रविवार, नवंबर 23, 2025

पुस्तक चर्चा : चांदपुर की चंदा, अतुल कुमार राय

चांदपुर की चंदा अशिक्षा, गरीबी व लाचारी में पनपते एक निश्चल प्रेम की कहानी है जो साथ ही साथ ग्रामीण परिवेश में बदहाल शिक्षा प्रणाली, पुरुष प्रधान समाज में बच्चियों की चिंतनीय स्थिति, असीमित भ्रष्टाचार और समाज में होते नैतिक मूल्यों के पतन का खाका खींचती है। उपन्यास की कथा बलिया जिले के चांदपुर गांव के इर्द गिर्द घूमती है। यूं तो मेरा ददिहाल बलिया रहा है पर वहां जीवन का एक बेहद छोटा सा हिस्सा ही बीता है। ये जरूर है कि वहां की भाषा और बातचीत के लहजे से वाकिफ हूं और इतना विश्वास से कह सकता हूं कि लेखक अतुल कुमार राय ने उसे बखूबी पकड़ा है। 



अतुल का ये पहला उपन्यास है जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी द्वारा हिंदी भाषा की कृतियों के लिए 2023 युवा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। एक तबला वादक से फेसबुक पर उनके विभिन्न विषयों पर सतत लेखन का मैं साक्षी रहा हूं। आज वो मुंबई की फिल्मी दुनिया में बतौर पटकथा लेखक और गीतकार का किरदार अदा करने के लिए अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।

इस उपन्यास में नायक और नायिका समेत तमाम किरदार हैं जो इस प्रेम कथा के इर्द गिर्द के समाज को प्रतिबिंबित करते हैं। 

निश्चय ही गांव कस्बों से निकले युवाओं को ये प्रेम कथा कभी गुदगुदाएगी तो कभी अश्रु विगलित भी करेगी। उस उम्र संधि से आगे निकल गए लोगों के लिए पूरी किताब तो नहीं पर उसके कुछ अंश अवश्य प्रभावित करेंगे। यूं तो उन सारे प्रसंगों का यहां उल्लेख नहीं कर पाऊंगा, पर कुछ का जिक्र करना बनता है। जैसे कि लेखक द्वारा लिया गया चांदपुर गांव का ये व्यंग्यात्मक परिचय जो आज की हिंदी पट्टी के गांवों के तथाकथित विकास की कलई खोलता है।

"यहाँ से गिनकर दो मिनट चलने पर एक प्राइमरी और एक मिडिल स्कूल भी बना है। जिसकी दीवारों पर गिनती, पहाड़ा के अलावा ‘सब पढ़ें-सब बढ़ें’ का बोर्ड लिखा तो है, लेकिन कभी-कभी बच्चों से ज्यादा अध्यापक आ जाते हैं, तो कभी समन्वय और सामंजस्य जैसे शब्दों की बेइज्जती करते हुए एक ही मास्टर साहेब स्कूल के सभी बच्चों को पढ़ा देते हैं। 

स्कूल के ठीक आगे पंचायत भवन है, जिसके दरवाजे में लटक रहे ताले की किस्मत और चाँदपुर की किस्मत में कभी खुलना नहीं लिखा है। मालूम नहीं कब ग्राम सभा की आखिरी बैठक हुई थी लेकिन पंचायत घर के बरामदे में साँड़, गाय, बैल खेत चरने के बाद सुस्ताते हुए मुड़ी हिला-हिलाकर गहन पंचायत करते रहते हैं और कुछ देर बाद पंचायत भवन में ही नहीं गाँव की किस्मत पर गोबर करके चले जाते हैं। 

हाँ, गाँव के उत्तर एक निर्माणाधीन अस्पताल भी है। जो लगभग दो साल से बीमार पड़ा है। उसकी दीवारों का कुल जमा इतना प्रयोग है कि उस पर गाँव की महिलाओं द्वारा गोबर आसानी से पाथा जा सकता है।"

