रहे हैं?
मैंने कहा कि ये सब नहीं चलेगा , कविता लिखते हो तो फक्र से कहो कि कवि हूँ।

अब आगे बताओ कि तुम्हारी प्रेरणा कौन है?
पर IIT का छात्र ठहरा हमारे प्रश्न को यूँ चलता किया कि हम तो दूसरों के दर्द को महसूस करते हैं और लिखते हैं। यहाँ तक कि प्रमाण के तौर पर दो दिन बाद अपनी एक रचना के प्रेरणा स्रोत को साक्षात सड़क पर दिखा दिया और कहा कि इसकी गर्ल फ्रेंड ने जब इसे छोड़ा था तो वो मेरी एक कविता की रचना का कारण बना था। अब ऍसे साक्षात प्रमाणों के सामने हम क्या बोलते। चुप हो कर रह गए पर दिमाग में संशय वर्त्तमान रहा।

अगले दिन गेस्ट हाउस में इंटरनेट सर्फिंग करते वक़्त इनके चिट्ठे पर एक कविता नज़र आई शुरु की पंक्तियाँ पढ़ कर हम अभिभूत हो गए। आप भी देखिए, इन्होंने जिंदगी के यथार्थ को अपनी पैनी नज़रों से किस खूबसूरती से सारगर्भित किया है...
जिंदगी चलती है
अगरबत्ती जलती है
फर्क नहीं दिखता़।

दोनों के अंत में
बचती है सिर्फ राख।
और थोड़ी खुशबू
और थोड़ी आग।

जो चंद पलों में मिट जाती है।
कोई तर्क नहीं बचता।
कोई फर्क नहीं दिखता।


उस दिन की बातें और फिर ये सब हमने बात मन ही मन मान ली थी कि वाकई सारे संसार का दर्द इनके संवेदनशील हृदय को छूता है पर ये क्या ..मैंने पूरी कविता तो पढ़ी ही नहीं थी। आगे की दो पंक्तियों में कविता अचानक ही दूसरा मोड़ ले बैठी थी

क्या तुम मेरी खुशबू सँजो सकोगी?
क्या तुम कभी मेरी हो सकोगी?

हमें दाल में कुछ काला लगा या कहें पूरी दाल ही काली लगी। पहले दिनों बातों में ये भी पता चला कि विकास IIT में हिंदी प्रेमी छात्र छात्राओं के लिए एक समूह वाणी चलाते हैं जिसकी बैठकों में बाहर से लोगों को बुलाते भी हैं प्रतियोगिता में निर्णायक के तौर पर। ऍसी ही एक बैठक में अनीता कुमार जी भी आईं थीं। २७ को हुई पहली भेंटवार्ता के दौरान जब उन्होंने बताया कि हिंदी प्रेमी छात्र छात्राओं के बीच विकास की शोहरत अमिताभ बच्चन से कम नहीं है, तो हमें काली दाल फिर से याद आ गई।

खैर, एक दिन विकास बातों बातों में मेरा राशि चिन्ह पूछ बैठे । जब मैंने अपना राशि चिन्ह मकर बताया तो खुद ही कहने लगे कि मेरी मकर राशि वालों से अच्छी पटती है और मेरी ex भी मकर राशि वाली ही थी। खैर राँची आकर हमने इस विषय पर गहन तहकीकात की तो ये मसाला हाथ लगा। कमेन्टस पर खास ध्यान दीजिएगा, आगे आप खुद समझदार हैं। (भाई विकास पोस्ट डिलीट मत कर देना)
चलिए प्रेरणा वाली बात पर बाद में लौटेंगे। पहले विकास के क्रियाशील व्यक्तित्व की एक झलक देखिए। केमिकल इंजीनियरिंग के चतुर्थ वर्ष के छात्र हैं पर प्रोग्रामिंग करना उनके लिए जुनून की तरह है। जब भी कोई नया idea हाथ लगता है कि भिड़ जाते हैं। इधर पहली मीटिंग में अभय भाई ने ब्लागिंग के तकनीकी पहलुओं पर लिखने भर का जोश दिलाया और अगली सुबह ब्लॉग बुद्धि की शुरुआत हो गई।


