गुरुवार, नवंबर 16, 2006

अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो....

कुछ गीत ऐसे होते हैं जो मन में धीरे-धीरे रास्ता बनाते हैं और कुछ ऐसे जो दिल में नश्तर सा चुभोते एक ही बार में दिल के आर पार हो जाते हैं । जावेद साहब ने इस गीत में एक बिटिया के दर्द को अपनी लेखनी के जादू से इस कदर उभारा है कि इसे सुनने के बाद आँखें नम हुये बिना नहीं रह पातीं ।

ऋचा जी की गहरी आवाज , अवधी जुबान पर उनकी मजबूत पकड़ और पार्श्व में अनु मलिक का शांत बहता संगीत आपको अवध की उन गलियों में खींचता ले जाता है जहाँ कभी अमीरन ने इस दर्द को महसूस किया होगा ।
गीत,संगीत और गायिकी के इस बेहतरीन संगम को शायद ही कोई संगीतप्रेमी सुनने से वंचित रहना चाहेगा।

अब जो किये हो दाता, ऐसा ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो ऽऽऽऽ


जो अब किये हो दाता, ऐसा ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो

हमरे सजनवा हमरा दिल ऐसा तोड़िन
उ घर बसाइन हमका रस्ता मा छोड़िन
जैसे कि लल्ला कोई खिलौना जो पावे
दुइ चार दिन तो खेले फिर भूल जावे
रो भी ना पावे ऐसी गुड़िया ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो
जो अब किये हो दाता, ऐसा ना कीजो...

ऐसी बिदाई बोलो देखी कहीं है
मैया ना बाबुल भैया कौनो नहीं है
होऽऽ आँसू के गहने हैं और दुख की है डोली
बन्द किवड़िया मोरे घर की ये बोली
इस ओर सपनों में भी आया ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो

जो अब किये हो दाता, ऐसा ना कीजो...

गायिका - ऋचा शर्मा, गीतकार - जावेद अख्तर
संगीतकार - अनु मलिक, चलचित्र - उमराव जान (2006)

इस मर्मस्पर्शी गीत को आप
यहाँ सुन सकते हैं ।

चलते चलते थोड़ा हटके एक और बात कहना चाहूँगा! बड़ी शर्मनाक बात है कि आज भी भारत के कमो बेश हर जगह और कुछ समृद्ध राज्यों में खासकर बिटिया को जन्म से पहले ही संसार में आने नहीं देते। आज भी दहेज लेने में हम जरा भी संकोच का अनुभव नहीं करते और ना मिलने पर प्रताड़ना की हदों से गुजर जाते हैं ।
आइए मिल कर खुद अपने और पास पड़ोस के लोगों को प्रेरित करें कि ऐसी कुरीतियों को पनपने से रोकें। कहीं ऐसा ना हो कि कभी हमारी बिटिया भी ऐसे सामाजिक हालातों में अपने जनम को कोसने पर मजबूर हो !


श्रेणी :
मेरे सपने मेरे गीत में प्रेषित
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11 टिप्पणियाँ:

rachana on नवंबर 16, 2006 ने कहा…

मनीष जी, एक बढिया गीत के साथ आपने नीचे जो कुछ लिखा है उसे पढ कर मेरी एक कविता 'बेटी' याद आ गई..लिखती हूँ अपने चिट्ठे पर...

Udan Tashtari on नवंबर 17, 2006 ने कहा…

बहुत सुंदर गीत पेश किया है और साथ ही आपकी टीप बहुत विचारणीय है.

बेनामी ने कहा…

मनीष,

पुरानी वाली 'उमराव जान अदा' में भी ऐसा ही एक गीत था "भैया को दियो बाबुल महल-दुमहला, हमको दियो परदेस". दोनों ही गीतों में पीड़ा वही है.

कुछ लोग जागरूक हो रहे हैं - कुरीतियों को हटाने का प्रयास भी कर रहे हैं. कुछ ने पाखण्ड की दीवार को ही परंपरा का नाम दे दिया है, दीवार के भीतर सति के मंदिर बन रहे हैं - कन्या भ्रूण दफ्न हो रहे हैं. जब कि असली परंपरा दीवार के दूसरी तरफ है.

तुम्हारे लिखे हुये से तुम्हारी पीड़ा और बेबसी को मैं महसूस कर सकता हूं.

बेनामी ने कहा…

यह मेरा प्रिय गीत है. अत्यंत मार्मिक गीत. ख़ुशी इस बात की हुई है कि रिचा शर्मा और अनु ने इस पर मेहनत अच्छी की है. धन्यवाद मनीष भाई

bhuvnesh sharma on नवंबर 18, 2006 ने कहा…

मनीषजी वाकई बहुत संदर गीत है साथ ही आपका लेख भी।
अनु मलिक को वैसे लोग कुछ भी कहें पर जे.पी.दत्ता के साथ तो वे वाकई कमाल करते हैं

बेनामी ने कहा…

आ..हा...!

"रो भी ना पावे ऐसी गुड़िया ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो
जो अब किये हो दाता, ऐसा ना कीजो..."

भाई, वाह वाह... क्या गीत है! रिचा शर्मा की आवाज़ तो... जादू है...

बहुत शुक्रिया, मनीष भाई।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा on नवंबर 19, 2006 ने कहा…

manish bhai..kaphi achha laga..
girindra nath

Manish Kumar on नवंबर 19, 2006 ने कहा…

रचना जी, समीर जी, नीरज, भुवनेश और सिन्धु आप सब ने भी दिल से इस गीत के दर्द को महसूस किया ! शुक्रिया !

Manish Kumar on नवंबर 19, 2006 ने कहा…

अनुराग बिलकुल सही कहा है भाई । समाज में कुछ बदलाव तो आया हे लोगों की सोच में पर अभी भी दीवार के उस तरह वाली सोच मिटी नहीं है । सबसे दुखद बात ये है कि दहेज, भ्रूण हत्या के मामले उत तबकों से भी आते हैं जो शिक्षित हैं । आपके विचार जानकर ऐसा लगा कि आप भी इस बारे में वैसा ही महसूस करते हैं ।
दूसरे गीत के बारे में याद दिलाने के लिए शुक्रिया !

Manish Kumar on नवंबर 19, 2006 ने कहा…

गिरीन्द्र जी स्वागत है आपका इस चिट्ठे पर !
पसंदगी का शुक्रिया !
लगता है आपने अपने चिट्ठे की फीड नारद से नहीं जोड़ी है ।
narad.akshargram.com पर जाएँ और वहाँ अपने चिट्ठे की जानकारी दें ।

बेनामी ने कहा…

मनीष जी जब से यह गीत सुना था उसी दिन से ही यह दिल में बस गया था। रिचा की आवाज का दर्द अमीरन के दर्द को जीवंतता से उकेरता है।

 

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