सोमवार, नवंबर 18, 2013

बेनाम सी ख़्वाहिशें, आवाज़ ना मिले..बंदिशें क्यूँ ख़्वाब पे..परवाज़ ना मिले (Benaam si khwahishein...)

पापोन यानि 'अंगराग महंता' की आवाज़ से मेरा परिचय बर्फी में उनके गाए लाजवाब गीतों से हुआ था। आपको तो मालूम ही है कि एक शाम मेरे नाम पर साल 2012 की वार्षिक संगीतमाला में सरताज गीत का खिताब पापोन के गाए गीत क्यूँ ना हम तुम... को मिला था। उस गीत के बारे में लिखते हुए बहुमुखी प्रतिभा संपन्न पापोन के बारे में बहुत कुछ पढ़ा और जाना । पर बतौर संगीतकार उन्हें सुनने का मौका पिछले महिने MTV के कार्यक्रम कोक स्टूडियो में मिला।

पापोन यूँ तो उत्तर पूर्व के लोक गीतों और पश्चिमी संगीत को अपनी गायिकी में समेटते रहे हैं। पर इस कार्यक्रम के दौरान पिंकी पूनावाला की लिखी एक दिलकश नज़्म के मिज़ाज को समझते हुए जिस तरह उन्होंने संगीतबद्ध किया उसे सुनने के बाद बतौर कलाकार उनके लिए मेरे दिल में इज़्ज़त और भी बढ़ गयी। पापोन ने इस गीत को गवाया है अन्वेशा दत्ता गुप्ता (Anwesha Dutta Gupta) से। 


ये वही अन्वेशा है जिन्होंने अपनी सुरीली आवाज़ से कुछ साल पहले अमूल स्टार वॉयस आफ इंडिया में अपनी गायिकी के झंडे गाड़े थे। 19 साल की अन्वेशा ने चार साल की छोटी उम्र से ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरु कर दी थी। इतनी छोटी उम्र में उन्होंने अपनी आवाज़ में जो परिपक्वता हासिल की है वो आप इस गीत को सुन कर महसूस कर सकते हैं। ग़ज़ल और नज़्मों को गाने के लिए उसके भावों को परखने की जिस क्षमता और ठहराव की जरूरत होती है वो अन्वेशा की गायिकी में सहज ही नज़र आता है। नज़्म के बोल जहाँ मीटर से अलग होते हैं उसमें बड़ी खूबसूरती से अन्वेशा अपनी अदाएगी से भरती हैं। मिसाल के तौर पर दूसरे अंतरे में उनका क्यूँ ना जाए..आ जा को गाने का अंदाज़ मन को मोह लेता है।

इस नज़्म को लिखा है नवोदित गीतकार पिंकी पूनावाला ने। अक्सर हमारी चाहतें ज़मीनी हक़ीकत से मेल नहीं खाती। फिर भी हम अपने सपनों की उड़ान को रुकने नहीं देना चाहते, ये जानते हुए भी को वो शायद कभी पूरे ना हों। पिंकी दिल की इन्हीं भावनाओं को रूपकों के माध्यम से नज़्म के अंतरों में उतारती हैं। वैसे आज के इस भौतिकतावादी समाज में पिंकी भावनाओं की ये मुलायमित कहाँ से ढूँढं पाती हैं? पिंकी का इस बारे में नज़रिया कुछ यूँ है...
"मुझे अपनी काल्पनिक दुनिया में रहना पसंद है। मेरी उस दुनिया में सुंदरता है, प्यार है, सहानुभूति है, खुशी है। इस संसार का सच मुझे कोई प्रेरणा नहीं दे पाता। अपनी काल्पनिक दुनिया से मुझे जो  प्रेरणा और शक्ति मिलती है उसी से मैं वास्तविक दुनिया के सच को बदलना चाहती हूँ।"
कोक स्टूडिओ जैसे कार्यक्रमों की एक ख़ासियत है कि आप यहाँ आवाज़ के साथ तरह तरह के साज़ों को बजता देख सकते हैं। पापोन ने इस नज़्म के इंटरल्यूड्स में सरोद और दुदुक (Duduk) का इस्तेमाल किया है। सरोद पर प्रीतम घोषाल और दुदुक पर निर्मलया डे की थिरकती ऊँगलियों से उत्पन्न रागिनी मन को सुकून पहुँचाती हैं। बाँसुरी की तरह दिखता दुदुन आरमेनिया का प्राचीन वाद्य यंत्र माना जाता है। इसके अग्र भाग की अलग बनावट की वज़ह से ये क्लारिनेट जैसा स्वर देता है।

तो आइए सुनते हैं अन्वेशा की आवाज़ में ये प्यारा सा नग्मा...


बेनाम सी ख़्वाहिशें, आवाज़ ना मिले
बंदिशें क्यूँ ख़्वाब पे..परवाज़ ना मिले
जाने है पर माने दिल ना तू ना मेरे लिए
बेबसी ये पुकार रही है आ साजन मेरे

चाँद तेरी रोशनी आफ़ताब से है मगर
चाह के भी ना मिले है दोनों की नज़र
आसमाँ ये मेरा जाने दोनों कब हैं मिले
दूरियाँ दिन रात की हैं, तय ना हो फासले

पतझड़ जाए, बरखा आए हो बहार
मौसम बदलते रहे
दिल के नगर जो बसी सर्द हवाएँ
क्यूँ ना जाएँ
आ जा आ भी जा मौसम कटे ना बिरहा के
 (परवाज़ :उड़ान,  आफ़ताब :  सूरज)

तो इन बिना नाम की ख़्वाहिशों की सदा आपके दिल तक पहुँची क्या?
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6 टिप्पणियाँ:

ANULATA RAJ NAIR on नवंबर 18, 2013 ने कहा…

शिद्दत से की गयी सदायें हमेशा अपनी मंजिल तक पहुंचतीं ही हैं......
बेहद सुरीली पोस्ट....

अनु

अनिल सहारण 'सोनङी' on नवंबर 19, 2013 ने कहा…

Bahut hi achchi post manish ji. Bahut bahut dhanywad aise sarthak prayas ke liye.

Pinky Poonawala on नवंबर 19, 2013 ने कहा…

Hmmm...shukriya

Manish Kumar on नवंबर 26, 2013 ने कहा…

अनु जी, अनिल, सोनारूपा जी ये नज़्म आप सब को अच्छी लगी जान कर खुशी हुई।

पिंकी श्रोताओं को आपकी कलम का कमाल यूँ ही देखने को मिलता रहे यही आशा है।

Sonroopa Vishal on नवंबर 28, 2013 ने कहा…

आज सुन पायी ये नज़्म.....बेनाम सी ख़्वाहिशें ........वाह !
सुनकर गुम हो गयी कुछ देर खुद से भी !

दिलीप कवठेकर on जनवरी 17, 2014 ने कहा…

Vaah.

Unplugged version enhanced the Roohani experience.

 

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