बंगाल की प्रसिद्ध साहित्यकार महाश्वेता देवी का उपन्यास मर्डरर की माँ ऐसी ही शक्तियों की ओर इशारा करता है जो अपराधियों को पैदा करती हैं, उनसे घृणित कृत्य करवाती हैँ और अपना मतलब पूरा होने पर उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल बाहर फेंकती हैं। पार्टियाँ बदलती हैं, कहने को नई विचारधारा वाले लोग आते हैं पर कुछ दिनों बाद जनता ठगी-ठगी सी देखती हे कि अरे सभ्य समाज के दुश्मन रहे लोग फिर से नयी व्यवस्था पर काबिज हो गये हैं।
लेखिका के इन शब्दों पर गौर करें
" मेरे बेटे के हाथ में छुरा थमाया भवानी बाबू ने! ये लोग मर गए ! तपन भी मर जाएगा। लेकिन भवानी बाबू जैसे लोग और मर्डरर ले आयेंगे। जो खून करता है वह जरूर मुजरिम है।....लेकिन दारोगा बाबू, जो लोग मर्डर कराते हैं, वे लोग तो खुले ही छूट गये। आजाद ही छूट गए। यह कैसा फैसला है? तपन क्या अकेला ही मर्डरर हैं ? भवानी बाबू क्या हैं ?
तपन की मां की सूखी-सूखी आंखों में सूखा-सूखा हाहाकार !
भवानी बाबू जेसे लोग भी तो मर्डरर हैं , लेकिन उन लोगों को कोई नहीं पकड़ेगा, कोई गिरफ्तार नहीं करेगा ।
आज अगर भय और आतंक रहित समाज की स्थापना करनी है तो पहली चोट करनी होगी आतंक और अपराध का निर्माण करने वाली इन शक्तियों की । ऐसी ताकतों की पैठ समाज के हर तबके, हर धर्म, हर दल में है। पर अगर देश की सारी जनता इन दुश्मनों को चिन्हित कर इनका सफाया करने के लिये सरकार पर दबाव डाले तभी इस देश में शांति सदभाव की एक नयी सुबह का आगमन हो सकता है ।
चलें मेसरा से बरकाकाना की ओर: कांस के फूलों के साथ लिपटी हरियाली
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यूं तो कांस के फूल शरद ऋतु के आगमन का संकेत देते हैं पर इस बार संपूर्ण भारत
में इंद्र ने अपनी सेनाएं रावण के जलने तक वापस नहीं बुलाई। नतीजन बेचारा
रावण ...
3 हफ़्ते पहले




















3 टिप्पणियाँ:
इस वकत पुलिस का काम ही खोज लगाना है अगर कोई नही मिला तो मासूम लोगों को अंदर करदेती है ये बताने के लिए कि पुलिस भी कुछ कर रही है।
aapki pichhali link dekhate hue dhyan gaya is link par.... kisi mahila ki yaad aa gai aur un sab ke bare me.n sochna pad gaya jo chahati to nahi.n ki beta aise rasto.n par jaye jaha.n se aana mumkin hi na ho....! unka dard kaun janega jo rone me.n bhi darti hai.n kyo.nki tab log kahte hai.n ki "tere ladke ne bhi aise hi logo ko ulaya hai...."
जी समझ सकता हूँ आपकी बात...
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