शुक्रवार, मार्च 29, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे..

एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला के 25 शानदार गीतों की इस शृंखला में अब आपको दस गीत ही सुनवाने बचे हैं। इन गीतों में ज्यादातर मेरे बेहद प्रिय रहे हैं। आज जो गीत मैं आपको सुनवाने जा रहा हूँ वो एक गैर फिल्मी गीत है जिसमें अरिजीत सिंह ने बतौर संगीतकार की भूमिका निभाई है। एक समय प्रीतम के सहायक रहे अरिजीत ने तीन साल पहले पगलेट के संगीत के लिए भी खासी वाहवाही लूटी थी। यहाँ भी वो अपने संगीत से श्रोताओं का दिल जीतने में सफल रहे हैं।

मानसून के मौसम में पिछले साल जुलाई में रिलीज़ हुए इस गीत को लिखा था इरशाद कामिल साहब ने। इरशाद कामिल के लिए बरखा के बोलों को लिखना अतीत की यादों में भींगने जैसा था। बारिश बहुत लोगों के लिए एक मौसम से बढ़कर है। ये अपने साथ हममें से कितनों के मन में भावनाओं का ज्वार लेकर आती है। इरशाद ने कोशिश की इस गीत के द्वारा वे इन जज़्बातों को शब्द दे सकें। 
बड़ी कोमल शब्द रचना है इरशाद की इस गीत में। कुछ पंक्तियाँ तो बस मन को यूँ ही सहलाती हुई निकल जाती हैं जैसे कि झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे.. या फिर आजा रे, आ, बरखा रे, मीठे तू कर दिन खारे। सच में बरखा सिर्फ एक गीत नहीं है बल्कि एक कैफ़ियत है जिसमें प्रेम, विरह और आख़िरकार मिलन के भाव बारिश की बूँदो में बहते चले आते हैं।
इस फिल्म का वडियो शूट बंगाल में हुआ। इस गीत का वीडियो देखते हुए मुझे परवीन शाकिर की वो नज़म याद आ गयी..

बारिश में क्या तन्हा भीगना लड़की
उसे बुला जिसकी चाहत में
तेरा तन-मन भीगा है
प्यार की बारिश से बढ़कर क्या बारिश होगी
और जब उस बारिश के बाद
हिज्र की पहली धूप खुलेगी
तुझ पर रंग के इस्म खुलेंगे
अरिजीत सिंह ने बरखा से जुड़े इस गीत में कुछ बेहद मधुर स्वरलहरियाँ सृजित की हैं। गिटार पर आदित्य शंकर का बजाया टुकड़ा जो मुखड़े के बाद और अंतरों के बीच बजता है मुझे बेहद मधुर लगा। गिटार के अलावा निर्मल्य डे की बजाई बाँसुरी भी कानों में रस घोलती है। साथ में कहीं कहीं पियानो की टुनटुनाहट भी सुनाई दे जाती है और फिर सोने पर सुहागा के तौर पर अरिजीत का एक प्यारा आलाप तो है ही
आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे
झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे
पानी की छाँव में, बूँदों के पाँव में बाँधे तू झाँझरें
हो, आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे
झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे

बहा के ले जाना दुख बीते कल के
गहरे-हल्के, पुराना धो जाना
आजा रे, आ, बरखा रे, मीठे तू कर दिन खारे
तेरी नज़र को उतारे, कब से नहीं देखा रे

आजा, बरखा
बोलो, क्या बोलूँ, मैं ना तो क्या तू?
तू ना हो तो, मैं क्या बोलूँ? तू है तो मैं हूँ

आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे
कब से नहीं देखा रे, आजा रे, आ, बरखा रे
पानी की छाँव में, बूँदों के पाँव में
हो, आजा रे, आ, बरखा रे
झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे

गायिकी की दृष्टि से सुनिधि के लिए पिछला साल बेहतरीन रहा। हालांकि इस गाने के एक हिस्से को मैंने श्रेया और जैन की आवाज़ में सुना तो वो मुझे बारिश की सोंधी बूँदों की तरह ही मन को और शीतल कर गया।
सुनिधि के अपने इस गीत के बारे में कहना था कि हमने कोशिश की है बारिश को समर्पित एक गीत रचने की जो उस मौसम के साथ मन में उमड़ती घुमड़ती भावनाओं को भी व्यक्त कर जाता है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को उनकी आवाज़ में।



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2 टिप्पणियाँ:

Disha Bhatnagar on मार्च 30, 2024 ने कहा…

वाह... गीत बहुत सुंदर लिखा गया है..इसके संगीत रचना में खासियत है। वो ये कि गीत सुनने में बहुत साधारण लगता है...लेकिन गाने में थोड़ा कठिन है। जैसा कि मेरा विचार है कि सबसे सीधे सुनाई देने वाले गीत ही गायकी में सबसे कठिन होते हैं। और जिन्हें आमतौर पर मुश्किल गीत माना जाता है.. जैसे शास्त्रीय गीतों को.. वो गाने में फिर भी आसान होते हैं। इस तरह के गीत में सुनिधि की गायकी तो मधुर है ही... लेकिन उनकी आवाज़ की ख़ूबसूरती भी देखने लायक है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे उनकी आवाज़ का ये वज़न.. और सुरों का लगाव बहुत पसंद है।

Manish Kumar on मार्च 30, 2024 ने कहा…

सही कहा। वैसे मुखड़े के बाद वाले हिस्से में बहा के ले जाना दुख बीते कल के......से लेकर.... तू ना हो तो, मैं क्या बोलूँ? तू है तो मैं हूँ... तक की पंक्तियां गाने में आसान नहीं है क्योंकि मीटर बदलता रहता है।

व्यक्तिगत रूप से वो और श्रेया घोषाल इस युग की सबसे सिद्धहस्त गायिका हैं। वैसे मन में इच्छा है कि कभी श्रेया भी इस गीत को गाएं। मीठे गीतों में उनकी चाशनी सी आवाज़ भी खूब फबेगी।

 

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