जब २९ को विकास के हॉस्टल के कमरे में गया तो बरबस अभय जी की पोस्ट पर नीरज रोहिला के कमेंट की याद आ गई। कमरे में एक इंच की जगह ना थी। सामने सिंथेसाइजर था, और चारों तरफ थीं बिखरी किताबें और इनके बीच कंप्यूटर पर चलती जावा प्रोग्रामिंग। सिंथेसाइजर पर धुन बजाना अभी हाल ही में शुरु किया है विकास ने। बस दिक्कत विकास के साथ यही है कि अक्सर सब कुछ वो भूल जाते हैं, डर यही है कि आगे चलकर ये मुलाकात उनके व्यस्त जीवन में याद रह पाएगी या नहीं। क्या कहा ?.. आप विश्वास नहीं कर पा रहे। ठीक है जनाब इस वीडियो का आखिरी हिस्सा ज़रा गौर से देखें





पर विकास के जिस शौक ने हम सब को खासा प्रभावित किया वो था रंगमंच से इनका जुड़ाव। विकास नियमित रूप से नाटक लिखते हैं और उसमें अभिनय करते हैं। इनके नाटक 'खेल' को वर्ष २००६ में IIT के फेस्टिवल मूड इंडिगो में पहला पुरस्कार मिला। उस प्रतियोगिता के निर्णायक थे अनुपम खेर जिनसे इन्हें व्यक्तिगत तौर पर शाबासी मिली। विकास की बातें सुनकर विमल वर्मा जी कह उठे कि भाई तुमने तो हमारा बीस साल पहले वाला रूप सामने ला दिया

३० तारीख को जब हम दूसरी बार मिले तो विकास ने अपने एक नाटक की कुछ बेहतरीन झलकियाँ सुनाईं जिन्हें सुनकर मन गदगद हो गया। इनकी एक प्रस्तुति की रिकार्डिंग नहीं हो पाई पर दूसरी बार मैं तैयार था। आप भी देखें उनके ताज़ा नाटक से एक झलकी की एक झलकी जिसकी शुरुआत में वो ये गीत डाल रहे हैं।

विकास बुलंद आवाज़ के मालिक हैं और यूनुस जी की कोशिश सफ़ल रही तो जल्द रेडिओ पर भी सुने जाएंगे।

पर नाटकों में इन्हें इतनी रुचि क्यूँ है इन्होंने ये तो नहीं बताया पर सुराग इनके चिट्ठे पर ही मिल गया। अब नाटकों की प्रैक्टिस के दौरान लिया ये चित्र अपनी कहानी खुद कहता है:p। देखिए तो विकास के चेहरे पर कितने परम संतोष का भाव नज़र आ रहा है, क्यूँ ना आए भला जब साथी कलाकार इस कोटि के हों :) !

विकास के साथ ये तीन चार दिन बड़े मजे में बीते। अगले तीन महिने विकास के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस अंतराल में उसे एक अच्छी सी नौकरी मिलने का इंतज़ार है। मुझे यक़ीन है कि विकास अपने प्रयासों में जल्द ही सफल होंगे। हम सब की शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं।


अगली पोस्ट में २७ नवंबर की पहली भेंटवार्ता की कुछ रोचक झलकियों के साथ पुनः उपस्थित होता हूँ...
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18 टिप्पणियाँ:

कंचन सिंह चौहान on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

ऐसे ही सबकी बखिया उधेड़ते हैं क्या ? हम जेसे कवि मित्रों को तो डरा ही दिया है आपने!
विकास जी द्वारा गाया गीत बहुत ही सुंदर आवाज और और शब्दों का सम्मिश्रण है! एक ऐसे ब्लॉगर से परिचय कराने के लिये शुक्रिया!

Sanjay Karere on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

अरे अरे मनीष भाई.. बच्‍चे की जान लोगे क्‍या? राख में से शोले कुरेद निकाले... सारी पोल खोल कर रख दी बेचारे प्रेमी बालक की... उप्‍स मेरा मतलब साहित्‍य प्रेमी बालक की.
लेकिन बालक डरो मत, प्‍यार किया तो डरना क्‍या...
अच्‍छा गाते हो.. लगे रहो.

Vikash on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

हे भगवान! आपने तो मेरी पूरी कुंडली ही खोल दी. वो सारी बातें भी याद दिला दीं जो मैं खुद भूल गया था. :)इतनी मेहनत आपने की है मेरे उपर लिखने के लिये कि किस तरह आभार व्यक्त करूँ, ये समझ नहीं पा रहा. अब एक एक करके सारी बातों का खंडन तो कर नहीं पाऊँगा, तो जो जो लिखा है सब सहर्ष स्वीकार है.

