शुक्रवार, अक्तूबर 14, 2011

जगजीत सिंह : क्या उनके जाने के बाद ग़जलों का दौर वापस आएगा ?

दस अक्टूबर को दिल्ली में महरौली की ओर जा रहा था कि ख़बर मिली ... जगजीत सिंह नहीं रहे। ख़बर अप्रत्याशित नहीं थी। हफ़्ते दस दिन पहले ही उनके नजदीकियों से ये सूचना मिल रही थी कि मीडिया द्वारा प्रसारित उनकी "सो कॉल्ड स्टैबिलिटी" में कुछ खास सच्चाई नहीं है और वे वेंटिलेटर पर हैं और यदा कदा ही उनका शरीर हरक़त में आता है। इतना कुछ सुनने के बाद भी कहीं कोई उम्मीद की किरण जरूर थी कि कोई चमत्कार हो जाए। ग़ज़लों को भारत के आम मानस पटल पर जिलाने वाला शख़्स  शायद एक बार फिर लाखों करोड़ों ग़ज़ल प्रेमियों की दुआ से जी उठे।

पर भगवान को कुछ और ही मंजूर था। जगजीत चले गए। जगजीत की जिंदगी और उनसे अपने जुड़ाव के बारे में पहले भी इतना लिख चुका हूँ कि अब उन बातों की पुनरावृति आवश्यक नहीं। इतना जरूर कहूँगा कि जगजीत के व्यक्तित्व के कुछ अनछुए पहलू भी थे। भले ही दुनिया ज़हान का दर्द उनकी आवाज़ से टपकता था पर अपनी निजी ज़िदगी के सदमों के बारे में वे अपने करीबियों से भी बात नहीं करते थे। बेटे की असमय मौत, चित्रा जी का गिरता स्वास्थ, बेटी द्वारा आत्महत्या.... मानसिक वेदना देने वाले इन झटकों के बावजूद उनका सांगीतिक सफ़र चलता रहा। नए एलबमों की आवृति में भले कमी आ गई हो पर महिने में दो कान्सर्ट वो कर ही लेते थे। जिस दिन उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ, उस दिन भी वो गुलाम अली के साथ एक कार्यक्रम मुंबई में करने वाले थे। आशा जी कहती हैं कि ये अपने में घुलते रहना ही शायद उनकी गिरती तबियत की वज़ह बना।

जगजीत की एक और खासियत थी कि वो बिना किसी लाग लपेट के अपने दिल की बात कहने में यकीन रखते थे। भारत में पाकिस्तानी कलाकारों के कार्यक्रमों पर उन्हें इस लिए ऐतराज रहा क्यूँकि भारतीय कलाकारों को पाकिस्तान में कार्यक्रम करने में हमेशा दिक्कतों का सामना करना पड़ता रहा। अक्सर जगजीत से उनके साक्षात्कारों में ये प्रश्न किया जाता रहा कि हिंदी संगीत जगत में क्या ग़जल अपनी पुरानी प्रतिष्ठा को वापस ला पाएगी? इस बारे में आशान्वित रहते। वे कहा करते थे कि

" ग़ज़लों का दौर फिर आएगा। आज जिस तरह के गीत बन रहे हैं उनमें कविता कम और टपोरीपन ज्यादा है। लोग उन्हीं शब्दों से खेलते है। गीत की जान उसके शब्द ना होकर 'डान्स रिदम' हो गयी हैं जिस पर वे आधारित हैं। आम संगीतप्रेमी का मन इनसे उब रहा है। वे ऐसा कुछ सुनना चाहते हैं जो सार्थक हो और मन को सुकून दे।"

ग़ज़लों की घटती लोकप्रियता के पीछे मीडिया की भूमिका से जगजीत बेहद आहत थे। जगजीत का मानना था कि लोग आज कल संगीत सुनने नहीं बल्कि देखने लगे हैं।

"कैसा भी गायक हो निर्माता पैसे लगाकर एक आकर्षक वीडिओ लगा देते हैं और संगीत चैनल उसे मुफ्त में दिखा देते हैं। इससे गैर फिल्मी ग़ज़लों का टीवी के पर्दे तक पहुँचना मुश्किल हो गया है। रेडिओ की भी वही हालत है। प्राइवेट एफ एम चैनलों के मालिकों और उद्घोषकों को ग़जलों में ना कोई रुचि है ना उसको समझने का कोई तजुर्बा है। मैं तो कई बार ऐसे चैनल के साथ साक्षात्कार करने से साफ़ मना कर देता हूँ क्यूँकि वे ग़ज़लों को अपने कार्यक्रमों मे शामिल नही करते।"

 दो साल पहले जगजीत का दिया ये वक्तव्य मुझे सौ फीसदी सही लगता है। मुझे याद है कि जब हमारे घर पर कैसेट खरीद कर ग़ज़लें सुनने का चलन नहीं था तब भी हम विविध भारती के 'रंग तरंग 'कार्यक्रम की बदौलत ढेर सारी ग़ज़लों से रूबरू होते रहते थे। सरकारी चैनलों को छोड़ दे तो निजी चैनल ग़ज़लों के लिए आज भी वही रवैया इख्तियार किए हुए हैं। ऍसी हालत में नई पीढ़ी संगीत की इस विधा से अगर अपरिचित है तो उसमें उनका क्या दोष ?

