रविवार, जनवरी 14, 2007

गीत # 18 : मोहे मोहे तू रंग दे बसन्ती.....

बिन रंगों के जिंदगी कितनी सादी, कितनी मनहूसियत लिये होगी...
ऍसी जिंदगी की कल्पना करते हुए भी डर सा लगता है, एक उलझन सी होती है
मुझे तो लगता है कि रंग जिंदगी के उर्जा स्रोत हैं..
हमारे मनोभावों को उत्प्रेरित करने की अचूक शक्ति है इनमें..
बस इनमें को अपने आप को घोलते घुलाते रहिए जिंदगी का सफर सानन्द कट जाएगा..


और ऍसे ही एक रंग में रंग डाला है प्रसून जोशी साहब ने अपने आप को । सन २००४ में भी 'फिर मिलेंगे' के अपने काव्यमय गीतों से उन्होंने मेरा मन जीत लिया था । १८ वीं सीढ़ी पर
खड़े रंग दे बसन्ती के इस गीत में एक मस्ती है..एक उमंग है जो दिल को सहजता से छू लेती है। इस गीत की धुन बनाई है ए. आर. रहमान ने और अपनी जोशीले स्वर में इसे गाया है दलेर मेंहदी ने ।

थोड़ी सी धूल मेरी, धरती की मेरे वतन की
थोड़ी सी खुशबू बौराई सी, मस्त पवन की
थोड़ी सी धौंकने वाली धक-धक धक-धक धक-धक साँसें
जिन में हो जुनूं-जुनूं वो बूंदें लाल लहू की
ये सब तू मिल मिला ले फिर रंग तू खिला खिला ले
और मोहे तू रंग दे बसन्ती यारा मोहे तू रंग दे बसन्ती

सपने रंग दे, अपने रंग दे
खुशियाँ रंग दे, गम भी रंग दे
नस्लें रंग दे, फसलें रंग दे
रंग दे धड़कन, रंग दे सरगम
और मोहे तू रंग दे बसन्ती यारा मोहे तू रंग दे बसन्ती

धीमी आँच पे तू जरा इश्क चढ़ा
थोड़े झरने ला, थोड़ी नदी मिला
थोड़े सागर ला, थोड़ी गागर ला
थोड़ा छिड़क छिड़क, थोड़ा हिला हिला
फिर एक रंग तू खिला खिला
मोहे मोहे तू रंग दे बसन्ती यारा मोहे तू रंग दे बसन्ती

बस्ती रंग दे, हस्ती रंग दे
हँस-हँस रंग दे, नस -नस रंग दे
बचपन रंग दे जोबन रंग दे
रंगरेज मेरे सब कुछ रंग दे
मोहे मोहे तू रंग दे बसन्ती यारा मोहे तू रंग दे बसन्ती


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7 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari on जनवरी 14, 2007 ने कहा…

बेहतरीन!!!

जारी रहें.

बेनामी ने कहा…

गीत तो अच्छा है ही, उसकी भूमिका मे रंगों के बारे मे आपने जो कहा है, वो भी अच्छा है!

Upasthit on जनवरी 14, 2007 ने कहा…

Geet apki bhumika Film aur behatareen gayaki se bhi kahin jayda achcha geet ka filmankan. RDB ke promos me bas isi ek geet ki ikka dukka clips ati thin...Aur geet jab juda us filmankan ke saath to bas chamak utha...

bhuvnesh sharma on जनवरी 15, 2007 ने कहा…

जब ए. आर. और प्रसून जैसे गुणी लोग हों तो संगीत तो मधुर निकलना ही है

Avinash Das on जनवरी 16, 2007 ने कहा…

plz visit this blog: http://mohalla.blogspot.com/
& forward all friends.
thanx
avinash

Manish Kumar on जनवरी 16, 2007 ने कहा…

समीर एवं रचना जी शुक्रिया !

रवीन्द्र इस गाने का फिल्मांकन बेहतरीन था इसमें कोई शक नहीं । पर कोई गीत मेरे लिए अच्छा तभी होता है जब वो सुनने में कर्णप्रिय लगे और गायिकी, बोल और संगीत तीनों मधुर है इस गीत का !

Manish Kumar on जनवरी 16, 2007 ने कहा…

भुवनेश बिलकुल सही कहा आपने !

अविनाश आपके ब्लॉग पर पहले ही जा चुका हूँ मैं । शायद मुन्नवर राना की बेहतरीन गजल...तो हिंदी मुसकुराती है पर आपने मेरी टिप्पणी देखी नहीं ।

 

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