उपन्यास में मंटू द्वारा चंदा को लिखा गया प्रेम पत्र अब इंटरनेट पर वायरल हो गया है। प्रेम पत्र तो ख़ैर लाजवाब है ही। इस चिट्ठी के पढ़ कर हंसते हंसते पेट फूल जाएगा अगर आपका भोजपुरी का ठीक ठाक ज्ञान हो तो। लेखक का मुहावरे के रूप में यह कहना कि मोहब्बत में अखियां आन्हर और आदमी वानर हो जाता है दिल जीत ले जाता है।

"मेरी प्यारी चंदा तुमको याद है तुम पिछले साल पियरका सूट पहनकर शिव जी के मंदिर में दीया बारने आई थी। ए करेजा, जो दीया मंदिर में जलाई थी, वो तो उसी दिन बुता गया। लेकिन जो दीया मेरे दिल में जर गया है न, वो आज तक भुकभुका रहा है। आज हम रोज तुम्हारे प्रेम के मंदिर में दीया जराते हैं, रोज मूड़ी पटककर अगरबत्ती बारते हैं। डीह बाबा, काली माई, पिपरा पर के बरम बाबा, से लेकर बउरहवा बाबा मंदिर तक जहाँ भी जाते हैं, हर जगह दिल में तीर बनाकर लिख आते हैं- ‘चाँदपुर की चंदा’। लेकिन ए पिंकी, हमको इहे बात समझ में नहीं आता कि हमारे पूजा-पाठ में कौन अइसन कमी है जो दिल की बजती घंटी तुमको सुनाई नहीं दे रही है?"

"तुमको का पता कि तुम्हारे एक ‘हाँ’ के चक्कर में आज हम तीन साल से इंटर में फेल हो रहे हैं। साला जेतना मेहनत लभ लेटर लिखने में किए हैं, ओतना मेहनत पढ़ाई में कर लिए होते तो अब तक यूपी में लेखपाल होकर खेतों की चकबंदी कर रहे होते। लेकिन का करोगी! मोहब्बत में अँखिया आन्हर और आदमी बानर हो जाता है न। हमारा भी हाल बानर का हाल हो गया है।"

प्रेम के बारे में लेखक के उद्गार पढ़कर आपको लगेगा कि वो आपके मन की बात ही कह रहे हों मसलन

“आज पहली बार पता चला कि जीवन में प्रेम हो तो बाढ़ आँधी-तूफान में भी खुश रहा जा सकता है। और प्रेम न हो तो सावन की सुहानी बौछार भी जेठ की धूप के समान है।”

या फिर

"जहाँ शरीर का आकर्षण खत्म होता है वहाँ प्रेम का सौंदर्य शुरू होता है। फिर प्रेमी करीब रहे या दूर रहे, वो मिले या बिछड़ जाए। बिना इसकी परवाह किए वहाँ प्रेम किया जा रहा होता है।"

और हां अतुल, नायिका के माध्यम से आपने महादेवी वर्मा की बेहतरीन कविता जाग तुझको दूर जाना की याद दिलवा दी इसके लिए पुनः धन्यवाद। उपन्यास में इस कविता का उल्लेख बार बार होता है और वो नायिका के मन में विकट परिस्थितियों में भी आशा की एक किरण जगाती है जिसके सहारे वो जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग अंततः ढूंढ ही लेती है। अच्छा साहित्य चाहे किस काल खंड में रचा गया हो उसे समाज या व्यक्ति विशेष को उद्वेलित करने की क्षमता होती है ये भली भांति चंदा के चरित्र स्पष्ट हो जाता है। तो इस चर्चा का समापन महादेवी जी की उन्हीं पंक्तियों के साथ

बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!