मीडिया खासकर संगीत के चैनलों चाहे वो निजी रेडिओ या टीवी के हों की इसमें अहम भूमिका है। पिछले कुछ सालों में जब भी टीवी के अलग अलग चैनलौं पर लोक संगीत, सूफ़ी संगीत, शास्त्रीय व पाश्चात्य के फ्यूजन से जुड़े कार्यक्रम आए लोगों ने उसे सराहा। पर ग़ज़लों और नज़्मों को पसंद करने वालों के लिए अभी भी अपने श्रोताओं तक पहुँचने में इलेक्ट्रानिक मीडिआ की तरफ से कोई पहल नहीं हुई है।

जगजीत ने ग़ज़लों के साथ ग़ज़ल गायकों को भी हमेशा बढ़ावा दिया। पिछले साल 'सा रे गा मा पा' में जब रंजीत रजवाड़ा ने जब अपनी ग़ज़ल गायिकी से पूरे भारत को सम्मोहित किया तो गुलाम अली के साथ जगजीत भी उन्हें शाबासी देने पहुँचे। जगजीत ने वहाँ ये भी कहा कि जल्द ही ग़ज़ल गायकों के लिए एक अलग से संगीत कार्यक्रम होगा। पर उनके जीवन में उनका ये सपना साकार रूप नहीं ले सका।


आज जगजीत हमारे बीच नहीं है। उनकी आवाज़ तो हमेशा हमारे साथ रहेगी पर जगजीत सिंह को संगीतप्रेमियों की सच्ची श्रृद्धांजलि यही होगी कि हम सब मिलकर अपने अपने स्तर से संगीत की इस खूबसूरत विधा को हर संभव बढ़ावा दें ताकि नए ग़ज़ल गायक व गायिका जगजीत सिंह के जाने से उपजे शून्य को भर सकें और नई पीढ़ी इन्हें सुनने और समझने के आनंद से वंचित ना रहे।

एक शाम मेरे नाम पर जब जब गूँजी जगजीत की आवाज़
  1. धुन पहेली : पहचानिए जगजीत की गाई मशहूर ग़ज़लों के पहले की इन  धुनों को !
  2. क्या रहा जगजीत की गाई ग़ज़लों में 'ज़िंदगी' का फलसफ़ा ?
  3. जगजीत सिंह : वो याद आए जनाब बरसों में...
  4. Visions (विज़न्स) भाग I : एक कमी थी ताज महल में, हमने तेरी तस्वीर लगा दी !
  5. Visions (विज़न्स) भाग II :कौन आया रास्ते आईनेखाने हो गए?
  6. Forget Me Not (फॉरगेट मी नॉट) : जगजीत और जनाब कुँवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर' की शायरी
  7. जगजीत का आरंभिक दौर, The Unforgettable (दि अनफॉरगेटेबल्स) और अमीर मीनाई की वो यादगार ग़ज़ल ...
  8. जगजीत सिंह की दस यादगार नज़्में भाग 1
  9. जगजीत सिंह की दस यादगार नज़्में भाग 2
  10. अस्सी के दशक के आरंभिक एलबम्स..बातें Ecstasies , A Sound Affair, A Milestone और The Latest की
  11. अपने होठों पर सजाना चाहता हूँ...क़तील शिफ़ाई,
  12. आज के दौर में ऐ दोस्त ये मंज़र क्यूँ है...सुदर्शन फ़ाकिर
  13. ऐ गम-ए-दिल क्या करूँ, ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ ? ... मज़ाज लखनवी
  14. क्या बतायें कि जां गई कैसे ? ...गुलज़ार
  15. ख़ुमार-ए-गम है महकती फिज़ा में जीते हैं...गुलज़ार
  16. 'चराग़-ओ-आफ़ताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी...सुदर्शन फ़ाकिर,
  17. परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ...क़तील शिफ़ाई,
  18. फूलों की तरह लब खोल कभी..गुलज़ार 
  19. बहुत दिनों की बात है शबाब पर बहार थी..., सलाम 'मछलीशेहरी',
  20. रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम... हसरत मोहानी
  21. शायद मैं ज़िन्दगी की सहर ले के आ गया...सुदर्शन फ़ाकिर
  22. सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं...क़तील शिफ़ाई, 
  23. हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चाँद...राही मासूम रज़ा 
  24. फूल खिला दे शाखों पर पेड़ों को फल दे मौला
  25. जाग के काटी सारी रैना, गुलज़ार
  26. समझते थे मगर फिर भी ना रखी दूरियाँ हमने...वाली असी
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5 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on अक्तूबर 14, 2011 ने कहा…

जो शून्य बन गया है, उसे भरना बड़ा ही कठिन होगा।

kranthi on अक्तूबर 14, 2011 ने कहा…

he is king of ghazal. no one can beat him

menghanivijay on अक्तूबर 15, 2011 ने कहा…

He was with us during love happiness despair and will remain a part of our soul we keep on getting strength through his voice in path of life .

Sonroopa Vishal on अक्तूबर 18, 2011 ने कहा…

आपकी पोस्ट ने फिर से जगजीत जी की बहुत सी यादों को दोहराया है ....चाहे वो उनकी आवाज हों,उनका कृतित्व हों,चाहे उनका जीवन हों ...... संगीत के अनमोल रत्न को सलाम !

Poonam Misra on अक्तूबर 19, 2011 ने कहा…

जगजीत सिंह ने गज़ल को हमारे पास पहुंचाया . मुझे याद है 1981 में उनकी गज़ल आहिस्ता आहिस्ता हमारी दोस्त मन्दली में बहुत गायी जाती थी . इस अनुपम गायक को आभार पूर्ण श्रद्धांजलि !

 

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