वैसे अपनी कविता के बारे में कहूँगा. वस्तुतः कविता उतनी ही थी जितनी आपने नीले रंग में लिखी है, लेकिन दोस्तों को सुनाने के लिये बाद में दो पंक्तियाँ जो़ड़ दी थी. आपकी पारखी नजरों से तो कुछ भी छुपा नहीं रह सकेगा. ;)

विडीयो के लिये धन्यवाद. लेकिन वो सिंथ वाला रेकार्डिंग तो आपने धोखे में ले लिया...मुझे लगा था कि आप फोटॊ ले रहे हैं. :(

Sajeev on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

मनीष जी आपका धन्येवाद, विकास का इतना करीबी परिचय देने का, विकास की आवाज़ के थे हम सब कायल हैं पर ये गाते भी बहुत अच्छा हैं वाह..... बहुत सी शुभकामनाएं हमारी भी विकास जी को

अभय तिवारी on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

देखिये आप का परिचय कितना दमदार रहा कि संजय ने तो विकास को बराबर पहचान लिया.. 'बड़ा प्रेमी बालक है..'.. विकास को मेरी अनेको शुभकामनाऎं..

अफ़लातून on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

विकास के बारे में जानना बहुत सुकूनदायक रहा ।

Priyankar on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

विकास का परिचय आपने जिस आत्मीयता के साथ दिया है वह काबिल-ए-तारीफ़ है . बेहद रचनाशील बालक है भाई . आगे भी ऐसा ही रचनाशील रहे यही कामना है .

Sanjeet Tripathi on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

बहुत बढ़िया अंदाज़ में परिचय करवाया आपने विकास के अन्य पहलुओं से!

शुक्रिया!!

azdak on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

हूं.. हूं.. हूं..

Yunus Khan on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

भई विकास से आपके जरिए ही परिचय हुआ है । अब उसे आपके जरिए ही जानेंगे ।
जो बचा रहेगा वो यहीं मिलते मिलाते पता चल जाएगा ।
वैसे आपने लिखा बहुत अच्‍छा है ।
विकास फिर से कहूं छा गए यार ।

VIMAL VERMA on दिसंबर 03, 2007 ने कहा…

विकास का परिचय आपने अच्छा दिया है, कवि भी हैं ये तो उसी मुलाकात में पता चलगया था, पर विकास जी से मिलना सुखद था, विकास जी मेरी शुभकामनाऎं !!!!

अजित वडनेरकर on दिसंबर 04, 2007 ने कहा…

वही तो . । आपको विकास के प्राण लेने ही थे । इसीलिए तो पहले से सोचे बैठे थे। इस कड़ी को दिलचस्प बनाने में आपने भी अपने आधे प्राण तो डाल ही दिय़े हैं।
तीसरी की प्रतीक्षा है। ...

अनूप शुक्ल on दिसंबर 04, 2007 ने कहा…

बहुत् खूब्। कल् अफ़लातून् के बाद् आज् विकास् का परिचय् पढ़कर् अच्छा लगा। अगली कड़ियों का इन्तजार् है।

rachana on दिसंबर 04, 2007 ने कहा…

कुछ ही दिनो के अन्तर से मै इस मीट को चूक गई! १७ से १९ ता तक मै भी उसी केम्पस मे थी!विकास की कविताएँ मैने भी पढी हैं.और भी बात जानकर अच्छा लगा.

काकेश on दिसंबर 04, 2007 ने कहा…

आपने तो पूरी पोल ही खोल दी जी. गल्त बात है जी.

Anita kumar on दिसंबर 04, 2007 ने कहा…

हे भगवान अच्छा हुआ मनीष जी आप आई आई टी में ही ठहरे थे और शोध सिर्फ़ विकास पर हुई। काफ़ी मेहनत की आप ने उसके बारे में जानकारी हासिल करने में । सचमुच प्रतिभाशाली है। वैसे ये पोस्ट ये भी बताता है कि आप जिनसे मिलते हैं पूरे इन्ट्रस्ट के साथ मिलते हैं और ये तो बहुत अच्छी बात है। बहुत खूब लिखा है आप ने अब अगली कड़ी का इन्तजार है।

mamta on दिसंबर 04, 2007 ने कहा…

क्या स्टाइल से आपने विकास का परिचय सबसे कराया है।

Manish Kumar on दिसंबर 05, 2007 ने कहा…

विकास चलो कविता के बारे में मेरा अनुमान सही निकला ये जानकर खुशी हुई। बाकी तुमने मेरी थोड़ी बहुत मस्ती को अन्यथा नहीं लिया ये भी अच्छी बात है।

आप सब ने इस विवरण को पढ़ा और सराहा, उसके लिए धन्यवाद।

 

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