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9 टिप्पणियाँ:

Surangama Kumar on नवंबर 23, 2025 ने कहा…

समीक्षा बहुत बढ़िया हुई है , अब तो किताब पढ़नी पड़ेगी।
पर आपने पूरे भोजपुरी में नहीं लिखा है इस लिए सभी समझ सकते हैं।

Manish Kumar on नवंबर 23, 2025 ने कहा…

Surangama Kumar धन्यवाद, आप तो सारण से हैं न तो इस भाषा से भली भांति परिचित होंगी🙂

Surangama Kumar on नवंबर 23, 2025 ने कहा…

बिल्कुल मेरी अपनी भाषा जिसके साथ हम पले बढ़े 😊
बलिया छपरा लगभग एक जैसी बोली।

Manish on नवंबर 23, 2025 ने कहा…

बहोत ही मजेदार लव लेटर...ग्रामीण परिवेश में रहने वाले प्रेमी-प्रेमिकाओं के दिल का हाल पूरी ईमानदारी और सच्चाई से लिखा गया है!😊❤️

Manish Kumar on नवंबर 23, 2025 ने कहा…

Manish मतलब तुमने इस किताब को पढ़ रखा है। वैसे लेखक खुद उस परिवेश से आते हैं इसलिए ऐसा लिख पाए।

Mohit Mahant on नवंबर 23, 2025 ने कहा…

बलिया जिले की ही एक और भी अमर पवित्र प्रेम कहानी है जिसे केशव प्रसाद मिश्र जी ने बड़ी खूबसूरती और सहजता से कोहबर की शर्त उपन्यास में लिखा है । उससे अच्छी प्रेम कहानी अभी तक नहीं पढ़ी लोग बाग तो गुनाहों का देवता उपन्यास के दीवाने हैं पर मुझे उसका कोई भी पात्र समाज में नहीं दिखा इसीलिए मुझे समझ में नहीं आया ।
वैसे एक नौजवान की पहली मुहब्बत को कैलाश गौतम जी ने एक कविता धुरंधर में बहुत अच्छा दर्शाया है जो पठनीय है।
अब आपने उपरोक्त पुस्तक की समीक्षा की है तो इसे जरूर पढूंगा।

Manish Kumar on नवंबर 23, 2025 ने कहा…

Mohit Mahant इस पुस्तक की तुलना उन अमर कृतियों से नहीं की जा सकती है। आपने जिन किताबों का जिक्र किया वो अपनी अपनी जगह मील का पत्थर हैं। अतुल तो अभी युवा हैं और ये उनकी प्रथम कृति ही है।

हर उपन्यास का अपना काल खंड होता है। गुनाहों का देवता आपके क्या, मेरे भी पहले के ज़माने के चरित्रों पर आधारित है। एक वो समय भी था जब चंदन और सुधा जैसे किरदार भी थे भले ही बाद की पीढ़ी उनसे उस तरह अपने को जोड़ न पाए। मैने पहली बार आज से बीस साल पहले जब रोमन में उस किताब पर अपनी छोटी सी टिप्पणी लिखी थी तो उसे खोज कर न जाने कितने ही लोगों ने उस व्यथा कथा के उन पर हो रहे असर पर लिखा था। उसका लिंक खोज कर लगाता हूं।

बहरहाल ये किताब पिछले दस पंद्रह साल के बदले हुए भारत के एक गांव की तस्वीर दिखाती है जिसका हीरो एक आम सा लड़का है जिसका पढ़ाई लिखाई से कोई खास वास्ता नहीं। प्यार करने का उसका अंदाज़ भी फिल्मी है पर उसका प्यार बनावटी नहीं है। लेखक ने सरल आंचलिक भाषा में बिना किसी लाग लपेट के उसकी कहानी कह दी है। चूंकि वो उसी परिवेश से आते हैं इसलिए ऐसा लगता है कि इन चरित्रों को उन्होंने नजदीक से देखा है।

उमेश कमला सोनी on नवंबर 23, 2025 ने कहा…

बेहतरीन समीक्षा, वाह्ह्ह्ह!
बहुत बहुत बधाई, 🙏💐

Manish Kumar on नवंबर 23, 2025 ने कहा…

धन्यवाद आलेख पसंद करने के लिए।

 

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