पिछली बार बात कर रहे थे कि किस तरह जब कोई हमारी आँखें पढ़ लेता है तो मन पुलकित हो उठता है। पर बात यहीं खत्म हो जाती तो फिर लुत्फ किस बात का था। अरे, आँखों या नजरों का इक इशारा प्यार की खुशबू बिखेरने के लिए काफी है। इसीलिये तो निदा फॉजली साहब कहते हैं
उनसे नजरें क्या मिलीं रौशन फिजाएँ हो गयीं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज है
खुलती जुल्फों ने सिखाई मौसमों को शायरी
झुकती आँखों ने बताया महकशीं क्या चीज है
पर क्या आँखों का मोल सिर्फ इशारों तक है? नहीं जी, किसी की खूबसूरत आँखों को एक आशिक की नजरों से देखें तो आप भी शायद ये गीत गाने पर मजबूर हो जाएँ
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रखा क्या है
ये उठें सुबह चले, ये झुकें शाम ढ़लें
मेरा जीना, मेरा मरना इन्हीं पलकों के तले...
और अमजद इस्लाम अमजद तो महबूब की आँखों के सामने ही रात दिन एक करने पर तुले हैं
सोएँगे तेरी आँख की खिलवत में किसी रात
साये में तेरी जुल्फ के जागेंगे किसी दिन
पर शुरु शुरु में अपने महबूब की ओर आँख उठा कर देखना आसान है क्या ?
अब इन्हें ही देखिये दिल में प्यार की शमा जल चुकी है पर ये हैं कि अभी भी निगाहें मिलाने से कतरा रहे हैं
हसरत है कि उनको कभी नजदीक से देखें
नजदीक हो तो आँख उठायी नहीं जाती
चाहत पे कभी बस नहीं चलता है किसी का
लग जाती है ये आग लगाई नहीं जाती
पर हुजूर एक बार अगर किसी से आँखों ही आँखों में बात हो भी जाये तो भी क्या कम मुसीबतें हैं। कभी तो उनकी बड़ी बड़ी आँखों का काजल दिल की धड़कनों को बढ़ाता है तो कभी आँखों आँखों में हुई वो मुलाकातें दिल में घबराहट पैदा करती हैं। बरसों पहले डॉयरी के पन्नों पे लिखी अपनी एक तुकबन्दी याद आती है
उसकी आँखों का वो काजल
जैसे गगन में काले बादल
उमड़ें घुमड़ें हाय ! मन मेरा घबराए
आँखों आँखों की वो बातें
वो नन्ही छोटी मुलाकातें
बरबस याद आ जाएँ, मन मेरा घबराए
पर ये आतुरता भरी घबराहट भी ऐसा जादू बिखेरती है कि अपनी आँखें भी किसी और की हो जाती हैं! यकीन नहीं आता तो इस नज्म की इन पंक्तियों पर गौर फरमाएँ ।
कहो वो दश्त कैसा था?
जिधर सब कुछ लुटा आये
जिधर आँखें गँवा आये
कहा सैलाब जैसा था, बहुत चाहा कि बच निकलें, मगर सब कुछ बहा आए !
कहो वो चाँद कैसा था?
फलक से जो उतर आया तुम्हारी आँख में बसने
कहा वो ख्वाब जैसा था, नहीं ताबीर थी उसकी, उसे इक शब सुला आए.. !
पर क्या आँखों से सिर्फ प्रेम की धारा बहती है?
नहीं हरगिज नहीं ! आँखें जितना दिखाती हैं उतना ही छुपा भी सकती हैं। और फिर आँसुओं की जननी भी तो ये आँखें ही हैं ना !
अगली कड़ी में देखेंगे की कैसे करती हैं आखें भावों की लुकाछिपी और क्या होता है जब उन पर चढ़ता है उदासी का रंग.....
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2 हफ़्ते पहले
13 टिप्पणियाँ:
in sayaro par koi caments kar sakata hai kya?ye to mahan hai
मनीष जी,
पठनीय लेख, धन्यवाद। मन्ना डे का गाया गाना याद आया
"हम तेरी आंखों के दीवाने हैं"
एक मुझे भी याद आया , पता नहीं किसकी लिखी है पर पीनाज़ मसानी ने गाया है
"ये है मज़े की लडाई ,ये है मज़े का मिलाप
कि तुझसे आँख लडी और फिर निगाह मिली "
ये देखें-
'चमचमात चंचल नयन बिच घूँघट पट झीन,
मानहु सुरसरिता विमल जल उछरत जुग मीन।।'
-प्रेषक
प्रेमलता
उपरोक्त कवि बिहारी लाल रचित दोहा है।
-प्रेमलता
हमसफर शुक्रिया इस बलॉग पर पधारने का । आते रहें !
छाया अरे आपके जैसे पढ़ने वाले भी तो होने चाहिए
प्रत्यक्षा मैंने भी सुनी है शायद वो कैसेट ! उसमें की एक गजल कुछ यूँ थी
कहाँ थे रात भर उनसे जरा निगाह मिले...............हिसाब मिले
प्रेमलता जी अच्छा किया कवि का नाम बता दिया नहीं तो फिर उलते पुलटे गेस मारने पड़ते हमको :)!
आपके तो इन सार्वकालिक कवियों कि इतनी रचनाएँ याद हैं. परिचर्चा में हम सबके साथ बांटे तो मजा भी आएगा और हमारा ज्ञानवर्धन भी होगा
मनीष , बस यही तो उस गज़ल का एक शेर है जिसे मैंने लिखा. बडे साल बीते उस कैसेट को सुने हुये
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हसरत है कि उनको कभी नजदीक से देखें
नजदीक हो तो आँख उठायी नहीं जाती
चाहत पे कभी बस नहीं चलता है किसी का
लग जाती है ये आग लगाई नहीं जाती ... वाह बहुत खुब
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